मिथिला के अपन एकटा पैघ इतिहास रहल छैक आ अखनुका समय में वर्तमान सरकार आ पहिलुका सरकार सब द्वारा जे एकर घोर अवहेलना भेल अछि तेकरा देखैत आब एकटा अलग मिथिला राज्य के स्थापना भेने एकर कल्याण संभव छैक।
केन्द्र स’ जतेक पाई-कौड़ी आबैत छैक से पटना आ ओकरे चारू कात के विकास में लागि जायत छैक। कोनो इंस्टीच्युट के स्थापना हेबाक छैक तऽ सेहो पटना आ कि ओकरे बगल में। कियेक भाई, तऽ मिथिला में कोनो आधार नहि छैक ओकरा स्थापित करै के लेल। यौ, आब अहीं सब कहु, जे ओ आधार कोना के बनतैक। जौं मिथिला अविकसित तऽ सरकार कियेक नहि ओकरा बढ़ाबै लेल ध्यान दैत छैक। मिथिला की बिहार में नहि आ कि भारत में नहि? के एहि पक्षपात के जिम्मेदारी लेतैक? बाबू सब, हम सब बढ़ कानि-बाजि के देख लेलियेक आ कोनो फायदा नहि भेल। आब तऽ एकेटा आस रहि गेल छैक जे मिथिला जौं अपन एकटा अलग राज्य बनि जेतैक तखन के छल एकर पाई खाय बला। तखन तऽ जे मदत केन्द्र सरकार से भेटतैक से खाली मिथिले के विकास में लागतैक। के हेतै तखन ई कहै वला जे मिथिला में विकास के लेल कोनो आधार नहि?
जदि अप्पन इतिहास के देखि त मिथिला प्राचीन भारत मे एकटा साम्राज्य छल । ई पूर्वी गंगा मैदान मे अवस्थित अछि, जे आब आधा सँ अधिक बिहार और ओकरा सँ जुड़ल नेपालक भाग अछि । रामायण महाकाव्यक अनुसार मिथिला विदेह साम्राज्यक राजधानी छल । एहि शहरक पहचान नेपालक धनुषा जिला मे आजुक जनकपुर सँ कएल गेल अछि । विदेहक देश कखनो-कखनो मिथिला कहल जाईत अछि, जहन कि ई राजधानी छल । ई ठीक ओहिना अछि जेना कि कोशल साम्राज्यक राजधानी अयोध्या छल, जे कोशलक तुलना मे बेसी प्रसिद्ध भेल । डी। डी. कोशाम्बीक अनुसार शतपथ ब्राह्मण कहैत अछि कि माधब विदेघ पर पुजारी गोतम राहुगण शासन केलनि, जे पहिल राजा छलाह, जे सदानीरा (संभवत: गंडक ) नदी कें पार कऽ साम्राज्यक स्थापना कयलनि । एतयक लोक शतपथ ब्राहमणक संकलनक समय मे विदेहक नाम सँ जानल जाईत छलाह । गोतम राहुगण एकटा वैदिक ऋषि छलाह जे ऋग्वेदक पहिल मंडलक कतेको श्लोकक रचना कयलनि । ई श्लोक ओ अछि, जाहि मे स्व- राज्यक प्रंशसा कयल गेल अछि, जे निर्विवाद रूप सँ विदेघ राज्य छल जे ध्वनि परिवर्तनक कारण बाद मे विदेह भऽ गेल । अत: माधव विदेघ निश्चित रूप सँ बहुत पहिने भऽ चुकल छलाह । ऋग्वेदक दशम मंडल मे काशिराज प्रातर्दन द्वारा रचित श्लोकक उल्लेख अछि । अत: मिथिला आ काशी ओहि भूभाग मे अवस्थित छल, जाहि मे ऋग्वेद कालक व्यक्ति रहैत छलाह । गोतम राहुगणक परवर्ती ऋषि लोकनि गौतम कहल गेलाह । एहने एकटा सन्यासी रामायण काल मे अहिल्या स्थानक नजदीक रहैत छलाह ।
मिथिलाक गाथा कतओक शताब्दी धरि पसरल अछि । ई कहल गेल अछि जे गौतम बुद्ध आ वर्धमान महावीर दुनू गोटे मिथिला मे रहल छलाह । ई प्रथम सहस्त्राब्दिक दौरान भारतीय इतिहासक केंद्र छल आ विभिन्न साहित्यिक आ धर्मग्रंथ संबंधी काज मे अपन योगदान देलक । मैथिली मिथिला मे बाजय जायवला भाषा थिक । भाषाविद मैथिली कें पूर्वी भारतीय भाषा मानलनि अछि आ एहि तरहें ई हिन्दी सँ भिन्न अछि । मैथिली कें पहिने हिन्दी आ बंगला दुनूक उप-भाषा मानल जाइत छल । वस्तुत: मैथिली आब भारतीय भाषा बनि चुकल अछि । मिथिलाक सभ सँ महत्वपूर्ण संदर्भ हिन्दू ग्रंथ रामायण मे अछि, जतए एहि भूमिक राजकुमारी सीता कें रामक पत्नी कहल गेल अछि । राजा जनक सीताक पिता छलाह, जे मिथिला पर जनकपुर सँ शासन केलनि । प्राचीन समय मे मिथिलाक अन्य प्रसिद्ध राजा भानुमठ, सतघुमन्य, सुचि, उर्जनामा, सतध्वज, कृत, अनजान, अरिस्नामी, श्रुतयू, सुपाश्यु, सुटयशु, श्रृनजय, शौरमाबि, एनेना, भीमरथ, सत्यरथ, उपांगु, उपगुप्त, स्वागत, स्नानंद, शुसुरथ, जय-विजय, क्रितु, सनी, विथ हस्या, द्ववाति, बहुलाश्व आदि भेलाह । ’मिथिला, एहि क्षेत्र मे सृजित हिन्दू कलाक एक प्रकारक नाम सेहो थिक । ई विशेष कऽ वियाह सँ पूर्व महिला द्वारा घर के सजेबाक लेल घरक देबार आ सतह पर धार्मिक, ज्यामितीय आ चिहनांकित आकृति सँ शुरु भेल आ एहि क्षेत्र सँ बाहर एकरा नहि जानल जाइत छल ।
गंगा बहथि जनिक दक्षिण दिशि, पूर्व कौशिकी धारा,
पश्चिम बहथि गंडकी उत्तर हिमवत् बल विस्तारा ।
मिथिलामे २५ जिला, ५० अनुमंडल १९९९ तक लगभग छल जाहि मे वृद्धि भेल हैत, ७२,३०० किमी० क्षेत्रफल, ४४ नदी, ६ हजार पोखड़ि, अनगिनत इनार । पाल० एस० व्रास लैगुएस, रिलीजन एण्ड पोलिटिकस इन नार्थ इंडिया, पृ० ६४ मे १९६१ मे जनसंख्या १६५६५,४७७ लिखने छथि, ग्रियर्सन १८९१ मे मैथिली भाषा-भाषी केँ जनसंख्या ९,३८९,३७६ निर्धारित कयलनि, तत्कालीन मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर पत्रांक ३ आर १-१०-१९६६, दिनांक २२-१२-७७ केँ तत्कालीन केन्द्रीय सरकार के विधिमंत्री शान्तिभूषण केँ लिखलनि जे अपना देश मे २ करोड़ सँ अधिक आ नेपाल मे ३० लाख सँ अधिक मैथिली भाषा-भाषी छथि । तैं जनसंख्या निर्धारित करब कठिन, कारण जतय सँ प्रवजन भारी मात्रा मे भेल ।
मैथिली केँ क्षति जते अपन लोक कएलक ओते दोसर नहिं । १९१४ मे भागलपुर हिन्दी साहित्य सम्मेलन मे गिरीन्द्र मोहन मिश्र प्रस्ताव देलनि जे बिहार प्रान्तक मातृभाषा हिन्दी थीक, तैं प्राथमिक शिक्षाक माध्यम हिन्दी हो, जिनका मैथिली पुस्तक पर साहित्य अकादमी पुरस्कार सेहो भेटलनि । राष्ट्रीय आन्दोलनक समय मे अखिल भारतीय स्तर पर भावात्मक एकता बढ़यबाक दृष्टि सँ मैथिली भाषी सब मिथिलाक्षर वा तिरहुताक्षर कें स्थान मे देवनागरी स्वीकार कयलनि । बिहार मे विनोदानंद झा, भोला पासवान शास्त्री, कर्पूरी ठाकुर, विन्देश्वरी प्रसाद मंडल, सतीश प्रसाद सिंह, डा० जगन्नाथ मिश्र मैथिली भाषा-भाषी मुख्यमंत्री भेलाह, किन्तु ओ सभ संविधानक आठम सूची मे मैथिली केँ स्थान नहिं दिया सकलाह । फलतः बिहार मे एतेक संख्या रहबाक बावजूद मातृभाषा नहि मानल गेल । तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव सेहो लिखलनि कि १९९०-९१ केँ जनगणना के अनुसार बिहार मे भोजपुरी, आदिवासी, मगही भाषा- साहित्य कें छोड़ि कऽ आयोगक परीक्षा मे मैथिली ऐच्छिक भाषाक रूप मे राखब उचित नहिं आ बिहार लोक सेवा आयोग सँ मैथिली जे ऐच्छिक विषय के रूप मे छल, से हटा देल गेल । (बिहार सरकार के कार्मिक एवं प्रशासनिक सुधार विभागक ज्ञापांक १३४२, दिनांक २९ फरवरी, १९९२) । जखन एस० के० चटर्जी ओरिजिन एण्ड डेवलपमेन्ट ऑफ बंगाली लैंग्वेज नामक पोथी मे लिखलनि “मैथिली भारत की स्वतंत्र एवं समुन्नत भाषा है ।" ज्योतिरीश्वरक १२८०-१३४० ई० मे वर्णरत्नाकर एवं मैथिली धूर्त समागम उत्तर भारतक सब आधुनिक आर्यभाषाक सर्वप्रथम ग्रन्थ एवं नाट्य कृति मानल जाइछ । महाकवि विद्यापतिक (१३५०-१४४०) रचना कालजयी साहित्यिक रचना मानल जाइछ । महर्षि अरविन्द मैथिली गीतक अनुवाद कयलनि, युनेस्को हिनक गीतक अनुवाद प्रकाशित कयलक । विश्वप्रसिद्ध कुमार स्वामी हिनक गीतक भावचित्र बनाय गीत एवं चित्रक प्रकाशन कयलनि, गौरांगस्वामीक रचना हिनका सँ प्रभावित छल, नहिं जानि कतेक भाषा मे हिनक गीतक अनुवाद भेल । दिल्ली मे मैथिली पुस्तक एवं पांडुलिपि देखि तत्कालीन प्रधान मंत्री पं० जवाहर लाल नेहरू विजिटर्स बुक मे लिखलनि “MaithilI has been for a long time and is today a living language among the people of the area। The language deserves encouragement ". अंतर्राष्ट्रीय साहित्यकार एवं बुद्धिजीविक संस्था P.E.N. (Play Wrights, Essayists, Editors, Nanvelists) में मैथिली साहित्यकार स्थान पवैत छथि । यू०जी०सी० द्वारा कनीय एवं वरिष्ठ अनुसंधान छात्रवृत्ति मैथिली मे देल जाइछ, व्याख्याता पदक अर्हताक लेल प्रतियोगिता परीक्षा मे एकर स्थान अछि, नेपालक द्वितीय भाषा मैथिली अछि, तथापि संविधानक अष्टम सूची मे ई स्थान एकरा बहुत समय बाद भेटलैक, ई दुःखक गप । हम सब मैथिल जतय कतहुँ होइ, आ समस्त मैथिलक संस्था केन्द्रीयभूत भय प्रयास करत, तखनहिं सफलता भेटि सकैछ । ताहि मे पंजी-व्यवस्था एवं सभा सहायक सिद्ध हैत, जतय विचार विमर्श कय समस्याक निराकरण कयल जा सकैछ ।
- सुभाष चंद्र
1 टिप्पणी:
मैथिली केँ क्षति जते अपन लोक कएलक ओते दोसर नहिं ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
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