शुक्रवार, मार्च 20

ककरा चुनी

होली के हुर्रा-हुर्री स त्राण भेटल त चैत के पछ्बा बसात ठोर पर पिपरी पराबैत अछि आ बैसाख के धह-धह रौद बांकी अछि... ओ तखन जहन चुनाव के सरगर्मी बढ़ी गेल अछि आ सब कियो अप्पन रास्ता के सुगम बनेबाक लेल दोसर के गरिदैन तक छूपे में कोनो मौऐत के जोगर में नहीं छैथ. करीब साढे पञ्च सय लोक के हमरा-अहन के चुनबाक अछि, से त चुंबे करब मुदा की ओही में स एक्कोटा लोक अप्पन पसिन्न के हेताह ? से विचार करू.... आई नहीं करब त कहिया करब ? समय लगीच आबी गेल.. बहुत मोसकिल स दर्जन भरी लोक के निक कही सकैत छि. बांकी त .... ? की ने ?
कियो चोर त कियो डकैत ... किहो गिरह कट त कियो झपटमार .. कोना चुनाब अप्पन-अप्पन रख्बार के ? यछ प्रश्न अछि... आब निर्णय करू जे कहां रख्बार हुअय... बैमान त सब अछि.. ओही में तक्बक अछि जे कम आ इमानदार बैमान के अछि... गंगा में सेहो बेंग बासित अछि.. एकरा नहीं बिसरह छाही..

मंगलवार, मार्च 3

कविता / हम विशवविजयी

- कंचन

नव ज्योति एतय परकाश हेतै,
तै आस मे जन-जन बैसल छी।
जँ हमहिं जराबी दीप एतय,
नहि ई बूझी हम एकसरि छी।
सभ गोटे जँ निकलब भीड. हेतै,
नव धवल गगन कें चीर हेतै।
मन नाचत हम सब गाबि उठब,
सभ दिस तम केर ना’ा हेतै।
तू की कहलै हम की सुनलहुँ,
एहि बातक नहि व्याख्यान करू।
हम की कहलहुं हम की केलहुं,
एहि बातक सब सम्मान करू।
हम अलग विलग नहिं एकहिं छी,
अहि देह अलग मन संगहि छी।
सब मिल नव ज्योति जराबी तँ
ई वि’वविजयी तँ हमहीं छी।