होली के हुर्रा-हुर्री स त्राण भेटल त चैत के पछ्बा बसात ठोर पर पिपरी पराबैत अछि आ बैसाख के धह-धह रौद बांकी अछि... ओ तखन जहन चुनाव के सरगर्मी बढ़ी गेल अछि आ सब कियो अप्पन रास्ता के सुगम बनेबाक लेल दोसर के गरिदैन तक छूपे में कोनो मौऐत के जोगर में नहीं छैथ. करीब साढे पञ्च सय लोक के हमरा-अहन के चुनबाक अछि, से त चुंबे करब मुदा की ओही में स एक्कोटा लोक अप्पन पसिन्न के हेताह ? से विचार करू.... आई नहीं करब त कहिया करब ? समय लगीच आबी गेल.. बहुत मोसकिल स दर्जन भरी लोक के निक कही सकैत छि. बांकी त .... ? की ने ?
कियो चोर त कियो डकैत ... किहो गिरह कट त कियो झपटमार .. कोना चुनाब अप्पन-अप्पन रख्बार के ? यछ प्रश्न अछि... आब निर्णय करू जे कहां रख्बार हुअय... बैमान त सब अछि.. ओही में तक्बक अछि जे कम आ इमानदार बैमान के अछि... गंगा में सेहो बेंग बासित अछि.. एकरा नहीं बिसरह छाही..
शुक्रवार, मार्च 20
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1 टिप्पणी:
theeke kahalaun apne chaaru kaat wah sab aichh, bas mukhautaa alag alag aichh.
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