शनिवार, जनवरी 2

अपरिहार्य आत्म मंथन

वियाह व्यक्तिक संस्कारक हिस्सा मानल जाइत छैक। कहल जाइत छैक जे वियाह स्वर्ग मे तय होइत अछि। दू प्राणीक तन-मन आ आत्माक मिलन होइत अछि ई। एगो ऐहन बंधन जाहि मे व्यक्ति स्वयं बन्हाय चाहैत छैक। वियाह केँ गृहस्थ जीवनक आधार मानल जाइत अछि। कहल गेल अछि सफल गृहस्थ जीवन बीताबय बला लोके मोक्ष प्राप्त कऽ सकैत अछि आ स्वर्ग जा सकैत अछि। गृहस्थ जीवन मे जीवनक सभ भाव, दशा रस आ ज्ञानक रहस्य नुकायल अछि। तैं एकरा मानव लेल अपरिहार्य बना देल गेल अछि।
वियाह पवित्र बंधन अछि। सुख-दु:ख मे एक-दोसरक संग नहि छोड़बाक प्रण लैत छथि वर-कन्या। साक्षी बनैत छथि अग्निदेव सहित भगवान। एकरा यज्ञ मानल गेल अछि, पवित्र अनुष्ठïान। कन्यादान सबसँ पैघ दान अछि। वियाह मे 'वरÓ मंत्र पढ़ै छथि आ 'कन्याÓ केँ 'पत्नीÓ के रूप मे स्वीकार करैत छथि। कन्याक अनुमोदन लेल जाइत अछि़? पत्नी रूप मे स्वीकार करबाक प्रयोजन की? तँ कि वियाह 'संस्थागतÓ होयबा सँ पूर्व उन्तुक्त यौनाचार रोकवाक साधन के रूप अस्तित्व मे आएल? कम सँ कम भारतीय दर्शन आ संस्कृति मे एहि पश्चिमी सोच प्रतिबिम्ब नहि भेटैत अछि।
पहिने स्वयंबर होइत छल, ई नारीक सामाजिक स्थिति पर प्रकाश दैत अछि। बाद मे स्वयंबर शर्त सँ जुड़ल आ फेर ओहि मे कन्याक अभिभावक हस्तक्षेप होमय लागल। सीताक स्वयंबर मे शिव-धनुष तोड़बाक शर्त जनक केर छलन्हि। गौरीक वियाह मे सिर्फ गौरीक शिव सँ वियाह करबाक अदम्य इच्छा आ तपस्या प्रमुख छलन्हि। आब स्वयंवर इतिहास बनि गेल अछि आ 'कोट मैरिजÓ अस्तित्व मे आएल अछि। की एहि वियाह केँ स्वयंबरक बदलल रूप नहि मानल जा सकैत अछि? पारंपरिक वियाहो पर तऽ बदलैत समयक स्पष्टï प्रभाव देखबा मे आबि रहल अछि।
समयक प्रभाव प्रत्येक युग मे रीति-रिवाज आ संस्कार पर पड़ैत रहल छैक। अति प्राचीन काल मे बहुपत्नीक उदाहरण नहि भेटैत अछि मुदा बाद मे ई प्रचलन मे आएल। इहो प्रथा अब प्राचीन आ पौराणिक सहमति प्राप्त कऽ चुकल अछि। समयक प्रभाव सँ वियाहक बहुप्रकार आ नियोग समाप्त भऽ चुकल अछि। मिथिला ताहु समय मे अपना के बदलैत समयक प्रभाव सँ बहुत हद तक बचा केँ रखने छल। आजादी सँ पहिने तक रीति-रिवाज संस्कार आ परंपराक जतबो 'धरोहरिÓ बचल छल आब लुप्तप्राय भऽ रहल अछि।
वियाह मे बरियातिक प्रचलन सेहो अति प्राचीन अछि। बरयाति शिव-विवाह काल मे सेहो वियाह अनिवार्य आ अपरिहार्य हिस्सा छल। तऽ की ओ वियाहकेँ मान्यता देभय बला सामाजिक गवाह होइत छलाह आ की मन्यागत दिस सँ यैह भूमिका सरयाति निभाबैत छलाह? मुदा आब बियाहक संग बरयातिक स्वरूप सेहो बदलि रहल अछि। महिला लोकनि आब नहि सिर्फ बरयातिक हिस्सा बनय लगलीह अपीतु बैंडक धुन पर सेहो नाचय लगली। खान-पान मे पत्तल के जगह प्लेट लऽ रहल अछि तऽ महानगर मे बफे सिस्टम (स्वयं खाना उठाक आ ठाढ़े भऽ खाक) हावी भऽ रहल अछि।
समयक संग सौराठ सभा सेहो अप्रासंगिक बनल जा रहल अछि। अपन एहि धरोहरि के बचा पाबैक क्षमता चूकैत बुझा रहल अछि। विकल्प पर ध्यान देब या सौराठ सभा केँ पुन: स्थापित करब की हमर सामाजिक नैतिक कत्र्तव्य नहि अछि? आरोप-प्रत्यारोप आ अनावश्यक तर्क-वितर्क इपर उठि की सभकेँ मिलि एहि पर गंभीर आ सार्थक पहल नहि करबाक चाही? सौराठ वासी अपना के निर्दोष नहि मानि सकैत छथि आ ने कोनो मिथिलावासी एहि खतराक प्रति उदासीन भऽ सकैत छथि? पंजी व्यवस्था महत्व बुझि ओकरा बचायब सेहो सामाजिक दायित्व अछि।
तिलक सामाजिक अभिशाप अछि आ अवरोधक मिथिला केर विकास मे प्रति वर्ष पचास करोड़ सँ बेसीक राशि मात्र वियाह आ बरयातिक ताम-झाम पर बुकल जाइत अछि। एत्तेक खर्चक बाद कै कहे सकत मिथिला पिछड़ल आ गरीब अछि? व्यवस्था एहि दोख के समग्रता सँ विचार कऽ दूर करबाक प्रयोजन अछि। की लड़की केँ एहि लेल 'लक्ष्मीÓ मानल जाइत अछि? तिलक आ बरयातिक ताम-झाम पर जत्तेक राशि हमरा लोकनि खर्च करैत छी, तकर सार्थक सदुपयोग नहि कएल जा सकैत अछि की?
समाज तेजी सँ बदलि रहल अछि आ एकर चपेट मे आबि रहल अछि मिथिलाक सामाजिक-सांस्कृतिक जीवनक प्रत्येक ओ 'धरोहरिÓ जे व्यक्तिक जीवनक अभिन्न हिस्सा होइत छल। आवश्यकता अछि पुन: मंथन केर। अपन लेल नहि, समाज लेल, इतिहास लेल आ भविष्य लेल।
—विपिन बादल

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