बुधवार, जनवरी 27

तिलक : जन्मसिद्ध अधिकार वा विकासक अवरोधक?

तिलक 'सोशल स्टेटसÓ आ सामाजिक प्रतिष्ठïाक विषय बनि गेल अछि। सामाजिक स्वीकार्यता प्राप्त छैक एकरा। जे परिवार तिलक नहि लऽ 'आदर्शÓ प्रतिमान स्थापित करैत छथि, हुनका प्रति बहुत रास संशय व्यक्त कएल जायत अछि। सच पुछू तऽ दहेजक के जन्मसिद्ध अधिकारक रूप मे महिमामंडित कएल जा रहल अछि। मुदा तिलक के जन्मसिद्ध अधिकार मानय बला कहियो ई सोचला जे ई प्रथा क्षेत्रीय आ सामाजिक विकास केर कतेक पैघ अवरोधक अछि?
मिथिला मे तिलक बरयाति आ कन्याक द्विरागमन धरि करोड़ो रुपया बह देल जायत अछि। सामथ्र्यवान जतए 40-50 लाख तक एहि नाम पर खर्च करैत छथि ओतए सामथ्र्यहीनो खेत-डीह बेचकेँ खर्च करैत छथि। कखनो सोचल अछि जे यदि रुपयाक सदुपयोग होयत तऽ एत्तेक राशि सँ कोन-कोन प्रयोजन पूर्ण कएल जा सकैत अछि। नि:संदेह बियाहो प्रयोजने ठीक मुदा आडंबरपूर्ण दिखाबा मे जेना कैंचा लुटाएल अछि की ओ उचित वा मानवीय जा रहल अछि? सामाजिक, पारिवारिक आ क्षेत्रीय विकास लेल सार्थक विकल्प ताकबाक आवश्यकता अछि। ई 'अर्थयुगÓ छैक तैं अर्थक अनादर करब विकासक लेल 'अनर्थÓ साबित होयत।
मिथिला मे तिलक प्रथा ब्राह्मïण परिवार मे सबसँ बेसी अछि मुदा आनो जाति मे आब ई सामाजिक प्रतिष्ठïाक विषय बनि रहल अछि। कन्यागत यदि प्रत्यक्षत: खर्च करैत छथि तऽ वरागत सेहो प्रतिष्ठïा अनुरूप खर्च करैत छथि आ ओ पाई हुनको लऽग बचि पबैत छन्हि। कखनो सोचल गेल जे अंतत: ओ पैसा कत्तऽ जाइत अछि, ककरा हाथ मे? एहि बंदरबांट मे के बनैत छथि लाभार्थी? आवश्यकता अछि सजग होयबाक आ नवयुवक-युवतीक केर लगाम अपना हाथ मे लेबाक। तिलक रोकबाक गंभीर आ यथार्थपरक आंदोलनक आवश्यक छै। मुदा के आंगा बढ़त?
मैथिल समाज जाति आ उपजाति मे बंटल छथि। श्रेष्ठï भाव सँ ओत-प्रोत? ई श्रेष्ठïताभाव आ जाति, उपजाति मे बंटल वर्ग समाजक कतेक अहित करैत अछि, इहो सोचनीय अछि। तिलक प्रथाक खात्माक लेल एकरो तोड़ब आवश्यक अछि।
बिना माइंजन आ देवानक जाति ब्राह्मïण अपन आपसी अंतरक संघर्ष मे तेना ओझराएल छथि की सामाजिक विकास मे बड़का अवरोधक होइत रहलाह। अगर एकर व्यावहारिकता के वियाह के रूप मे देखल जाय त किछु मामिला साफ बूझबा जैत।
जाति के संग-संग उपजाति तकरबाद फेर की हैत? उपजाति के सेहो तोड़ी क सह उपजाति बनत? अहि मे दोषी के अछि अई सवाल पर हमरा जनतबे अखन तक सोचल नहि गेल आ फोरवाड के नाम पर शनै:शनै: बेकवाड भेल जा रहल छी। यदि हम मिथिलाक किछु दोसर जाति के उदाहरण लेल जाय तँ यादव जाति मे 1964 सँ दहेज खतम भÓ गेलइ, कारण जे सब गामक माइंजन देवान एकटा बैसार सुंदर विराजीत गाम मे केलन्हि आ फैसला केलन्हि जे एकावन टा टका लऽ वरक दुआरि पर जैब जँ मंजूर होनि त ठीक नहि त ओहि परिवार के समाज मे बाडि़ देबनि। सहजहि दहेज के नामोनिशान नहि रहल।
एहने सन फैसला मिथिलाक कर्ण कायस्थ सेहो लेलन्हि मुदा कर्ण कायस्थ सब सेहो मैथिल ब्राह्मïण जेका अपना के उपजाति मे बांटी चुकल छथि। लेकिन बत्तीस गामक कर्ण कायस्थ श्रोतिय ब्राह्मïण जेका अपनाकेँ उच्च कुलशील क मानी कर्ण कायस्थ के दु उपजाति मे बांटी देलनि बत्तीस गामक भीतर आ बत्तीस गामक बाहर। जाति के फराक फराक उपजाति मे बांटला सँ नोकसान जे परिलक्षित होइत अछि ताहि मे बियाह दान पहिल संकट अछि। बत्तीस गामक भीतर दहेज के प्रचलन नहि अछि आ एकटा नीक वर (आइएएस, आइपीएस सनक वर) के गरीब घर मे एतऽ तक की निरक्षर कनिया सँ वियाहि देल जाइत अछि। ओ अफसर महोदय अपना हिसाबे अपन कनिया के तैयार कÓ लैत छथि। दोसर दिस जखने बत्तीस गाम सँ बहार भेलऊँ की मुश्किले-मुश्किल। कन्यागत अपन स्तर के वर तकबा लेल फिरिसान छथि। यथासाध्य डीह डाबर भरना या बेच कÓ बेटी के सुखी जीवन मुहैय्या करा रहल छथि।
बत्तीस गामक भीतर कतहु-कतहु कन्यागतो मजगूत रहैत छथि। वरक भाग खुलि जाइत छनि। कमो पढ़ला-लिखला उत्तर ससुर या सासू कृपा सँ ढंगगर नौकरी भेटि जाइ छनि आ सुखी जीवनक अभिलाषा पूरा भÓ जाइत छन्हि। सामान्यतया वियाहक नाम पर जे सौदेबाजी पसरल अछि ताहि सँ वंचित रहि जाइत छथि। जे कतहु ने कतहु समाज के सकारात्मक दिशा दैत अछि।
मैथिल ब्राह्मïण आ कर्ण कायस्थ ई दुनू जाति अपन उपजाति के खतम कÓकÓ शर्तिया दहेज के घिसियाकेँ कमला, कोशी आ बागमती के बाढि़ मे भसिया सकैत छथि आ समाज मे नव उदाहरण तथा सकारात्मक दृष्टिï के पसारइ मे एक डेग उठा सकैत छथि। ई नि:संदेह एकटा घृणित प्रतीक दहेज के और पैसार सँ रोकी सकैत अछि।

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