कोनो समाजक पहिल आ प्रमुख इकाई होइत अछि 'जनÓ। निर्माण आ विनाश दुनु मे जनक प्रमुख भागीदारी रहैत छैक। परंच मिथिलांचलक आबादी लगभग पांच करोड़ रहितो आइ मिथिला जनविहीन लागैत अछि। एतय जनसँ मतलब मात्र दैनिक बोनि पर खटनिहार श्रमिक नहि, अपितु समस्त ओहन जन सँ संबंधित अछि जे कार्यरत छथि, कुनु ने कुनु तरहक काज अबस्से करैत छथि।
जतय एक दिश्ï मिथिलाक बढ़तै जनसंख्या विस्मयकारी होइछ ओतहि दोसर दिश्ï लोकक पलायन मिथिलाक विकास केँ अवरुद्ध कयने जा रहल अछि। जनसंख्या वृद्धि सँ उपजल अनेकानेक विसंगतिक कएने लोक गाम-घर छोडि़ अन्यत्र पलायन कय रहल अछि। गाम-घरक कुनु वर्ग-जातिक लोक एहि पलायन सँ नञि बाँचल अछि।
देखल जाय तै पलायन पहिनहुँ होइत छल। प्राचीन काल मे मिथिला सँ लोक सब पलायन कय अन्यत्र सेहो बसि गेलाह। प्राकृतिक, दैवी आ स्थानीय कारण मुद्दा बनैत छल। पर्यटन आ उच्च ज्ञान प्राप्त करबाक इच्छा, सँ लोक घर सँ बाहर सेहो जाइत छलाह। आखिर लोक अपन माटि-पानि आओर गाम-घर सँ पलायन कियैक-करैत छथि, एहि संदर्भ मे किछु ऐतिहासिक कारक पर ध्यान देल आवश्यक बुझना जाइत अछि। अंग्रेजक शासन जाधरि रहल भारतक आर्थिक स्थिति चरमरायल रहल। कोनहु क्षेत्र ऐहन नहि छल जकर शोषण नहि कएल गेलै। अंग्रेजी शासनक नीति एहि तरहेँ बनल छल जे सभकिओ गरीबीक मारि झेलबा लेल बाध्य रहथु। जेना जेना समय बीतैत गेल, सामान्य मनुक्खक लेल दू जूनक रोटी जुटेनाय मुश्किल होइत गेल। ब्रिटिश शासक द्वारा अंधाधुन आर्थिक शोषण, स्वदेशी उद्योग-धंधाक नाश, ब्रिटेन मे भारतीय संपदाक स्वच्छंद प्रवाह, कृषि प्रणालीक पिछड़ापन आओर जमींदार, रजवाड़ा, महाजन तथा राज्यक अधिकारी द्वारा आम निरीह जनता/किसानक शोषण शनै-शनै अकल्पनीय दैन्य आ विवशताक खाधि मे धकलैत गेल।
एकर कारण जे पलायन प्रक्रिया शुरू भेल ओ राज्य संगे जुड़ैत गेल। ब्रिटिश शासनक शुरुआती चरण मे यानी प्लासी के लड़ाई आ 1765 ई। मे दीवानी लेल अनुदान भेटलाक बाद ईस्ट इंडिया कम्पनी जे शोषण आ मनमानीक रस्ता अख्तियार कयलक ओकर सब सँ पहिल शिकार बिहार, बंगाल आ उड़ीसाक संयुक्त प्रांत बनल। अंग्रेज ऐहन ने लूट-खसोट शुरू कएलक जाहि सँ एहि संयुक्त प्रांतक कोन-कोन मे भूख, अकाल व महामारीक साम्राज्य बनि गेल आ लक्ष्मी पड़ाय लगलीह।
एहि संदर्भ मे दरभंगाक देशी रियासतक संबंध मे दू आखर कहब समीचीन होयत। किछु दिन पहिने एहि पलायनक संबंध मे भेल शोधक अनुसारे कहल जा सकैत अछि जे मिथिला सँ भेल पालयनक मुख्य कारण दरभंगा महाराज द्वारा मिथिलांचल जनताक निर्बाध निरंकुश शोषण आ उत्पीडऩ छल। दरभंगा महाराजक एकछत्र वर्चस्वक कारणे मिथिलांचलक आर्थिक, राजनैतिक आओर सामाजिक दशा चिंतनीय बनल रहय। ओहि समय किसानक मनमाना दमन कएल जाइत छलै, ओकरा पर तरह-तरहकेँ कर, मालगुजारी आदि असहनीय बोझ सहबा लेल बेबस कएल जाइत छलै। शिक्षाक आवश्यकताकेँ सभ तरहेँ नजरअंदाज कएल गेलै, स्वास्थ्य आ अन्यान्य सामाजिक कल्याण सँ संबंधित क्षेत्र मे पिछड़ापन आ शैथिल्यपूर्ण निष्क्रियताक घटाक्षेप छायल रहलै। प्रेस, जनसंचार माध्यम आओर नागरिक अधिकारक स्वतंत्रता केँ सत्ता द्वारा हनन कयल गेलै। सरकारी राजस्वक एकटा पैघ हिस्सा राजकुमार, कुलीन दरबारी आ हुनक चमचा-बेलचा केँ ऐशो आराम आ ठाटबाट मे दुइर होइत छलै। एतबै नञि, जँ कहियो ब्रिटिश शासनक कोनो प्रतिनिधि दरभंगा अबैत छलैह तऽ राजरघरानाक प्रतिनिधि ओकरा अपन माय-बापो सँ पैघ मानि बेशकीमती जनेश दैत छलाह। एहि तरहेँ जाहि धनक उपयोग रियासतक प्रगति मे होबाक चाही ओ धन राजघरानाक ठाट बाट आ हुनक चमचागिरी मे व्यर्थ चलि जाइत छल।
मुदा आजुक परिप्रेक्ष्य बदलल अछि। बढ़ैत जनसंख्याक घनत्वक अनुपात मे जमीनक रकवा छोट भऽ रहल अछि। उद्योगकहीनता प्राकृतिक प्रकोप, बाढि़ आ रौदी, उच्च व व्यावसायिक शिक्षाक अभाव, सरकारी उदासीनता तँ कारण अछिए, संगहि उपलब्ध रोजगारक अवसर मे सेहो कमी भेल जा रहल अछि। समुचित रोजगारक अभाव मे लोक केँ अंतत: आजीविका के तलाश मे घर छोडि़ बाहर जाय पड़ैत छैक।
मिथिलांचल मे आजीविकाक मुख्य साधन रहल अछि कृषि। एकरा हम एना कहि सकैत छी जे मिथिलाक जीवन कृषि के इर्द-गिर्द छल। अन्नक उपज सँ लय कऽ पशु-धन, लकड़ी, फल-फुलवारी सब कृषि आधारित छल। जतय कृषक केँ उपज सँ आमदनि छलनि, ओतहि भूमिहीन या कम खेत वला लोक कृषक मजदूर रूप मे आजीविका पबैत छल। कृषि विज्ञानक व्यवस्था आब पूर्ण रूपेण अलाभकारी भऽ गेल अछि। कृषि आ कृषि आधारित मजदूर दूनूक लेल जिनगी भार भेल जा रहल अछि। एहन परिस्थिति मे हुनका सभक सामने पलायने एकमात्र रस्ता शेष छैन्हि।
ओना ई पड़तालक विषय थीक जे पलायन आर पलायन सँ उपलब्धि प्राप्त करय मे ओ कतेक सक्षम भऽ सकलाह, हलांकि सरकार पलायन सँ चिंतित अछि मुदा ओकरा रोकय लेल कोनहुं थितगर उपाय करय सँ कतराऽ रहल अछि। विडम्बना तँ एहि गप्पक अछि जे एखनधरि सरकारी स्तर पर पलायनक कोनो स्पष्टï आँकड़ा तक उपलब्ध नहि भऽ सकल अछि। जखन कि पलायन गति जोर पकडऩे जा रहल अछि। यदि समय अक्षितै पलायन केँ नहि रोकल गेल तँ संभव अछि जे किछु दिन बाद राज्य, खास मिथिलांचलक गामक गाम खाली भेटत। मात्र नेना, भुटका, महिला आ कि बूढ़ भेटता।
कल्पना मात्र सिहरा दैत अछि। जतय एक दिस मिथिला अपन समृद्ध सांस्कृतिक धरोहरि, सामाजिक परंपरा आ मजबूत ग्रामीण जीवनक लेल चिन्हल जाइत छल ओतय के गांव मे आब पाहुन अभ्यागतक सत्कार करय लेल दलान पर किओ नहि भेटैत अछि। 'अतिथि देवो भवÓ औचित्यहीन भऽ रहल अछि, घरबइया बिना।
ई तँ पलायनक एक रुख थिक। पलायनक दोसर रुख उपरोक्त सँ बेसी भयावह अछि। गाम-घर सँ रोजी-रोटी आ नील भविष्य क तलाश मे निकलल हताश लोग की नव-जगह ठाम पर जा किछु प्राप्त कय पबैत छथि कि नहि? घर सँ जतेक सुखद सपना लय कऽ चलैत छथि ओहि मे सँ एक्कोटा पूर होइत छैन्हि कि नहि? आ सबसँ अहम्ï चीज थिक हुनक ओतय केँ जीवन स्तर।
अपनहि राज्य आ देश मे अप्रवासी केर जीवन जीवाक लेल बाध्य ई लोकनि घर सँ दूर दुर्गतिक जीवन जीबैत छथि। मिथिला सँ पलायित लोक ओना तँ भारतक सब पैघ छोट शहर मे भेटि जयताह मुदा हिनक पहिल आ अंतिम पड़ाव दिल्ली होइत अछि। कारण, जँ दोसर शहर आ नगर मे समुचित रोजगारक व्यवस्था नञि भेल तँ दिल्ली मे छोट सन रोजगार तऽ कतओ भेटबे करत।
पढ़ल-लिखल, हुनरमंद सँ लय कऽ मूर्ख, बेलूरि सब कोटिक पलायित लोक दिल्ली मे भेटि जयताह। जिनगीक गाड़ी घीचैत-तीरैत। दिन भरि डाँड़ तोडि़ मेहनति आ राति मे गाम-घरक याद। यैह हिनक सभक दिनचर्या अछि। दुर्गा पूजा, दिवाली, होली सब छुटि गेलै, बिसरा गेलै चास-बास आ कलम-बारी, सभ दिनक पेटक आगि शांत करबाक उपाय मे। बिसरि कय आबि गेल छथि गामक ओ दलान जतय ताशक चौकड़ी जमैत छुटि, कीर्तन गबैत छलाह, शायद एतय अतिमानव बनाबक चेष्टïा मे अपनो केँ बिसरि गेलाह। बाँचल एकमात्र इच्छाक संग जीबि रहल छथि, शायद एहि महानगरी मे हमरो भाग्य खुजि जायत। भेड़-बकरी जकाँ जीवन जीवाक लेल अभिशप्त छोट-छोट झोपड़पट्टïी मे निर्वाह करैत शायद अपन जन्म लेबाक वा पूर्वजन्मक फल भोगि रहल छथि। परदेश मे हजार-पन्द्रह सौ रुपयाक नौकरी लेल बारह सँ चौदह घंटा खट्टïा पड़ैत छैन्हि संगे मानसिक शोषण सेहो बरदास्त करय पड़ैत छैन्हि। मुदा प्राप्ति नगण्ये सन होइत छैन्हि। महंग शहर-महंग वस्तु जात। फेर साल दू साल मे एक बेर गाम आयब।
पलायन सँ क्षति केवल गाम-घर समाज आ क्षेत्रे टा के नञि होइत अछि, पलायन सँ सभसँ बेसी कष्टï उठबैत छथि ओहि वर्ग विशेषक नारी, जिनक पुरुष मजदूरी लेल घर सँ जाइत छथि। अल्प आय मे अपना परिवार केँ छोडि़ असुरक्षा भावना मे पत्नी आ बच्चा केँ धकेल स्वयं सेहो चिंतित रहैत छथि। अलग-अलग लोकक हिसाबे मजबूरीक परिभाषा भिन्न भय सकैत छैक मुदा ओहि सँ उपजल असुरक्षा, सामाजिक हानि तथा अन्यान्य कारण सभक एक्कहि रहैत छैक। बच्चाक भविष्य, अपन वर्तमान आ अतीतक बीच तादात्म्य मिलाबैत, अपन जिनगीक अवसाद मिटेबाक प्रयास मे प्राय: सभ नारी तत्पर रहैत छथि।
पलायन एक समस्या थिक। एहि बात सँ इनकार नहि कयल जा सकैत अछि, परन्च सरकार एहि सत्य केँ नुकाबय चाहैत अछि। गामक गाम वीरान पड़ल जा रहल अछि। महानगर, जतय पलायित व्यक्तिक ठौर पबैत छथि, ओतहुक स्थानीय निकाय अप्रवासीक समस्या सँ ग्रसित भऽ क्षुब्ध अछि। राज्य सरकार एहि समस्या पर चुप अछि। एतेक गंभीर समस्या केँ राजनीतिक स्तर पर हल्लुक अथवा कोनो खास नञि बुझनाय, सरकारक हृदयहीनता केँ प्रदर्शित करैत अछि।
अपन उपलब्धि गनेवाक कारणे सरकार यदि छोट-मोट नियोजन करितो अछि तँ ओहो ऊँटक मुंह मे जीरक फोरन बुझना जाइत अछि। राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता मे जबड़ल व्यवस्था राज्यक एतेक गंभीर विषय पर कोनहुँ राजनीतिक व्यक्तित्व आ कि दल गंभीरता सँ ध्यान नञि दैत अछि। ध्यान दैत अछि मात्र चुनावक बेर मे। फेर बिसरि जाइत अछि। स्थानीय नेता, विधायक, सांसद मात्र अपना क्षेत्र मे ओहने विकासक कार्य मे रुचि राखैत छथि, जतय सँ हुनका अवैध रूपेँ हिस्सा (रुपया) प्राप्त होइत छैन्हि। समय रहितै यदि पलायनक एहि स्थिति पर नियंत्रण करबाक समुचित उपाय नहि कएल जायत तँ, ई स्थिति विस्फोटक भऽ वर्तमान व्यवस्थाक लेल विकट समस्या ठाढ़ कय देत। एहि मे कनिको सन्द्रह नहि।
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