बुधवार, दिसंबर 16

सत्येंद्रक लघुकथा

केंद्र
ओकर पत्नी आ ओकर मायमे एकदम्मे नहि पटै छलै। ओ थाकल-हारल जखन कार्य सँ वापस आबय तँ पत्नी घरक दरबज्जे परसँ मायक प्रति विषवमन करय लागै। मायो एकान्त पाबि एक ढाकी उपराग पत्नीक मादे सुना जाइ। ओकर मौन तीत भ जाय। आइयो ओहिना भेलै। ओ चुपचपा सुनि लेलक दुनूक गप्प। ताबब बेटा आबि गैले, ''पापा, एकटा प्रश्नक उत्तर कहू तँ, कि एक केंद्रसँ अनेक वृत्त घीचल जा सकै छै?ÓÓ
''हँÓÓ ओ संक्षेप मे उत्तर देलक।
''मुदा पापा, जते बेर वृत्त घीचल जेतै, तते बेर प्रकालक नोक ओकर केंद्र पर पड़लासँ ओकर गड़ैतो हेतै।ÓÓ
बेटाक गप्प सुनि ओ ओकर मुँहे तकैत रहि गेल।
दोसर गलती
एकटा साइकिल कारसँ सटि गेलै। कारकेँ किछु नहि भेलै। साइकिल थूड़ा गेल छलै। साइकिलक ई पहिल गलती छल जे ओ अपन औकादि नहि बुझलक।
थुड़ायल-कुचायल साइकिल न्यायक लेल जाय लागल। ई ओकरासँ दोसर गलती भ गेल छलै।

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