शनिवार, दिसंबर 19

तहसीलदारक दाढ़ी 'बाह-बाहÓ मे गेल

एकटा राजा छलाह। हुनका एकटा तहसीलदार छलनि। जो रैयतसँ जमीनक मालगुजारी वसूल करैत छल। ओ बड़ निष्ठïुर स्वभावक लोक। हुनकर नामे सुनि कऽ लोकक पेटक पानि डोलय लगैत छलैक। ओ जाहि गाम मे पहुंचि जाइत छलाह ओहि गामक लोक तबाह भऽ जाइत छल। लोक सब एहि बातक नालिश राजाक ओहिठाम केलक लेकिन किछु सुनावाइ नहि भेलैक। संयोग सँ ओ तहसीलदार एकबेर गोनू झाक गाम मे पहुंचल मालगुजारी वसूलक हेतु। ओ गामक लोकके तंग करब शुरू केलनि। ककरो खेत कटा लेथिन, त ककरो बेगार मे पकरि लेथिन तऽ ककरो पिटबाइये देथिन। कारण हुनका संग मे सिपाहियो रहैत छल।
अन्ततोगत्वा गामवला सब आपस मे विचार कऽ कऽ गोनू झासँ कहलकनि जे अपने तऽ बड़ चतुर व्यक्ति छी कोनो एहन उपाय करू जे तहसीलदार एहि गामसँ भागि जाय। गोनू झा उत्तर देलथिन अपने लोकनि चिंता नहि करू काल्हि भेनसरे हुनका हम अवश्य भगा देबनि।
भेनसर भेलैक गोनू झा तहसीलदारक ओहिठाम पहुंचलाह। गामक बहुतो लोक हुनका संग पहुंचल। ओहि समय मे तहसीलदार साहेब दत्तमनि कऽ रहल छलाह। हुनकर छाती तक लटकैत दाढ़ी झुलि रहल छल। गामवला सब हुनका नमस्कार कऽ कऽ बैसैत गेलाह। तहसीलदार साहेब कुरूर आचमनि कÓ अंगपोछासँ दाढ़ी आ मुंह पोछलनि। ओही मे हुनकर दाढ़ीक एक गोट केश टूटि पृथ्वी पर खसि परल। झट दÓ गोनू झा ओहि केश के उठा कÓ अपना धोतीक एकटा खूट फारि ओहि मे लपेटि लेलनि आ तीन चारि बेर ओकरा माथ मे ठेका प्रणाम केलनि आ ओकरा अपना धोतीक खूट मे बान्हि लेलनि।
ई देखि संगक लोक सब पुछलकनि—एहि केशकेँ लऽ कÓ की करब गोनू बाबू?
गोनू बाबू उत्तर देलखिन—अहां लोकनि इहो बात नहि जनैत छियैक जे एहि समय मे जाहि भाग्यवानकेँ तहसीलदार साहेबक दाढ़ीक एक गोट केश भेटि जेतैक ओ सोझे बैकुण्ठ चलि जायत। फेर कि छल? सब तहसीलदार साहेबक खुशामद करय लागल। तहसीलदार साहब फुलि कÓ कुप्पा भÓ गेलाह। लेकिन एतेक गोटे केँ दाढ़ीक केश कोना दÓ सकितथिन। ओ दाढ़ीक केश देवक लेल तैयार नहि भेलखिन तहन गोनू झा कहलथिन जे ई ओना नहि देथुन। एक-एकटा कÓ सब गोट लÓ लैत जाउ।
आब कि छल। तहसीलदार साहेेब छाूड़ू-छोड़ू करैत रहलाह आ लोक एब उठि-उठि एकक बाद दोसर, दोसर के बाद तेसर एवं क्रमे एकक बाद एक देखैत-देखैत हुनकर आधा दाढ़ी साफ भऽ गेलनि। दाढ़ी सँ खून बहय लगलनि। ओ लोकके बहुत डँटथिन लेकिन ओहि पर कियो कोनो ध्यान नहि दैत दाढ़ी उखारैत हल्ला करैत छल जे 'बाह-बाह केहन सुंदर दाढ़ी अछि?Ó
ई खबर समस्त गाम मे पसरि गेलैक। सौसे गामक लोक दाढ़ीक केश लेबय चलि देलक। तहसीलदार साहेब जखन समस्त गामक लोककेँ जबैत देखलखिन तÓ ओ जी-जान लÓ कÓ भगलाह। जिनका सबकेँ दाढ़ीक केश नहि भेटलनि ओ लोकनि खुशामद करैत पाछू-पाछू दौड़लाह। लेकिन तहसीलदार साहब जान लÓ कÓ परेलाह। ओ भागैत जाथि लोक हुनका खेहारने जाय अंततोतत्व ओ भागिये गेलाह।
ओहि दिनसँ पुन: ओ ओहि गाम मे मालगुजारी वसूलक हेतु नहि गेलाह।

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