गुरुवार, फ़रवरी 10

गजल

धरम-करम मे हेबनि मे विश्वास बढ़ल छै ठाकुर जी
हमर कहब जे आर बहुत किछु खास बढ़ल छै ठाकुर जी!

पँच-पँच कोटिक वाहन चढ़ल, कुबेर लोकनि अवतरलाहए
शहरक कात झोपड़पट्टी मे दास बढ़ल छै ठाकुर जी!

ओमहर देखू लक्ष-लक्ष भगवाधारी कमरथुआ केँ
एमहर रक्त गरम पीबक अभ्यास बढ़ल छै ठाकुर जी!

साँच भेल वनबासी राम, वहिष्कृत घट-घट जिनगी सँ
चीर हरन आ दुर्योधन संग रास बढ़ल छै ठाकुर जी!

आइ काल्हि ऋषि-मुनिक देशक मे, बाबा बहुत उखड़लाहए
कपरकोट कल्याणक स्वार्थक चास बढ़ल छै ठाकुर जी!

क्यो माला क्यो छाप-तिलक, क्यो निज चरणामृत बेचैए
लक्ष्मी-वाहन भीआइपी लै पास बढ़ल छै ठाकुर जी!

आस्था-क्षमा मूल धरमक-क ख ग सभ दिन रहलैए
त्याग-तप उपकार शून्य, उपहास बढ़ल छै ठाकुर जी!


- सियाराम झा 'सरसÓ

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