शनिवार, जनवरी 8

विद्यापति गीत

1

सासु जरातुरि भेली। ननन्दि अछलि सेहो सासुर गेली।
तैसन न देखिअ कोई। रयनि जगाए सम्भासन होई।
एहि पुर एहे बेबहारे। काहुक केओ नहि करए पुछारे।
मोरि पिअतमकाँ कहबा। हमे एकसरि धनि कत दिन रहबा।
पथिक, कहब मोर कन्ता। हम सनि रमनि न तेज रसमन्ता।
भनइ विद्यापति गाबे। भमि-भमि विरहिनि पथुक बुझाबे।




2
आसक लता लगाओल सजनी, नयनक नीर पटाय।
से फल आब परिनत भेल मजनी, आँचर तर न समाय।।
कांच सांच पहु देखि गेल सजनी, तसु मन भेल कुह भान।
दिन-दिन फल परिनत भेल सजनी, अहुनख कर न गेआना।
सबहक पहु परदेस बसु सजनी, आयल सुमिरि सिनेह।
हमर एहन पति निरदय सजनी, नहि मन बाढय नहे।।
भनइ विद्यापति गाओल सजनी, उचित आओत गुन साइ।
उठि बधाव करु मन भरि सजनी, अब आओत घर नाह।।

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