पाँचपत्र (हरिमोहन झा)(१)दड़िभंगा१-१-१९प्रियतमेअहाँक लिखल चारि पाँती चारि सएबेर पढ़लहुँ तथापि तृप्ति नहि भेल. आचार्यक परीक्षा समीप अछि किन्तु ग्रन्थमे कनेको चित्त नहि लगैत अछि. सदिखन अहीँक मोहिनी मूर्ति आँखिमे नचैत रहैत अछि. राधा रानी मन होइत अछि जे अहाँक ग्राम वृन्दावन बनि जाइत, जाहिमे केवल अहाँ आ हम राधा-कृष्ण जकाँ अनन्त कालधरि विहार करैत रहितहुँ. परन्तु हमरा ओ अहाँक बीचमे भारी भदबा छथि. अहाँक बाप-पित्ती, जे दू मासक बाद फगुआमे हमरा आबक हेतु लिखैत छथि. साठि वर्षक बूढ़केँ की बूझि पड़तनि जे साठि दिनक विरह केहन होइत छैक !प्राणेश्वरी, अहाँ एक बात करू माघी अमावस्यामे सूर्यग्रहण लगैत छैक. ताहिमे अपना माइक संग सिमरियाघाट आउ. हम ओहिठाम पहुँचि अहाँकें जोहि लेब. हँ एकटा गुप्त बात लिखैत छी जखन स्त्रीगण ग्रहण-स्नान करऽ चलि जएतीह तखन अहाँ कोनो लाथ कऽकऽ बासापर रहि जाएब. हमर एकटा संगी फोटो खिचऽ जनैत अछि. तकरासँ अहाँक फोटो खिचबाएब देखब ई बात केओ बूझए नहि. नहि तँ अहाँक बाप-पित्ती जेहन छथि से जानले अछि.हृदयेश्वरी हम अहाँक फरमाइशी वस्तु (चन्द्रहार) कीनिकऽ रखने छी. सिमरिया में भेट भेलापर चूपचाप दऽ देब. मुदा केओ जानए नहि हमरा बापके पता लगतनि तँ खर्चा बन्द कऽ देताह. हँ एहि पत्रक जबाब फिरती डाकसँ देब. तें लिफाफक भीतर लिफाफ पठारहल छी. पत्रोत्तर पठएबामे एको दिनक विलम्ब नहि करब. हमरा एक-एक क्षण पहाड़सन बीतिरहल अछि. अहाँक प्रतीक्षा में आतुरपुनश्च : चिट्ठी दोसराके छोड़क हेतु नहि देबैक. अपने हाथसँ लगाएब रतिगरे आँचरमे नुकौने जाएब आओर जखन केओ नहि रहैक तँ लेटरबक्समे खसा देबैक.
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(२)
हथुआ संस्कृत विद्यालय१-१-२९प्रिय,बहुत दिनपर अहाँक पत्र पाबि आनन्द भेल. अहाँ लिखैत छी जे ननकिरबी आब तुसारी पूजत, से हम एकटा अठहत्थी नूआ शीघ्र पठा देबैक. बंगट आब स्कूल जाइत अछि कि नहि? बदमाशी तँ नहि करैत अछि? अहाँ लिखैत छी जे छोटकी बच्चीके दाँत उठि रहल छैक, से ओकर दबाइ वैद्यजीसँ मङबाकऽ दऽ देबैक. अहूके एहिबेर गामपर बहुत दुर्बल देखलहुँ जीरकादि पाक बनाकऽ सेवन करू. जड़कालामे देह नहि जुटत तँ दिन-दिन ह्रस्त भेल जाएब. ओहिठाम दूध उठौना करू. कमसँ कम पाओभरि नित्य पिउल करब. हम किछु दिनक हेतु अहाँकें एहिठाम मङा लितहुँ. परन्तु एहिठाम डेराक बड्ड असौकर्य. दोसर जे विद्यालयसँ कुल मिला साठि टका मात्र भेटैत अछि. ताहिमे एहिठाम पाँचगोटाक निर्वाह हएब कठिन. तेसर ई जे फेर बूढ़ीलग के रहतनि ! इएहसभ विचारिकऽ रहि जाइत छी. नहि तँ अहाँक एतऽ रहने हमरो नीक होइत. दुनू साँझ समयपर सिद्ध भोजन भेटैत बंगटो के पढ़बाक सुभीता होइतैक. छोटकी कनकिरबीसँ मन सेहो बहटैत. परन्तु कएल की जाए ! बड़की ननकिरबी किछु आओर छेटगर भऽ जाए तँ ओकरा बूढ़ीक परिचर्यामे राखि किछु दिनक हेतु अहाँ एतऽ आबि सकैत छी. परन्तु एखन तँ घर छोड़ब अहाँक हेतु सम्भव नहि. हम फगुआक छुट्टीमें गाम अएबाक यत्न करब. यदि नहि आबि सकब तँ मनीआर्डर द्वारा रुपैया पठा देब.अहींक कृष्णपुनश्च : चिट्ठी दोसराकें छोड़क हेतु नहि देबैक अपने हाथसँ लगाएब. रतिगरे आँचरमे नुकौने जाएब आओर जखन केओ नहि रहैक तँ लेटरबक्समे खसा देबैक.
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(३)
हथुआ संस्कृत विद्यालय१-१-३९शुभाशीर्वाद अहाँक चिट्ठी पाबि हम अथाह चिन्तामे पड़ि गेलहुँ. एहिबेर धान नहि भेल तखन सालभरि कोना चलत. माएक श्राद्धमे पाँच सए कर्ज भेल तकर सूदि दिन-दिन बढ़ले जा रहल अछि. दू मासमे बंगटक इमतिहान हएतनि. करीब पचासो टका फीस लगतनि. जँ कदाचित पास कऽ गेलाह तँ पुस्तकोमे पचास टका लागिए जएतनि. हम ताही चिन्तामे पड़ल छी. एहिठाम एक मासक अगाउ दरमाहा लऽ लेने छियैक. तथापि उपरसँ नब्बे टका हथपैंच भऽ गेल अछि. एहना हालतिमे हम ६२ टका मालगुजारी हेतु कहाँसँ पठाउ? जँ भऽ सकए तँ तमाकू बेचिकऽ पछिला बकाया अदाय कऽ देबैक. भोलबा जे खेत बटाइ कएने अछि, ताहिमे एहिबेर केहन रब्बी छैक? कोठीमे एको मासक योगर चाउर नहि अछि. ताहिपर लिखैत छी जे ननकिरबी सासुरसँ दू मासक खातिर आबऽ चाहैत अछि. ई जानि हम किंकर्तव्यविमूढ़ भऽ गेल छी. ओ चिल्हकाउर अछि. दूटा नेना छैक. सभकेँ डेबब अहाँक बुते पार लागत? आब छोटकी बच्ची सेहो १० वर्षक भेल. तकर कन्यादानक चिन्ता अछि. भरि-भरि राति इएहसभ सोचैत रहैत छी, परन्तु अपन साध्ये की? देखा चाही भगवान कोन तरहें पार लगबै छथि!शुभाभिलाषीदेवकृष्णपुनश्च : जारनि निंघटि गेल अछि तँ उतरबरिया हत्ताक सीसो पंगबा लेब. हम किछु दिनक हेतु गाम अबितहुँ किन्तु जखन महिसिए बिसुकि गेल अछि तखन आबिकऽ की करब?अहाँक देवकृष्ण
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(४)
हथुआ संस्कृत विद्यालय
१-१-४९
आशीर्वाद
हम दू माससँ बड्ड जोर दुखित छलहुँ तें चिट्ठी नहि दऽ सकलहुँ. अहाँ लिखैत छी जे बंगट बहुकें लऽकऽ कलकत्ता गेलाह. से आइकाल्हिक बेटा-पुतहु जेहन नालायक होइत छैक से तँ जानले अछि. हम हुनकाखातिर की-की नहि कएल! कोन तरहें बी.ए. पास करौलियनि से हमहीं जनैत छी. तकर आब प्रतिफल दऽरहल छथि. हम तँ ओही दिन हुनक आस छोड़ल, जहिया ओ हमरा जिबिते मोछ छँटाबऽ लगलाह. सासुक कहबमे पड़ि गोरलग्गीक रुपैया हमरालोकनिकेँ देखहु नहि देलनि. जँ जनितहुँ जे कनियाँ अबितहि एना करतीह तँ हम कथमपि दक्षिणभर विवाह नहि करबितियनि. १५०० गनाकऽ हम पाप कएल, तकर फल भोगिरहल छी. ओहिमेसँ आब पन्द्रहोटा कैँचा नहि रहल. तथापि बेटा बूझैत छथि जे बाबूजी तमघैल गाड़नहि छथि. ओ आब किछुटा नहि देताह आर ने पुतहु अहाँक कहलमे रहतीह. हुनका उचित छलनि जे अहाँक संग रहि भानस-भात करितथि, सेवा-शुश्रुषा करितथि. परञ्च ओ अहाँक इच्छाक विरुद्ध बंगटक संग लागलि कलकत्ता गेलीह. ओहिठाम बंगटकें १५० मे अपने खर्च चलब मोश्किल छनि कनियाँकें कहाँसँ खुऔथिन. जे हमरालोकनि ३० वर्षमे नहि कएल से ईलोकनि द्विरागमनसँ ३ मासक भीतर कऽ देखौलनि. अस्तु. की करब? एखन गदह-पचीसी छनि. जखन लोक होएताह तखन अपने सभटा सुझतनि. भगवान सुमति देथुन. विशेष की लिखू? कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति.
देवकृष्ण
पुनश्च: जँ खर्चक तकलीफ हो तँ छओ कट्ठा डीह जे अहाँक नामपर अछि से भरना धऽकऽ काज चलाएब. अहाँक हार जे बन्धक पड़ल अछि से जहिया भगवानक कृपा होएतनि तहिया छुटबे करत!
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(५)
काशीतः
१-१-५९
स्वस्ति श्री बंगटबाबूकें हमर शुभाशिषः सन्तु.
अत्र कुशलं तत्रास्तु. आगाँ सुरति जे एहि जाड़मे हमर दम्मा पुनः उखरि गेल अछि. राति-रातिभरि बैसिकऽ उकासी करैत रहैत छी. आब काशी-विश्वनाथ कहिया उठबैत छथि से नहि जानि. संग्रहणी सेहो नहि छूटैत अछि. आब हमरालोकनिक दबाइए की? औषधं जाह्नवी तोयं वैद्यो नारायणो हरिः. एहिठाम सत्यदेव हमर बड्ड सेवा करैत छथि. अहाँक माएकें बातरस धएने छनि से जानिकऽ दुःख भेल परन्तु आब उपाये की? वृद्धावस्थाक कष्ट तँ भोगनहि कुशल! बूढ़ीकें चलि-फीरि होइत छनि कि नहि? हम आबिकऽ देखितियनि, परञ्च अएबा जएबामे तीस चालीस टका खर्च भऽ जाएत दोसर जे आब हमरो यात्रा में परम क्लेश होइत अछि. अहाँ लिखैत छी जे ओहो काशीवास करऽ चाहैत छथि. परन्तु एहिठाम बूढ़ीके बड्ड तकलीफ होएतनि. अपन परिचर्या करबा योग्य त छथिए नहि, हमर सेवा की करतीह? दोसर जे जखन अहाँ लोकनि सन सुयोग्य बेटा-पुतहु छथिन तखन घर छोड़ि एतऽ की करऽ औतीह? मन चंगा तँ कठौतीमें गंगा! ओहिठाम पोता-पोतीके देखैत रहैत छथि. पौत्रसभके देखबाक हेतु हमरो मन लागल रहैत अछि. परञ्च साध्य की? उपनयनधरि जीबैत रहब तँ आबिकऽ आशीर्वाद देबनि. अहाँक पठाओल ३० टका पहुँचल एहिसँ च्यवनप्राश कीनिकऽ खा-रहल छी. भगवान अहाँके निकें राखथु. चि. पुतहुके हमर शुभाशीर्वाद कहि देबनि. ओ गृहलक्ष्मी थिकीह. अहाँक माए जे हुनकासँ झगड़ा करैत छथिन से परम अनर्गल करैत छथि. परन्तु अहाँकेँ तँ बूढ़ीक स्वभाव जानले अछि. ओ भरिजन्म हमरा दुखे दैत रहलीह. अस्तु कुमाता जायेत क्वचिदपि कुपुत्रो न भवति, एहि उक्ति के अहाँ चरितार्थ करब.
इति देवकृष्णस्य
पुनश्च : यदि कोनो दिन बूढ़ीके किछु भऽ जाइन तँ अहाँलोकनिक बदौलति सद् गति होएबे करतनि जाहि दिन ई सौभाग्य होइन ताहि दिन एक काठी हमरोदिस सँ धऽ देबनि.
मंगलवार, जनवरी 4
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