सोमवार, जनवरी 24

बस, अहींक लेल

ललाहित मन, उत्सुक नयन, करबद्घ तन आ दिल मे अहींक प्रेम अछि
मनमोहिनी सन एहि बेला मे, बस इएह एक प्रार्थना अछि
जे सोचने छी अहाँ, सबटा पाबि लेब।

अजुका दिन भेटल हैत ढ़ेरो शुभकामना
ओहि मे हमरो शामिल कय लिअए।
भूल भेल हुअए वा कोनो चूक हुअए, सबटा बिसरा दिअए
बड अनमोल अछि प्रेम अहाँक, सानिध्य रतन रज दिअए।
आइयो जदि अहाँके स्मरण हुअए
शुरू मे गप्पसप्प एकतरफा छल
अहाँ बजैत रही आ हम सुनैत रही
जहन सिलसिला दुतरफा भेल
नञि जानि ककर नजरि लागि गेल...
एकटा जलजला आयल आ छिडिय़ा गेल सपनाक माला
छिडिय़ा गेल ओ मोती, जकरा हम बड जतन सँ चुनने रही...
आइ फेर ओकरा पिरो रहल छी एहि आस मे
काश !
घुरि आओत ओ पल...
कि भरोस, काँचक घट अछि, कोनो दिन दरकि जायत
एकटा अदना सन कहानी अछि, बीच्चहि छूटि जायत
एकटा समझौता भेल छल रोशनी सँ टूटि जायत...
तइयो मन मे अछि इएह प्रार्थना
जे सोचने छी अहाँ, सबटा पाबि लेब।

जनैत छी अहाँके हमरा सँ घृणा अछि बड
शाइत, कारण हमही होइहि
मुदा जे छल, जेहन छल, राखि देलहुँ अहींक सोझाँ
अपना दिलक हाल, बिना कोनो दुराव-छिपाव केँ
तइयो कहब इएह घुरा दिअए वो पलछिन
रूसब-मनायब त दुनियाक रीत अछि
मनुहार पैघ नहि, पैघ अहाँक प्रीत अछि।
फेरो अहाँ घुरि आयब, यह हृदय सँ हकार अछि
केवल अनुग्रहक गप्प नहिं,
मनक पुकार अछि
जे सोचने छी अहाँ, सबटा पाबि लेब।

आइयो आँगुर मे होइछ जुम्बिश, मुदा सहमि जाइत छी
शाइत, अहाँक घृणाक होइत आभास अछि
डरैत छी, कहीं इहो अधिकार नहि हमरा सँ छीन ली...
मुदा, अजुका दिन स्वीकारैत अछि सभ
दुश्मन सँ सेहो शुभकामना
दुश्मन बुझि स्वीकार करी हमरो शुभकामना
अजुका दिन
जे सोचने छी अहाँ, सबटा पाबि लेब।

अहाँ मानी या नहि मानी
इ दिन हमरा लेल सदिखन यादगार रहत
जे हमरा हँसनाय सिखोलक
ओहि पल संभारल, जहन लगैत छल जिनगी ठमकल
आबि कय हमरा जिनगी सँवारल
जाहि दिन एहि भूमि पर भेल हुनक पादुर्भाव
ओ दिन हमरा वजूद सँ जुडि़ गेल
ताहिं त मन मे इएह अछि प्रार्थना
जे सोचने छी अहाँ, सबटा पाबि लेब।

शुभकामना त बहुतो भेटल हएत ओहि दन
अहाँ सफलता के उच्चतम शिखर धरि पहुँचि
सफलता कें परचम लहराबी...
मुदा, हम प्रार्थना करब एतबै
जे सोचने छी अहाँ, सबटा पाबि लेब।

नञि जानि आई कियैक हृदय फेर सँ कहैत अछि
एखनहुँ हाथ मे किछु समय बाँचल अछि
बस, एक पल जीबय चाहैत छी
समयक एहि शामियाना मे फेर एकटा
नव सपना सँजोय ली हम
घुरा दिअए ओ पल...घुरा दिअए ओ पल....


- दीप्ति अंगरीश

सोमवार, जनवरी 17

अहाँ के शहरि मे

रहै छी सहमि-सहमि, अहाँ कें शहरि मे।
चलै छी सम्हरि-सम्हरि, अहाँ कें शहरि मे।।

लूटपाट आ छीना-झपटी, सौंदर्य अहि नगर कें।
रोज शीलभंग होइए कतेको, अहाँ कें शहरि मे।।

चोर मस्त कोतवाल पस्त, शासन पूरा भ्रष्टï यौ।
जंगल के कानून चलैए, अहाँ कें शहरि मे।।

जे प्रवासी रूप निखारल, ओकरे पर ईल्जाम यौ।
ईनाम मे हाथ कटैए, अहाँ कें शहरि मे।।

किसान के खेत बिकाओल, कंक्रीटक अछि जाल बिछाओल।
यमुना के धार हराओल, अहाँ कें शहरि मे।।

सड़क बनल समर भूमि, शोणित सँ हलकान यौ
ब्लूलाइन सँ सब डेरायल , अहाँ कें शहरि मे।।

शनिवार, जनवरी 8

मिथिलाक धार्मिक यात्रा : अष्टयोगिनी मंदिर


इ हाल मे बनल सहरसाक बेहतरीन मंदिर मे सँ एक अछि । एकरा मत्स्यगंधा मंदिरक नाम सँ सेहो जानल जाइत अछि । इ सहरसा जिला मुख्यालयक नजदीक अछि । बिहार सरकार एकर निर्माण सहरसा मे पर्यटनक बढावा देबाक लेल कयलक अछि । इ मंदिर धार्मिक आ पर्यटन दुनू नजरि सँ नीक अछि । इ मंदिर माँ कालीक अछि । एकरा संगहि एहि मे चौसठ आन देवीक प्रतिमा सेहो लगाओल गेल अछि, जाहि कारण सँ एकरा चौसठ योगिनी मंदिरक नाम सँ सेहो जानल जाइत अछि । आइ ई बिहार सरकार द्वरा बनाओल गेल नीक पर्यटन भवनक रूप मे जानल जाइत अछि । बिहार सरकार के चाही जे एहन आर मंदिर बनाबय ताकि बिहार मे पर्यटन के बढावा भेटैक ।

मिथिलाक धार्मिक यात्रा : उग्रतारा मंदिर, महिषी


ई मंदिर सहरसा जिला मुख्यालय सँ चौदह कि०मी० पश्चिम अछि । ई मंदिर अत्यंत पुरान अछि । अनेक शास्त्र मे सेहो एकर वर्णन भेटैत अछि । एतय देवीक भक्त समय-समय पर अबैत रहैत छथि । माँ ताराक मंदिर सँ सटले माँ सरस्वतीक मंदिर सेहो अछि , जाहि मे माताजीक भव्य मूर्ति लगाओल गेल अछि । एतय पहुँचबाक लेल सहरसा जिला मुख्यालय सँ बस सेवा उपलब्ध अछि । एहि स्थानक रख-रखाव सेहो नीक अछि । व्स्तुत: ई मंदिर मिथिलाक भव्य आ पवित्र स्थान मे सँ एक अछि ।

मिथिलाक धार्मिक यात्रा : अहिल्या स्थान


अहिल्या स्थान दरभंगा जिलाक कमतौल थानाक अहियारी गाम मे स्थित अछि । एहि स्थान धरि पहुँचबाक लेल सब सँ नीक साधन रेल अछि । एतय जेबाक लेल दरभंगा सँ रेल सेवा उपलब्ध अछि । पुराणक अनुसार गौतम मुनिक निवास स्थान एतहि छल । एकटा पौराणिक कथाक अनुसार गौतम मुनिक पत्नी अहिल्या छलीह । एकबेर देवराज इंद्र गौतम मुनिक आश्रम मे अयलाह । ओ ओतय अहिल्या के देखलथि आ हुनकर दिव्य रूप पर मोहित भऽ गेलाह आ हुनका संग अभिगमन करबाक मोन बनेलनि ।

किछु दिनक बाद आधा राति मे इंद्र मुर्गाक आवाज दऽ कऽ गौतम के जगा देलनि । गौतम स्नान करबाक लेल चलि गेलथि । ओकर बाद इंद्र गौतम मुनिक रूप धऽ कऽ अहिल्याक घर मे प्रवेश कयलथि । ओमहर गौतम मुनि कें मध्य रातिक आभास भेलनि आ ओ वापस भऽ गेलाह ।

घर आबि ओ इंद्र के अपन पत्नीक संग देखलथि तँ तमसा के शाप दऽ देलनि आ अहिल्या पाथरक भऽ गेलीह । अहिल्या द्वारा माफी मंगला पर गौतम मुनि कहलथि जे जहन भगवान विष्णु त्रेता युग मे धरती पर श्रीरामक रूप में अवतार लेताह तँ मिथिला जेबाक समय अपन चरण कमल सँ अहाँक उद्धार करताह । त्रेता युग मे जहन श्रीराम मिथिला अयलाह तँ ओ अहिल्या कें उद्धार केलनि । वाल्मिकी रामायण मे सेहो गौतम मुनिक निवास स्थान मिथिला कें मानल गेल अछि ।

मिथिलाक धार्मिक यात्रा : कपिलेश्वर स्थान


ई स्थान मधुबनी जिला मे अछि आ दरभंगा सँ २४ कि०मी० उत्तर आ मधुबनी सँ १२ कि०मी० पश्चिम अछि । ई मंदिर दरभंगा-जयनगर राष्ट्रीय राजमार्ग पर पड़ैत अछि । मानल जाइत अछि जे कपिल मुनि द्वारा शिवलिंग स्थापनाक कारण एकर नाम कपिलेश्वर पड़ल । एतय हरदम भक्त लोकनि महादेवक दर्शनक लेल अबैत रहैत छथि । साओन आ शिवराति मे तँ एतय लाखों भक्त जल चढेबाक लेल अबैत छथि ।

किछु लोकक कहब छनि जे कपिल मुनिक निवास स्थान मधुबनी जिलाक बेनीपट्टी प्रमंडलक विशनपुर गाम मे छल । किंतु विष्णु पुराणक अनुसार हुनक निवास स्थान पाताल लोक मे छल, जतए इंद्र राजा सगरक अश्वमेघ घोड़ा कें चोरा कें बान्हि देने छलाह आ कपिल मुनिक शाप सँ सगरक पुत्र आ साठि हजार सैनिक कें नष्ट कऽ देलनि । एहि घटना सँ मुनि कपिल आ सगरक समकालीनता प्रमाणित होइत अछि । इतिहासकारक कहब छनि जे राजा सगर मनुक चालिसम पीढ़ी मे छलाह ।

विभिन्न पुराणक अनुसार भागिरथी गंगा सागर नामक तीर्थ कोलकाता मे स्थित अछि, जतयक कथाक अनुसार राजा सगरक सैनिक जहन कपिल मुनिक कुटिया मे अश्व्मेघक घोड़ा कें बान्हल देखलथि तँ चोर बूझि हुनक अपमान केलक । एहि पर कपिल मुनि तमसा कें सगरक सैनिक कें नाश कऽ देलनि । एकर बाद कपिल मुनि कपिलेश्वर पहुँचलाह आ शिवलिंगक स्थापना कऽ तपस्या करय लगलाह ।

मिथिलाक धार्मिक यात्रा : जनकपुर


इ भारत देशक बिहार सीमा सँ सटल अछि आ नेपाल मे स्थित अछि । आमजनक अनुसार विदेह जनकक राजधानी एतहि छल । जनक परंपराक अनेको जनक मे एक्कैसम जनक सीरध्वज जनक सब सँ बेसी प्रसिद्ध भेलाह । ओ अयोध्या राजा दशरथक समकालीन छलाह । रामक पत्नी सीता सीरध्वज जनकक पुत्री छ्लीह । रामायण, महाभारत आदि प्राचीन ग्रंथ मे राजा जनकक राजधानी जनकपुर बताओल गेल अछि । राजा जनकक प्राचीन महल जनकपुर सँ सात कोस दूर छल । जनकपुरक प्रसिद्धिक कारण माता सीताक अयोध्याक राजा दशरथ सँ वियाह अछि । हिन्दू धर्म मे जनकपुरक बहुत महत्व अछि । रामनवमी आ विवाहपंचमीक समय मे आइयो लाखों लोक एतय अबैत अछि । आइयो एतय माता सीताक पावन मंदिर अछि आ रामजी द्वारा तोड़ल गेल धनुष सेहो अछि । एतय पहुँचबाक लेल भारतक दरभंगा सँ बस आ रेल अछि । नई दिल्ली सँ विमान सुविधा सेहो अछि ।

मिथिलाक धार्मिक यात्रा : उच्चैठ


उच्चैठ मधुबनी जिलाक बेनीपट्टी थाना मे अछि । एतय देवी दुर्गाक एकटा पुरान आ पैघ मंदिर अछि । ई स्थान कमतौल रेलवे स्टेशन सँ २४ कि०मी० दक्षिण अछि आ दरभंगा सँ बस सँ सीधा जूडल अछि । एहि दुर्गा मंदिरक अपन खास ऐतिहासिक महत्व अछि । एकटा पौराणिक कथाक हिसाब सँ एतय कालीदास रहैत छलाह । कालीदास पहिने महामूर्ख छलाह ।

ओहि समय सदानंद नामक एकटा प्रसिद्ध राजा छलाह । हुनक बेटी विद्योतमा सुंदर आ गुणवती छ्लीह । विद्योतमा वियाहक लेल आयल अनेको राजा सँ वियाह करबा सँ मना दऽ देलनि आ प्रण केलनि जे ओ हुनके सँ वियाह करतीह जे हुनका सँ बेसी गुणवान हुअए । एहि सँ अपमानित भेल राजाक पंडित लोदनि बदला लेबाक लेल सोचलथि आ एकटा महामूर्खक खोज मे लागि गेलाह । एक दिन हुनका लोकनिक नजरि कालीदास पर पड़ल, जे एकटा गाछक डारि पर बैसल छलाह आ ओकरहि काटि रहल छलाह । विद्वान लभ सोचलाह जे एहि सँ पैघ मूर्ख कतय भेटत । ओ कालीदास कें राजा सदानंदक दरबार मे लऽ गेलाह आ विद्योत्मा सँ हुनक वियाहक प्रस्ताव केलनि । पंडित लोकनि इहो कहलाह जे एखन ई मौन व्रत धाराण केने छथि आ तें इशारा मे गप्प करैत छथि ।

विद्योत्मा दरवार मे उपस्थित भेलीह आ मौन रूप सँ प्रश्न पूछैत एकटा आँगुर उठेलीह, जेकर अर्थ भेल - ईश्वर एक छथि । कालीदास सोचलाह जे ई हमर एकटा आँखि फोड़य चाहैत अछि तँ हम हिनक दुनू फोड़ि देब आ तें ओ अपन दूटा आँगुर उठा देलनि । विद्योत्मा बुझलीह जे ई ईश्वरक दू रूप बतबैत छथि आ तें दूटा आँगुर उठेलनि अछि । पुन: दोसर प्रश्न मे विद्योत्मा अपन पाँचो आँगुर उठेलनि जेकर अर्थ भेल _ मूल तत्व ५ अछि । कालीदास सोचलाह जे ई हमरा थापड़ मारत तँ हम एकरा मुक्का मारब आ ओ पाँचों आँगुर बान्हि मुक्का देखेलनि । विद्योत्मा सोचलीह जे हिनक आशय ५ तत्व सँ मीलि कें बनल शरीर सँ अछि आ विद्योत्मा हारि मानि लेलनि । एवं प्रकारे कालीदास आ विद्योत्माक वियाह भेल । परंतु बाद मे वास्तविक स्थितिक ज्ञान भेला पर विद्योत्मा कालीदास कें अपमानित कऽ घर सँ निकालि देलनि ।
तत्पश्चात कालीदास विद्याध्ययनक लेल उच्चैठ पहुँचलाह आ एहिठाम रहि सभ शास्त्रक ज्ञाता भऽ गेलाह । आइयो लोक एहिठामक माँटि अपन घर लऽ जाईत अछि आ विश्वास करैत अछि जे दुर्गाक कृपा सँ हुनको घर मे कालीदास सदृश विद्वान हेताह

मिथिलाक मीलक पाथर

१.गौरी-शंकर स्थान- मधुबनी जिलाक जमथरि गाम आऽ हैंठी बाली गामक बीच ई स्थान गौरी आऽ शङ्करक सम्मिलित मूर्त्ति आऽ एहि पर मिथिलाक्षरमे लिखल पालवंशीय अभिलेखक कारणसँ विशेष रूपसँ उल्लेखनीय अछि। ई स्थल एकमात्र पुरातन स्थल अछि जे पूर्ण रूपसँ गामक उत्साही कार्यकर्त्ता लोकनिक सहयोगसँ पूर्ण रूपसँ विकसित अछि। शिवरात्रिमे एहि स्थलक चुहचुही देखबा योग्य रहैत अछि। बिदेश्वरस्थानसँ २-३ किलोमीटर उत्तर दिशामे ई स्थान अछि।
२.भीठ-भगवानपुर अभिलेख- राजा नान्यदेवक पुत्र मल्लदेवसँ संबंधित अभिलेख एतए अछि। मधुबनी जिलाक मधेपुर थानामे ई स्थल अछि।
३.हुलासपट्टी- मधुबनी जिलाक फुलपरास थानाक जागेश्वर स्थान लग हुलासपट्टी गाम अछि। कारी पाथरक विष्णु भगवानक मूर्त्ति एतए अछि।
४.पिपराही-लौकहा थानाक पिपराही गाममे विष्णुक मूर्त्तिक चारू हाथ भग्न भए गेल अछि।
५.मधुबन- पिपराहीसँ १० किलोमीटर उत्तर नेपालक मधुबन गाममे चतुर्भुज विष्णुक मूर्त्ति अछि।
६.अंधरा-ठाढ़ीक स्थानीय वाचस्पति संग्रहालय- गौड़ गामक यक्षिणीक भव्य मूर्त्ति एतए राखल अछि।
७.कमलादित्य स्थान- अंधरा ठाढ़ी गामक लगमे कमलादित्य स्थनक विष्णु मंदिर कर्णाट राजा नान्यदेवक मंत्री श्रीधर दास द्वारा स्थापित भेल।
८.झंझारपुर अनुमण्डलक रखबारी गाममे वृक्ष नीचाँ राखल विष्णु मूर्त्ति, गांधारशैली मे बनाओल गेल अछि।
९.पजेबागढ़ वनही टोल- एतए एकटा बुद्ध मूर्त्ति भेटल छल, मुदा ओकर आब कोनो पता नहि अछि। ई स्थल सेहो रखबारी गाम लग अछि।
१०.मुसहरनियां डीह- अंधरा ठाढ़ीसँ ३ किलोमीटर पश्चिम पस्टन गाम लग एकटा ऊंच डीह अछि।बुद्धकालीन एकजनियाँ कोठली, बौद्धकालीन मूर्त्ति, पाइ, बर्त्तनक टुकड़ी आऽ पजेबाक अवशेष एतए अछि।
११.भगीरथपुर- पण्डौल लग भगीरथपुर गाममे अभिलेख अछि जाहिसँ ओइनवार वंशक अंतिम दुनू शासक रामभद्रदेव आऽ लक्ष्मीनाथक प्रशासनक विषयमे सूचना भेटैत अछि।
१२.अकौर- मधुबनीसँ २० किलोमीटर पश्चिम आऽ उत्तरमे अकौर गाममे एकटा ऊँच डीह अछि, जतए बौद्धकालक मूर्त्ति अछि।
१३.बलिराजपुर किला- मधुबनी जिलाक बाबूबरही प्रखण्डसँ ३ किलोमीटर पूब बलिराजपुर गाम अछि। एकर दक्षिण दिशामे एकटा पुरान किलाक अवशेष अछि। किला पौन किलोमीटर नमगर आऽ आध किलोमीटर चाकर अछि। दस फीटक मोट देबालसँ ई घेरल अछि।
१४. असुरगढ़ किला- मिथिलाक दोसर किला मधुबनी जिलाक पूब आऽ उत्तर सीमा पर तिलयुगा धारक कातमे महादेव मठ लग ५० एकड़मे पसरल अछि।
१५.जयनगर किला- मिथिलाक तेसर किला अछि भारत नेपाल सीमा पर प्राचीन जयपुर आऽ वर्त्तमान जयनगर नगर लग। दरभंगा लग पंचोभ गामसँ प्राप्त ताम्र अभिलेख पर जयपुर केर वर्णन अछि।
१६.नन्दनगढ़- बेतियासँ १२ मील पश्चिम-उत्तरमे ई किला अछि। तीन पंक्त्तिमे १५ टा ऊँच डीह अछि।
१७.लौरिया-नन्दनगढ़- नन्दनगढ़सँ उत्तर स्थित अछि, एतए अशोक स्तंभ आऽ बौद्ध स्तूप अछि।
१८.देकुलीगढ़- शिवहर जिलासँ तीन किलोमीटर पूब हाइवे केर कातमे दू टा किलाक अवशेष अछि। चारू दिशि खाइ अछि।
१९.कटरागढ़- मुजफ्फरपुरमे कटरा गाममे विशाल गढ़ अछि, देकुली गढ़ जेकाँ चारू कात खधाइ खुनल अछि।
२०.नौलागढ़-बेगुसरायसँ २५ किलोमीटर उत्तर ३५० एकड़मे पसरल ई गढ़ अछि।
२१.मंगलगढ़-बेगूसरायमे बरियारपुर थानामे काबर झीलक मध्य एकटा ऊँच डीह अछि। एतए ई गढ़ अछि।
२२.अलौलीगढ़-खगड़ियासँ १५ किलोमीटर उत्तर अलौली गाम लग १०० एकड़मे पसरल ई गढ़ अछि।
२३.कीचकगढ़-पूर्णिया जिलामे डेंगरघाटसँ १० किलोमीटर उत्तर महानन्दा नदीक पूबमे ई गढ़ अछि।
२४.बेनूगढ़-टेढ़गछ थानामे कवल धारक कातमे ई गढ़ अछि।
२५.वरिजनगढ़-बहादुरगंजसँ छह किलोमीटर दक्षिणमे लोनसवरी धारक कातमे ई गढ़ अछि।
२६.गौतम तीर्थ- कमतौल स्टेशनसँ ६ किलोमीटर पश्चिम ब्रह्मपुर गाम लग एकटा गौतम कुण्ड पुष्करिणी अछि।
२७.हलावर्त्त- जनकपुरसँ ३५ किलोमीटर दक्षिण पश्चिममे सीतामढ़ी नगरमे हलवेश्वर शिव मन्दिर आऽ जानकी मन्दिर अछि। एतएसँ देढ़ किलोमीटर पर पुण्डरीक क्षेत्रमे सीताकुण्ड अछि। हलावर्त्तमे जनक द्वार हर चलएबा काल सीता भेटलि छलीह। राम नवमी (चैत्र शुक्ल नवमी) आऽ जानकी नवमी (वैशाख शुक्ल नवमी) पर एतए मेला लगैत अछि।
२८.फुलहर-मधुबनी जिलाक हरलाखी थानामे फुलहर गाममे जनकक पुष्पवाटिका छल जतए सीता फूल लोढ़ैत छलीह।
२९.जनकपुर-बृहद् विष्णुपुराणमे मिथिलामाहात्म्यमे जनकपुर क्षेत्रक वर्णन अछि। सत्रहम शताब्दीमे संत सूर किशोरकेँ अयोध्यामे सरयू धारमे राम आऽ जानकीक दू टा भव्य मूर्त्ति भेटलन्हि, जकरा ओऽ जानकी मन्दिर, जनकपुरमे स्थापित कए देलन्हि। वर्त्तमान मन्दिरक स्थापना टीकमगढ़क महारानी द्वारा १९११ ई. मे भेल। नगरक चारूकात यमुनी, गेरुखा आऽ दुग्धवती धार अछि। राम नवमी (चैत्र शुक्ल नवमी),जानकी नवमी (वैशाख शुक्ल नवमी) आऽ विवाह पंचमी (अगहन शुक्ल पंचमी) पर एतए मेला लगैत अछि।
३०.धनुषा- जनकपुरसँ १५ किलोमीटर उत्तर धनुषा स्थानमे पीपरक गाछक नीचाँ एकटा धनुषाकार खण्ड पड़ल अछि। रामक तोड़ल ई धनुष अछि। एहिसँ पूब वाणगंगा धार बहैत अछि जे लक्ष्मण द्वारा वाणसँ उद्घाटित भेल छल।
३१.सुग्गा-जनकपुर लग जलेश्वर शिवधामक समीप सुग्गा ग्राममे शुकदेवजीक आश्रम अछि। शुकदेवजी जनकसँ शिक्षा लेबाक हेतु मिथिला आयल छ्लाह- एहि ठाम हुनकर ठहरेबाक व्यवस्था भेल छल।
३२.सिंहेश्वर- मधेपुरासँ ५ किलोमीटर गौरीपुर गाम लग सिंहेश्वर शिवधाम अछि।
३३.कपिलेश्वर-कपिल मुनि द्वार स्थापित महादेव मधुबनीसँ ६ किलोमीटर पश्चिमममे अछि।
३४.कुशेश्वर- समस्तीपुरसँ उत्तर-पूब, लहेरियासरायसँ 60 किलोमीटर दक्षिण-पूब आऽ सहरसासँ २५ किलोमीटर पश्चिम ई एकटा प्रसिद्ध शिवस्थान अछि।
३५.सिमरदह-थलवारा स्टेशन लग शिवसिंह द्वारा बसाओल शिवसिंहपुर गाम लग ई शिवमन्दिर अछि।
३६.सोमनाथ- मधुबनी जिलाक सौराठ गाममे सभागाछी लग सोमदेव महादेव छथि।
३७.मदनेश्वर- मधुबनी जिलाक अंधरा ठाढ़ीसँ ४ किलोमीटर पूब मदनेश्वर शिव स्थान अछि।
३८.बसैटी अभिलेख- पूणियाँमे श्रीनगर लग मिथिलाक्षर ई अभिलेख मिथिलाक पहिल महिला शासक रानी इद्रावतीक राज्यकालक वर्णन करैत अछि। एकर आधार पर मदनेश्वर मिश्र ’एक छलीह महारानी’ उपन्यास सेहो लिखने छथि।
३९.चण्डेश्वर- झंझारपुरमे हररी गाम लग चण्डेश्वर ठाकुर द्वारा स्थापितचण्डेश्वर शिवस्थान अछि।
४०.बिदेश्वर-मधुबनी जिलामे लोहनारोड स्टेशन लग स्थित शिवधाम स्थापना महाराज माधवसिंह कएलन्हि। ताहि युगक मिथिलाक्षरमे अभिलेख सेहो एतए अछि।
४१.शिलानाथ- जयनगर लग कमला धारक कातमे शिलानाथ महादेव छथि।
४२.उग्रनाथ-मधुबनीसँ दक्षिण पण्डौल स्टेशन लग भवानीपुर गाममे उगना महादेवक शिवलिंग अछि। विद्यापतिकेँ प्यास लगलन्हि तँ उगनारूपी महादेव जटासँ गंगाजल निकालि जल पिएलखिन्ह। विद्यापतिक हठ कएला पर एहि स्थान पर गना हुनका अपन असल शिवरूपक दर्शन देलखिन्ह।
४३.उच्चैठ छिन्नमस्तिका भगवती- कमतौल स्टेशनसँ १६ किलोमीटर पूर्वोत्तर उच्चैठमे कालिदास भगवतीक पूजा करैत छलाह। भगवतीक मौलिक मूर्त्ति मस्तक विहीन अछि।
४४.उग्रतारा-मण्डन मिश्रक जन्मभूमि महिषीमे मण्डनक गोसाउनि उग्रतारा छथि।
४५.भद्रकालिका- मधुबनी जिलाक कोइलख गाममे भद्रकालिका मंदिर अछि।
४६.चामुण्डा-मुजफ्फर्पुर जिलामे कटरगढ़ लग लक्ष्मणा वा लखनदेइ धार लग दुर्गा द्वारा चण्ड-मुण्डक वध कएल गेल। ओहि स्थान पर ई मन्दिर अछि।
४७.परसा सूर्य मन्दिर- झंझारपुरमे सग्रामसँ पाँच किलोमीटर पूर्व परसा गाममे सढ़े चारि फीटक भव्य सूर्य मूर्त्ति भेटल अछि।
४८.बिसफी- मधुबनी जिलाक बेनीपट्टी थानामे कमतौल रेलवे स्टेशनसँ ६ किलोमीटर पूब आऽ कपिलेश्वर स्थानसँ ४ किलोमीटर पश्चिम बिसफी गाम अछि। विद्यापतिक जन्म-स्थान ई गाम अछि। एतए विद्यापतिक स्मारक सेहो अछि।
४९.मंदार पर्वत-बांका स्थित स्थलमे मिथिलाक्षरक गुप्तवंशीय ७म् शताब्दीक अभिलेख अछि। समुद्र मंथनक हेतु मंदारक प्रयोग भेल छल।
५०.विक्रमशिला-भागलपुरमे स्थित ई विश्वविद्यालय बौद्ध नालन्दा विश्वविद्यालयक विपरीत सनातन धर्मक शिक्षाक केन्द्र रहल।

मिथिलाक बीस टा सिद्ध पीठ-


१.गिरिजास्थान(फुलहर,मधुबनी),
२.दुर्गास्थान(उचैठ, मधुबनी),
३.रहेश्वरी(दोखर,मधुबनी),
४.भुवनेश्वरीस्थान(भगवतीपुर,मधुबनी),
५.भद्रकालिका(कोइलख, मधुबनी),
६.चमुण्डा स्थान(पचाही, मधुबनी),
७.सोनामाइ(जनकपुर, नेपाल),
८.योगनिद्रा(जनकपुर, नेपाल)
९.कालिका स्थान(जनकपुर स्थान),
१०.राजेश्वरी देवी(जनकपुर, नेपाल),
११.छिनमस्ता देवी(उजान, मधुबनी),
१२.बन दुर्गा(खररख, मधुबनी),
१३.सिधेश्वरी देवी(सरिसव, मधुबनी),
१४.देवी-स्थान(अंधरा ठाढ़ी,मधुबनी),
१५.कंकाली देवी(भारत नेपाल सीमा आऽ रामबाग प्लेस, दरभंगा)
१६.उग्रतारा(महिषी, सहरसा),
१७.कात्यानी देवी(बदलाघाट, सहरसा),
१८.पुरन देवी(पूर्णियाँ),
१९.काली स्थान(दरभंगा),
२०.जैमंगलास्थान(मुंगेर)।

विद्यापति गीत

1

सासु जरातुरि भेली। ननन्दि अछलि सेहो सासुर गेली।
तैसन न देखिअ कोई। रयनि जगाए सम्भासन होई।
एहि पुर एहे बेबहारे। काहुक केओ नहि करए पुछारे।
मोरि पिअतमकाँ कहबा। हमे एकसरि धनि कत दिन रहबा।
पथिक, कहब मोर कन्ता। हम सनि रमनि न तेज रसमन्ता।
भनइ विद्यापति गाबे। भमि-भमि विरहिनि पथुक बुझाबे।




2
आसक लता लगाओल सजनी, नयनक नीर पटाय।
से फल आब परिनत भेल मजनी, आँचर तर न समाय।।
कांच सांच पहु देखि गेल सजनी, तसु मन भेल कुह भान।
दिन-दिन फल परिनत भेल सजनी, अहुनख कर न गेआना।
सबहक पहु परदेस बसु सजनी, आयल सुमिरि सिनेह।
हमर एहन पति निरदय सजनी, नहि मन बाढय नहे।।
भनइ विद्यापति गाओल सजनी, उचित आओत गुन साइ।
उठि बधाव करु मन भरि सजनी, अब आओत घर नाह।।

बुधवार, जनवरी 5

हम कि जानि

एक-दोसर कियैक बनल अछि अनजान, हम कि जानि
ककरा हमर हाल पता छै, हम कि जानि
अधर पर मुस्की लय कय कियैक मिलैत अछि
मन मे केहन गरल भरल छै, हम कि जानि
भूखल पेट आई बनल अछि सिया-स्वयंवर
राम एखन कियैक चुप छथि, हम कि जानि
ककरा लागत नीक आ के कहत बेजाय
नव समय के नव बसात छै, हम कि जानि
सोचक सागर कें मंथन नहि भेल
भगवान कतय नुकायल छथि, हम कि जानि

मंगलवार, जनवरी 4

हरिमोहन झाक पांच पत्र

पाँचपत्र (हरिमोहन झा)(१)दड़िभंगा१-१-१९प्रियतमेअहाँक लिखल चारि पाँती चारि सएबेर पढ़लहुँ तथापि तृप्ति नहि भेल. आचार्यक परीक्षा समीप अछि किन्तु ग्रन्थमे कनेको चित्त नहि लगैत अछि. सदिखन अहीँक मोहिनी मूर्ति आँखिमे नचैत रहैत अछि. राधा रानी मन होइत अछि जे अहाँक ग्राम वृन्दावन बनि जाइत, जाहिमे केवल अहाँ आ हम राधा-कृष्ण जकाँ अनन्त कालधरि विहार करैत रहितहुँ. परन्तु हमरा ओ अहाँक बीचमे भारी भदबा छथि. अहाँक बाप-पित्ती, जे दू मासक बाद फगुआमे हमरा आबक हेतु लिखैत छथि. साठि वर्षक बूढ़केँ की बूझि पड़तनि जे साठि दिनक विरह केहन होइत छैक !प्राणेश्वरी, अहाँ एक बात करू माघी अमावस्यामे सूर्यग्रहण लगैत छैक. ताहिमे अपना माइक संग सिमरियाघाट आउ. हम ओहिठाम पहुँचि अहाँकें जोहि लेब. हँ एकटा गुप्त बात लिखैत छी जखन स्त्रीगण ग्रहण-स्नान करऽ चलि जएतीह तखन अहाँ कोनो लाथ कऽकऽ बासापर रहि जाएब. हमर एकटा संगी फोटो खिचऽ जनैत अछि. तकरासँ अहाँक फोटो खिचबाएब देखब ई बात केओ बूझए नहि. नहि तँ अहाँक बाप-पित्ती जेहन छथि से जानले अछि.हृदयेश्वरी हम अहाँक फरमाइशी वस्तु (चन्द्रहार) कीनिकऽ रखने छी. सिमरिया में भेट भेलापर चूपचाप दऽ देब. मुदा केओ जानए नहि हमरा बापके पता लगतनि तँ खर्चा बन्द कऽ देताह. हँ एहि पत्रक जबाब फिरती डाकसँ देब. तें लिफाफक भीतर लिफाफ पठारहल छी. पत्रोत्तर पठएबामे एको दिनक विलम्ब नहि करब. हमरा एक-एक क्षण पहाड़सन बीतिरहल अछि. अहाँक प्रतीक्षा में आतुरपुनश्च : चिट्ठी दोसराके छोड़क हेतु नहि देबैक. अपने हाथसँ लगाएब रतिगरे आँचरमे नुकौने जाएब आओर जखन केओ नहि रहैक तँ लेटरबक्समे खसा देबैक.
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(२)
हथुआ संस्कृत विद्यालय१-१-२९प्रिय,बहुत दिनपर अहाँक पत्र पाबि आनन्द भेल. अहाँ लिखैत छी जे ननकिरबी आब तुसारी पूजत, से हम एकटा अठहत्थी नूआ शीघ्र पठा देबैक. बंगट आब स्कूल जाइत अछि कि नहि? बदमाशी तँ नहि करैत अछि? अहाँ लिखैत छी जे छोटकी बच्चीके दाँत उठि रहल छैक, से ओकर दबाइ वैद्यजीसँ मङबाकऽ दऽ देबैक. अहूके एहिबेर गामपर बहुत दुर्बल देखलहुँ जीरकादि पाक बनाकऽ सेवन करू. जड़कालामे देह नहि जुटत तँ दिन-दिन ह्रस्त भेल जाएब. ओहिठाम दूध उठौना करू. कमसँ कम पाओभरि नित्य पिउल करब. हम किछु दिनक हेतु अहाँकें एहिठाम मङा लितहुँ. परन्तु एहिठाम डेराक बड्ड असौकर्य. दोसर जे विद्यालयसँ कुल मिला साठि टका मात्र भेटैत अछि. ताहिमे एहिठाम पाँचगोटाक निर्वाह हएब कठिन. तेसर ई जे फेर बूढ़ीलग के रहतनि ! इएहसभ विचारिकऽ रहि जाइत छी. नहि तँ अहाँक एतऽ रहने हमरो नीक होइत. दुनू साँझ समयपर सिद्ध भोजन भेटैत बंगटो के पढ़बाक सुभीता होइतैक. छोटकी कनकिरबीसँ मन सेहो बहटैत. परन्तु कएल की जाए ! बड़की ननकिरबी किछु आओर छेटगर भऽ जाए तँ ओकरा बूढ़ीक परिचर्यामे राखि किछु दिनक हेतु अहाँ एतऽ आबि सकैत छी. परन्तु एखन तँ घर छोड़ब अहाँक हेतु सम्भव नहि. हम फगुआक छुट्टीमें गाम अएबाक यत्न करब. यदि नहि आबि सकब तँ मनीआर्डर द्वारा रुपैया पठा देब.अहींक कृष्णपुनश्च : चिट्ठी दोसराकें छोड़क हेतु नहि देबैक अपने हाथसँ लगाएब. रतिगरे आँचरमे नुकौने जाएब आओर जखन केओ नहि रहैक तँ लेटरबक्समे खसा देबैक.
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(३)
हथुआ संस्कृत विद्यालय१-१-३९शुभाशीर्वाद अहाँक चिट्ठी पाबि हम अथाह चिन्तामे पड़ि गेलहुँ. एहिबेर धान नहि भेल तखन सालभरि कोना चलत. माएक श्राद्धमे पाँच सए कर्ज भेल तकर सूदि दिन-दिन बढ़ले जा रहल अछि. दू मासमे बंगटक इमतिहान हएतनि. करीब पचासो टका फीस लगतनि. जँ कदाचित पास कऽ गेलाह तँ पुस्तकोमे पचास टका लागिए जएतनि. हम ताही चिन्तामे पड़ल छी. एहिठाम एक मासक अगाउ दरमाहा लऽ लेने छियैक. तथापि उपरसँ नब्बे टका हथपैंच भऽ गेल अछि. एहना हालतिमे हम ६२ टका मालगुजारी हेतु कहाँसँ पठाउ? जँ भऽ सकए तँ तमाकू बेचिकऽ पछिला बकाया अदाय कऽ देबैक. भोलबा जे खेत बटाइ कएने अछि, ताहिमे एहिबेर केहन रब्बी छैक? कोठीमे एको मासक योगर चाउर नहि अछि. ताहिपर लिखैत छी जे ननकिरबी सासुरसँ दू मासक खातिर आबऽ चाहैत अछि. ई जानि हम किंकर्तव्यविमूढ़ भऽ गेल छी. ओ चिल्हकाउर अछि. दूटा नेना छैक. सभकेँ डेबब अहाँक बुते पार लागत? आब छोटकी बच्ची सेहो १० वर्षक भेल. तकर कन्यादानक चिन्ता अछि. भरि-भरि राति इएहसभ सोचैत रहैत छी, परन्तु अपन साध्ये की? देखा चाही भगवान कोन तरहें पार लगबै छथि!शुभाभिलाषीदेवकृष्णपुनश्च : जारनि निंघटि गेल अछि तँ उतरबरिया हत्ताक सीसो पंगबा लेब. हम किछु दिनक हेतु गाम अबितहुँ किन्तु जखन महिसिए बिसुकि गेल अछि तखन आबिकऽ की करब?अहाँक देवकृष्ण
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(४)
हथुआ संस्कृत विद्यालय
१-१-४९
आशीर्वाद
हम दू माससँ बड्ड जोर दुखित छलहुँ तें चिट्ठी नहि दऽ सकलहुँ. अहाँ लिखैत छी जे बंगट बहुकें लऽकऽ कलकत्ता गेलाह. से आइकाल्हिक बेटा-पुतहु जेहन नालायक होइत छैक से तँ जानले अछि. हम हुनकाखातिर की-की नहि कएल! कोन तरहें बी.ए. पास करौलियनि से हमहीं जनैत छी. तकर आब प्रतिफल दऽरहल छथि. हम तँ ओही दिन हुनक आस छोड़ल, जहिया ओ हमरा जिबिते मोछ छँटाबऽ लगलाह. सासुक कहबमे पड़ि गोरलग्गीक रुपैया हमरालोकनिकेँ देखहु नहि देलनि. जँ जनितहुँ जे कनियाँ अबितहि एना करतीह तँ हम कथमपि दक्षिणभर विवाह नहि करबितियनि. १५०० गनाकऽ हम पाप कएल, तकर फल भोगिरहल छी. ओहिमेसँ आब पन्द्रहोटा कैँचा नहि रहल. तथापि बेटा बूझैत छथि जे बाबूजी तमघैल गाड़नहि छथि. ओ आब किछुटा नहि देताह आर ने पुतहु अहाँक कहलमे रहतीह. हुनका उचित छलनि जे अहाँक संग रहि भानस-भात करितथि, सेवा-शुश्रुषा करितथि. परञ्च ओ अहाँक इच्छाक विरुद्ध बंगटक संग लागलि कलकत्ता गेलीह. ओहिठाम बंगटकें १५० मे अपने खर्च चलब मोश्किल छनि कनियाँकें कहाँसँ खुऔथिन. जे हमरालोकनि ३० वर्षमे नहि कएल से ईलोकनि द्विरागमनसँ ३ मासक भीतर कऽ देखौलनि. अस्तु. की करब? एखन गदह-पचीसी छनि. जखन लोक होएताह तखन अपने सभटा सुझतनि. भगवान सुमति देथुन. विशेष की लिखू? कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति.
देवकृष्ण
पुनश्च: जँ खर्चक तकलीफ हो तँ छओ कट्ठा डीह जे अहाँक नामपर अछि से भरना धऽकऽ काज चलाएब. अहाँक हार जे बन्धक पड़ल अछि से जहिया भगवानक कृपा होएतनि तहिया छुटबे करत!
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(५)
काशीतः
१-१-५९
स्वस्ति श्री बंगटबाबूकें हमर शुभाशिषः सन्तु.
अत्र कुशलं तत्रास्तु. आगाँ सुरति जे एहि जाड़मे हमर दम्मा पुनः उखरि गेल अछि. राति-रातिभरि बैसिकऽ उकासी करैत रहैत छी. आब काशी-विश्वनाथ कहिया उठबैत छथि से नहि जानि. संग्रहणी सेहो नहि छूटैत अछि. आब हमरालोकनिक दबाइए की? औषधं जाह्नवी तोयं वैद्यो नारायणो हरिः. एहिठाम सत्यदेव हमर बड्ड सेवा करैत छथि. अहाँक माएकें बातरस धएने छनि से जानिकऽ दुःख भेल परन्तु आब उपाये की? वृद्धावस्थाक कष्ट तँ भोगनहि कुशल! बूढ़ीकें चलि-फीरि होइत छनि कि नहि? हम आबिकऽ देखितियनि, परञ्च अएबा जएबामे तीस चालीस टका खर्च भऽ जाएत दोसर जे आब हमरो यात्रा में परम क्लेश होइत अछि. अहाँ लिखैत छी जे ओहो काशीवास करऽ चाहैत छथि. परन्तु एहिठाम बूढ़ीके बड्ड तकलीफ होएतनि. अपन परिचर्या करबा योग्य त छथिए नहि, हमर सेवा की करतीह? दोसर जे जखन अहाँ लोकनि सन सुयोग्य बेटा-पुतहु छथिन तखन घर छोड़ि एतऽ की करऽ औतीह? मन चंगा तँ कठौतीमें गंगा! ओहिठाम पोता-पोतीके देखैत रहैत छथि. पौत्रसभके देखबाक हेतु हमरो मन लागल रहैत अछि. परञ्च साध्य की? उपनयनधरि जीबैत रहब तँ आबिकऽ आशीर्वाद देबनि. अहाँक पठाओल ३० टका पहुँचल एहिसँ च्यवनप्राश कीनिकऽ खा-रहल छी. भगवान अहाँके निकें राखथु. चि. पुतहुके हमर शुभाशीर्वाद कहि देबनि. ओ गृहलक्ष्मी थिकीह. अहाँक माए जे हुनकासँ झगड़ा करैत छथिन से परम अनर्गल करैत छथि. परन्तु अहाँकेँ तँ बूढ़ीक स्वभाव जानले अछि. ओ भरिजन्म हमरा दुखे दैत रहलीह. अस्तु कुमाता जायेत क्वचिदपि कुपुत्रो न भवति, एहि उक्ति के अहाँ चरितार्थ करब.
इति देवकृष्णस्य
पुनश्च : यदि कोनो दिन बूढ़ीके किछु भऽ जाइन तँ अहाँलोकनिक बदौलति सद् गति होएबे करतनि जाहि दिन ई सौभाग्य होइन ताहि दिन एक काठी हमरोदिस सँ धऽ देबनि.

मन

मन कें बेसी नहि बुझाबी
नहि त जन्मत कुण्ठा
हमर जीवन कि बदलत
वेदक दू-चारि ऋचा
सुरूज कें धाह के कहि दिओए
पक्षी कें नहि झुलसाबै
हमरा सदिखन नीक लगैत अछि
निस्दबध खरहोरि
जतय बसात सेहो नहि सुनाइत अछि
लोकक केहन आदति छैन्हि
गप्प करताह, चाह पीताह आ विदा भ जेताह
एकसरि हमरा छोडि़ कए।

सोमवार, जनवरी 3

जुल्मी

- मंत्रेश्वर झा

दुनिया मे अहीं टा त’ नहिं छी जुल्मी,
अपना पर बजरत तखन बुझवै जे की।

काल्हियो छलहुँ हमारा आ काल्हियो रहब,
बीतत वर्तमान तखन बुझबै जे की।

फूसि फासि ठूसि ठासि भरलहुँ जिनगी,
अंतकाल पछताके बुझबै जे की।

बजौलहुँ इनाम ले बदनामी खातिर,
नाम जुटत अपनो त’ बुझबै जे की।

नुका नुका पर्दा मे बाँचब कते दिन,
खोलब जौं भेद तखन बुझबै जे की.

मानिनि आब उचित नहि मान

मानिनि आब उचित नहि मान।
एखनुक रंग एहन सन लागय जागल पए पंचबान।।
जूडि रयनि चकमक करन चांदनि एहन समय नहि आन।
एहि अवसर पिय मिलन जेहन सुख जकाहि होय से जान।।
रभसि रभसि अलि बिलसि बिलसि कलि करय मधु पान।
अपन-अपन पहु सबहु जेमाओल भूखल तुऊ जजमान।।
त्रिबलि तरंग सितासित संगम उरज सम्भु निरमान।
आरति पति मंगइछ परति ग्रह करु धनि सरबस दान।।
दीप-बाति सम भिर न रहम मन दिढ करु अपन गेयान।
संचित मदन बेदन अति दारुन विद्यापति कवि भान।।

भावार्थ : - हे नायिका! अब अर्थ इतना भी रुसना-फुलना उचित नहीं है। इन बातों को अब छोड़ भी दो। देखो तो, ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे कामदेव अपने पांच बाणों के साथ जग चुके हों। रात कितना आकर्षक लग रहा है। चारों तरफ स्पष्ट दिखाई दे रहा है (शुक्ल पक्ष अपनी चढ़ाव में जो है)। इससे अच्छा (उपयुक्त) पला भला और क्या हो सकता (अभिसार के लिए) है। इस मनोनुकूल क्षण में प्रियतम से मिलन का जो आनन्द मिलता है उसका अनुभव (अनुमान) वही कर सकता है, जिसने ऐसे पल को कभी भोगा है। भँवर रस से हुए मदमत होकर कली को तोर रहा है, मधुपान कर रहा है। दोनों तरफ से कहीं कोई अवरोध नहीं है। अर्थात् सभी अपने-अपने प्रियतम की भूख मिटा चुके हैं, केवल तुम्हारा प्रियतम अभी तक भूखा है। तुम्हारे नाभि के ऊपर में लहर तरंगित है। संगम पर अवस्थित दोनों स्तन (छाती) शिव-शम्भु के समान लग रहे हैं। इस तरह के अवसर पर तुम्हारा प्रियतम आर्त होकर खड़े हैं। तुमसे कुछ मांग रहा है- याचक मुद्रा में। हे मानिनि (नायिका), तुम ऐसे पल में अपना सर्व दान कर दो। अब भी अपने मन को दृढ़ करो। इस चंचल मन का क्या भरोसा! यह तो दीपक के बाती जैसे हमेशा काँपता रहेगा। महाकवि विद्यापति ऐसी स्थिति का बोध कराते हुए कहते हैं कि कामेच्छा अत्यधिक मात्रा में एकत्रित हो जाने पर बहुत कष्ट देता है

अभिनव पल्लव बइसंक देल

अभिनव पल्लव बइसंक देल।
धवल कमल फुल पुरहर भेल।।
करु मकरंद मन्दाकिनि पानि।
अरुन असोग दीप दहु आनि।।
माह हे आजि दिवस पुनमन्त।।
करिअ चुमाओन राय बसन्त।।
संपुन सुधानिधि दधि भल भेल।
भगि-भगि भंगर हंकराय गेल।।
केसु कुसुम सिन्दुर सम भास।
केतकि धुलि बिथरहु पटबास।।
भनइ विद्यापति कवि कंठहार।
रस बझ सिवसिंह सिव अवतार।

अभिनव कोमल सुन्दर पात

अभिनव कोमल सुन्दर पात।
सगर कानन पहिरल पट रात।
मलय-पवन डोलय बहु भांति
अपन कुसुम रसे अपनहि माति।।
देखि-देखि माधव मन हुलसंत।
बिरिन्दावन भेल बेकत बसंत।।
कोकिल बोलाम साहर भार।
मदन पाओल जग नव अधिकार।।
पाइक मधुकर कर मधु पान।
भमि-भमि जोहय मानिनि-मान।।
दिसि-दिसि से भमि विपिन निहारि।
रास बुझावय मुदित मुरारि।
भनइ विद्यापति ई रस गाव।
राधा-माधव अभिनव भाव।।

जनम होअए जनु

जनम होअए जनु,जआं पुनि होइ।
जुबती भए जनमए जनु कोई।।
होइए जुबती जनु हो रसमंति।
रसओ बुझए जनु हो कुलमंति।।
निधन मांगओं बिहि एक पए तोहि।
थिरता दिहह अबसानहु मोहि।।
मिलओ सामि नागर रसधार।
परबस जन होअ हमर पिआर।।
परबस होइअ बुझिह बिचारि।
पाए बिचार हार कओन नारि।।
भनइ विद्यापति अछ परकार।
दंद-समुद होअ जिब दए पार।।

गौरा तोर अंगना

गौरा तोर अंगना।
बर अजगुत देखल तोर अंगना।

एक दिस बाघ सिंह करे हुलना ।
दोसर बरद छैन्ह सेहो बौना।।
हे गौरा तोर ................... ।


कार्तिक गणपति दुई चेंगना।
एक चढथि मोर एक मुसना।।
हे गौर तोर ............ ।


पैंच उधार माँगे गेलौं अंगना ।
सम्पति मध्य देखल भांग घोटना ।।
हे गौरा तोर ................ ।

खेती न पथारि शिव गुजर कोना ।
मंगनी के आस छैन्ह बरसों दिना ।।
हे गौरा तोर ............... ।

भनहि विद्यापति सुनु उगना ।
दरिद्र हरन करू धएल सरना ।