बुधवार, जनवरी 5

हम कि जानि

एक-दोसर कियैक बनल अछि अनजान, हम कि जानि
ककरा हमर हाल पता छै, हम कि जानि
अधर पर मुस्की लय कय कियैक मिलैत अछि
मन मे केहन गरल भरल छै, हम कि जानि
भूखल पेट आई बनल अछि सिया-स्वयंवर
राम एखन कियैक चुप छथि, हम कि जानि
ककरा लागत नीक आ के कहत बेजाय
नव समय के नव बसात छै, हम कि जानि
सोचक सागर कें मंथन नहि भेल
भगवान कतय नुकायल छथि, हम कि जानि

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

bahut nik