बुधवार, जनवरी 28

सम्भावनाशील अछि भविष्य

चारूकात अराजकता, निराशा । टूटैत सपना, आहत सम्मान ,बदलैत प्रतिमान । बिलुप्त उत्साह कुन्द उर्जा । पथभ्रष्ट सम्भावना ; मतिभ्रष्ट संज्ञान .सोच नपुँसक बाँझ लेखनी । जड़ मानसिकता ,हताश बर्तमान । तथापि विस्वाश। अपेक्षा स हारल व्यवस्थाक मारल ,संतुष्ट मन तृप्त जीवन । तमाम बिखराबक बाबजूद नहि रूकल अछि गति जीवनक। चालू अछि सफर सोच केर ,शरीर केर ,जीवन के ,आत्मा के भागि रहल छथि सब ।तेज बहूत तेज .
बिना रुकल ,बेदम.कोनो बाधा, कोनो विराम नहि । कोनो नियंत्रण, कोनो नियोजन नहि। सब किछु अस्त- व्यस्त,
अनियमित, अनियंत्रित । जिन्दगी नियोजित नहि भ सकैत अछि । निय्न्त्रितो ने। आशय छि हम सब । नियंत्रित नहि कअ सकैत छी व्यबस्था के स्वयम के ,सोच के शरीर के ,भविष्य के आ नियति के । मात्र स्वांग करैत छी नियन्त्रन्क । कालजयी बनय चाहैत छी आत्मजयी नहि बनी पाबैत छी । नियंत्रण चाहैत छी ,नियंत्रित होबय नहि । लालसा, भूख, सत्ता,इन्द्रिय किछो त नियंत्रित । स्वम पर नियंत्रण बना सकैत अच्छी कुंदन । मुदा बनि जायत छी सूरदास । बनय चाहैत छी आन्हर। ध्रित्रश्त्री मानसिकता हावी रहैत अछि-विचार पर ,भावना पर ,मस्तिष्क पर आ सत्ता पर । अन्तरक अन्हाड़ ,बाहरक प्रकाश के लील जायत अछि । अन्हाड़ गली के यात्रा में ,भ्त्क्वे भटकाव अछि ।
भटकाव खोजक शुरुआत अछि । यात्रा अछि जटिल । दर्द अछि एही में प्रसव पीडा के । भटकाव-माया,मोह,सत्ता आ सुरक्षा लेल । रहय चाहैत छी शीर्ष पर । सहारा लेत छी- साम, दाम ,दंड ,भेद सभक । तथापि भटकाव केर अंत सृजन अछि । स्वागत-नव आगमन ,नव विचार नव व्यबस्था के। नव आगमन शकुन अछि । अपना स अ लडैत आदमी, अपने भीतर पाबैत अछि,नव देह ,नव अस्तित्व । नव उम्मिदक सुगबुगाहट । नव सम्भावना केर सूत्रपात। जिज्ञासाक नव अध्याय सम्भावना आ सम्भाव्य के बीच ,भुत रास आस । अपेक्षा भविष्य सअ ।
कालक प्रवाह अछि भविष्य। भविष्य अकल्पनीय होइत अछि, अनिश्चित । बहुआयामी भविष्य मायावी होइत अछि । अपन मधुर परिकल्पना में आशावादी होइत अछि भविष्य । सम्भावनाशील । भविष्य सपना अछि सुखद । योजना केर बिज नुकायल रहैत अछि भविष्य में । अपेक्षित उम्मिदक जरैत दीया अछि भविष्य । भविष्य सम्बल अछि । भविष्यक सुखद परिकल्पना बनबैत अछि सक्रिय आक्रियशील ।
तें आवश्यक अछि नव प्राथमिकता । वैकल्पिक प्रतिमान । तोड़य पड़त जड़ता -स्वंम समाज और व्यबस्था केर । ताकि अक्षुण्य रही सकय ,अतीत ,संस्कृति,भाषा आ समस्त धरोहरी । अन्यथा लील जायत अस्तित्व समाज आ स्वम के ।

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