शुक्रवार, सितंबर 11

जीवन मे खेल-कूदक महत्त्व

खेलकूदक इतिहास प्राय: ओतबै पुरान अछि जतेक मानव सभ्यता। आदि कालहि सँ खेलकूद मानव जीवनक एकटा अभिन्न अंग रहल अछि। समय प्रवाह मे एकर रूप आ प्रकार मे परिवर्तन होइत रहल अछि आ एकर वर्तमान स्वरूप विस्मयकारी ढंगे विपुल तथा बहु आयामी भऽ गेल अछि। खेलकूदक प्राचीन परम्परा मे एथलेटिक्स खेलक बड़Ó महत्वपूर्ण स्थान छल आ एकर उद्ïगम प्राचीन मिस्रक सभ्यता मे भेटैछ। एथलेटिक्स शब्दक शाब्दिक अर्थ होइछ 'इनामक खेल प्रतियोगिताÓ आ एहि तरहेँ प्रतियोगिता भावनाकेँ आरोपित करैछ। खेल मे बहुत रास खेल सभ सम्मिलित कएल गेल अछि जेना विविध प्रकारक दौड़-कूद, मुक्केबाजी, कुश्ती, गोला फेंक, भाला फेंक, तलवार बाजी, भारोत्तोलन, तीरंदाजी, विभिन्न प्रकारक तैराकी आ शारीरिक व्यायाम संगहि मैदान मे खेलबा योग्य खेल जेना क्रिकेट, हॉकी, फुटबॉल, हैण्डबॉल, टेनिस अछि।
स्वस्थ जीवनयापनक हेतु आवश्यक शर्त सभ मे खूलकूद एकटा विशिष्टï स्थान रखैत अछि। खेलकूद तऽ मनुष्य मात्रक लेल बड़Ó महत्वपूर्ण होइछ, मुदा अवस्था आ मनेवृत्तिक अनुसारेँ ओकर रूप बदलि जाइत छैक। यथा बाल्यावस्था सँ किशोरावस्था तक लोक सक्रिय आ प्रत्यक्ष रूपे खेलकूद मे भाग लैत अछि। एकरा बादक अवस्था मे किछु व्यक्ति एकटा योगासनक रूप मे तथा किछु भोर-सांझ टहलवाक रूप मे अपनबैत छथि। रूप एकर चाहे किछुओ होइहि किन्तु एकर उद्देश्य आ परिणाम एक्के होइत छैक। जेना मशीन वा कोनो यंत्रकेँ सुचारू रूप सँ चलयबाक लेल समय-समय पर ओकर झाड़-पोंछ, तेल-पानि इत्यादिक जरूरत होइछ ततबे यंत्र रूपी एहि मानव शरीर केँ स्वस्थ, सुन्नर, सुडौल, मजबूत एवं दीर्घायु बनएवाक हेतु खेलकूद आवश्यक होइछ।
छात्र लोकनिक बहुमुखी व्यक्तित्वक विकास मे खेलकूद बड़Ó विशेष महत्व छैक। कहल गेल अछि जे— च्च्स्शह्वठ्ठस्र द्वद्बठ्ठस्र द्बठ्ठ ड्ड ह्यशह्वठ्ठस्र ड्ढशस्र4ज्ज् अर्थात्ï स्वस्थ मनुष्ये सँ मानसिक आ बौद्धिक प्रौढ़ताक अपेक्षा कएल जा सकैछ। खेलला कूदला सँ शारीरिक व्यायाम होइछ जाहि सँ मांसपेशी कडग़र, हड्डïी चौडग़र आ सुसंगठित बनैत अछि। एहि सँ शरीरक प्रत्येक भाग मे होमय वला रक्त संचार सेहो नियंत्रित होइछ, जे रक्त चाप आ हृदय गति केँ नियंत्रित करैत अछि। खेलकूद मनुष्य मे एकटा जागृति जगबैत अछि जकरा द्वारा हमरा लोकनि एक दल, एक समूह मे रहि कोनो खास उद्देश्यक पूर्तिक हेतु अनुशासित ढंगे प्रयास करबाक कला सीखैत छी। खुलल वातावरण तथा स्वच्छ वायु मे खेलकूद शरीर मे स्फूर्ति दैछ, शरीरकेँ तन्दुरूस्त बनबैछ आ मुखमंडल पर आभा जगबैछ जाहि सँ प्रभावशाली व्यक्तित्वक निर्माण मे सहायता भेटैत छैक। बन्द कोठरी मे बैसि निरन्तर विद्याभ्यासये रत रहला सँ शरीर कमजोर भऽ जाइछ आ खसि पड़ैछ जे आगा पुन: अध्ययन कार्य मे बाधा उपस्थित करऽ लगैत अछि, ताहिं एकर निवारणक लेल खेलकूद बड़Ó आवश्यक भऽ जाइछ।
विभिन्न खेलक लेल स्थापित किछु खास नियम सभ केँ अनिवार्य रूपेँ पालन करबाक अभ्यास जीवनक कोनो क्षेत्र मे विकास, उन्नति ओ प्रगतिक मार्ग प्रशस्त करैछ। ई क्रीड़ा परस्पर सहयोग आओर नियमक प्रति सजगता बढ़बैछ, आत्म नियंत्रणक कला सीखबैछ, सभक हित मे आत्म त्याग, करबाक भावना जगबैत अछि। संगहि उत्थान-पतन, हार-जीत आदि मे स्थित प्रज्ञ (निष्काम कर्मयोगी) बनबाक नैतिक शिक्षा सेहो प्रदान करैत अछि। विभिन्न खेलक क्रम मे खान-पानक संदर्भ मे घोषित आ निर्धारित नियमक पालन कएला सँ आत्म संयम आ कठोर इच्छा शक्ति विकसित होइत अछि। जे जीवन मे सतत्ï कोनो ने कोनो रूपेँ लाभकारी सिद्ध होइत रहैछ। क्रीड़ा मनुष्य मे अदम्य साहस, उत्साह तथा धैर्य प्रदान करैत अछि। एहि सँ हमरा लोकनि केँ विकट सँ विकट परिस्थिति मे अंत समय धरि पूर्ण लगन, निष्ठïा आ उत्साह सँ कार्य करैत रहबाक प्रेरणा भेटैत अछि। एकटा नीक खेलाड़ी सतत सजग एवं सतर्क रहैत अछि। एहि तरहेँ ई अनुकरणीय चरित्र निर्माणक मार्ग प्रशस्त करैछ। दू वास्तविक खेलाड़ीक बीच सतत स्वस्थ एवं लाभकारी प्रतिस्पर्धाक भावना देखबा मे अबैछ चाहे ओ जीवनक कोनो क्षेत्र वा शास्त्रक कोनहुँ विधा हो।
हिन्दू दर्शन मे कहल गेल अछि—आत्मा वा अरे द्रष्टïव्य: अर्थात्ï अखिल विश्व मे आत्मा सँ साक्षात्कार करब इएह टा एकमात्र दर्शनीय वस्तु थीक। मुदा एकरो चरितार्थ करबा लेल पूर्णरूपेण शरीर सँ स्वस्थ होयब अनिवार्य थीक। आ एहि हेतु खेलकूद व्यायाम आ योगासन आवश्यक अछि। स्वस्थ शरीर खाली कार्यक परिणाम आ मात्रे टा नहि अपिक ओकर गुणात्मकता के सेहो परिवद्र्धित आ परिष्कृत करैछ। कमजोर आ अस्वस्थ व्यक्ति कोनो कत्र्तव्यक निर्वाह नीक जकाँ नञि कऽ सकैत छथि। किएक तऽ ओ सर्वदा दोसर दिस एकटा पूर्ण स्वस्थ व्यक्ति असंभव आ असाधारणो कार्य केँ अपन आत्मबल सँ संभव आ सुलभ बना दैत छथि। खेलक क्षेत्र मे हम परस्पर सहयोगक भावना सँ प्रेरित भऽ अपन व्यक्तिगत अस्तित्वकेँ दलक अस्तित्वक संगे जोडि़ लैत छी। खेल समाप्त भेलाक बाद दू दलक खेलाड़ी परस्पर ओहि सौहाद्र्र सँ मिलैत छथि जेना निकटतम मित्र। जीवन सेहो एकआ पैघ खेल क्षेत्र थीक आ एहि हेतु हमरा लोकनि खेलक आदर्श सभकेँ आत्मसात कय ली बड़ जीवन बड़Ó सुखी आ गरिमामण्डित भऽ जायत।
एखनुका समय मे खेलकूद प्रांतीय आ राष्टï्रीय सीमा-परिसीमा केँ लाँघि अंतर्राष्टï्रीय स्तर पर स्थापित भऽ चुकल अछि। कोनो मान्यता प्राप्त खेलक खेलाड़ी अपन व्यक्तिगत क्षमता, प्रतिभा आ प्रदर्शन सँ सगरो ख्याति पबैत छथि आ ओ जाहि देशक रहनिहार छथि तकर प्रतिष्ठïा सेहो बढि़ जाइछ। ई क्रीड़ा आब मात्र एकटा मनोरंजक साधन आ स्वस्थ जीवनक कुंजीए नहि रहल अपितु ई व्यावसायिक रूप सेहो प्राप्त कऽ चुकल अछि। विविध खेल मे बहुतोक एहन प्रतिभावान खेलाड़ी छथि जे खेलक बलेँ विविध सेवा मे नीक स्थान प्राप्त कयलनि अछि। खेल मे विशिष्ट ख्याति प्राप्त आ प्रमाण पत्र प्राप्त व्यक्ति केँ नौकरी मे एहि आधार पर अतिरिक्त अंक सेहो भेटैत छैन्हि। टेनिस, मुक्केबाजी आ फुटबॉल व्यावसायिक आ आर्थिक दृष्टिïएँ सभसँ लाभकारी खेल अछि जकर विजेता अत्यल्प समय मे विपुल धन राशिक स्वामी बनि जाइत छथि।
मुदा 'अति सर्वत्र वर्जयेतÓ तेँ सामान्य व्यक्ति केँ खेलकूद आ व्यायाम मात्र स्वास्थ्य प्राप्तिक उद्देश्य रखबाक चाही। अत्यधिक खेलकूद आ व्यायाम सेहो शरीरक लेल हानिकारक भऽ जायत आ विविधि प्रकारक असंतुलन आ रोग केँ आमंत्रित करत संगहि 'शरीर माध्यम खलु धर्मसाधनम्ïÓ केर जे हमरा लोकनिक मूल मंत्र अछि, से विफल आ अप्रासंगिक भऽ जायत।

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