गुरुवार, सितंबर 3

बाढि़ बनाम जल प्रबंधन

जल जीवन अछि। जीवन अछि जल। व्याप्त अछि बरोबरि प्रकृति मे, पृथ्वी पर, हमरा-अहाँ केँ शरीर मे। एकर बिना जीवनक नहि भऽ सकैत अछि कल्पना। मुदा जल मचा दैत अछि त्राहिमाम—न्यून उपलब्धता मे आ अपन अधिकता मे। 'अतिÓ—आनैत अछि विपत्ति। कमी वा बेसी, सुखाड़ वा बाढि़ होइत अछि प्रलयकारी।
प्रलय अनिष्टï सूचक अछि। रोंइयां ठाढ़ भऽ जाइत छैक, देह सिहरि जाइत छैक सोचला मात्र सँ। मानवीय होय वा प्राकृतिक- होइत अछि ई विनाशक। तैँ आवश्यक अछि प्रतिकार। सोचय पड़त विकल्प, ताकए पड़त समाधान। भागीरथी प्रयासक करए पड़त संधान। सुरक्षा लेल आवश्यक छैक-श्रम, स शक्ति, संपत्ति आ सामथ्र्यक प्रबंधन।
प्रबंधन जटिल होइत छैक अपना वृहत स्वरूप मे। ऊर्जा आ बहुत रास सामूहिक प्रयासक समन्वय अछि प्रबंधन। वृहत योजना आ गंभीर चिंतन। दूर दृष्टिï आ व्यापक अध्ययन। तखने कल्याणकारी आ सटीक भऽ सकैत अछि प्रबंधन। रोकल जा सकैत अछि क्षय संपत्ति, माल आ जानक।
प्रतिवर्ष सैकड़ो जान आ करोड़ोंक संपत्ति स्वाहा। जल-जमाऊ के असरि रहैत अछि कतेको दिन। बाधित परिवहन आ पंगु जीवन। बीमारी-महामारी मँगनी मे, सँपकट्टïीक विशेष उपहार। दंश झेलैत छी चुपचाप। अभिशप्त जेना विधवा प्रलाप। मुखर अपेक्षा, मौन सरोकार। आत्मसात जेना संस्कार। भविष्य निर्धारित कऽ सकैत अछि वर्तमान। वर्तमान बुझबा लेल देखए पड़त अतीत।
अतीत मे स्व. डॉ. लक्ष्मण झा देखौलन्हि वेभेल परियोजनाक प्रारूप। बाढि़ पर गंभीर मनन। समाजक गहींर चिंतन। बुझि नहि सकल अज्ञानी मन, तैं नरकीय बनल रहल जीवन। फेर सँ उठल अछि आवाज। नव आगाज। नव सुगबुगाहट। नव सूत्र। नवीन अध्याय। डैम आ पनबिजली! स्थायी निदान? बाढि़क समाधान? नव शुरुआत?
शुरुआत सँ जुड़ल अछि अंत। निर्माण सँ विध्वंस। डैमक निर्माण आ कि लाखो-करोड़ोक विस्थापन। भूमिक अधिग्रहण। खतरा मे पर्यावरण। कतेको आपदा-विपदा केँ आमंत्रण। की तैयार छी? उद्वेलित भावना, सहि सकत आर्थिक/अस्तित्ववादी प्रताडऩा? सुरसाकेँ मुंह जेंका पसरल समस्या। अस्तित्वक कतेको यक्ष प्रश्न। बहुत रास चिंतन। अनवरत मंथन। वैचारिक मंदारक अछि प्रयोजन। अमृत? विष? वा दुनु? पचा सकब? तैं डेग बढ़ौला सँ पहिनेए लेमय पड़त निर्णय। अपना लेल, भविष्य लेल, पीढ़ी दर पीढ़ी लेल। स्वागत, प्रत्येक कल्याणकारी निर्णयके।

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