शुक्रवार, जनवरी 30

लघुकथा - दूध

दूध घरक पुरूष पीबैत छै, किएक त’ ओ पुरूष छैक। ओकर काज छै - दूध के सुसुम गिलास कँ सावधानी सँ हुनका-धरि पहुँचायब। पहुँचाबैत काल ओ नित्य दूधक गिलास के सूंघैत छल। खौलल दूधक सुगंध ओकर लालसा कें जगाबैत छल। एक दिन माय आ दादी घर पर नहि छल त ओ चट-पट घर खोलि खाली गिलास में दूध भरैत छल आ गिलास के जहने मुँह धरि ल गेल, घरक किवाड़ भड़ाक सँ फूजल। ओकर मुँह धरि पहुँचल गिलास हाथ सँ छूटि गेलै। गिलासक दूध आ बर्तनक दूध हरा गेलै। घर में गोबर सँ निपाल जगह पर दूध पसरि गेलै। माय कें लग आबैत देखि ओ थर-थर काँपि रहल छल। क्षमा माँगैत बाजैत अछि,‘‘ह.....ह.....हम....’’‘‘दूध पीबैत छलै कामिनी?’’‘‘ हा... हाअ...’’‘‘माँगि नहि सकैत छलैं?’’‘‘माँगने त ऽ रही, तू कखनौ देलै नहि ’‘‘नहि देलयौ त कोन तोरा लढैत बनबाक छौ, जे लाठी के तेल पिआऊँ?’’‘‘एकटा गप्प पूछियौ माय? ’’ डबडबायल आँखि एकदम सँ ढीठ म गेलँ।‘‘पूछ!’’‘‘हम जन्मल रही त दूध उतरल रहौ तोहर छाती में ?’’‘‘हाँ...खूब। मुदा...मुदा तू कहय कि चाहैत हैं?’’‘‘तऽ... हमर हिस्साक छातीक दूध सेहो तौं घरक पुरूष कें पियौने छलैं?’’

(ई लघुकथा हिंदी कें वरि’ठ साहित्यकार चित्रा मुद्गल कें रचना छैन्हि, एहिठाम जकर मैथिली अनुवाद कएल गेल अछि।)

गुरुवार, जनवरी 29

मुख्य धार सं कटल ब्रजस्थ मैथिल

भाव-भेस भासा जनिक, अवनति ओ मलान।
दे’ा तथा जाति अछि, जग मे मृतक समान।।
जय मिथिला, जय मैथिल, जय मैथिली

बहुत अजगुत लागि सकैत अछि मिथिलांचल सं इतर दूर-दराज देस-भेस अर्थात अमैथिल प्रांत मे अनचिन्हार लोक आ भासा सं जुडल लोकक मुंह सं मिथिला, मैथिल आ मैथिलीक स्तुति - वंदना सुनि। मुदा ई अक्षर’ाः सत्य अछि जे आजुक तिथि मे अमैथिल मानल जाय बला लोक आगरा, मथुरा, राजस्था आ महारास्ट्र कें विभिन्न भाग समेत दे’ाक दोसरो कएकटा भाग मे मैथिलीक उत्थान आ प्रचार सहित अपन मातृभासा केर गुणगान क रहल छथि। हं, ई अव’य अछि जे एहि मैथिल समुदाय मे अधिकां’ा लोकनि अपन नामक संग ’ार्मा, वत्स, भारद्वाज आदि उपनाम लगाबह लगलाह। हुनक बोलचाल मे मैथिली भासा पर सेहो स्थान आ कालक प्रभाव स्पस्ट देखल जा सकैत अछि। बावजूद तकर मिथिला आ मैथिली हुनक हृदय स्थली मे बास करैत छन्हि। मैथिल होएबाक गर्व हिनक चेहरा पर स्पस्ट देखल जा सकैत अछि। एकर सब सं पैघ उदाहरण अछि ब्रजस्थ मैथिल मे बहुतो रास लोक अपन नामक आगू मैथिल उपनाम जोडब प्रारंभ कएलनि अपितु अपन सामुदायिक परिचय के क्रम मे प्रचार-प्रसार मे सेहो लागल छथि। एहि समस्त श्रद्धा आ समर्पण केर बादेा ई दुखद अछि जे मिथिला-मैथिली कें अपन हृदय मे बसौनिहार आ मैथिल होयबाक गौरव कएनिहार एहि वर्ग कें वर्तमान मुख्य धारा सं जुडल मैथिल अपन समाज मे जगह द आत्मसात करबाक लेल कोनहुं व्यवहारिक आ गंभीर प्रयासक संकेत तक नहि द सकलाह। यद्यपि ब्रजस्थ मैथिल समुदाय मे मुख्यधारा मे अछि पुनः वैवाहिक संबंध स्थापना खान-पान आदि प्रारंभ करबाक कल्पना कें साकार करबाक प्रयत्न दरभंगा महाराज श्रीकामे’वर सिंह द्वारा गंभीरता पूर्वक एक बेर अव’य कएल गेल। आगरा मे महराज स्वयं घोसणा कएने रहैथ जे पुनः ब्रजस्थ मैथिल समुदाय सं बेटी‘-रोटी के सबंध स्थापित कएल जाएत। एहि प्रसंग लिखित प्रस्ताव सेहो पारित कएल गेल। मुदा ओ पहिल आ अंतिम प्रयास छल। तत्काल किछु वैवाहिक संबंध आ खान-पान प्रारंभ अव’य भेल मुदा बहुत दिन धरि नहि चलि सकल। ब्रजस्थ मैथिलक ब्रज प्रवासक ऐतिहासिक पृ”ठभूमि पर दृ”िटपात रकी त ज्ञात होएत जे करीब छह सौ बरख पूर्व यानी 1382 मे करीब 250 मैथिल ब्राहमणक परिवार पहिल बेर मिथिला सं पलायन कय आगरा दिस गेला। हिनक पलायन सं जुडल कथा अति लोमहर्”ाक अछि। ब्रजस्थ मैथिल ब्राहमण सभाक पूर्व अध्यक्ष आ दूरदर्’ान केंद्र दिल्ली के पूर्व निदे’ाक महे’ा चंद्र ’ार्माक अनुसारे, तत्कालिक मिथिला नरे’ाक एकटा मैथिल दबारी पंडित कें कोनो मुसलमान युवती सं प्रेम भ गेलनि। दुनू समुदायक कटटर पंथक परिणाम स्वरूप पंडित जी के इस्लाम धर्म स्वीकार करय पडलनि। तात्कालिक हिंदू कटटर पंथ कें उपेक्षाक स्वरूप ओ मैथिलक परम विरोधी भ गेलाह आ बंगालक नबावक ’ारणागत भ मिथिलांचल मे क्रूरतम उपद्रव आ हिंसा प्रारंभ करा देलनि; एहि सं त्रस्त भ करीब 250 मैथिल ब्राहमण परिवारक पहिल पलायन मिथिला सं भेल। मुदा तकर बादक स्थिति की भेल, हुनका लोकनिक विसय मे एखनि धरि किछु ज्ञात नहि अछि।कालांतर मे जखन अकबर भारतक सम्राट बनला त मिथिलाक ज्योति”ा आ विद्वताक प्र’ांसा हुनक कान धरि पहुंचल। मिथिलाक पांडित्य आ विद्वता सं प्रभावित बाद’ााह अकबर के समय मे करीब 75 मैथिल विद्वानक सपरिवार आगमन भेल। अकबर द्वारा आमंत्रित ओहि विद्वान परिवार कें आगराक ’ाहजादी बाग, बालू घाट आ छिप्पी टोला आदि जगह मे बसाओल गेल। अकबर आ जहांगीरक समय धरि ओहि मैथिल विद्वान कें खूब मान-सम्मान आ राज्याश्रय भेटैत रहल, किंतु औरंगजेब कें सत्तासीन भेलाक उपरांत अन्य हिंदू परिवारक संग मैथिल विद्वान परिवार कें सेहो असहनीय अत्याचार आ पीडाक समाना करय पडल। इहो कहल जाइत अछि जे आगराक छिप्पी टोला मे एक दिन मे 72 मोन जनउ जराओल गेल छल। धार्मिक पोथी-पतड़ा आदि डाहि देल गेल। एहि सं त्रस्त भ मैथिल विद्वानक परिवार फेर पलायन क दे’ाक विभिन्न भाग मे पसरि गेला। यायावरी जिनगी जीवैत ओ लोकनि लोहा सं जुडल काज सहित रथ निर्माण आ संचालन पर्यंत प्रारंभ क देलनि। एहि प्रकारे ओ लोकनि लोहा आ काठक वस्तुक निर्माण मे दक्ष भ गेला। तत्काल अलीगढ आ जलेसर आदि हुनक ’ारणस्थली बनल। कालांतर मे रेल यातायातक विकास होमय लागल ताहि मे आव’यकता पडल लकडी आ लोहा सं जुडल मजदूर आ कारीगरक। जे किछु पढल लिखल छलाह से टीटी बाबू आदि बनि गेला। अ’िाक्षित वा अल्प’िाक्षित लोक लेल रेलक बोगी क निर्माण कार्य मे लागि गेला। रेलक जतय जतय पैघ टीसन वा कार्य’ााला बनल ओ लोकनि रोजीक जोगाड़ मे ओतहि बसैत गेला। एहि क्रम मे भुसावल, जलगांव, धूले, अजमेर, रतलाम, कोटा, झांसी, अलीगढ, गाजियाबाद, बस्ती, अहमदाबाद आ दिल्ली आदि स्थान पाबि अपन-अपन जीवन यावन करए लगलाह।ई तथ्य प्रायः एखनहुं अन्हारे मे अछि जे अलीगढक प्रसिद्ध ताला उद्योग मे एहि मैथिल सभक भागीदारी अस्सी प्रति’ात सं अधिक अथ्छ। अलीगढक तालाक लोकप्रियता तात्कालिक मैथिलक देन थिक। एतेक रास विपत्ति के सहैत प्रतिभा संपन्न मैथिल समुदाय सं हुनक मैथिलत्व कहियो विलग नहि भेलनि। आब जखन कि प्रत्येक क्षेत्र मे आगू बढैत ई लोकनि आई सभ सुख-सुविधा सं पुनः संपन्न भए गेला, अपन मिथिलाक मूल संस्कारकें आद्यावधि अक्षुण्ण रखबाक प्रयास एखनहुं कए रहल छथि। समस्त मैथिल आ वैदिक परंपराक निर्वाह ओ सभ सेहो कए रहल छथि। विवाह, मुण्डन, उपनयन, कर्णवेद आदि सब विध जे आजुक मिथिलांचल मे प्रचलन मे अछि, करैत रहलाह अछि। करीब अस्सी प्रति’ात बीध एखनहुं प्रचलन मे अछि; किछु स्थान, काल आदिक कारणे बीध मे अंतर सेहो आबि गेल छन्हि मुदा ताहि लेल इ लोकनि मैथिल नहि छथि एहि कटटरपंथी मिथक कें अविलंब तोडय परत। पुनः हुनका लोकनि कें मुख्य धारा मे आनल जएबाक सकारात्मक आ गंभीर प्रयास होएबाक चाही। हुनक मैथिलीत्व आ मिथिला प्रेम क आदर होएबाक चाही। एहि सं मिथिला, मैथिल आ मैथिलीक ’ाक्ति बढत आ मैथिली आंदोलन कें अत्यधिक बल भेटत।

विषधर

अहां कें गोड़ लगैत काल
हमर मोन मे अहांक प्रति
कनिको श्रद्धा नहि रहैत अछि
किएक त हमरा बुझल अछि जे
हमरा प्रति देल गेल अहांक आशीर्वाद
खाली अहांक ठोरे सं निकलैत अछि
अहांक कंठ मे शब्द किछु आर रहैत अछि।

अहांकें नमस्कार करैत काल
हमर तरहत्थी तनतनाय लगैत अछि
मोन मे होइत अछि
एहि तरहत्थी कें थप्पड़ बना
अहांक दुनू गाल लाल क दी
किएक त हमरा बुझल रहैत अछि जे
अहांक नमस्कारक मुद्रा
आ ठोर परहक हंसी दूनू देखावटी अछि
अहांक आंखि मे बात किछु आर रहैत अछि।

अहां जखन हाथ मिलेबा लेल
हाथ बढबैत छी
त हम भीतर सं कांपि जाइत छी
हमरा होइत अछि अहां
त हमर गट्टा उखारि देब
अथवा आंगुर तोड़ि देब
किएक त हमरा बुझल अछि जे
अहांक हाथ, हाथ नहि अछि
ओ अछि आदमखोरक पंजा।

अहांक मुंह पर हम किछु कही ने कही
परोछ मे अहांक, नाम पर हम थूकैत छी
किएक त हमरा बुझल अछि जे
अहांकें अपन भाषा , समाज आ देश कोस सं
कोनो मतलब नहि अछि
मतलब अछि मात्र अपन स्वार्थ सं।

हमरा खुशी अछि जे हमर धीयापुता
एखने सं बुझए लागल अछि अहांक कूटनीति
आ अहांक बनाओल वातावरण मे
ओ सभ बनि रहल अछि विषधर

अहां प्रायः बिसरा गेल होयब
तें मोन पाड़ि दैत छी जे
विषधर हवा पीबैत अछि
एकसरि रहैत अछि
मुदा, जखन कटैत अछि
त केहनो बलशाली कें
सदाक लेल सुता दैत अछि।

- पूर्णेन्दु चौधरी

बुधवार, जनवरी 28

मौअति

"ओ ईमानदार छल तें लोक सभ ओकरा मारय चाहै छल। लोक सभ कहलकै- तोरा कुकुरक मौअति मारबौ। ओ चुप्प छल, मुदा प्रसन्न कारण- ओ मनुक्खक मौअति नहि मरय चाहै छल।"

श्री सत्येन्द्र कुमार झा,
लेखा एवम् प्रशासन अनुभाग,
आकाशवाणी दरभंगा (बिहार)- 846 004,
मो.- +91-98356 84869

मैथिली टाइम्स किएक

संभव अछि जे एहि ब्लाओगक प्रारंभक घोषणाक बाद अपनेक मोन मे सेहो ई कहवी जोर मारैत हो जे बड तन ते भांसल जाए, गद्दह पूछए कतबा पानि ? तैं प्रार्थना जे कहबीए धरी राखल जाओ। हमरा लोकनिक एहि प्रारंभ के कनी स्नेह आ गिर्झदनी सं सोचल जाय तखन हमरो कहल जाए। अर्थात मैथिली मे एतेक रास पत्रिका आ ब्लॉग अस्तित्व मे अछि आ किछु अयबाक सुगबुगाहट कय रहल अछि, तकर बादो मैथिली टाइम्स किएक ? औचित्य कि एकर ? स्त्रोत साधन की ? निकलबाक आ नियमित अपडेट होइत रहत तकर गारण्टी आ उपाय की ? ककर, कतेक आ अंततः सूचना-विस्फोटक एहि विश्वव्यापी पसरल संजाल मे एकर कि हैसियत, कि संकल्पना आ बृहत्तर उद्दे’य की ? जिज्ञासा हो त तकरे सभक उपाय थिक ई प्रयास। पहिल प्रयोजन त इएह। प्रयास अछि आ संकल्प जे एहि युगीन आ विकासमान गतिशील जातिक सामान्य सूचना-चेतना के जागृत करब आ व्यवस्था तथा समय सं तर्क क सकी, सोझा-सोझी पूछि सकी जे साधारण लोकक जीवन संगे ई खेल के क रहलए, किएक क रहल आ ऐना करबाक पाछा कोन तागति ? केहन दुस्चक्र कार्यरत छैक आ एकर निराकरणप की छैक ? एहि सब बिन्दु पर अपने सं मैथिली टाइम्स निरंतर संवाद करत आ सहायता लेत, सहयोग देत। कि नहिं...एकर लक्ष्य निरंतरता मे मोटा-मोटी सोझांक समय कें एकरा वैज्ञानिक रूपें बुझबाक आ बुझयबाक तार्किक उपक्रम जेकां होयत आ तदनुरूप जानकारीक सेतु बनत। पारिस्परिक संवादक आवाजाहीक माध्यम।हमरा जनितबै आई धरि मैथिली भाषा के बड दूहल गेल। ई दोहन आनो क्षेत्र आ विभाग जकां समाजक संपन्न संभ्रांत वर्गक किछु गनल-गूथल लोक नितांत निजी अपन पारिवारिक उत्कर्ष -अभ्युदयक हित मे करैत रहलाह। से बात आब जानकारीक रूप मे देखए मे आबैत छैक। ताहि प्रकारक संभ्रांत वर्गीय मानसिकताक समानान्तर मैथिली टाइम्स जनसाधारणक विराट पक्षधरताक गप्प करत। अपन स्वर उंच करत; व्यवस्थाक कान्ह धरि उंच; से मुदा अपन पाठकक बले, अर्थात अपनेक बले। मुदा संकल्प मे ई छैक। बहुस्तरीय विभाजित संपूर्ण मैथिल समजाक वैश्विक सामाजिक आ सांस्कृतिक विकासक लेल विचारपूर्वक भाषा युद्ध करत। एखन धरिक मैथिल, मैथिली आ मिथिला केंद्रीत समक संज्ञान कें अंतर्राष्ट्रीय विचार भूमि पर ल जयबाक, प्रतिश्ठित करबाक प्रयास करत। एहिं प्रकारें मिथिला, मैथिल आ मैथिलीक इतिहास वैभव आ प्रचुर उर्वर वर्तमानक संभावना सभ सं आनो भाषा समाजकें परिचित काराओत, संवाद राखत। समाजक सर्वांगीण विकास आ प्रगतिक आजुक यात्रा मे मैथिली टाइम्स एकटा कारगर, धरगर हथियार बनत। अपने विश्वास करू, समस्त बनत मैथिल युगक एकमात्र समग्र अवाज बनत मैथिली टाइम्स। प्रगतिक बौद्धिक प्रारूप बनत आ व्यवहारिक बाट पर चलबा मे संगी। एकटा नव संकल्प आ चेतनाक नव क्रियात्मक समाज’शास्त्र गढत मैथिली टाइम्स। तथापि प्रचलित अर्थ मे एक्टिविस्ट नहि थिक ई। हां, मैथिली टाइम्स एकटा समस्त सर्वक्षेत्रीय ज्ञान बनत, इहो एकर काज होएत। कोनो घटना हमरा लोकनिक लेल वृहतर सामाजिक मानवीय उपोदयताक संदर्भ मे महत्वपूर्ण या मामूली बनत। मैथिली टाइम्स एहि दुआरे जैं कि मैथिली ; मैथिली टाइम्स एहि दुआरे जेे कि मैथिल आ मिथिला। अपन एहि समग्रता आ प्रबंधक राष्ट्रव्यापी संजाल मे प्रायः ऐहन ताना-बाना मे पहिल बेर ई उपक्रम अछि। अपन उपयोगिता कालांतर मे सिद्ध करत, तकर हमरा लोकनि कें विश्वास अछि। तैं जं मैथिली तैं मैथिली टाइम्स। मैथिली मे मिथिला आ मैथिल मात्र जे मिथिला मे रहैत छथि, सभ शामिल छथि।
- विपिन
. 9810054378

सम्भावनाशील अछि भविष्य

चारूकात अराजकता, निराशा । टूटैत सपना, आहत सम्मान ,बदलैत प्रतिमान । बिलुप्त उत्साह कुन्द उर्जा । पथभ्रष्ट सम्भावना ; मतिभ्रष्ट संज्ञान .सोच नपुँसक बाँझ लेखनी । जड़ मानसिकता ,हताश बर्तमान । तथापि विस्वाश। अपेक्षा स हारल व्यवस्थाक मारल ,संतुष्ट मन तृप्त जीवन । तमाम बिखराबक बाबजूद नहि रूकल अछि गति जीवनक। चालू अछि सफर सोच केर ,शरीर केर ,जीवन के ,आत्मा के भागि रहल छथि सब ।तेज बहूत तेज .
बिना रुकल ,बेदम.कोनो बाधा, कोनो विराम नहि । कोनो नियंत्रण, कोनो नियोजन नहि। सब किछु अस्त- व्यस्त,
अनियमित, अनियंत्रित । जिन्दगी नियोजित नहि भ सकैत अछि । निय्न्त्रितो ने। आशय छि हम सब । नियंत्रित नहि कअ सकैत छी व्यबस्था के स्वयम के ,सोच के शरीर के ,भविष्य के आ नियति के । मात्र स्वांग करैत छी नियन्त्रन्क । कालजयी बनय चाहैत छी आत्मजयी नहि बनी पाबैत छी । नियंत्रण चाहैत छी ,नियंत्रित होबय नहि । लालसा, भूख, सत्ता,इन्द्रिय किछो त नियंत्रित । स्वम पर नियंत्रण बना सकैत अच्छी कुंदन । मुदा बनि जायत छी सूरदास । बनय चाहैत छी आन्हर। ध्रित्रश्त्री मानसिकता हावी रहैत अछि-विचार पर ,भावना पर ,मस्तिष्क पर आ सत्ता पर । अन्तरक अन्हाड़ ,बाहरक प्रकाश के लील जायत अछि । अन्हाड़ गली के यात्रा में ,भ्त्क्वे भटकाव अछि ।
भटकाव खोजक शुरुआत अछि । यात्रा अछि जटिल । दर्द अछि एही में प्रसव पीडा के । भटकाव-माया,मोह,सत्ता आ सुरक्षा लेल । रहय चाहैत छी शीर्ष पर । सहारा लेत छी- साम, दाम ,दंड ,भेद सभक । तथापि भटकाव केर अंत सृजन अछि । स्वागत-नव आगमन ,नव विचार नव व्यबस्था के। नव आगमन शकुन अछि । अपना स अ लडैत आदमी, अपने भीतर पाबैत अछि,नव देह ,नव अस्तित्व । नव उम्मिदक सुगबुगाहट । नव सम्भावना केर सूत्रपात। जिज्ञासाक नव अध्याय सम्भावना आ सम्भाव्य के बीच ,भुत रास आस । अपेक्षा भविष्य सअ ।
कालक प्रवाह अछि भविष्य। भविष्य अकल्पनीय होइत अछि, अनिश्चित । बहुआयामी भविष्य मायावी होइत अछि । अपन मधुर परिकल्पना में आशावादी होइत अछि भविष्य । सम्भावनाशील । भविष्य सपना अछि सुखद । योजना केर बिज नुकायल रहैत अछि भविष्य में । अपेक्षित उम्मिदक जरैत दीया अछि भविष्य । भविष्य सम्बल अछि । भविष्यक सुखद परिकल्पना बनबैत अछि सक्रिय आक्रियशील ।
तें आवश्यक अछि नव प्राथमिकता । वैकल्पिक प्रतिमान । तोड़य पड़त जड़ता -स्वंम समाज और व्यबस्था केर । ताकि अक्षुण्य रही सकय ,अतीत ,संस्कृति,भाषा आ समस्त धरोहरी । अन्यथा लील जायत अस्तित्व समाज आ स्वम के ।

मंगलवार, जनवरी 27

पूजा ककर

ई कोनो नव गप्प नै
हमर रंडी के पूजित रह्लूँ हम
जन जन्मान्तर स
हुनक नाम बदैल बदैल
कहियो नगरवधू के रूप में पुजलों
त कखनो देवदासी बना क
अओर कहियो
इन्द्र सभाक नर्तकीक रूप में
वेश्या के कियक
हम त बलात्कारी के सेहो पूजा कायल
अहाँ संसद पठेबक गप्प करैत छि
हमर पूर्वज सभ त
एक संतक साध्वी स्त्रीक बलातकारी
बदमाश इन्द्र के देव्लोकाक सिन्हासहन सौपलांह
जे से ,
ध्यान देबाक इ जे
जे संस्कृतिक आदि व्यंग्यकार
महामुनि नारद सेहो
विरोध नहीं कयलाह
बलात्कारी इंद्रक ताजपोशी पैर ?

सुभाष चन्द्र

शुक्रवार, जनवरी 23

जीवन यात्रा

जीवन यात्रा अनंत ,अपरिमित , असीमित ,जीवन अवधि लघु ...लघुत्तर । आयाम वृहत ,परिणाम सिमित . कलजेयी चुनौती समय साक्षेप साधन । तथापि भागी अछि मन पता नहि कत। अभिमन्यु के चक्र भेदन वा अर्जुन के माछक आंखी, कोनो क्षमता टी नहि अछि हमरा।

गुरुवार, जनवरी 22

एक पैघ अन्तराल के बाद अहाँ सभक समक्ष अबैत हमरा अपर हर्ष भ रहल अछि। मैथिलि टाईम्स पत्रिका के अहाँसभक असीम स्नेह आ सहयोग भेटल छल वैह स्नेह शक्ति बनि फेर स हमरा अहाँ के सम्मुख प्रस्तुत केलक अछि। हाँ, ई उपस्थिति अहि रूप में नव जरुर अछि जे आब पत्रिका नहिं अपितु इन्टरनेट ब्लॉग के मध्यम स अपना सभक बीच सम्वाद।