शुक्रवार, सितंबर 18

जो रे कलंकियाहा!

दिल्लीक भगम-भागी जिनगी मे सदिखन सभ किओ अफस्यांत रहैत अछि। एखन तऽ अवश्ये, चुनावक बाजार जे गरमायल छै। सभकें पड़ाहि लागल छैक। अखबार आ चैनल वला सभ नेताक साक्षात्कारक लेल दौडि़ लगा रहल छथि। भला एहन स्थिति मे हम कोना पाछा रही, आखिर हमहूँ तऽ एकगोट पत्रिका सँ जुड़ल छी। कखनो काल चन्द्रशेखरकट खुटिआयल दाढ़ी सेहो रखैत छी, तैं अपना केँ पत्रकार-मानवा मे कोनो असोकरज नहि।
अचानक एतेक ने धरफरी भऽ गेल जे भोर होबाक धैर्य नहि रहल, झटपट चट्ïटी पहिर-बिदा भेल, जे आइ कोनो-ने कोनो महापुरुष केँ जरूर ताकि लेबैन्ह, हुनका सँ दू टप्पी गप्प कए ओकरे साक्षात्कारक रूप मे तैयार कऽ लेब। डेग बढ़ौने जाइत रही, यमुनाक कछेर मे पहुँचल तऽ एकगोट बूढ़ दुरहि सँ देखवा मे अयला, हाक देलयन्हि कथी लेऽ सुनताह। डेगक नाप बढ़ावैत लग पहुँचल तऽ देखल जे कक्का नेहरू मन्हुआयल टहलैत छलाह। कुशल-क्षेम पुछलाक बाद, बाजलाह-रे पत्रकार-हम तऽ बुढ़ारी मे एहि धारक कात मे छी तऽ तौं कथी लेल टौआइत छÓ तोरा कोन विपति कपार पर आयल छ? हम बजलौ-विपतिक कोनो सीमा छै, यौ कक्का, बुझना जाइछ जे सभक सोच चालनि भऽ गेल छै, सभक भिन्ने बथान, किओ सोझेँ मुँहे गप्पे नहि करैत छै! बड़Ó झमारल छी, शान्ति तकबा लेल अहाँक शान्तिवन दिश्ï अवैत रही कि अहाँ पर नजरि पड़ल। संगहि आकांक्षा छल जे अपन पत्रिका मैथिली टाइम्सक लेल अहाँक साक्षात्कार लैतौं!
बाजि उठलाह-'हमरा सँ साक्षात्कार! हमरा लग-वाँचले कि अछि, किछुओ तऽ नहि। कहै छÓ अपना केँ पत्रकार आर एतबो नहि ज्ञात छÓ जे शान्विनक शान्ति आब खत्म भऽ गेलै।Ó हम अकचकेलौ! मौन में तऽ बड़ऽ 'किछु फुड़ायल, लेकिन एकटा गप्प मौन पड़ल जे बेर पड़ैÓ तऽ गदहो के बाप कहि, 'आखिर हमरा तऽ हुनक साक्षात्कार चाही। झट सँ हम कागत निकालल, पेनक ठप्पी खोलि प्रस्तुत भेलौं इंटरभ्यूक लेल। कहलयन्हि कक्का चुनावक बाजार गर्म छै, सब कथूक भाव तेजी सँ बढि़ रहल छै, एहि संदर्भ मे अहाँक विचार सँ अवगत होमय चाहैत छी। कहलाह-बुरि कहाँ के। सत्ते मे तौं पत्रकार छह 'अधकपारी! हौ हमर उमरि नहि देखैत छह, चलऽ छाहरि मे बैसि गप्प-सरकक्का करब। तोहर सभक तऽ एकमात्र सिद्धान्त भऽ गेल छह 'हम सुधरेगें, जग सुधरेगा; न सुधरेगें न सुधरने देंगें।Ó मौन मे आयल ठोकल जबाव दियैन्ह, लेकिन हड़बड़ी मे कोनो गड़बड़ी ने होअए आ प्रथम ग्रासे मक्षिकापात: नहिं भऽ जाए तेँ पुन: दाँत निपोडि़ हंसी के रहि गेलहुँ।
हमर पहिल प्रश्र छल-अहाँक कांग्रेस पार्टी मे सभकेँ ऐना पड़ाहि कियैक लागि गेल छै? तहि पर कहलाह-हौ, आबक लोक अपना केँ बेसी एडवान्स बुझैत अछि। किओ गाय-महीस तऽ छै ने जकरा खूँटा मे खुटेंस कऽ राखल जा सकए। सभक-अपन सोच छै, ककरो तऽ बाध्य नहि ने कएल जा सकैए छैक।
हम पूछलयन्हि-सुनबा मे अबैत अछि जे नेतृत्वक कारणेँ सभ पार्टी छोडि़ रहल छथि, कि आहाँ नेतृत्वक कमजोरी मानैत छी? बजलाह-जदि नेतृत्व कमजोर पडि़ रहल छैक तऽ बाकी नेता सभ हिजड़ा छथि कि, किओ आगाँ बढि़ कऽ कमान सभालि लैथि। ई तऽ प्रजातन्त्र छै ने, जनता-जनार्दनक ध्यान तऽ अवश्ये राखय पड़तैक नहि तऽ कोपक सामना करबाक लेल तैयार रहथु।
हमर अगिला प्रश्र छल-कक्का! अहाँक कांग्रेस आई विपक्ष मे रहलाक कारणे सभ कथूक विरोधे टा करैत अछि, चाहे भारत-उदय हो अथवा राजगक एजेंडा? ऐना कियैक? चोट्टïे जबाव देलाह-विपक्षक काज छैक आलोचना केनाय, एकर मतलब ई नहि जे सभ कथूक विरोध कयल जाए। विरोधक लेल विरोध कयल जाए। जहाँ धरि हमर व्यक्तिगत सोच अछि-भारत उदयक विरोध नहि होबाक चाही। भारत निरंतर विकासक पथ पर बढि़ रहल अछि, एहि विकास क विरोध कियैक। कांग्रेसक शासनकाल मे जहन भारत पर्व आ मेरा भारत महानक नारा देल गेल छल तऽ विपक्षी दल एकर विरोध नहि कयलक। ओना चुनावक समय छै, एक-दोसरा पर छीटाकांशी तऽ चलितै रहैत छै।
पूछलयन्हि-विपक्षी सभ निवर्तमान अध्यक्ष सोनिया गाँधी, केँ प्रधानमंत्रीक रूप मे विरोध कय रहल अछि! आ किछु बरख पूर्वहि कांग्रेस सेहो विदेशी मूलक सवाल पर टूटि चुकल अछि, कियैक नहि अहाँ सब संविधान मे एहि सँ संबंधित कोनो प्रावधान केलयहिं? कक्काक मौन विखिन्न भऽ गेलैन्ह, कहलैन्हि-हौ, कि बुझैत रहहिं जे एहनो समस्या ऐतै, सेहो हमरे खानदान मे। नहि जानि पूर्वजन्म मे कोन चूक भेल जे सभ कलंकियाहा एहि पार्टी आ हमरे खानदान मे आओल। जहन बेटी आन जाति आन धर्म मे वियाह कयलक तऽ कतेक-उठा-पठकक बाद मामिला शान्त भेल। कोहुना कऽ त्राण पओने छलौं। ई कलंकियाहा आन जाति आ धर्म के पूछय, विदेशीये के उठाकऽ लऽ अनलक। तिधर्मीए सऽ बियाह करबाक छलै तऽ कय-स-कए इन्दु जकाँ देसे मे करिता। कि बुझैत रहियै जे ओ पुतोहु राजनीति मे आओत आर एहि समस्या सँ जनता केँ जुझय पड़तैक। जे-से। जहन पुतोहु बनि गेल तऽ ओकर अधिकारक विरोध मे तऽ हम नहि ने किछुओ कहब आखिर हमरे खानदानक अछि ने।
तहन जनताके अहाँ कि कहै छियैह जे सोनिया के प्रधानमंत्री बना दै? हम तऽ सेहो नहि कहलियह। हाँ जनमत के अपन महत्व छैक, सभटा रिमोट तऽ जनता लग छैक, जनता विवेक व बुद्धि सँ निर्णय लिअय तऽ सबटा तसवीर ओहिना सामने आबि जेतै। बुझना मे आयल जे कक्का केँ एक दिश अपन खानदान तऽ दोसर दिश्ï राष्टï्र प्रेम खिचि रहल छन्हि। एहि ऊहापोहक स्थिति मे हमर अगिला प्रश्र छल-सोनिया गाँधी किछु दिन पूर्वहि बजलीह जे उपप्रधानमंत्री-आडवाणी जी एकटा औरत सँ डरि कऽ फेरो रथ-यात्रा आरंभ कय रहल छथि। कि जनताक लेल ओ-मात्र एकटा औरत छथि, आर किछु नहि? ताहि पर कहैत छथि जतय धरि औरतक गप्प छै तऽ सोनिया अवश्ये औरत छथि। एकरा अलावे कांग्रेस अध्यक्षा आ भवी-प्रधानमंत्री सेहो छथि। हौ! तोरो सभ केँ कि कहियौ, तहूँ सभ पत्रकार ने बेमतलब के तिलक-तार घींचैत रहैत छह। ऐना कहूँ भेलै यै। हमरो बेटीतऽ महिला रहैत प्रधानमंत्री आ पार्टी अध्यक्ष छल। बेचारी सोनिया लग राजनीतिक अनुभव थोड़ेक कम छै, ताहिं तहूँ सभ रहि-रहि कऽ उकट्ïठि करैत रहैत छह। जा, आर किओ नहि छह! आई-काल्हिं एतेक जे घोटाला पर घोटाला भऽ रहल छैक, मार-काट ताहि पर कथीक लेल नहि ध्यान दैत छहक। हमर खानदान मे आन जाति, विदेशी सँ वियाह कि कयलक तौं सब सदिखन चर्चाक बाजार गर्मोने रहैत छह। कि दोसरो पार्टी सभ मे दुर्गुण नहि छै कि? आन सब दूधक धोल छथि आ कि गंगाजलक बोतल उठाकऽ सप्पत खेने छथि। तहूँ सब आब नेता जकाँ चाटुकार भऽ गेल छह। हमरा लग आब तोरा सन-सन चाटुकर लोकक लेल फुर्सति नहिं अछि। सभ केँ चीन्हि लेल।
एतबे मे हमर निन्न टूटि गेल मुदा एतबेऽ संतोष अछि जे सपने मे सही पत्रकार जकाँ केकरो साक्षात्कार तऽ लेल। सेहो कक्का नेहरू सन महापुरुष केर।

शनिवार, सितंबर 12

मंहगाई

आई बडकी काकी’क आयु सौ वर्ष पुर्ण भ’ गेलन्हि.बडकी काकी के पोता दरिभंगा सं आयल छैन्हि आ जल्दी जयबाक हेतु तैयार भ रहल छैन्हि..काकी दौडि कय गुड्डू’क दोकान जा दू लीटर सरिसो तेल आ पांच किलो चाउर कीन अनलीह सनेस भेजबाक लेल. पोता कहलकन्हि"दाय,एतेक सौख छौ त’ पाईये कियेक नै भेज दै छहुन्ह बेटा के?"काकी बजलीह "हौ, गुड्डू के दोकान कोनो दूर छैक.पोता तमसा गेलन्हि आ कहय लगलन्हि"तू बूढ भ’ गेलैंह,बुधि नहि काज करैत छौ.आब कियो मोटरी भेजैत छै?""बुधि त’ लोकक नै काज करैत छैक?"- काकी बाजय लगलीह-"जहिया लोक मोटरी सनेस भेजैत रहय,हम पाई भेजैत रही,आब हम पाई के बदला मे मोटरिये भेजैत छी.कारण जे आब त’ जतेक भारी मोटरी ओतबे भारी पाई.देखै नै छहक कते मह्गाई बढि गेलैक.मोटरी ल’ जा ई पाइ स हल्लुक पडतह."

- अरविन्द झा
बिलासपुर

शुक्रवार, सितंबर 11

जीवन मे खेल-कूदक महत्त्व

खेलकूदक इतिहास प्राय: ओतबै पुरान अछि जतेक मानव सभ्यता। आदि कालहि सँ खेलकूद मानव जीवनक एकटा अभिन्न अंग रहल अछि। समय प्रवाह मे एकर रूप आ प्रकार मे परिवर्तन होइत रहल अछि आ एकर वर्तमान स्वरूप विस्मयकारी ढंगे विपुल तथा बहु आयामी भऽ गेल अछि। खेलकूदक प्राचीन परम्परा मे एथलेटिक्स खेलक बड़Ó महत्वपूर्ण स्थान छल आ एकर उद्ïगम प्राचीन मिस्रक सभ्यता मे भेटैछ। एथलेटिक्स शब्दक शाब्दिक अर्थ होइछ 'इनामक खेल प्रतियोगिताÓ आ एहि तरहेँ प्रतियोगिता भावनाकेँ आरोपित करैछ। खेल मे बहुत रास खेल सभ सम्मिलित कएल गेल अछि जेना विविध प्रकारक दौड़-कूद, मुक्केबाजी, कुश्ती, गोला फेंक, भाला फेंक, तलवार बाजी, भारोत्तोलन, तीरंदाजी, विभिन्न प्रकारक तैराकी आ शारीरिक व्यायाम संगहि मैदान मे खेलबा योग्य खेल जेना क्रिकेट, हॉकी, फुटबॉल, हैण्डबॉल, टेनिस अछि।
स्वस्थ जीवनयापनक हेतु आवश्यक शर्त सभ मे खूलकूद एकटा विशिष्टï स्थान रखैत अछि। खेलकूद तऽ मनुष्य मात्रक लेल बड़Ó महत्वपूर्ण होइछ, मुदा अवस्था आ मनेवृत्तिक अनुसारेँ ओकर रूप बदलि जाइत छैक। यथा बाल्यावस्था सँ किशोरावस्था तक लोक सक्रिय आ प्रत्यक्ष रूपे खेलकूद मे भाग लैत अछि। एकरा बादक अवस्था मे किछु व्यक्ति एकटा योगासनक रूप मे तथा किछु भोर-सांझ टहलवाक रूप मे अपनबैत छथि। रूप एकर चाहे किछुओ होइहि किन्तु एकर उद्देश्य आ परिणाम एक्के होइत छैक। जेना मशीन वा कोनो यंत्रकेँ सुचारू रूप सँ चलयबाक लेल समय-समय पर ओकर झाड़-पोंछ, तेल-पानि इत्यादिक जरूरत होइछ ततबे यंत्र रूपी एहि मानव शरीर केँ स्वस्थ, सुन्नर, सुडौल, मजबूत एवं दीर्घायु बनएवाक हेतु खेलकूद आवश्यक होइछ।
छात्र लोकनिक बहुमुखी व्यक्तित्वक विकास मे खेलकूद बड़Ó विशेष महत्व छैक। कहल गेल अछि जे— च्च्स्शह्वठ्ठस्र द्वद्बठ्ठस्र द्बठ्ठ ड्ड ह्यशह्वठ्ठस्र ड्ढशस्र4ज्ज् अर्थात्ï स्वस्थ मनुष्ये सँ मानसिक आ बौद्धिक प्रौढ़ताक अपेक्षा कएल जा सकैछ। खेलला कूदला सँ शारीरिक व्यायाम होइछ जाहि सँ मांसपेशी कडग़र, हड्डïी चौडग़र आ सुसंगठित बनैत अछि। एहि सँ शरीरक प्रत्येक भाग मे होमय वला रक्त संचार सेहो नियंत्रित होइछ, जे रक्त चाप आ हृदय गति केँ नियंत्रित करैत अछि। खेलकूद मनुष्य मे एकटा जागृति जगबैत अछि जकरा द्वारा हमरा लोकनि एक दल, एक समूह मे रहि कोनो खास उद्देश्यक पूर्तिक हेतु अनुशासित ढंगे प्रयास करबाक कला सीखैत छी। खुलल वातावरण तथा स्वच्छ वायु मे खेलकूद शरीर मे स्फूर्ति दैछ, शरीरकेँ तन्दुरूस्त बनबैछ आ मुखमंडल पर आभा जगबैछ जाहि सँ प्रभावशाली व्यक्तित्वक निर्माण मे सहायता भेटैत छैक। बन्द कोठरी मे बैसि निरन्तर विद्याभ्यासये रत रहला सँ शरीर कमजोर भऽ जाइछ आ खसि पड़ैछ जे आगा पुन: अध्ययन कार्य मे बाधा उपस्थित करऽ लगैत अछि, ताहिं एकर निवारणक लेल खेलकूद बड़Ó आवश्यक भऽ जाइछ।
विभिन्न खेलक लेल स्थापित किछु खास नियम सभ केँ अनिवार्य रूपेँ पालन करबाक अभ्यास जीवनक कोनो क्षेत्र मे विकास, उन्नति ओ प्रगतिक मार्ग प्रशस्त करैछ। ई क्रीड़ा परस्पर सहयोग आओर नियमक प्रति सजगता बढ़बैछ, आत्म नियंत्रणक कला सीखबैछ, सभक हित मे आत्म त्याग, करबाक भावना जगबैत अछि। संगहि उत्थान-पतन, हार-जीत आदि मे स्थित प्रज्ञ (निष्काम कर्मयोगी) बनबाक नैतिक शिक्षा सेहो प्रदान करैत अछि। विभिन्न खेलक क्रम मे खान-पानक संदर्भ मे घोषित आ निर्धारित नियमक पालन कएला सँ आत्म संयम आ कठोर इच्छा शक्ति विकसित होइत अछि। जे जीवन मे सतत्ï कोनो ने कोनो रूपेँ लाभकारी सिद्ध होइत रहैछ। क्रीड़ा मनुष्य मे अदम्य साहस, उत्साह तथा धैर्य प्रदान करैत अछि। एहि सँ हमरा लोकनि केँ विकट सँ विकट परिस्थिति मे अंत समय धरि पूर्ण लगन, निष्ठïा आ उत्साह सँ कार्य करैत रहबाक प्रेरणा भेटैत अछि। एकटा नीक खेलाड़ी सतत सजग एवं सतर्क रहैत अछि। एहि तरहेँ ई अनुकरणीय चरित्र निर्माणक मार्ग प्रशस्त करैछ। दू वास्तविक खेलाड़ीक बीच सतत स्वस्थ एवं लाभकारी प्रतिस्पर्धाक भावना देखबा मे अबैछ चाहे ओ जीवनक कोनो क्षेत्र वा शास्त्रक कोनहुँ विधा हो।
हिन्दू दर्शन मे कहल गेल अछि—आत्मा वा अरे द्रष्टïव्य: अर्थात्ï अखिल विश्व मे आत्मा सँ साक्षात्कार करब इएह टा एकमात्र दर्शनीय वस्तु थीक। मुदा एकरो चरितार्थ करबा लेल पूर्णरूपेण शरीर सँ स्वस्थ होयब अनिवार्य थीक। आ एहि हेतु खेलकूद व्यायाम आ योगासन आवश्यक अछि। स्वस्थ शरीर खाली कार्यक परिणाम आ मात्रे टा नहि अपिक ओकर गुणात्मकता के सेहो परिवद्र्धित आ परिष्कृत करैछ। कमजोर आ अस्वस्थ व्यक्ति कोनो कत्र्तव्यक निर्वाह नीक जकाँ नञि कऽ सकैत छथि। किएक तऽ ओ सर्वदा दोसर दिस एकटा पूर्ण स्वस्थ व्यक्ति असंभव आ असाधारणो कार्य केँ अपन आत्मबल सँ संभव आ सुलभ बना दैत छथि। खेलक क्षेत्र मे हम परस्पर सहयोगक भावना सँ प्रेरित भऽ अपन व्यक्तिगत अस्तित्वकेँ दलक अस्तित्वक संगे जोडि़ लैत छी। खेल समाप्त भेलाक बाद दू दलक खेलाड़ी परस्पर ओहि सौहाद्र्र सँ मिलैत छथि जेना निकटतम मित्र। जीवन सेहो एकआ पैघ खेल क्षेत्र थीक आ एहि हेतु हमरा लोकनि खेलक आदर्श सभकेँ आत्मसात कय ली बड़ जीवन बड़Ó सुखी आ गरिमामण्डित भऽ जायत।
एखनुका समय मे खेलकूद प्रांतीय आ राष्टï्रीय सीमा-परिसीमा केँ लाँघि अंतर्राष्टï्रीय स्तर पर स्थापित भऽ चुकल अछि। कोनो मान्यता प्राप्त खेलक खेलाड़ी अपन व्यक्तिगत क्षमता, प्रतिभा आ प्रदर्शन सँ सगरो ख्याति पबैत छथि आ ओ जाहि देशक रहनिहार छथि तकर प्रतिष्ठïा सेहो बढि़ जाइछ। ई क्रीड़ा आब मात्र एकटा मनोरंजक साधन आ स्वस्थ जीवनक कुंजीए नहि रहल अपितु ई व्यावसायिक रूप सेहो प्राप्त कऽ चुकल अछि। विविध खेल मे बहुतोक एहन प्रतिभावान खेलाड़ी छथि जे खेलक बलेँ विविध सेवा मे नीक स्थान प्राप्त कयलनि अछि। खेल मे विशिष्ट ख्याति प्राप्त आ प्रमाण पत्र प्राप्त व्यक्ति केँ नौकरी मे एहि आधार पर अतिरिक्त अंक सेहो भेटैत छैन्हि। टेनिस, मुक्केबाजी आ फुटबॉल व्यावसायिक आ आर्थिक दृष्टिïएँ सभसँ लाभकारी खेल अछि जकर विजेता अत्यल्प समय मे विपुल धन राशिक स्वामी बनि जाइत छथि।
मुदा 'अति सर्वत्र वर्जयेतÓ तेँ सामान्य व्यक्ति केँ खेलकूद आ व्यायाम मात्र स्वास्थ्य प्राप्तिक उद्देश्य रखबाक चाही। अत्यधिक खेलकूद आ व्यायाम सेहो शरीरक लेल हानिकारक भऽ जायत आ विविधि प्रकारक असंतुलन आ रोग केँ आमंत्रित करत संगहि 'शरीर माध्यम खलु धर्मसाधनम्ïÓ केर जे हमरा लोकनिक मूल मंत्र अछि, से विफल आ अप्रासंगिक भऽ जायत।

मंगलवार, सितंबर 8

चौंसठ कला

किछु गप्प ऐहन होइत छैक जकरा बारे मे कतेक बेर कतेको आदमी सँ सुनैत छी, मुदा ओ गप्प आखिर छै कि आ कियैक बाजल जाइत अछि। एकर तह मे जयबाक कोनो विशेष प्रयोजन नहि बुझैत छियैह। ऐहने एकटा सुनल जानल शब्द अछि 'चौंसठ कलाÓ, जे बहुत पहिनहिं सँ सुनबा मे आबि रहल अछि। लेकिन बहुत कम लोक केँ एकर अवगति छैन्हि जे सरिपहुँ ई चौंसठों कला होइत छै कि?
कहल जाइछ जे अजुका समय मे यदि एहि चौंसठ कला मे सँ नारी मे बीसोटा भेटि जाय तऽ ओ नारी गुणी छथि। जँ किनको मे चौंसठों कला हेतैन्ह तऽ नि:संकोच ओ पद्ïमावती सदृश हेतीह, जिनक गुण आ रूप-लावण्य पर साधारण मनुक्खक कोन कथा देवता सेहो मोहित होबाऽ सँ नहि बँचि पबैत छथि। जकर सीथ मे मोती हुअए, मुंह चन्द्रमा केर समान होइ, भौं धनुष जकाँ प्रतीत होइहि, जे अपन नयनाक कटार सँ जगत्प्राणी के घायल करैथ, जिनक लाल-लाल ठोर रस सँ भरल होइन्हि, ऐहन स्त्री जँ चौंसठों कला सँ परिपूर्ण होथि तऽ हुनका लेल पुरुष भेटब दुर्लभ जे हिनक वरण कए पबथिन्ह। ऐहन सुंदरी या तऽ स्वयंवर रचा अपन पति स्वयं पसिन्न करतीह अथवा दुष्यंतक शकुंतला वा कृष्णक राधा हेतीह। भऽ सकैछ फेर सँ सिंहल द्वीप बनै वा दुबारा राजा रत्नसेनक जन्म होइन्हि।
आई-काल्हिं जखने लड़कीक गुणक चर्चा होइत अछि सहजहिं सभक ठोर पर चौंसठ कला आबिए जाइत अछि, कारण पुरनका समय मे चौंसठों कला सँ परिपूर्ण स्त्रीये सर्वगुण सम्पन्न मानल जाइत छलीह। आखिर ई चौंसठों कला अछि की? जे मन के उद्वेलित कय रहल अछि। जँ पड़ताल कएल जाय तऽ साहित्य संस्कृति मे चौंसठ कलाक परिचय एहि प्रकारेँ भेटैत अछि :

गायन
वाद्य विद्या
नृत्य कलाक ज्ञान
नाट्ïयकलाक ज्ञान
चित्रकारी केनाय
बेल-बूटा बनायब
चाऊरक आँटा आ फूल सँ रंगोली (अरिपन) बनायब
रंग-बिरंगी पाथर सँ फर्श सजेनाय
मौसमक हिसाबे कपड़ा पहिरबक ज्ञान
समय आ ऋतुक हिसाबे शैय्या रचनाक ज्ञान
जलक्रीड़ा जानब
जलतरंग बजेनाय
पुष्पाहार आदि बनायब
वेणी बनेनाय
सुगंधित द्रवक ज्ञान
विभिन्न प्रकारक कपड़ा लत्ता पहिरबक ज्ञान
फूलक आभूषण बनाऽ पूरा देह के सजेबाक ज्ञान
इंद्रजालिक योग में निपुण
सौंदर्यवद्र्धक वस्तुक ज्ञान
नबका-नबका व्यंजन बनायब
सिलाई मे निपुणता
कईक प्रकारक शर्बत आ आसव बनाय
कढ़ाई मे निपुणता
कठपुतली बनायब आ ओकरा नचायब
वीणा आ डमरू बजेनाय
मुरूत बनेनाय
ग्रंथक ज्ञान
नाट्ïय सिनेमाक अवगति
कूटनीति मे दक्षता
पटिया गलीचा आदि बनायब
विभिन्न समस्याक समाधान केनाय
घर-निर्माणक जानकारी
बढ़ईक थोर-मोर काजक ज्ञान
रत्न चिह्नïनाई
मणिक रंग बुझनाय
बागवानीक शौक
पौधा सभक जानकारी
मुर्गा तीतर के लड़ेनाय
तोता-मैना के पढ़ेनाय
पक्षी-पालन
बहुभाषी होयब कम सँ कम दू भाषाक ज्ञान
इशारा सँ बातचीत करब
नबका-नबका बोली निकालब
नीक-बेजायक पहचान
काव्यके बुझबाक शक्ति
स्मरणशक्ति नीक
पहेली बुझायब
सांकेतिक भाषा मे गप्प केनाय
मन मे कटक रचना केनाय
समस्त कोषक ज्ञान
छंद ज्ञान
वेदक ज्ञान
खिलौना निर्मित केनाय
चौसर आ ताश खेलनाय
बच्चाक खेलक ज्ञान
उबटन आ मालिशक ज्ञान
घरक साफ-सफाई केनाय
पैघक आदर आ सम्मान
आज्ञाकारी
मधुर व्यवहार
मृदु व मितभाषी
छन्दबद्ध रचना केनाय
मितव्ययी
अस्त्र-शस्त्र ज्ञान

सोमवार, सितंबर 7

अभिव्यक्ति

अभिव्यक्ति
सुखायल पात जका
हुनका लोकनिक गप्प
उरैत अछि स्वतन्त्र आकाश मे,
छू लैत अछि
गगनचुम्बी महल के,
सैट जाइत अछि
खुब पैघ पोस्टर स’,
तेज चलैत अछि
कार के काफ़िला के सन्ग.
मुदा हमर सभहक बात
पानि मे फेकल पाथर जका
डूबि जाइत अछि,
विलीन भ जाइत अछि,
ओहि मे वजन होइत छैक
तैयो स्तित्व नहि।
किछु साल बाद
माटिक गादि मे दबि
भुमिगत भ जाइत अछि
एहन अभिव्यक्ति के कि अर्थ?


- अरविन्द झा
बिलासपुर
09752475481

शुक्रवार, सितंबर 4

रस्ता

आदमी
विचार सँ पैघ होइत छै
वैभव आ अभिमान सँ नहि
जनैत छी
विचारक फुनगी पर
आदमीक प्रवृति टाँगल रहैत अछि
आ ओकर प्रारब्ध
कर्मक गति तकैत अछि
तत्पश्चात्ï
आदमी, आदमी बनैत अछि।
हम अहाँक उपदेशक नहि
हम त मानधन छी
हमर औकात तऽ
एकटा चुट्टी सन अछि
जकर मालगुजारी
हम अपन शब्दक रूप मे अभिव्यक्त करैत छी।
हमर बात मानब त सुनू
अहाँ अपन मनोवृति के बदलु
एहिठाम अहाँ के सभ किछु भेटत
जकरा अहाँ प्राप्त कए सकी
मुदा भाई लोकनि
रस्ता दूटा अछि
पहिने आश्वस्त भए जाउ
जे कोन रस्ता कतए जाइत अछि।


—सतीश चंद्र झा
9810231588

गुरुवार, सितंबर 3

बाढि़ बनाम जल प्रबंधन

जल जीवन अछि। जीवन अछि जल। व्याप्त अछि बरोबरि प्रकृति मे, पृथ्वी पर, हमरा-अहाँ केँ शरीर मे। एकर बिना जीवनक नहि भऽ सकैत अछि कल्पना। मुदा जल मचा दैत अछि त्राहिमाम—न्यून उपलब्धता मे आ अपन अधिकता मे। 'अतिÓ—आनैत अछि विपत्ति। कमी वा बेसी, सुखाड़ वा बाढि़ होइत अछि प्रलयकारी।
प्रलय अनिष्टï सूचक अछि। रोंइयां ठाढ़ भऽ जाइत छैक, देह सिहरि जाइत छैक सोचला मात्र सँ। मानवीय होय वा प्राकृतिक- होइत अछि ई विनाशक। तैँ आवश्यक अछि प्रतिकार। सोचय पड़त विकल्प, ताकए पड़त समाधान। भागीरथी प्रयासक करए पड़त संधान। सुरक्षा लेल आवश्यक छैक-श्रम, स शक्ति, संपत्ति आ सामथ्र्यक प्रबंधन।
प्रबंधन जटिल होइत छैक अपना वृहत स्वरूप मे। ऊर्जा आ बहुत रास सामूहिक प्रयासक समन्वय अछि प्रबंधन। वृहत योजना आ गंभीर चिंतन। दूर दृष्टिï आ व्यापक अध्ययन। तखने कल्याणकारी आ सटीक भऽ सकैत अछि प्रबंधन। रोकल जा सकैत अछि क्षय संपत्ति, माल आ जानक।
प्रतिवर्ष सैकड़ो जान आ करोड़ोंक संपत्ति स्वाहा। जल-जमाऊ के असरि रहैत अछि कतेको दिन। बाधित परिवहन आ पंगु जीवन। बीमारी-महामारी मँगनी मे, सँपकट्टïीक विशेष उपहार। दंश झेलैत छी चुपचाप। अभिशप्त जेना विधवा प्रलाप। मुखर अपेक्षा, मौन सरोकार। आत्मसात जेना संस्कार। भविष्य निर्धारित कऽ सकैत अछि वर्तमान। वर्तमान बुझबा लेल देखए पड़त अतीत।
अतीत मे स्व. डॉ. लक्ष्मण झा देखौलन्हि वेभेल परियोजनाक प्रारूप। बाढि़ पर गंभीर मनन। समाजक गहींर चिंतन। बुझि नहि सकल अज्ञानी मन, तैं नरकीय बनल रहल जीवन। फेर सँ उठल अछि आवाज। नव आगाज। नव सुगबुगाहट। नव सूत्र। नवीन अध्याय। डैम आ पनबिजली! स्थायी निदान? बाढि़क समाधान? नव शुरुआत?
शुरुआत सँ जुड़ल अछि अंत। निर्माण सँ विध्वंस। डैमक निर्माण आ कि लाखो-करोड़ोक विस्थापन। भूमिक अधिग्रहण। खतरा मे पर्यावरण। कतेको आपदा-विपदा केँ आमंत्रण। की तैयार छी? उद्वेलित भावना, सहि सकत आर्थिक/अस्तित्ववादी प्रताडऩा? सुरसाकेँ मुंह जेंका पसरल समस्या। अस्तित्वक कतेको यक्ष प्रश्न। बहुत रास चिंतन। अनवरत मंथन। वैचारिक मंदारक अछि प्रयोजन। अमृत? विष? वा दुनु? पचा सकब? तैं डेग बढ़ौला सँ पहिनेए लेमय पड़त निर्णय। अपना लेल, भविष्य लेल, पीढ़ी दर पीढ़ी लेल। स्वागत, प्रत्येक कल्याणकारी निर्णयके।