भाव-भेस भासा जनिक, अवनति ओ मलान।
दे’ा तथा जाति अछि, जग मे मृतक समान।।
जय मिथिला, जय मैथिल, जय मैथिली
बहुत अजगुत लागि सकैत अछि मिथिलांचल सं इतर दूर-दराज देस-भेस अर्थात अमैथिल प्रांत मे अनचिन्हार लोक आ भासा सं जुडल लोकक मुंह सं मिथिला, मैथिल आ मैथिलीक स्तुति - वंदना सुनि। मुदा ई अक्षर’ाः सत्य अछि जे आजुक तिथि मे अमैथिल मानल जाय बला लोक आगरा, मथुरा, राजस्था आ महारास्ट्र कें विभिन्न भाग समेत दे’ाक दोसरो कएकटा भाग मे मैथिलीक उत्थान आ प्रचार सहित अपन मातृभासा केर गुणगान क रहल छथि। हं, ई अव’य अछि जे एहि मैथिल समुदाय मे अधिकां’ा लोकनि अपन नामक संग ’ार्मा, वत्स, भारद्वाज आदि उपनाम लगाबह लगलाह। हुनक बोलचाल मे मैथिली भासा पर सेहो स्थान आ कालक प्रभाव स्पस्ट देखल जा सकैत अछि। बावजूद तकर मिथिला आ मैथिली हुनक हृदय स्थली मे बास करैत छन्हि। मैथिल होएबाक गर्व हिनक चेहरा पर स्पस्ट देखल जा सकैत अछि। एकर सब सं पैघ उदाहरण अछि ब्रजस्थ मैथिल मे बहुतो रास लोक अपन नामक आगू मैथिल उपनाम जोडब प्रारंभ कएलनि अपितु अपन सामुदायिक परिचय के क्रम मे प्रचार-प्रसार मे सेहो लागल छथि। एहि समस्त श्रद्धा आ समर्पण केर बादेा ई दुखद अछि जे मिथिला-मैथिली कें अपन हृदय मे बसौनिहार आ मैथिल होयबाक गौरव कएनिहार एहि वर्ग कें वर्तमान मुख्य धारा सं जुडल मैथिल अपन समाज मे जगह द आत्मसात करबाक लेल कोनहुं व्यवहारिक आ गंभीर प्रयासक संकेत तक नहि द सकलाह। यद्यपि ब्रजस्थ मैथिल समुदाय मे मुख्यधारा मे अछि पुनः वैवाहिक संबंध स्थापना खान-पान आदि प्रारंभ करबाक कल्पना कें साकार करबाक प्रयत्न दरभंगा महाराज श्रीकामे’वर सिंह द्वारा गंभीरता पूर्वक एक बेर अव’य कएल गेल। आगरा मे महराज स्वयं घोसणा कएने रहैथ जे पुनः ब्रजस्थ मैथिल समुदाय सं बेटी‘-रोटी के सबंध स्थापित कएल जाएत। एहि प्रसंग लिखित प्रस्ताव सेहो पारित कएल गेल। मुदा ओ पहिल आ अंतिम प्रयास छल। तत्काल किछु वैवाहिक संबंध आ खान-पान प्रारंभ अव’य भेल मुदा बहुत दिन धरि नहि चलि सकल। ब्रजस्थ मैथिलक ब्रज प्रवासक ऐतिहासिक पृ”ठभूमि पर दृ”िटपात रकी त ज्ञात होएत जे करीब छह सौ बरख पूर्व यानी 1382 मे करीब 250 मैथिल ब्राहमणक परिवार पहिल बेर मिथिला सं पलायन कय आगरा दिस गेला। हिनक पलायन सं जुडल कथा अति लोमहर्”ाक अछि। ब्रजस्थ मैथिल ब्राहमण सभाक पूर्व अध्यक्ष आ दूरदर्’ान केंद्र दिल्ली के पूर्व निदे’ाक महे’ा चंद्र ’ार्माक अनुसारे, तत्कालिक मिथिला नरे’ाक एकटा मैथिल दबारी पंडित कें कोनो मुसलमान युवती सं प्रेम भ गेलनि। दुनू समुदायक कटटर पंथक परिणाम स्वरूप पंडित जी के इस्लाम धर्म स्वीकार करय पडलनि। तात्कालिक हिंदू कटटर पंथ कें उपेक्षाक स्वरूप ओ मैथिलक परम विरोधी भ गेलाह आ बंगालक नबावक ’ारणागत भ मिथिलांचल मे क्रूरतम उपद्रव आ हिंसा प्रारंभ करा देलनि; एहि सं त्रस्त भ करीब 250 मैथिल ब्राहमण परिवारक पहिल पलायन मिथिला सं भेल। मुदा तकर बादक स्थिति की भेल, हुनका लोकनिक विसय मे एखनि धरि किछु ज्ञात नहि अछि।कालांतर मे जखन अकबर भारतक सम्राट बनला त मिथिलाक ज्योति”ा आ विद्वताक प्र’ांसा हुनक कान धरि पहुंचल। मिथिलाक पांडित्य आ विद्वता सं प्रभावित बाद’ााह अकबर के समय मे करीब 75 मैथिल विद्वानक सपरिवार आगमन भेल। अकबर द्वारा आमंत्रित ओहि विद्वान परिवार कें आगराक ’ाहजादी बाग, बालू घाट आ छिप्पी टोला आदि जगह मे बसाओल गेल। अकबर आ जहांगीरक समय धरि ओहि मैथिल विद्वान कें खूब मान-सम्मान आ राज्याश्रय भेटैत रहल, किंतु औरंगजेब कें सत्तासीन भेलाक उपरांत अन्य हिंदू परिवारक संग मैथिल विद्वान परिवार कें सेहो असहनीय अत्याचार आ पीडाक समाना करय पडल। इहो कहल जाइत अछि जे आगराक छिप्पी टोला मे एक दिन मे 72 मोन जनउ जराओल गेल छल। धार्मिक पोथी-पतड़ा आदि डाहि देल गेल। एहि सं त्रस्त भ मैथिल विद्वानक परिवार फेर पलायन क दे’ाक विभिन्न भाग मे पसरि गेला। यायावरी जिनगी जीवैत ओ लोकनि लोहा सं जुडल काज सहित रथ निर्माण आ संचालन पर्यंत प्रारंभ क देलनि। एहि प्रकारे ओ लोकनि लोहा आ काठक वस्तुक निर्माण मे दक्ष भ गेला। तत्काल अलीगढ आ जलेसर आदि हुनक ’ारणस्थली बनल। कालांतर मे रेल यातायातक विकास होमय लागल ताहि मे आव’यकता पडल लकडी आ लोहा सं जुडल मजदूर आ कारीगरक। जे किछु पढल लिखल छलाह से टीटी बाबू आदि बनि गेला। अ’िाक्षित वा अल्प’िाक्षित लोक लेल रेलक बोगी क निर्माण कार्य मे लागि गेला। रेलक जतय जतय पैघ टीसन वा कार्य’ााला बनल ओ लोकनि रोजीक जोगाड़ मे ओतहि बसैत गेला। एहि क्रम मे भुसावल, जलगांव, धूले, अजमेर, रतलाम, कोटा, झांसी, अलीगढ, गाजियाबाद, बस्ती, अहमदाबाद आ दिल्ली आदि स्थान पाबि अपन-अपन जीवन यावन करए लगलाह।ई तथ्य प्रायः एखनहुं अन्हारे मे अछि जे अलीगढक प्रसिद्ध ताला उद्योग मे एहि मैथिल सभक भागीदारी अस्सी प्रति’ात सं अधिक अथ्छ। अलीगढक तालाक लोकप्रियता तात्कालिक मैथिलक देन थिक। एतेक रास विपत्ति के सहैत प्रतिभा संपन्न मैथिल समुदाय सं हुनक मैथिलत्व कहियो विलग नहि भेलनि। आब जखन कि प्रत्येक क्षेत्र मे आगू बढैत ई लोकनि आई सभ सुख-सुविधा सं पुनः संपन्न भए गेला, अपन मिथिलाक मूल संस्कारकें आद्यावधि अक्षुण्ण रखबाक प्रयास एखनहुं कए रहल छथि। समस्त मैथिल आ वैदिक परंपराक निर्वाह ओ सभ सेहो कए रहल छथि। विवाह, मुण्डन, उपनयन, कर्णवेद आदि सब विध जे आजुक मिथिलांचल मे प्रचलन मे अछि, करैत रहलाह अछि। करीब अस्सी प्रति’ात बीध एखनहुं प्रचलन मे अछि; किछु स्थान, काल आदिक कारणे बीध मे अंतर सेहो आबि गेल छन्हि मुदा ताहि लेल इ लोकनि मैथिल नहि छथि एहि कटटरपंथी मिथक कें अविलंब तोडय परत। पुनः हुनका लोकनि कें मुख्य धारा मे आनल जएबाक सकारात्मक आ गंभीर प्रयास होएबाक चाही। हुनक मैथिलीत्व आ मिथिला प्रेम क आदर होएबाक चाही। एहि सं मिथिला, मैथिल आ मैथिलीक ’ाक्ति बढत आ मैथिली आंदोलन कें अत्यधिक बल भेटत।
गुरुवार, जनवरी 29
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1 टिप्पणी:
Bahut Bahut Aabhaar Bipin ji es blog ke liye.
i am belong a brijshta maithil brahmin family
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