शुक्रवार, अगस्त 7

चुप्पी

एक बेर हम गाम सं दिल्ली अबैत छलहुं............रास्ता में हमर जत सीट छल, ओतहि एकटा मुल्लाजी बैसल छलाह............ओ लगातार अखबार में मुड़ि गारने छलाह..........हम अपन स्वभावक अनुकुल अपना में मस्त रही............लेकिन समय वितावक खातिर इ इच्छा जरूर होइत छल जे जं किछु गप्प करितैथ त नीक लगितै..............किएक त ओहि ट्रेन में ओहि दिन संयोगवश भीड़ एकदमे कम छल...........मुगलसराय लग एक आदमी मुल्लाजी सं समय किछु अहि तरहे पुछलक...........ओ....ओ.... सा....हे.....ब.....क्या....टा...इ...म ....हु....आ....है...........ओ आदमी अपन तोतली भाषा में लगातार तीन चारि बेर मुल्ला जी सं समय पुछल...........लेकिन मुल्लाजी जवाब नै देलाह........अंत में ओ आदमी थाकि बैस गेल...........जहन ओ यात्रि उतरल त हम पुछलियैन्ह...........जे ऑ- साहब आपने उसे टाइम क्यों नहीं बताया..........त मुल्लाजी कहला...........आ....प.....भी.....खूब हैं..........सा....हि.....ब.............मु.......झे उ....स....से जू...ता....खा.....ना था क्या........हम मोने मन मुस्कुरा क पुनह अपन मैगजीनक पन्ना में हरैत सोच लगलहुं.......जे मुल्लाजी के दिमाग कतेक काज केलकैन्ह.............शायद तैं लोक कहैत छै........जे कतेको ठाम चुपी में कुशल होइत छै.............
- ओम प्रकाश

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