शुक्रवार, अगस्त 7

केहन हो वियाह पश्चात वर-कनियाँक व्यवहार?

प्राय: वियाह सँ पूर्व वर-कनियाँक दर्जा पओनिहार युवक-युवतीक मन मे अपन वैवाहिक जीवनक प्रति विशेष कल्पना रहैत छैक। दूहू केँ लगैत छैक जे विवाहोपरांत जीवन साथी ओकर तमाम जरूरति केँ पूरा करत, ओकर ध्यान राखत आ दूहू केँ एक गोट सुखद जीवन जीवा लेल भेटल मुदा सदिखन वास्तविकता एहि सँ परे होइत अछि।

विवाहक पश्चात जखन वर-कनियाँक इच्छा मनोनुकूल पूरा नहि भऽ पबैत छैक, तऽ एक-दोसराक प्रति खीज, ईष्र्या आ गलत धारणा जन्म लऽ लैऽत अछि। परिणामस्वरूप वैवाहिक जीवन सुखमय होयबाक बजाय कष्टïकर भऽ जाइछ आ दाम्पत्य जीवनक आधार चरमराय लगैत अछि।

अतएव, आवश्यकता एहि बातक अछि जे वर-कनियाँ दूनू विवाह सँ पहिने एहि संबंधक बंधन केँ निर्वाह हेतु स्वस्थ मानसिकता बनाबथि। विवाहक बाद कोनो युवकक लेल अपन पत्नीक पति बनि जायब तऽ बहुत आसान अछि मुदा ओकर जरुरति, फरमाईश, पसंद आ चाहत केँ साकार कऽ पायब ततबे कठिन। ध्यान देबा योग्य अछि जे कोनो पतिक लेल पति पदक सार्थकता एहि बात पर बेसी निर्भर करैत अछि जे ओ अपन पत्नी केँ कतेक सम्मान आ महत्त्व दैऽत छथि।

वर-कनियाँक एक-दोसराक प्रति प्रेम-अनुरागक भाव राखब आ अपन जीवन साथीक गुणक तहेदिल सँ प्रशंसा करब दाम्पत्य जीवन मे मधुरता बनोने रखैत अछि। अक्सर पति-पत्नी अपन दोस्तक बजाय अपन जीवन संगीएक प्रति आक्रामक रुख रखैत छथि आ मित्रक समक्ष शिकवा-शिकायत करैत रहैत छथि, जे बिल्कुल गलत अछि।

वर-कनियाँ सदिखन ई चाहैत छथि जे हुनक जीवनसंगी बिना बतोने हुनकर जरुरति केँ बूझि जाथि। ई एक गोट एहन व्यावहारिक चाह अछि जे प्राय: पूरा नहिए भऽ पाबति अछि। फलस्वरूप शिकायत एवं गलतफहमी उपजब अवश्यंभावी अछि। भावनात्मक क्षोभ व्यक्त करबा सँ वर-कनियाँक बीच तनाव उत्पन्न होयबाक संग-संग घरक वातावरण अस्त-व्यस्त भऽ जाइत अछि।

जे वर-कनियाँ एक-दोसराक नीक संगी सेहो होइत छथि, ओ छोट-छोट गप्प केँ तूल देबाक बजाय ओकरा नजरि अंदाज कऽ देबहि श्रेयस्कर बुझैत छथि। ओहुना नीक दम्पत्ति ओएह कहाबैत छथि जे एक-दोसराक भावनाक सम्मान करथि। संकट मे एक-दोसराक संग दैऽथि आ जीवनसंगी केँ संतोष एवं सहाराक एहसास दियाबथि।

याद राखू, महिला मे प्रशंसा सुनबाक ललकि पुरुषक अपेक्षा बहुत बेसी होइत अछि। ओ अपन रूप-गुणक प्रशंसा सुनैत कखनो थकैत नहि छथि। ई हुनक चरित्रक सब सँ कमजोर बिन्दु अछि आ एकर फायदा अकसर पुरुष उठोबैत छथि। फेर इहो ध्यान रखबा योग्य अछि जे पति अकसर कारणवशहि शक करैत छथि। तेँ एकर गुंजाइश कम सँ कम होयबा लेल जरूरी अछि जे एक-दोसराक बीच स्पष्टïता बरकरार रहय।


—कल्पना 'प्रवीणÓ

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