मिथिला सँ देषक दोसर भाग मे पलायन दिनानुदिन बेसी भेल जा रहल अछि। संगहि इहो अपना जगह ध्रुव सत्य अछि जे एहि समास्याक समाधान एखनधरि नहि ताकल जा सकल अछि। आखिर कियैक? एहि असफलताक कारण कि अछि? एहि सँ पहिने कि एकर संभावित समाधान चर्चा कएल जाय ई जानल जरूरी बुझना जाइत अछि कि ओ कोन कारण अछि जाहि लअ कऽ मिथिला अपन पूर्ण जनषाक्ति के रहितो, षांत आ खुषहालीक वातावरण अछैते अप्पन एहि बदहाली पर नोर बहा रहल छथि। ई जननाय एहिओ दुआरे आवष्यक भऽ गेल जे पलायनक समस्या ओहन क्षेत्रक संगबहिना रहैत अछि जतय आतंकवाद, अराजकता आ अपराधक खूट्टा मजबूत रहैत छैक। कखनो काल ई ओहनो स्थिति मे देखल जा सकैत जतय भौगोलिक परिस्थित मनुक्खक लेल प्रतिकूल भऽ रहल होइन्हि। जेना कतओ-कतौ लोक सभ के सूखाड़, बाढ़ि, महामारी, अकाल, भूकंप समुही तूफान सन प्राकृतिक आपदा सँ जूझम पड़ैत छन्हि। जमीन किसानक समसँ महत्वपूर्ण आ मौलिक संपति होइत छेक, ताकिं रेगिस्तानी इलाका, उस्सर, पठारी वा पहाड़ी क्षेत्र क लोक भारी संखया मे अपन क्षेत्र सँ पलायन करैत छथि आ हिनका समय लेल पलायनक संथावना सब सँ बेसी बनल रहैत अछि। एकर आलावे सांप्रदायिक दंगा आओर लड़ाई सेहासे प्रवासक कारण बनैत अछि। लेकिन दुर्भागसवष एहि मे सँ कोनहुँ टा कारण मिथ्लिांचल मे नागि देखना जाइत अछि, परन्तु तइयो ई एहन यथार्थ अथ्छ जकरा कतियाओल नहिजा सकैत अछि।
1947 ई0 मे जखन भारत स्ताधीन भेल ओहि समय मिथिलाक आओर मोटा-मोटी पूरा बिहारक आर्थिक सामाजिक स्थिति देषक दोसर राज्य सँ विलग नहि छल। वस्तु स्थिति तँ ई अथ्द जे उपजाक खेत, षांतिपूर्ण मार्हाल आ खेती-बाड़ीक प्रति लोकक लगाव देखि ई कखनो ने बुझायल जे एहि क्षेत्रक विकासक संभावना आन क्षेत्र सँ कनिको कम अछि। दरिभंगा राजक छत्रछाया मे पलल पोसायल षोश्क सांमंती व्यवस्थाक निगानीक रूप मेद जमीन बैटवारा सरिपहुँ मुँह देखि मुँगबा पड़सव के याद कराबैत अछि। तइयो यदि सत्ता आओरे षासनक स्ताधीन प्रतिनिधि एहि क्षेत्रक विकासक लेल इमानदारी आ पूर्ण निश्ठाक संग काज करितथि तऽ कदापि आइ एहि स्थितिक दर्षन नहि होति। लेकिन ऐना न नहि भेलै। राजनीति में आ खास कय कऽ प्रातीय स्तरक राजनीति मे भश्टाचार, भाई भतीजावाय, चमचावाद, जेहन प्रतिगामी तत्वक आ षोश्ण, लूट खसोट ओ धोखाधड़ीक कादो मे ओझरायल हुनक अनुयायीक सेन्हमारी सतत् जारी रहला कालांतर मे इएह सेंन्हमारी जोरगर भऽ गेल आ सत्ता व नोकरषाहीक आपसी सौठ-गौठ एका व्यायक रूप दय देलकौ जँ कहियो कोनो विकासक योजना क गप्प उठालै, तऽ मिथ्ािला कें एहि सँ कात राखल गेला ताहिं ई कनिको आष्चर्मक गप्प नहि जे जहि हरित क्रांति सँ पंजाब-हरियाणा आओर दक्षिण भारतक राज्य सुब समृद्धिक पराकाश्ठा पर पहुँचि गेल ओहि हरित क्रांति सँ मिथिला केें कतिया देल गेल।
एहि मे कोनो दुमत नहि जे कहियो काल विकासक नाम पर सरकारी सहायता राषि आ अनुदान आवैत रहल लेकिन मंत्री आ सरकारी पदाािकारी- सऽ लअ कऽ ग्रामसेवक आ पंचायत प्रमुख धरिएकरा पचाबय वालाक पौति एतेक ने नम्हगर छन्हि जे ई राषि आ अनुदान गन्तव्य पहुचवा सँ पहिने सधि जाइत छै। एहिक्षेत्रक जे राक्षा-छथि, मुदा तकनीकी कौषले दृश्टियें पिछड़ल छथि, ओ ओतेक साधन सम्पन्न नहि छथि जे छोटो-मोटो नौकरी पयवाक लेल तथाकथित अपन भविश्यनिर्माता के मुँहमाँगा ‘नजराना’ दय पाबथि। जे खेती-बाड़ी मे लागल छथि हुनका समय पर सिंचाई आ उच्चा गुणबन्ता वाला खादबीजय प्राति लहि होइत छन्हि। ई सम मिलि कऽ एहि क्षेत्रक लोककें ऐना ने कंुठित कय देलकैन्ह कि एहि आरापित दुव्यवस्था सँ लड़बाक वा एकर कुनु ठोस का सार्थक विकल्प तकबाक सामथ्र्य गैवा चुकल छथि। आओर अपन गाम-धर सँ सेकड़ो मील कतओ अनगुहार जगह मे गुमनामीक यंत्रणापूर्ण जीवनप लेल बाध्य भऽ जाइत छथि। जनषक्तिक ई क्षति अपूरणीय अछि, जकर कारणें एहि क्षेत्रक उत्पादकता मे असाधारण हास भेल अहि, ओ जीवन स्तर मे गिरावट आयल अछि।
जदि मिथिला मे व्यवस्थित ढंग सँ माह पालन कएल जाए, एहि दृश्टि सँ एहिठाम उपलब्ध पोखरि, नदी समय उपयोग कएल जाए, उनत आ आमदनीक हिसाबे श्रेश्ठतर प्रजातिक माद्यक पालन षुरू कएल जाय संगहि आनूर्तिक उपसुक्त व्यवस्था विकसित कय लेल जाए तऽ स्ािानीय लोक कें आन ठाम जाम जी विकायार्जन के साधन नही ताकय पड़तैन्ह।
नकदी फसल:- कृश्कि क्ष्ेात्र मे नकदी फसल पैदावार आई काल्हिं किषेश् रूप सँ लायदायक सिऋ भऽ रहल अछि। एहिक लेल पैघ स्तर पर श्रमषक्तिक आवष्ययकता होइत अछि, जे एहि क्षेत्र मे सहजता सँ उपलब्ध भऽ जाइत सरकारी आ स्तयंसेवी संस्था व अमिकरण पहल द्वारा एकरा योजनाकह कएल जा सकैत अछि। आम, लीची, केला तम्बाकू, मिरचाई संगहि बांस, बबूल, षीषो, साबुआ आदि के आय आओ। रोजगारक एकय महत्वपूर्ण स्रोतक रूप में उपयोग रूप में उपयोग कएल जा सकैत अछि।
पषुपालन संगहि दुग्ध-उत्पादन:- पषुपालनक संगहि दुग्ध-उत्पादन रोजगारक एकय दोसर क्षेत्र अछि। मिथिला मे परती-परौत आओर सार्वजनिक उपयोगक जामीनक कोनो कमी नही अथ्द, एहि ठाम सँ माल-जालक लेल चाराक व्यवरूथा सहजहि भऽ सकैत अछि। जदि वैज्ञानिक तौर-तरीका कें अपनाओल जाय आ जरसी जकाँ अधिक दूध देवयवाली माल जाल क पालन-पोश्ण पर ध्यान देल जाय तऽ लोकक जीवन स्तर उठि सकैत छन्हि संगहि पालायनक संभावना में कमी आवि सकैत अछि।
कुटीर उद्योग:- कुटीर उद्योग कोनहुँ क्षेत्रक आर्थिक दषाकें तय करवा में महत्वपूर्ण भूमिका निभवैत अछि। एहि दृश्टि सँ हरेक घर के एकता छोट-माट कारखानाक रूप देल जा सकैत अछि, जतय सतू, पापड़, दालमो, अमाट, अचार, अदौड़ी दनौड़ी जेहन नित्य उपयोगक वस्तु-जातक उत्पादक कएल जा सकैत अछि। एहि सँ एकय आओर लाभ होयत जे एहि मे महिलाक श्रमषक्ति अपरिहार्य होयत। महिला मिथिलाक संपूर्ण श्रमषक्तिक ओहिअंषक प्रतीनिधित्व करैत छथि जिनका आमतौर पर चूल्हा चेकी मे ओझराय कऽ राखल जाइत छन्हि।
स्वरोजगार:- आईकाल्हिं सपरिवार प्रवासक प्रवृति दृश्टिगोचर होइत अछि। जँ महिला के हथकघा, कसलाई बुनाई कम्प्यूटर, केष सज्जा, वास्तुकला जकाँ विभिन प्रकार क शिस्य मे विषेष्ज्ञता आओ दक्षता दियेबाक लेल प्राषिक्षणक उचित व्यवस्था कएल जाय ऽ ओपरिवारक आर्थिक मेरूदंड सिद्ध भऽ सकैत छथि। ई महिला कल्याणक हरियें सेहो एकरा कएगर पहल सिद्ध होयत।
एहि समय आलाबे स्वरोजगारक आरो एहन उपय कारगर भ सकैत अछि जका माध्यमे प्रवासक दुखद होइत समयस्या पर आंकुष लगायल जाए। सरकारी आ गौर सरकारी उपाय तऽ आवष्यक अछिए संगहि स्ािानीय लोक मे व्यापक स्तर पर जाग्रति सेहो निहायत जरूरी अछि। मिथिलाक समग्र विकास मे एहिठामक लोकक सहभागिता सबसँ महत्वपूर्ण अछि, कियैक तऽ, जाधरि एहन नहि होयत, विकासक नाम पर लूटकाट आ बंदरबाट संगहि भ्रश्टाचारक साम्राज्य जस के तस रहत। एहि संदर्भ मे राजनैतिक मुख्यधारा मे लाबियोंआर दबाव समूहक औचित्य के सेहो बूझाल जा सकैत अछि, जे सकारात्मक विकासक दृश्टि सँ जनसाधारण आओ। जनप्रतिपिधिक मध्य संतुक काल कय सकैत अछि।
- सुभाष चन्द्र
सोमवार, अगस्त 10
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