शनिवार, अप्रैल 18

विद्यापति गीत


जाइत पेखलि नहायलि गोरी।

कल सएँ रुप धनि आनल चोरी।।

केस निगारहत बह जल धारा।

चमर गरय जनि मोतिम-हारा।।

तीतल अलक-बदन अति शोभा।

अलि कुल कमल बेढल मधुलोभा।।

नीर निरंजन लोचन राता।

सिंदुर मंडित जनि पंकज-पाता।।

सजल चीर रह पयोधर-सीमा।

कनक-बेल जनि पडि गेल हीमा।।

ओ नुकि करतहिं जाहि किय देहा।

अबहि छोडब मोहि तेजब नेहा।।

एसन रस नहि होसब आरा।

इहे लागि रोइ गरम जलधारा।।

विद्यापति कह सुनहु मुरारि।

वसन लागल भाव रुप निहारि।।


नोट : पहिल बेर विद्यापति के श्रींगार के गीत द रहल छि..

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