गुरुवार, दिसंबर 24

मिथिलांचल सँ पलायन

कोनो समाजक पहिल आ प्रमुख इकाई होइत अछि 'जनÓ। निर्माण आ विनाश दुनु मे जनक प्रमुख भागीदारी रहैत छैक। परंच मिथिलांचलक आबादी लगभग पांच करोड़ रहितो आइ मिथिला जनविहीन लागैत अछि। एतय जनसँ मतलब मात्र दैनिक बोनि पर खटनिहार श्रमिक नहि, अपितु समस्त ओहन जन सँ संबंधित अछि जे कार्यरत छथि, कुनु ने कुनु तरहक काज अबस्से करैत छथि।
जतय एक दिश्ï मिथिलाक बढ़तै जनसंख्या विस्मयकारी होइछ ओतहि दोसर दिश्ï लोकक पलायन मिथिलाक विकास केँ अवरुद्ध कयने जा रहल अछि। जनसंख्या वृद्धि सँ उपजल अनेकानेक विसंगतिक कएने लोक गाम-घर छोडि़ अन्यत्र पलायन कय रहल अछि। गाम-घरक कुनु वर्ग-जातिक लोक एहि पलायन सँ नञि बाँचल अछि।
देखल जाय तै पलायन पहिनहुँ होइत छल। प्राचीन काल मे मिथिला सँ लोक सब पलायन कय अन्यत्र सेहो बसि गेलाह। प्राकृतिक, दैवी आ स्थानीय कारण मुद्दा बनैत छल। पर्यटन आ उच्च ज्ञान प्राप्त करबाक इच्छा, सँ लोक घर सँ बाहर सेहो जाइत छलाह। आखिर लोक अपन माटि-पानि आओर गाम-घर सँ पलायन कियैक-करैत छथि, एहि संदर्भ मे किछु ऐतिहासिक कारक पर ध्यान देल आवश्यक बुझना जाइत अछि। अंग्रेजक शासन जाधरि रहल भारतक आर्थिक स्थिति चरमरायल रहल। कोनहु क्षेत्र ऐहन नहि छल जकर शोषण नहि कएल गेलै। अंग्रेजी शासनक नीति एहि तरहेँ बनल छल जे सभकिओ गरीबीक मारि झेलबा लेल बाध्य रहथु। जेना जेना समय बीतैत गेल, सामान्य मनुक्खक लेल दू जूनक रोटी जुटेनाय मुश्किल होइत गेल। ब्रिटिश शासक द्वारा अंधाधुन आर्थिक शोषण, स्वदेशी उद्योग-धंधाक नाश, ब्रिटेन मे भारतीय संपदाक स्वच्छंद प्रवाह, कृषि प्रणालीक पिछड़ापन आओर जमींदार, रजवाड़ा, महाजन तथा राज्यक अधिकारी द्वारा आम निरीह जनता/किसानक शोषण शनै-शनै अकल्पनीय दैन्य आ विवशताक खाधि मे धकलैत गेल।
एकर कारण जे पलायन प्रक्रिया शुरू भेल ओ राज्य संगे जुड़ैत गेल। ब्रिटिश शासनक शुरुआती चरण मे यानी प्लासी के लड़ाई आ 1765 ई। मे दीवानी लेल अनुदान भेटलाक बाद ईस्ट इंडिया कम्पनी जे शोषण आ मनमानीक रस्ता अख्तियार कयलक ओकर सब सँ पहिल शिकार बिहार, बंगाल आ उड़ीसाक संयुक्त प्रांत बनल। अंग्रेज ऐहन ने लूट-खसोट शुरू कएलक जाहि सँ एहि संयुक्त प्रांतक कोन-कोन मे भूख, अकाल व महामारीक साम्राज्य बनि गेल आ लक्ष्मी पड़ाय लगलीह।
एहि संदर्भ मे दरभंगाक देशी रियासतक संबंध मे दू आखर कहब समीचीन होयत। किछु दिन पहिने एहि पलायनक संबंध मे भेल शोधक अनुसारे कहल जा सकैत अछि जे मिथिला सँ भेल पालयनक मुख्य कारण दरभंगा महाराज द्वारा मिथिलांचल जनताक निर्बाध निरंकुश शोषण आ उत्पीडऩ छल। दरभंगा महाराजक एकछत्र वर्चस्वक कारणे मिथिलांचलक आर्थिक, राजनैतिक आओर सामाजिक दशा चिंतनीय बनल रहय। ओहि समय किसानक मनमाना दमन कएल जाइत छलै, ओकरा पर तरह-तरहकेँ कर, मालगुजारी आदि असहनीय बोझ सहबा लेल बेबस कएल जाइत छलै। शिक्षाक आवश्यकताकेँ सभ तरहेँ नजरअंदाज कएल गेलै, स्वास्थ्य आ अन्यान्य सामाजिक कल्याण सँ संबंधित क्षेत्र मे पिछड़ापन आ शैथिल्यपूर्ण निष्क्रियताक घटाक्षेप छायल रहलै। प्रेस, जनसंचार माध्यम आओर नागरिक अधिकारक स्वतंत्रता केँ सत्ता द्वारा हनन कयल गेलै। सरकारी राजस्वक एकटा पैघ हिस्सा राजकुमार, कुलीन दरबारी आ हुनक चमचा-बेलचा केँ ऐशो आराम आ ठाटबाट मे दुइर होइत छलै। एतबै नञि, जँ कहियो ब्रिटिश शासनक कोनो प्रतिनिधि दरभंगा अबैत छलैह तऽ राजरघरानाक प्रतिनिधि ओकरा अपन माय-बापो सँ पैघ मानि बेशकीमती जनेश दैत छलाह। एहि तरहेँ जाहि धनक उपयोग रियासतक प्रगति मे होबाक चाही ओ धन राजघरानाक ठाट बाट आ हुनक चमचागिरी मे व्यर्थ चलि जाइत छल।
मुदा आजुक परिप्रेक्ष्य बदलल अछि। बढ़ैत जनसंख्याक घनत्वक अनुपात मे जमीनक रकवा छोट भऽ रहल अछि। उद्योगकहीनता प्राकृतिक प्रकोप, बाढि़ आ रौदी, उच्च व व्यावसायिक शिक्षाक अभाव, सरकारी उदासीनता तँ कारण अछिए, संगहि उपलब्ध रोजगारक अवसर मे सेहो कमी भेल जा रहल अछि। समुचित रोजगारक अभाव मे लोक केँ अंतत: आजीविका के तलाश मे घर छोडि़ बाहर जाय पड़ैत छैक।
मिथिलांचल मे आजीविकाक मुख्य साधन रहल अछि कृषि। एकरा हम एना कहि सकैत छी जे मिथिलाक जीवन कृषि के इर्द-गिर्द छल। अन्नक उपज सँ लय कऽ पशु-धन, लकड़ी, फल-फुलवारी सब कृषि आधारित छल। जतय कृषक केँ उपज सँ आमदनि छलनि, ओतहि भूमिहीन या कम खेत वला लोक कृषक मजदूर रूप मे आजीविका पबैत छल। कृषि विज्ञानक व्यवस्था आब पूर्ण रूपेण अलाभकारी भऽ गेल अछि। कृषि आ कृषि आधारित मजदूर दूनूक लेल जिनगी भार भेल जा रहल अछि। एहन परिस्थिति मे हुनका सभक सामने पलायने एकमात्र रस्ता शेष छैन्हि।
ओना ई पड़तालक विषय थीक जे पलायन आर पलायन सँ उपलब्धि प्राप्त करय मे ओ कतेक सक्षम भऽ सकलाह, हलांकि सरकार पलायन सँ चिंतित अछि मुदा ओकरा रोकय लेल कोनहुं थितगर उपाय करय सँ कतराऽ रहल अछि। विडम्बना तँ एहि गप्पक अछि जे एखनधरि सरकारी स्तर पर पलायनक कोनो स्पष्टï आँकड़ा तक उपलब्ध नहि भऽ सकल अछि। जखन कि पलायन गति जोर पकडऩे जा रहल अछि। यदि समय अक्षितै पलायन केँ नहि रोकल गेल तँ संभव अछि जे किछु दिन बाद राज्य, खास मिथिलांचलक गामक गाम खाली भेटत। मात्र नेना, भुटका, महिला आ कि बूढ़ भेटता।
कल्पना मात्र सिहरा दैत अछि। जतय एक दिस मिथिला अपन समृद्ध सांस्कृतिक धरोहरि, सामाजिक परंपरा आ मजबूत ग्रामीण जीवनक लेल चिन्हल जाइत छल ओतय के गांव मे आब पाहुन अभ्यागतक सत्कार करय लेल दलान पर किओ नहि भेटैत अछि। 'अतिथि देवो भवÓ औचित्यहीन भऽ रहल अछि, घरबइया बिना।
ई तँ पलायनक एक रुख थिक। पलायनक दोसर रुख उपरोक्त सँ बेसी भयावह अछि। गाम-घर सँ रोजी-रोटी आ नील भविष्य क तलाश मे निकलल हताश लोग की नव-जगह ठाम पर जा किछु प्राप्त कय पबैत छथि कि नहि? घर सँ जतेक सुखद सपना लय कऽ चलैत छथि ओहि मे सँ एक्कोटा पूर होइत छैन्हि कि नहि? आ सबसँ अहम्ï चीज थिक हुनक ओतय केँ जीवन स्तर।
अपनहि राज्य आ देश मे अप्रवासी केर जीवन जीवाक लेल बाध्य ई लोकनि घर सँ दूर दुर्गतिक जीवन जीबैत छथि। मिथिला सँ पलायित लोक ओना तँ भारतक सब पैघ छोट शहर मे भेटि जयताह मुदा हिनक पहिल आ अंतिम पड़ाव दिल्ली होइत अछि। कारण, जँ दोसर शहर आ नगर मे समुचित रोजगारक व्यवस्था नञि भेल तँ दिल्ली मे छोट सन रोजगार तऽ कतओ भेटबे करत।
पढ़ल-लिखल, हुनरमंद सँ लय कऽ मूर्ख, बेलूरि सब कोटिक पलायित लोक दिल्ली मे भेटि जयताह। जिनगीक गाड़ी घीचैत-तीरैत। दिन भरि डाँड़ तोडि़ मेहनति आ राति मे गाम-घरक याद। यैह हिनक सभक दिनचर्या अछि। दुर्गा पूजा, दिवाली, होली सब छुटि गेलै, बिसरा गेलै चास-बास आ कलम-बारी, सभ दिनक पेटक आगि शांत करबाक उपाय मे। बिसरि कय आबि गेल छथि गामक ओ दलान जतय ताशक चौकड़ी जमैत छुटि, कीर्तन गबैत छलाह, शायद एतय अतिमानव बनाबक चेष्टïा मे अपनो केँ बिसरि गेलाह। बाँचल एकमात्र इच्छाक संग जीबि रहल छथि, शायद एहि महानगरी मे हमरो भाग्य खुजि जायत। भेड़-बकरी जकाँ जीवन जीवाक लेल अभिशप्त छोट-छोट झोपड़पट्टïी मे निर्वाह करैत शायद अपन जन्म लेबाक वा पूर्वजन्मक फल भोगि रहल छथि। परदेश मे हजार-पन्द्रह सौ रुपयाक नौकरी लेल बारह सँ चौदह घंटा खट्टïा पड़ैत छैन्हि संगे मानसिक शोषण सेहो बरदास्त करय पड़ैत छैन्हि। मुदा प्राप्ति नगण्ये सन होइत छैन्हि। महंग शहर-महंग वस्तु जात। फेर साल दू साल मे एक बेर गाम आयब।
पलायन सँ क्षति केवल गाम-घर समाज आ क्षेत्रे टा के नञि होइत अछि, पलायन सँ सभसँ बेसी कष्टï उठबैत छथि ओहि वर्ग विशेषक नारी, जिनक पुरुष मजदूरी लेल घर सँ जाइत छथि। अल्प आय मे अपना परिवार केँ छोडि़ असुरक्षा भावना मे पत्नी आ बच्चा केँ धकेल स्वयं सेहो चिंतित रहैत छथि। अलग-अलग लोकक हिसाबे मजबूरीक परिभाषा भिन्न भय सकैत छैक मुदा ओहि सँ उपजल असुरक्षा, सामाजिक हानि तथा अन्यान्य कारण सभक एक्कहि रहैत छैक। बच्चाक भविष्य, अपन वर्तमान आ अतीतक बीच तादात्म्य मिलाबैत, अपन जिनगीक अवसाद मिटेबाक प्रयास मे प्राय: सभ नारी तत्पर रहैत छथि।
पलायन एक समस्या थिक। एहि बात सँ इनकार नहि कयल जा सकैत अछि, परन्च सरकार एहि सत्य केँ नुकाबय चाहैत अछि। गामक गाम वीरान पड़ल जा रहल अछि। महानगर, जतय पलायित व्यक्तिक ठौर पबैत छथि, ओतहुक स्थानीय निकाय अप्रवासीक समस्या सँ ग्रसित भऽ क्षुब्ध अछि। राज्य सरकार एहि समस्या पर चुप अछि। एतेक गंभीर समस्या केँ राजनीतिक स्तर पर हल्लुक अथवा कोनो खास नञि बुझनाय, सरकारक हृदयहीनता केँ प्रदर्शित करैत अछि।
अपन उपलब्धि गनेवाक कारणे सरकार यदि छोट-मोट नियोजन करितो अछि तँ ओहो ऊँटक मुंह मे जीरक फोरन बुझना जाइत अछि। राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता मे जबड़ल व्यवस्था राज्यक एतेक गंभीर विषय पर कोनहुँ राजनीतिक व्यक्तित्व आ कि दल गंभीरता सँ ध्यान नञि दैत अछि। ध्यान दैत अछि मात्र चुनावक बेर मे। फेर बिसरि जाइत अछि। स्थानीय नेता, विधायक, सांसद मात्र अपना क्षेत्र मे ओहने विकासक कार्य मे रुचि राखैत छथि, जतय सँ हुनका अवैध रूपेँ हिस्सा (रुपया) प्राप्त होइत छैन्हि। समय रहितै यदि पलायनक एहि स्थिति पर नियंत्रण करबाक समुचित उपाय नहि कएल जायत तँ, ई स्थिति विस्फोटक भऽ वर्तमान व्यवस्थाक लेल विकट समस्या ठाढ़ कय देत। एहि मे कनिको सन्द्रह नहि।

सोमवार, दिसंबर 21

कलाक चौंसठि संख्याक रहस्य आ कलाक मूलाधार

कलाक चौंसठि संख्याक रहस्यक दिसि दृष्टिï देला पर ई कहल जा सकैत अछि जे ऋग्वेदक मंत्र अष्टïक अध्याय एवं वर्ग मे व्यवस्थित अछि। आठ अष्टïक, चौंसठि अध्याय, दू हजार चौबीस वर्ग तथा दस हजार पांच सौ नवासी मंत्र अछि। सायणक अनुसार मंत्रक संख्या दस हजारि चार सै नवासीए अछि। पांचाल एही हेतुए ऋग्वेदक चतु:षष्ठिï संज्ञा देलनि। एहि तरहेँ चौंसठि संख्या केँ पवित्र स्वीकार केल गेल अछि। कामशास्त्र केँ ऋग्वेदक सदृश धार्मिक प्रतिष्ठïा एवं पवित्रता देवाक हेतुएँ वार्भव्य पांचाल चौंसठि उपविभाग मे विभक्त कैलनि अछि। ऋग्वेदक दसम मंडलक समानहि एकरहु दस मुख्य भाग थीक। यैह कारण अछि जे एकरा चतु:षष्ठिïक नाम सँ सेहो अभिहित कैल जाइत अछि।
कलाक वर्गीकरण वात्स्यायन सँ पूर्वहि भऽ चुकल छल। पांचाल चतु:षष्ठि कलाक निर्देश कैने छलाह। जैन-गं्रथ चौंसठिकला केँ चौंसठि 'महिलागुणÓ रूप मे सेहो प्रस्तुत करैत अछि। एहि क्रम दसम एगाहरम शताब्दी मे विरचित 'कालिकापुराणÓ मे ब्रह्मïा एवं संध्याक प्रेम प्रसंग मे चौंसठिकलाक उल्लेख भेटैत अछि। एहि तरहेँ विभिन्न पुराण साहित्य आदि मे चौंसठि कलाक उल्लेख प्राप्त होइत अछि। मुदा एहि चौंसठियो कलाक नव-नव विश्लेषण क्रमश: बाद मे एक-एक कला केँ लऽ ओकर विभिन्न अंगोपांगक विस्तृत वर्णन कैल गेल और ई विभिन्न प्रस्थानक रूप मे एक पृथक स्थान प्राप्त करय लागल। विभिन्न कलाक प्रयोजन सेहो चतुर्वर्गक प्राप्ति सैह सूचित कैल गेल अछि। साधनक दृष्टिïएँ विभिन्न कलाक मौलिक आधारक प्रश्न अछि ई स्पष्टï अछि जे पौराणिक देव स्वरूपक विश्लेषणक संगहि संग कलाक सभ भेदक सांगोपांग विश्लेषण उपलब्ध भऽ सकल अछि। वेद मे कला शब्दक मात्र प्रयोग भऽ गेला सँ कलाक मूलाधार वेद नहि कहल जा सकैत अछि। किएक तँ मूर्ति निर्माण आदि वस्तु बहुदेववादक आधारहि पर विकसित मानवाक हएत। संवादसूक्त केँ नाटक मूलाधार एवं सामवेदक गान केँ संगीतक मूलाधार मानवा मे हमरा कोनो तरहक आपत्ति नहि अछि आ ने एही मतवैभिन्य अछि जे वाद्यक कतिपय रूप वेदकाल मे उपलब्ध छल। किन्तु ई एकांत सत्य थीक जे वास्तुकला, संगीतकला, मूर्तिकला, चित्रकला आदि जे विकसित रूप उपलब्ध होइत अछि एवं विषम संबंध अधिकारी एवं प्रयोजनक संग विभिन्न कलाक शाास्त्र सभक पुराणहिक देन थीक। भगवानक विभिन्न अवतार एवं लीलासभकेँ मूलाधार बना कऽ मूर्तिकला अपन चरम उत्कर्ष पर प्रतिष्ठिïत भऽ गेल। ओहि देवता सभक तथा पौराणिक राजलोकनिक नगर, देवालय, चैत्य आदिक विभिन्न वर्णनक अनुसार वास्तुकला अपन विकसित स्वरूप मे अवस्थित भेल। पौराणिक मूर्ति एवं वास्तु निर्माणक साक्ष्य आइ पर्यन्त भारतीय देवालय एवं खंडहरक रूप मे हमरा लोकनिक समक्ष उपस्थित अछि। चित्रकला सँ निश्चये पुराणक देन थीक। जहाँधरि संगीतक प्रश्न अछि ओकर विकास पुराण मे वर्णित सरस्वती, नारद, शिव, पार्वती, गंधर्व, अप्सरा सभ एवं विभिन्न राजसभाक संगीताचार्य लोकनिक आधारहि पर मानवाक इएत। पुराण सभ मे कोनो कलाक वर्णन मे लेखनी केँ संकुचित नहि राखल गेल अछि। एतबए नञि प्रत्येक कलाक एक एहन आचार्य एवं अधिष्ठïात्री देवताक स्वरूप उपलब्ध होइत अछि जकर साधना सँ ओहि कला मे परम प्रौढ़ता प्राप्तिक सूचना भेटैत अछि। समय-समय पर मय एवं विश्वकर्मा द्वारा कतेको अलौकिक नगर-निर्माणक सूचना पुराण मे देखि, ओकर अपूर्व वर्णन केँ पढि़ चिर विस्तृत, मंत्रमुग्ध कल्पना जगत मे विचरण करैत अकस्मात ई कहवाक हेतु बाध्य होमय पड़ैत अछि जो ओहि निर्माणक दृष्टिï सँ हमर स्थापत्यकला सर्वथा अपूर्ण अछि। शिवक ताण्डव, पार्वतीक लास्य, गंधर्व एवं अप्सरा सभक संगीतलहरी, सरस्वती एवं नारदक तंत्रीक झंकार अद्यपर्यंत पौराणिक शब्दक द्वारा हृत्तंत्री केँ किछु क्षणक लेल झंकृत करवा मे समर्थ होइत अछि। अत: बिन्दु इच्छोक ई स्वीकार करवाक लेल बाध्य होमय पड़ैत अछि जे विभिन्न कलाक मूलाधार पुराणहि अछि।

शनिवार, दिसंबर 19

तहसीलदारक दाढ़ी 'बाह-बाहÓ मे गेल

एकटा राजा छलाह। हुनका एकटा तहसीलदार छलनि। जो रैयतसँ जमीनक मालगुजारी वसूल करैत छल। ओ बड़ निष्ठïुर स्वभावक लोक। हुनकर नामे सुनि कऽ लोकक पेटक पानि डोलय लगैत छलैक। ओ जाहि गाम मे पहुंचि जाइत छलाह ओहि गामक लोक तबाह भऽ जाइत छल। लोक सब एहि बातक नालिश राजाक ओहिठाम केलक लेकिन किछु सुनावाइ नहि भेलैक। संयोग सँ ओ तहसीलदार एकबेर गोनू झाक गाम मे पहुंचल मालगुजारी वसूलक हेतु। ओ गामक लोकके तंग करब शुरू केलनि। ककरो खेत कटा लेथिन, त ककरो बेगार मे पकरि लेथिन तऽ ककरो पिटबाइये देथिन। कारण हुनका संग मे सिपाहियो रहैत छल।
अन्ततोगत्वा गामवला सब आपस मे विचार कऽ कऽ गोनू झासँ कहलकनि जे अपने तऽ बड़ चतुर व्यक्ति छी कोनो एहन उपाय करू जे तहसीलदार एहि गामसँ भागि जाय। गोनू झा उत्तर देलथिन अपने लोकनि चिंता नहि करू काल्हि भेनसरे हुनका हम अवश्य भगा देबनि।
भेनसर भेलैक गोनू झा तहसीलदारक ओहिठाम पहुंचलाह। गामक बहुतो लोक हुनका संग पहुंचल। ओहि समय मे तहसीलदार साहेब दत्तमनि कऽ रहल छलाह। हुनकर छाती तक लटकैत दाढ़ी झुलि रहल छल। गामवला सब हुनका नमस्कार कऽ कऽ बैसैत गेलाह। तहसीलदार साहेब कुरूर आचमनि कÓ अंगपोछासँ दाढ़ी आ मुंह पोछलनि। ओही मे हुनकर दाढ़ीक एक गोट केश टूटि पृथ्वी पर खसि परल। झट दÓ गोनू झा ओहि केश के उठा कÓ अपना धोतीक एकटा खूट फारि ओहि मे लपेटि लेलनि आ तीन चारि बेर ओकरा माथ मे ठेका प्रणाम केलनि आ ओकरा अपना धोतीक खूट मे बान्हि लेलनि।
ई देखि संगक लोक सब पुछलकनि—एहि केशकेँ लऽ कÓ की करब गोनू बाबू?
गोनू बाबू उत्तर देलखिन—अहां लोकनि इहो बात नहि जनैत छियैक जे एहि समय मे जाहि भाग्यवानकेँ तहसीलदार साहेबक दाढ़ीक एक गोट केश भेटि जेतैक ओ सोझे बैकुण्ठ चलि जायत। फेर कि छल? सब तहसीलदार साहेबक खुशामद करय लागल। तहसीलदार साहब फुलि कÓ कुप्पा भÓ गेलाह। लेकिन एतेक गोटे केँ दाढ़ीक केश कोना दÓ सकितथिन। ओ दाढ़ीक केश देवक लेल तैयार नहि भेलखिन तहन गोनू झा कहलथिन जे ई ओना नहि देथुन। एक-एकटा कÓ सब गोट लÓ लैत जाउ।
आब कि छल। तहसीलदार साहेेब छाूड़ू-छोड़ू करैत रहलाह आ लोक एब उठि-उठि एकक बाद दोसर, दोसर के बाद तेसर एवं क्रमे एकक बाद एक देखैत-देखैत हुनकर आधा दाढ़ी साफ भऽ गेलनि। दाढ़ी सँ खून बहय लगलनि। ओ लोकके बहुत डँटथिन लेकिन ओहि पर कियो कोनो ध्यान नहि दैत दाढ़ी उखारैत हल्ला करैत छल जे 'बाह-बाह केहन सुंदर दाढ़ी अछि?Ó
ई खबर समस्त गाम मे पसरि गेलैक। सौसे गामक लोक दाढ़ीक केश लेबय चलि देलक। तहसीलदार साहेब जखन समस्त गामक लोककेँ जबैत देखलखिन तÓ ओ जी-जान लÓ कÓ भगलाह। जिनका सबकेँ दाढ़ीक केश नहि भेटलनि ओ लोकनि खुशामद करैत पाछू-पाछू दौड़लाह। लेकिन तहसीलदार साहब जान लÓ कÓ परेलाह। ओ भागैत जाथि लोक हुनका खेहारने जाय अंततोतत्व ओ भागिये गेलाह।
ओहि दिनसँ पुन: ओ ओहि गाम मे मालगुजारी वसूलक हेतु नहि गेलाह।

गुरुवार, दिसंबर 17

नख सँ शिख धरिक सौन्दर्य

कजरारी आँखि, सुग्गा जकाँ नाक, कबूतर सन गला, अनारक बीज सन गँथल दाँत, गुलाबक पंखुड़ी जकां लाल-लाल ठोर, नागिन सन लहराइत केश, सरिसौंक गाछ जकाँ लचकैत डॉड़ ...... नहि जानि सुंदरता केँ कतेक तरहेँ बताओल जाइत रहल अछि। कताक कवि तऽ नारीक सौन्दर्यक विषय मे कतेको रचना कय देलाह। एहि नख सँ शिख धरिक सुंदरता मे कोन अंग के की अहमियत होइत छैक ......
पैर : साधारण तौर पर पयर कें उपेक्षित अंग मानल जाइत अछि। लेकिन शिख सँ नख। (पैरक नह) धरिक सुंदरता केँ पूर्ण मानल जाइत अछि। नवकनियाँ पयर मे पायल पहिर एक-घर सँ दोसर घर दिश्ï डेग उसाहैत छथि तऽ सभ सहजेँ पायलक रुन-झुन आवाजकेँ अकानÓ लगैत छथि। पयर मे पायलक अलावा बिछिया, मैचिंगल नेल पॉलिश सुंदरता के बढ़ाबैत अछि संगहि जँ पैर के लालरंगा सँ रंगि देल जायतऽ कि कहत ...... ! अजुका समय मे खनखनाइत चानीक पायलक जगह सोनाक पानि चढ़ाओल पायल, कुंदर आ मोती आदिक झांझरि लय रहल अछि।
डाँर : जिनक डाँर पातर-छितर रहैत छैन्हि हुनक कोन कथा...! नख सँ शिख धरिक सुंदरता मे डाँरक अपन अहमियत होइत छैक। आइयो जखन तथाकथित आधुनिक महिला पारंपरिक परिधान यथा साड़ी, लहंगा चोली आदि पहरैत छथि तऽ करधनी (डरकश) अवश्ये पहिरय छथि। एहि सँ पतरकी डाँरक सुंदरता बढि़ जाइत छै आओर ओहि पर बलाबाबैत-अल्हड़ जकाँ हुनक चालि सभ केँ आहत करथ मे समर्थ होइत अछि।
नितम्ब : डाँर पावर-छितर आ सुडौर हुअए, संगहि नितम्ब भारी-भरकम बेडौल हुअए तऽ सुंदरता धरलै रहि जाइछ। तैं नितम्बक उचित रख-रखाव जरूरी अछि। बेसी चर्बी वाला आ गरिष्ठï भोजन, शारीरिक श्रमक कमी आओर आलस्यपूर्ण दिनचर्या डाँर आ नितम्ब केँ भारी बनाबैत अछि। ताहिं खान-पान आ जीवनशैली के सुधारबा आवश्यक।
पीठ : हालांकि पीठ पाछे दिश्ï रहैछ, तइयो ओकर साफ-सफाईक ध्यान राखल जाय। पीठ केँ हमेशा सीधा रखबाक चाही, झुकि कऽ बैसला आ चलला सँ देह टेड़ भऽ जाइत छै। बिना बाँहिक आ पैघ गर खुजल गलाक ब्लाउज पहिरल जाय तऽ पीठ के सुंदर हैब अत्यावश्यक।
बाँहि आओर हाथ : हाथ मे काँच या मेटलक खूबसूरत चूड़ी अथवा लाहक लहठी तऽ बाँहि केँ बावजूद सऽ सजेबाक परम्परा चलि आबि रहल अछि। बाँहि हाथ के सुंदर रखबाक लेल एकर सफाई जरूरी अछि। केहुनी के उपेक्षित नञि छोड़बाक चाही, नहि तऽ काल्हिं कलाईब सुंदरता हेतु कलाइबंद (ब्राशलेट) पहिरल जाइत अछि। संगहि रंग-बिरंगी चूड़ी, मैटल, काँच, हाथ संकर, अंगूठी आदिक संगे रंगबिरंगी नेल पॉलिश उपलब्ध अछि जकर समय आ परिधानक हिसाबे उपयोग मे आनल जा सकैछ। कोहुनी सँ नीचाँ हाथधरि मेंहदी लगाओल जाइत अछि।
उरोज : एहि सौंदर्य यात्रा मे भरल-पुरल उरोजक भूमिका केँ नकारल नहि जा सकैछ। ई मात्र नारी होबाक एहसास नहि थिक वरन्ï दामपत्य जीवन आओर ममत्व केँ आत्मसात करबाक हेतु थिक। उरोजक आकर्षण आ उभारक लेल खान-पान आओर समुचित देखभालक आवश्यकता होइछ, जाहि सँ नारी उन्नत उरोजक स्वामिनी बनल रहथि।
गरदनि : पातर-सोटल गरदनि नारीक सुंदरता मे चारि-चान लगा दैत छैन्हि। सुंदर ग्रीवाक लेल समय-समय पर फेशियल करेनाय लाभदायक होइत अछि। जखन गर्दन सुन्न रहैत तऽ आभा नहि प्रकट करैत अछि, ताहिं गरदनि मे कंठहार, रानीहार, मंगलसूत्र, चेन, नेकलेस या हार, हँसिया, नेकलेस पाबैत अछि, मुदा गरदनि हुअए तऽ लंबा चेन आ रानीहार सुंदरता मे बढ़ोतरी करैत अछि।
चेहरा : गुलाबी गाल, रसीली ठोर, मोतीक समान धवल दंतपंक्ति, कजरारी आँखि, सुन्दर नाक व कान, ई सब मिलि कय चेहरा कहाबैत अछि। चेहरा नीक रहैय तऽ अनयासे ककरो प्रथमे दृष्टिïये अपना दिश्ï आकर्षित करबा मे समर्थ होइछ।
ठोर : पहिने गुलाबी ठोर सुंदरताक पर्याय मानल जाइत छल लेकिन बदिलैत समयक संग लोकक मानसिकता बदलि रहल छैन्हि आओर एहि ठोर के लाल, मैरुन, मोव, पिंक, ब्राउन, कॉफी आ चॉकलेट शेड्स मे रंगल जा रहल अछि। एतबै नञि नबका फैशनक आलम ई ललनाक ठोर नीला, पीयब, हरियक यानि सतरंगी रंग मे रंगि रहल छथि। एहि सभक बीच जरूरत एहि गप्पक जे ठोर आ त्वचा सँ मेल करैत शेड्स के चुनल जाए जकरा लगा कय अधर बिना खुजने अपन-आकर्षण जाल मे सामने वला के कैद कय सकैय।
नाक : अपन सभक सभ्यता संस्कृति मे नाकक नथ (छक) केँ सौभाग्य ओ सुहागक प्रतीक मानल जाइत अछि। कुनु शुभकाज मे जँ स्त्री नथ नञि पहिनैय तऽ हुनक चेहरा श्रीहीन बुझना जाइत छैन्हि। जहिया सँ भूमंडलीकरण समय आओल तहिया सँ तथाकथित पश्चिमी सभ्यता सेहो श्री केँ एहि प्रतीक नथ केँ अपन शृंगार प्रसाधन मे अपनौलक।
आँखि : सुंदरीक नयनाक कटार पता नञि कतेक के घायल कय दैत अछि ...? ओना तऽ आँखिक खूबसूरती अपन बशक नहि ई तऽ प्रकृति प्रदत्त अछि तइयो थोड़ैक देखभाल आ शृंगार कय कऽ आँखि केँ आकर्षक बनाओल जा सकैछ, ई तऽ अपन हाथ। पहिलुका जमाना मे काजर एकमात्र जानल-परखल सौंदर्य प्रसाधन छल। लेकिन एखुनका समय मे आँखि केँ आकर्षक बनेबाक लेल बाजार मे विभिन्न शेड्स के आई लाइनर, आइ ब्रो पेंसिल आओर आई शैडो उपलब्ध अछि।
कान : जँ चेहराक सम्पूर्ण सुंदरता केँ ताकल जाय तऽ आँखि नाक अधरक अलावा कानक अहमियत कम नहि अछि। जँ कान नहि रहितै तऽ कतय लटकैते लम्बा-लम्बा झुमका, झूलैत बाली आ कतय सजितैय रंग-बिरंगी टॉप्सँ? किंचित्ï एहि दुआरे कानक ऊपरी भाग के श्रवण शक्ति सऽ कोना सरोकार नहि।
कपार : सुहागक प्रतीक बिंदी (टिकली) आब पारम्परिकता सँ ऊपर उठि कय फैशन वल्र्डक एकटा अहम हिस्सा बनि चुकल अछि। जमाना बीत चुकल अछि जखन सबदिन एक्के रंग आ डिजाइनक बिंदी लगाओल जाइत छल। आब तऽ बाजार मे सुहागिन, कुमारि आ फैशनपरस्त महिला सभक लेल अलग-अलग रंग आ डिजाइनक बिंदी भेटैछ, जे ओ अपन रुचि आ पसिन्नक हिसाबे कीनि सकैथ। ध्यान राखल जाय जे अपन कपार, रंग, केशक स्टाइल आ उम्रक हिसाबे टिकली कीनल जाय।
केश : माथक केश महिलाक लेल अत्यन्त महत्वपूर्ण अछि। केश केँ कई प्रकारें जूड़ा बना कय ओकरा कलात्मक जूड़ापिन, फूलक गजरा, मोती जरल किलप्स सँ सजा कय मलिका-ए-हुस्न बनल जा सकैत अछि।
—रानी झा

बुधवार, दिसंबर 16

सत्येंद्रक लघुकथा

केंद्र
ओकर पत्नी आ ओकर मायमे एकदम्मे नहि पटै छलै। ओ थाकल-हारल जखन कार्य सँ वापस आबय तँ पत्नी घरक दरबज्जे परसँ मायक प्रति विषवमन करय लागै। मायो एकान्त पाबि एक ढाकी उपराग पत्नीक मादे सुना जाइ। ओकर मौन तीत भ जाय। आइयो ओहिना भेलै। ओ चुपचपा सुनि लेलक दुनूक गप्प। ताबब बेटा आबि गैले, ''पापा, एकटा प्रश्नक उत्तर कहू तँ, कि एक केंद्रसँ अनेक वृत्त घीचल जा सकै छै?ÓÓ
''हँÓÓ ओ संक्षेप मे उत्तर देलक।
''मुदा पापा, जते बेर वृत्त घीचल जेतै, तते बेर प्रकालक नोक ओकर केंद्र पर पड़लासँ ओकर गड़ैतो हेतै।ÓÓ
बेटाक गप्प सुनि ओ ओकर मुँहे तकैत रहि गेल।
दोसर गलती
एकटा साइकिल कारसँ सटि गेलै। कारकेँ किछु नहि भेलै। साइकिल थूड़ा गेल छलै। साइकिलक ई पहिल गलती छल जे ओ अपन औकादि नहि बुझलक।
थुड़ायल-कुचायल साइकिल न्यायक लेल जाय लागल। ई ओकरासँ दोसर गलती भ गेल छलै।

मंगलवार, दिसंबर 15

देह उघाड़ू विज्ञापनक पसरैत जाल

जाहि अंतर्वस्व केँ महिला सभ शारीरिक सुंदरता, सुघड़ता केँ कायम रखबाक लेल उपयोग मे आनैत छथि; ओकरा पश्चिमी सभ्यता केँ पक्षधर बाजारू संस्कृतिक कारणे लाज-धाक के धकियाबैत फैशनक रूप मे परोसि रहल छथि। कि एकरा अपन सभक सभ्यता पर करगर चोट मानल जाय? कि किछु आर!
जाहि अंतर्वस्त्रक नामकेँ सार्वजनिक रूपेँ बजबा मे हमरा सभकेँ असोकरज बुझना जाइत अछि, जकरा घरक महिला कुनु दोसर कपड़ा के तर मे दऽ रौद मे सुखाबैत छथि, ओहि वस्त्रक ऐना प्रचार अखरैत अछि। अप्पन समाज मे एखनधरि 'ब्राÓ शब्दक सार्वजनिक रूपें प्रयोग केनाय अभद्रताक पर्याय मानल जाइत अछि। ओतहि एकरा उत्तरीय भारतीय परिधानक रूप मे मान्यता देव कचोटैत अछि कि फैशनक अर्थ कपड़ाक संख्या आ अकार मे कमी आनब रहि गेल अछि? डिजाइनर आ व्यवसायी द्वारा अपन हितक वास्ते हमर सभक सभ्यता केँ निरन्तर नांङ्गïट करब कत्तय धरि उचित अछि? अफसोस होइत अछि भारतीय नारीक परिधान पर आखिर कहिया रूकत ई पश्चिमी सभ्यताक अनुकरण। अनुसरण मात्र उघारूपन केँ, आर कथूक नहि? जखन कि हमर अतीत समृद्घ अछि, विकसित अछि। मात्र शारीरिक उघारूपन अपनेलाह सँ कि भेटत?
पश्चिमी देश जकाँ उघारूपनक रोग एखनहुँ एहिठाम सभकेँ नहि लगलैक अछि। एहिठाम नारीकेँ देवी मानल जाइत छैक। सरस्वती आ दुर्गा मानैत छैक। सेक्सक आनन्द ई कदापि नहि लगाओल जाय कि भारतीय संस्कृति उघारूपनक खालिस विरोधी अछि। एक सीमा धरि हमहूँ सभ उघारूपन मे विश्वास करैत छी, सीमा तोड़ी कऽ नहि। बिनु उघारने तऽ संभोग सम्भवे नहि छैक। एहिठामक सभ पत्नीक संग ओ सभ करैत छथि जे योनि संतुष्टिï लेल आवश्यक छैक। नहि तँ सन्तान कोना होयत? सृष्टिï कोना चलत? बिनु बेटाक जे मरैत अछि तकरा तँ हिन्दू धर्मक अनुसार स्वर्गों मे कल्याण नहि होइत छैक।
प्रेम कोना करी, संभोग कोना करी, ताहि संबंध मे शिक्षा लेल हमरा देशक कामशास्त्र विश्वविख्यात अछि। काम लक्षणक विस्तृत विवरण दैत आचार्य वात्सायन लिखैत छथि :-
''श्रोत्तत्वकचक्षुर्जिका ध्राणानामात्म संयुक्तेन मनसा।
धिष्टिïतानां स्वेषु विषयेतानुकूल्यत: प्रवृत्ति: काम:॥ÓÓ
अर्थात्ï - कान, त्वचा, आँखि, जिह्वïा, नाक एहि पाँचो इन्द्रिय केर इच्छानुसार शब्द, स्पर्श, रूप, रस आ गन्ध केर प्रवृत्तिये काम थिक अथवा एहि इन्द्रिय केर प्रवृत्ति सँ जे आत्मानन्द होइछ तकरे 'कामÓ कहल जाइछ।
निष्कर्ष ई जे ज्ञान मे जाहि विषयक संस्कार होइछ से वासना बनि ज्ञान मे विद्यमान रहैत अछि आ जखन उक्त विषय के पयबाक इच्छा उत्पन्न होइत अछि तऽ ओहि इच्छा के काम कहल जाइत अछि। चूँकि ई इच्छा ज्ञानक विषय अर्थात्ï वासना सँ जनमैत अछि तेँ ओहि विषय-वासनाके सेहो काम कहल जाइत अछि। काम केर कारणेँ एक प्राणी दोसर प्राणी सँ आकृष्टï भऽ संभोग करैत अछि तेँ सृष्टिï सृजन होइछ। काम के गाम-घरक बोली मे 'सहवासक इच्छाÓ कहल जाइत अछि।
काम सृष्टिïक अस्तित्व अछि। काम सृष्टिïक आदि तत्त्व अछि। सृष्टिïक विकासक आदि कारण भेला सँ एकर अनादि सेहो कहल जाइत अछि। एकरा उपेक्षित मानब समस्त मानव मात्रक लेल अपराध थिक। काम प्राणिमात्र केर जन्मगत स्वाभाविक प्रवृत्ति थिक। काम केर शमन शारीरिक आ मानसिक दृष्टिïयेँ हानिप्रद अछि। 'कामÓ स्त्री-पुरूष दुहुक लेल समान अछि।
दुनू मे समानरूपेँ भूख, प्यास आ तृप्ति छैक। काम इच्छाक शान्तिपूर्ण समाधान प्राणीमात्रक लेल आवश्यक एवम्ï हितकर अछि। जहिया भूख आ काम खतम भऽ जायत तहिया सृष्टिï स्वत: समाप्त भऽ जायत। तेँ प्राणिमात्रक लेल काम आ भूख दुनू अनिवार्य अछि। इएह कारण अछि जे काम प्राणीमात्रक लेल ईश्वरीय प्रवृत्ति थिक। एकर अनिवार्यता आ महत्ता के किओ नकारि नञि सकैत अछि।
डॉ। फ्रायड केर विचार छन्हि जे—''संसारक पैघ-पैघ योद्घा, राजनेता, दार्शनिक आ वैज्ञानिक भेल छथि सभहक जीवन काम-वासना सँ पूर्ण पाओल गेल अछि। दुनियाक विकास हिजड़ा सँ नहिं अपितु ओहि 'मर्दÓ सँ भेल अछि जे काम उपासक छलाह। धर्म-दर्शन आ समाजक समस्त ललितकला केर पाछाँ मनुष्य मे सेक्सक भावना निहित रहैछ।ÓÓ
जतेक संभोगक आसनक चर्चा हमरा सभक कामशास्त्र मे अछि तकर बराबरी तँ पश्चिमी देश आइयो नहि कऽ सकल। लेकिन हम सभ ई काज पश्चिमी देशक लोक जकाँ सार्वजनिक स्थान मे नहि, शयनकक्ष मे करैत छी, सूतय वला घर मे। केवाड़ बन्न कऽ करैत छी। परदा राखि कऽ करैत छी। आन केओ देखि नहि लिअय तकर-ध्यान रखैत छी।
हमर पूर्वज पश्चिमी देश सभ सँ बेसी उघारूपन मे विश्वास करैत छलाह। प्रमाण तँ खजुराहो मन्दिर अछि जतय भित्तिचित्र आ प्रतिमाक रूप मे हजारों-हजार स्त्री पुरुषक संभोग मे व्यस्त, नग्न नृत्य मे मस्त, आलिंगनबद्घ होइत चुम्बनक्रिया मे संलग्र चित्र देखाओल गेल अछि। एहेन अनेको मन्दिर अछि जतय पश्चिमी सभ्यताक पक्षधर केँ अपन सेक्सक ज्ञानक श्रेष्ठताक घैलि फुटि जेतैन्ह। होश निफ्ता भऽ जेतैन्ह।

शुक्रवार, नवंबर 27

विद्यापति गीत

1

कि कहब हे सखि रातुक बात।

मानक पइल कुबानिक हाथ।।

काच कंचन नहि जानय मूल।

गुंजा रतन करय समतूल।।

जे किछु कभु नहि कला रस जान।

नीर खीर दुहु करय समान।।

तन्हि सएँ कइसन पिरिति रसाल।

बानर-कंठ कि सोतिय माल।।

भनइ विद्यापति एह रस जान।

बानर-मुह कि सोभय पान।।

2

जौवन रतन अछल दिन चारि।

से देखि आदर कमल मुरारि।।

आवे भेल झाल कुसुम रस छूछ।

बारि बिहून सर केओ नहि पूछ।।

हमर ए विनीत कहब सखि राम।

सुपुरुष नेह अनत नहि होय।।

जावे से धन रह अपना हाथ।

ताबे से आदर कर संग-साथ।।

धनिकक आदर सबतह होय।

निरधन बापुर पूछ नहि कोय।।

भनइ विद्यापति राखब सील।

जओ जग जिबिए नब ओनिधि भील।।

सैसव जौवन दुहु मिल गेल। श्रवनक पथ दुहु लोचन लेल।।
वचनक चातुरि नहु-नहु हास। धरनिये चान कयल परकास।।
मुकुर हाथ लय करय सिंगार। सखि पूछय कइसे सुरत-विहार।।
निरजन उरज हेरत कत बेरि। बिहुँसय अपन पयोधर हेरि।।
पहिले बदरि सम पुन नवरंग। दिन-दिन अनंग अगोरल अंग।।
माधव देखल अपरूब बाला। सैसव जौवन दुहु एक भेला।।
विद्यापति कह तुहु अगेआनि। दुहु एक जोग इह के कह सयानि।।

सोमवार, अक्तूबर 5

गुदरी मे लाल : बाबा यात्री


मिथिलाक पावन माटि तंत्र, दर्शन ओ शिक्षाक लेल सनातन कालहि सँ प्रसिद्ध रहल अछि। ई सिद्धपीठ ओ तपोभूमिक रूप मे सेहो विख्यात अछि। एकर शैक्षणिक भूमि सततï् उर्वरा रहल अछि। विद्यापति, अयाची, वाचस्पति ओ मंडन-भारतीक एहि धरती पर वर्तमान युगक एक गोट महान विभूतिक जन्म भेल, जिनक नाम छल-ठक्कन मिश्र। ई आगू चलि ठक्कन सँ वैद्यनाथ मिश्र, वैदेह, आ फेर 'पतन-अभ्युदय बंधुर पंथा, युग-युग धावित यात्री। तुमि चिर सारथि तव रथ चक्रे, मुखरित पथ दिन रात्रि।Ó धावित यात्री आगू चलि बौद्ध साहित्य दर्शनक संपर्क मे नागार्जुन आ युवा साहित्यकारक बीच बाबा नागार्जुन भेलाह।

बाबाक चर्चा करैत एकटा अक्खड़, घुमक्कड़, बेबाक, बात-बात पर हँसय बला चेहरा ओ अनुकूल अथवा प्रतिकूल परिस्थिति सँ अप्रभावित व्यक्तित्व, मानस-पटल पर प्रकट भऽ जाइत अछि। ई निर्विवाद सत्य जे विशुद्ध निर्गुनियाँ सदृश सांसारिक माया-मोह सँ दूर, अपना मे मस्त रहयबला, स्वछन्द विचरण कएनिहार आओर कोनो परिवेश मे अपन स्वतंत्र विचार निडरताक संग व्यक्त कएनिहार बाबा यात्री एहि गप्प केँ मिथक साबित कएलन्हि अछि जे भारतवर्ष मे व्यक्ति मृत्यु पश्चाते अमरत्व केँ प्राप्त करैत अछि। ओ तऽ अपन जीवन कालहि मे अमरत्व केँ प्राप्त करैत जनकविक रूप मे विख्यात भऽ गेल छलाह।

बाबाक मूल नाम वैद्यनाथ मिश्र छलन्हि। हिनक जन्म ज्येष्ठï पूर्णिमा तदनुसार जून, 1911 ई। मे अपन मात्रिक सतलखा (जिला मधुबनी) मे भेल छल। हिनक पिताक नाम पंडित गोकुल मिश्र आ पैतृक गाम तरौनी (दरभंगा) छल। प्रारंभिक शिक्षा अपन पैतृक गाम स्थित विद्यालय सँ प्राप्त कएला उपरांत 14 वर्षक आयु मे गनौली संस्कृत पाठशाला सँ प्रथमा एवं मध्यमाक परीक्षा उत्तीर्ण कएलन्हि। एतय ई लिखब अप्रासंगिक नहि होयत जे संस्कृत शिक्षा दिस अग्रसर होयबाक मुख्य कारण निर्धनताक पर्याय रहल। तदुपरांत महारानी (दरभंगा) द्वारा प्रदत्त छात्रवृत्तिक आधार पर उच्च शिक्षाक प्राप्ति हेतु काशी गेलाह आ ओतऽ सँ साहित्याचार्यक उपाधि अर्जित कएलन्हि। फेर एक साल धरि कलकता मे रहि 'काव्यतीर्थÓ क उपाधि पओलन्हि। ध्यान देवा योग्य अछि जे अपन स्वाध्यायक बल पर ओ नहि केवल मात्रृभाषाक साहित्य संसार केँ पल्लवित ओ पुष्पित कएलन्हि वरïनï् एकर अतिरिक्त पालि, अद्र्धमागधी, अपभ्रंश, सिंहली, तिब्बती, गुजराती, बंगला ओ पंजाबी साहित्य पर सेहो समान अधिकार बनोलन्हि। राष्ट्रभाषा हिन्दी तऽ जेना हिनका मे रचि-बसि गेल छल।

18 वर्षक अवस्था मे बाबाक वियाह ग्राम हरिपुर, बख्शी टोल निवासी कृष्णकांत झाक पुत्री अपराजिता देवी सँ भेलन्हि। विवाहोपरांत सन् 1932 ई। मे ओ उत्तरप्रदेशक सहारनपुर मे शिक्षक पद पर नियुक्त भेलाह। परन्तु, अपन घुमक्कड़ प्रवृत्तिक कारणे किछु दिनक बाद पद-त्यागी देलन्हि। 1934 सँ 1936 ई. क बीच ओ भारतक विभिन्न भागक भ्रमण करैत रहलाह। जाहि क्रम मे ओ अनेक महान विभूति ओ संस्थाक संपर्क मे अओलाह। 1936 ई. मे ओ सिंहलद्वीप (लंका) गेलाह जतय बौद्ध धर्मक अध्ययनक क्रम मे 1937 ई. मे ब्राह्मïणत्व केँ त्यागि बौद्धधर्मक दीक्षा ग्रहण कऽ बौद्ध भिक्षु भऽ गेलाह आ बौद्ध परंपरा मे 'नागार्जुनÓ नाम धारण कएलन्हि।

दुब्बर-पातर शरीर.....कोटरा मे धंसल-धंसल आँखि.....खूखायल लकड़ी सन हाथ-पएर.....अत्यंत साधारण वेश-भूषा.....। बाबाक रहन-सहन एतेक सादगी भरल छल जे ई प्रतीत होयब कठिनाह जे ओ अंतर्राष्टï्रीय व्यक्तित्व छथि। जेहने भीतर, ओहने बाहर सेहो। हुनक व्यक्तित्वक सबसँ आकर्षक तत्व छल हुनक स्पष्टïवादिता। इएह कारण अछि जे हुनक व्यक्तित्व अलग-अलग कर्मक्षेत्र मे अलग-अलग ऐतिहासिक व्यक्तित्वक स्मरण करोबैत अछि। भगवान बुद्ध अपन युगक पीडि़त मानवताक हितक रक्षार्थ संघर्ष कएलन्हि। वैद्यनाथ मिश्र सेहो बौद्ध धर्मक अनुयायी बनि भगवान बुद्धक आदर्श वचन 'बहुजन हिताय बहुजन सुखायÓ केँ अपन रचनाक माध्यम सँ जन-जन धरि पहुँचेवाक बीड़ा उठौलन्हि। ओ जतय अपन मातृभाषा मैथिली मे विद्यापति एवं चंदा झाक क्रम केँ आगू बढ़ोवैत मैथिली कविताक आधुनिकीकरण कएलन्हि, ओतहि हिन्दी मे सेहो भारतेन्दु, प्रेमचन्द्र, ओ निरालाक परम्परा केँ आधुनिक काल मे आगू बढ़ेबाक सफल प्रयास कएलन्हि। पाब्लो, नेरुदा, लोरका आ मायकोवस्की मे हुनका अंतर्राष्टï्रीय भ्रातृत्व प्राप्त भेलन्हि।

एहि मे कनिको संदेह नहि जो बाबा यात्री पूर्ण साहित्यकार छलाह। ओ माक्र्सवादी होइतहु 'सर्वे भवंतु सुखिन:Ó केर प्रवल समर्थक छलाह। हुनक साहित्यिक व्यक्तित्व बहुमुखी छल। ओ साहित्यक तमाम विधा-कविता, कहानी, उपन्यास आदि केँ सम्पुष्टिïत ओ संबद्र्धित कएलन्हि। हुनक कविता मे एक दिश संस्कृत काव्यक आनंद प्राप्त होइत अछि, तऽ दोसर दिस आम जीवनक दयनीय स्थितिक दृश्य दृष्टिïगोचर होइत अछि। ओ आम जिनगीक जे चित्रण अपन रचना सभ मे कएलन्हि अछि, वास्तव मे हुनका द्वारा बीताओल यथार्थ छल। इएह एकटा सुच्चा साहित्यकारक परिभाषा सेहो थीक।

एकटा बानगी देखल जाऊ। एहि मे ओ मिथिलाक दयनीय स्थितिक चित्रण एहि रुपेँ कएने छथि—

''तानसेन कतेक रविवर्मा कते

घास छीलथि, बागमतिक कछेड़ मे

कालिदास कतेक विद्यापति कते

छथि हेड़ायल महिसबारक हेर मेÓÓ

देखल जाय तऽ बाबा अपन सभ रचना मे समाजवादी पात्रक सशक्त चित्रण कएलन्हि अछि। हुनका ई स्पष्टï ज्ञात छलन्हि जे अधिकांश पाठक अतिसामान्य जनहि होइत छथि। तेँ जावत धरि सामान्य जनक हित लेल चिन्तनशील नहि भेल जायत, ता धरि हुनका लेल साहित्यक रचना कोना कएल जा सकैत अछि? हुनक उपन्यासक आंचलिक परिवेश नहि केवल सटीक आओर सराहनीय अछि बल्कि नव पीढ़ीक कथाकार ओ उपन्यासकारक लेल प्रेरक एवं अनुकरणीय सेहो।

5 नवम्बर, 1998 ई। केँ बाबा पंचतत्व मे विलीन भऽ गेलाह। लेकिन बहुत कमहि पाठक केँ ज्ञात हेतन्हि जे अपन शब्दरुपी वाण सँ विद्रोहक बिगुल फूकनिहार एवं सामाजिक कुरीति केँ कलम क माध्यम सँ जूझनिहार बाबाक अंतक कारण 'कुपोषणÓ अर्थात उचित भोजनक अभाव रहल होयत। जी हाँ, ओ 'हाइपोप्रोटिनिमिया-एनोमियाÓ रोग सँ ग्रसित छलाह, जकर मूल कारण मात्र कुपोषण अछि।

शुक्रवार, सितंबर 18

जो रे कलंकियाहा!

दिल्लीक भगम-भागी जिनगी मे सदिखन सभ किओ अफस्यांत रहैत अछि। एखन तऽ अवश्ये, चुनावक बाजार जे गरमायल छै। सभकें पड़ाहि लागल छैक। अखबार आ चैनल वला सभ नेताक साक्षात्कारक लेल दौडि़ लगा रहल छथि। भला एहन स्थिति मे हम कोना पाछा रही, आखिर हमहूँ तऽ एकगोट पत्रिका सँ जुड़ल छी। कखनो काल चन्द्रशेखरकट खुटिआयल दाढ़ी सेहो रखैत छी, तैं अपना केँ पत्रकार-मानवा मे कोनो असोकरज नहि।
अचानक एतेक ने धरफरी भऽ गेल जे भोर होबाक धैर्य नहि रहल, झटपट चट्ïटी पहिर-बिदा भेल, जे आइ कोनो-ने कोनो महापुरुष केँ जरूर ताकि लेबैन्ह, हुनका सँ दू टप्पी गप्प कए ओकरे साक्षात्कारक रूप मे तैयार कऽ लेब। डेग बढ़ौने जाइत रही, यमुनाक कछेर मे पहुँचल तऽ एकगोट बूढ़ दुरहि सँ देखवा मे अयला, हाक देलयन्हि कथी लेऽ सुनताह। डेगक नाप बढ़ावैत लग पहुँचल तऽ देखल जे कक्का नेहरू मन्हुआयल टहलैत छलाह। कुशल-क्षेम पुछलाक बाद, बाजलाह-रे पत्रकार-हम तऽ बुढ़ारी मे एहि धारक कात मे छी तऽ तौं कथी लेल टौआइत छÓ तोरा कोन विपति कपार पर आयल छ? हम बजलौ-विपतिक कोनो सीमा छै, यौ कक्का, बुझना जाइछ जे सभक सोच चालनि भऽ गेल छै, सभक भिन्ने बथान, किओ सोझेँ मुँहे गप्पे नहि करैत छै! बड़Ó झमारल छी, शान्ति तकबा लेल अहाँक शान्तिवन दिश्ï अवैत रही कि अहाँ पर नजरि पड़ल। संगहि आकांक्षा छल जे अपन पत्रिका मैथिली टाइम्सक लेल अहाँक साक्षात्कार लैतौं!
बाजि उठलाह-'हमरा सँ साक्षात्कार! हमरा लग-वाँचले कि अछि, किछुओ तऽ नहि। कहै छÓ अपना केँ पत्रकार आर एतबो नहि ज्ञात छÓ जे शान्विनक शान्ति आब खत्म भऽ गेलै।Ó हम अकचकेलौ! मौन में तऽ बड़ऽ 'किछु फुड़ायल, लेकिन एकटा गप्प मौन पड़ल जे बेर पड़ैÓ तऽ गदहो के बाप कहि, 'आखिर हमरा तऽ हुनक साक्षात्कार चाही। झट सँ हम कागत निकालल, पेनक ठप्पी खोलि प्रस्तुत भेलौं इंटरभ्यूक लेल। कहलयन्हि कक्का चुनावक बाजार गर्म छै, सब कथूक भाव तेजी सँ बढि़ रहल छै, एहि संदर्भ मे अहाँक विचार सँ अवगत होमय चाहैत छी। कहलाह-बुरि कहाँ के। सत्ते मे तौं पत्रकार छह 'अधकपारी! हौ हमर उमरि नहि देखैत छह, चलऽ छाहरि मे बैसि गप्प-सरकक्का करब। तोहर सभक तऽ एकमात्र सिद्धान्त भऽ गेल छह 'हम सुधरेगें, जग सुधरेगा; न सुधरेगें न सुधरने देंगें।Ó मौन मे आयल ठोकल जबाव दियैन्ह, लेकिन हड़बड़ी मे कोनो गड़बड़ी ने होअए आ प्रथम ग्रासे मक्षिकापात: नहिं भऽ जाए तेँ पुन: दाँत निपोडि़ हंसी के रहि गेलहुँ।
हमर पहिल प्रश्र छल-अहाँक कांग्रेस पार्टी मे सभकेँ ऐना पड़ाहि कियैक लागि गेल छै? तहि पर कहलाह-हौ, आबक लोक अपना केँ बेसी एडवान्स बुझैत अछि। किओ गाय-महीस तऽ छै ने जकरा खूँटा मे खुटेंस कऽ राखल जा सकए। सभक-अपन सोच छै, ककरो तऽ बाध्य नहि ने कएल जा सकैए छैक।
हम पूछलयन्हि-सुनबा मे अबैत अछि जे नेतृत्वक कारणेँ सभ पार्टी छोडि़ रहल छथि, कि आहाँ नेतृत्वक कमजोरी मानैत छी? बजलाह-जदि नेतृत्व कमजोर पडि़ रहल छैक तऽ बाकी नेता सभ हिजड़ा छथि कि, किओ आगाँ बढि़ कऽ कमान सभालि लैथि। ई तऽ प्रजातन्त्र छै ने, जनता-जनार्दनक ध्यान तऽ अवश्ये राखय पड़तैक नहि तऽ कोपक सामना करबाक लेल तैयार रहथु।
हमर अगिला प्रश्र छल-कक्का! अहाँक कांग्रेस आई विपक्ष मे रहलाक कारणे सभ कथूक विरोधे टा करैत अछि, चाहे भारत-उदय हो अथवा राजगक एजेंडा? ऐना कियैक? चोट्टïे जबाव देलाह-विपक्षक काज छैक आलोचना केनाय, एकर मतलब ई नहि जे सभ कथूक विरोध कयल जाए। विरोधक लेल विरोध कयल जाए। जहाँ धरि हमर व्यक्तिगत सोच अछि-भारत उदयक विरोध नहि होबाक चाही। भारत निरंतर विकासक पथ पर बढि़ रहल अछि, एहि विकास क विरोध कियैक। कांग्रेसक शासनकाल मे जहन भारत पर्व आ मेरा भारत महानक नारा देल गेल छल तऽ विपक्षी दल एकर विरोध नहि कयलक। ओना चुनावक समय छै, एक-दोसरा पर छीटाकांशी तऽ चलितै रहैत छै।
पूछलयन्हि-विपक्षी सभ निवर्तमान अध्यक्ष सोनिया गाँधी, केँ प्रधानमंत्रीक रूप मे विरोध कय रहल अछि! आ किछु बरख पूर्वहि कांग्रेस सेहो विदेशी मूलक सवाल पर टूटि चुकल अछि, कियैक नहि अहाँ सब संविधान मे एहि सँ संबंधित कोनो प्रावधान केलयहिं? कक्काक मौन विखिन्न भऽ गेलैन्ह, कहलैन्हि-हौ, कि बुझैत रहहिं जे एहनो समस्या ऐतै, सेहो हमरे खानदान मे। नहि जानि पूर्वजन्म मे कोन चूक भेल जे सभ कलंकियाहा एहि पार्टी आ हमरे खानदान मे आओल। जहन बेटी आन जाति आन धर्म मे वियाह कयलक तऽ कतेक-उठा-पठकक बाद मामिला शान्त भेल। कोहुना कऽ त्राण पओने छलौं। ई कलंकियाहा आन जाति आ धर्म के पूछय, विदेशीये के उठाकऽ लऽ अनलक। तिधर्मीए सऽ बियाह करबाक छलै तऽ कय-स-कए इन्दु जकाँ देसे मे करिता। कि बुझैत रहियै जे ओ पुतोहु राजनीति मे आओत आर एहि समस्या सँ जनता केँ जुझय पड़तैक। जे-से। जहन पुतोहु बनि गेल तऽ ओकर अधिकारक विरोध मे तऽ हम नहि ने किछुओ कहब आखिर हमरे खानदानक अछि ने।
तहन जनताके अहाँ कि कहै छियैह जे सोनिया के प्रधानमंत्री बना दै? हम तऽ सेहो नहि कहलियह। हाँ जनमत के अपन महत्व छैक, सभटा रिमोट तऽ जनता लग छैक, जनता विवेक व बुद्धि सँ निर्णय लिअय तऽ सबटा तसवीर ओहिना सामने आबि जेतै। बुझना मे आयल जे कक्का केँ एक दिश अपन खानदान तऽ दोसर दिश्ï राष्टï्र प्रेम खिचि रहल छन्हि। एहि ऊहापोहक स्थिति मे हमर अगिला प्रश्र छल-सोनिया गाँधी किछु दिन पूर्वहि बजलीह जे उपप्रधानमंत्री-आडवाणी जी एकटा औरत सँ डरि कऽ फेरो रथ-यात्रा आरंभ कय रहल छथि। कि जनताक लेल ओ-मात्र एकटा औरत छथि, आर किछु नहि? ताहि पर कहैत छथि जतय धरि औरतक गप्प छै तऽ सोनिया अवश्ये औरत छथि। एकरा अलावे कांग्रेस अध्यक्षा आ भवी-प्रधानमंत्री सेहो छथि। हौ! तोरो सभ केँ कि कहियौ, तहूँ सभ पत्रकार ने बेमतलब के तिलक-तार घींचैत रहैत छह। ऐना कहूँ भेलै यै। हमरो बेटीतऽ महिला रहैत प्रधानमंत्री आ पार्टी अध्यक्ष छल। बेचारी सोनिया लग राजनीतिक अनुभव थोड़ेक कम छै, ताहिं तहूँ सभ रहि-रहि कऽ उकट्ïठि करैत रहैत छह। जा, आर किओ नहि छह! आई-काल्हिं एतेक जे घोटाला पर घोटाला भऽ रहल छैक, मार-काट ताहि पर कथीक लेल नहि ध्यान दैत छहक। हमर खानदान मे आन जाति, विदेशी सँ वियाह कि कयलक तौं सब सदिखन चर्चाक बाजार गर्मोने रहैत छह। कि दोसरो पार्टी सभ मे दुर्गुण नहि छै कि? आन सब दूधक धोल छथि आ कि गंगाजलक बोतल उठाकऽ सप्पत खेने छथि। तहूँ सब आब नेता जकाँ चाटुकार भऽ गेल छह। हमरा लग आब तोरा सन-सन चाटुकर लोकक लेल फुर्सति नहिं अछि। सभ केँ चीन्हि लेल।
एतबे मे हमर निन्न टूटि गेल मुदा एतबेऽ संतोष अछि जे सपने मे सही पत्रकार जकाँ केकरो साक्षात्कार तऽ लेल। सेहो कक्का नेहरू सन महापुरुष केर।

शनिवार, सितंबर 12

मंहगाई

आई बडकी काकी’क आयु सौ वर्ष पुर्ण भ’ गेलन्हि.बडकी काकी के पोता दरिभंगा सं आयल छैन्हि आ जल्दी जयबाक हेतु तैयार भ रहल छैन्हि..काकी दौडि कय गुड्डू’क दोकान जा दू लीटर सरिसो तेल आ पांच किलो चाउर कीन अनलीह सनेस भेजबाक लेल. पोता कहलकन्हि"दाय,एतेक सौख छौ त’ पाईये कियेक नै भेज दै छहुन्ह बेटा के?"काकी बजलीह "हौ, गुड्डू के दोकान कोनो दूर छैक.पोता तमसा गेलन्हि आ कहय लगलन्हि"तू बूढ भ’ गेलैंह,बुधि नहि काज करैत छौ.आब कियो मोटरी भेजैत छै?""बुधि त’ लोकक नै काज करैत छैक?"- काकी बाजय लगलीह-"जहिया लोक मोटरी सनेस भेजैत रहय,हम पाई भेजैत रही,आब हम पाई के बदला मे मोटरिये भेजैत छी.कारण जे आब त’ जतेक भारी मोटरी ओतबे भारी पाई.देखै नै छहक कते मह्गाई बढि गेलैक.मोटरी ल’ जा ई पाइ स हल्लुक पडतह."

- अरविन्द झा
बिलासपुर

शुक्रवार, सितंबर 11

जीवन मे खेल-कूदक महत्त्व

खेलकूदक इतिहास प्राय: ओतबै पुरान अछि जतेक मानव सभ्यता। आदि कालहि सँ खेलकूद मानव जीवनक एकटा अभिन्न अंग रहल अछि। समय प्रवाह मे एकर रूप आ प्रकार मे परिवर्तन होइत रहल अछि आ एकर वर्तमान स्वरूप विस्मयकारी ढंगे विपुल तथा बहु आयामी भऽ गेल अछि। खेलकूदक प्राचीन परम्परा मे एथलेटिक्स खेलक बड़Ó महत्वपूर्ण स्थान छल आ एकर उद्ïगम प्राचीन मिस्रक सभ्यता मे भेटैछ। एथलेटिक्स शब्दक शाब्दिक अर्थ होइछ 'इनामक खेल प्रतियोगिताÓ आ एहि तरहेँ प्रतियोगिता भावनाकेँ आरोपित करैछ। खेल मे बहुत रास खेल सभ सम्मिलित कएल गेल अछि जेना विविध प्रकारक दौड़-कूद, मुक्केबाजी, कुश्ती, गोला फेंक, भाला फेंक, तलवार बाजी, भारोत्तोलन, तीरंदाजी, विभिन्न प्रकारक तैराकी आ शारीरिक व्यायाम संगहि मैदान मे खेलबा योग्य खेल जेना क्रिकेट, हॉकी, फुटबॉल, हैण्डबॉल, टेनिस अछि।
स्वस्थ जीवनयापनक हेतु आवश्यक शर्त सभ मे खूलकूद एकटा विशिष्टï स्थान रखैत अछि। खेलकूद तऽ मनुष्य मात्रक लेल बड़Ó महत्वपूर्ण होइछ, मुदा अवस्था आ मनेवृत्तिक अनुसारेँ ओकर रूप बदलि जाइत छैक। यथा बाल्यावस्था सँ किशोरावस्था तक लोक सक्रिय आ प्रत्यक्ष रूपे खेलकूद मे भाग लैत अछि। एकरा बादक अवस्था मे किछु व्यक्ति एकटा योगासनक रूप मे तथा किछु भोर-सांझ टहलवाक रूप मे अपनबैत छथि। रूप एकर चाहे किछुओ होइहि किन्तु एकर उद्देश्य आ परिणाम एक्के होइत छैक। जेना मशीन वा कोनो यंत्रकेँ सुचारू रूप सँ चलयबाक लेल समय-समय पर ओकर झाड़-पोंछ, तेल-पानि इत्यादिक जरूरत होइछ ततबे यंत्र रूपी एहि मानव शरीर केँ स्वस्थ, सुन्नर, सुडौल, मजबूत एवं दीर्घायु बनएवाक हेतु खेलकूद आवश्यक होइछ।
छात्र लोकनिक बहुमुखी व्यक्तित्वक विकास मे खेलकूद बड़Ó विशेष महत्व छैक। कहल गेल अछि जे— च्च्स्शह्वठ्ठस्र द्वद्बठ्ठस्र द्बठ्ठ ड्ड ह्यशह्वठ्ठस्र ड्ढशस्र4ज्ज् अर्थात्ï स्वस्थ मनुष्ये सँ मानसिक आ बौद्धिक प्रौढ़ताक अपेक्षा कएल जा सकैछ। खेलला कूदला सँ शारीरिक व्यायाम होइछ जाहि सँ मांसपेशी कडग़र, हड्डïी चौडग़र आ सुसंगठित बनैत अछि। एहि सँ शरीरक प्रत्येक भाग मे होमय वला रक्त संचार सेहो नियंत्रित होइछ, जे रक्त चाप आ हृदय गति केँ नियंत्रित करैत अछि। खेलकूद मनुष्य मे एकटा जागृति जगबैत अछि जकरा द्वारा हमरा लोकनि एक दल, एक समूह मे रहि कोनो खास उद्देश्यक पूर्तिक हेतु अनुशासित ढंगे प्रयास करबाक कला सीखैत छी। खुलल वातावरण तथा स्वच्छ वायु मे खेलकूद शरीर मे स्फूर्ति दैछ, शरीरकेँ तन्दुरूस्त बनबैछ आ मुखमंडल पर आभा जगबैछ जाहि सँ प्रभावशाली व्यक्तित्वक निर्माण मे सहायता भेटैत छैक। बन्द कोठरी मे बैसि निरन्तर विद्याभ्यासये रत रहला सँ शरीर कमजोर भऽ जाइछ आ खसि पड़ैछ जे आगा पुन: अध्ययन कार्य मे बाधा उपस्थित करऽ लगैत अछि, ताहिं एकर निवारणक लेल खेलकूद बड़Ó आवश्यक भऽ जाइछ।
विभिन्न खेलक लेल स्थापित किछु खास नियम सभ केँ अनिवार्य रूपेँ पालन करबाक अभ्यास जीवनक कोनो क्षेत्र मे विकास, उन्नति ओ प्रगतिक मार्ग प्रशस्त करैछ। ई क्रीड़ा परस्पर सहयोग आओर नियमक प्रति सजगता बढ़बैछ, आत्म नियंत्रणक कला सीखबैछ, सभक हित मे आत्म त्याग, करबाक भावना जगबैत अछि। संगहि उत्थान-पतन, हार-जीत आदि मे स्थित प्रज्ञ (निष्काम कर्मयोगी) बनबाक नैतिक शिक्षा सेहो प्रदान करैत अछि। विभिन्न खेलक क्रम मे खान-पानक संदर्भ मे घोषित आ निर्धारित नियमक पालन कएला सँ आत्म संयम आ कठोर इच्छा शक्ति विकसित होइत अछि। जे जीवन मे सतत्ï कोनो ने कोनो रूपेँ लाभकारी सिद्ध होइत रहैछ। क्रीड़ा मनुष्य मे अदम्य साहस, उत्साह तथा धैर्य प्रदान करैत अछि। एहि सँ हमरा लोकनि केँ विकट सँ विकट परिस्थिति मे अंत समय धरि पूर्ण लगन, निष्ठïा आ उत्साह सँ कार्य करैत रहबाक प्रेरणा भेटैत अछि। एकटा नीक खेलाड़ी सतत सजग एवं सतर्क रहैत अछि। एहि तरहेँ ई अनुकरणीय चरित्र निर्माणक मार्ग प्रशस्त करैछ। दू वास्तविक खेलाड़ीक बीच सतत स्वस्थ एवं लाभकारी प्रतिस्पर्धाक भावना देखबा मे अबैछ चाहे ओ जीवनक कोनो क्षेत्र वा शास्त्रक कोनहुँ विधा हो।
हिन्दू दर्शन मे कहल गेल अछि—आत्मा वा अरे द्रष्टïव्य: अर्थात्ï अखिल विश्व मे आत्मा सँ साक्षात्कार करब इएह टा एकमात्र दर्शनीय वस्तु थीक। मुदा एकरो चरितार्थ करबा लेल पूर्णरूपेण शरीर सँ स्वस्थ होयब अनिवार्य थीक। आ एहि हेतु खेलकूद व्यायाम आ योगासन आवश्यक अछि। स्वस्थ शरीर खाली कार्यक परिणाम आ मात्रे टा नहि अपिक ओकर गुणात्मकता के सेहो परिवद्र्धित आ परिष्कृत करैछ। कमजोर आ अस्वस्थ व्यक्ति कोनो कत्र्तव्यक निर्वाह नीक जकाँ नञि कऽ सकैत छथि। किएक तऽ ओ सर्वदा दोसर दिस एकटा पूर्ण स्वस्थ व्यक्ति असंभव आ असाधारणो कार्य केँ अपन आत्मबल सँ संभव आ सुलभ बना दैत छथि। खेलक क्षेत्र मे हम परस्पर सहयोगक भावना सँ प्रेरित भऽ अपन व्यक्तिगत अस्तित्वकेँ दलक अस्तित्वक संगे जोडि़ लैत छी। खेल समाप्त भेलाक बाद दू दलक खेलाड़ी परस्पर ओहि सौहाद्र्र सँ मिलैत छथि जेना निकटतम मित्र। जीवन सेहो एकआ पैघ खेल क्षेत्र थीक आ एहि हेतु हमरा लोकनि खेलक आदर्श सभकेँ आत्मसात कय ली बड़ जीवन बड़Ó सुखी आ गरिमामण्डित भऽ जायत।
एखनुका समय मे खेलकूद प्रांतीय आ राष्टï्रीय सीमा-परिसीमा केँ लाँघि अंतर्राष्टï्रीय स्तर पर स्थापित भऽ चुकल अछि। कोनो मान्यता प्राप्त खेलक खेलाड़ी अपन व्यक्तिगत क्षमता, प्रतिभा आ प्रदर्शन सँ सगरो ख्याति पबैत छथि आ ओ जाहि देशक रहनिहार छथि तकर प्रतिष्ठïा सेहो बढि़ जाइछ। ई क्रीड़ा आब मात्र एकटा मनोरंजक साधन आ स्वस्थ जीवनक कुंजीए नहि रहल अपितु ई व्यावसायिक रूप सेहो प्राप्त कऽ चुकल अछि। विविध खेल मे बहुतोक एहन प्रतिभावान खेलाड़ी छथि जे खेलक बलेँ विविध सेवा मे नीक स्थान प्राप्त कयलनि अछि। खेल मे विशिष्ट ख्याति प्राप्त आ प्रमाण पत्र प्राप्त व्यक्ति केँ नौकरी मे एहि आधार पर अतिरिक्त अंक सेहो भेटैत छैन्हि। टेनिस, मुक्केबाजी आ फुटबॉल व्यावसायिक आ आर्थिक दृष्टिïएँ सभसँ लाभकारी खेल अछि जकर विजेता अत्यल्प समय मे विपुल धन राशिक स्वामी बनि जाइत छथि।
मुदा 'अति सर्वत्र वर्जयेतÓ तेँ सामान्य व्यक्ति केँ खेलकूद आ व्यायाम मात्र स्वास्थ्य प्राप्तिक उद्देश्य रखबाक चाही। अत्यधिक खेलकूद आ व्यायाम सेहो शरीरक लेल हानिकारक भऽ जायत आ विविधि प्रकारक असंतुलन आ रोग केँ आमंत्रित करत संगहि 'शरीर माध्यम खलु धर्मसाधनम्ïÓ केर जे हमरा लोकनिक मूल मंत्र अछि, से विफल आ अप्रासंगिक भऽ जायत।

मंगलवार, सितंबर 8

चौंसठ कला

किछु गप्प ऐहन होइत छैक जकरा बारे मे कतेक बेर कतेको आदमी सँ सुनैत छी, मुदा ओ गप्प आखिर छै कि आ कियैक बाजल जाइत अछि। एकर तह मे जयबाक कोनो विशेष प्रयोजन नहि बुझैत छियैह। ऐहने एकटा सुनल जानल शब्द अछि 'चौंसठ कलाÓ, जे बहुत पहिनहिं सँ सुनबा मे आबि रहल अछि। लेकिन बहुत कम लोक केँ एकर अवगति छैन्हि जे सरिपहुँ ई चौंसठों कला होइत छै कि?
कहल जाइछ जे अजुका समय मे यदि एहि चौंसठ कला मे सँ नारी मे बीसोटा भेटि जाय तऽ ओ नारी गुणी छथि। जँ किनको मे चौंसठों कला हेतैन्ह तऽ नि:संकोच ओ पद्ïमावती सदृश हेतीह, जिनक गुण आ रूप-लावण्य पर साधारण मनुक्खक कोन कथा देवता सेहो मोहित होबाऽ सँ नहि बँचि पबैत छथि। जकर सीथ मे मोती हुअए, मुंह चन्द्रमा केर समान होइ, भौं धनुष जकाँ प्रतीत होइहि, जे अपन नयनाक कटार सँ जगत्प्राणी के घायल करैथ, जिनक लाल-लाल ठोर रस सँ भरल होइन्हि, ऐहन स्त्री जँ चौंसठों कला सँ परिपूर्ण होथि तऽ हुनका लेल पुरुष भेटब दुर्लभ जे हिनक वरण कए पबथिन्ह। ऐहन सुंदरी या तऽ स्वयंवर रचा अपन पति स्वयं पसिन्न करतीह अथवा दुष्यंतक शकुंतला वा कृष्णक राधा हेतीह। भऽ सकैछ फेर सँ सिंहल द्वीप बनै वा दुबारा राजा रत्नसेनक जन्म होइन्हि।
आई-काल्हिं जखने लड़कीक गुणक चर्चा होइत अछि सहजहिं सभक ठोर पर चौंसठ कला आबिए जाइत अछि, कारण पुरनका समय मे चौंसठों कला सँ परिपूर्ण स्त्रीये सर्वगुण सम्पन्न मानल जाइत छलीह। आखिर ई चौंसठों कला अछि की? जे मन के उद्वेलित कय रहल अछि। जँ पड़ताल कएल जाय तऽ साहित्य संस्कृति मे चौंसठ कलाक परिचय एहि प्रकारेँ भेटैत अछि :

गायन
वाद्य विद्या
नृत्य कलाक ज्ञान
नाट्ïयकलाक ज्ञान
चित्रकारी केनाय
बेल-बूटा बनायब
चाऊरक आँटा आ फूल सँ रंगोली (अरिपन) बनायब
रंग-बिरंगी पाथर सँ फर्श सजेनाय
मौसमक हिसाबे कपड़ा पहिरबक ज्ञान
समय आ ऋतुक हिसाबे शैय्या रचनाक ज्ञान
जलक्रीड़ा जानब
जलतरंग बजेनाय
पुष्पाहार आदि बनायब
वेणी बनेनाय
सुगंधित द्रवक ज्ञान
विभिन्न प्रकारक कपड़ा लत्ता पहिरबक ज्ञान
फूलक आभूषण बनाऽ पूरा देह के सजेबाक ज्ञान
इंद्रजालिक योग में निपुण
सौंदर्यवद्र्धक वस्तुक ज्ञान
नबका-नबका व्यंजन बनायब
सिलाई मे निपुणता
कईक प्रकारक शर्बत आ आसव बनाय
कढ़ाई मे निपुणता
कठपुतली बनायब आ ओकरा नचायब
वीणा आ डमरू बजेनाय
मुरूत बनेनाय
ग्रंथक ज्ञान
नाट्ïय सिनेमाक अवगति
कूटनीति मे दक्षता
पटिया गलीचा आदि बनायब
विभिन्न समस्याक समाधान केनाय
घर-निर्माणक जानकारी
बढ़ईक थोर-मोर काजक ज्ञान
रत्न चिह्नïनाई
मणिक रंग बुझनाय
बागवानीक शौक
पौधा सभक जानकारी
मुर्गा तीतर के लड़ेनाय
तोता-मैना के पढ़ेनाय
पक्षी-पालन
बहुभाषी होयब कम सँ कम दू भाषाक ज्ञान
इशारा सँ बातचीत करब
नबका-नबका बोली निकालब
नीक-बेजायक पहचान
काव्यके बुझबाक शक्ति
स्मरणशक्ति नीक
पहेली बुझायब
सांकेतिक भाषा मे गप्प केनाय
मन मे कटक रचना केनाय
समस्त कोषक ज्ञान
छंद ज्ञान
वेदक ज्ञान
खिलौना निर्मित केनाय
चौसर आ ताश खेलनाय
बच्चाक खेलक ज्ञान
उबटन आ मालिशक ज्ञान
घरक साफ-सफाई केनाय
पैघक आदर आ सम्मान
आज्ञाकारी
मधुर व्यवहार
मृदु व मितभाषी
छन्दबद्ध रचना केनाय
मितव्ययी
अस्त्र-शस्त्र ज्ञान

सोमवार, सितंबर 7

अभिव्यक्ति

अभिव्यक्ति
सुखायल पात जका
हुनका लोकनिक गप्प
उरैत अछि स्वतन्त्र आकाश मे,
छू लैत अछि
गगनचुम्बी महल के,
सैट जाइत अछि
खुब पैघ पोस्टर स’,
तेज चलैत अछि
कार के काफ़िला के सन्ग.
मुदा हमर सभहक बात
पानि मे फेकल पाथर जका
डूबि जाइत अछि,
विलीन भ जाइत अछि,
ओहि मे वजन होइत छैक
तैयो स्तित्व नहि।
किछु साल बाद
माटिक गादि मे दबि
भुमिगत भ जाइत अछि
एहन अभिव्यक्ति के कि अर्थ?


- अरविन्द झा
बिलासपुर
09752475481

शुक्रवार, सितंबर 4

रस्ता

आदमी
विचार सँ पैघ होइत छै
वैभव आ अभिमान सँ नहि
जनैत छी
विचारक फुनगी पर
आदमीक प्रवृति टाँगल रहैत अछि
आ ओकर प्रारब्ध
कर्मक गति तकैत अछि
तत्पश्चात्ï
आदमी, आदमी बनैत अछि।
हम अहाँक उपदेशक नहि
हम त मानधन छी
हमर औकात तऽ
एकटा चुट्टी सन अछि
जकर मालगुजारी
हम अपन शब्दक रूप मे अभिव्यक्त करैत छी।
हमर बात मानब त सुनू
अहाँ अपन मनोवृति के बदलु
एहिठाम अहाँ के सभ किछु भेटत
जकरा अहाँ प्राप्त कए सकी
मुदा भाई लोकनि
रस्ता दूटा अछि
पहिने आश्वस्त भए जाउ
जे कोन रस्ता कतए जाइत अछि।


—सतीश चंद्र झा
9810231588

गुरुवार, सितंबर 3

बाढि़ बनाम जल प्रबंधन

जल जीवन अछि। जीवन अछि जल। व्याप्त अछि बरोबरि प्रकृति मे, पृथ्वी पर, हमरा-अहाँ केँ शरीर मे। एकर बिना जीवनक नहि भऽ सकैत अछि कल्पना। मुदा जल मचा दैत अछि त्राहिमाम—न्यून उपलब्धता मे आ अपन अधिकता मे। 'अतिÓ—आनैत अछि विपत्ति। कमी वा बेसी, सुखाड़ वा बाढि़ होइत अछि प्रलयकारी।
प्रलय अनिष्टï सूचक अछि। रोंइयां ठाढ़ भऽ जाइत छैक, देह सिहरि जाइत छैक सोचला मात्र सँ। मानवीय होय वा प्राकृतिक- होइत अछि ई विनाशक। तैँ आवश्यक अछि प्रतिकार। सोचय पड़त विकल्प, ताकए पड़त समाधान। भागीरथी प्रयासक करए पड़त संधान। सुरक्षा लेल आवश्यक छैक-श्रम, स शक्ति, संपत्ति आ सामथ्र्यक प्रबंधन।
प्रबंधन जटिल होइत छैक अपना वृहत स्वरूप मे। ऊर्जा आ बहुत रास सामूहिक प्रयासक समन्वय अछि प्रबंधन। वृहत योजना आ गंभीर चिंतन। दूर दृष्टिï आ व्यापक अध्ययन। तखने कल्याणकारी आ सटीक भऽ सकैत अछि प्रबंधन। रोकल जा सकैत अछि क्षय संपत्ति, माल आ जानक।
प्रतिवर्ष सैकड़ो जान आ करोड़ोंक संपत्ति स्वाहा। जल-जमाऊ के असरि रहैत अछि कतेको दिन। बाधित परिवहन आ पंगु जीवन। बीमारी-महामारी मँगनी मे, सँपकट्टïीक विशेष उपहार। दंश झेलैत छी चुपचाप। अभिशप्त जेना विधवा प्रलाप। मुखर अपेक्षा, मौन सरोकार। आत्मसात जेना संस्कार। भविष्य निर्धारित कऽ सकैत अछि वर्तमान। वर्तमान बुझबा लेल देखए पड़त अतीत।
अतीत मे स्व. डॉ. लक्ष्मण झा देखौलन्हि वेभेल परियोजनाक प्रारूप। बाढि़ पर गंभीर मनन। समाजक गहींर चिंतन। बुझि नहि सकल अज्ञानी मन, तैं नरकीय बनल रहल जीवन। फेर सँ उठल अछि आवाज। नव आगाज। नव सुगबुगाहट। नव सूत्र। नवीन अध्याय। डैम आ पनबिजली! स्थायी निदान? बाढि़क समाधान? नव शुरुआत?
शुरुआत सँ जुड़ल अछि अंत। निर्माण सँ विध्वंस। डैमक निर्माण आ कि लाखो-करोड़ोक विस्थापन। भूमिक अधिग्रहण। खतरा मे पर्यावरण। कतेको आपदा-विपदा केँ आमंत्रण। की तैयार छी? उद्वेलित भावना, सहि सकत आर्थिक/अस्तित्ववादी प्रताडऩा? सुरसाकेँ मुंह जेंका पसरल समस्या। अस्तित्वक कतेको यक्ष प्रश्न। बहुत रास चिंतन। अनवरत मंथन। वैचारिक मंदारक अछि प्रयोजन। अमृत? विष? वा दुनु? पचा सकब? तैं डेग बढ़ौला सँ पहिनेए लेमय पड़त निर्णय। अपना लेल, भविष्य लेल, पीढ़ी दर पीढ़ी लेल। स्वागत, प्रत्येक कल्याणकारी निर्णयके।

सोमवार, अगस्त 31

काज

बेटा पूछलक हमरा-
मां, हमरा कीयाऽ कनेलहुं
कनि धीरे सऽ बाजल हम
अहाँ कीयाऽ हमरा तमसेलौं
कनैत-कनैत बाजल ओ
हम तामस नहि दियेलहुं
हम चप्पल नहि हरेलहुं
ओ तऽ हरा गेल अपनेहि
एखन तऽ हम
करैत रही काज
फाड़ैत रही किताब।
—कुलीना रुबी

शुक्रवार, अगस्त 28

मिथिलाक उद्धार करु सरकार

अहाँ मैथिल? अछि क्षेत्र, भाषा, संस्कृति आ विरासत केर ह्रïासक चिंता? तहन किऐक धएने छी हाथ पर हाथ? चलु करी मिथिलाक उद्धार। बहुत आसान छैक सरकार, अहाँ होऊ तँ तैयार। जाति, उम्र, शिक्षा नहि ककरो दरकार। अहीं याचक, अहीं मुखतार। दोसरक पूंजी, अहांक पगार। आमद केर स्रोत हजार। सामाजिक प्रतिष्ठïा बोनस भजार। चंदाक हथकंडा पर चलत व्यापार।
बुझि तँ गेल होइबै अपनेहियों, हम की कहए चाहैत छी। भरि देश मे बहुत-बहुत रास काज लेल शतकोटि संख्या मे लोग अपन प्रत्यक्ष भागीदारी कÓ रहल छथि, बिना सरकारी मुलाजिम बनने। मिथिला मे तें ई प्रथा खास प्रचलित भÓ गेल अछि। सच पुछु तँ एहि मामला मे अंतर्राष्टï्रीय स्तर पर मिथिलाक खिलाफ बड़का साजिश भेल अछि। हम शपथपूर्वक कहबाक लेल तैयार छी जे दुनियाके कोनो देश मे कोनो एक क्षेत्रक नाम पर एतेक संस्था नहि छैक जतेक मिथिला मे अछि। क्षेत्र, भाषा, संस्कृति, कला, साहित्य कें के पूछए सामाजिक आ राजनीतिक स्तर पर जतेक संस्था, भरि देश मे हम आवासी वा प्रवासी मिथिलावासी कागत पर बना रखने छी, ओतेक संस्था तँ कतहु नहि अछि। संचार क्षेत्र मे एतेक विकासक बादो मिथिलाक एहि उपलब्धि पर विश्व समुदाय हमरा लोकनि के पुरस्कृत वा सम्मानित करबाक मामला पर गांधीजीक बानर जेंका मुंह, कान आ आंखि बंद कएने अछि। एतेÓ तक जे एहि क्षेत्र मे हमरा लोकनिक नाम 'गिनिज बुक आफ वल्र्ड रेकार्डÓ तक मे शामिल नहि कएने अछि। की ई भारत खासकऽ मिथिलाक विरुद्ध अंतर्राष्टï्रीय षड्ïयंत्र नहि अछि? भूमंडलीकरणक दौर मे विकासक लेल कटिबद्ध एतेक संस्था बला क्षेत्रक उपेक्षा कोना जायज मानल जा सकैत अछि? तैँ हे मिथिलाक कर्णधार लोकनि, आऊ हम सब मिलि गोटेक हजार संस्था एहि नाम पर बना क्षेत्रक उद्धार आ अंतर्राष्टï्रीय साजिशक पर्दाफाश करैत नव जागृतिक बिगुल बजाबी आ संस्था जगतक इतिहास मे अपन क्षेत्रक नाम रोशन करी। ओना परोक्षक बात छैक, हम (व्यक्तिगत स्तर पर) अंतर्राष्टï्रीय मंचक भलमानसहतक एहि अर्थ मे ऋणी सेहो छी जे विश्व जगत कान, आंखि आ मुंह संग अपन नाक (गांधीजी केर बानरक विकसित मॉडल) सेहो बंद कएने अछि, नहि तऽओ अपनो सबहक संस्थाक विषैण गंध सेहो सूँघि सकैत छल जाहि सँ अपन आपसी दुर-छियाक संस्कार आ संस्कृति भारी अप्रकृतिक कारण बनि सकैत छल।
एहि सँ हतोत्साहित वा निराश होयबाक आवश्यकता नहि अछि। आखिर एतेक छोट अपकृतिक संभावना सँ डरेबाक लेल तँ हमरा लोकनि 'शत्रुघ्न सिन्हा फैन्स क्लबÓ सँ लऽ 'मैथिल अल्पसंख्यकÓ धरि महान आ समर्पित उद्देश्यवला संगठन तँ नहि बनौने छी ने यौ? 'अखिल भारतीयÓ आ 'अंतर्राष्टï्रीयÓ स्तर पर संगठन/संस्था हम की ओहिना बना लेने छी। देशक प्रत्येक कोन मे जतए दसो गोट मैथिल पहुंचि गेल होथि ओहि ठाम मिथिला आ मैथिलीक उद्धारक उद्देश्य सँ एगो संस्थाक आविर्भाव भऽ जाइत अछि। ई दीगर बात अछि जे एहि सबहक बावजूद मैथिली नहि तऽ अष्टïम सूची मे स्थान पाबि सकलीह आ नहिए मैथिलीक मूल लिपि 'मिथिलाक्षरÓ प्रचलन मे आबि सकल अछि। मिथिलाक संस्कृति अलोपित होमए लागल अछि। पंजाबक लस्सी आ 'मकई दी रोटी, सरसों दा सागÓ आ बंगालक 'माछा भातÓ आ दक्षिण भारतीय व्यंजन भरि देश मे भाषा सँ इतर सेहो अपन अलग पहचान बना लेने अछि आ लोकप्रिय भऽ रहल अछि। की बंगाली लोकनि हमरा सभ सँ बेसी माछ-भात खाइत छथि? मुदा ई हुनक पहचान सँ जुडि़ गेल छन्हि। हमर तिलकोर, दही-चूड़ा, मखान आ कि आनो कोनो व्यंजन क्षेत्रीय पहचानक अंग बनि सकल अछि? जहां तक भाषायी प्रतिबद्धताक प्रश्न अछि मिथिला-मैथिली सँ जुड़ल संस्था/संगठनक पदाधिकारियो लोकनि कतेक मैथिली बजैत छथि से सर्वविदित अछि। तेँ गाम-गाम चौक-चौराहा आ घर तक मे मैथिली उपेक्षित होमय लगली हँ। प्रवासी लोकनि के बात तऽ छोडि़ दिअऽ मिथिला मे रहनिहार प्रबुद्ध आ सम्मानित लोकनि सेहो अपना के कथित तौर पर 'आधुनिकÓ साबित करैत घरो मे दोसर भाषा बाजब शानक बात बुझैत छथि। प्रबुद्ध प्रवासी लोकनि अपना बच्चा के हिन्दी, अंग्रेजी आ स्थानीय क्षेत्रीय भाषा (पंजाबी, बंगला, मराठी आदि) के ज्ञान तऽ आवश्यक रूपें दैत छथिन। मुदा मैथिली ''बच्चा के पैघ भेला पर स्वेच्छाÓÓ पर छोडि़ देल जाइत अछि, कारण यदि बच्चा घर मे मैथिली बाजत तऽ ई ओकर 'विशुद्ध हिन्दी उच्चारणÓ मे बाधक भऽ जयतैक। मिथिला मैथिली के समस्त चिंता मात्र 'मंचीयÓ आ 'दोसराकÓ लेल रहि गेल अछि। इएह कारण अछि जे एहि मादे जतेक संस्था/संगठन बनैत रहैत अछि ओतबे जल्दी ओ अस्तित्वहीन सेहो भऽ जाइत अछि। मैथिली ओहिना पड़ल रहि जाइत छथि-उपेक्षित। एहि तमाम संस्था लग उपलब्धि के नाम पर एकाध सांस्कृतिक कार्यक्रम टा (ज्यादातर विद्यापति पर्व) रहैत छन्हि। ईमानदारी सँ कहल जाय तऽ ओकरो मुख्य उद्देश्य चंदाक जरिए कमाई रहैत अछि। ओहि चंदा सँ भेल आमदक खर्च आ बंटवारा के नाम पर थूक्कम-फज्झति, धूर-छिया आ गुटबाजी जन्म लैत अछि। एहि सँ कार्यक्रम तऽ प्रभावित होइते अछि आम मैथिलक मोन मे विरक्तता सेहो आबैत अछि जाहि सँ भविष्य मे नहि सिर्फ एहि तरहक कार्यक्रम बंद होयबाक स्थिति मे आबि जाइछ अपितु संस्था सेहो बंद भऽ जाइत अछि। कतेको ठाम तऽ आयोजके लोकनि दारु पीऽ मंचे पर अशोभनीय व्यवहार करए लागैत छथि। विद्यापति पर्वक सबसँ पैघ विडम्बना अछि जे एहि ठाम 'विद्यापतिकÓ रचना छोडि़ सब तरहक 'झमकौआÓ गीत सुनबा मे अबैत अछि। शालीनता, मर्यादा आ मंचीय गरिमा लुप्त भऽ गेल अछि। महिला कलाकार सेहो गीतक स्तरीयता आ सुर साधना सँ बेसी शारीरिक लोच, दैहिक प्रदर्शन, भड़कौआ गीत श्रोता केँ उत्तेजना सँ 'फड़कावैÓ बला अदा केर समावेश कला मे कए रहल छथि। एहि 'अदाÓ पर आई श्रोता आओर आयोजक दुनू फिदा छथि। आ ई कारोबार खूब चलि रहल अछि।
तैँ कहै छी बाबू-भैैया। खूब संभावना छै एहि 'फील्डÓ मे। पैसा, नाम आ प्रतिष्ठïा सब भेटत। अहाँ अकर्मण्य होय वा लुच्चा-लफंगा, जुआरी-शराबी, होय वा गिरहकट, समाज-सेवा मे एहि 'शार्ट-कटÓ केर माध्यम सँ अपन सामाजिक छवि बदलि सकैत छी?
पैघ लोक सँ सम्पर्क कऽ सकैत छी, राजनीतिक, आथिक, महत्वाकांक्षा केर पूर्ति कऽ सकैत छी, बस मिथिला-मैथिलीक चिंतन सँ जुडि़ जाऊ। उपलब्धि के नाम पर असफलता तँ सोचबे नहि करु। बहुत पैघ-पैघ विभूति भेलाह अछि मिथिला मे, की कऽ लेलाह क्षेत्र आ भाषा लेल। मुख्यमंत्री सँ केंद्रीय मंत्री धरि कोनो मैथिल नेता किछु कऽ सकलाह अछि? तथापि की हुनक सामाजिक प्रतिष्ठïा पर कहियो कोनो आंच आएल अछि? तहन अहां व्यर्थे ने डराइत छी। शुद्ध व्यापारी बनए चाही तऽ मिथिला-पेंटिंग के उद्धार सँ अपनाकेँ जोडि़ लिअ। एहि मे कलाकारक शोषण आ मुनाफा सँ पैसा तऽ कमा सकैत छी लेकिन समाज-सेवा के मुख्य धारा सँ कटल रहब, ईखतरा अछि। अगर संस्था/संगठन बना लेब तऽ बीसो आंगुर घी मे बुझू। बिसरि जाइ आई हम अपना पारम्परिक पावनि तिहार तक सँ कटि रहल अछि। छोड़ू ई सब जमीनी चिंता। ई सामाजिक विकास आ मिथिलाक उद्धारक मार्ग अबरोधक अछि। मैथिलीक उद्धारक बनबा लेल दलाली सेहो सीख लिअ। तऽ उठू, आबू सरकार, सब मिलि करी मिथिलाक उद्धार।

गुरुवार, अगस्त 27

नहि बनब पत्रकार!

जहिया सँ ज्ञान भेल तहियो सँ सेहन्ता छल जे पढि़ लिखि पत्रकार बनी। सेहन्ता के सेहन्तें जकाँ सेबने रही। कि जानैत रही जे पैघ भेला पर (वयस मे) नहि बनि सकब? कियैक नञि, एकर घ्ज्ञुति आइयो धरि नहि भेल, तहन गप्पे कि। मुदा किओ सेहन्ता के सेहो नैनपन के एहिना आसानी सँ छोडि़ दिअ, आसान नहि होइत छैक। तहन तऽ हमहूँ मनुक्खे रही, सेहो साधारण कि कहू, अति साधारण, हमर कोन औकाति।
ऐहन गप्प नहि रहअ जे हमरा जुआरि नहि उठाल रहय। उठल रहय, पूरवा-पछवा हमरो लागल रहय। लेकिन सम्हारबाक कोशिश कयेन रही। एहि मे कतय धरि समर्थ भेल रही, एकर अवगति नहि भेल कहियो। घर में जहन कहियैय जे पत्रकार बनब क पत्रकारिता मे अपन कैरियर बनायब। एहि क्षेत्र के जीविकोपार्जनक साधन बनायब, सभक आँखि-भौं तलि जाइन्ह। पता नहि शिक्षित भेलाक बादो समभ मनोदश एहन कियैक। सभ बुझाबै लागैथि 'देखैत नहि छियैन्ह मनोहर कक्का के पत्रकार रहथि, पत्रकारिता मे बड़Ó नाम रहैन्ह लेकिन आइ कोन हश्र छन्हि? कि कौचल छन्हि? बोटा दुखित पड़लैन्ह, सब चास-बास बिका गेलैन्ह। भरिपरोपट्टïा मे तऽ सभ चिन्हैत रहैन्ह, लेकिन तऽ सँ आई-काल्हिं की होत्त छैक। आई जौं आन कतओ ठाम नौकरी कय कऽ दू पाय अर्जन कयने रहितथि तऽ बेटो बाँचि जैतेन्ह आसंगे चास-बास आ कलम-बाग।
लेकिन एकटा हम रहि जे पत्रकार बनबाक धुन सबार रहय, हरदम अपना केँ पत्रकार सन देखेबा लेल तत्पर रहैत छलहुँ। खादीक पायजामा, खादीक कुत्र्ता, पयर मे कोल्हापुरी चप्पल, कुत्र्ताक उपरका जब मे दू-तीन गोट लाल-कारी कलम। दाढ़ी खुटिआयल, केश उधियाइत। शायद हमरा जनिबै इएह पत्रकार बगेबालि होइत छल। बिनाकाज के अनेरो अफस्यॉत होयब, हमर दिनचर्या छल।
ई सुनब मे सहजेँ मोटि जाइत छल जे जकर नाम मे 'कारÓ प्रत्यय लागल रहय, हुनक चरित्रक संबंध मे सही आकलन करबा मे साक्षात्ï ब्रह्मïा के सेहो सोचय पड़तैन्ह, यथा-चित्रकार, पत्रकार, साहित्यकार, फिल्मकार, संगीतकार आदि। जे गोटे एहन पूर्वाग्रह सँ ग्रसित होथि, ओ कोनो अप्पन स्वजन के एहि खाधि मे खसबाक अनुमति दय पओताह विश्वास करब मोसकिल लगभग इएह मनोदशा हमर घरक संग सेहो बगल के पत्रकार बन्धु सबसँ मेल-जोल रखने रही। ओ सभ जे किस्सा-पिहानी सुनबैथि, सुनबा मे बड़ रसगर ओ चहटगर लगैत छल।
आई मौन पड़ैत अछि एगो संगीक गप्प। संगी पत्रकार छल, एकबेर ओ कलकत्ता गेल, कोनो कार्यक्रमक फीचर तैयार करबा लेल वा रिर्पोटिंगक लेल। कहलक —'कि कहियों दोस, एहि लाइ मे सभ किछु भेटैत छैक।ओ जमाना बीति गेलै, जहन पत्रकार लग पाय-कौड़ी नहि रहैत छलैक। हमरा देख, सभ किछु भेटैत अछि। रूपया-पाय, छौड़ी-भौगी सभ। सोनगाछी सेहो गेल रही, पुलिसिया भय सँ त्रस्त छल ओहिठामक रंडी। पुलिसक बारे मे किछु सही-गलत नहि लिखि दिअए, ताहिं हमरो आगाँ परोसि रहल छल एकटा रंडी, जकरा संगे उघारि-पुघारि जे मौन छुअए से कय सकैत छलौं। ओ अन्हार घर मे मासु प्रेमी गाहक संग पड़ल छल नंग-धडंग। आब तौहि कहÓ एहि क्षेत्र मे कि नहि छैक। जाहि हिसाब सँ जमाना बदलि रहल छैक, ओहि हिसाब सँ तऽ बदल है तड़तैह, नहि तऽ जायब तीन नम्बर मे। नाम-ठिकाना केँ कोन कथा, धरक लोक के लाशो नहि भेटतैक।Ó
सांझ मे जहन घर घुरि आयल रहि तऽ इएह सब गप्प दिमाग मे घुरिआइत छल। देखियो आई-काल्हिं सभ किछु भेटैत छैक, एहि क्षेत्र मे। जरूरति छै मात्र अपना केँ समयक संग ढ़ालबाक। एहि मे कोन खराबी। सब तऽ बदलैत अछि। परिवर्तन तऽ संसारक शाश्वत्ï नियम छैक। परिवत्र्तित होयबा मे हर्ज नहि।
हमहूँ घर सँ बहरेलौं अपन झोरा-झपटा लय कऽ, यायावरी डेग के उसाहैत। निश्चर करैत कि जे हेतै से देखल जेतै, आई किनको इंटरव्यू अवश्ये लैब। दिमाग मे सबसँ पहिल नाम आयल—टिग्गा साहेब केँ। आदिवासी छलाह, सरकारी महकमा मे नामी-गिरामी अधिकारी संगे सामाजिक कार्यकत्र्ता सेहो हुनका मानल जा सकैत अछि। हुनक घर बहुँचलौ, घंटी बजेलौं। अपने तऽ नहि निकललाह, निकलल खिन्ह हुनक श्रीमति जी। कोनो हर्ज नहि, प्रणाम-पाती भेलाक बाद उद्देश्य जानि अन्दर बैसेलि, सोफा पर। सामने स्वयं बैसलि। मिसेज टिग्गाक बेडॉलक सीमा धरि नमरल सम्पुष्टï वक्ष हमरा किछु बेसीए आकर्षित करय कमल तेना फलायल रहैत छल जे भौंरा केँ सहजहि आमंत्रित करैत छल। टिग्गा सेहो एहि सँ मिज्ञ रहय आ अनकर, पिपासु नजरि सँ बचयबा लेल झाँपि-तोपि कऽ रखबाक प्रयास मे रहैत छल। टिग्गा कमरा गोलकीपर लगैत रहय जे दुनू हाथें फुटबॉल पकडऩे होअय। ठीके एक हाथें सम्हारब ककरो बूता सँ बाहर छलै....। जेना बच्चा दुनू हाथें पकडि़ दूध पीवैत छल, तहिनाकिछु काल बच्चाक स्थिति मे अपना केँ राखि हम कल्पना करय लगलहुँ। सगरो देह मे एक तरहक सनसनी भरय लागल छल। रक्त संग एकटा उत्तेजना देह मे घुमडय़ घुरिआम लागल छल.....जेना बहरयबाक बाट तकैत होअय।......जे पति साप जकाँ कुंडली मारि पत्नीक पहरा करैत अछि तकरा घीचब आसान होइत छैक, ई गप्प सुनने रही। मुदा हमरा मे ओ हियाब कहाँ....। हम सशंकित रहैत छलहुँ आ सचेष्टï छलहुँ जे एहि तरहक कोनो भाव देखार नहि भऽ जाय आ टिग्गा साहेब अबितै हमरा पकडि़ नञि लैथि। पत्नीक विषय मे टिग्गा साहेब जरूरति सं बेसीये 'रीजिडÓ छलाह। ओ हमरा समटा माफ कय सकैत छलाह, किंतु एहि विषय पर 'कम्प्रोमाइजÓ नहि कऽ सकैत छलाह।....
एतबै मे हमर निन्न टुटि गेल। तहन ज्ञात भेल जे हम तऽ सपनाइत रही। सपने मे टिग्गा साहेब ओतय इंटरव्यूक लेल गेल रही। हमरा लागल जे कन काल लेल हम धूरी सँ छिटकय लागल रही... मुदा फेर वापिस आबि गेल रही। यौनाकर्षण मे आकर्षित भऽ रहल छलौं लेकिन.......। हमरा एहि प्रकरण केँ एतेक सहजता सँ नहि लेबाक चाहैत छल। खुशी भेल जे हम स्खलित होयबा सँ बाँचि गेल रही। संभवत: घरक संस्कार हमरा बचौने रहल। आब हम निर्णय कय लेलौं जे ठेला-घींचैत-तीरैत जीवन बिता लेब, मुदा पत्रकार नहि बनब।

मंगलवार, अगस्त 25

कविता

अंतरात्मा कहैत अछि
अबैत छी लयकें आंखि मे स्वप्निल भविष्य
गामसँ हम शहर दिस,
सोचैत छी ऑफीसर बनव
कठिन सँ कठिन श्रम कऽ,
करब नाम माय-बापक, गाम आओर राष्टï्रक
किछु बनि कऽ
बनाएब एकटा पृथक स्थान समाज मे
किछु नव सृजन कऽ
लेकिन जखन हम देखैत छी ओहि प्रतियोगी कें
जे बूढ़ भय रहल छथि,
किछु बिना पयने
युवावस्था के गंवा कें
गाम वापसि जा रहल अछि,
तखन हम हताश होइत छी
निराश होइत छी,
लगैत अछि निष्ठïा आओर साहस संग छोडि़ रहल अछि,
एकर बावजूदो 'अंतरात्माÓ कहैत अछि हमरा
अहां कियाक दु:खी भय रहल छी?
उज्ज्वल भविष्यक दिस देखैत रहू
सत्यसँ कर्मपथ पर चलैत रहू
विघ्न-बाधासँ लड़ैत रहू
ने पाछू भागू अहां
ओहि असफल प्रतियोगी के देखकें,
सरिपहुँ किछु कमी अछि हुनकामे,
हुनक लक्ष्य आओर रणनीति मे,
एकरा बाद
फेर हम आत्मविश्वासँ भरि जाइत छी
नूतनसँ ओही मे डूबि जाइत छी
सबटा निराशा सँ दूर भऽ जाइत छी
नव उत्साह आओर जोश मे
फेरो तैयारी मे जुटि जाइत छी,
जाहिसँ होय सफल
हम अपन आकांक्षाआकेँ मूत्र्तरूप दऽ सकी,
नव प्रतियोगी हेतु बनि सकी - 'आदर्शÓ।
—भरत लाल ठाकुर

सोमवार, अगस्त 24

अभागल गाम रातू बिगहा

आजाद हिन्दुस्तान के एकटा अभागल गाम छै रातू बिगहा। जे बिहार के जहानाबाद जिले के घोषी प्रखंड मे छै। एहि गाम मे लोक के खेबाक लेल रोटी नहीं भेट रहल छै। जिन्दगी के लेल गरीबी संग लड़ि रहल एहि गामक लोक आब रोटी के अभाव में मरि रहल छै। एक दिस देश आजादी के जश्न मनेबाक लेल तैयारी मे लागल छल त दोसर दिस एहि गामक लोक अपन सम्बन्धी के जरेबाक लेल कटियारी ल जेबाक तैयारी में लागल छल।

एहि गाम में पछिला एक सप्ताह में तीन गोटे के जान जा चुकल छै। मुदा ककरो अकर चिंता नहि। दलित आ गरीबक एहि बस्ती मे लोकक लेल सरकार बीपीएल कार्ड त बनबा देलकै मुदा आई तक लोक के अन्न नहि भेट सकलई।

सरकार गरीबी मेटाबई के लेल तरह दृ तरह के योजना बना रहब छै मुदा जहानाबाद के एहि गाम मे गरीब मेटा रहल छै। शुरु मे जखन गामक लोक सब एकर शिकायत एहि सं जुड़ल अधिकारी से केलकैन त कियो देखबाक लेल नहि ऐलै मुदा आब जखन गप्प लोकक मृत्यु तक पहुंच गेलै त प्रखंडक बीडीओ साहेब एकर टोह लेबाक लेल गाम पहुंचला आ अन्न नहि देबइ बला पर सख्ती सं कार्रवाई करबाक आश्वासन द रहल छथिन। खैर कार्रवाई कते धरि हेतै ई त सब गोटे नीक जकां जानै छी।

ई 62 साल के आजाद हिन्दुस्तान के सच्चाई छै जेतय लोकक लेल रोटी आइयो एकटा प्रश्न बनल छै। ई गाम हमरा सब के अपन आजादी के ऐना देखा रहल अछि। गामक बूढ़ आंखि देशक नेता सब सं प्रश्न पूछि रहल छैन जे की यैह देखबाक लेले देश के आजाद कैल गेल छलै। की गांधीजी जे आजादी के सपना देखने छलाह ओकर यैह सत्यता छै......

- अंकुर कुमार झा

शनिवार, अगस्त 22

अनचिन्हार सन अपन

आई संजूक दुरागमन छैक।
आईसऽ करीब एक बरिसक पूर्वक गप्प अछि। पोड़का साल बैसाख मे ओकर वियाह भेल रहैक। वियाह मे कतै खुशी रहै, संजूक मौन खुशी सऽ आह्लïादित रहैक। विवाह सँ पहिनहि ओ अपन मन-मंदिर मे कतेक सुन्नर वरक कल्पना कयने छल? वियाहक नाम सुनितै ओकर मन रोमांचित भऽ जाइत छलै। वियाह सऽ किछु दिन पहिनहि ओ अपन मामाक डेरा पर दरभंगा मे रहि कय बी।ए. प्रथम वर्षक परीक्षा दय रहल छल आ ओहि क्रम मे ओकर-वियाह ठीक भेलै। वियाह ठीक होबाक प्रत्येक चरण सऽ ओ पूर्णरूपेण अवगत छल। वियाहक दिन सऽ मात्र एक सप्ताह पहिनहि ओ अपन गाम पहुंचल। गाम मे जखन उतरबरिया ओसारा पर ओकर वियाहक गप्प होइत छलै तऽ ओ ओहि बीच सऽ उठि कऽ अपन घर चलि जाइत छल। एवम्ï प्रकारे विघ्न-बाधा के पार करैत ओकर वियाह सम्पन्न भेलै।
वियाहक बाद संजू पहिले सऽ बेसी सुंदर जानि पड़ैत छल, ओकर ललाट श्रीयुक्त बुझना जाइत छलै। अपन वरÓ सऽ वैह बेसी सुन्नर व आकर्षक छल। मुदा ओकरा लेल तऽ ओकर पति परमेश्वर छलखिन, ब्रह्मïा के लेखा-जोखा मानि कऽ ओ अपन वर के सहर्ष स्वीकार केलक। एखन अपन विवाह सऽ ओकरा कोनो तरहक शिकायत नहि छलै। भऽ सकैछ, मन मे कोनो तरहक बात होबो करैऽ तइयो ओकरा ककरो आगू व्यक्त नहि करैत छल। विवाहक पंद्रह दिनक बाद संजूक वर जीविकोपार्जनक लेल परदेश चलि गेलखिन, जतय ओ काज करैत छलाह। आब तऽ मात्र चिटï्ठी पतरीक सम्पर्क शेष रहि गेल छलै। समय-समय पर पावनि-तिहार मे ओकर वर गाम अबैत छलखिन।
गामक कण-कण सऽ परिचित बीत-बीत जगह सऽ मित्रता ओ अपन मामा आ बाबूजीक दुलारि संजू-के ई गाम घर छोड़ऽ पडि़ रहल छलैक। जहिया ई 'दुरागमनÓ शब्द ओकर कान मे सन्हिआयल रहै, छटपटा गेल छल संजू। आ छटपटाक रहि गेल छल। खेनाय-पिनाय छोडि़कऽ जठरानलक समान भऽ गेल छल, देहक रौनक जेना समाप्ति भऽ गेल रहै। नेना मे ई शब्द बड़Ó मनोरंजक आ आनंददायक बुझि पड़ैत छलै। मुदा ई शब्द मे कतेक मारुक वस्तुक समावेश होइत छै, ओहि दिन बुझवा मे आयल रहै। एकर अपन सभ आन भ गेल रहै। सभक मुंह पर खुशी पसरि गेल रहै।
बाबूजीक करेज सूप सन भऽ गेल रहनि। मायक कोढ़ दरकबाक सांती सांठ राजक ओरियान दिस चलि गेल छलै। भैया आ पित्ती लोकनि एहि काजक संपादन मे जी जान सऽ जुटि जेबाक उपक्रम करय लागल छलथिन।
आ संजूक देह सुन्न भऽ गेल रहै। ई गाम-घर, लोक-वेद छोड़बाक कल्पना मात्र सऽ ओकर दिमाग अकुलाय लागैत छलै। मुदा जखन ई कल्पना यथार्थ भऽ पछोड़ धेलकै तऽ एकरा किछुओ नञि फुरेलै। कनेकाल मायक मुंह के निहारलक, छोटकी दूनू बहिन आ भाई के सिनेह के टोलक, बाबूजीक दुलार के याद केलक, भाऊजक सानिध्य के टोकलक। तइयो जखन सभ दुआरि फरेबक दुआरि बुझेलै, अपन सभ चिन्हार अनचिन्हार जकाँ लगलै तऽ ओसारा पर सँ उठि गेल।
खेनाय एकदम सँ तिताइन बुझना गेलै। हांञि-हांहि मुंह धोलक। आ घर मे जा अर्राकऽ पलंग पर खसि पड़ल। पुक्की पारि कनबाक इच्छा भेलै। लेकिन कण्ठ सँ आवाज भागल बुझेलै। माय आओर भाउजक पयर छानि पुछबाक मोन भेलै, जे कोन ऐहन अपराध हमरा सऽ भऽ गेलौ भाय! जे एतेऽ निर्मम बनि बैैला रहल छैं। कोन ऐहन विभेद भऽ गेल सिनेह मे भौजी! जे अहांक अमृत घोरल बोल लय हम हरिण जकां फिफिया रहल छी? भौजी! अहींक सिनेह सऽ ईं गाम छोड़बाक इच्छा नञि भेल कहियो, मुदा ...। अंत मे संजूक करेज दरकि गेलै। कानैत-कानैत गेरुआ भिजा लेलक।
लेकिन एकर सभ नोर दूरि गेलै। आई बेस चहल-पहल छै। बरिआती काल्हिं सांझे आबि गेल रहै। आई ई चलि जायत। जँ स्वेच्छा सऽ जेबाक गप्प होइतै तऽ ई किन्नो ने एहन इच्छा करैत। एक दिन जखन अपन अही संताप पर सोचैत बहुत दूर धरि चलि आयल छल तऽ एहि घोंकल परम्परा पर अतिशय तामस भेल रहै। एहनो कतौ उचित छै जे ककरो इच्छाक प्रतिकूल ई समाज अजगर बनल ठाढ़ रहय। भावना के बिसरि जाय! संजू चाहैत छल, बाबूजी के कहियनि जा कऽ जे बाबूजी, दिन फिरा दियौ। जहिया मौन भरि जायत हम स्वत: ककरो बिनु दु:ख देने चलि जायब।
लीक सँ हटि कऽ एते आगू अयबाक हियाब नञि भेलै। कतेको तरहक विचार मे बहैत रहल आ सभक निचोर नोरक रूप मे बहार होइत रहलै। आई भोरे सऽ संजू सभ कथूके बिसरि गेल अछि। हँ, मात्र सूर्यास्तक पश्चात्ï एहि आँगन, एहि परिवार, एहि गाम के छोडि़ कऽ जा रहल अछि। जखनै आईं सूर्यास्त हेतै, संजू एहि जगह के परती-पराँत बना चलि जायत।
एकर दुख एखन नञि छै। ई बिसरि गेल अछि जे एखनै, आइए एकर जीवन मे कोनो नव घटना घटै बला छै। एकटा ओहन घटना, जे ककरो करेज के कनी कालक लेल दरका देतै। टोलक बुढ़-बुढ़ानुस, दाई-माइ लोकनि ऐखन एकर किरदानी पर व्यंग्य-घोरल बोल सऽ आश्चर्य व्यक्त कय रहल छथिन्ह। एकटा बुढ़ही के जखन असह्यï भऽ उठलनि तऽ उठिकऽ विदा भऽ गेलीह। आइ अकर ऽ हरऽ कऽ रहलि छै ई छोडि़। ने बरिआती अयलै-तखने हाक उठोलकै, ने आइए संच-मंच भऽ बैसलै। देखÓ तऽ इम्हर सऽ ओम्हर घुमए अछि। एकटा हम सभ रही जे मास दिन पहिने सऽ छाती फाटैत रहए। आ घर मे गुम-सुम कानैत रही। ... लेकिन ओ बुढ़ही की जानैत छलीह, जे संजूक छाती कतेक फाटैत रहय। हरदम ओ गुम सुम भऽ मन्हुआयल रहैत छल। नहि खेबा मे मौन लगै आ नञि गप्प करबा मे।
किछु वस्तु जात के तकबाक लेल ओ भौजीक दक्षिणबरिया घर सऽ अपन उतरबरिया घर मे हुलि जाइत अछि। लोक सभ थहाथही छै। बरिआती खोयेबाक ओरियान मे सभ पुरुष बाझल छलखिन। एकरा कने संकोच भेलै आ कि किछु मोन पडि़ अयलै, चोटूटे घुमि गेल। तखने ओसारा पर बैसल कियो बाजि उठलै-संजू! कानै कहां छहिन गै? तोरा सऽ बेसी तोहर माय-बहिन कानै छौ? ... संजू के एकाएक जेना ठेस लागि गेलै। मुदा सम्हरि उठलि। भीतर सऽ हंसीक एगो तोर उठलै आ ठोर पर आबि जाम भऽ गेलै।
उत्साह मे वएह वाला वेग आबि समा गेलै। पुनि भौजीक घर दक्षिणबरिया ओसारा पर चलि गेल। कनी कालक बाद ओ भौजीक घर सऽ उठि जाइत अछि। कोनो प्रकारक विचार के मोन सऽ हटा देबाक चेष्टïा करैत अछि। अपन दूनू छोटका भाई के तकबाक चेष्टïा करैत अछि। आंगन मे कतओ नजरि नहि पड़ैत छै। कि तखने दलान पर ओकर बोल सुनाइ दैत छै। एकर करेज बुझु एकबेर फेरो दरकि गेल होइहि। बेजान ढलान दिस्ï दोगैत अछि। लेकिन ड्ïयोढ़ी लग अबैत-अबैत सभ उपक्रम लूंज भऽ जाइत छै। सभ हुलास मरि जाइत छै।
संजू फेर जेना मुरुझि जाइत अछि। बुझाइत छै, एहि ठाम चारुकात सऽ हमर सभ बाट बन्न कऽ देल गेल अछि। हमर हरेक क्रिया कलाप पर अनगिनत नजरि कें बैसा देल गेल अछि। एकरा बुझना जाइत छै, जे एखन सभक दृष्टिï हमरहिं प्रत्येक हाव-भाव पर अटकल छै। हमर एहि प्रकारक किरदानी ककरो सहय नहि भऽ रहल छै। कि तखने छोटका भाय दौडि़ कऽ आबैत एकर दूनू पैर गछारि लैत छै। संजूक चेतना घुरैत छै। छोटका भाय मोनू दीदीक भावना के बिनु परेखतै बिच्चे मे बाजि उठल—'हमरा तोहर बरिआती नञि आबय दैत छलाह, जाऊ हम अहां सऽ नञि बाजब।Ó—मोनूक बोली एकरा थप्पड़ जकां चोट केलकै। मुदा तइयो बात के तÓर दैत मोनू के माथ पर हाथ फेरैत दुलार ऽ लागैत अछि। तखने कोनो कोना सँ व्यंग्य घोरल पाँती कान दिश्ï लपकैत छै—'जे बुझाइत नञि छै जे ऐकर दुरागमन छै, कतेक बढिय़ा घुमैत अछि। आई काल्हिंक छहि, ताहिं पिया घर जयबाक खुशी छैक।Ó
एहि बात सुनि कऽ संजूक सोझां कारी चादरि ओलरि जाइत छै। आ दिमाग मे आगि धधकÓ लागैत छै। सभ किछु छोडि़ उठि जाइत अछि। मौन धीरे-धीरे तिताय लागैत छै। आई भोरे सऽ सब गोटे एकतरफा भऽ गेल छथि। सभक भावना चालनि भऽ गेल छैन्हि। सभक बुद्धि लोढ़ा भऽ गेल छै। ई सब मोन मे अटियाबैत ड्ïयोढ़ी पर सऽ उतरबरिया ओसाराक लेल डेग उसाहैत अछि।
पुन: चोट्ïटे ठमकि जाइत अछि। नजरि कोनियां घरक मुहखर पर जाइत छै, जाहि घर मे माय खेनाय बना रहल छलखिन आओर मायक नोर टप-टप चुबैत छलै। एहि दृश्य के देखि कऽ संजूक धीरज जबाव दय देलकै, ओकर कुहेस फाटि गेलै। सीधे जा कऽ मायक कोरा मे खसि पड़लै। कानैत-कानैत अचेत भऽ गेल, ओकर नोर सऽ मायक नुआ भीज गेलैन्ह। केतबो किओ चुप करेबाक कोशिश करथिन, मुदा ओ चुप होबय वला कहां छल? अंत मे बाबूजी ऐलखिन तखन चुप करोलखिन। हृदय नोरायलै रहैत छै। सोचेत अछि सत्ते हमर सभक इच्छाक कोनो मोल नञि होइत छै। से ऐना कियैक होइत छै? आ धीरे-धीरे सभ हुलास क्षीण होइत चलल जाइत छै। एकर सभ चेष्टïा मृत्यु सज्जा पर पड़ल कोनो रोगी जकां होबऽ लागैत छै। किछु करबाक उत्कट इच्छा रहितौ किछु करबा मे असमर्थताक अनुभव करैत रहलि।
आ अही घुन-धुन मे कखन चेतना घुरि अयलै, मोन नञि पडि़ रहल छै। दिन लुक झुक कऽ रहल छै। कि तखने किओ पाछां सऽ ओकर डेन धरैत छै। बड़की काकी छलखिन। काकी बड़की भौजी दिस आग्नेय दृष्टिïयें ताकैत बाजि उठै छथिन्ह—'अंए ऐ कनियां! कखन कहलौं सभ गहना-गुडिय़ा पहिरा दियौ? एह बाप रे! लाउ, जल्दी करु सात बजेक भीतर विदागिरी भऽ जेबाक छै।Ó ... दलान पर सऽ बड़का कक्का सेहो जल्दी करबाक लेल कहलखिन।
बड़की काकीक बोल सुनिते संजूक बुद्धि निपता भऽ जाइत छै। आँखि सेहो अपन ज्योति चोरा लैत छै। आ बुझाइत छै जे प्राण सेहो संग छोडि़ रहल छै। आओर तकर बाद जे सम्मिलित हाकक आदान-प्रदान शुरू होइत छै, सगरो आंगन बुझु नोराय जाइत छै। संजूक कानब एकटा फराक-सनक स्वर निकालैत अछि, जे स्वर नमहर प्रश्न-चिह्नï ठाढ़ करैत छै?

गुरुवार, अगस्त 20

पाठकक हृदयकेँ बेधैत हरिमोहन बाबूक मैथिली रचना

व्यंग्य एकटा साहित्यिक अभिव्यक्ति अछि, जे व्यक्ति आ समाजक दुर्बलता, कथनी आ करनीक अंतरक समीक्षा आ निंदाकेँ वक्रभंगिमा दऽ शब्दक माध्यमेँ प्रहार करैत अछि। मिथिला, मैथिल ओ मैथिलीक दुर्दशा, अकर्मण्यता ओ जड़ताकेँ देखि, दीनता-हीनता, आलस्य ओ ईष्र्या, अंधविश्वासक संग-संग अन्यान्य समस्याकेँ देखि, जघन्य अपराध ओ भ्रष्टïाचार, नैतिकताक ह्रïास ओ महगी, मानव अवमूल्यन ओ कूपमंडूकताकेँ देखि हृदय-मानस मे दु:ख-दैन्यसँ उपजल करुण-भाव संचरित होयब कोनो अस्वाभाविक नहि अछि। मिथिला मध्य अमरलती जकाँ चतरल-पसरल एक सँ एक ढोंगी, पाखण्डी, आडम्बरयुक्त पोंगापंथी ओ त्रिपुण्डधारी सभक कुकृत्यक नग्न नृत्य होइत रहल अछि। जाति, धर्म, कर्मकांड आदिक मिथ्या शरण लऽ शास्त्रकेँ 'स्वाहाÓ कएल जाइत रहलैक अछि। हरिमोहन बाबू एकरे अपन रचना सभ मे व्यंग्यात्मक चित्रण कयलनि अछि।
हास्य-सम्राट ओ व्यंग्य-सम्राटक रूप मे सर्वत्र जानल जाइत हरिमोहन लेखनी सँ नि:सृत 'कन्यादानÓ ओ 'द्विरागमनÓ उपन्यास, 'प्रणम्य देवताÓ, 'रंगशालाÓ ओ 'एकादशीÓ कथा-संग्रह, 'चर्चरीÓ विविध-संग्रह, 'खट्टïर ककाक तरंगÓ व्यंग्य संग्रह, 'जीवन-यात्राÓ आत्मकथा सन पुस्तकाकार प्रकाशित पोथी आओर पत्र-पत्रिका मे छिडि़आएल असंगृहीत दर्जनाधिक कविता सभ मैथिलीक धरोहर थिक। गद्य हो वा पद्य व्यंग्यक तीक्ष्णता सँ भरल हास्य रससिक्त हिनक समस्त रचना कटु सत्यक उद्ïघाटन करैत विशिष्टïता प्राप्त कएने अछि।
स्त्री-शिक्षा आ अशिक्षित मैथिलानी पर व्यंग्य हरिमोहन बाबूक उपन्यास 'कन्यादानÓक मुख्य स्वर थिक। एहिमे उपन्यासकार मैथिल समाज मे प्रचलित वैवाहिक विषमताकेँ अपन हास्य-व्यंग्यक पृष्ठïभूमि बनौलनि अछि। एक दिस अत्याधुनिक पाश्चात्य सभ्यताक रंग मे रंगल, मातृभाषा पर्यन्त सँ अपरिचित नायक तथा दोसर दिस प्राचीन मैथिल संस्कृतिक प्रतीक, पाश्चात्य सभ्यता ओ शिक्षा सँ अछूत मैथिलानीक व्यंग्यात्मक चित्र एहि मे प्रकट भेल अछि। 'कन्यादानÓ उपन्यासक समर्पणहि मे व्यंग्यकार दु:खद मन:स्थिति मिथिलाक समाज दिस संकेत करैत व्यंग्यक प्रहारे करैत अछि।
''जे समाज कन्याकेँ जड़ पदार्थवत्ï दान कऽ देबा मे कुंठित नहि होइत छथि, जाहि समाजक सूत्रधार लोकनि बालककेँ पढ़ेबाक पाछाँ हजारक हजार पानि मे बहबैत छथि और कन्याक हेतु चारि कैञ्चाक सिलेटो कीनब आवश्यक नहि बुझैत छथि, जाहि समाज मे बी।ए. पास पतिक जीवन-संगिनी ए.बी. पर्यन्त नहि जनैत छथिन्ह, जाहि समाजकेँ दाम्पत्य-जीवनक गाड़ी मे सरकसिया घोड़ाक संग निरीह बाछीकेँ जोतैक कनेको ममता नहि लगैत छैन्हि, ताहि समाजक महारथी लोकनिक कर-कुलिष मे ई पुस्तक सविनय, सानुरोध ओ सभय समर्पित।ÓÓ
अविस्मरणीय चरित्र सभक व्यंग्य-चित्र सँ सम्पन्न हरिमोहन झाक कथा-संग्रह 'प्रणम्य देवताÓ प्रथम प्रकाशनक अद्र्धशताब्दी व्यतीत भेलहुं पर नवीन अछि, चिर नवीन अछि। 'धर्म शास्त्राचार्य एवं ज्योतिषाचार्यÓ शीर्षक कथाक अंतर्गत धर्मशास्त्र जनित तथा ज्योतिष जनित आडम्बर पर व्यंग्य कएल गेल अछि। एहि संग्रहक कथा मे सामाजिक समस्याक अतिरिक्त पारिवारिक समस्या पर सेहो व्यंग्य कएल गेल अछि। वस्तुत: साझी आश्रमक जे दुर्दशा होइत छैक तकर एलबम भगीरथ झाक परिवार मे भटैत अछि। व्यंग्यकार अत्याधुनिक युग मे फैशनक बढ़ैत स्वरूप पर दृष्टिïपात करैत छथि तँ हुनक लेखनी अत्यधिक प्रखर भऽ जाइत छनि। 'नकली लेडीÓ कोना सहजहि चिन्हल जाइत छथि सेÓ प्रणम्य देवता कÓ अङरेजिया बाबूÓक पत्नी 'चमेली दाइÓ छथि।
हरिमोहन बाबूक व्यंग्यक अत्यंत सजीव चित्र हिनक 'खट्टïर ककाक तरंगÓ मे उपलब्ध होइत अछि। व्यंग्यक सूक्ष्मता एवं तीक्ष्णताक दृष्टिïएँ ई हिनक अत्यंन्त महत्वपूर्ण कृति थिकनि। एहि मे रूढि़-परम्परा, वेद-शास्त्र-पुरान, कर्मकाण्ड-धर्मशास्त्र, गीता-वेदांत, रामायण-महाभारत, ज्योतिष-आयुर्वेद, तंत्र-मंत्र, देवी-देवता, स्वर्ग-नरक, पुनर्जन्म-मोक्ष-पुण्य, साहित्य-इतिहास आदि मे निहित असंगत तर्कओ प्रमाणहीन अवधारणा सभ भरल अछि, तकर नैयायिक एवं व्यंग्यपूर्ण शैली मे, मिथिलाक पारम्परित शास्त्रार्थक परिपाटी मे खण्डन ओ आलोचना कएल गेल अछि। एहि मे वर्णित मर्मस्पर्शी व्यंग्य अंतस्थल मे पहुंचि सुरसुरी लगा दैत अछि। कथानायक खट्टïर ककाक विनोदपूर्ण वार्ता मे व्यंग्यकार हरिमोहन बाबू व्यक्ति-समाज, धर्म-दर्शन आदिक आलोचना करैत अंधविश्वास, धार्मिक पाखण्ड, ढोंग, रूढि़ आदिक प्रति व्यंग्यक माध्यमेँ भयानक विद्रोह करैत छथि।
कतेकोठाम तँ अनेक प्रकारेँ हरिमोहन बाबू अपन रचना मे स्पष्टï कयलनि अछि जे देशक अधोगति एहि दुआरे अछि जे देशवासीक दृष्टिïकोण आधुनिक नहि प्रत्युत आइयो प्राचीन अछि। खट्टïर कका व्यंग्य करैत कहैत छथि :
''विज्ञानक उन्नति करबा लेल तँ पृथ्वी पर और जाति अछिए। कल्पना-विलासक भार सेहो तँ ककरो पर रहबाक चाही। से मनमोदक बनयबाक भार हमरे लोकनि पर अछि।ÓÓ
लोकतंत्रक दुर्गुण पर अपन व्यंग्य बाण सँ पाठकक हृदयकेँ बेधैत खट्टïर कका कहैत छथि :
''हमरा ने लोक मे विश्वास अछि आ ने तंत्र मे। पहिने स्वामीक मत चलैत छलैक। आब बहुक मत चलैत छैक। जेम्हर बेसी हाथ उठल। माथक कोनो मोल नहि। 99 विद्वान सँ 100 मूर्खक मूल्य बेसी। एकटा सतीसँ दूटा कुलटाक महत्त्व अधिक। खुदरासँ थौकक भाव बेसी। ई लोकतंत्र भेल वा थोक तंत्र? बूझह तँ ई तंत्र दुइएटा मंत्र पर चलैत अछि-भोट आ नोट।ÓÓ
एहि वैज्ञानिक युग मे अपन पूर्वजक कीर्तिध्वजा पकडऩे बैसल आजुक मैथिल पर व्यंग्यक कठोर प्रहार करैत खट्टïर ककाक इ गप्प कतेक सटीक बेसैत अछि :
''हाथी चलि गेल, हथिसार चलि गेल, परन्तु हम हाथ मे सिक्कड़ नेने छी। की तँ हमहुं एक दिन हाथी बला छलहुं। हौ बाऊ! जहिया छलहुं तहिया छलहुं। आब की छी-से ने देखू। सूती खऽढ़तर, स्वप्न देखी नौ लाखक। रस्सी जरि गेल, अइठन नहि जरैत अछि। आन-आन देश हिमालयक चोटी पर चढि़ गेल हम खाधि मे पड़ल बजै छी- एक दिन हमरो पुरखा चढ़ल छलाह।ÓÓ
'चर्चरीÓ हरिमोहन झाक विविध रूपक रचनाक संग्रह थिक। एहि मे कथा-पिहानी, एकांकी-प्रहसन, गप्प-सप्प सभ किछु संगृहीत अछि, जाहि मे प्राचीनता एवं आधुनिकता पर समान रूपँे व्यंग्य कयल गेल अछि। परम्परावादी एवं अंधविश्वासी मैथिल संस्कृतिक प्रतीक थिकाह भोल बाबा, जे अपन वाक्ïचातुर्यसँ हास्य ओ व्यंग्यक धारा बहौलनि अछि। व्यंग्यकार कथानायक भोल बाबाक माध्यमेँ प्राचीनकेँ आदर्श मानि आधुनिकता पर व्यंग्यक प्रहार करैत कहैत छथि :
''हाथी केँ मोटर खयलक, घोड़ाकेँ साइकिल खयलक, रामलीलाकेँ सिनेमा खयलक, भोजके ँ पार्टी खयलक, भाँगकेँ चाह खयलक तथा संस्कृतकेँ अंग्रेजी खयलक।ÓÓ
हरिमोहन झा हास्य-व्यंग्यक माध्यमेँ नारी जागरणक शंखनाद कयलनि। 'चर्चरीÓक अनेक कथाक माध्यमेँ ओ मिथिलाक नारी मे दुर्गाक रूप प्रतिष्ठिïत करय चाहैत रहथि। नारी जागरणक फलस्वरूप ओहो सभ आब दहेजक विरोध मे नारा लगबैत छथि।
हरिमोहन बाबूग व्यंग्य प्रतिभाक वास्तविक प्रस्फुटन हुनक कविता सभ मे भेल अछि। 'ढाला झाÓ, 'बुचकुन बाबाÓ, 'निरसन मामाÓ, 'घुटर काकाÓ, 'चालीस आ चौहत्तरिÓ, 'गरीबिनिक बारहमासाÓ, 'आगिÓ, 'कन्याक नीलामि डाकÓ, 'पंडित विलापÓ, 'अङरेजियालड़कीक समदाउनÓ, 'टी पार्टीÓ, 'बूढ़ानाथÓ, 'पंडित आ मेमÓ आदि हिनक व्यंग्य कविता थिक जकरा माध्यमेँ कविहृदय हरिमोहन बाबू विभिन्न समस्या दिस समाजकेँ ध्यान आकृष्टï करबाक सफल प्रयास कएलनि अछि। पद्य-रचना मे सेहो ई हास्य-व्यंग्यक प्रवृत्तिक अवलम्बन कएलनि। प्रारम्भमे ओ धार्मिक आडम्बर ओ रूढि़वादिता पर प्रहार कयलनि, किन्तु बाद मे हुनक कविताक विषय वस्तु बदलैत गैल। 'आगिÓ मे समाजक पांजि-पाटि, सिद्धांत-पतड़ा, हरिसिंह देवी व्यवस्था ओ कर्मकाण्ड पर व्यंग्य भेल अछि। ढोंगी-पोंगा-पंथी पंडित लोकनि हरिमोहन झाक व्यंग्यक वाणक सभसँ बेसी शिकार घायल भेलाह।
'पंडित विलापÓ मे एहन पंडितक दु:स्थिति ओ 'बुचकुन बाबूÓ मे नारीक विकाससँ आहत पंडितलोकनिक आत्महत्या करबाक मन: स्थितिक व्यंग्यात्मक चित्रण भेटैत अछि। आधुनिक जीवनक प्रदर्शन प्रवृत्ति, पार्टीक बाहï्याडम्बर ओ अल्प-भोजनक व्यंग्यात्मक चित्र हिनक 'टी पार्टीÓ, कविता मे बेस मुखर भेल अछि। आधुनिक भइयो कऽ आधुनिकताक घोंकायल स्वरूपक भंडाफोड़ करैत हरिमोहन झा अल्प भोजन देखि नवका पार्टी पर व्यंग्यक प्रहार करैत कहैत छथि :
''दुइए एक फक्का मध्य साफ भेल दालमोट, सेबइ तथा बुनिया और किसमिश विलीन भेल।
एक रसगुल्लामे विलम्ब की लगैत कहु? समतोलाक बाद शेष रहल एक केरा टा।
एक मिनट लागल हैत, ताहीमे साफ भेल, चिनियाक प्लेट हमर निराकार भऽ गेल।
किन्तु उपर योद्धागण युद्ध चलबैत रहलाह, घंटा भरि लागल, किन्तु प्लेट नहि खाली भेल।ÓÓ
'कन्याक नीलामी डाकÓ मे अध:पतित कुलीन प्रथा एवं समाज पर कुठाराघात करैत कन्या विक्रय हेतु पिता पर व्यंग्य करैत हरिमोहन झा कहैत छथि :
''करब कथा पहिने जौं हम्मर सभटा कर्ज सधाबी, चारि सौ जे गनि दियऽ व्यवस्था झट सिद्धांत लिखाबी।ÓÓ
'अङरेजिया लड़कीक समदाउनÓ शीर्षक कविता मे पाश्चात्य सभ्यता ओ संस्कृतिक रंग मे रंगाएल कनियाँक व्यवहार पर व्यंग्यकार कहैत छथि :
''आँगनक बाहर घुमय नहि जयबैक भैंसुर जैताह पड़ाय।
देव पितर किनको नहि हंसबैन्ह सब जैताह तमसाय॥
ओहिठाम जा अण्डा नहि मङ बैक तकर ने छैक उपाय।
जौं मन हो कहबैन्ह चुपचापहि आनि देताह हमर जमाय॥ÓÓ
'बूढ़ा नाथÓ शीर्षक कविता मे व्यंग्यकार हरिमोहन झा मंदिर आ ओकर परिसरक होइत अनुचित प्रयोग, धर्मक नाम पर होइत अधर्म, ध्यान-तर्पण आदिक नाम पर होइत व्यभिचार, पोखरि-घाट पर होइत अश्लीलताक प्रदर्शन आदि पर व्यंग्यक प्रहार करैत लिखैत छथि :
''हे जीर्ण-शीर्ण पचकल पाथर/सरिपहुं छी पाथर अहां भेल
पथरायल तीनू आंखि आब तेँ/झाम गुड़ै छी चुप बैसल
किछु सक्क लगै अछि जौं नहि तँ/व्यर्थे गाड़ल छी एहिठाम
बहराउ, काज लोढ़ाक दियऽ/खट्टïर काका पिसताह भाङ।ÓÓ
सुधारक नाम पर समाजकेँ ठकनिहार महापुरुष लोकनि पर व्यंग्यक प्रहार करैत हरिमोहन झा 'सनातनी बाबा ओ कलयुगी सुधारकÓ शीर्षक सचित्र कविता लिखलनि जाहिमे तत्कालीन समाज मे व्याप्त रूढि़, अंधविश्वास, नारीक दुर्गति, विचार ओ व्यवहार मे अंतर, बाह्यïाडंबर आ सुधारवादी खोलमे नुकायल ढकोसला आ ढोंग पर व्यंग्यक कठोर प्रहार कयलनि अछि :
''बाहर बाजथिÓÓ तिलक प्रथाकेँ विषय सभ जानूÓ। घर मे बाजथि, 'दुइ हजार सौं कम नहि आनूÓ॥
बाहर बाजथि 'छुआछूत केँ शीघ्र हटाउ। घर मे बाजथि 'ई चमैनि थिक, दूर भागऊÓ॥
महगी, बेकारी, भ्रष्टïाचार, मूल्यहीनता आ समाजक विमुखता पर व्यंग्यक प्रहार करैत हरिमोहन झा कतोक कविताक रचना कयने छथि। महंगीक एकटा व्यंग्यात्मक चित्र हुनक 'नव नचारीÓ मे सेहो देखल जा सकैछ :
''केहन भेल अन्हेर ओ बाबा, केहन भेल अन्हेर। भात भेल दुर्लभ भारत मे, सपना धानक ढेर॥
मकई मखनाक कान कटै अछि, अल्हुआ खाथि कुबेर। मडुआ मिसरिक भाव बिकाइछ, जीरक भाव जनेर॥
सबसँ बुडि़बक अन्न खेसारी, सेहो रुपैये सेर॥ÓÓ
पटना नगरपालिकाक दुव्र्यवस्था पर व्यंग्य करैत हरिमोहन झा अपन आत्मकथा मे उल्लिखित 'पटना स्तोत्रÓ शीर्षक कविताक अंश मे कहैत छथि :
''हे धन्य नगर पटना महान/मच्छड़ करैत छथि यशोगान
सड़कक रोड़ा अछि शोभायमान/अलगल ओलक टोंटी समान
हम देखि रहल छी तेहन शान/जे देखि न सकल फाहियान।ÓÓ
उपर्युक्त विवेचन विश्लेषण सँ ई स्पष्टï होइत अछि जे अपन कृति सभ मे तीक्ष्ण व्यंग्य गर्भित उक्तिक कारणेँ हरिमोहन झा 'व्यंग्य-सम्राटÓक उपाधिसँ विभूषित कएल जाइत रहलाह। अपन 'आत्मकथाÓ मे ओ स्वयं लिखैत छथि 'प्रणम्य देवताÓ हमरा 'हास्य रसाचार्यÓक विशेषण देऔने छलाह, खट्टïर ककाÓ व्यंग्य-सम्राट,क उपाधि देयौलैन्हि।ÓÓ ओ पुन: लिखैत छथि-''हमर साहित्य-सर्जनाक एक और दिशा छल हास्य-व्यंग्यपूर्ण कविता।ÓÓ
एहि तरहेँ व्यंग्य-सम्राट हरिमोहन झाकेँ समग्रता मे देखला सँ एकटा स्पष्टï धारणा बनि जाइत अछि जे समाजक विसंगति आ विकृतिकेँ उपहास, कौचर्य, कुचेष्टïा, निन्दा, आलोचना ओ वर्णना द्वारा समर्पित करबाक प्रयास मे व्यंग्यक ततबा लेप चढ़ा दैत छलाह जे पाठक-स्रोतकेँ व्यंग्यक वाण आघात तँ करैत छलैक मुदा ओ 'इस्सÓ नहि कऽ सकैत छल। चोट तँ लगैत छलैक मुदाÓ ओहÓ नहि कऽ सकैत छल।
सिद्धांत आ व्यवहार मे भेद, सत्य आ मिथ्या मे भ्रम, रूढि़केँ धर्म मानव, दंभ, पाखण्ड, कृत्रिम आचरण, मूर्खतापूर्ण अहंकार, प्राचीनताक अंधभक्ति, अंधविश्वास इत्यादिक झोल जे तत्कालीन समाजकेँ विकृत कएने छल, तकरा अपन रचना मे व्यंग्य-वक्रोति आ हास्यक झाड़निसँ झाडि़ हरिमोहन बाबू समाजक आधार-विचारक स्वच्छता, निर्मल विवेक तथा सुसंस्कृतिकेँ प्रतिष्ठिïत करबाक आजीवन प्रयास करैत रहलाह।
अपन रचनाकेँ वास्तविक ओ उपयोगी बनयबाक हेतु हरिमोहन झा तर्क ओ वाक्ïपटुता, जाहि मे व्यंग्यक समावेश किछु विशेष स्तर धरि आकषर्णक सृष्टिï करबाक हेतु कएल गेल, ताहि आधार पर अपन लोकप्रियता अर्जित कयलनि। हुनक विचार एकांगी होयतहुं परिपक्व अछि, व्यंग्य-हास्यमंडित होयतहुं चहटगर अछि जाहि दिसि जनसामान्य बिनु कोनो प्रयासक स्वत: आकृष्टï भऽ जाइत अछि।

बुधवार, अगस्त 19

अपन विशाल बरामदा मे बैसल जाड़क रौद सेकति माता जी केर धियान एक-एक गमला के छूबति बाहर लॉन में लागल पेड़-पौधा पर अटकैत गेट पर अद्र्घवृत बनबैत बोगन बेलिया पर अवस्थित भऽ गेल छलन्हि ''माली आय-काल्हि किछु अनठबैत अछि, एक दू गोट पियर पात किलकारी मारैत फल सबहक बीच केहेन घिनौन लगैत छैक...माली के एक-दू झाड़ अवस्य लगैक चाही, सब काम चोर भऽ रहल अछि...माता जी अहाँक फोन, कियो रमनीकांत बाबूÓ सुरेस कहि जायत अछि, मुदा हुनक धियान फूल आ फूलक कियारी में ऐना ओझरायल छलैन्ह, जे ओ पता नहिं सुनलखिन्ह वा नहिं। सुरेश किछु कहि कऽ फोन राखि देलकन्हि।

फूल सँ हुनका नेने सँ बड़ प्रेम 'तैंÓ लोकवेद हुनका 'फूलदाईÓ कहऽ लगलन्हि। पिता केँ बड़का बंगला आ 'पुष्प प्रेम जेना हुनका विरासत मे भेट गेल छल। सासुरो के हवेली आ तामझामक कोनो कम नहिं। प्रवासी पति पर लक्ष्मी के बरदहस्त रहलैन्ह। आ हुनक सौख-मौज मे तिल बराबरि कमी नहि रहलन्हि। विगत के वैभव हुनक आँखि मे साकार भऽ उठलन्हि।

पोखरि.....माछ....मंदिर....। आब कोन धन्नासेठ सहरि मे राखि सकैत अछि। पहिलुका मौजे के परछोन नहिं अछि आजुक फार्म हाउस....मुदा केहेन गौरव सँ लोक एकर शान बघ रति अछि।

टॉमी...कू...कू...करैत हुनक पएर के नीचा आबि बैस रहलन्हि। अचानक हुनक धियान टामी आ चिकी पर गेलन्हि। पामेरियन चीकी, अलशेशियन टामी के कतेह दिक करैत छै...मुदा टामी अपन भलमनसाहत के परिचय दइत ओकरा क्षमा करि दैत छै। परस्पर वैर-गुण साहचर्यक कारणे विलुप्त भऽ गेल छै जेना।

टॉमी आय काल्हि किछु अस्वस्थ लागि रहल अछि...मौजीलाल के कहने रहथि मवेशी डाक्टर सँ देखबऽ लेल...कि कहलकै डाक्टर...किछु गप्प नहिं भऽ सकलै...डाक्टर ओतऽ सँ घुरति ओकर जेठका बेटा गेट पर ठाढ़ भेटलै, ओकर छोटका बेटा छत पर सँ खसि पड़ल छलऽ... आ ओ छुट्टी लऽ क तुरते विदा भऽ गेल छल। मौजेलाल...टामी...चिकी...के फाँदति...फेर हुनक धियान डालिया के बड़का फूल पर रमि गेलन्हि...हुनका अपन बगीचा ओतबे प्रिय लगैत छन्हि...जेना शाहजहाँ के अपन लालकिलाक दीवाने खास आ हुनक बस चलतन्हि तऽ ओहो.....एकर चारू कात लिखबा दैतथि... ''जौं धरती पर कत्तो स्वर्ग थिक...तऽ ओ एतऽ थीक...एतऽ थिक...एत्ते थीक मुदा एक कात मिस्टर सेठी क बंगला आ दोसर कात देशपांडे के पंचसितारा होटल...अपन भावना के मोनक कोनो कोन मे दफना कऽ ओ उदास भऽ जाइत छथि। आब ओ दिन कहाँ एखन सब पैसा वाला राजे थीक।

... माताजी कियो रमणीकांत बाबू...तीन दिन सँ फोन कऽ रहल छथि...कहति छथि जे बड़ जरूरी काज छैन्ह...मेम साहेब सँ बात करताह...अपने हरिद्वार गेल रही... फेर मंदिर... सत्संग...आय अपने पूजा...ÓÓ सुरेश अखन अपन गप्प खत्तमो नहिं केने छल...कि... गेट पर एक गोट कारी मर्सिडिज रूकलै... अत्याधुनिक सूट मे सुसञ्ञित पुरूष एक संभ्रांत वृद्घा संग गेट सँ होइत बरामदा मे एलाह।

ड्राइंग रूम मे सुरेश बैसबै छन्हि... रमणी कान्त बाबू आ हुनक माए....माताजी प्रणाम कएलन्हि! ''कतेक बेर फोन कयलहु मुदा अपनेक व्यस्तताक कारणे वार्तालाप नहिं भऽ सकल इम्हर अहि होटल मे हमर एकटा मीटिंग छल... तऽ सोचलहु जे एक पंथ दू काज भऽ जाइत बिन पूर्व अनुमति के उपस्थित भेलहु क्षमाप्रार्थी छी...ÓÓ रमणीकांत बाबू बड़ दुनियादार... बाजऽ मे निपुण व्यक्ति लगलाह।

''अयबाक विशेष प्रयोजन अपनेक पुत्रक प्रति... हमर कन्या...ÓÓ अपन कन्याक वर्णन मे सबटा विशेषण... उपमा के प्रयोग करैत ऐना... नख-शिख वर्णन मे लागल छलाह... जेना... कोनो चित्रकार अपन अमर कृति के बखानति ओकरा कला पारखीक समक्ष उपस्थित केने होय।

एक बागि ओ चुप भऽ गेला किंस्यात हुनका माताजी केर चुप्पी अखरऽ लगलन्हि... आब हुनक वृद्घ जननीकेर बारी छलन्हि ''हमर पौत्री मे लक्षमी आ सरस्वतीक अपूर्व संगम... व्यवस्थाक कोनो प्रश्रे नहिं जतेक चाही... जतह कहू हम विवाह लेल प्रस्तुत भऽ जायब... एक बेर.... देखि लैतिए...हमर पोती अंधेरिया मे पूर्णिमाक चान सन्ï थीक.... बूढ़ी देखैए में बूढ़... बकलेल सन्ï लागैत छलिह......मुदा बाजऽ मे......किंस्यात धनक घमंड होयतन्हि... नव धन तऽ नहिं छन्हि?ÓÓ

माता जी किछु सोचति वृद्घा के तकैत रहलीह सुरेस अहि बीच मे चाय-नाश्ता राखि गेल छल। अहाँक अपने कोन कम्मी थीक... मुदा तैयो... बेटी वला तऽ।

''बेस... अपनेक गाम भोज पड़ोल भेल?ÓÓ

बूढ़ी खुश भऽ गेली ''हँ ऽऽऽÓÓ मुदा रमण्ीकांत बाबू किछु क्षुब्ध सन लगैत बजलाह... आब गाम-ताम सँ केकरा मतलब छै... के रहैत अछि गाम पर... आब तऽ दिल्लीवासी भेलहु... एखने जर्मनी, हालैंड आ इंगलैंड केँ टूर लगाकऽ आबि रहल छी, कतऽ सँ कतऽ जा रहल अछि ई विश्व आ एकटा अपन देश... जेना धूप में सूतल घोंघा... थाइलैंड एहेन छोट देश... ओहो... इंडिया सँ हजार गुणा निक। कोनो डिपार्टमेंटल स्टोर मे जाऊ। कत्तबो देर घूमू... किछु खरिदारी नहियों करू तखनो ओ सब किछ नहिं कहत। विंडोशॅापिंग के इज्जत छै, ओकर कहना छै, जे आय लोक समान देखऽ आयल अछि... काल्हि पैसा हेतै तऽ खरीदारी करत... दोस्त के कहत्तै... एक प्रकार सँ ओहो कस्टमर भेल... आ एतऽ इंडिया मे... दू सँ तीन चीजक दाम पूछू तऽ दुकानदार कहत... भैया ये तेरे वश की चीज नहीं। टाइम खराब करता है...ÓÓ

''मुदा भारत मे रहबाक अपन सुख छै... हम तऽ किन्नो विदेश मे नहिं बसब...ÓÓ माताजी हुनक गप्प बीचे मे काटि कऽ बजलहि... ''एतऽ के संस्कार आ जाति प्रथा, जीवैत इतिहास छैक... तखन नै... सौ बरख पहिने कैरेबियन देश त्रिनिडाड गेल भारतीय मजदूरवंशज कनिए प्रयासक बाद एतऽ खोजि निकाललक अपन, जडि़... मूल बीज... वासुदेव पांडेय... ओहि पाश्चात्य देश में जनम आ परवरिश पाबिओ कऽ भारत मे अपन जडि़ ढूढ़ऽ लेल तड़पि उठलाह।ÓÓ माताजी के हृदयक आक्रोश शब्द मे परिलक्षित भऽ उठलन्हि भोज पड़ोल क रमणीकांत नाम हुनका विगत पैंतालिस परख पाछाँ... अतीत मे धकेल देलकन्हि... घटना बड़ पुरान... मुदा... बूढ़ पुरान कÓ स्मृति मे ओ अखनो जीवित प्राय: अछि।

ओ एक गोट दुर्गापूजा क तातिल छल जाहि मे ओ गाम गेल छलथि। मिडिल स्कूल मे छलीह... चौथा मे... आÓ छठि धरि रहबाक खुशी मे हुनक हम उम्र सोनिया संगी बनि गेलन्हि। गामक प्रथानुसार ओकर विवाहक लेल हरपुर वाली काकी कहिया सँ पेटकुनिया दऽ देने रहथि। पिता परदेश मे कत्तौ विवाह केने रहै... गाम सँ कनि फराक हुनक मँडई। दादी कहैथ... नितांत... गरीब छथि ई लोक... मुदा बड़ भलमानस। हरपुरवाली के नूआ मे चप्पी ततेक रहैन्ह जे ककरा फुर्सत के गिनत... मुदा बोली एहेन मधुर जेना मौध।

दुर्गे स्थान मे सोनिया हुनका कहने छलन्हि भोज पड़ोल के सुमिरन बाबू कत्तो कलकत्ता में भनसियाक काज करैत छन्हि, हिनकर पुत्र रमणीकांत सँ ओकर विवाह लागि रहल अछि।

ओकरा बाद ओ पुन: शहर आबि गामक सोनिया के बिसरि अध्ययन मे लागि गेल छलथि... तीन बरखक बाद... दादी एकादशीक यज्ञ कऽ रहल छलीह... सब कियो जूटलै...।

भोरे भोर नींद टूटल, दादी के आवाज सँ, राम। राम। ताहि लेल लोक कहैत छै जे बेटी कँ जनमें नहिं डराय, बेटीक करमे डराय... की भेलऽ दाय...?ÓÓ ओ हड़बड़ा कऽ उठल छलीह...

''सोनिया के माए दादी के पएर पकडि़ कोढि़ फाडि़ कऽ कनैत छलहि... ओ भोजपड़ोल वला... वरक बाप... पैसा कÓ लोभ मे बेटाक विवाह... कत्तौ अनतऽ चाहैत छल...आ। दू... सौ... टाका... अपना दिस सँ दऽ कÓ दादी सोनियाक कन्यादान करौने छलीह... दाय कहैत... मोज-पड़ोल वला कुटूम बड़ नंगट। चतुर्थीए मे घीना देलकै... सायकिल लऽ रूसल... कहुतऽ घर नै घरारी... आब ओकरा घड़ी चाही...ÓÓ सोनिया के बड़ दुख दैत छै... सासो ससूर तैहने छै... चिन्ता सँ सुखा कऽ गोइठा भऽ गेलऽ छौड़ी।

... किछु दिनक बाद दादी कहलीह... ''सोनिया मरि गेलऽ... साँप काटि लेलकै... बोन मे...।ÓÓ के देखऽ गेलऽ की भेलऽ? कियो कहे माहूर खूआ कऽ मारि देलकै।

भाग्य रमणीकांत बाबू के खूब संग देलकैन्हि... सरस्वती अपन दूनू हाथ सँ कृपा लुटबति हुनका उन्नति के रास्ता पÓ बढ़बति गेलीह... पाय-पाय के लेल तरसल... रमणीकांत बाबू पाय के ईश्वर मानि लेलाह... धन सँ घर भरि गेलन्हि... अतीत सँ ओ वत्र्तमान मे, रमणीकांत बाबूक आवाज सूनि आबि गेलीह।

''हमर जेठ दामाद सेहो डाक्टर छथि... बेटी दामाद दूनू के हम अमेरिका पठा देने छी... आ 'हिनको हम एतऽ थोड़े रह देबन्हि... अमेरिका मे कि शान छै... डाक्टर के ... तऽ अपने... किछु बजलीए नहिं...ÓÓ हम एहीं मौन के स्वीकृति बुझु की ओ हँसला...

''हमरा तऽ उच्च खानदान के सुशील कन्या चाही चारिटा वस्त्र मे...ÓÓ

...रमणीबाबू अपन माएक संग माथ झुकौने जा रहल छथि... आÓ बूझि पड़ल जे वर्षो पहिने सत्त वा फुसि जे साँप सोनिया के कटने हेतैक, आए हुनक चेहरा विषाक्त कऽ देलकैन्ह...। सोनिया के प्रति कएल गेल अत्याचारक जवाब माँगऽ लेल समय जेना अपन आँखि खोलि देलेकै।

—डा. कामिनी कामायनी

सोमवार, अगस्त 17

फु रसत

मकरा जाल बुनैत अछि फुरसत मे

ओ करैत अछि निढाल फुरसत मे

कथी लेल पूछैत छथि वो हमरा सँ

एहन-ओहन सवाल फुरसत मे

लोक नीक जकां देख लिअए हमरा

अपना कें घर सँ निकालि फुरसत मे

लूटि लिअए हमर परछाईं हमरा

नहि त रहि जायत कचोट फुरसत मे

जिनक ठोर पर मुस्की छैन्हि

पूछिओन हुनक हाल फुरसत मे

फेर ककरो सम्हारब नहि

पहिने अपना कें सम्हारी फुरसत मे

धारक कात मे बैसि कय अहां

एना नहिं पानि उछेहु फुरसत मे।

गुरुवार, अगस्त 13

अपराध आवश्यकता भऽ गिया है समाज का

अखबार पढि़ मोन ऊबिया गेल छल। खाली अपराधेक खबरि सँ भरल रहैत अछि आबक अखबार। राजधानी पटना हो वा जिला मुख्यालय वा पंचायत अथवा गाम-घरक समाचार विकासक नाम पर अपराधेटा के ग्राफ लगातार बढि़ रहल अछि। हत्या, अपहरण, लूट, बलात्कार वा, अन्य छोटा-पैघ घटना-दुर्घटना, समाचारक नाम पर एत्तबे पढ़बा मे अबैत अछि। मिथिलांचलक आवो-हवा सेहो कत्तेक बदलि गेल अछि? शान्तप्रिय मिथिलांचल कत्तेक असुरक्षित आ अशांत भऽ गेल अछि! घर सँ एक बेर निकललाक बाद फेरो सुरक्षित आ साबूत घुरि आयब, ताहु पर शंका रहय लागल अछि। ओना आब लोक घरो मे कत्तेक सुरक्षित रहि गेल अछि? ओना सच पुछु तऽ आब अखबार मथदुखीक बड़का कारण बनि रहल अछि। जौं मटरु कामति एखन रहितथि तँ हुनके गप्प सऽ एहि मथदुखी सँ पार पबितौं, सोचिते रही कि, ......'आऊ-आऊ बड्ड लम्बा ओरदा अछि अहाँके,Ó हर्षित मोने स्वागत कएलन्हि मटरु कामति के।
'कहू मटरु कामतिजी, की हाल-चाल ? आई भोरे-भोरे किम्हर सँÓ......'ग्यारह बाजि गेलै सरकार, भोर नहि छैक।Ó परिचित अंदाज मे कटाक्ष कएलाह मटरु कामति। समय दिस धियान जाइत स्वयमï् लजा गेलहुँ। अखबारी खबरि केँ सहारा लैत समाज मे बढ़ैत अपराध के विषय बनेलहुँ मुदा ओ निरपेक्ष भावे बजलाह, 'एहि मे चिन्ता बला तऽ कोनो बात नहि छैक, अपितु हमरा सभके तऽ प्रसन्न होयबाक चाही जे आब मिथिलो मे बीर रस के प्रधानता भेल जा रहल अछि। मिथिला के पहचान पौराणिक काल सँ आइधरि दोसरे कारण सँ रहल अछि, किन्तु आब ई क्षेत्र वीर भूमिक रूप मे सेहो तेजी सऽ अपन पहचान आ ख्याति अर्जित कऽ रहल अछि। अहाँ अनेरे फिरेशान भऽ रहल छी सरकार, ई तऽ परम हर्खक विषय अछि।Ó 'मुदा अपराध केर बीरता सँ कोन सम्बन्ध? हत्या, लूट, अपहरण, बलात्कार-की यैह थिक बीरताक परिभाषाï?Ó हम तर्क रखलयैन्हि। मटरु कामति तपाक सऽ बजलाह, 'मोसहरीक फट्टïा लऽ रणक्षेत्र जयबा सँ तऽ नीके स्थिति अछि ने। आब तऽ नेनो-भुटका असलाह आ बम-बारुद सँ लैस रहैत अछि। आ ई बीरता-धीरताक परिभाषाक गप्पे छोड़ू। ई परिभाषा शब्द बहुत सोभितगर आवरण मे रहैत अछि हरदम, खासकऽ सामाजिक राजनीतिक परिपेक्ष्य मे। 'शहीदÓ आ 'हलाकÓ दुनुक अर्थ, सन्दर्भ, प्रयोजन कमोवेश एक्के अछि, पर्याये तऽ थिक मुदा परिभाषा शब्द एक केँ महिमामंडित करैत अछि तऽ दोसर केँ? वस्तुत: दुनु हत्या तऽ थिक। कोनो व्यक्ति के जान जायत अछि आ समाजशास्त्री 'परिभाषाÓ सेँ जेना मृत्यु के फराक करबाक प्रयास करैत छथि। हिटलर आ स्तालीन समान रूप सेँ हजारों निर्दोषक हत्यारा छल परंच ''परिभाषा मे तऽ हिटलर खलनायक घोषित कएल गेल मुदा स्तालीन? यदि राम-रावण युद्ध मे रावणक विजय भेल रहितै वा कौरव-पाडंवक महाभारत मे पांडव पराजित होयतथि तऽ कि 'अधर्म पर धर्मक विजयÓ एहि रुपि मे परिभाषित होयतै जाहि अर्थ आ सन्दर्भ मे एखन मान्य आ प्रचलित अछि?ÓÓ
एखन हम तर्क-वितर्कक पक्ष मे नहि रही तैं समर्पण करैव कहलयन्हि, ''अहाँ बात कतअ लऽ गेलहुँ हम तऽ मिथिला मे बढ़ैत अपराध पर गप्प करैत छी। जौं यैह स्थिति रहत तऽ समाज कतअ जायत? नब पीढ़ी जेना अपराधक प्रभामंडल सँ आकर्षित भऽ रहल अछि ओ क्षेत्र-संस्कृति सब लेल खतरनाक अछि। भविष्य तऽ अन्धकारमय देखा रहल अछि।ÓÓ ''अहाँ तऽ बेकारे नकारात्मक सोच रखैत छी हमरा तऽ स्थिति विकासक लेल बहुत उपयुक्त बुझना जा रहल अछि। आ भविष्य तऽ बहुत उज्ज्वल देखबा मे आबि रहला अछि। अहाँ अपन चश्मा बदलु सरकार।ÓÓ ''मुदा.....ÓÓ ''कोनो मुदा-जुहा नहि, छुच्छें बजैत कण्ठ सुखा गेल अछि। की चीनी वा चाहक पती सधल अछि, दोकान सँ मंग बऽ पड़त?ÓÓ मटरु कामति चायक माँग अपन चिर-परिचित हास्य-व्यंगक अंदाज मे कएला।
चाहक लेल अँगना मे कहि विस्मय सँ पूछलयन्हि, ''ऑय यौ मटरु कामति, अहाँ तऽ हमेशा राजनीतिक सामाजिक बुराई के विरोध मे बिगुल फुकैत रहैत छी, मुदा मिथिला मे बढ़ैत अपराध पर अहाँ, चुप्पे रहलहुँ अछि, ऐना किएक?ÓÓ ''विरोधक तऽ बुराईक होयबाक चाही ने, अपराध मे कोन बुराई छ? अपराध, युद्ध, विध्वंश ई सभ त विकासक सोपान अछि, सूचक अछि विकासक। की विकासोक विरोध होयबाक चाही? जड़ समाज चाहैत छी की अपने लोकनि? अपराध विकसीत आ विकासशील समाजक उध्र्वोगामी सूचकांक अछि। दुनियाक सबसँ विकसीत देश मे सर्वाधिक अपराध होइत अछि। राष्टï्रीय राजधानी दिल्ली आ देशक व्यवसायिक राजधानी मुम्बई हो वा पूर्व राजधानी कोलकाता कत्तअ नहि होयत छैक अपराध? तैं कि ओ शहर विकसीत नहि अछि? एकर तुलना मे की छैक अपराधक संख्या मिथिला मे? घुमि कऽ देखि लिऔ कोन जगह बेसी विकसीत छै? झूठे अहाँ अपराध-अपराध करैत छी महाराजÓÓ बमकि के बजलाह मटरु कामति।
तावत चाय आबि गेल। चुस्की लैत हम कहलयन्हि, 'शान्तिप्रिय मिथिला सभ दिन सँ अपन विद्वता, अध्यात्म आ कर्मकांड लेल प्रसिद्ध रहल। याज्ञवाल्वय, जनक.....Ó बीचे मे ओ बजलाह 'अहाँ तऽ प्रागैतिहासिक कालक गप्पे नहि करु।Ó ''अच्छा, तऽ मंडन मिश्र, अयाची मिश्र, विद्यापतिÓÓ....''तऽ की कऽ लिये ई सभ आ बदला मे समाज की दिया ओहि भलमानुष सभ केँ? ककरो घर-घराड़ी डीहो का पता है किसीको? झूठे सबका नाम लेते फिरते हैं मुदा ककरो घर-घराइन, डीह-डाबर, हुनका सभक वंशबला लोको का पता है आ जौं पता है तऽ उसकोÓ सिर्फ पुरुखा के नामÓ पर समाज कितना आदर दे रहा है? भारत मे मुगलवंशका शासने था, कहाँ है उसका उत्तराधिकारी सभ? महाराणा प्रताप के बंश मे कौन बचा है, कहाँ है, की करता है किसको फुरसत है मथदुक्खी का? अरे, मिथिला मे तऽ सभ गप्पीए सब भरा है लेकिन गोनू झा का गाम-ठाम और हुनकर खरूहान के बारे मे अहीं कनि जानकारी दिअ ने? आदर्श आ उपदेश छाँटना बहुत आसान होता है सरकार, हम सभ आदर्श आ अतीत मे जीते हैं, ई जड़ समाज का सबसे बड़ा लक्षण है।Ó एक्के साँस मे बाजि गेलाह मटरु कामति। हम गौर कैल जे चाय पीलाक बाद आ हरदम जोश मे आबि जायत छथि। तथापि अपन तर्क रखैत कहलयन्हि, 'ओ सभ अपन कृत्तित्व सँ अमरत्व के प्राप्त कऽ लेलाह। धरोहरि बनि गेल छथि समाजक। क्षेत्रीय आ सांस्कृतिक पहचान आ गौरव बनि गेल छथि। मिथिला मां सरस्वती आ शक्तिक भूमि थिक। एहिठाम हजारो विभूति भेलाह अछि आ एखनो छथि ऐहन महान भूमि पर, माय मैथिलीक गृह-प्रदेश मे अपराध लेल कोन जगह? एहि सँ तऽ क्षेत्रक समस्त ऐतिहासिक, धार्मिक, सांस्कृतिक आ सामाजिक ढाँचा गड़बड़ा रहल अछि। पहचान आ अस्तित्वक संकट उत्पन्न भऽ गेल अछि।Ó तमाखू के चून लगाबैत आ कनि मुस्कियाइत मटरु कामति बजलाह, 'अहाँ भाषण नीक दऽ सकैत छी सरकार, मगर सिर्फ भाषण सँ राशनक जुगाड़ आजुक युग मे सहज नहि रहि गेल अछि। एहि लेल कर्म करए पड़ैत छैक। आ गीता मे कर्म पर भगवान श्री कृष्णक उदï्गार तऽ बिसरल नहिए होयबै। गीताक सार छैक जे समय परिवर्तनशील छैक। युग परिवर्तनक संग-संग समय- परिस्थिति, सामाजिक, सांस्कृतिक राजनीतिक प्रतिमान सेहो बदलैत अछि। हमहुँ सभ नव परिवर्तन, नवयुगक नव प्रतिमानेक अनुसार जीबाक अभ्यस्त भऽ जाय तऽ कोनो संकट नहि अछि। समस्त प्रतिमान समय-सापेक्ष होइत अछि। सीता मैया तऽ आदर्श पत्नि थी, सुख-दुख मे पतिक संग रहलीह, अग्नि परीक्षा सेहो दी मुदा पति ने फिर भी बनवास दे दिया। जौं हुनकर भाय वा नैहर मे कोनो 'हीरोÓ रहता तऽ सीधे पहुँच जाता राम के पास, कनपट्टïी पर रखितै पिस्टल आ गर्दनि पर छुरा तखन राम केँ बुझि पडि़तन्हि। मुदा हुनका तऽ ऐहन डरे नहि छलन्हि। आई कियो सोचै ने ऐहन गप्प? शक्ति स्थली मे शक्ति-पूजन, ओकर अभ्युदय केँ कोना खराब कहैत छिएैक अहोँ? घर मे एगो 'हीरोÓ बनाइए फिर देखियौ समाज मे कोना आपका मान बढि़ जाता है। समाज मे तूती बाजेगा, लोक डराएगा, धन-संपत्ति, खेत-पथार सभ सुरक्षित भऽ जाएगा। बेटा दू-चारि खून कर देगा तऽ ओकर एम पी एमएलए बनना तो तये है, तहन सोचिये कतेक रुतबा बढ़ेगा। मात्र सरस्वती का आराधना करने से ही बेरोजगारी बढि़ गिया है, मुँह आ हाथका फासला बढि़ गिया है। शक्ति उपासना से बेरोजगारी का संकटो तऽ दूर होता है, एहि दिशा मे ठंढ़ा मोन सँ निरपेक्ष भावे सोचिएगा कभी।Ó कहि खैनी ठोर तऽर राखि लेलाह मटरु कामति।
हम प्रतिवाद करैत कहलयन्हि, 'जौं ओ दु-चारि खून करत तऽ अपने कतेक सुरक्षित रहि जायत? पुलिस आ विरोधी खेमाक गोली सँ कतेक दिन बचल रहत? आओर जौं यैह संस्कृति समाज मे स्वीकार्य भऽ जायत तऽ समाजक की होयतैक, घर-घर विधवा बचतीह तहन कि समाजक अस्तित्व रहि सकत?Ó 'ओनाहु कतेक सुरक्षित अछि आई लोक हत्या आ अपहरणक सर्वाधिक शिकार वैह होइत अछि जे अपराध वा बन्दूक संस्कृति सँ दूर शान्तिपूर्ण जीवन जीबअ चाहैत अछि। कोनो अपराधीक, चोर-डाकू केँ घर मे चोरी-डकैतीक घटना सुनलियैक अछि? पाकेटमारक जेबी सबसँ बेसी सुरक्षित रहैत छैक। पुलिस आ प्रशासनो ओकरे सभक संग दैत छैक। ओकर वर्चस्व आ दबदबा चारुकात पसरल रहैत छैक।Ó खैनीक पीक फेकैत फेरो जोशा गेला मटरु कामति, 'देखते नहि हैं, अपराधी सभ बड़का भीआईपी बनि जाता है और पुलिस बला ओकरा सलामी ठोकते नहीं थकता है। ओकरा सभके स्वागत आ सुरक्षा मे पूरा महकमा बेहाल रहता है। ट्रांस्फर, पोस्टिंग आ प्रोमोशन लेल एहने लोक लाग लाइन लगता है। आइएएस, आइपीएस सब फेल है उसके आगे। चल-अचल सम्पत्ति का तो कमिए नहि रहता है। देश का कानून बनाता और बदलता रहता है। बिना पढ़े-लिखे सबटा महत्वपूर्ण निर्णय का भागीदार होता है। आब तऽ पढ़ल-लिखल फर्राटेदार अंग्रेजी बाजनेवाला सभ भी इस लाइन मे स्कोप आ कैरियर देखने लगा है। और एकटा बात कहिए सरकार,Ó 'नेता, व्यापारी, अधिकारी, शिक्षाविदï्, कलाकार, कलमकार, ठीकेदार के अपराधी नहि है? सभ अपन स्वार्थ आ लोलुपत्ता मे अंधा है। ककर पेट भरा है? चंचल लक्ष्मी को कैद करने के पीछा कियो ककरो लेल, देश-समाज लेल सोचता है? सब अमीर, बहुत अमीर सबसँ बेशी अमीर बनना चाहता है। अपने उदर-पूर्ति लेल लोक दोसर का गर्दनि काटने तैयार रहता है। फेर सरस्वतीयो का अराधना तो लक्ष्मीए प्राप्ति, उदर-पूर्तिए के लिए न किया जाता रहा है तो एहि शौर्ट-कौट लेल 'बाहु-पूजाÓ वा शक्ति प्रदर्शन मे की हर्जा है? छूच्छे सरस्वती पूजा से रोजगारक गारण्टी तऽ रहि नहि रहि गिया है लेकिन हथियार-पूजन से ककरो भूखे मरैत देखे हैं, बल्कि बेरोजगारी तऽ ओकरा लेल कवच कऽ काम करता है आ समाजशास्त्री लेल चिंतन, तर्क-वितर्क का। 'छ इंच छोटा करने वाला संस्थाÓ को तऽ सबटा पढ़ले-लिखले लोक का नेतृत्व है और ओ सभ इसको तार्किक बना देता है। पढ़-लिखकर, अफसर-बुद्विजीवी बनकर आदमी भलभनुष बन जाता है या कहिए कि उसका स्वांग करता है। परिणाम बिजली, पानी, सड़क से लेकर, शिक्षा जगत, छात्र का भविष्य सब कुछ चिन्तनीय हो गया है। अगर शक्ति का सहारा लिया जाय, सीधे बन्दूक-छुरा की भाषा मे बात किजीए जो सब ठीक भऽ सकता है। गाम के स्कूल-हास्पीटल मे मास्टर-डाक्टर दिखने लगेगा, बिजली कटौती वाला जब 'गर्दनि कटौतिÓ की स्थिति देखेगा तो विद्युत व्यवस्थो दुरुस्त हो जाएगा यानि मिथिला विकास की पटरी पर दौडऩे लगेगा। बुझे कि नहि बुझे सरकार! आश्चर्य है राजनीति का ठेकेदार इस आवश्यकता को बहुत पहले बुझि गिया था ऐहने 'कर्ण-अर्जुनÓ सभका सहारा लेता है चुनाव जीतने को पता नहि मूढ़ समाज कियों संशय मे है, इसको स्वीकारने मे हिचकिचाता है। आवश्यकता है जागरण का घर-घर मे जागृति का, आप लोक एहि जन-जागरण अभियान का हिस्सा बनिए और समाज आ क्षेत्र के विकास मे भागीदार बनिए। 'लगभग अंतिम निर्णय देलाह मटरू कामति। हम खिन्न मने कहलयन्हि,Ó 'अहाँक विचार सुनि बडï्ड दुख भेल जखन अहीं एहन लोक ऐहन विचार राखत....Ó 'तऽ की आप चाहते हैं कि हम जीवित नहीं रहें। अपराध के खिलाफ बोलकर कौन जान जोखिम मे लेता है? पुलिस आ प्रशासनों ओकरे पनाह देता है। हम बाल-बच्चावाला घुमन्तु जीव हूँ, बेटी का बियाहो करना है।
आज के युग का सीधा सिद्धान्त है अगर जीना है तो आँख-मुँह आ कान बन्द करके चुपचाप ल्हास जेकाँ जीविए, बेसी टाँय-टाँय करिएगा तो पता नहि कत्तअ पड़ल रहियेगा। पूरा समाजे नपुँसक बनि गिया है आ हमहुँ तऽ समाजे मे रहता हूँ।Ó ई कहि अचानक ठाढ़ भऽ गेलाह मटरू कामति, 'एखन चलै छी, फेर भेंट होयत।Ó पुन: अपन यायावरी डग उठबैत बिदा भेला मटरू कामति आ हमरा सामने अपराधक आँगा बेवश समाज, राजनीति, प्रशासन आ चुप्प रहवा लेल अभिशप्त आम आदमीक विवशताक सम्पूर्ण सच्चाई आ समाजक सर्मपणक दृश्य छोडि़ गेलाह। आखिर के बुझि सकत मटरू कामतिक विवशता केँ आ के सोचत एहि दिशा मे, सेहो कहिया धरि?