गुरुवार, दिसंबर 24
मिथिलांचल सँ पलायन
सोमवार, दिसंबर 21
कलाक चौंसठि संख्याक रहस्य आ कलाक मूलाधार
शनिवार, दिसंबर 19
तहसीलदारक दाढ़ी 'बाह-बाहÓ मे गेल
गुरुवार, दिसंबर 17
नख सँ शिख धरिक सौन्दर्य
बुधवार, दिसंबर 16
सत्येंद्रक लघुकथा
मंगलवार, दिसंबर 15
देह उघाड़ू विज्ञापनक पसरैत जाल
शुक्रवार, नवंबर 27
विद्यापति गीत
1
कि कहब हे सखि रातुक बात।
मानक पइल कुबानिक हाथ।।
काच कंचन नहि जानय मूल।
गुंजा रतन करय समतूल।।
जे किछु कभु नहि कला रस जान।
नीर खीर दुहु करय समान।।
तन्हि सएँ कइसन पिरिति रसाल।
बानर-कंठ कि सोतिय माल।।
भनइ विद्यापति एह रस जान।
बानर-मुह कि सोभय पान।।
2
जौवन रतन अछल दिन चारि।
से देखि आदर कमल मुरारि।।
आवे भेल झाल कुसुम रस छूछ।
बारि बिहून सर केओ नहि पूछ।।
हमर ए विनीत कहब सखि राम।
सुपुरुष नेह अनत नहि होय।।
जावे से धन रह अपना हाथ।
ताबे से आदर कर संग-साथ।।
धनिकक आदर सबतह होय।
निरधन बापुर पूछ नहि कोय।।
भनइ विद्यापति राखब सील।
जओ जग जिबिए नब ओनिधि भील।।
३
सैसव जौवन दुहु मिल गेल। श्रवनक पथ दुहु लोचन लेल।।
वचनक चातुरि नहु-नहु हास। धरनिये चान कयल परकास।।
मुकुर हाथ लय करय सिंगार। सखि पूछय कइसे सुरत-विहार।।
निरजन उरज हेरत कत बेरि। बिहुँसय अपन पयोधर हेरि।।
पहिले बदरि सम पुन नवरंग। दिन-दिन अनंग अगोरल अंग।।
माधव देखल अपरूब बाला। सैसव जौवन दुहु एक भेला।।
विद्यापति कह तुहु अगेआनि। दुहु एक जोग इह के कह सयानि।।
सोमवार, अक्तूबर 5
गुदरी मे लाल : बाबा यात्री
शुक्रवार, सितंबर 18
जो रे कलंकियाहा!
शनिवार, सितंबर 12
मंहगाई
आई बडकी काकी’क आयु सौ वर्ष पुर्ण भ’ गेलन्हि.बडकी काकी के पोता दरिभंगा सं आयल छैन्हि आ जल्दी जयबाक हेतु तैयार भ रहल छैन्हि..काकी दौडि कय गुड्डू’क दोकान जा दू लीटर सरिसो तेल आ पांच किलो चाउर कीन अनलीह सनेस भेजबाक लेल. पोता कहलकन्हि"दाय,एतेक सौख छौ त’ पाईये कियेक नै भेज दै छहुन्ह बेटा के?"काकी बजलीह "हौ, गुड्डू के दोकान कोनो दूर छैक.पोता तमसा गेलन्हि आ कहय लगलन्हि"तू बूढ भ’ गेलैंह,बुधि नहि काज करैत छौ.आब कियो मोटरी भेजैत छै?""बुधि त’ लोकक नै काज करैत छैक?"- काकी बाजय लगलीह-"जहिया लोक मोटरी सनेस भेजैत रहय,हम पाई भेजैत रही,आब हम पाई के बदला मे मोटरिये भेजैत छी.कारण जे आब त’ जतेक भारी मोटरी ओतबे भारी पाई.देखै नै छहक कते मह्गाई बढि गेलैक.मोटरी ल’ जा ई पाइ स हल्लुक पडतह."
- अरविन्द झा
बिलासपुर
शुक्रवार, सितंबर 11
जीवन मे खेल-कूदक महत्त्व
मंगलवार, सितंबर 8
चौंसठ कला
कहल जाइछ जे अजुका समय मे यदि एहि चौंसठ कला मे सँ नारी मे बीसोटा भेटि जाय तऽ ओ नारी गुणी छथि। जँ किनको मे चौंसठों कला हेतैन्ह तऽ नि:संकोच ओ पद्ïमावती सदृश हेतीह, जिनक गुण आ रूप-लावण्य पर साधारण मनुक्खक कोन कथा देवता सेहो मोहित होबाऽ सँ नहि बँचि पबैत छथि। जकर सीथ मे मोती हुअए, मुंह चन्द्रमा केर समान होइ, भौं धनुष जकाँ प्रतीत होइहि, जे अपन नयनाक कटार सँ जगत्प्राणी के घायल करैथ, जिनक लाल-लाल ठोर रस सँ भरल होइन्हि, ऐहन स्त्री जँ चौंसठों कला सँ परिपूर्ण होथि तऽ हुनका लेल पुरुष भेटब दुर्लभ जे हिनक वरण कए पबथिन्ह। ऐहन सुंदरी या तऽ स्वयंवर रचा अपन पति स्वयं पसिन्न करतीह अथवा दुष्यंतक शकुंतला वा कृष्णक राधा हेतीह। भऽ सकैछ फेर सँ सिंहल द्वीप बनै वा दुबारा राजा रत्नसेनक जन्म होइन्हि।
आई-काल्हिं जखने लड़कीक गुणक चर्चा होइत अछि सहजहिं सभक ठोर पर चौंसठ कला आबिए जाइत अछि, कारण पुरनका समय मे चौंसठों कला सँ परिपूर्ण स्त्रीये सर्वगुण सम्पन्न मानल जाइत छलीह। आखिर ई चौंसठों कला अछि की? जे मन के उद्वेलित कय रहल अछि। जँ पड़ताल कएल जाय तऽ साहित्य संस्कृति मे चौंसठ कलाक परिचय एहि प्रकारेँ भेटैत अछि :
गायन
वाद्य विद्या
नृत्य कलाक ज्ञान
नाट्ïयकलाक ज्ञान
चित्रकारी केनाय
बेल-बूटा बनायब
चाऊरक आँटा आ फूल सँ रंगोली (अरिपन) बनायब
रंग-बिरंगी पाथर सँ फर्श सजेनाय
मौसमक हिसाबे कपड़ा पहिरबक ज्ञान
समय आ ऋतुक हिसाबे शैय्या रचनाक ज्ञान
जलक्रीड़ा जानब
जलतरंग बजेनाय
पुष्पाहार आदि बनायब
वेणी बनेनाय
सुगंधित द्रवक ज्ञान
विभिन्न प्रकारक कपड़ा लत्ता पहिरबक ज्ञान
फूलक आभूषण बनाऽ पूरा देह के सजेबाक ज्ञान
इंद्रजालिक योग में निपुण
सौंदर्यवद्र्धक वस्तुक ज्ञान
नबका-नबका व्यंजन बनायब
सिलाई मे निपुणता
कईक प्रकारक शर्बत आ आसव बनाय
कढ़ाई मे निपुणता
कठपुतली बनायब आ ओकरा नचायब
वीणा आ डमरू बजेनाय
मुरूत बनेनाय
ग्रंथक ज्ञान
नाट्ïय सिनेमाक अवगति
कूटनीति मे दक्षता
पटिया गलीचा आदि बनायब
विभिन्न समस्याक समाधान केनाय
घर-निर्माणक जानकारी
बढ़ईक थोर-मोर काजक ज्ञान
रत्न चिह्नïनाई
मणिक रंग बुझनाय
बागवानीक शौक
पौधा सभक जानकारी
मुर्गा तीतर के लड़ेनाय
तोता-मैना के पढ़ेनाय
पक्षी-पालन
बहुभाषी होयब कम सँ कम दू भाषाक ज्ञान
इशारा सँ बातचीत करब
नबका-नबका बोली निकालब
नीक-बेजायक पहचान
काव्यके बुझबाक शक्ति
स्मरणशक्ति नीक
पहेली बुझायब
सांकेतिक भाषा मे गप्प केनाय
मन मे कटक रचना केनाय
समस्त कोषक ज्ञान
छंद ज्ञान
वेदक ज्ञान
खिलौना निर्मित केनाय
चौसर आ ताश खेलनाय
बच्चाक खेलक ज्ञान
उबटन आ मालिशक ज्ञान
घरक साफ-सफाई केनाय
पैघक आदर आ सम्मान
आज्ञाकारी
मधुर व्यवहार
मृदु व मितभाषी
छन्दबद्ध रचना केनाय
मितव्ययी
अस्त्र-शस्त्र ज्ञान
सोमवार, सितंबर 7
अभिव्यक्ति
सुखायल पात जका
हुनका लोकनिक गप्प
उरैत अछि स्वतन्त्र आकाश मे,
छू लैत अछि
गगनचुम्बी महल के,
सैट जाइत अछि
खुब पैघ पोस्टर स’,
तेज चलैत अछि
कार के काफ़िला के सन्ग.
मुदा हमर सभहक बात
पानि मे फेकल पाथर जका
डूबि जाइत अछि,
विलीन भ जाइत अछि,
ओहि मे वजन होइत छैक
तैयो स्तित्व नहि।
किछु साल बाद
माटिक गादि मे दबि
भुमिगत भ जाइत अछि
एहन अभिव्यक्ति के कि अर्थ?
- अरविन्द झा
बिलासपुर
09752475481
शुक्रवार, सितंबर 4
रस्ता
विचार सँ पैघ होइत छै
वैभव आ अभिमान सँ नहि
जनैत छी
विचारक फुनगी पर
आदमीक प्रवृति टाँगल रहैत अछि
आ ओकर प्रारब्ध
कर्मक गति तकैत अछि
तत्पश्चात्ï
आदमी, आदमी बनैत अछि।
हम अहाँक उपदेशक नहि
हम त मानधन छी
हमर औकात तऽ
एकटा चुट्टी सन अछि
जकर मालगुजारी
हम अपन शब्दक रूप मे अभिव्यक्त करैत छी।
हमर बात मानब त सुनू
अहाँ अपन मनोवृति के बदलु
एहिठाम अहाँ के सभ किछु भेटत
जकरा अहाँ प्राप्त कए सकी
मुदा भाई लोकनि
रस्ता दूटा अछि
पहिने आश्वस्त भए जाउ
जे कोन रस्ता कतए जाइत अछि।
—सतीश चंद्र झा
9810231588
गुरुवार, सितंबर 3
बाढि़ बनाम जल प्रबंधन
प्रलय अनिष्टï सूचक अछि। रोंइयां ठाढ़ भऽ जाइत छैक, देह सिहरि जाइत छैक सोचला मात्र सँ। मानवीय होय वा प्राकृतिक- होइत अछि ई विनाशक। तैँ आवश्यक अछि प्रतिकार। सोचय पड़त विकल्प, ताकए पड़त समाधान। भागीरथी प्रयासक करए पड़त संधान। सुरक्षा लेल आवश्यक छैक-श्रम, स शक्ति, संपत्ति आ सामथ्र्यक प्रबंधन।
प्रबंधन जटिल होइत छैक अपना वृहत स्वरूप मे। ऊर्जा आ बहुत रास सामूहिक प्रयासक समन्वय अछि प्रबंधन। वृहत योजना आ गंभीर चिंतन। दूर दृष्टिï आ व्यापक अध्ययन। तखने कल्याणकारी आ सटीक भऽ सकैत अछि प्रबंधन। रोकल जा सकैत अछि क्षय संपत्ति, माल आ जानक।
प्रतिवर्ष सैकड़ो जान आ करोड़ोंक संपत्ति स्वाहा। जल-जमाऊ के असरि रहैत अछि कतेको दिन। बाधित परिवहन आ पंगु जीवन। बीमारी-महामारी मँगनी मे, सँपकट्टïीक विशेष उपहार। दंश झेलैत छी चुपचाप। अभिशप्त जेना विधवा प्रलाप। मुखर अपेक्षा, मौन सरोकार। आत्मसात जेना संस्कार। भविष्य निर्धारित कऽ सकैत अछि वर्तमान। वर्तमान बुझबा लेल देखए पड़त अतीत।
अतीत मे स्व. डॉ. लक्ष्मण झा देखौलन्हि वेभेल परियोजनाक प्रारूप। बाढि़ पर गंभीर मनन। समाजक गहींर चिंतन। बुझि नहि सकल अज्ञानी मन, तैं नरकीय बनल रहल जीवन। फेर सँ उठल अछि आवाज। नव आगाज। नव सुगबुगाहट। नव सूत्र। नवीन अध्याय। डैम आ पनबिजली! स्थायी निदान? बाढि़क समाधान? नव शुरुआत?
शुरुआत सँ जुड़ल अछि अंत। निर्माण सँ विध्वंस। डैमक निर्माण आ कि लाखो-करोड़ोक विस्थापन। भूमिक अधिग्रहण। खतरा मे पर्यावरण। कतेको आपदा-विपदा केँ आमंत्रण। की तैयार छी? उद्वेलित भावना, सहि सकत आर्थिक/अस्तित्ववादी प्रताडऩा? सुरसाकेँ मुंह जेंका पसरल समस्या। अस्तित्वक कतेको यक्ष प्रश्न। बहुत रास चिंतन। अनवरत मंथन। वैचारिक मंदारक अछि प्रयोजन। अमृत? विष? वा दुनु? पचा सकब? तैं डेग बढ़ौला सँ पहिनेए लेमय पड़त निर्णय। अपना लेल, भविष्य लेल, पीढ़ी दर पीढ़ी लेल। स्वागत, प्रत्येक कल्याणकारी निर्णयके।
सोमवार, अगस्त 31
काज
शुक्रवार, अगस्त 28
मिथिलाक उद्धार करु सरकार
गुरुवार, अगस्त 27
नहि बनब पत्रकार!
मंगलवार, अगस्त 25
कविता
सोमवार, अगस्त 24
अभागल गाम रातू बिगहा
आजाद हिन्दुस्तान के एकटा अभागल गाम छै रातू बिगहा। जे बिहार के जहानाबाद जिले के घोषी प्रखंड मे छै। एहि गाम मे लोक के खेबाक लेल रोटी नहीं भेट रहल छै। जिन्दगी के लेल गरीबी संग लड़ि रहल एहि गामक लोक आब रोटी के अभाव में मरि रहल छै। एक दिस देश आजादी के जश्न मनेबाक लेल तैयारी मे लागल छल त दोसर दिस एहि गामक लोक अपन सम्बन्धी के जरेबाक लेल कटियारी ल जेबाक तैयारी में लागल छल।
एहि गाम में पछिला एक सप्ताह में तीन गोटे के जान जा चुकल छै। मुदा ककरो अकर चिंता नहि। दलित आ गरीबक एहि बस्ती मे लोकक लेल सरकार बीपीएल कार्ड त बनबा देलकै मुदा आई तक लोक के अन्न नहि भेट सकलई।
सरकार गरीबी मेटाबई के लेल तरह दृ तरह के योजना बना रहब छै मुदा जहानाबाद के एहि गाम मे गरीब मेटा रहल छै। शुरु मे जखन गामक लोक सब एकर शिकायत एहि सं जुड़ल अधिकारी से केलकैन त कियो देखबाक लेल नहि ऐलै मुदा आब जखन गप्प लोकक मृत्यु तक पहुंच गेलै त प्रखंडक बीडीओ साहेब एकर टोह लेबाक लेल गाम पहुंचला आ अन्न नहि देबइ बला पर सख्ती सं कार्रवाई करबाक आश्वासन द रहल छथिन। खैर कार्रवाई कते धरि हेतै ई त सब गोटे नीक जकां जानै छी।
ई 62 साल के आजाद हिन्दुस्तान के सच्चाई छै जेतय लोकक लेल रोटी आइयो एकटा प्रश्न बनल छै। ई गाम हमरा सब के अपन आजादी के ऐना देखा रहल अछि। गामक बूढ़ आंखि देशक नेता सब सं प्रश्न पूछि रहल छैन जे की यैह देखबाक लेले देश के आजाद कैल गेल छलै। की गांधीजी जे आजादी के सपना देखने छलाह ओकर यैह सत्यता छै......
- अंकुर कुमार झा
शनिवार, अगस्त 22
अनचिन्हार सन अपन
गुरुवार, अगस्त 20
पाठकक हृदयकेँ बेधैत हरिमोहन बाबूक मैथिली रचना
बुधवार, अगस्त 19
अपन विशाल बरामदा मे बैसल जाड़क रौद सेकति माता जी केर धियान एक-एक गमला के छूबति बाहर लॉन में लागल पेड़-पौधा पर अटकैत गेट पर अद्र्घवृत बनबैत बोगन बेलिया पर अवस्थित भऽ गेल छलन्हि ''माली आय-काल्हि किछु अनठबैत अछि, एक दू गोट पियर पात किलकारी मारैत फल सबहक बीच केहेन घिनौन लगैत छैक...माली के एक-दू झाड़ अवस्य लगैक चाही, सब काम चोर भऽ रहल अछि...माता जी अहाँक फोन, कियो रमनीकांत बाबूÓ सुरेस कहि जायत अछि, मुदा हुनक धियान फूल आ फूलक कियारी में ऐना ओझरायल छलैन्ह, जे ओ पता नहिं सुनलखिन्ह वा नहिं। सुरेश किछु कहि कऽ फोन राखि देलकन्हि।
फूल सँ हुनका नेने सँ बड़ प्रेम 'तैंÓ लोकवेद हुनका 'फूलदाईÓ कहऽ लगलन्हि। पिता केँ बड़का बंगला आ 'पुष्प प्रेम जेना हुनका विरासत मे भेट गेल छल। सासुरो के हवेली आ तामझामक कोनो कम नहिं। प्रवासी पति पर लक्ष्मी के बरदहस्त रहलैन्ह। आ हुनक सौख-मौज मे तिल बराबरि कमी नहि रहलन्हि। विगत के वैभव हुनक आँखि मे साकार भऽ उठलन्हि।
पोखरि.....माछ....मंदिर....। आब कोन धन्नासेठ सहरि मे राखि सकैत अछि। पहिलुका मौजे के परछोन नहिं अछि आजुक फार्म हाउस....मुदा केहेन गौरव सँ लोक एकर शान बघ रति अछि।
टॉमी...कू...कू...करैत हुनक पएर के नीचा आबि बैस रहलन्हि। अचानक हुनक धियान टामी आ चिकी पर गेलन्हि। पामेरियन चीकी, अलशेशियन टामी के कतेह दिक करैत छै...मुदा टामी अपन भलमनसाहत के परिचय दइत ओकरा क्षमा करि दैत छै। परस्पर वैर-गुण साहचर्यक कारणे विलुप्त भऽ गेल छै जेना।
टॉमी आय काल्हि किछु अस्वस्थ लागि रहल अछि...मौजीलाल के कहने रहथि मवेशी डाक्टर सँ देखबऽ लेल...कि कहलकै डाक्टर...किछु गप्प नहिं भऽ सकलै...डाक्टर ओतऽ सँ घुरति ओकर जेठका बेटा गेट पर ठाढ़ भेटलै, ओकर छोटका बेटा छत पर सँ खसि पड़ल छलऽ... आ ओ छुट्टी लऽ क तुरते विदा भऽ गेल छल। मौजेलाल...टामी...चिकी...के फाँदति...फेर हुनक धियान डालिया के बड़का फूल पर रमि गेलन्हि...हुनका अपन बगीचा ओतबे प्रिय लगैत छन्हि...जेना शाहजहाँ के अपन लालकिलाक दीवाने खास आ हुनक बस चलतन्हि तऽ ओहो.....एकर चारू कात लिखबा दैतथि... ''जौं धरती पर कत्तो स्वर्ग थिक...तऽ ओ एतऽ थीक...एतऽ थिक...एत्ते थीक मुदा एक कात मिस्टर सेठी क बंगला आ दोसर कात देशपांडे के पंचसितारा होटल...अपन भावना के मोनक कोनो कोन मे दफना कऽ ओ उदास भऽ जाइत छथि। आब ओ दिन कहाँ एखन सब पैसा वाला राजे थीक।
... माताजी कियो रमणीकांत बाबू...तीन दिन सँ फोन कऽ रहल छथि...कहति छथि जे बड़ जरूरी काज छैन्ह...मेम साहेब सँ बात करताह...अपने हरिद्वार गेल रही... फेर मंदिर... सत्संग...आय अपने पूजा...ÓÓ सुरेश अखन अपन गप्प खत्तमो नहिं केने छल...कि... गेट पर एक गोट कारी मर्सिडिज रूकलै... अत्याधुनिक सूट मे सुसञ्ञित पुरूष एक संभ्रांत वृद्घा संग गेट सँ होइत बरामदा मे एलाह।
ड्राइंग रूम मे सुरेश बैसबै छन्हि... रमणी कान्त बाबू आ हुनक माए....माताजी प्रणाम कएलन्हि! ''कतेक बेर फोन कयलहु मुदा अपनेक व्यस्तताक कारणे वार्तालाप नहिं भऽ सकल इम्हर अहि होटल मे हमर एकटा मीटिंग छल... तऽ सोचलहु जे एक पंथ दू काज भऽ जाइत बिन पूर्व अनुमति के उपस्थित भेलहु क्षमाप्रार्थी छी...ÓÓ रमणीकांत बाबू बड़ दुनियादार... बाजऽ मे निपुण व्यक्ति लगलाह।
''अयबाक विशेष प्रयोजन अपनेक पुत्रक प्रति... हमर कन्या...ÓÓ अपन कन्याक वर्णन मे सबटा विशेषण... उपमा के प्रयोग करैत ऐना... नख-शिख वर्णन मे लागल छलाह... जेना... कोनो चित्रकार अपन अमर कृति के बखानति ओकरा कला पारखीक समक्ष उपस्थित केने होय।
एक बागि ओ चुप भऽ गेला किंस्यात हुनका माताजी केर चुप्पी अखरऽ लगलन्हि... आब हुनक वृद्घ जननीकेर बारी छलन्हि ''हमर पौत्री मे लक्षमी आ सरस्वतीक अपूर्व संगम... व्यवस्थाक कोनो प्रश्रे नहिं जतेक चाही... जतह कहू हम विवाह लेल प्रस्तुत भऽ जायब... एक बेर.... देखि लैतिए...हमर पोती अंधेरिया मे पूर्णिमाक चान सन्ï थीक.... बूढ़ी देखैए में बूढ़... बकलेल सन्ï लागैत छलिह......मुदा बाजऽ मे......किंस्यात धनक घमंड होयतन्हि... नव धन तऽ नहिं छन्हि?ÓÓ
माता जी किछु सोचति वृद्घा के तकैत रहलीह सुरेस अहि बीच मे चाय-नाश्ता राखि गेल छल। अहाँक अपने कोन कम्मी थीक... मुदा तैयो... बेटी वला तऽ।
''बेस... अपनेक गाम भोज पड़ोल भेल?ÓÓ
बूढ़ी खुश भऽ गेली ''हँ ऽऽऽÓÓ मुदा रमण्ीकांत बाबू किछु क्षुब्ध सन लगैत बजलाह... आब गाम-ताम सँ केकरा मतलब छै... के रहैत अछि गाम पर... आब तऽ दिल्लीवासी भेलहु... एखने जर्मनी, हालैंड आ इंगलैंड केँ टूर लगाकऽ आबि रहल छी, कतऽ सँ कतऽ जा रहल अछि ई विश्व आ एकटा अपन देश... जेना धूप में सूतल घोंघा... थाइलैंड एहेन छोट देश... ओहो... इंडिया सँ हजार गुणा निक। कोनो डिपार्टमेंटल स्टोर मे जाऊ। कत्तबो देर घूमू... किछु खरिदारी नहियों करू तखनो ओ सब किछ नहिं कहत। विंडोशॅापिंग के इज्जत छै, ओकर कहना छै, जे आय लोक समान देखऽ आयल अछि... काल्हि पैसा हेतै तऽ खरीदारी करत... दोस्त के कहत्तै... एक प्रकार सँ ओहो कस्टमर भेल... आ एतऽ इंडिया मे... दू सँ तीन चीजक दाम पूछू तऽ दुकानदार कहत... भैया ये तेरे वश की चीज नहीं। टाइम खराब करता है...ÓÓ
''मुदा भारत मे रहबाक अपन सुख छै... हम तऽ किन्नो विदेश मे नहिं बसब...ÓÓ माताजी हुनक गप्प बीचे मे काटि कऽ बजलहि... ''एतऽ के संस्कार आ जाति प्रथा, जीवैत इतिहास छैक... तखन नै... सौ बरख पहिने कैरेबियन देश त्रिनिडाड गेल भारतीय मजदूरवंशज कनिए प्रयासक बाद एतऽ खोजि निकाललक अपन, जडि़... मूल बीज... वासुदेव पांडेय... ओहि पाश्चात्य देश में जनम आ परवरिश पाबिओ कऽ भारत मे अपन जडि़ ढूढ़ऽ लेल तड़पि उठलाह।ÓÓ माताजी के हृदयक आक्रोश शब्द मे परिलक्षित भऽ उठलन्हि भोज पड़ोल क रमणीकांत नाम हुनका विगत पैंतालिस परख पाछाँ... अतीत मे धकेल देलकन्हि... घटना बड़ पुरान... मुदा... बूढ़ पुरान कÓ स्मृति मे ओ अखनो जीवित प्राय: अछि।
ओ एक गोट दुर्गापूजा क तातिल छल जाहि मे ओ गाम गेल छलथि। मिडिल स्कूल मे छलीह... चौथा मे... आÓ छठि धरि रहबाक खुशी मे हुनक हम उम्र सोनिया संगी बनि गेलन्हि। गामक प्रथानुसार ओकर विवाहक लेल हरपुर वाली काकी कहिया सँ पेटकुनिया दऽ देने रहथि। पिता परदेश मे कत्तौ विवाह केने रहै... गाम सँ कनि फराक हुनक मँडई। दादी कहैथ... नितांत... गरीब छथि ई लोक... मुदा बड़ भलमानस। हरपुरवाली के नूआ मे चप्पी ततेक रहैन्ह जे ककरा फुर्सत के गिनत... मुदा बोली एहेन मधुर जेना मौध।
दुर्गे स्थान मे सोनिया हुनका कहने छलन्हि भोज पड़ोल के सुमिरन बाबू कत्तो कलकत्ता में भनसियाक काज करैत छन्हि, हिनकर पुत्र रमणीकांत सँ ओकर विवाह लागि रहल अछि।
ओकरा बाद ओ पुन: शहर आबि गामक सोनिया के बिसरि अध्ययन मे लागि गेल छलथि... तीन बरखक बाद... दादी एकादशीक यज्ञ कऽ रहल छलीह... सब कियो जूटलै...।
भोरे भोर नींद टूटल, दादी के आवाज सँ, राम। राम। ताहि लेल लोक कहैत छै जे बेटी कँ जनमें नहिं डराय, बेटीक करमे डराय... की भेलऽ दाय...?ÓÓ ओ हड़बड़ा कऽ उठल छलीह...
''सोनिया के माए दादी के पएर पकडि़ कोढि़ फाडि़ कऽ कनैत छलहि... ओ भोजपड़ोल वला... वरक बाप... पैसा कÓ लोभ मे बेटाक विवाह... कत्तौ अनतऽ चाहैत छल...आ। दू... सौ... टाका... अपना दिस सँ दऽ कÓ दादी सोनियाक कन्यादान करौने छलीह... दाय कहैत... मोज-पड़ोल वला कुटूम बड़ नंगट। चतुर्थीए मे घीना देलकै... सायकिल लऽ रूसल... कहुतऽ घर नै घरारी... आब ओकरा घड़ी चाही...ÓÓ सोनिया के बड़ दुख दैत छै... सासो ससूर तैहने छै... चिन्ता सँ सुखा कऽ गोइठा भऽ गेलऽ छौड़ी।
... किछु दिनक बाद दादी कहलीह... ''सोनिया मरि गेलऽ... साँप काटि लेलकै... बोन मे...।ÓÓ के देखऽ गेलऽ की भेलऽ? कियो कहे माहूर खूआ कऽ मारि देलकै।
भाग्य रमणीकांत बाबू के खूब संग देलकैन्हि... सरस्वती अपन दूनू हाथ सँ कृपा लुटबति हुनका उन्नति के रास्ता पÓ बढ़बति गेलीह... पाय-पाय के लेल तरसल... रमणीकांत बाबू पाय के ईश्वर मानि लेलाह... धन सँ घर भरि गेलन्हि... अतीत सँ ओ वत्र्तमान मे, रमणीकांत बाबूक आवाज सूनि आबि गेलीह।
''हमर जेठ दामाद सेहो डाक्टर छथि... बेटी दामाद दूनू के हम अमेरिका पठा देने छी... आ 'हिनको हम एतऽ थोड़े रह देबन्हि... अमेरिका मे कि शान छै... डाक्टर के ... तऽ अपने... किछु बजलीए नहिं...ÓÓ हम एहीं मौन के स्वीकृति बुझु की ओ हँसला...
''हमरा तऽ उच्च खानदान के सुशील कन्या चाही चारिटा वस्त्र मे...ÓÓ
...रमणीबाबू अपन माएक संग माथ झुकौने जा रहल छथि... आÓ बूझि पड़ल जे वर्षो पहिने सत्त वा फुसि जे साँप सोनिया के कटने हेतैक, आए हुनक चेहरा विषाक्त कऽ देलकैन्ह...। सोनिया के प्रति कएल गेल अत्याचारक जवाब माँगऽ लेल समय जेना अपन आँखि खोलि देलेकै।
—डा. कामिनी कामायनी
सोमवार, अगस्त 17
फु रसत
मकरा जाल बुनैत अछि फुरसत मे
ओ करैत अछि निढाल फुरसत मे
कथी लेल पूछैत छथि वो हमरा सँ
एहन-ओहन सवाल फुरसत मे
लोक नीक जकां देख लिअए हमरा
अपना कें घर सँ निकालि फुरसत मे
लूटि लिअए हमर परछाईं हमरा
नहि त रहि जायत कचोट फुरसत मे
जिनक ठोर पर मुस्की छैन्हि
पूछिओन हुनक हाल फुरसत मे
फेर ककरो सम्हारब नहि
पहिने अपना कें सम्हारी फुरसत मे
धारक कात मे बैसि कय अहां
एना नहिं पानि उछेहु फुरसत मे।