सोमवार, दिसंबर 5

द्वादश ज्योतिर्लिंग कथा

(१) श्री सोमनाथ- गुजरात प्रान्तक काठियावाड़ मे समुद्रक तट पर अवस्थित एहि ज्योतिर्लिंगक कथा शिव पुराण मे एहि तरहे सँ वर्णित अछि :-

दक्ष प्रजापति केर ‘कन्या छलनि । हुनका सभक विवाह चन्द्रमाक संग कयने छलथिन्ह । परन्तु चन्द्रमा मात्र रोहिणीक अलावा किनको सँ अनुराग व सम्मान नहि करथिन्ह । एहि सँ क्रोधित भऽ प्रजापति दक्ष चन्द्रमा कें क्षय होयबाक शाप दए देलथिन्ह । एहि सँ चन्द्रमाक कान्ति तत्काल क्षीण भऽ गेलनि । ओ अपन श्राप सँ विमुक्‍ति हेबाक लेल ऋषि आओर देवता के संग कए ब्रह्मा जीक ओहिठाम गेला । ब्रह्माजी शाप विमोचन के लेल प्रभास क्षेत्र मे जाए कऽ भगवान शिवक आराधना करबा लेल कहलथिन्ह । ओ कठिन तपस्या करैत १० करोड़ मृत्युंजय मंत्रक सेहो जाप कएलनि । एहि पर भगवान शिव प्रसन्‍न भऽ अमर रहबाक वरदान दए शाप सँ मुक्‍ति होयबाक विषय मे कहलथिन :- जे अहाँ कृष्ण पक्ष मे एक-एक अंश क्षीण होइत जाएत और शुक्ल पक्ष मे ओहि तरहें एक-एक अंश बढ़ैत पुर्णिमा कऽ पूर्ण रूप प्राप्त होएत । आओर प्रजापति दक्षक वचनक रक्षा सेहो भए जेतनि । शाप सँ मुक्‍ति भेलाक पश्‍चात्‌ चन्द्रमा आओर सब देवता लोकनि भगवान शिव के माता पार्वती कें साथ सभ प्राणीक उद्धारार्थ एतय रहबाक प्रार्थना कएलनि । भगवान शिव प्रार्थना कें स्वीकार कऽ ज्योतिर्लिंग के रूप में माँ पार्वती के साथ ओहि दिन सँ एतय रहय लगलाह ।

(२) श्री मल्लिकार्जुन :- आंध्रप्रदेश मे कृष्णा नदीक तटपर श्री शैलपर्वत स्थित ज्योतिर्लिंगक कथा पुराण मे एहि तरहक अछि ।

भगवान शिवक दुनू पुत्र श्री गणेश आओर श्री कार्तिकेय मे सँ किनक विवाह सर्वप्रथम करायल जाय, एहि तरहक समस्याक समाधान हेतु शिवजी दुनू बालक कें पृथ्वीक परिक्रमाक आदेश दए कहलथिन्ह जे पहिने परिक्रमा कय आबि जायब तिनक विवाह सर्वप्रथम कराओल जाएत । श्री कार्तिकेय एहि बात कें सुनिते मयूर पर सवार भय पृथ्वीक परिक्रमा के लेल विदा भऽ गेलाह । श्री गणेश जी सोचय लगलाह जे हुनका मयूर सवारी छनि आ यथा शीघ्र परिक्रमा कय लेताह परन्तु हमरा मूसक सवारी अछि हमरा सँ पृथ्वी परिक्रमा असंभव अछि तथापि बुद्धि विवेकक सहारा लय अपन माता पिताक शरीर मे अखण्ड ब्रह्माण्ड कें समाहित देखि ओ हुनकहि प्रदक्षिणा कऽ हाथ जोड़ि माता पिताक सन्मुख ठाढ़ भय गेलाह । माता-पिता हुनक बुद्धि विवेक देखि हुनक वियाह सिद्धि आओर बुद्धि के साथ करबा देलनि । ओहि मे क्षेम तथा लाभ नामक दु पुत्र भेलनि । जखन कार्तिकेय पृथ्वीक परिक्रमा कऽ भगवान शंकर तथा पार्वतीक पास अयलाह तावत धरि श्री गणेश जीक विवाह भऽ गेल रहनि तथा दू पुत्रक प्राप्ति सेहो भऽ गेल छलनि । ई सभ बात देखि कार्तिकेय क्रोधित भय क्रौंच नामक पर्वत पर चलि गेलाह । माता पार्वती रुष्ट पुत्र के वापस लाबय लेल ओहि स्थान पर पहुँचलथि । पाछाँ सँ भगवान शिव ज्योतिर्लिंग के रूप मे प्रकट भऽ गेलाह, ताहि दिन सँ मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के नाम सँ प्रख्यात भेलाह । एहि लिंगक पूजा अर्चना सर्वप्रथम मल्लिका पुष्प सँ कएल गेल छल ताहि हेतु मल्लिकार्जुन नाम सँ प्रसिद्ध छथि ।

(३) महाकालेश्‍वर :- मध्यप्रदेशक उज्जैन नगर मे अवस्थित एहि ज्योतिर्लिंगक कथा पुराण मे एहि प्रकार सँ अछि :-

प्राचीन काल मे उज्जयिनी मे राजा चन्द्रसेन राज्य करैत छलाह । ओ परम शिव भक्‍त छलाह । राजाक शिव भक्‍ति सँ प्रभावित भऽ कऽ एक पाँच वर्षक ग्वालाक लड़का शिव भक्‍ति मे निमग्न भऽ गेल । भक्‍ति मे मगन ओ बालक खेनाई के सेहो बिसरि गेल छल । एहि पर कुपित भऽ माय ओहि शिव लिंग रूपी पत्थर के फेकि देलकनि । बालक भगवान शिव के नाम बजैत बेहोश भऽ खसि परल । किछु समय बाद होश एलाक बाद ओ सामने बहुत सुन्दर आओर बहुत विशाल सुवर्ण रत्‍न सँ जटित मन्दिर देखलनि । मन्दिर के भीतर प्रकाश पूर्ण, भास्वर तेजस्वी ज्योतिर्लिंग स्थापित छल । ताहि दिन सँ एहि ज्योतिर्लिंगक पूजा शुरू भेल । उज्जयिनी नाम सँ विख्यात ई नगर भारतक परम पवित्र सप्तपुरी मे एक अछि ।

(४) ॥श्री ओंकारेश्‍वर, श्री अमलेश्‍वर ॥

मध्यप्रदेशक पवित्र नर्मदा नदीक तटपर अवस्थित एहि ज्योतिर्लिंगक कथा पुराण मे एहि तरहक अछि :-

प्राचीन समय मे महाराज मांधाता एकटा पर्वत पर बैसि तपस्या सँ भगवान शिव के प्रसन्‍न केने छलाह, एहि सँ इ पर्वत मांधाताक नाम सँ विख्यात भेल । भगवान शिव ज्योतिर्लिंगक रूप मे एहि स्थान पर प्रकट भेलाह ताहि हेतु सम्पूर्ण मांधाता पहाड़ कें शिव के रूप मानल जाइत अछि । एहि ओंकारेश्‍वर ज्योतिर्लिंग कें दू रूप छनि, एहि के वर्णन निम्नलिखित अछि :- विंध्य पर्वत भगवान शिवक आराधना कयलनि । ओ प्रकट भऽ मनोवांछित वरदान देलथिन्ह । एहि अवसर पर आयल मुनि लोकनिक आग्रह पर अपन ओंकारेश्‍वर नामक लिंग के दू भाग मे कऽ देलनि । एक के नाम ओंकारेश्‍वर तथा दोसर के नाम अमलेश्‍वर भेलनि । दुनू लिंगक स्थान आओर मन्दिर अलग-अलग रहलौ पर दुनूक सत्ता-स्वरूप एक अछि ।

(५) श्री केदारनाथ :- उत्तराखण्ड प्रदेशक केदार नामक पर्वत पर अवस्थित एहि ज्योतिर्लिंगक कथा पुराण मे वर्णित एहि प्रकार सँ अछि :-

हिमालयक केदार नामक अत्यन्त शोभाशाली शिखर पर महा तपस्वी श्रीनर आओर नारायण भगवान शिव कें प्रसन्‍नता हेतु कठिन तपस्या कयलनि । तपस्या सँ खुश भऽ भगवान शिव प्रकट भऽ वर मांगय लेल कहलथिन्ह । श्रीनर आओर नारायण शिव सँ याचना कएलनि जे अपन भक्‍तक कल्याण के लेल सभ दिन एहि ठाम अपन स्वरूप कें स्थापित करबाक कृपा कयल जाय । मुनिक प्रार्थना सुनि भगवान शिव ज्योतिर्लिंगक रूप मे एहि स्थान पर रहब स्वीकार कयलनि । केदार नामक हिमालय शिखर पर अवस्थित होयबाक कारणे इ ज्योतिर्लिंग केदारेश्‍वर ज्योतिर्लिंग के नाम सँ प्रसिद्ध अछि ।

(६) श्री भीमेश्‍वर :- असम प्रदेशक गोहाटी के नजदीक ब्रह्मपुत्र पहाड़ पर अवस्थित एहि ज्योतिर्लिंगक कथा पुराण मे निम्न लिखित अछि :-

प्राचीन समय मे भीम नामक एक महाप्रतापी राक्षस छल । ओ कठिन तपस्या कऽ ब्रह्माजी सँ त्रिलोक विजयी हेबाक वरदान प्राप्त कयलनि । त्रिलोक विजयी भीम कामरूपक परम शिव भक्‍त राजा सुदक्षिण पर आक्रमण कऽ हुनका बन्दी बना कारावास दऽ देलनि । राजा ओहि समय मे पार्थिव शिवलिंगक पूजा करैत छलाह । हुनका एहि तरहें पूजा करैत देखि क्रोधित भऽ भीम अपन तलवार सँ ओहि पार्थिव शिवलिंग पर प्रहार कऽ देलनि । तत्काल भगवान शिव प्रकट भऽ हुँकार मात्र सँ ओहि राक्षस केँ भस्म कऽ देलनि आओर सुदक्षिण व ऋषि मुनि सभ कें प्रार्थना स्वीकार कऽ भगवान शिव सभ दिन के लेल ज्योतिर्लिंग के रूप मे वास करए लगलाह । हुनक ओ ज्योतिर्लिंग भीमेश्‍वर नाम सँ विख्यात भेल ।

(७) श्री विश्‍वेश्‍वर :- उत्तर प्रदेशक प्रसिद्ध काशी मे स्थित एहि ज्योतिर्लिंगक कथा एहि प्रकारक अछि-

भगवान शंकर पार्वती विवाह कऽ कैलाश पर्वत पर निवास करैत छलीह । परन्तु पिताक घर विवाहित जीवन बितेनाई बढ़ियाँ नहि बुझना गेलनि । एक दिन ओ भगवान शिव सँ कहलथिन कि आब अपना घर पर चलू । एहि ठाम रहनाइ हमरा बढ़िया नहि बुझना जाइत अछि । सब लड़की विवाह भेलाक बाद अपना पतिक घर जाइत अछि । परन्तु हमरा पिताक घर रहय पड़ैत अछि । भगवान शिव माता पार्वती कें साथ लऽ अपन पवित्र नगर काशी आबि गेलाह । ओतय ओ विश्‍वेश्‍वर ज्योतिर्लिंगके रूप मे स्थापित भऽ गेलाह । मत्स्यपुराण मे एहि नगरीक महत्व कहल गेल अछी जे ध्यान आओर ज्ञान रहित तथा दुःख सँ पीड़ित मनुष्य के लेल काशियेटा परमगतिक स्थान अछि । श्री विशेश्‍वर के आनन्द वन मे दशाश्‍वमेघ, लोलार्क, विन्दुमाधव, केशव आओर मणिकर्णिका ई पाँच प्रधान तीर्थ स्थली अछि, ताहि हेतु एहि स्थान केँ अविमुक्त क्षेत्र कहल जाइत अछि ।

(८) श्री त्र्यम्बकेश्‍वर :- महाराष्ट्र प्रान्तक नासिक लग अवस्थित एहि ज्योतिर्लिंगक कथा पुराण मे एहि तरहक अछि :-

ब्राह्मण सभ श्री गणेश जी कें संग मीलि महर्षि गौतम जी पर छल सँ गोहत्याक दोष लगेलनि । महर्षि जी कें चारू दिस सँ बहिष्कृत कऽ देल गेलनि । ई देखि ओ भगवान शिव के कठोर तपस्या सँ प्रसन्‍न कऽ गोहत्याक पाप सँ मुक्‍ति होयबाक रास्ता जानय चाहलनि । भगवान शिव प्रकट भऽ कहलथिन्ह :- हे गौतम अहाँ सदैव सर्वथा निष्पाप छी । अहाँक ऊपर गोहत्याक पाप छलपूर्वक लगाओल गेल अछि । छलपूर्वक एहि तरहें करय वला ब्राह्मण अहाँक आश्रम मे छथि । हुनका सभ के हम दण्ड देबय चाहैत छी । गौतम जी उत्तर देलथि = हे प्रभू! एहि ब्राह्मण सभक निमित्तें अपने हमरा दर्शन देल ताहि हेतु एहि सँ हमर परम हित समझि कऽ हुनका लोकनि कें क्षमा कयल जाय । ऋषि-मुनि, देवता गण ओतय एकत्र भऽ गौतम जीक बात के अनुमोदन कयलनि तथा भगवान शिव कें सब दिन के लेल ओहिठाम निवास करय लेल प्रार्थना कयलन्हि । भगवान शिव हुनका लोकनिक प्रार्थना सुनि श्री त्र्यम्बकेश्‍वर ज्योतिर्लिंगक नाम सँ स्थित भऽ गेलाह । गौतम द्वारा आनल गेल गंगा एहि ठाम गोदावरी नाम सँ प्रवाहित होमय लागल ।

(९) श्री वैद्‌यनाथ :- झारखण्ड राज्य के संथाल परगना मे अवस्थित एहि ज्योतिर्लिंगक कथा एहि प्रकार सँ अछि :-

राक्षस राजा रावण कठोर तपस्या कऽ भगवान शिव कें शिवलिंग रूप मे लंका मे अवस्थित होयबाक वरदान मंगलनि । भगवान शिव जी वरदान दैत कहलखिन जे अहाँ शिवलिंग लऽ जा सकैत छी, परन्तु एहि लिंग के रास्ता मे कतहु पृथ्वी पर राखब तऽ ओ अचल भऽ जायत आ अहाँ पुनः उठाकय नहि लऽ जा सकैत छी । रावण शिवलिंग उठा कऽ लंका विदा भेला कि किछु दूर गेलाक बाद हुनका लघुशंका करबाक इच्छा भेलनि । ओ शिवलिंग के एक बालक के हाथ मे दऽ लघुशंका के लेल गेलाह । रावण के अबय मे देरी देखि बालक ओहि लिंग के पृथ्वी पर राखि देलनि । ओ लघुशंका सँ निवृत्त भऽ शिवलिंग के उठावय के लेल बहुत प्रयत्‍न कयलनि परन्तु शिवलिंग नहि उठि सकलनि । अन्त मे हारि कय ओ एहि पवित्र शिवलिंग पर अंगुठाक निशान बना कऽ वापस लंका चलि गेलाह । बहुत दिनक बाद ओहि जंगल मे वैदू नामक गोप गाय चरबैत ओहि स्थान पर शिवलिंग देखि साफ सुथरा स्थान कऽ प्रथम पूजा कयलनि आ तें ओ ज्योतिर्लिंग वैद्यनाथ नाम सँ प्रख्यात छथि ।

(१०) श्री नागेश्‍वर :- गुजरातक द्वारिकापुरीक समीप अवस्थित एहि ज्योतिर्लिंगक कथा एहि तरह सँ वर्णित अछि :-

प्राचीन समय मे सुप्रिय नामक एक बड़ धर्मात्मा आओर सदाचारी वैश्य़ छलाह । भगवान शिवक भक्‍त होयबाक कारणें दुष्ट राक्षस दारूक सुप्रिय आओर हुनक सहयोगी सभ कें कारावास मे राखि यातना देबय लगलाह । शिवक आराधना मे तल्लीन सुप्रिय कें मृत्यु दण्डक आदेश भेल । भगवान शिव प्रकट भऽ दर्शन दऽ हुनका अपन पासुपत अस्त्र प्रदान कयलनि, जाहि सँ सुप्रिय दारूक एवं हुनक सहयोगी सब कें वध कयलनि । भगवान शिव ज्योतिर्लिंग के रूप मे प्रकट भेल छलाह आ सुप्रियक आग्रह पर ओहि स्थान पर श्री नागेश्‍वर नाथ नाम सँ प्रख्यात भेलाह ।

(११) श्री सेतुबन्ध रामेश्‍वर :- तमिलनाडुक हिन्दमहासागर तट पर अवस्थित एहि ज्योतिर्लिंगक कथा निम्न प्रकारक अछि :-

जखन भगवान श्री रामचन्द्रजी लंका पर चढ़ाई करबा लेल जा रहल छलाह ताहि समय ओ एहि समुद्रक तट पर बालू सँ शिवलिंग बनाकऽ हुनक पूजन कएने छलाह, पूजा सँ प्रसन्‍न भऽ भगवान शिव रावण पर विजय प्राप्त करबाक वरदान देने छलथिन्ह । श्री राम के अनुरोध पर भगवान शिव लोक कल्याणार्थ ज्योतिर्लिंग कें रूप मे ओहि स्थान पर निवास करबाक प्रार्थना स्वीकार कऽ लेलनि । ताहि दिन सँ ई ज्योतिर्लिंग एहि स्थान पर रामेश्वरक नाम सँ विराजमान छथि ।

(१२) श्री घुश्मेश्‍वर :- महाराष्ट्रक वेरूल गाँवक पास अवस्थित एहि ज्योतिर्लिंगक कथा पुराण मे निम्न प्रकार सँ अछि-

प्राचीन समय मे देवगिरि पर्वत के समीप सुधर्मा नामक एक अत्यन्त तेजस्वी तपोनिष्ट ब्राह्मण रहैत छलाह । हुनक पत्‍नीक नाम सुदेहा छलनि । सन्तान नहि होमय के कारण सुदेहा सुधर्माक विवाह अपन छोट बहीन घुश्मा सँ करा देलथिन । शिव भक्‍त घुश्मा एक पुत्र के जन्म देलनि । किछु वर्षक बाद सुदेहा कें घुश्मा सँ ईर्ष्या होबय लगलनि । ओ घुश्माक जवान पुत्र के मारि कें पोखरि मे फेकि देलनि । एहि बात पर घर मे कोहराम मचि गेल । लेकिन घुश्मा प्रतिदिन जेना शिवक पूजा-अर्चना मे लीन रहथि । एहि सँ प्रसन्‍न भगवान शिव मारि देल गेल पुत्र के पुनः जीवन दान दऽ इच्छित वरदान माँगय के लेल कहलथिन्ह । घुश्मा कहलथिन्ह - ज्येष्ठ बहीन सुदेहा के माफ कऽ देल जाए आओर लोकक कल्याणक लेल अपने सदा सर्वदा के लेल एहि स्थान पर निवास कयल जाय । भगवान शिव हुनक दुनू बात के मानि ज्योतिर्लिंग के रूप मे प्रकट भऽ ओहि स्थान पर निवास करय लगलाह । सती शिवभक्‍त घुश्माक आराध्य देव होयबाक कारण ओ एहि स्थान पर घुश्मेश्‍वर महादेव के नाम सँ विख्यात भेलाह ।

मंगलवार, जुलाई 26

विद्यापति

जनम होअए जनु,जआं पुनि होइ।
जुबती भए जनमए जनु कोई।।
होइए जुबती जनु हो रसमंति।
रसओ बुझए जनु हो कुलमंति।।
निधन मांगओं बिहि एक पए तोहि।
थिरता दिहह अबसानहु मोहि।।
मिलओ सामि नागर रसधार।
परबस जन होअ हमर पिआर।।
परबस होइअ बुझिह बिचारि।
पाए बिचार हार कओन नारि।।
भनइ विद्यापति अछ परकार।
दंद-समुद होअ जिब दए पार।।

सोमवार, फ़रवरी 14

आउ हमर जिनगी मे

हवाक झोंक जेकाँ आउ हमर जिनगी मे।
आउ निधोख अहाँ आउ हमर जिनगी मे।।

बन्न कोठली / बिलैया हमर कल्पना
ठेलि द्वार अहाँ आउ हमर जिनगी मे।
मन-संसार बुझू जेठक दुपहरिया
पहिल फुहार जेकाँ आउ हमर जिनगी मे।
बबूर-काँट भरल बाट, हम हेरायल
सिंगरहार जेकाँ आउ हमर जिनगी मे।

इनार भुतहा गिडय़ ई अन्हरिया
इजोत आँखिक दÓ आउ हमर जिनगी मे।
जबदियाह बनल जिनगी ठमकि कÓ रूकल
सुरक फाँक लÓ कÓ आउ हमर जिनगी मे।
चिड़ैक पाँखि लÓ कÓ आउ हमर जिनगी मे
इजोत आँखि लÓ कÓ आउ हमर जिनगी मे।

पहिल फुहार जेकाँ आउ हमर जिनगी मे।
ठेलि कÓ द्वार अहाँ आउ हमर जिनगी मे।
हवाक झोंक सन-सनाइत हमर जिनगी मे
आउ निधोख गुनगुनाइत हमर जिनगी मे।
आउ भरि पोख दनदनाइत हमर जिनगी मे।

- कुमार मनीष अरविन्द

शनिवार, फ़रवरी 12

चिन्हार-अनचिन्हार


नेने सँ परदेस बसनिहार
पितियौत भाइक सार के चिन्है छथि

मसिया ससुरक
पितियौत भाइ के चिन्है छथि
ओ ओइ दिन
आश्चर्य
पितियौता पितियौतक साढ़ूक भाइ के
सेहो खट् दÓ चीन्हि गेलाह
मुदा,
हमरा बेर मे
भटकि गेलाह

दुइए बरख भेल
हम कोन पापे पंजाब गेलहुँ
किछु पढ़ल रहितहुँ
तÓ दिल्ली जइतहुँ
पैंट
एकटा टी शर्ट
बस एतबे
बस एतबे मे
भटकै छथिन्ह बाबू
हमरा कहै छथि-
अहाँ के छी बाबू?
अहाँ जयकान्त?
न:
श्रीधर यौ
न:
हमरा लागल
बाबू एकदम्मे भटकि गेलाह।
हम कहलियनि
बाबू हम गुलेटन दास
अहीं टोल मे तÓ रहै छी
बहीर दासक बेटा
मोन नै अछिï?
भुतही गाछी मे हमही ने अहाँक सीसो पांगि दी
छोटका बउआ के कान्ह पर रोज इसकूल हमही ने लÓ जइयैनि
आÓ तेसरा दिन पर अहाँ के बंसीक माछ खोआबी
हमर बाप-पित्ती
अहीं सभक सेवा करैत जीवन गुजस्त कयलक
सभटा बिसरि गेलियै बाबू?

हँ, हँ, चिन्हलियौ
कह ने-
गुलटेनमा !
बहिराक बेटा !


- राजकुमार मिश्र

गुरुवार, फ़रवरी 10

गजल

धरम-करम मे हेबनि मे विश्वास बढ़ल छै ठाकुर जी
हमर कहब जे आर बहुत किछु खास बढ़ल छै ठाकुर जी!

पँच-पँच कोटिक वाहन चढ़ल, कुबेर लोकनि अवतरलाहए
शहरक कात झोपड़पट्टी मे दास बढ़ल छै ठाकुर जी!

ओमहर देखू लक्ष-लक्ष भगवाधारी कमरथुआ केँ
एमहर रक्त गरम पीबक अभ्यास बढ़ल छै ठाकुर जी!

साँच भेल वनबासी राम, वहिष्कृत घट-घट जिनगी सँ
चीर हरन आ दुर्योधन संग रास बढ़ल छै ठाकुर जी!

आइ काल्हि ऋषि-मुनिक देशक मे, बाबा बहुत उखड़लाहए
कपरकोट कल्याणक स्वार्थक चास बढ़ल छै ठाकुर जी!

क्यो माला क्यो छाप-तिलक, क्यो निज चरणामृत बेचैए
लक्ष्मी-वाहन भीआइपी लै पास बढ़ल छै ठाकुर जी!

आस्था-क्षमा मूल धरमक-क ख ग सभ दिन रहलैए
त्याग-तप उपकार शून्य, उपहास बढ़ल छै ठाकुर जी!


- सियाराम झा 'सरसÓ

बुधवार, फ़रवरी 9

हम मैथिल छी

केओ अहाँ कें दरभंगिया कहत,
केओ अहाँ कें बिहारी कहत,
केओ अहाँ कें बाजर पर टोकत,
केओ अहाँ कें पहिरन पर हँसत,
मुदा ! अहाँ अपन काज बुझबै,
अप्पन काज नीक सँ करबै,
तखन, अहाँक परिश्रम
आ अहाँक मेधा देखैत
सब अहाँ कें मानत
सब अहीं कें पूछत
आ अहाँ कहबै जे हम मैथिल छी।

की दिल्ली, की पंजाब
की मुंबई, की गुजरात
कोलकाता सँ आसाम
सैनिक रूपेँ देशक सिमान।
सब ठाम अहाँ विराजमान।
अप्पन काजक बलेँ छोड़ैत निशान।
हे! अहाँ कहियो परिश्रम केर बाट
नइँ छोड़ब।
सब ठामक परिवेश सँ अपना कें जोड़ैत
अहाँ कहबै जे हम मैथिल छी।

अहाँक संघर्ष,
अहाँक सफलता, अहा...अहा...
अहाँ सम्पन्न हैब,
प्रतिष्ठित हैब,
मुदा हे! अहाँ संघर्षक बाट
नइँ छोड़ब,
मोन पड़त अप्पन गाम
ताहु लेल सोचब,
अप्पन संस्कृति, अप्पन भाषा
नइँ बिसरब।

...आ जँ कहियो ईष्र्यावश कियो
हिंसा पर उतरि जाय
त पड़ायब नइँ।
अप्पन गामक माटि केर सप्पत
कहबै जे हम मैथिल छी।

- आत्मेश्वर झा

रविवार, फ़रवरी 6

मिथिला क प्रभात झा




प्रभात झा यानी भारतीय जनता पार्टी क ओ जानल पहचानल नाम जे कार्यकर्त्ता स लयक पार्टी के वरिष्ठ पधाधिकारी के जुवान पर अछि .पार्टी के जमीनी नेता आ समाज के हर बर्ग मे अपन संवाद स्थापित करै वाला प्रभात झा क ' ताल्लुकात ,मिथिला स रहलैंह अछि लेकिन ओ आई मध्य प्रदेश के लोकप्रिय नेता के रूप मे जानल जायत छैथ .भारतीय जनता पार्टी मे ई शायद पहिल राजनितिक प्रयोग होयत जे पार्टी कोनो राज्य मे दोसर राज्यक व्यक्ति के पार्टी अध्यक्ष नियुक्त केने हो . मध्य प्रदेश बीजेपी के कमान प्रभात झा के देल गेल अछि यानी बीजेपी शासित देश के प्रमुख राज्य मध्यप्रदेश मे पार्टी सञ्चालन आउर पार्टी क ' आधार मजबूत करबाक जिम्मेदारी प्रभात झा के देल गेलैंह अछि .मधुबनी निवासी राज कुमार झा कहैत छथि "स्वर्गीय ललित नारायण मिश्रा के बाद मिथिला मे कोनो कद्दावर नेता क आभाव रहल अछि जिनकर पहचान राष्ट्रीय स्तर पर हो ,प्रभात झा अहि परम्परा मे एकटा नव उम्मीद जगोलैंह अछि "
स्वर्गीय परमेश्वर झा आ माता अमरावती क ' पुत्र प्रभात झा क ' जन्म ४जुन १९५७ मे दरभंगा के हरिहर पुर गाम मे भेल छलैन्ह लेकिन ओ अपन अध्यन अध्यापन मध्यप्रदेश मे पूरा केलैन्ह .राजनीती शास्त्र स एम् ए आउर क़ानून के डिग्री लेलक बाद श्री झा समाज सेवा के अपन ध्येय बनौलैंह आ राजनीती मे शुचिता आ समग्रता क आधार मजबूत करबा लेल निरंतर संघर्षशील रहलाह .बीजेपी मे शायद ई पहिल नेता छैथ जे अपन सम्पति क 'व्योरा हर साल प्रस्तुत करैत छैथ .
२००८ मे पार्टी हुनकर राजनितिक दक्षता देखि आमजन क समर्पित कार्यकर्त्ता प्रभात झा के संसद मे अपन भूमिका निभेवाक मौका देल्कैंह .श्री झा राज्य सभा आउर ओकर महत्वपूर्ण कमिटी क सदस्यक रूप मे हरदम संसद के गरिमा आ आम जन के सवाल के लयक प्रयत्नशील रहलाह .
बीजेपी के शीर्ष नेता क पदचिन्ह पर चलैत श्री झा अपन जीवन क मत्वपूर्ण हिस्सा समाज सेवा आउर पत्रकारिता मे लागोउलैंह.प्रभात झा बीजेपी के मुखपत्र कमल सन्देश क संपादक बनि पार्टी क निति आउर विचार के कार्यकर्ताक बीच पहुचाबैत रहलाह अछि .लेखक के रूप मे श्री झा जन गन मन आउर दीनदयाल उपाध्याय क जीवनी सहित कतेको महत्वपूर्ण पुस्तक लिखलैंह.संघ के समर्पित कार्यकर्त्ता प्रभात झा देश सेवा आ ईमानदारी के अपन पूजी मान्लैंह त राजनीती के साध्य .ओ राजनीती के साधन माने वाला के सामने एकटा मिसाल कायम केलैन्ह जे राजनीती मे आइओ ईमानदारी आउर निष्ठां के क़द्र छैक .आइओ समाजसेवा के मूल्य छैक .प्रभात झा स संपर्क अहि ई मेल स कयल जा सकैत अछि . prabhatjhabjp@gmail.com

के बुझत मिथिलाक दर्द

गौरीशंकर राजहंस, वरिष्ठ पत्रकार एवं पूर्व सांसद


मिथिलांचल के विषय मे लोक खूब सुनैत -सुनबैत अछि ,मुदा वास्तविक अनुभूति ओतहि जा क ' होयत छैक .कहियो मिथिला क ' भूमि अन्नक भंडार छल .सही अर्थ मे ओ सोना उगलैत छल ,आई सर्वत्र गरीबी पसरल छैक .यैह कारण जे मिथिलांचल सँ लाखोक संख्या मे लोक रोजी रोटी खोज मे दिल्ली ,मुंबई ,पंजाब आ दोसर शहर जा रहल अछि .पहिने लोक कलकत्ता जायत छल ,मुदा आई अहि दौर मे हरियाणा ,पंजाब ,दिल्ली मे मिथिलाक लोक संघर्ष क़' रहल अछि .मजदूरक टोली भोर होयते जखन काम काज पर जयबाक उपक्रम करैत छथि तं हुनक गप सुनी हमरा अपार आनंदक अनुभव होयत अछि .मिथिला सँ दूर होयतो ई वर्ग अपन भाषा नहि छोडलान्ही..सांच गप त ' ई अछि जे दुनिया में फ्रेंच भाषाक बाद मैथिली के नाम अबैत अछि .सबसँ मधुर भाषा के श्रेणी में .बंगला के नम्बर एकर बाद अबैत अछि ..चारि करोड़ मैथिल भाषी छी लेकिन मातृभाषा उपेक्षित भ ' रहल अछि .
मिथिलाक सबसँ पैघ समस्या अछि प्रलयंकारी बाढी..हर साल ई मीडिया के लेल रिकॉर्ड तोड़े वाला होइत छैक .लेकिन ई सम स्या सँ निजात आई तक नहि भेट सकल .हम अनेक वर्ष धरी संसद मे अहि समस्या के तरफ सदन आ सरकार के आकर्षित कयलहूँ .समाधान के लेल रास्ता बतेलहूँ जे जातक नेपाल क 'नदी कें बानहल नहि जायत ,सालो साल भरि रहल बालूक सफाई आ पनिक निकासी के समुचित व्यवस्था नहि होयत .ता धरी मिथिलांचल क गरीबी आ बाढी क तबाही सँ उबरनाय मुश्किल .नेपाल के अगर अहि समस्या क समाधान लेल राजी कयल जाय त अहि क्षेत्र मे हजारों मेगावाट बिजली उत्पन्न भ ' सकैत अछि .ओही बिजली सँ नेपाल आ मिथिलांचल के कायाकल्प भ ' सकैत अछि .अहि सँ भरपूर ओद्योगीकरण हेते आ दुनु देश मे खुशहाली लौटत.यदि से भ' जय त मिथिलांचल सँ पलायन अपने आप रुकी जायत .हमरा सोझा मे भूटान उदाहरण अछि .भूटानक नदी सँ बिजली क ' जतेक उत्पादन होयत छैक तकर तीन चौथाय भाग भारत मे निर्यात होयत छैक ..भारतक जाही राज्य मे भूटान क 'चूका प्रोजेक्ट 'सँ बिजली अबैत अछि ओही राज्य में बिजली क स्थिति देश के अन्य राज्य के तुलना मे कही बेहतर अछि .जं भूटान सँ एहन समझौता भ' सकैत अछि त नेपाल सँ किएक नहि भ' सकैत अछि .
हम देखलहु जे समस्त मिथिलांचल मे कोनो एहन अस्पताल नहि छैक जत' गरीब मरीज इलाज़ करबा सकैथ .लाचार मरीज के दिल्ली आने पडैत छैन्ह .दिल्ली मे एम्स के इलाज आ रहनाय सहनाय के दिक्कत के अंदाज लगा सकैत छी .की एहने अस्पताल मिथिलांचल मे नहि भ' सकैत अछि ? सबसँ दुखक बात ई जे मिथिलांचल मे 60 फिसद सँ ज्यादा घर मे कोनो शौचालय नहि छैक .अइयो अधिकाश स्त्रिगनसमाज के सांझ -भिनसर खाली सड़क के इंतजार करै पडे छैन्ह .राजनेता सभ मात्र अपन जेबी टा भडलैंह आ जातिक नामपर लोक के लड्बैत रहलाह .
मिथिलांचल मे समस्या अनंत अछि .लेकिन कोनो एहन समस्या नहि अछि जकर निदान नहि छैक .आबश्यकता छैक लोक सबके जागरूक हेबाक .अबश्यक छैक नौजवान के आगा अयबाक .अन्यथा मिथिला के दर्द के केयो नहि बुझी सकत

शनिवार, फ़रवरी 5

मिथिलाक संगीत परंपरा

’सम’ एवं ’गीत’ दुनूक संयोग सँ संगीत शब्दक निर्माण भेल अछि । ’सम’ (सम्यक)क अर्थ नीक एवं सुंदर होइछ । वाद्य एवं नृत्य दुनूक मेल भेने गीत नीक आ सुंदर बनि जाइछ । गीत, वाद्य एवं नृत्य एहि तीनूक समन्वित स्वरूप केँ संगीत कहल गेल अछि । संगीत सँ आनंदक आविर्भाव होइछ । ज्ञान आ योगक सर्वश्रेष्ठ ज्ञानी याज्ञवल्क्यक कथन अछि -
वीणा वदन तत्वज्ञ: श्रुति जाति विशारद:।
तालज्ञश्चा प्रयासेन मोक्षमार्ग प्रयच्छति ।
- याज्ञवल्क्य स्मृति

(संगीत रूपी एकमात्र साधन सँ धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष चारू पुरुषार्थ भेटैत अछि ।)

संगीत जगतक इतिहास अति प्राचीन अछि । हजारो-हजार वर्षक एहि इतिहास मे हमरा लोकनि कें ओकर क्रमिक विकास दृष्टिगोचर होइछ । विदित अछि जे भारत मे सर्वप्रथम साम गायनक प्रचलन छल । वेद परंपरा मे संगीतक उत्पत्ति सामवेद सँ मानल गेल अछि । तें कहल गेल अछि जे ’साम्वेदादिदं गीतं सज्जग्राह पितामह:’।

एहिना एक परंपराक पश्चात दोसर परंपरा आरंभ भेल । दोसर परंपराक रूप मे गाथा गायन, राग गायन एवं थाट गायनक विकास भेल । युग परिवर्तनक संग संगीत जगत मे सेहो परिवर्तन होइत गेल अछि । ई परिवर्तन मात्र गायन मे नहि, अपितु रागक स्वरूप मे सेहो होइत रहल अछि । सर्वप्रथम श्रुति, श्रुति सँ स्वर, स्वर सँ ग्राम, ग्राम सँ मूर्च्छना, मूर्च्छना सँ जाति, जाति सँ राग, राग सँ थाटक उत्पत्ति भेल अछि ।

संगीत शास्त्रक अवतरण मे अनेक परंपराक उत्पत्ति भेल अछि, यथा - वेद परंपरा, आगम एवं पुराणक परंपरा तथा ऋषि प्रोक्त परंपरा । उपर्युक्त तीनू परंपरा मे अनेकानेक महर्षिक प्रादुर्भाव भेल अछि जे अपन दिव्यज्ञान सँ संगीत जगत केँ आलोकित करैत संगीत शास्त्रक रचना कयलनि । एहि धारा मे क्रमश: नन्दिकेश्वर, नारद, स्वाति, तुम्बरू, भरत, दत्तिल, कोहल, विशाखिल, कश्यप, याष्टिक, आंजनेय, हनुमन्मत, शार्दूल, मतंग, सुधाकलश, अभिनवगुप्त, महाराज भोज, नान्य देव, सोमेश्वर, जगदेक मल्ल, शारदातनय, सोमराज, जयदेव, शारंगदेव, पं. दामोदर, पं, अहोवल एवं पं. लोचन झा आदि मुख्य छथि ।

भारतीय संगीत जगत विश्वक अन्य कोनो देशक संगीत सँ प्राचीन अछि । प्राचीन भारत मे गायनक एक्के पद्धति छल । संगहि एक्के प्रकारक संगीत विद्यमान छल । मुसलमान शासकक आक्रमण भारत मे भेलाक बाद एहिठाम आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक समस्त क्षेत्र मे आघात भेल । एहिठामक गायन परंपरा पर प्रहार भेल । तेँ परंपरा छिन्न-विछिन्न भ’ गेल । उपर्युक्त आक्रमण महमूद गजनबी द्वारा दशम शती ई.क अंतिम दशक मे भेल । अलबरूनी ई स्वीकार कयने छथि जे "हिन्दू विद्या ओतय चलि गेल जत’ हुनका लोकनिक पहुँच नहि छ्ल ।"

महमूद गजनबीक कश्मीर पर आक्रमण १०१५ मे भेल । ओहि ठामक पंडित छल वा मूर्ख, गुणी छल वा गँवार सभ पर एकर व्यापक असरि पड़ल । एहि बात सँ पूर्ण भारतक राजा, विद्वान, कलाकार, धर्मनिष्ठ सभ जन मे भयावह स्थिति व्याप्त भ’ गेल । एहने विषम स्थिति मे पम्मार क्षत्रिय (कर्णाट देशीय) नान्यदेव मिथिला पर चढ़ाई क’ शासक बनि गेलाह । हिनक शासनकाल १०८९ मे स्थापित भेल । किछु दिन तँ निर्विघ्न बीतल, मुदा बाद मे बंग देशीय मुर्शिदाबाद जिलाक अंतर्गत कर्ण सुवर्ण राजा आदि शूर (विजसेन)क आज्ञानुसार हुनक पुत्र बल्लालसेन मिथिला पर आक्रमण कयल । नान्यदेव केँ परास्त क’ हुनका बंदी बनौलकनि ।

महाराजा नान्यदेव संगीत शास्त्रक मूर्धन्य विद्वान छ्लाह । हुनक प्रसिद्ध ग्रंथ ‘सरस्वती हृदयालंकार’ अछि, जकर दोसर नाम ’भरत भाष्य’ अछि । एहि ग्रंथ मे पूर्वर्ती विद्वानक यथा आपिशूल, पाणिनि, विशाखिल, कश्यप, मतंग, देवराज, शतातय तथा रत्नकोशक चर्चा अछि । महाराज नान्यदेव गांधार नगरक चर्चा करैत ओहि सँ उत्पन्न राग समूह केँ लौकिक व्यवहारक लेल उपयुक्त मानलनि ।

१४म शताब्दीक आरंभ सँ एहिठामक कला पुनर्जीवित भेल । कलाकार एवं शास्त्रकार पुन: अपन वृतिक प्रति जागरूक भेलाह । उत्तर भारत एवं दक्षिण भारतक बीच एक व्यवस्था पर सहमति बनल, जाहि सँ उत्तर भारत मे थाट आ दक्षिण भारत मे मेलक उत्थान भेल ।

भारतीय संगीतक परिप्रेक्ष्य मे जखन हम मिथिलाक संगीत परंपरा पर दृष्टिपात करैत छी तँ देखैत छी जे एकर अपन एक पृथक इतिहास अछि जाहि मे एकर प्राचीनता एवं परंपरा समटल अछि । संगीतक क्रमिक विकासक वास्तविक स्वरूप ’मिथिलाक संगीत परंपरा’ मे भेटैत अछि ।

मिथिलाक संगीत परंपरा हेतु वैदिक युग पर दृष्टि देबय पड़त । ओहि युग मे संगीतक संपूर्ण थाती पुरहितक हाथ मे छल । संगीतक प्रचार-प्रसार मे पुरहितक अहम भूमिका रहल । पुरहित आन जातिक नहि मात्र ब्राह्मण होइत छ्लाह । यज्ञादि अवसर पर ब्राह्मण लोकनि सामवेदक ऋचा के सछंद आ सस्वर गबैत छ्लाह । एहि युगक संगीत अधिकांशतया यज्ञक अंगतम रूप मे बनल रहय । यज्ञ पूजादि मे सामगान अनिवार्य छन । शतपथ-ब्राह्मण मे तँ एहन कहल गेल अछि जे बिना सामगानक यज्ञ पूर्णे नहि होइत छल । एहि तरहें सामगान ब्राह्मणक एक विशेष अंग छ्ल । समाजक अन्य वर्ग कें ज्ञानदान करब, वैदिक रीति-रेवाज कें समाज द्वारा ग्रहण करायब तथा पूजा-पाठ, यज्ञ-याप आदि मे सामगान करब हुनक प्रधान कार्य छ्ल । ब्राह्मण परिवार मे सामवेदक ज्ञाता प्राय: सभ होइत छलाह जाहि कारणें हुनक संगीतज्ञ हैब स्वाभाविके छल । प्राचीन परिपाटीक प्रभाव आइयो संपूर्ण मिथिला मे देखल जाइत अछि । जन्म सँ ल’ यज्ञोपवीत आदि प्रत्येक अवसर पर कोनो ने कोनो रूपें सामगान होइतहि अछि । वर्तमानक ई प्रचलित रेवाज वैदिके युगक देन थिक । तें मिथिलाक संगीत परंपराक यात्रा वैदिक युग सँ आरंभ मानल गेल अछि ।

सामगायनक परंपरा चलिते रहल कि एक टा दोसर धारा आरंभ भेल जे लोक वा लौकिक संगीत गायन परंपरा कहौलक । ओहि गान मे नियमक परिपालनक कोनो व्यवस्था नहि छल । जीवनक संपूर्ण गतिविधिक सजीव चित्रण ओहि गायन मे रहैत छल । जखन सामगान समाजक अन्य वर्गक हेतु दुरूह भ’ गेल, तँ वंचित जनमानस ओहि गानक नकल अपन-अपन घर मे आरंभ क’ देलक । एहि गान मे सामगानक नियम-बंधन कें सुविधानुसार तोड़ि-मरोड़ि देल गेल । ई लौकिक गान जातीय गान एवं ऋतु गानक रूप मे प्रकट भेल जाहि मे पारस्परिक रूढ़क जगह लोक जीवन लैत गेल ।

एहि तरहें देखबा मे अबैत अछि जे मिथिला मे कालक्रमे गानक दू स्रोत भ’ गेल । एक स्रोत मे सामगानक जे एक विशेष वर्गक अधीनस्थ रहल, दोसर ओ गान जे सर्वजन सुलभ-सरल भेल जाहि मे गानक स्वतंत्रता छल । स्वतंत्र गान मे लौकिक संगीत चलैत रहल एवं बंधन ओ नियमक आधार पर चलयवला सामगान मे जड़ता अबैत गेल ।

सामगायनक उपरांत गाथा गायनक परिपाटी आरंभ भेल । ऋग्वेदक अनेक मंत्र मे ’गाथा’ शब्दक उल्लेख अछि । ’गाथा’ शब्दक प्रयोग पद्य वा गीतक अर्थ मे प्राप्त होइत छल । गाथा गायन कर’ वला कें ’गाथिन’ कहल गेल अछि । ’ऐतरेय ब्राह्मण’ मे ऋक्‌ एवं गाथा मे अंतर देखाओल गेल अछि । ऋक्‌ दैवी अछि आ गाथा मानवी । ब्राह्मण ग्रंथ सँ ई प्रमाणित होइत अछि जे ऋक्‌ यजु: आ साम सँ पृथक होइत छल, ओकर प्रयोग मंत्रक रूप मे नहि कयल जाइत छल । कोनो राजाक सुकीर्ति कें लक्षित क’ लोकगीतक रूप मे ओकर उपस्थापन कयल जाइत छल । जन-समूह द्वारा ओ गीत गाओल जैत छल आ गाथाक नामे ओ प्रचलित छल । मिथिला मे लौकिक संगीत एहिना जनजीवनक संग चलैत रहल ।

मिथिला मे लोरिक, सलहेस, दीना-भद्री, विहुला, नैका-बनिजारा आदि अनेक गीत अछि जे गाथा गीतक नामे जानल गेल । संभवत: सामगायनक दुरूहताक कारणे लोक ओहि सँ विमुख होइत गेल आ गाथा गायनक प्रति आकर्षित होइत गेल ।

एहि बीच छंद गायनक एकटा नवीन परंपरा आरंभ भ’ गेल । एहि परंपराक परिपोषक विद्वत्‌जन भेलाह । गाथा गायन उन्मुक्त एवं स्वच्छंद रूपें गाओल जाइत छल । कोनो तरहक प्रतिबंध एहि गायन मे नहि रहैत छल । एक व्यक्ति अनुकरण क’ अगिला पीढ़ी कें अनुकरण हेतु प्रेरित करैत छलाह एवं गाथा गायनक मौखिक शिक्षा दैत छलाह । ई परिपाटी सैकड़ो वर्ष धरि चलैत रहल आ औखन चलि रहल अछि । भारतीय भाषा मे सभ सँ प्राचीन छंद सभ वेद मे उपलब्ध अछि । वेदेक छंद सँ मैथिलीक छंद सभ विकसित भेल हो से संभव अछि । वेद मे गायत्री, उष्णिक, अनुष्टुप, बृहती, पंक्तिक, त्रिष्टुप एवं जगती जे क्रमश: ८, १०, ११ वा १२ वर्णक चरण सभ सँ बनल । वैदिक कालीन परंपराक बाद जे कवि वा विद्वान भेलाह ओ अपन विवेकानुसार आकस्मिक लयक आ तालक वर्ण-विन्यास करैत रहलाह । कालक्रमे ई रचना सामान्य छंद सँ बेसी चमत्कारी आ कर्णप्रिय होमय लागल । काव्य मे छंदक विशेष स्थान छल । कालांतर मे वैह छंद तालक स्वरूप मे आबि गेल यथा - छओ मात्राक ताल-दादरा, खेमटा । सात मात्राक ताल - तिब्रा, रूपक एवं पश्तो । आठ मात्राक ताल - कहरबा एवं धुमाली, दस मात्राक ताल - झप्ताल एवं सूलताल । बारह मात्राक ताल - एकताल, चौताल । चौदह मात्राक ताल - दिपचंदी (चाँचर), झूमरा, धमार, गजझंपा आ आड़ा चौताल । सोलह मात्राक ताल - त्रिताल, यत एवं तिलवाड़ा अछि ।

साधारणतया मैथिली लोकगीत वर्णावृतक अपेक्षा मात्रिक छंद मे लिखल गेल । मात्रिक छंद मे मात्रा गनल जाइत छल आ तद्‌नुकूल ताल मे गाओल जाइत छल ।

छंद गायनक उपरांत गाथा गायनक परिपाटी आरंभ भेल । प्रबंध रचना संस्कृत मे होमय लागल । प्रसिद्ध भक्तकवि जयदेव रचित ’गीत गोविंद’ एकर उदाहरण अछि । प्रबंध गायन मे संस्कृत पद कें राग मे बान्हि उपस्थापन कयल जाइत छल । मिथिला मे ई गायन पद्धति कैएक सय वर्ष धरि रहल । ओहि गीत मे अनेक चरण होइत छल, जेना- उद्‌ग्राह, मेलापक, ध्रुव, अंतरा एवं आभोग । ई प्राय: सामगानक प्रस्ताव, उद्‌गीत, प्रतिहार, निधान, उपद्रव आदिक प्रतिरूप रहल हो से संभव । प्रबंध गीतक समस्त भेदक विषय मे उल्लेख करब उचित नहि, कारण एकर विशाल विवरण अछि । संक्षेप मे ई कहल जा सकैछ जे मिथिला मे एहि गीत गायनक परंपरा कें शास्त्रीय संगीत गायनक द्वारा जियाक’ रखलनि स्व. माँगन, स्व. रामचन्द्र झा, स्व. बालगोविन्द झा, स्व. रामचतुर मल्लिक आ स्व. दरबारी दास नटुआ ।

प्रबन्ध गीतक तीन भेद मानल गेल अछि - क्रमश: सूड, आलि एवं विप्रकीर्ण । सूडक दू भेद अछि _ शुद्ध सूड एवं सालग सूड ।

शुद्ध सूडक भेद - एहि मे आठ भेद अछि - एला, करण, ढेंकी, वर्तनी, झोवड़, लंब, परास, एकताली ।

सालग सूडक भेद - एहि मे सात भेद मानल गेल अछि जाहि मे ध्रुव, मंठ्‌य, प्रतिमंठ्‍य, निस्सारूक अड्‌ड, रास, एकताली । ध्रुव सँ ध्रुवा, ध्रुवा सँ ध्रुपद आधुनिक रूप अछि ।

मिथिलाक संगीत परंपरा मे राजा नान्यदेवक बाद राजा हरिसिंहदेवक नाम अबैछ । ओ संगीतक पूर्ण ज्ञाता आ परिपोषक छलाह । हुनका विषय मे कहल गेल अछि -
हरोवा हरिसिंहो वा गीत विद्या विशारदौ
हरि(हर) सिंहे गते स्वर्गगीत विद्‌ केवलं हर:

राजा हरिसिंह देव (१२९५ ई.) संगीत शास्त्रक महान विद्वान छ्लाह । कवि शेखराचार्य ज्योतिरीश्वर ठाकुर जे वर्णरत्नाकर ग्रंथक रचना कयलनि, हुनके दरबारक एक पंडित छलाह । ग्रंथ सात कल्लोल मे लिखल गेल अछि । हिनक अन्य दू ग्रंथ क्रमश: धूर्त समागम एवं पश्चायक अछि जे नाट्‌य प्रहसन अछि । मैथिली साहित्यक प्रथम गद्य ग्रंथ वर्णरत्नाकरक षष्ट कल्लोल मे गायन, वादन एवं नृत्यक पूर्ण विवरण अछि । सर्वप्रथम राग विन्यास एवं विभिन्न लोक गीतक चर्चा सेहो एहि ग्रंथ मे भेल अछि । संगीत जगतक हेतु मिथिलांचलक ई ग्रंथ अनुपम भेंट अछि ।

हरिसिंह देवक बाद राजा शिवसिंहक १४०२ ई. मे जन्म भेल । हिनके बालसखा महाकवि विद्यापति ठाकुर छलाह । महाकवि स्वयं राजा एवं राज्यक सर्वश्रेष्ठ एवं शुभचिंतक छलाह । महाकवि विद्यापति एक महान संगीत साधक एवं गायक छलाह । जयदेवक परिपाटीक अनुरूप रचना क’ ओहि पर राग करब हिनक एक महान कार्य कहल गेल अछि । जयदेवक रचना तँ संस्कृत मे अछि, मुदा महाकवि विद्यापति मैथिली गीताक रचना क’ ओहि पर रागोल्लेख क’ एक टा नव परंपराक जन्म देलनि, जे कवि हर्षनाथ झाक समय धरि रहल । महाकवि विद्यापति रचित गीत राजप्रासाद मे सुधीजनक बीच राग-रागिनी मे कत्थक कलाकार एवं मैथिली गायक द्वारा प्रदर्शित कयल जाइत छल । राजा शिवसिंहक शासन काल मे भारतक पश्चिमी क्षेत्र सँ कत्थक नर्तक लोकनि मिथिला आबि अपन कला प्रतिभा सँ राजा कें प्रसन्न क’ राजाश्रित भेलाह । कत्थक परंपरा मे सर्वप्रथम सुमतिक नाम अबैछ । सुमतिक बाद उदय, जयत आदिक नाम अबैछ जे महाकविक रचनाक आधार पर रंगमंच पर नृत्य प्रदर्शित क’ राजा एवं संपूर्ण सभासद कें मंत्रमुग्ध करैत छ्लाह । जयत गौड़ प्रचलित गान कें छंद एवं ताल मे निबद्ध क’ महारज शिवसिंहक समक्ष प्रस्तुत करैत छलाह । कत्थक परंपरा मे क्रमश: कृष्ण मल्लिक, हरिहर मल्लिक, खंग्राम, घनश्याम, कल्लीराम, लक्ष्मीराम, राघवराम तथा टीकारामक नाम अबैछ । गायनक संग-संग नृत्य सेहो होइत छल । कृष्ण एवं राधाक प्रणय लीलाक प्रसंग गीत एवं नृत्य मे रहैत छल । अन्य प्रकारक गायन सेहो होइत छल जे जीवनक विभिन्न अंग सँ जूड़ल छल । एहि मे सोहर, समदाउन, बटगमनी, लगनी, नचारी, महेशवाणी गीत आदि छल । लोक धुनक ई गीत पूर्ण आकर्षक छल । मिथिलाक संगीत परंपराक परिप्रेक्ष्य मे एक उदाहरण अछि जे महाकवि विद्यापति रचित पुस्तक पुरुष परीक्षाक गीतबद्ध कथा मे उल्लिखित अछि । शीर्षक मे मिथिलाक कलाकार ’कलानिधि’ नामक गवैयाक उल्लेख अछि । गायक तिरहुत राज्य सँ गोरखपुर राजधानी मे राजा उदय सिंहक दरबार मे आयोजित संगीत प्रतियोगिता मे भाग ल’ समस्त राज्याश्रित गायक कें परास्त कयलनि ।

महाकवि विद्यापतिक समय धरि राग गायनक परंपरा आरंभ भ’ गेल छल । मध्ययुगक सभ सँ उत्कृष्ट संगीत ग्रंथ पं. लोचन झा रचित राग तरंगिणी अछि । एहि ग्रंथ मे तीन भाषाक समावेश अछि - संस्कृत, ब्रजभाषा एवं मैथिली । कवि लोचन संगीत शास्त्रक एक कुशल ज्ञाता एवं कलाकार छलाह । ई ’हनुमन्मत’ कें आधार मानि रागक विश्लेषण कयने छथि । ओ प्रसंगवश कहैत छथि _
भैरव: कौशिकश्चैव हिन्दोलो दीपकस्था ।
श्री रागो मेघरागश्च षड़ेते हनुमन्मता:॥

ग्रन्थ मे पाँच तरंग अछि । प्रथम तरंग मे पुरुष राग कथन आ द्वितीय मे राग-रागिणी कथन अछि । संपूर्ण ग्रंथ मे संगीतक पूर्ण विवरण अछि । तत्कालीन मिथिलाक प्रचलित देशी राग, देशी ताल तथा लय (सुर) पर ओ पूर्ण प्रकाश देलनि अछि । भारतीय संगीत ग्रंथक सूची मे ई ग्रंथ महानतम अछि ।

ईस्ट इंडिया कंपनीक बाद भारत मे फिरंगी शासन भेल । भारतक कलाकार एक बेर फेर जान-माल एवं जाति-धर्मक सुरक्षा हेतु ओहि स्थान मे जाय लगलाह जे स्थान सुरक्षित छल । बहुत रास कलाकार मिथिला मे अयलाह वा नेपाल मे जा बसलाह । वर्तमान मे मिथिला मे एहन चारि संगीत घराना अछि जे अपन दू सय सँ अढ़ाइ सय वर्षक इतिहास रखने अछि । ओहि मे क्रमश: अमता, मधुबनी, पनिचोभ एवं पंचगछिया घराना अछि ।
सभ घरानाक वर्णन कयल जाय तँ एक पृथक पुस्तक बनि सकैछ ।


अमता घराना -
एहि घरानाक स्थापना महाराज माधव सिंह द्वारा १७७५ ई. मे दरभंगा सँ बीस मीलक दूरी पर बहेड़ी थानान्तर्गत अमता गाम मे भेल । संगीत जगत मे एहि गामक वैह स्थान अछि जे मध्यप्रदेश मे ग्वालियरक । एहि घरानाक आदिपुरुष मे राधाकृष्णन एवं कर्तारामक नाम अबैछ । ध्रुपद गायन (गौड़वाणी) शैलीक ई भारतीय स्तरक कलाकार छलाह । हिनक संतान मे क्रमश: स्व. क्षितिजपाल मल्लिक, स्व. राजितराम शर्मा मल्लिक, स्व. पद्‌मश्री रामचतुर मल्लिक, स्व. नरसिंह मल्लिक, स्व. यदुवीर मल्लिक, स्व. महावीर मल्लिक, स्व. पद्‌मश्री सियाराम तिवारी, पं. विदुर मल्लिक, पं. अभयनारायण मल्लिक, रामकुमार मल्लिक, प्रेमकुमार मल्लिक आदिक नाम अबैछ । ई लोकनि चारू पट यथा ध्रुपद, खयाल, टप्पा, ठुमरी तँ गबितहि छलाह, महाकवि विद्यापति रचित गीत एवं लोकगीत सेहो गबैत छलाह ।


मधुबनी घराना -
ई घराना मधुबनीक राँटी-मंगरौनीक परिवार द्वारा बसाओल गेल । खयाल एवं ध्रुपद दुनू शैली मे गायन उपस्थापन करब हिनका परिवारक मुख्य गुण छल । स्व. मनसा मिश्र, स्व. डीही मिश्र, स्व. खरवान मिश्र, स्व. गुरे मिश्र, स्व. शिवलाल मिश्र, स्व. सित्तू मिश्र, स्व. हीरा मिश्र, स्व. झिंगुर मिश्र, स्व. भगत मिश्र, स्व. परमेश्वरी मिश्र, स्व. कमलेश्वरी मिश्र, स्व. आद्या मिश्र, स्व. रामजी मिश्र, लक्ष्मण मिश्र, ललन मिश्र आदिक नाम अबैछ ।


पनिचोभ घराना -
मिथिलान्तर्गत पनिचोभ घरानाक इतिहास सेहो पुरान अछि । एहि घरानाक प्रसिद्ध कलाकार मे स्व. रामचन्द्र झा, पं. दिनेश्वर झा, राजकुमार झा, मंगनू झा, दुर्गादत्त झा, जटाधर झा, रमाकान्त झा, नचारी चौधरी, ब्रजमोहन चौधरी आदिक नाम उल्लेखनीय अछि ।


पंचगछिया घराना -
राय बहादुर बाबू लक्ष्मी नारायण सिंह एहि घरानाक संरक्षक एवं पोषक छलाह । एहि घरानाक मुख्य गायन शैली ख्याल एवं ठुमरीक संग पखावज वादन छल । एहि घरानाक दू विख्यात कलाकार भेलाह जाहि मे प्रथम मांगन एवं द्वितीय रघू झा छलाह । मांगन सँ शिक्षा ग्रहण कय हुनक शिष्य क्रमश: निम्नलिखित कलाकार छथि - बटुकजी झा, तिरो झा, शिवन झा, बाल गोविन्द झा, युगेश्वर झा, माधव झा, रामजी झा, धर्मदेव सिंह, राधो झा, पुनो पोद्दार, सुन्दर पोद्दार, गणेशकान्त ठाकुर, उपेन्द्र यादव, दुर्गादत्त झा, सत्य नारायण झा, परशुराम झा, बलराम झा आदि ।


उपर्युक्त घर-घराना शिष्य तैयार क’ मिथिलाक संगीत परंपराक प्रचार-प्रसार संप्रति देश-विदेश मे क’ रहल छथि । थाट गायन परंपराक जनक स्व. विष्णुनारायण भातखंडेजी छथि । अध्ययन, चिंतन क’ ओ समस्त राग कें दश थाटक अंतर्गत राखि एक नवीन परंपरा कें जन्म देलनि अछि । मिथिलान्तर्गत शास्त्रीय संगीतक ज्ञान प्राप्त कयनिहार व्यक्ति कें राग एवं थाट पद्धतिक अनुसारे शिक्षा ग्रहण करय पड़ैत छनि ।

वैदिक युग सँ वर्तमान समय धरि संगीतक परंपरा मे उतार-चढ़ाव होइत रहल, तथापि एहिठामक संगीत अपन प्रवाह कें बनौने रखलक । साम गायन, गाथा गायन, छंद गायन, प्रबंध गायन, राग गायन एवं थाट गायनक क्रमबद्ध परंपरा चलैत रहल, परंतु एहिठामक शास्त्रीय गायन वा लोकगायनक सेहो अपन परंपरा सँ चलैत रहल । मिथिलाक संगीतक क्रमबद्ध विकास पर ध्यान दी तँ औखन राग परंपरा विद्यमान भेटत । मात्र ओकर स्वरूप मे युगानुरूप परिवर्तन परिलक्षित हैत । जहिना व्यक्ति एवं समाजक रहन-सहन, खान-पान, आचार-विचार, रीति-नीति मे क्रमिक विकास भेल, तहिना प्राचीनता एवं नवीनता दुनू धारा एखनो क्रमश: शास्त्रीय धारा एवं लोक धाराक रूप मे सतत प्रवाहित अछि

मिथिला आ महाराज कामेश्वर सिंहक नामोनिशान नहि मिटा देताह



लगैत अछि जे राज दरभंगाक ट्रस्टी जखन धरि मिथिला आ महाराज कामेश्वर सिंहक नामोनिशान नहि मिटा देताह, ताबत धरि चैन स नहि बैसताह। 1962 मे महाराजक विवादास्पद मौत क बाद हुनक संपत्ति कए जेना बेचल गेल ओ सबहक सामने अछि। इ लोकनि महाराजक डीह (रामबाग)तक बेच देलथि। ट्रस्टी क नजरि आब दू सौ साल तक मिथिलाक राजधानी रहल भौरा गढ़ी पर अछि। 16म शताब्दी मे खंडवाला राजवंशक संस्थापक महेश ठाुकरक पुत्र महाराजा शुभंकर ठाकुर भौरा गढ़ी कए अपन नूतन राजधानी बनेने छलाह। एहि ठाम स लगभग दू सौ साल तक मिथिला पर राज कैल गेल। 18म शताब्दी मे जा कर मिथिलाक राजधानी दरभंगा बनाउल गेल। एतिहासिक महत्व आ सौ साल स पूरान महल हेबाक बावजूद भौरा गढ़ीक संरक्षणक कोनो प्रयास सरकारक दिस स एखन धरि नहि भ सकल अछि। दोसर दिस एक-एक करि दरभंगा राजक सब किछु बेच देनिहार ट्रस्टीक नजरि आब भौरा गढ़ी जमीन पर टिकल अछि आ ओ एकरा बेचबा लेल आफन तोडऩे छथि। मिथिला राजक सबस पूरान एहि निशानी कए बचेबा स बचेबा लेल लोक सामने आबि रहल अछि। मिथिलाक इतिहास पर शोध करनिहार तेजकर झा क कहब अछि जे मिथिला मे धार्मिक महत्वक अनेक पूरान पीठ अछि, मुदा राजनीतिक महत्वक पूरान डीह कम अछि। एकर पाछु झा क कहब अछि जे मिथिलाक भौगोलिक कारक जिम्मेदार अछि। बाढ़ आ भूकंपक कारण स पूरान डीह पर बनल महल नहि बचल आ जे बचल से संरक्षणक अभाव मे नष्ट भ गेल। झाक कहब अछि जे भौरा डीह समस्त मैथिलक धरोहर छी आ एकरा बेचब या नष्ट करब मिथिलाक इतिहास कए खत्म करबाक समान अछि। ओ एकर तुलना बख्तियार क नालंदा विश्वविद्यालय कए नष्ट करबा स केलथि। दोसर दिस मधुबनी निवासी संजय कुमार आ श्वेता सिन्हा सन किछु आओर लोक केंद्र आ राज्य सरकार कए भौरा गढ़ी क जमीन बेचबा पर प्रतिबंध लगेबा लेल अनुरोध पत्र लिखलथि अछि। संगहि भारतीय पुरातत्व विभाग कए सेहो पत्र लिख इ मांग कैल गेल अछि जे एहि डीहक संरक्षण लेल कार्रवाई कैल जाए।



महाराज कामेश्वर सिंहक निधनक बाद दरभंगा राजक संपत्ति कए देख-रेखक जिम्मा एकटा ट्रस्ट कए सौंपल गेल। पटना हाइकोर्ट क सेवानिवृत मुख्य न्यायधीश एहि ट्रस्टक पहिल मुख्य ट्रस्टी छलाह। हुनक संग दू टा आओर ट्रस्टी छलाह। जेना-जेना हिनकर सबहक निधन भेल, दू टा मिल कए तेसर ट्रस्टीक चयन करैत गेलाह। जाहि स परिवारवाद कए बढ़ाबा भेटल। गिरिंद्र मोहन मिश्रक पुत्र मदनमोहन मिश्र ट्रस्टी बनि गेलाह। फेर महाराजक एकटा संबंधी पिछला दरबजा स ट्रस्टी बनि गेलाह। मुदा मदनमोहन मिश्रक निधनक बाद सबस छोट राजकुमार शुभेश्वर सिंहक ज्येष्ठ पुत्र राजेश्वर सिंह कए ट्रस्टी बना देल गेल। इ पहिल ट्रस्टी भेला जे महाराजक संतान छलाह। द्वारिका नाथ झाक निधनक बाद सबटा नियम कए शिथिल करि शुभेश्वर सिंहक दोसर पुत्र कपिलेश्व सिंह कए सेहो ट्रस्टी बना देल गेल। इ पहिल मौका छल जखन दूटा सहोदर भाई तीन सदस्यीय ट्रस्टीक सदस्य अछि। तेसर ट्रस्ट्री छोटी महारानीक क संबंधी उदयनाथ मिश्र छथि, जे महारानीक स्वार्थ देखबाक अलावा कोनो काज करबा मे कोनो रूचि नहि रखैत छथि।कुल मिला कए ट्रस्ट शुभेश्वर सिंहक परिवारक हाथ मे चल गेल अछि आ महारानीक हिस्सेदारी ट्रस्ट मे कम भ गेल अछि। राजपरिवारक एहि खानदानी झगड़ा मे मिथिलाक धरोहर पिछला पचास साल स एक-एक करि बिका रहल अछि। जे बचल अछि ओकरो बेचबाक प्रयास भ रहल अछि। अंतर एतबा अछि पहिने महाराजक परिचित, फेर संबंधी आ आब महाराजक संतान एहि काज मे लागल अछि

मिथिलाक प्रसिद्ध गाम बनगाँव


प्रसिद्ध गाम (बनगाँव) जिला - सहरसा के चर्चा करे चाहे छी ! जै गाम में बाबा लक्ष्मीनाथ गोसाई (बाबाजी) केँ विभुतिपाद के रश्मि विकसित भेल छलैन ! आयो ओय गाम काँ बाबाजीक गाम कहल जैत अछि ! बनगाँव में बाबा अपन विराट कुटिया में आयो विराजमान छलाह ! मिथिलाक इ प्रसिद्ध गाम - बनगाँव, सहरसा जिला (मुख्यालय) सँ ८ की.मी पश्चिम में स्थित अछि ! बाबा लक्ष्मीनाथ गोसाई (बाबाजीक) महिमासँ सिचल एय गाम में दिन दूना, रैत चौगुना प्रगति भोs रहल अछि ! इ गाम एक सँ बढ़ीकेँ एक आईआईटी, आईएएस, आईपीएस, अधिकारी मिथिलाकेँ प्रदान केना छले ! दार्शनिक स्थल में जते एय गाम के "बाबाजी कुटी" प्रसिद्ध अछि, ओते गाम में विराजमान एक सँ बैढ़केँ एक विराट मंदिर सभ गामवासी के श्रद्धा काँ अपन-आप में पिरोना छैन ! बनगाँव गाममें बाबाजी कुटी पर बाबा लक्ष्मीनाथक विराट मंदिर के संग अनेको विशाल मंदिर मौजूद अछि ! जेना की ठकुरवाड़ी, श्री कृष्ण मंदिर, महादेव - पार्वती मंदिर, हनुमान मंदिर .......बाबाजी कुटीसँ कनि पुरव गेला पर माँ बिष्हरा मंदिर, बिष्हरा मंदिरसँ उत्तर दिसा में गेला पर माँ भगवती आर माँ काली के विराट मंदिर छैन ! ओय सँ आगा पुरव दिसा में (चौक) पर माँ सरस्वती विराजमान छली ! अई प्रकारे यदि देखल जायतँ पुरे बनगाँव गाम एक धर्म-स्थल के समान अछि ! हम सभ मिथिलावासी बाबा लक्ष्मीनाथ गोसाई (बाबाजीसँ) निक जेका परिचित छी ! औजस्कल (पहलवानी) युग में परिब्राजक बाबा लक्ष्मीनाथ बनगाँव गाममें पधारने रहथिन ! हुनकर गठित स्वास्थ्य देखकेँ की युवक की बुजुर्ग सभ हर्ष पूर्वक हुनकर बनगाँव गाम में स्वागत केलखिन ! स्वागत एय हेतु नै केना रहथिन की ओ (बाबा) महान साधू या योगी रहथिन स्वागत के पछा सभ ग्रामीण काँ अथाह विश्वास रहैन की यदि हुनका निक जेका खिलेल - पिलेल जेतैन तँ एक दिन ओ निक पहलवान बनता ! बाबा बहुत जल्दी सभ गामवासी के संग हिल - मिल गेलैथ ! बाबा चिक्कादरबर (कब्बडी), खोरी, चिक्का छुर-छुर देहाती खेलक निक खेलाड़ी मानल जैत रहैथ ! ओय समय बनगाँव गाम में दूध - दहीकेँ बाहुल्य छल ! एक धनी-मनी सज्जन हुनका दूध पिबई के लेल एक निक गो (गाय) द् देलखिन ! ओ सज्जन छलाह स्वर्गीय श्री कारी खाँ ! बाबा के लेल सभ गामवासी ठाकुरवाड़ी के प्रांगन में एक पर्ण कुटी बनेलैथ जे आयो आस्था आर धर्म स्थल के तौर पर प्रख्यात अछि ! बाबा ओनातँ परसरमा के रहिवासी रहैथ मुदा बेसी काल ओ बनगाँववे में रहैत रहैथ ! कारण बनगाँव के लोक बहुत सीधा - साधा आर महात्मा सभ में श्रद्धा राखे वला रहथिन ! बनगाँववे में हुनका "विभुतिपाद" के रश्मि विकसित भेलैन ! बनगाँववे में लगभग १८१९ ईo सँ बाबा ब्रजभाषा आर मैथिली में कविता लिखब सुरु केना छलाह जे आयो हमरा सभ के बिच गीतावलीकेँ रूप में मौजूद अछि ! बाबा द्वारा लिखल दोहा, चौपाई आर गीत अपने गीतावली में देख सकैत छलो ! बाबा योगी के अद्दभुत अवतार रहथिन ! आयो बनगाँव गाम में बाबा के कुतियाँ में रोगी आर बन्ध्याओ के ताँता देखल जे सकैत अछि ! लोग हुनकर मंदिर सँ प्राप्त नीर सँ लाभ उठबैत छैथ ! बाबा यथासाध्य सबहक दुःख दूर करै छथिन ! हम सब बनगाँव वासी के ह्रदय में बाबा आयो बसल छैथ ! संगे ओई पवित्र बाबा के भूमि में जन्म लकेँ हम सब ग्रामवासी अपना आपकेँ गर्वान्वित महसूस करैत छलो ! प्रेम सँ कहू जाय बाबा लक्ष्मीनाथ, जाय बाबाजी..

गोनू झाक सपना

गोनू झा काली मायक बड्‌ड पैघ भक्त छलाह । ओना तँ संपूर्ण मिथिलांचल मे शक्तिपूजाक प्रधानता छैक, तथापि गोनू नित्य माताक पूजा करैत छलाह आ माताक प्रसादात्‌ ओ स्वस्थ आ प्रसन्नचित्त रहैत छलाह । हुनक बुद्धिमत्ताक लोहा नहि केवल गामे भरि मे वरन्‌ मिथिला राजदरबार सहित अन्यत्रो मानल जाईत छल । एकबेर स्वयं माता काली हुनक बुद्धिमत्ताक परीक्षा लेबाक निश्चय केलीह ।
माता काली स्वप्न मे गोनूक समक्ष प्रकट भेलीह आ अपन रूप अति भयंकर बना लेलनि । हुनका मात्र दूटा हाथ छलनि आ हजार गोट मूँह । गोनू उठलाह आ माता कें साष्टांग प्रणाम केलनि । किन्तु तत्क्षण किछु सोचि कें हुनका हँसी लागि गेलनि । हुनक शांत मुद्रा आ पुन: हँसीक आवाज सुनि माता काली कें कने अचरज भेलनि । ओ पुछि देलथिन्ह जे की अहाँ कें हमरा सँ डर नहि भेल? संगहि माता इहो प्रश्न केलनि जे अहाँ के हँसी किएक लागल? उत्तर मे गोनू बजलाह जे बाघ करबो भयंकर रहय, ओकरा देखि कें ओकर बच्चा नहि डेराईत अछि । आ हमहूँ तँ अहाँक पुत्र थिकहुँ तें अहाँ सँ डर लागबाक कोनो प्रश्ने नहि अछि । पुन: हँसीक विषय मे उत्तर देबा सँ पूर्व गोनू माता सँ क्षमा याचना कयलनि । माता हुनका क्षमा दान देलनि । तखन गोनू कहलाह जे हमरा एहि बातक आशंका बेर-बेर भऽ रहल अछि जे हमरा एकटा नाक अछि आ दूटा हाथ आ तखन जुकाम भऽ गेला पर नाक पोछैत-पोछैत परेशान भऽ जाइत छी आ अहाँ केँ १००० नासिका मे मात्र दूटा हाथ अछि, तँ जुकाम भऽ गेला पर अहाँ दूटा हाथ सँ १००० नासिका कोना पोछैत होयब ।
गोनूक ई उत्तर सूनि माता कें बड्‌ड हँसी लगलनि आ ओ बजलीह – गोनू अहाँ कें बुद्धिमत्ता आ वाकपटुता मे कियो नहि हरा सकत ई हमर आशीर्वाद अछि । ई कहि माता काली अदृश्य भऽ गेलीह

गोनू झा के स्वर्ग बजाहट

गोनू झा एकटा राजाक दरबारी रहथि । ओ बहुत चतुर छलथि आओर राजाक राज-काज मे मदद करैत छलथि आओर हुनकर खूब मनोरंजन करैत छलथि ।
राजा हुनका बहु मानैत छलथिन्ह संगहि आओर लोक सेहो खूब मानैत छलैन्ह । हुनक उन्नति देखि कऽ सभ दरबारी डाह करैत छल आओर हुनका मिटा देबाक उपाय सोचैत छल । ओहि मे एकटा हजमो छल । ओकरा अपना ज्ञानक घमण्ड रहै । ओ गोनू झा के मिटेबाक बीड़ा उठेलक ।
गामक बाहर राजा के पिताक समाधि छल, राजा प्रतिदिन अपना पिताक समाधि पर फूल चढ़ावय जाय छलथि । पिता पर हुनकर अटूट श्रद्धा छल, हजमा जकर फायदा उठाबय चाहैत छल आओर एकटा चाल चलल ।
एक दिन राजा जखन पिताक समाधि पर फूल चढ़ाबेय गेला तखन ओहि पर एकटा पुर्जा राखल भेटलैन्ह । पुर्जा मे लिखल रहैय-ब‍उआ अहाँ हमर बहुत भक्‍त छी हम अहाँ सँ अत्यन्त प्रसन्‍न छी । स्वर्ग मे हमरा पूजा-पाठ करबा मे बहुत दिक्‍कत होयत अछि ताहि लेल अहाँ शीघ्र गोनू झा के हमरा लग पठा दियऽ । गाम के पूरब मे जे श्मशानक मे ईंटक ढेरि अछि ओहि पर हुनका बैसा हुनका उपर दस पाँज पुआर राखि ओहि मे आगि लगा देबई तऽ ओ सीधे हमरा लग पहुँचि जैता । हम किछु दिनक बाद हुनका वापस भेज देब ।
शुभाशीर्वाद
अहाँक स्वर्गीय पिता

पुर्जा पढ़िकय राजा चकरेला, एहन आश्‍चर्यक बात तऽ ओ कतहु देखने नहि छलथि । ओ मोने-मोने बहुत तर्क वितर्क करय लगला । गोनू झाक शत्रु के ई चाल अछि या पिता जीक आज्ञा निश्‍चय नई कय सकला । ओहि दिन दरबार मे आबि राजा पुर्जा के हाल सबके सुनेलनि, सभ दरबारी खुश भऽ गेल । कियो कहय लागल-गोनू झा बहुत भाग्यवान छथि ताहि लेल स्वर्ग मे महाराजा याद कैलथिन्ह । क्यो बाजय – गोनू झा कतेक बड़का पुण्यात्मा छथि जे जीवैत स्वर्ग जैता । कियो डाह करैत बाजल- हमरा सभक सौभाग्य कहाँ ! नहिं तऽ सहर्ष जैबाक लेल तैयार भऽ जैतहुँ ।
एहि पर हजमा बाजल महाराज जिनक आदेश एलन्हि हुनके जैबाक चाही नई तऽ महाराज के मोन मे दुःख हेतैन्ह । साधारण लोक सँ काज नई हेत‍इ तें तऽ गोनू झा के बुलाहट भेलैन्ह । इमहर राजा बड़ सोच मे पड़ि गेला, कतऊ दुष्ट सभ मिलकय गोनू झा के मारबाक षड्‍यन्त्र तऽ नहि रचलक अछि या ठीके पिताजी ई पुर्जा भेजने छथि । ओना अक्षर पिताजीक लिखावट सँ मिलैत अछि । अन्त मे किंकर्तव्यबिमूढ़ भऽ ओ गोनू झा सँ विचार- विमर्श कयला ।
गोनू झा एखन तक सब चुपचाप सुनि रहल छलथि । दरबारिक षडयन्त्रक अनुभव हुनका भऽ गेल छलैन्ह आ ओ एहि सँ बचबाक लेल सोचि रहल छला । हुनक कुशाग्र बुद्धि किछुये काल मे समाधान ढूंढि निकाललक । ओ कहलथिन्ह – महाराज हम स्वर्ग जैबाक लेल तैयार छी परन्च तीन शर्त अछि ।
१. हमरा तीन मास के समय देल जाय ।
२. जखन तक हम स्वर्ग सँ नहि घूमि कय आबी हमरा परिवार के सभ मास दस हजार टाका पारिश्रमिक के रूप मे देल जाय ।
३. एहि समय हमरा पचास हजार टाका देल जाय, जाहि सँ घरक सभ इन्तजाम कय कऽ जाय ।

राजा चकित भय कहलखिन-की अहाँ स्वर्ग जायब? की अहाँ एहि बात के सत्य मानैत छी ?
मोनू झा कहलखिन – महाराज हम सचमुच स्वर्ग जायब । अहाँ चिन्ता जुनि करी । उदास भाव सँ राजा गोनू झाक शर्त मानि लेलथिन । सभ दरबारी के आनन्द आओर आश्चर्य के भाव रहै । हजमा अपना जीत पर हँसि रहल छल । तीन मासक बाद राज्यक सभ लोक गांव के पुवारी कातक श्मशान पर पहुँचल जे आई गोनू झा स्वर्ग जैता । सब प्रजा दुःखी छल, राजा सेहो ओतय पहुँच कानि रहल छला । परन्च गोनू झा के मुख कनिको मलीन न‍ई भेल छल ओ हँसिते माँटिक ढेरि पर बैस गेला आओर पुआर सँ हुनका झाँपि देल गेल एवं आगि लगा देल गेल । ई देखि राजा आओर सभ दरबारी कानि रहल छलथि ओतहि हजमा प्रसन्‍न भऽ रहल छल । एहि घटनाक छः मास बीति गेल छल, गोनू झा एखन तक लौट कय घर नहि आयल छलथि । ई सोचि राजा बहुत दुःखी रहैत छलाह आओर गोनू झा बिना दरबारो मे मन न‍ई लगैत छलैन्ह ।
एक दिन राजा दरबार मे गोनू झाक चर्च करैत रहथि तऽ ओतबहि मे एक दरबारी सूचना देलक जे गोनू झा आबि रहल छथि । लोक आश्‍चर्य सँ चकित रहथि जे एहि खबर के झूठ मानी वा सत्य । ओतबहि मे गोनू झा अबेत देखाय लगलाह । गोनू झा पहिने सँ बेसी मोटा गेल छलथि । किछु लोक हुनका भूत बूझि भागि रहल छल, लेकिन राजा स्तम्भित छलथि ।
गोनू झा आबि राजा के प्रणाम केलखिन आओर एकटा पुर्जा राजा के दय देलखिन । किछु कालक बाद राजा कहलखिन- गोनू झा ! की अहाँ सचमुच जीवित छी?
गोनू झा हँसिकय कहलखिन- महाराज एखन तक तऽ जीवित छी । ई देखि हजमाक प्राण सुखि गेल आओर ओ डरे पसीना सँ तर-बतर भऽ रहल छल ।
गोनू झा कहलखिन- महाराज ! हम स्वर्ग सँ आबि रहल छी । अहाँक पिता ओतय बहुत खुश छथि । परंतु हुनका हजामत कराबय मे तकलीफ छैन्ह, केश-दाढ़ी सभ बढ़ि गेल छैन्ह, ताहि लेल ओ हजाम के भेजय वास्ते ई पुर्जा भेजने छथि । एहि पुर्जा मे एयह बात लीखि पठेने छथि ।
गोनू झाक बात सुनतहि हजमा भागय लागल । लेकिन सिपाही ओकरा धऽ पकड़लक । आब तऽ हजमाक दशा बिगड़ि गेल, सब दरबारी आश्‍चर्य सँ अवाक्‌ छल । राजा कहलखिन- ओहि बेर जखन गोनू झा जाय छलथि तऽ तू बढ़ि- चढ़ि कय बाजेत छलें तऽ एखन डर किये होयत छ‍उ ?
हजमा देखलक जे आब पोल खोलय पड़त, नहि तऽ मारल जायब । तें ओ थरथराईत बाजल-सरकार हमरा क्षमा करू । गोनू झा के स्वर्ग बजाबऽ वला पत्र हम लिखने छलहु ! स्वर्ग सँ कोनो पत्र नहि आयल छल ।
गोनू झा कोनो जादू – टोना जनेत छथि तें आगि सँ बचि गेला, परंच हम तऽ जरि कय मरि जायब । आब तँ राजा आश्‍चर्य एवं क्रोध सँ लाल भय गेला आओर गोनू झा के पुछलखिन की बात अछि सच-सच कहू ।
गोनू झा कहलखिन- महाराज ओहि पत्र के देखिते हम बूझि गेल छलहुँ जे हमरा संगे कियो चक्रचालि खेल रहल अछि । तें अपना बचय के उपाय सोचि स्वर्ग गेनाई स्वीकार केने छलहुँ ।
तीन मासक समय लय कऽ हम ओहि माँटिक ढेरी सँ अपना घर तक सुरंग बना लेने छलहुँ आओर जखन हमरा पुआर सँ झाँपि देलक तऽ हम सुरंगक रस्ते अपना घर पहूँच गेलहुँ ।
ओमहर सब बुझलक जे आब गोनू झा जरि कय मरि गेला आओर हमर दुश्मन सभ खुशी मनाबय लागल छल । एमहर हमरा गुप्त रूप सँ पता लागल जे ई सब पूरा हजमाक षडयंत्र छल ।
ओना इ सब बिना प्रमाण के कहित‍उँ तऽ अहां लोकनि के फूसि लागैत तें प्रमाणक संग अहाँ सब के बतेलहुँ । राजा आओर सब दरबारी गोनू झा के बुद्धि पर दंग छलाह । ओतहि हजमा के कठोर दण्ड भेटल । संगहि गोनू झा के काफी इनाम भेटलैन्ह ....

नई दिल्ली में मीडिया स घिरल बिहार कें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार

नेपाल कें राष्ट्रपति रामबरन यादव आ बिहार कें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार


सोमवार, जनवरी 24

बस, अहींक लेल

ललाहित मन, उत्सुक नयन, करबद्घ तन आ दिल मे अहींक प्रेम अछि
मनमोहिनी सन एहि बेला मे, बस इएह एक प्रार्थना अछि
जे सोचने छी अहाँ, सबटा पाबि लेब।

अजुका दिन भेटल हैत ढ़ेरो शुभकामना
ओहि मे हमरो शामिल कय लिअए।
भूल भेल हुअए वा कोनो चूक हुअए, सबटा बिसरा दिअए
बड अनमोल अछि प्रेम अहाँक, सानिध्य रतन रज दिअए।
आइयो जदि अहाँके स्मरण हुअए
शुरू मे गप्पसप्प एकतरफा छल
अहाँ बजैत रही आ हम सुनैत रही
जहन सिलसिला दुतरफा भेल
नञि जानि ककर नजरि लागि गेल...
एकटा जलजला आयल आ छिडिय़ा गेल सपनाक माला
छिडिय़ा गेल ओ मोती, जकरा हम बड जतन सँ चुनने रही...
आइ फेर ओकरा पिरो रहल छी एहि आस मे
काश !
घुरि आओत ओ पल...
कि भरोस, काँचक घट अछि, कोनो दिन दरकि जायत
एकटा अदना सन कहानी अछि, बीच्चहि छूटि जायत
एकटा समझौता भेल छल रोशनी सँ टूटि जायत...
तइयो मन मे अछि इएह प्रार्थना
जे सोचने छी अहाँ, सबटा पाबि लेब।

जनैत छी अहाँके हमरा सँ घृणा अछि बड
शाइत, कारण हमही होइहि
मुदा जे छल, जेहन छल, राखि देलहुँ अहींक सोझाँ
अपना दिलक हाल, बिना कोनो दुराव-छिपाव केँ
तइयो कहब इएह घुरा दिअए वो पलछिन
रूसब-मनायब त दुनियाक रीत अछि
मनुहार पैघ नहि, पैघ अहाँक प्रीत अछि।
फेरो अहाँ घुरि आयब, यह हृदय सँ हकार अछि
केवल अनुग्रहक गप्प नहिं,
मनक पुकार अछि
जे सोचने छी अहाँ, सबटा पाबि लेब।

आइयो आँगुर मे होइछ जुम्बिश, मुदा सहमि जाइत छी
शाइत, अहाँक घृणाक होइत आभास अछि
डरैत छी, कहीं इहो अधिकार नहि हमरा सँ छीन ली...
मुदा, अजुका दिन स्वीकारैत अछि सभ
दुश्मन सँ सेहो शुभकामना
दुश्मन बुझि स्वीकार करी हमरो शुभकामना
अजुका दिन
जे सोचने छी अहाँ, सबटा पाबि लेब।

अहाँ मानी या नहि मानी
इ दिन हमरा लेल सदिखन यादगार रहत
जे हमरा हँसनाय सिखोलक
ओहि पल संभारल, जहन लगैत छल जिनगी ठमकल
आबि कय हमरा जिनगी सँवारल
जाहि दिन एहि भूमि पर भेल हुनक पादुर्भाव
ओ दिन हमरा वजूद सँ जुडि़ गेल
ताहिं त मन मे इएह अछि प्रार्थना
जे सोचने छी अहाँ, सबटा पाबि लेब।

शुभकामना त बहुतो भेटल हएत ओहि दन
अहाँ सफलता के उच्चतम शिखर धरि पहुँचि
सफलता कें परचम लहराबी...
मुदा, हम प्रार्थना करब एतबै
जे सोचने छी अहाँ, सबटा पाबि लेब।

नञि जानि आई कियैक हृदय फेर सँ कहैत अछि
एखनहुँ हाथ मे किछु समय बाँचल अछि
बस, एक पल जीबय चाहैत छी
समयक एहि शामियाना मे फेर एकटा
नव सपना सँजोय ली हम
घुरा दिअए ओ पल...घुरा दिअए ओ पल....


- दीप्ति अंगरीश

सोमवार, जनवरी 17

अहाँ के शहरि मे

रहै छी सहमि-सहमि, अहाँ कें शहरि मे।
चलै छी सम्हरि-सम्हरि, अहाँ कें शहरि मे।।

लूटपाट आ छीना-झपटी, सौंदर्य अहि नगर कें।
रोज शीलभंग होइए कतेको, अहाँ कें शहरि मे।।

चोर मस्त कोतवाल पस्त, शासन पूरा भ्रष्टï यौ।
जंगल के कानून चलैए, अहाँ कें शहरि मे।।

जे प्रवासी रूप निखारल, ओकरे पर ईल्जाम यौ।
ईनाम मे हाथ कटैए, अहाँ कें शहरि मे।।

किसान के खेत बिकाओल, कंक्रीटक अछि जाल बिछाओल।
यमुना के धार हराओल, अहाँ कें शहरि मे।।

सड़क बनल समर भूमि, शोणित सँ हलकान यौ
ब्लूलाइन सँ सब डेरायल , अहाँ कें शहरि मे।।

शनिवार, जनवरी 8

मिथिलाक धार्मिक यात्रा : अष्टयोगिनी मंदिर


इ हाल मे बनल सहरसाक बेहतरीन मंदिर मे सँ एक अछि । एकरा मत्स्यगंधा मंदिरक नाम सँ सेहो जानल जाइत अछि । इ सहरसा जिला मुख्यालयक नजदीक अछि । बिहार सरकार एकर निर्माण सहरसा मे पर्यटनक बढावा देबाक लेल कयलक अछि । इ मंदिर धार्मिक आ पर्यटन दुनू नजरि सँ नीक अछि । इ मंदिर माँ कालीक अछि । एकरा संगहि एहि मे चौसठ आन देवीक प्रतिमा सेहो लगाओल गेल अछि, जाहि कारण सँ एकरा चौसठ योगिनी मंदिरक नाम सँ सेहो जानल जाइत अछि । आइ ई बिहार सरकार द्वरा बनाओल गेल नीक पर्यटन भवनक रूप मे जानल जाइत अछि । बिहार सरकार के चाही जे एहन आर मंदिर बनाबय ताकि बिहार मे पर्यटन के बढावा भेटैक ।

मिथिलाक धार्मिक यात्रा : उग्रतारा मंदिर, महिषी


ई मंदिर सहरसा जिला मुख्यालय सँ चौदह कि०मी० पश्चिम अछि । ई मंदिर अत्यंत पुरान अछि । अनेक शास्त्र मे सेहो एकर वर्णन भेटैत अछि । एतय देवीक भक्त समय-समय पर अबैत रहैत छथि । माँ ताराक मंदिर सँ सटले माँ सरस्वतीक मंदिर सेहो अछि , जाहि मे माताजीक भव्य मूर्ति लगाओल गेल अछि । एतय पहुँचबाक लेल सहरसा जिला मुख्यालय सँ बस सेवा उपलब्ध अछि । एहि स्थानक रख-रखाव सेहो नीक अछि । व्स्तुत: ई मंदिर मिथिलाक भव्य आ पवित्र स्थान मे सँ एक अछि ।

मिथिलाक धार्मिक यात्रा : अहिल्या स्थान


अहिल्या स्थान दरभंगा जिलाक कमतौल थानाक अहियारी गाम मे स्थित अछि । एहि स्थान धरि पहुँचबाक लेल सब सँ नीक साधन रेल अछि । एतय जेबाक लेल दरभंगा सँ रेल सेवा उपलब्ध अछि । पुराणक अनुसार गौतम मुनिक निवास स्थान एतहि छल । एकटा पौराणिक कथाक अनुसार गौतम मुनिक पत्नी अहिल्या छलीह । एकबेर देवराज इंद्र गौतम मुनिक आश्रम मे अयलाह । ओ ओतय अहिल्या के देखलथि आ हुनकर दिव्य रूप पर मोहित भऽ गेलाह आ हुनका संग अभिगमन करबाक मोन बनेलनि ।

किछु दिनक बाद आधा राति मे इंद्र मुर्गाक आवाज दऽ कऽ गौतम के जगा देलनि । गौतम स्नान करबाक लेल चलि गेलथि । ओकर बाद इंद्र गौतम मुनिक रूप धऽ कऽ अहिल्याक घर मे प्रवेश कयलथि । ओमहर गौतम मुनि कें मध्य रातिक आभास भेलनि आ ओ वापस भऽ गेलाह ।

घर आबि ओ इंद्र के अपन पत्नीक संग देखलथि तँ तमसा के शाप दऽ देलनि आ अहिल्या पाथरक भऽ गेलीह । अहिल्या द्वारा माफी मंगला पर गौतम मुनि कहलथि जे जहन भगवान विष्णु त्रेता युग मे धरती पर श्रीरामक रूप में अवतार लेताह तँ मिथिला जेबाक समय अपन चरण कमल सँ अहाँक उद्धार करताह । त्रेता युग मे जहन श्रीराम मिथिला अयलाह तँ ओ अहिल्या कें उद्धार केलनि । वाल्मिकी रामायण मे सेहो गौतम मुनिक निवास स्थान मिथिला कें मानल गेल अछि ।

मिथिलाक धार्मिक यात्रा : कपिलेश्वर स्थान


ई स्थान मधुबनी जिला मे अछि आ दरभंगा सँ २४ कि०मी० उत्तर आ मधुबनी सँ १२ कि०मी० पश्चिम अछि । ई मंदिर दरभंगा-जयनगर राष्ट्रीय राजमार्ग पर पड़ैत अछि । मानल जाइत अछि जे कपिल मुनि द्वारा शिवलिंग स्थापनाक कारण एकर नाम कपिलेश्वर पड़ल । एतय हरदम भक्त लोकनि महादेवक दर्शनक लेल अबैत रहैत छथि । साओन आ शिवराति मे तँ एतय लाखों भक्त जल चढेबाक लेल अबैत छथि ।

किछु लोकक कहब छनि जे कपिल मुनिक निवास स्थान मधुबनी जिलाक बेनीपट्टी प्रमंडलक विशनपुर गाम मे छल । किंतु विष्णु पुराणक अनुसार हुनक निवास स्थान पाताल लोक मे छल, जतए इंद्र राजा सगरक अश्वमेघ घोड़ा कें चोरा कें बान्हि देने छलाह आ कपिल मुनिक शाप सँ सगरक पुत्र आ साठि हजार सैनिक कें नष्ट कऽ देलनि । एहि घटना सँ मुनि कपिल आ सगरक समकालीनता प्रमाणित होइत अछि । इतिहासकारक कहब छनि जे राजा सगर मनुक चालिसम पीढ़ी मे छलाह ।

विभिन्न पुराणक अनुसार भागिरथी गंगा सागर नामक तीर्थ कोलकाता मे स्थित अछि, जतयक कथाक अनुसार राजा सगरक सैनिक जहन कपिल मुनिक कुटिया मे अश्व्मेघक घोड़ा कें बान्हल देखलथि तँ चोर बूझि हुनक अपमान केलक । एहि पर कपिल मुनि तमसा कें सगरक सैनिक कें नाश कऽ देलनि । एकर बाद कपिल मुनि कपिलेश्वर पहुँचलाह आ शिवलिंगक स्थापना कऽ तपस्या करय लगलाह ।

मिथिलाक धार्मिक यात्रा : जनकपुर


इ भारत देशक बिहार सीमा सँ सटल अछि आ नेपाल मे स्थित अछि । आमजनक अनुसार विदेह जनकक राजधानी एतहि छल । जनक परंपराक अनेको जनक मे एक्कैसम जनक सीरध्वज जनक सब सँ बेसी प्रसिद्ध भेलाह । ओ अयोध्या राजा दशरथक समकालीन छलाह । रामक पत्नी सीता सीरध्वज जनकक पुत्री छ्लीह । रामायण, महाभारत आदि प्राचीन ग्रंथ मे राजा जनकक राजधानी जनकपुर बताओल गेल अछि । राजा जनकक प्राचीन महल जनकपुर सँ सात कोस दूर छल । जनकपुरक प्रसिद्धिक कारण माता सीताक अयोध्याक राजा दशरथ सँ वियाह अछि । हिन्दू धर्म मे जनकपुरक बहुत महत्व अछि । रामनवमी आ विवाहपंचमीक समय मे आइयो लाखों लोक एतय अबैत अछि । आइयो एतय माता सीताक पावन मंदिर अछि आ रामजी द्वारा तोड़ल गेल धनुष सेहो अछि । एतय पहुँचबाक लेल भारतक दरभंगा सँ बस आ रेल अछि । नई दिल्ली सँ विमान सुविधा सेहो अछि ।

मिथिलाक धार्मिक यात्रा : उच्चैठ


उच्चैठ मधुबनी जिलाक बेनीपट्टी थाना मे अछि । एतय देवी दुर्गाक एकटा पुरान आ पैघ मंदिर अछि । ई स्थान कमतौल रेलवे स्टेशन सँ २४ कि०मी० दक्षिण अछि आ दरभंगा सँ बस सँ सीधा जूडल अछि । एहि दुर्गा मंदिरक अपन खास ऐतिहासिक महत्व अछि । एकटा पौराणिक कथाक हिसाब सँ एतय कालीदास रहैत छलाह । कालीदास पहिने महामूर्ख छलाह ।

ओहि समय सदानंद नामक एकटा प्रसिद्ध राजा छलाह । हुनक बेटी विद्योतमा सुंदर आ गुणवती छ्लीह । विद्योतमा वियाहक लेल आयल अनेको राजा सँ वियाह करबा सँ मना दऽ देलनि आ प्रण केलनि जे ओ हुनके सँ वियाह करतीह जे हुनका सँ बेसी गुणवान हुअए । एहि सँ अपमानित भेल राजाक पंडित लोदनि बदला लेबाक लेल सोचलथि आ एकटा महामूर्खक खोज मे लागि गेलाह । एक दिन हुनका लोकनिक नजरि कालीदास पर पड़ल, जे एकटा गाछक डारि पर बैसल छलाह आ ओकरहि काटि रहल छलाह । विद्वान लभ सोचलाह जे एहि सँ पैघ मूर्ख कतय भेटत । ओ कालीदास कें राजा सदानंदक दरबार मे लऽ गेलाह आ विद्योत्मा सँ हुनक वियाहक प्रस्ताव केलनि । पंडित लोकनि इहो कहलाह जे एखन ई मौन व्रत धाराण केने छथि आ तें इशारा मे गप्प करैत छथि ।

विद्योत्मा दरवार मे उपस्थित भेलीह आ मौन रूप सँ प्रश्न पूछैत एकटा आँगुर उठेलीह, जेकर अर्थ भेल - ईश्वर एक छथि । कालीदास सोचलाह जे ई हमर एकटा आँखि फोड़य चाहैत अछि तँ हम हिनक दुनू फोड़ि देब आ तें ओ अपन दूटा आँगुर उठा देलनि । विद्योत्मा बुझलीह जे ई ईश्वरक दू रूप बतबैत छथि आ तें दूटा आँगुर उठेलनि अछि । पुन: दोसर प्रश्न मे विद्योत्मा अपन पाँचो आँगुर उठेलनि जेकर अर्थ भेल _ मूल तत्व ५ अछि । कालीदास सोचलाह जे ई हमरा थापड़ मारत तँ हम एकरा मुक्का मारब आ ओ पाँचों आँगुर बान्हि मुक्का देखेलनि । विद्योत्मा सोचलीह जे हिनक आशय ५ तत्व सँ मीलि कें बनल शरीर सँ अछि आ विद्योत्मा हारि मानि लेलनि । एवं प्रकारे कालीदास आ विद्योत्माक वियाह भेल । परंतु बाद मे वास्तविक स्थितिक ज्ञान भेला पर विद्योत्मा कालीदास कें अपमानित कऽ घर सँ निकालि देलनि ।
तत्पश्चात कालीदास विद्याध्ययनक लेल उच्चैठ पहुँचलाह आ एहिठाम रहि सभ शास्त्रक ज्ञाता भऽ गेलाह । आइयो लोक एहिठामक माँटि अपन घर लऽ जाईत अछि आ विश्वास करैत अछि जे दुर्गाक कृपा सँ हुनको घर मे कालीदास सदृश विद्वान हेताह

मिथिलाक मीलक पाथर

१.गौरी-शंकर स्थान- मधुबनी जिलाक जमथरि गाम आऽ हैंठी बाली गामक बीच ई स्थान गौरी आऽ शङ्करक सम्मिलित मूर्त्ति आऽ एहि पर मिथिलाक्षरमे लिखल पालवंशीय अभिलेखक कारणसँ विशेष रूपसँ उल्लेखनीय अछि। ई स्थल एकमात्र पुरातन स्थल अछि जे पूर्ण रूपसँ गामक उत्साही कार्यकर्त्ता लोकनिक सहयोगसँ पूर्ण रूपसँ विकसित अछि। शिवरात्रिमे एहि स्थलक चुहचुही देखबा योग्य रहैत अछि। बिदेश्वरस्थानसँ २-३ किलोमीटर उत्तर दिशामे ई स्थान अछि।
२.भीठ-भगवानपुर अभिलेख- राजा नान्यदेवक पुत्र मल्लदेवसँ संबंधित अभिलेख एतए अछि। मधुबनी जिलाक मधेपुर थानामे ई स्थल अछि।
३.हुलासपट्टी- मधुबनी जिलाक फुलपरास थानाक जागेश्वर स्थान लग हुलासपट्टी गाम अछि। कारी पाथरक विष्णु भगवानक मूर्त्ति एतए अछि।
४.पिपराही-लौकहा थानाक पिपराही गाममे विष्णुक मूर्त्तिक चारू हाथ भग्न भए गेल अछि।
५.मधुबन- पिपराहीसँ १० किलोमीटर उत्तर नेपालक मधुबन गाममे चतुर्भुज विष्णुक मूर्त्ति अछि।
६.अंधरा-ठाढ़ीक स्थानीय वाचस्पति संग्रहालय- गौड़ गामक यक्षिणीक भव्य मूर्त्ति एतए राखल अछि।
७.कमलादित्य स्थान- अंधरा ठाढ़ी गामक लगमे कमलादित्य स्थनक विष्णु मंदिर कर्णाट राजा नान्यदेवक मंत्री श्रीधर दास द्वारा स्थापित भेल।
८.झंझारपुर अनुमण्डलक रखबारी गाममे वृक्ष नीचाँ राखल विष्णु मूर्त्ति, गांधारशैली मे बनाओल गेल अछि।
९.पजेबागढ़ वनही टोल- एतए एकटा बुद्ध मूर्त्ति भेटल छल, मुदा ओकर आब कोनो पता नहि अछि। ई स्थल सेहो रखबारी गाम लग अछि।
१०.मुसहरनियां डीह- अंधरा ठाढ़ीसँ ३ किलोमीटर पश्चिम पस्टन गाम लग एकटा ऊंच डीह अछि।बुद्धकालीन एकजनियाँ कोठली, बौद्धकालीन मूर्त्ति, पाइ, बर्त्तनक टुकड़ी आऽ पजेबाक अवशेष एतए अछि।
११.भगीरथपुर- पण्डौल लग भगीरथपुर गाममे अभिलेख अछि जाहिसँ ओइनवार वंशक अंतिम दुनू शासक रामभद्रदेव आऽ लक्ष्मीनाथक प्रशासनक विषयमे सूचना भेटैत अछि।
१२.अकौर- मधुबनीसँ २० किलोमीटर पश्चिम आऽ उत्तरमे अकौर गाममे एकटा ऊँच डीह अछि, जतए बौद्धकालक मूर्त्ति अछि।
१३.बलिराजपुर किला- मधुबनी जिलाक बाबूबरही प्रखण्डसँ ३ किलोमीटर पूब बलिराजपुर गाम अछि। एकर दक्षिण दिशामे एकटा पुरान किलाक अवशेष अछि। किला पौन किलोमीटर नमगर आऽ आध किलोमीटर चाकर अछि। दस फीटक मोट देबालसँ ई घेरल अछि।
१४. असुरगढ़ किला- मिथिलाक दोसर किला मधुबनी जिलाक पूब आऽ उत्तर सीमा पर तिलयुगा धारक कातमे महादेव मठ लग ५० एकड़मे पसरल अछि।
१५.जयनगर किला- मिथिलाक तेसर किला अछि भारत नेपाल सीमा पर प्राचीन जयपुर आऽ वर्त्तमान जयनगर नगर लग। दरभंगा लग पंचोभ गामसँ प्राप्त ताम्र अभिलेख पर जयपुर केर वर्णन अछि।
१६.नन्दनगढ़- बेतियासँ १२ मील पश्चिम-उत्तरमे ई किला अछि। तीन पंक्त्तिमे १५ टा ऊँच डीह अछि।
१७.लौरिया-नन्दनगढ़- नन्दनगढ़सँ उत्तर स्थित अछि, एतए अशोक स्तंभ आऽ बौद्ध स्तूप अछि।
१८.देकुलीगढ़- शिवहर जिलासँ तीन किलोमीटर पूब हाइवे केर कातमे दू टा किलाक अवशेष अछि। चारू दिशि खाइ अछि।
१९.कटरागढ़- मुजफ्फरपुरमे कटरा गाममे विशाल गढ़ अछि, देकुली गढ़ जेकाँ चारू कात खधाइ खुनल अछि।
२०.नौलागढ़-बेगुसरायसँ २५ किलोमीटर उत्तर ३५० एकड़मे पसरल ई गढ़ अछि।
२१.मंगलगढ़-बेगूसरायमे बरियारपुर थानामे काबर झीलक मध्य एकटा ऊँच डीह अछि। एतए ई गढ़ अछि।
२२.अलौलीगढ़-खगड़ियासँ १५ किलोमीटर उत्तर अलौली गाम लग १०० एकड़मे पसरल ई गढ़ अछि।
२३.कीचकगढ़-पूर्णिया जिलामे डेंगरघाटसँ १० किलोमीटर उत्तर महानन्दा नदीक पूबमे ई गढ़ अछि।
२४.बेनूगढ़-टेढ़गछ थानामे कवल धारक कातमे ई गढ़ अछि।
२५.वरिजनगढ़-बहादुरगंजसँ छह किलोमीटर दक्षिणमे लोनसवरी धारक कातमे ई गढ़ अछि।
२६.गौतम तीर्थ- कमतौल स्टेशनसँ ६ किलोमीटर पश्चिम ब्रह्मपुर गाम लग एकटा गौतम कुण्ड पुष्करिणी अछि।
२७.हलावर्त्त- जनकपुरसँ ३५ किलोमीटर दक्षिण पश्चिममे सीतामढ़ी नगरमे हलवेश्वर शिव मन्दिर आऽ जानकी मन्दिर अछि। एतएसँ देढ़ किलोमीटर पर पुण्डरीक क्षेत्रमे सीताकुण्ड अछि। हलावर्त्तमे जनक द्वार हर चलएबा काल सीता भेटलि छलीह। राम नवमी (चैत्र शुक्ल नवमी) आऽ जानकी नवमी (वैशाख शुक्ल नवमी) पर एतए मेला लगैत अछि।
२८.फुलहर-मधुबनी जिलाक हरलाखी थानामे फुलहर गाममे जनकक पुष्पवाटिका छल जतए सीता फूल लोढ़ैत छलीह।
२९.जनकपुर-बृहद् विष्णुपुराणमे मिथिलामाहात्म्यमे जनकपुर क्षेत्रक वर्णन अछि। सत्रहम शताब्दीमे संत सूर किशोरकेँ अयोध्यामे सरयू धारमे राम आऽ जानकीक दू टा भव्य मूर्त्ति भेटलन्हि, जकरा ओऽ जानकी मन्दिर, जनकपुरमे स्थापित कए देलन्हि। वर्त्तमान मन्दिरक स्थापना टीकमगढ़क महारानी द्वारा १९११ ई. मे भेल। नगरक चारूकात यमुनी, गेरुखा आऽ दुग्धवती धार अछि। राम नवमी (चैत्र शुक्ल नवमी),जानकी नवमी (वैशाख शुक्ल नवमी) आऽ विवाह पंचमी (अगहन शुक्ल पंचमी) पर एतए मेला लगैत अछि।
३०.धनुषा- जनकपुरसँ १५ किलोमीटर उत्तर धनुषा स्थानमे पीपरक गाछक नीचाँ एकटा धनुषाकार खण्ड पड़ल अछि। रामक तोड़ल ई धनुष अछि। एहिसँ पूब वाणगंगा धार बहैत अछि जे लक्ष्मण द्वारा वाणसँ उद्घाटित भेल छल।
३१.सुग्गा-जनकपुर लग जलेश्वर शिवधामक समीप सुग्गा ग्राममे शुकदेवजीक आश्रम अछि। शुकदेवजी जनकसँ शिक्षा लेबाक हेतु मिथिला आयल छ्लाह- एहि ठाम हुनकर ठहरेबाक व्यवस्था भेल छल।
३२.सिंहेश्वर- मधेपुरासँ ५ किलोमीटर गौरीपुर गाम लग सिंहेश्वर शिवधाम अछि।
३३.कपिलेश्वर-कपिल मुनि द्वार स्थापित महादेव मधुबनीसँ ६ किलोमीटर पश्चिमममे अछि।
३४.कुशेश्वर- समस्तीपुरसँ उत्तर-पूब, लहेरियासरायसँ 60 किलोमीटर दक्षिण-पूब आऽ सहरसासँ २५ किलोमीटर पश्चिम ई एकटा प्रसिद्ध शिवस्थान अछि।
३५.सिमरदह-थलवारा स्टेशन लग शिवसिंह द्वारा बसाओल शिवसिंहपुर गाम लग ई शिवमन्दिर अछि।
३६.सोमनाथ- मधुबनी जिलाक सौराठ गाममे सभागाछी लग सोमदेव महादेव छथि।
३७.मदनेश्वर- मधुबनी जिलाक अंधरा ठाढ़ीसँ ४ किलोमीटर पूब मदनेश्वर शिव स्थान अछि।
३८.बसैटी अभिलेख- पूणियाँमे श्रीनगर लग मिथिलाक्षर ई अभिलेख मिथिलाक पहिल महिला शासक रानी इद्रावतीक राज्यकालक वर्णन करैत अछि। एकर आधार पर मदनेश्वर मिश्र ’एक छलीह महारानी’ उपन्यास सेहो लिखने छथि।
३९.चण्डेश्वर- झंझारपुरमे हररी गाम लग चण्डेश्वर ठाकुर द्वारा स्थापितचण्डेश्वर शिवस्थान अछि।
४०.बिदेश्वर-मधुबनी जिलामे लोहनारोड स्टेशन लग स्थित शिवधाम स्थापना महाराज माधवसिंह कएलन्हि। ताहि युगक मिथिलाक्षरमे अभिलेख सेहो एतए अछि।
४१.शिलानाथ- जयनगर लग कमला धारक कातमे शिलानाथ महादेव छथि।
४२.उग्रनाथ-मधुबनीसँ दक्षिण पण्डौल स्टेशन लग भवानीपुर गाममे उगना महादेवक शिवलिंग अछि। विद्यापतिकेँ प्यास लगलन्हि तँ उगनारूपी महादेव जटासँ गंगाजल निकालि जल पिएलखिन्ह। विद्यापतिक हठ कएला पर एहि स्थान पर गना हुनका अपन असल शिवरूपक दर्शन देलखिन्ह।
४३.उच्चैठ छिन्नमस्तिका भगवती- कमतौल स्टेशनसँ १६ किलोमीटर पूर्वोत्तर उच्चैठमे कालिदास भगवतीक पूजा करैत छलाह। भगवतीक मौलिक मूर्त्ति मस्तक विहीन अछि।
४४.उग्रतारा-मण्डन मिश्रक जन्मभूमि महिषीमे मण्डनक गोसाउनि उग्रतारा छथि।
४५.भद्रकालिका- मधुबनी जिलाक कोइलख गाममे भद्रकालिका मंदिर अछि।
४६.चामुण्डा-मुजफ्फर्पुर जिलामे कटरगढ़ लग लक्ष्मणा वा लखनदेइ धार लग दुर्गा द्वारा चण्ड-मुण्डक वध कएल गेल। ओहि स्थान पर ई मन्दिर अछि।
४७.परसा सूर्य मन्दिर- झंझारपुरमे सग्रामसँ पाँच किलोमीटर पूर्व परसा गाममे सढ़े चारि फीटक भव्य सूर्य मूर्त्ति भेटल अछि।
४८.बिसफी- मधुबनी जिलाक बेनीपट्टी थानामे कमतौल रेलवे स्टेशनसँ ६ किलोमीटर पूब आऽ कपिलेश्वर स्थानसँ ४ किलोमीटर पश्चिम बिसफी गाम अछि। विद्यापतिक जन्म-स्थान ई गाम अछि। एतए विद्यापतिक स्मारक सेहो अछि।
४९.मंदार पर्वत-बांका स्थित स्थलमे मिथिलाक्षरक गुप्तवंशीय ७म् शताब्दीक अभिलेख अछि। समुद्र मंथनक हेतु मंदारक प्रयोग भेल छल।
५०.विक्रमशिला-भागलपुरमे स्थित ई विश्वविद्यालय बौद्ध नालन्दा विश्वविद्यालयक विपरीत सनातन धर्मक शिक्षाक केन्द्र रहल।

मिथिलाक बीस टा सिद्ध पीठ-


१.गिरिजास्थान(फुलहर,मधुबनी),
२.दुर्गास्थान(उचैठ, मधुबनी),
३.रहेश्वरी(दोखर,मधुबनी),
४.भुवनेश्वरीस्थान(भगवतीपुर,मधुबनी),
५.भद्रकालिका(कोइलख, मधुबनी),
६.चमुण्डा स्थान(पचाही, मधुबनी),
७.सोनामाइ(जनकपुर, नेपाल),
८.योगनिद्रा(जनकपुर, नेपाल)
९.कालिका स्थान(जनकपुर स्थान),
१०.राजेश्वरी देवी(जनकपुर, नेपाल),
११.छिनमस्ता देवी(उजान, मधुबनी),
१२.बन दुर्गा(खररख, मधुबनी),
१३.सिधेश्वरी देवी(सरिसव, मधुबनी),
१४.देवी-स्थान(अंधरा ठाढ़ी,मधुबनी),
१५.कंकाली देवी(भारत नेपाल सीमा आऽ रामबाग प्लेस, दरभंगा)
१६.उग्रतारा(महिषी, सहरसा),
१७.कात्यानी देवी(बदलाघाट, सहरसा),
१८.पुरन देवी(पूर्णियाँ),
१९.काली स्थान(दरभंगा),
२०.जैमंगलास्थान(मुंगेर)।

विद्यापति गीत

1

सासु जरातुरि भेली। ननन्दि अछलि सेहो सासुर गेली।
तैसन न देखिअ कोई। रयनि जगाए सम्भासन होई।
एहि पुर एहे बेबहारे। काहुक केओ नहि करए पुछारे।
मोरि पिअतमकाँ कहबा। हमे एकसरि धनि कत दिन रहबा।
पथिक, कहब मोर कन्ता। हम सनि रमनि न तेज रसमन्ता।
भनइ विद्यापति गाबे। भमि-भमि विरहिनि पथुक बुझाबे।




2
आसक लता लगाओल सजनी, नयनक नीर पटाय।
से फल आब परिनत भेल मजनी, आँचर तर न समाय।।
कांच सांच पहु देखि गेल सजनी, तसु मन भेल कुह भान।
दिन-दिन फल परिनत भेल सजनी, अहुनख कर न गेआना।
सबहक पहु परदेस बसु सजनी, आयल सुमिरि सिनेह।
हमर एहन पति निरदय सजनी, नहि मन बाढय नहे।।
भनइ विद्यापति गाओल सजनी, उचित आओत गुन साइ।
उठि बधाव करु मन भरि सजनी, अब आओत घर नाह।।

बुधवार, जनवरी 5

हम कि जानि

एक-दोसर कियैक बनल अछि अनजान, हम कि जानि
ककरा हमर हाल पता छै, हम कि जानि
अधर पर मुस्की लय कय कियैक मिलैत अछि
मन मे केहन गरल भरल छै, हम कि जानि
भूखल पेट आई बनल अछि सिया-स्वयंवर
राम एखन कियैक चुप छथि, हम कि जानि
ककरा लागत नीक आ के कहत बेजाय
नव समय के नव बसात छै, हम कि जानि
सोचक सागर कें मंथन नहि भेल
भगवान कतय नुकायल छथि, हम कि जानि

मंगलवार, जनवरी 4

हरिमोहन झाक पांच पत्र

पाँचपत्र (हरिमोहन झा)(१)दड़िभंगा१-१-१९प्रियतमेअहाँक लिखल चारि पाँती चारि सएबेर पढ़लहुँ तथापि तृप्ति नहि भेल. आचार्यक परीक्षा समीप अछि किन्तु ग्रन्थमे कनेको चित्त नहि लगैत अछि. सदिखन अहीँक मोहिनी मूर्ति आँखिमे नचैत रहैत अछि. राधा रानी मन होइत अछि जे अहाँक ग्राम वृन्दावन बनि जाइत, जाहिमे केवल अहाँ आ हम राधा-कृष्ण जकाँ अनन्त कालधरि विहार करैत रहितहुँ. परन्तु हमरा ओ अहाँक बीचमे भारी भदबा छथि. अहाँक बाप-पित्ती, जे दू मासक बाद फगुआमे हमरा आबक हेतु लिखैत छथि. साठि वर्षक बूढ़केँ की बूझि पड़तनि जे साठि दिनक विरह केहन होइत छैक !प्राणेश्वरी, अहाँ एक बात करू माघी अमावस्यामे सूर्यग्रहण लगैत छैक. ताहिमे अपना माइक संग सिमरियाघाट आउ. हम ओहिठाम पहुँचि अहाँकें जोहि लेब. हँ एकटा गुप्त बात लिखैत छी जखन स्त्रीगण ग्रहण-स्नान करऽ चलि जएतीह तखन अहाँ कोनो लाथ कऽकऽ बासापर रहि जाएब. हमर एकटा संगी फोटो खिचऽ जनैत अछि. तकरासँ अहाँक फोटो खिचबाएब देखब ई बात केओ बूझए नहि. नहि तँ अहाँक बाप-पित्ती जेहन छथि से जानले अछि.हृदयेश्वरी हम अहाँक फरमाइशी वस्तु (चन्द्रहार) कीनिकऽ रखने छी. सिमरिया में भेट भेलापर चूपचाप दऽ देब. मुदा केओ जानए नहि हमरा बापके पता लगतनि तँ खर्चा बन्द कऽ देताह. हँ एहि पत्रक जबाब फिरती डाकसँ देब. तें लिफाफक भीतर लिफाफ पठारहल छी. पत्रोत्तर पठएबामे एको दिनक विलम्ब नहि करब. हमरा एक-एक क्षण पहाड़सन बीतिरहल अछि. अहाँक प्रतीक्षा में आतुरपुनश्च : चिट्ठी दोसराके छोड़क हेतु नहि देबैक. अपने हाथसँ लगाएब रतिगरे आँचरमे नुकौने जाएब आओर जखन केओ नहि रहैक तँ लेटरबक्समे खसा देबैक.
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(२)
हथुआ संस्कृत विद्यालय१-१-२९प्रिय,बहुत दिनपर अहाँक पत्र पाबि आनन्द भेल. अहाँ लिखैत छी जे ननकिरबी आब तुसारी पूजत, से हम एकटा अठहत्थी नूआ शीघ्र पठा देबैक. बंगट आब स्कूल जाइत अछि कि नहि? बदमाशी तँ नहि करैत अछि? अहाँ लिखैत छी जे छोटकी बच्चीके दाँत उठि रहल छैक, से ओकर दबाइ वैद्यजीसँ मङबाकऽ दऽ देबैक. अहूके एहिबेर गामपर बहुत दुर्बल देखलहुँ जीरकादि पाक बनाकऽ सेवन करू. जड़कालामे देह नहि जुटत तँ दिन-दिन ह्रस्त भेल जाएब. ओहिठाम दूध उठौना करू. कमसँ कम पाओभरि नित्य पिउल करब. हम किछु दिनक हेतु अहाँकें एहिठाम मङा लितहुँ. परन्तु एहिठाम डेराक बड्ड असौकर्य. दोसर जे विद्यालयसँ कुल मिला साठि टका मात्र भेटैत अछि. ताहिमे एहिठाम पाँचगोटाक निर्वाह हएब कठिन. तेसर ई जे फेर बूढ़ीलग के रहतनि ! इएहसभ विचारिकऽ रहि जाइत छी. नहि तँ अहाँक एतऽ रहने हमरो नीक होइत. दुनू साँझ समयपर सिद्ध भोजन भेटैत बंगटो के पढ़बाक सुभीता होइतैक. छोटकी कनकिरबीसँ मन सेहो बहटैत. परन्तु कएल की जाए ! बड़की ननकिरबी किछु आओर छेटगर भऽ जाए तँ ओकरा बूढ़ीक परिचर्यामे राखि किछु दिनक हेतु अहाँ एतऽ आबि सकैत छी. परन्तु एखन तँ घर छोड़ब अहाँक हेतु सम्भव नहि. हम फगुआक छुट्टीमें गाम अएबाक यत्न करब. यदि नहि आबि सकब तँ मनीआर्डर द्वारा रुपैया पठा देब.अहींक कृष्णपुनश्च : चिट्ठी दोसराकें छोड़क हेतु नहि देबैक अपने हाथसँ लगाएब. रतिगरे आँचरमे नुकौने जाएब आओर जखन केओ नहि रहैक तँ लेटरबक्समे खसा देबैक.
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(३)
हथुआ संस्कृत विद्यालय१-१-३९शुभाशीर्वाद अहाँक चिट्ठी पाबि हम अथाह चिन्तामे पड़ि गेलहुँ. एहिबेर धान नहि भेल तखन सालभरि कोना चलत. माएक श्राद्धमे पाँच सए कर्ज भेल तकर सूदि दिन-दिन बढ़ले जा रहल अछि. दू मासमे बंगटक इमतिहान हएतनि. करीब पचासो टका फीस लगतनि. जँ कदाचित पास कऽ गेलाह तँ पुस्तकोमे पचास टका लागिए जएतनि. हम ताही चिन्तामे पड़ल छी. एहिठाम एक मासक अगाउ दरमाहा लऽ लेने छियैक. तथापि उपरसँ नब्बे टका हथपैंच भऽ गेल अछि. एहना हालतिमे हम ६२ टका मालगुजारी हेतु कहाँसँ पठाउ? जँ भऽ सकए तँ तमाकू बेचिकऽ पछिला बकाया अदाय कऽ देबैक. भोलबा जे खेत बटाइ कएने अछि, ताहिमे एहिबेर केहन रब्बी छैक? कोठीमे एको मासक योगर चाउर नहि अछि. ताहिपर लिखैत छी जे ननकिरबी सासुरसँ दू मासक खातिर आबऽ चाहैत अछि. ई जानि हम किंकर्तव्यविमूढ़ भऽ गेल छी. ओ चिल्हकाउर अछि. दूटा नेना छैक. सभकेँ डेबब अहाँक बुते पार लागत? आब छोटकी बच्ची सेहो १० वर्षक भेल. तकर कन्यादानक चिन्ता अछि. भरि-भरि राति इएहसभ सोचैत रहैत छी, परन्तु अपन साध्ये की? देखा चाही भगवान कोन तरहें पार लगबै छथि!शुभाभिलाषीदेवकृष्णपुनश्च : जारनि निंघटि गेल अछि तँ उतरबरिया हत्ताक सीसो पंगबा लेब. हम किछु दिनक हेतु गाम अबितहुँ किन्तु जखन महिसिए बिसुकि गेल अछि तखन आबिकऽ की करब?अहाँक देवकृष्ण
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(४)
हथुआ संस्कृत विद्यालय
१-१-४९
आशीर्वाद
हम दू माससँ बड्ड जोर दुखित छलहुँ तें चिट्ठी नहि दऽ सकलहुँ. अहाँ लिखैत छी जे बंगट बहुकें लऽकऽ कलकत्ता गेलाह. से आइकाल्हिक बेटा-पुतहु जेहन नालायक होइत छैक से तँ जानले अछि. हम हुनकाखातिर की-की नहि कएल! कोन तरहें बी.ए. पास करौलियनि से हमहीं जनैत छी. तकर आब प्रतिफल दऽरहल छथि. हम तँ ओही दिन हुनक आस छोड़ल, जहिया ओ हमरा जिबिते मोछ छँटाबऽ लगलाह. सासुक कहबमे पड़ि गोरलग्गीक रुपैया हमरालोकनिकेँ देखहु नहि देलनि. जँ जनितहुँ जे कनियाँ अबितहि एना करतीह तँ हम कथमपि दक्षिणभर विवाह नहि करबितियनि. १५०० गनाकऽ हम पाप कएल, तकर फल भोगिरहल छी. ओहिमेसँ आब पन्द्रहोटा कैँचा नहि रहल. तथापि बेटा बूझैत छथि जे बाबूजी तमघैल गाड़नहि छथि. ओ आब किछुटा नहि देताह आर ने पुतहु अहाँक कहलमे रहतीह. हुनका उचित छलनि जे अहाँक संग रहि भानस-भात करितथि, सेवा-शुश्रुषा करितथि. परञ्च ओ अहाँक इच्छाक विरुद्ध बंगटक संग लागलि कलकत्ता गेलीह. ओहिठाम बंगटकें १५० मे अपने खर्च चलब मोश्किल छनि कनियाँकें कहाँसँ खुऔथिन. जे हमरालोकनि ३० वर्षमे नहि कएल से ईलोकनि द्विरागमनसँ ३ मासक भीतर कऽ देखौलनि. अस्तु. की करब? एखन गदह-पचीसी छनि. जखन लोक होएताह तखन अपने सभटा सुझतनि. भगवान सुमति देथुन. विशेष की लिखू? कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति.
देवकृष्ण
पुनश्च: जँ खर्चक तकलीफ हो तँ छओ कट्ठा डीह जे अहाँक नामपर अछि से भरना धऽकऽ काज चलाएब. अहाँक हार जे बन्धक पड़ल अछि से जहिया भगवानक कृपा होएतनि तहिया छुटबे करत!
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(५)
काशीतः
१-१-५९
स्वस्ति श्री बंगटबाबूकें हमर शुभाशिषः सन्तु.
अत्र कुशलं तत्रास्तु. आगाँ सुरति जे एहि जाड़मे हमर दम्मा पुनः उखरि गेल अछि. राति-रातिभरि बैसिकऽ उकासी करैत रहैत छी. आब काशी-विश्वनाथ कहिया उठबैत छथि से नहि जानि. संग्रहणी सेहो नहि छूटैत अछि. आब हमरालोकनिक दबाइए की? औषधं जाह्नवी तोयं वैद्यो नारायणो हरिः. एहिठाम सत्यदेव हमर बड्ड सेवा करैत छथि. अहाँक माएकें बातरस धएने छनि से जानिकऽ दुःख भेल परन्तु आब उपाये की? वृद्धावस्थाक कष्ट तँ भोगनहि कुशल! बूढ़ीकें चलि-फीरि होइत छनि कि नहि? हम आबिकऽ देखितियनि, परञ्च अएबा जएबामे तीस चालीस टका खर्च भऽ जाएत दोसर जे आब हमरो यात्रा में परम क्लेश होइत अछि. अहाँ लिखैत छी जे ओहो काशीवास करऽ चाहैत छथि. परन्तु एहिठाम बूढ़ीके बड्ड तकलीफ होएतनि. अपन परिचर्या करबा योग्य त छथिए नहि, हमर सेवा की करतीह? दोसर जे जखन अहाँ लोकनि सन सुयोग्य बेटा-पुतहु छथिन तखन घर छोड़ि एतऽ की करऽ औतीह? मन चंगा तँ कठौतीमें गंगा! ओहिठाम पोता-पोतीके देखैत रहैत छथि. पौत्रसभके देखबाक हेतु हमरो मन लागल रहैत अछि. परञ्च साध्य की? उपनयनधरि जीबैत रहब तँ आबिकऽ आशीर्वाद देबनि. अहाँक पठाओल ३० टका पहुँचल एहिसँ च्यवनप्राश कीनिकऽ खा-रहल छी. भगवान अहाँके निकें राखथु. चि. पुतहुके हमर शुभाशीर्वाद कहि देबनि. ओ गृहलक्ष्मी थिकीह. अहाँक माए जे हुनकासँ झगड़ा करैत छथिन से परम अनर्गल करैत छथि. परन्तु अहाँकेँ तँ बूढ़ीक स्वभाव जानले अछि. ओ भरिजन्म हमरा दुखे दैत रहलीह. अस्तु कुमाता जायेत क्वचिदपि कुपुत्रो न भवति, एहि उक्ति के अहाँ चरितार्थ करब.
इति देवकृष्णस्य
पुनश्च : यदि कोनो दिन बूढ़ीके किछु भऽ जाइन तँ अहाँलोकनिक बदौलति सद् गति होएबे करतनि जाहि दिन ई सौभाग्य होइन ताहि दिन एक काठी हमरोदिस सँ धऽ देबनि.

मन

मन कें बेसी नहि बुझाबी
नहि त जन्मत कुण्ठा
हमर जीवन कि बदलत
वेदक दू-चारि ऋचा
सुरूज कें धाह के कहि दिओए
पक्षी कें नहि झुलसाबै
हमरा सदिखन नीक लगैत अछि
निस्दबध खरहोरि
जतय बसात सेहो नहि सुनाइत अछि
लोकक केहन आदति छैन्हि
गप्प करताह, चाह पीताह आ विदा भ जेताह
एकसरि हमरा छोडि़ कए।

सोमवार, जनवरी 3

जुल्मी

- मंत्रेश्वर झा

दुनिया मे अहीं टा त’ नहिं छी जुल्मी,
अपना पर बजरत तखन बुझवै जे की।

काल्हियो छलहुँ हमारा आ काल्हियो रहब,
बीतत वर्तमान तखन बुझबै जे की।

फूसि फासि ठूसि ठासि भरलहुँ जिनगी,
अंतकाल पछताके बुझबै जे की।

बजौलहुँ इनाम ले बदनामी खातिर,
नाम जुटत अपनो त’ बुझबै जे की।

नुका नुका पर्दा मे बाँचब कते दिन,
खोलब जौं भेद तखन बुझबै जे की.

मानिनि आब उचित नहि मान

मानिनि आब उचित नहि मान।
एखनुक रंग एहन सन लागय जागल पए पंचबान।।
जूडि रयनि चकमक करन चांदनि एहन समय नहि आन।
एहि अवसर पिय मिलन जेहन सुख जकाहि होय से जान।।
रभसि रभसि अलि बिलसि बिलसि कलि करय मधु पान।
अपन-अपन पहु सबहु जेमाओल भूखल तुऊ जजमान।।
त्रिबलि तरंग सितासित संगम उरज सम्भु निरमान।
आरति पति मंगइछ परति ग्रह करु धनि सरबस दान।।
दीप-बाति सम भिर न रहम मन दिढ करु अपन गेयान।
संचित मदन बेदन अति दारुन विद्यापति कवि भान।।

भावार्थ : - हे नायिका! अब अर्थ इतना भी रुसना-फुलना उचित नहीं है। इन बातों को अब छोड़ भी दो। देखो तो, ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे कामदेव अपने पांच बाणों के साथ जग चुके हों। रात कितना आकर्षक लग रहा है। चारों तरफ स्पष्ट दिखाई दे रहा है (शुक्ल पक्ष अपनी चढ़ाव में जो है)। इससे अच्छा (उपयुक्त) पला भला और क्या हो सकता (अभिसार के लिए) है। इस मनोनुकूल क्षण में प्रियतम से मिलन का जो आनन्द मिलता है उसका अनुभव (अनुमान) वही कर सकता है, जिसने ऐसे पल को कभी भोगा है। भँवर रस से हुए मदमत होकर कली को तोर रहा है, मधुपान कर रहा है। दोनों तरफ से कहीं कोई अवरोध नहीं है। अर्थात् सभी अपने-अपने प्रियतम की भूख मिटा चुके हैं, केवल तुम्हारा प्रियतम अभी तक भूखा है। तुम्हारे नाभि के ऊपर में लहर तरंगित है। संगम पर अवस्थित दोनों स्तन (छाती) शिव-शम्भु के समान लग रहे हैं। इस तरह के अवसर पर तुम्हारा प्रियतम आर्त होकर खड़े हैं। तुमसे कुछ मांग रहा है- याचक मुद्रा में। हे मानिनि (नायिका), तुम ऐसे पल में अपना सर्व दान कर दो। अब भी अपने मन को दृढ़ करो। इस चंचल मन का क्या भरोसा! यह तो दीपक के बाती जैसे हमेशा काँपता रहेगा। महाकवि विद्यापति ऐसी स्थिति का बोध कराते हुए कहते हैं कि कामेच्छा अत्यधिक मात्रा में एकत्रित हो जाने पर बहुत कष्ट देता है

अभिनव पल्लव बइसंक देल

अभिनव पल्लव बइसंक देल।
धवल कमल फुल पुरहर भेल।।
करु मकरंद मन्दाकिनि पानि।
अरुन असोग दीप दहु आनि।।
माह हे आजि दिवस पुनमन्त।।
करिअ चुमाओन राय बसन्त।।
संपुन सुधानिधि दधि भल भेल।
भगि-भगि भंगर हंकराय गेल।।
केसु कुसुम सिन्दुर सम भास।
केतकि धुलि बिथरहु पटबास।।
भनइ विद्यापति कवि कंठहार।
रस बझ सिवसिंह सिव अवतार।

अभिनव कोमल सुन्दर पात

अभिनव कोमल सुन्दर पात।
सगर कानन पहिरल पट रात।
मलय-पवन डोलय बहु भांति
अपन कुसुम रसे अपनहि माति।।
देखि-देखि माधव मन हुलसंत।
बिरिन्दावन भेल बेकत बसंत।।
कोकिल बोलाम साहर भार।
मदन पाओल जग नव अधिकार।।
पाइक मधुकर कर मधु पान।
भमि-भमि जोहय मानिनि-मान।।
दिसि-दिसि से भमि विपिन निहारि।
रास बुझावय मुदित मुरारि।
भनइ विद्यापति ई रस गाव।
राधा-माधव अभिनव भाव।।

जनम होअए जनु

जनम होअए जनु,जआं पुनि होइ।
जुबती भए जनमए जनु कोई।।
होइए जुबती जनु हो रसमंति।
रसओ बुझए जनु हो कुलमंति।।
निधन मांगओं बिहि एक पए तोहि।
थिरता दिहह अबसानहु मोहि।।
मिलओ सामि नागर रसधार।
परबस जन होअ हमर पिआर।।
परबस होइअ बुझिह बिचारि।
पाए बिचार हार कओन नारि।।
भनइ विद्यापति अछ परकार।
दंद-समुद होअ जिब दए पार।।

गौरा तोर अंगना

गौरा तोर अंगना।
बर अजगुत देखल तोर अंगना।

एक दिस बाघ सिंह करे हुलना ।
दोसर बरद छैन्ह सेहो बौना।।
हे गौरा तोर ................... ।


कार्तिक गणपति दुई चेंगना।
एक चढथि मोर एक मुसना।।
हे गौर तोर ............ ।


पैंच उधार माँगे गेलौं अंगना ।
सम्पति मध्य देखल भांग घोटना ।।
हे गौरा तोर ................ ।

खेती न पथारि शिव गुजर कोना ।
मंगनी के आस छैन्ह बरसों दिना ।।
हे गौरा तोर ............... ।

भनहि विद्यापति सुनु उगना ।
दरिद्र हरन करू धएल सरना ।