शनिवार, फ़रवरी 12

चिन्हार-अनचिन्हार


नेने सँ परदेस बसनिहार
पितियौत भाइक सार के चिन्है छथि

मसिया ससुरक
पितियौत भाइ के चिन्है छथि
ओ ओइ दिन
आश्चर्य
पितियौता पितियौतक साढ़ूक भाइ के
सेहो खट् दÓ चीन्हि गेलाह
मुदा,
हमरा बेर मे
भटकि गेलाह

दुइए बरख भेल
हम कोन पापे पंजाब गेलहुँ
किछु पढ़ल रहितहुँ
तÓ दिल्ली जइतहुँ
पैंट
एकटा टी शर्ट
बस एतबे
बस एतबे मे
भटकै छथिन्ह बाबू
हमरा कहै छथि-
अहाँ के छी बाबू?
अहाँ जयकान्त?
न:
श्रीधर यौ
न:
हमरा लागल
बाबू एकदम्मे भटकि गेलाह।
हम कहलियनि
बाबू हम गुलेटन दास
अहीं टोल मे तÓ रहै छी
बहीर दासक बेटा
मोन नै अछिï?
भुतही गाछी मे हमही ने अहाँक सीसो पांगि दी
छोटका बउआ के कान्ह पर रोज इसकूल हमही ने लÓ जइयैनि
आÓ तेसरा दिन पर अहाँ के बंसीक माछ खोआबी
हमर बाप-पित्ती
अहीं सभक सेवा करैत जीवन गुजस्त कयलक
सभटा बिसरि गेलियै बाबू?

हँ, हँ, चिन्हलियौ
कह ने-
गुलटेनमा !
बहिराक बेटा !


- राजकुमार मिश्र

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