सोमवार, अगस्त 31

काज

बेटा पूछलक हमरा-
मां, हमरा कीयाऽ कनेलहुं
कनि धीरे सऽ बाजल हम
अहाँ कीयाऽ हमरा तमसेलौं
कनैत-कनैत बाजल ओ
हम तामस नहि दियेलहुं
हम चप्पल नहि हरेलहुं
ओ तऽ हरा गेल अपनेहि
एखन तऽ हम
करैत रही काज
फाड़ैत रही किताब।
—कुलीना रुबी

शुक्रवार, अगस्त 28

मिथिलाक उद्धार करु सरकार

अहाँ मैथिल? अछि क्षेत्र, भाषा, संस्कृति आ विरासत केर ह्रïासक चिंता? तहन किऐक धएने छी हाथ पर हाथ? चलु करी मिथिलाक उद्धार। बहुत आसान छैक सरकार, अहाँ होऊ तँ तैयार। जाति, उम्र, शिक्षा नहि ककरो दरकार। अहीं याचक, अहीं मुखतार। दोसरक पूंजी, अहांक पगार। आमद केर स्रोत हजार। सामाजिक प्रतिष्ठïा बोनस भजार। चंदाक हथकंडा पर चलत व्यापार।
बुझि तँ गेल होइबै अपनेहियों, हम की कहए चाहैत छी। भरि देश मे बहुत-बहुत रास काज लेल शतकोटि संख्या मे लोग अपन प्रत्यक्ष भागीदारी कÓ रहल छथि, बिना सरकारी मुलाजिम बनने। मिथिला मे तें ई प्रथा खास प्रचलित भÓ गेल अछि। सच पुछु तँ एहि मामला मे अंतर्राष्टï्रीय स्तर पर मिथिलाक खिलाफ बड़का साजिश भेल अछि। हम शपथपूर्वक कहबाक लेल तैयार छी जे दुनियाके कोनो देश मे कोनो एक क्षेत्रक नाम पर एतेक संस्था नहि छैक जतेक मिथिला मे अछि। क्षेत्र, भाषा, संस्कृति, कला, साहित्य कें के पूछए सामाजिक आ राजनीतिक स्तर पर जतेक संस्था, भरि देश मे हम आवासी वा प्रवासी मिथिलावासी कागत पर बना रखने छी, ओतेक संस्था तँ कतहु नहि अछि। संचार क्षेत्र मे एतेक विकासक बादो मिथिलाक एहि उपलब्धि पर विश्व समुदाय हमरा लोकनि के पुरस्कृत वा सम्मानित करबाक मामला पर गांधीजीक बानर जेंका मुंह, कान आ आंखि बंद कएने अछि। एतेÓ तक जे एहि क्षेत्र मे हमरा लोकनिक नाम 'गिनिज बुक आफ वल्र्ड रेकार्डÓ तक मे शामिल नहि कएने अछि। की ई भारत खासकऽ मिथिलाक विरुद्ध अंतर्राष्टï्रीय षड्ïयंत्र नहि अछि? भूमंडलीकरणक दौर मे विकासक लेल कटिबद्ध एतेक संस्था बला क्षेत्रक उपेक्षा कोना जायज मानल जा सकैत अछि? तैँ हे मिथिलाक कर्णधार लोकनि, आऊ हम सब मिलि गोटेक हजार संस्था एहि नाम पर बना क्षेत्रक उद्धार आ अंतर्राष्टï्रीय साजिशक पर्दाफाश करैत नव जागृतिक बिगुल बजाबी आ संस्था जगतक इतिहास मे अपन क्षेत्रक नाम रोशन करी। ओना परोक्षक बात छैक, हम (व्यक्तिगत स्तर पर) अंतर्राष्टï्रीय मंचक भलमानसहतक एहि अर्थ मे ऋणी सेहो छी जे विश्व जगत कान, आंखि आ मुंह संग अपन नाक (गांधीजी केर बानरक विकसित मॉडल) सेहो बंद कएने अछि, नहि तऽओ अपनो सबहक संस्थाक विषैण गंध सेहो सूँघि सकैत छल जाहि सँ अपन आपसी दुर-छियाक संस्कार आ संस्कृति भारी अप्रकृतिक कारण बनि सकैत छल।
एहि सँ हतोत्साहित वा निराश होयबाक आवश्यकता नहि अछि। आखिर एतेक छोट अपकृतिक संभावना सँ डरेबाक लेल तँ हमरा लोकनि 'शत्रुघ्न सिन्हा फैन्स क्लबÓ सँ लऽ 'मैथिल अल्पसंख्यकÓ धरि महान आ समर्पित उद्देश्यवला संगठन तँ नहि बनौने छी ने यौ? 'अखिल भारतीयÓ आ 'अंतर्राष्टï्रीयÓ स्तर पर संगठन/संस्था हम की ओहिना बना लेने छी। देशक प्रत्येक कोन मे जतए दसो गोट मैथिल पहुंचि गेल होथि ओहि ठाम मिथिला आ मैथिलीक उद्धारक उद्देश्य सँ एगो संस्थाक आविर्भाव भऽ जाइत अछि। ई दीगर बात अछि जे एहि सबहक बावजूद मैथिली नहि तऽ अष्टïम सूची मे स्थान पाबि सकलीह आ नहिए मैथिलीक मूल लिपि 'मिथिलाक्षरÓ प्रचलन मे आबि सकल अछि। मिथिलाक संस्कृति अलोपित होमए लागल अछि। पंजाबक लस्सी आ 'मकई दी रोटी, सरसों दा सागÓ आ बंगालक 'माछा भातÓ आ दक्षिण भारतीय व्यंजन भरि देश मे भाषा सँ इतर सेहो अपन अलग पहचान बना लेने अछि आ लोकप्रिय भऽ रहल अछि। की बंगाली लोकनि हमरा सभ सँ बेसी माछ-भात खाइत छथि? मुदा ई हुनक पहचान सँ जुडि़ गेल छन्हि। हमर तिलकोर, दही-चूड़ा, मखान आ कि आनो कोनो व्यंजन क्षेत्रीय पहचानक अंग बनि सकल अछि? जहां तक भाषायी प्रतिबद्धताक प्रश्न अछि मिथिला-मैथिली सँ जुड़ल संस्था/संगठनक पदाधिकारियो लोकनि कतेक मैथिली बजैत छथि से सर्वविदित अछि। तेँ गाम-गाम चौक-चौराहा आ घर तक मे मैथिली उपेक्षित होमय लगली हँ। प्रवासी लोकनि के बात तऽ छोडि़ दिअऽ मिथिला मे रहनिहार प्रबुद्ध आ सम्मानित लोकनि सेहो अपना के कथित तौर पर 'आधुनिकÓ साबित करैत घरो मे दोसर भाषा बाजब शानक बात बुझैत छथि। प्रबुद्ध प्रवासी लोकनि अपना बच्चा के हिन्दी, अंग्रेजी आ स्थानीय क्षेत्रीय भाषा (पंजाबी, बंगला, मराठी आदि) के ज्ञान तऽ आवश्यक रूपें दैत छथिन। मुदा मैथिली ''बच्चा के पैघ भेला पर स्वेच्छाÓÓ पर छोडि़ देल जाइत अछि, कारण यदि बच्चा घर मे मैथिली बाजत तऽ ई ओकर 'विशुद्ध हिन्दी उच्चारणÓ मे बाधक भऽ जयतैक। मिथिला मैथिली के समस्त चिंता मात्र 'मंचीयÓ आ 'दोसराकÓ लेल रहि गेल अछि। इएह कारण अछि जे एहि मादे जतेक संस्था/संगठन बनैत रहैत अछि ओतबे जल्दी ओ अस्तित्वहीन सेहो भऽ जाइत अछि। मैथिली ओहिना पड़ल रहि जाइत छथि-उपेक्षित। एहि तमाम संस्था लग उपलब्धि के नाम पर एकाध सांस्कृतिक कार्यक्रम टा (ज्यादातर विद्यापति पर्व) रहैत छन्हि। ईमानदारी सँ कहल जाय तऽ ओकरो मुख्य उद्देश्य चंदाक जरिए कमाई रहैत अछि। ओहि चंदा सँ भेल आमदक खर्च आ बंटवारा के नाम पर थूक्कम-फज्झति, धूर-छिया आ गुटबाजी जन्म लैत अछि। एहि सँ कार्यक्रम तऽ प्रभावित होइते अछि आम मैथिलक मोन मे विरक्तता सेहो आबैत अछि जाहि सँ भविष्य मे नहि सिर्फ एहि तरहक कार्यक्रम बंद होयबाक स्थिति मे आबि जाइछ अपितु संस्था सेहो बंद भऽ जाइत अछि। कतेको ठाम तऽ आयोजके लोकनि दारु पीऽ मंचे पर अशोभनीय व्यवहार करए लागैत छथि। विद्यापति पर्वक सबसँ पैघ विडम्बना अछि जे एहि ठाम 'विद्यापतिकÓ रचना छोडि़ सब तरहक 'झमकौआÓ गीत सुनबा मे अबैत अछि। शालीनता, मर्यादा आ मंचीय गरिमा लुप्त भऽ गेल अछि। महिला कलाकार सेहो गीतक स्तरीयता आ सुर साधना सँ बेसी शारीरिक लोच, दैहिक प्रदर्शन, भड़कौआ गीत श्रोता केँ उत्तेजना सँ 'फड़कावैÓ बला अदा केर समावेश कला मे कए रहल छथि। एहि 'अदाÓ पर आई श्रोता आओर आयोजक दुनू फिदा छथि। आ ई कारोबार खूब चलि रहल अछि।
तैँ कहै छी बाबू-भैैया। खूब संभावना छै एहि 'फील्डÓ मे। पैसा, नाम आ प्रतिष्ठïा सब भेटत। अहाँ अकर्मण्य होय वा लुच्चा-लफंगा, जुआरी-शराबी, होय वा गिरहकट, समाज-सेवा मे एहि 'शार्ट-कटÓ केर माध्यम सँ अपन सामाजिक छवि बदलि सकैत छी?
पैघ लोक सँ सम्पर्क कऽ सकैत छी, राजनीतिक, आथिक, महत्वाकांक्षा केर पूर्ति कऽ सकैत छी, बस मिथिला-मैथिलीक चिंतन सँ जुडि़ जाऊ। उपलब्धि के नाम पर असफलता तँ सोचबे नहि करु। बहुत पैघ-पैघ विभूति भेलाह अछि मिथिला मे, की कऽ लेलाह क्षेत्र आ भाषा लेल। मुख्यमंत्री सँ केंद्रीय मंत्री धरि कोनो मैथिल नेता किछु कऽ सकलाह अछि? तथापि की हुनक सामाजिक प्रतिष्ठïा पर कहियो कोनो आंच आएल अछि? तहन अहां व्यर्थे ने डराइत छी। शुद्ध व्यापारी बनए चाही तऽ मिथिला-पेंटिंग के उद्धार सँ अपनाकेँ जोडि़ लिअ। एहि मे कलाकारक शोषण आ मुनाफा सँ पैसा तऽ कमा सकैत छी लेकिन समाज-सेवा के मुख्य धारा सँ कटल रहब, ईखतरा अछि। अगर संस्था/संगठन बना लेब तऽ बीसो आंगुर घी मे बुझू। बिसरि जाइ आई हम अपना पारम्परिक पावनि तिहार तक सँ कटि रहल अछि। छोड़ू ई सब जमीनी चिंता। ई सामाजिक विकास आ मिथिलाक उद्धारक मार्ग अबरोधक अछि। मैथिलीक उद्धारक बनबा लेल दलाली सेहो सीख लिअ। तऽ उठू, आबू सरकार, सब मिलि करी मिथिलाक उद्धार।

गुरुवार, अगस्त 27

नहि बनब पत्रकार!

जहिया सँ ज्ञान भेल तहियो सँ सेहन्ता छल जे पढि़ लिखि पत्रकार बनी। सेहन्ता के सेहन्तें जकाँ सेबने रही। कि जानैत रही जे पैघ भेला पर (वयस मे) नहि बनि सकब? कियैक नञि, एकर घ्ज्ञुति आइयो धरि नहि भेल, तहन गप्पे कि। मुदा किओ सेहन्ता के सेहो नैनपन के एहिना आसानी सँ छोडि़ दिअ, आसान नहि होइत छैक। तहन तऽ हमहूँ मनुक्खे रही, सेहो साधारण कि कहू, अति साधारण, हमर कोन औकाति।
ऐहन गप्प नहि रहअ जे हमरा जुआरि नहि उठाल रहय। उठल रहय, पूरवा-पछवा हमरो लागल रहय। लेकिन सम्हारबाक कोशिश कयेन रही। एहि मे कतय धरि समर्थ भेल रही, एकर अवगति नहि भेल कहियो। घर में जहन कहियैय जे पत्रकार बनब क पत्रकारिता मे अपन कैरियर बनायब। एहि क्षेत्र के जीविकोपार्जनक साधन बनायब, सभक आँखि-भौं तलि जाइन्ह। पता नहि शिक्षित भेलाक बादो समभ मनोदश एहन कियैक। सभ बुझाबै लागैथि 'देखैत नहि छियैन्ह मनोहर कक्का के पत्रकार रहथि, पत्रकारिता मे बड़Ó नाम रहैन्ह लेकिन आइ कोन हश्र छन्हि? कि कौचल छन्हि? बोटा दुखित पड़लैन्ह, सब चास-बास बिका गेलैन्ह। भरिपरोपट्टïा मे तऽ सभ चिन्हैत रहैन्ह, लेकिन तऽ सँ आई-काल्हिं की होत्त छैक। आई जौं आन कतओ ठाम नौकरी कय कऽ दू पाय अर्जन कयने रहितथि तऽ बेटो बाँचि जैतेन्ह आसंगे चास-बास आ कलम-बाग।
लेकिन एकटा हम रहि जे पत्रकार बनबाक धुन सबार रहय, हरदम अपना केँ पत्रकार सन देखेबा लेल तत्पर रहैत छलहुँ। खादीक पायजामा, खादीक कुत्र्ता, पयर मे कोल्हापुरी चप्पल, कुत्र्ताक उपरका जब मे दू-तीन गोट लाल-कारी कलम। दाढ़ी खुटिआयल, केश उधियाइत। शायद हमरा जनिबै इएह पत्रकार बगेबालि होइत छल। बिनाकाज के अनेरो अफस्यॉत होयब, हमर दिनचर्या छल।
ई सुनब मे सहजेँ मोटि जाइत छल जे जकर नाम मे 'कारÓ प्रत्यय लागल रहय, हुनक चरित्रक संबंध मे सही आकलन करबा मे साक्षात्ï ब्रह्मïा के सेहो सोचय पड़तैन्ह, यथा-चित्रकार, पत्रकार, साहित्यकार, फिल्मकार, संगीतकार आदि। जे गोटे एहन पूर्वाग्रह सँ ग्रसित होथि, ओ कोनो अप्पन स्वजन के एहि खाधि मे खसबाक अनुमति दय पओताह विश्वास करब मोसकिल लगभग इएह मनोदशा हमर घरक संग सेहो बगल के पत्रकार बन्धु सबसँ मेल-जोल रखने रही। ओ सभ जे किस्सा-पिहानी सुनबैथि, सुनबा मे बड़ रसगर ओ चहटगर लगैत छल।
आई मौन पड़ैत अछि एगो संगीक गप्प। संगी पत्रकार छल, एकबेर ओ कलकत्ता गेल, कोनो कार्यक्रमक फीचर तैयार करबा लेल वा रिर्पोटिंगक लेल। कहलक —'कि कहियों दोस, एहि लाइ मे सभ किछु भेटैत छैक।ओ जमाना बीति गेलै, जहन पत्रकार लग पाय-कौड़ी नहि रहैत छलैक। हमरा देख, सभ किछु भेटैत अछि। रूपया-पाय, छौड़ी-भौगी सभ। सोनगाछी सेहो गेल रही, पुलिसिया भय सँ त्रस्त छल ओहिठामक रंडी। पुलिसक बारे मे किछु सही-गलत नहि लिखि दिअए, ताहिं हमरो आगाँ परोसि रहल छल एकटा रंडी, जकरा संगे उघारि-पुघारि जे मौन छुअए से कय सकैत छलौं। ओ अन्हार घर मे मासु प्रेमी गाहक संग पड़ल छल नंग-धडंग। आब तौहि कहÓ एहि क्षेत्र मे कि नहि छैक। जाहि हिसाब सँ जमाना बदलि रहल छैक, ओहि हिसाब सँ तऽ बदल है तड़तैह, नहि तऽ जायब तीन नम्बर मे। नाम-ठिकाना केँ कोन कथा, धरक लोक के लाशो नहि भेटतैक।Ó
सांझ मे जहन घर घुरि आयल रहि तऽ इएह सब गप्प दिमाग मे घुरिआइत छल। देखियो आई-काल्हिं सभ किछु भेटैत छैक, एहि क्षेत्र मे। जरूरति छै मात्र अपना केँ समयक संग ढ़ालबाक। एहि मे कोन खराबी। सब तऽ बदलैत अछि। परिवर्तन तऽ संसारक शाश्वत्ï नियम छैक। परिवत्र्तित होयबा मे हर्ज नहि।
हमहूँ घर सँ बहरेलौं अपन झोरा-झपटा लय कऽ, यायावरी डेग के उसाहैत। निश्चर करैत कि जे हेतै से देखल जेतै, आई किनको इंटरव्यू अवश्ये लैब। दिमाग मे सबसँ पहिल नाम आयल—टिग्गा साहेब केँ। आदिवासी छलाह, सरकारी महकमा मे नामी-गिरामी अधिकारी संगे सामाजिक कार्यकत्र्ता सेहो हुनका मानल जा सकैत अछि। हुनक घर बहुँचलौ, घंटी बजेलौं। अपने तऽ नहि निकललाह, निकलल खिन्ह हुनक श्रीमति जी। कोनो हर्ज नहि, प्रणाम-पाती भेलाक बाद उद्देश्य जानि अन्दर बैसेलि, सोफा पर। सामने स्वयं बैसलि। मिसेज टिग्गाक बेडॉलक सीमा धरि नमरल सम्पुष्टï वक्ष हमरा किछु बेसीए आकर्षित करय कमल तेना फलायल रहैत छल जे भौंरा केँ सहजहि आमंत्रित करैत छल। टिग्गा सेहो एहि सँ मिज्ञ रहय आ अनकर, पिपासु नजरि सँ बचयबा लेल झाँपि-तोपि कऽ रखबाक प्रयास मे रहैत छल। टिग्गा कमरा गोलकीपर लगैत रहय जे दुनू हाथें फुटबॉल पकडऩे होअय। ठीके एक हाथें सम्हारब ककरो बूता सँ बाहर छलै....। जेना बच्चा दुनू हाथें पकडि़ दूध पीवैत छल, तहिनाकिछु काल बच्चाक स्थिति मे अपना केँ राखि हम कल्पना करय लगलहुँ। सगरो देह मे एक तरहक सनसनी भरय लागल छल। रक्त संग एकटा उत्तेजना देह मे घुमडय़ घुरिआम लागल छल.....जेना बहरयबाक बाट तकैत होअय।......जे पति साप जकाँ कुंडली मारि पत्नीक पहरा करैत अछि तकरा घीचब आसान होइत छैक, ई गप्प सुनने रही। मुदा हमरा मे ओ हियाब कहाँ....। हम सशंकित रहैत छलहुँ आ सचेष्टï छलहुँ जे एहि तरहक कोनो भाव देखार नहि भऽ जाय आ टिग्गा साहेब अबितै हमरा पकडि़ नञि लैथि। पत्नीक विषय मे टिग्गा साहेब जरूरति सं बेसीये 'रीजिडÓ छलाह। ओ हमरा समटा माफ कय सकैत छलाह, किंतु एहि विषय पर 'कम्प्रोमाइजÓ नहि कऽ सकैत छलाह।....
एतबै मे हमर निन्न टुटि गेल। तहन ज्ञात भेल जे हम तऽ सपनाइत रही। सपने मे टिग्गा साहेब ओतय इंटरव्यूक लेल गेल रही। हमरा लागल जे कन काल लेल हम धूरी सँ छिटकय लागल रही... मुदा फेर वापिस आबि गेल रही। यौनाकर्षण मे आकर्षित भऽ रहल छलौं लेकिन.......। हमरा एहि प्रकरण केँ एतेक सहजता सँ नहि लेबाक चाहैत छल। खुशी भेल जे हम स्खलित होयबा सँ बाँचि गेल रही। संभवत: घरक संस्कार हमरा बचौने रहल। आब हम निर्णय कय लेलौं जे ठेला-घींचैत-तीरैत जीवन बिता लेब, मुदा पत्रकार नहि बनब।

मंगलवार, अगस्त 25

कविता

अंतरात्मा कहैत अछि
अबैत छी लयकें आंखि मे स्वप्निल भविष्य
गामसँ हम शहर दिस,
सोचैत छी ऑफीसर बनव
कठिन सँ कठिन श्रम कऽ,
करब नाम माय-बापक, गाम आओर राष्टï्रक
किछु बनि कऽ
बनाएब एकटा पृथक स्थान समाज मे
किछु नव सृजन कऽ
लेकिन जखन हम देखैत छी ओहि प्रतियोगी कें
जे बूढ़ भय रहल छथि,
किछु बिना पयने
युवावस्था के गंवा कें
गाम वापसि जा रहल अछि,
तखन हम हताश होइत छी
निराश होइत छी,
लगैत अछि निष्ठïा आओर साहस संग छोडि़ रहल अछि,
एकर बावजूदो 'अंतरात्माÓ कहैत अछि हमरा
अहां कियाक दु:खी भय रहल छी?
उज्ज्वल भविष्यक दिस देखैत रहू
सत्यसँ कर्मपथ पर चलैत रहू
विघ्न-बाधासँ लड़ैत रहू
ने पाछू भागू अहां
ओहि असफल प्रतियोगी के देखकें,
सरिपहुँ किछु कमी अछि हुनकामे,
हुनक लक्ष्य आओर रणनीति मे,
एकरा बाद
फेर हम आत्मविश्वासँ भरि जाइत छी
नूतनसँ ओही मे डूबि जाइत छी
सबटा निराशा सँ दूर भऽ जाइत छी
नव उत्साह आओर जोश मे
फेरो तैयारी मे जुटि जाइत छी,
जाहिसँ होय सफल
हम अपन आकांक्षाआकेँ मूत्र्तरूप दऽ सकी,
नव प्रतियोगी हेतु बनि सकी - 'आदर्शÓ।
—भरत लाल ठाकुर

सोमवार, अगस्त 24

अभागल गाम रातू बिगहा

आजाद हिन्दुस्तान के एकटा अभागल गाम छै रातू बिगहा। जे बिहार के जहानाबाद जिले के घोषी प्रखंड मे छै। एहि गाम मे लोक के खेबाक लेल रोटी नहीं भेट रहल छै। जिन्दगी के लेल गरीबी संग लड़ि रहल एहि गामक लोक आब रोटी के अभाव में मरि रहल छै। एक दिस देश आजादी के जश्न मनेबाक लेल तैयारी मे लागल छल त दोसर दिस एहि गामक लोक अपन सम्बन्धी के जरेबाक लेल कटियारी ल जेबाक तैयारी में लागल छल।

एहि गाम में पछिला एक सप्ताह में तीन गोटे के जान जा चुकल छै। मुदा ककरो अकर चिंता नहि। दलित आ गरीबक एहि बस्ती मे लोकक लेल सरकार बीपीएल कार्ड त बनबा देलकै मुदा आई तक लोक के अन्न नहि भेट सकलई।

सरकार गरीबी मेटाबई के लेल तरह दृ तरह के योजना बना रहब छै मुदा जहानाबाद के एहि गाम मे गरीब मेटा रहल छै। शुरु मे जखन गामक लोक सब एकर शिकायत एहि सं जुड़ल अधिकारी से केलकैन त कियो देखबाक लेल नहि ऐलै मुदा आब जखन गप्प लोकक मृत्यु तक पहुंच गेलै त प्रखंडक बीडीओ साहेब एकर टोह लेबाक लेल गाम पहुंचला आ अन्न नहि देबइ बला पर सख्ती सं कार्रवाई करबाक आश्वासन द रहल छथिन। खैर कार्रवाई कते धरि हेतै ई त सब गोटे नीक जकां जानै छी।

ई 62 साल के आजाद हिन्दुस्तान के सच्चाई छै जेतय लोकक लेल रोटी आइयो एकटा प्रश्न बनल छै। ई गाम हमरा सब के अपन आजादी के ऐना देखा रहल अछि। गामक बूढ़ आंखि देशक नेता सब सं प्रश्न पूछि रहल छैन जे की यैह देखबाक लेले देश के आजाद कैल गेल छलै। की गांधीजी जे आजादी के सपना देखने छलाह ओकर यैह सत्यता छै......

- अंकुर कुमार झा

शनिवार, अगस्त 22

अनचिन्हार सन अपन

आई संजूक दुरागमन छैक।
आईसऽ करीब एक बरिसक पूर्वक गप्प अछि। पोड़का साल बैसाख मे ओकर वियाह भेल रहैक। वियाह मे कतै खुशी रहै, संजूक मौन खुशी सऽ आह्लïादित रहैक। विवाह सँ पहिनहि ओ अपन मन-मंदिर मे कतेक सुन्नर वरक कल्पना कयने छल? वियाहक नाम सुनितै ओकर मन रोमांचित भऽ जाइत छलै। वियाह सऽ किछु दिन पहिनहि ओ अपन मामाक डेरा पर दरभंगा मे रहि कय बी।ए. प्रथम वर्षक परीक्षा दय रहल छल आ ओहि क्रम मे ओकर-वियाह ठीक भेलै। वियाह ठीक होबाक प्रत्येक चरण सऽ ओ पूर्णरूपेण अवगत छल। वियाहक दिन सऽ मात्र एक सप्ताह पहिनहि ओ अपन गाम पहुंचल। गाम मे जखन उतरबरिया ओसारा पर ओकर वियाहक गप्प होइत छलै तऽ ओ ओहि बीच सऽ उठि कऽ अपन घर चलि जाइत छल। एवम्ï प्रकारे विघ्न-बाधा के पार करैत ओकर वियाह सम्पन्न भेलै।
वियाहक बाद संजू पहिले सऽ बेसी सुंदर जानि पड़ैत छल, ओकर ललाट श्रीयुक्त बुझना जाइत छलै। अपन वरÓ सऽ वैह बेसी सुन्नर व आकर्षक छल। मुदा ओकरा लेल तऽ ओकर पति परमेश्वर छलखिन, ब्रह्मïा के लेखा-जोखा मानि कऽ ओ अपन वर के सहर्ष स्वीकार केलक। एखन अपन विवाह सऽ ओकरा कोनो तरहक शिकायत नहि छलै। भऽ सकैछ, मन मे कोनो तरहक बात होबो करैऽ तइयो ओकरा ककरो आगू व्यक्त नहि करैत छल। विवाहक पंद्रह दिनक बाद संजूक वर जीविकोपार्जनक लेल परदेश चलि गेलखिन, जतय ओ काज करैत छलाह। आब तऽ मात्र चिटï्ठी पतरीक सम्पर्क शेष रहि गेल छलै। समय-समय पर पावनि-तिहार मे ओकर वर गाम अबैत छलखिन।
गामक कण-कण सऽ परिचित बीत-बीत जगह सऽ मित्रता ओ अपन मामा आ बाबूजीक दुलारि संजू-के ई गाम घर छोड़ऽ पडि़ रहल छलैक। जहिया ई 'दुरागमनÓ शब्द ओकर कान मे सन्हिआयल रहै, छटपटा गेल छल संजू। आ छटपटाक रहि गेल छल। खेनाय-पिनाय छोडि़कऽ जठरानलक समान भऽ गेल छल, देहक रौनक जेना समाप्ति भऽ गेल रहै। नेना मे ई शब्द बड़Ó मनोरंजक आ आनंददायक बुझि पड़ैत छलै। मुदा ई शब्द मे कतेक मारुक वस्तुक समावेश होइत छै, ओहि दिन बुझवा मे आयल रहै। एकर अपन सभ आन भ गेल रहै। सभक मुंह पर खुशी पसरि गेल रहै।
बाबूजीक करेज सूप सन भऽ गेल रहनि। मायक कोढ़ दरकबाक सांती सांठ राजक ओरियान दिस चलि गेल छलै। भैया आ पित्ती लोकनि एहि काजक संपादन मे जी जान सऽ जुटि जेबाक उपक्रम करय लागल छलथिन।
आ संजूक देह सुन्न भऽ गेल रहै। ई गाम-घर, लोक-वेद छोड़बाक कल्पना मात्र सऽ ओकर दिमाग अकुलाय लागैत छलै। मुदा जखन ई कल्पना यथार्थ भऽ पछोड़ धेलकै तऽ एकरा किछुओ नञि फुरेलै। कनेकाल मायक मुंह के निहारलक, छोटकी दूनू बहिन आ भाई के सिनेह के टोलक, बाबूजीक दुलार के याद केलक, भाऊजक सानिध्य के टोकलक। तइयो जखन सभ दुआरि फरेबक दुआरि बुझेलै, अपन सभ चिन्हार अनचिन्हार जकाँ लगलै तऽ ओसारा पर सँ उठि गेल।
खेनाय एकदम सँ तिताइन बुझना गेलै। हांञि-हांहि मुंह धोलक। आ घर मे जा अर्राकऽ पलंग पर खसि पड़ल। पुक्की पारि कनबाक इच्छा भेलै। लेकिन कण्ठ सँ आवाज भागल बुझेलै। माय आओर भाउजक पयर छानि पुछबाक मोन भेलै, जे कोन ऐहन अपराध हमरा सऽ भऽ गेलौ भाय! जे एतेऽ निर्मम बनि बैैला रहल छैं। कोन ऐहन विभेद भऽ गेल सिनेह मे भौजी! जे अहांक अमृत घोरल बोल लय हम हरिण जकां फिफिया रहल छी? भौजी! अहींक सिनेह सऽ ईं गाम छोड़बाक इच्छा नञि भेल कहियो, मुदा ...। अंत मे संजूक करेज दरकि गेलै। कानैत-कानैत गेरुआ भिजा लेलक।
लेकिन एकर सभ नोर दूरि गेलै। आई बेस चहल-पहल छै। बरिआती काल्हिं सांझे आबि गेल रहै। आई ई चलि जायत। जँ स्वेच्छा सऽ जेबाक गप्प होइतै तऽ ई किन्नो ने एहन इच्छा करैत। एक दिन जखन अपन अही संताप पर सोचैत बहुत दूर धरि चलि आयल छल तऽ एहि घोंकल परम्परा पर अतिशय तामस भेल रहै। एहनो कतौ उचित छै जे ककरो इच्छाक प्रतिकूल ई समाज अजगर बनल ठाढ़ रहय। भावना के बिसरि जाय! संजू चाहैत छल, बाबूजी के कहियनि जा कऽ जे बाबूजी, दिन फिरा दियौ। जहिया मौन भरि जायत हम स्वत: ककरो बिनु दु:ख देने चलि जायब।
लीक सँ हटि कऽ एते आगू अयबाक हियाब नञि भेलै। कतेको तरहक विचार मे बहैत रहल आ सभक निचोर नोरक रूप मे बहार होइत रहलै। आई भोरे सऽ संजू सभ कथूके बिसरि गेल अछि। हँ, मात्र सूर्यास्तक पश्चात्ï एहि आँगन, एहि परिवार, एहि गाम के छोडि़ कऽ जा रहल अछि। जखनै आईं सूर्यास्त हेतै, संजू एहि जगह के परती-पराँत बना चलि जायत।
एकर दुख एखन नञि छै। ई बिसरि गेल अछि जे एखनै, आइए एकर जीवन मे कोनो नव घटना घटै बला छै। एकटा ओहन घटना, जे ककरो करेज के कनी कालक लेल दरका देतै। टोलक बुढ़-बुढ़ानुस, दाई-माइ लोकनि ऐखन एकर किरदानी पर व्यंग्य-घोरल बोल सऽ आश्चर्य व्यक्त कय रहल छथिन्ह। एकटा बुढ़ही के जखन असह्यï भऽ उठलनि तऽ उठिकऽ विदा भऽ गेलीह। आइ अकर ऽ हरऽ कऽ रहलि छै ई छोडि़। ने बरिआती अयलै-तखने हाक उठोलकै, ने आइए संच-मंच भऽ बैसलै। देखÓ तऽ इम्हर सऽ ओम्हर घुमए अछि। एकटा हम सभ रही जे मास दिन पहिने सऽ छाती फाटैत रहए। आ घर मे गुम-सुम कानैत रही। ... लेकिन ओ बुढ़ही की जानैत छलीह, जे संजूक छाती कतेक फाटैत रहय। हरदम ओ गुम सुम भऽ मन्हुआयल रहैत छल। नहि खेबा मे मौन लगै आ नञि गप्प करबा मे।
किछु वस्तु जात के तकबाक लेल ओ भौजीक दक्षिणबरिया घर सऽ अपन उतरबरिया घर मे हुलि जाइत अछि। लोक सभ थहाथही छै। बरिआती खोयेबाक ओरियान मे सभ पुरुष बाझल छलखिन। एकरा कने संकोच भेलै आ कि किछु मोन पडि़ अयलै, चोटूटे घुमि गेल। तखने ओसारा पर बैसल कियो बाजि उठलै-संजू! कानै कहां छहिन गै? तोरा सऽ बेसी तोहर माय-बहिन कानै छौ? ... संजू के एकाएक जेना ठेस लागि गेलै। मुदा सम्हरि उठलि। भीतर सऽ हंसीक एगो तोर उठलै आ ठोर पर आबि जाम भऽ गेलै।
उत्साह मे वएह वाला वेग आबि समा गेलै। पुनि भौजीक घर दक्षिणबरिया ओसारा पर चलि गेल। कनी कालक बाद ओ भौजीक घर सऽ उठि जाइत अछि। कोनो प्रकारक विचार के मोन सऽ हटा देबाक चेष्टïा करैत अछि। अपन दूनू छोटका भाई के तकबाक चेष्टïा करैत अछि। आंगन मे कतओ नजरि नहि पड़ैत छै। कि तखने दलान पर ओकर बोल सुनाइ दैत छै। एकर करेज बुझु एकबेर फेरो दरकि गेल होइहि। बेजान ढलान दिस्ï दोगैत अछि। लेकिन ड्ïयोढ़ी लग अबैत-अबैत सभ उपक्रम लूंज भऽ जाइत छै। सभ हुलास मरि जाइत छै।
संजू फेर जेना मुरुझि जाइत अछि। बुझाइत छै, एहि ठाम चारुकात सऽ हमर सभ बाट बन्न कऽ देल गेल अछि। हमर हरेक क्रिया कलाप पर अनगिनत नजरि कें बैसा देल गेल अछि। एकरा बुझना जाइत छै, जे एखन सभक दृष्टिï हमरहिं प्रत्येक हाव-भाव पर अटकल छै। हमर एहि प्रकारक किरदानी ककरो सहय नहि भऽ रहल छै। कि तखने छोटका भाय दौडि़ कऽ आबैत एकर दूनू पैर गछारि लैत छै। संजूक चेतना घुरैत छै। छोटका भाय मोनू दीदीक भावना के बिनु परेखतै बिच्चे मे बाजि उठल—'हमरा तोहर बरिआती नञि आबय दैत छलाह, जाऊ हम अहां सऽ नञि बाजब।Ó—मोनूक बोली एकरा थप्पड़ जकां चोट केलकै। मुदा तइयो बात के तÓर दैत मोनू के माथ पर हाथ फेरैत दुलार ऽ लागैत अछि। तखने कोनो कोना सँ व्यंग्य घोरल पाँती कान दिश्ï लपकैत छै—'जे बुझाइत नञि छै जे ऐकर दुरागमन छै, कतेक बढिय़ा घुमैत अछि। आई काल्हिंक छहि, ताहिं पिया घर जयबाक खुशी छैक।Ó
एहि बात सुनि कऽ संजूक सोझां कारी चादरि ओलरि जाइत छै। आ दिमाग मे आगि धधकÓ लागैत छै। सभ किछु छोडि़ उठि जाइत अछि। मौन धीरे-धीरे तिताय लागैत छै। आई भोरे सऽ सब गोटे एकतरफा भऽ गेल छथि। सभक भावना चालनि भऽ गेल छैन्हि। सभक बुद्धि लोढ़ा भऽ गेल छै। ई सब मोन मे अटियाबैत ड्ïयोढ़ी पर सऽ उतरबरिया ओसाराक लेल डेग उसाहैत अछि।
पुन: चोट्ïटे ठमकि जाइत अछि। नजरि कोनियां घरक मुहखर पर जाइत छै, जाहि घर मे माय खेनाय बना रहल छलखिन आओर मायक नोर टप-टप चुबैत छलै। एहि दृश्य के देखि कऽ संजूक धीरज जबाव दय देलकै, ओकर कुहेस फाटि गेलै। सीधे जा कऽ मायक कोरा मे खसि पड़लै। कानैत-कानैत अचेत भऽ गेल, ओकर नोर सऽ मायक नुआ भीज गेलैन्ह। केतबो किओ चुप करेबाक कोशिश करथिन, मुदा ओ चुप होबय वला कहां छल? अंत मे बाबूजी ऐलखिन तखन चुप करोलखिन। हृदय नोरायलै रहैत छै। सोचेत अछि सत्ते हमर सभक इच्छाक कोनो मोल नञि होइत छै। से ऐना कियैक होइत छै? आ धीरे-धीरे सभ हुलास क्षीण होइत चलल जाइत छै। एकर सभ चेष्टïा मृत्यु सज्जा पर पड़ल कोनो रोगी जकां होबऽ लागैत छै। किछु करबाक उत्कट इच्छा रहितौ किछु करबा मे असमर्थताक अनुभव करैत रहलि।
आ अही घुन-धुन मे कखन चेतना घुरि अयलै, मोन नञि पडि़ रहल छै। दिन लुक झुक कऽ रहल छै। कि तखने किओ पाछां सऽ ओकर डेन धरैत छै। बड़की काकी छलखिन। काकी बड़की भौजी दिस आग्नेय दृष्टिïयें ताकैत बाजि उठै छथिन्ह—'अंए ऐ कनियां! कखन कहलौं सभ गहना-गुडिय़ा पहिरा दियौ? एह बाप रे! लाउ, जल्दी करु सात बजेक भीतर विदागिरी भऽ जेबाक छै।Ó ... दलान पर सऽ बड़का कक्का सेहो जल्दी करबाक लेल कहलखिन।
बड़की काकीक बोल सुनिते संजूक बुद्धि निपता भऽ जाइत छै। आँखि सेहो अपन ज्योति चोरा लैत छै। आ बुझाइत छै जे प्राण सेहो संग छोडि़ रहल छै। आओर तकर बाद जे सम्मिलित हाकक आदान-प्रदान शुरू होइत छै, सगरो आंगन बुझु नोराय जाइत छै। संजूक कानब एकटा फराक-सनक स्वर निकालैत अछि, जे स्वर नमहर प्रश्न-चिह्नï ठाढ़ करैत छै?

गुरुवार, अगस्त 20

पाठकक हृदयकेँ बेधैत हरिमोहन बाबूक मैथिली रचना

व्यंग्य एकटा साहित्यिक अभिव्यक्ति अछि, जे व्यक्ति आ समाजक दुर्बलता, कथनी आ करनीक अंतरक समीक्षा आ निंदाकेँ वक्रभंगिमा दऽ शब्दक माध्यमेँ प्रहार करैत अछि। मिथिला, मैथिल ओ मैथिलीक दुर्दशा, अकर्मण्यता ओ जड़ताकेँ देखि, दीनता-हीनता, आलस्य ओ ईष्र्या, अंधविश्वासक संग-संग अन्यान्य समस्याकेँ देखि, जघन्य अपराध ओ भ्रष्टïाचार, नैतिकताक ह्रïास ओ महगी, मानव अवमूल्यन ओ कूपमंडूकताकेँ देखि हृदय-मानस मे दु:ख-दैन्यसँ उपजल करुण-भाव संचरित होयब कोनो अस्वाभाविक नहि अछि। मिथिला मध्य अमरलती जकाँ चतरल-पसरल एक सँ एक ढोंगी, पाखण्डी, आडम्बरयुक्त पोंगापंथी ओ त्रिपुण्डधारी सभक कुकृत्यक नग्न नृत्य होइत रहल अछि। जाति, धर्म, कर्मकांड आदिक मिथ्या शरण लऽ शास्त्रकेँ 'स्वाहाÓ कएल जाइत रहलैक अछि। हरिमोहन बाबू एकरे अपन रचना सभ मे व्यंग्यात्मक चित्रण कयलनि अछि।
हास्य-सम्राट ओ व्यंग्य-सम्राटक रूप मे सर्वत्र जानल जाइत हरिमोहन लेखनी सँ नि:सृत 'कन्यादानÓ ओ 'द्विरागमनÓ उपन्यास, 'प्रणम्य देवताÓ, 'रंगशालाÓ ओ 'एकादशीÓ कथा-संग्रह, 'चर्चरीÓ विविध-संग्रह, 'खट्टïर ककाक तरंगÓ व्यंग्य संग्रह, 'जीवन-यात्राÓ आत्मकथा सन पुस्तकाकार प्रकाशित पोथी आओर पत्र-पत्रिका मे छिडि़आएल असंगृहीत दर्जनाधिक कविता सभ मैथिलीक धरोहर थिक। गद्य हो वा पद्य व्यंग्यक तीक्ष्णता सँ भरल हास्य रससिक्त हिनक समस्त रचना कटु सत्यक उद्ïघाटन करैत विशिष्टïता प्राप्त कएने अछि।
स्त्री-शिक्षा आ अशिक्षित मैथिलानी पर व्यंग्य हरिमोहन बाबूक उपन्यास 'कन्यादानÓक मुख्य स्वर थिक। एहिमे उपन्यासकार मैथिल समाज मे प्रचलित वैवाहिक विषमताकेँ अपन हास्य-व्यंग्यक पृष्ठïभूमि बनौलनि अछि। एक दिस अत्याधुनिक पाश्चात्य सभ्यताक रंग मे रंगल, मातृभाषा पर्यन्त सँ अपरिचित नायक तथा दोसर दिस प्राचीन मैथिल संस्कृतिक प्रतीक, पाश्चात्य सभ्यता ओ शिक्षा सँ अछूत मैथिलानीक व्यंग्यात्मक चित्र एहि मे प्रकट भेल अछि। 'कन्यादानÓ उपन्यासक समर्पणहि मे व्यंग्यकार दु:खद मन:स्थिति मिथिलाक समाज दिस संकेत करैत व्यंग्यक प्रहारे करैत अछि।
''जे समाज कन्याकेँ जड़ पदार्थवत्ï दान कऽ देबा मे कुंठित नहि होइत छथि, जाहि समाजक सूत्रधार लोकनि बालककेँ पढ़ेबाक पाछाँ हजारक हजार पानि मे बहबैत छथि और कन्याक हेतु चारि कैञ्चाक सिलेटो कीनब आवश्यक नहि बुझैत छथि, जाहि समाज मे बी।ए. पास पतिक जीवन-संगिनी ए.बी. पर्यन्त नहि जनैत छथिन्ह, जाहि समाजकेँ दाम्पत्य-जीवनक गाड़ी मे सरकसिया घोड़ाक संग निरीह बाछीकेँ जोतैक कनेको ममता नहि लगैत छैन्हि, ताहि समाजक महारथी लोकनिक कर-कुलिष मे ई पुस्तक सविनय, सानुरोध ओ सभय समर्पित।ÓÓ
अविस्मरणीय चरित्र सभक व्यंग्य-चित्र सँ सम्पन्न हरिमोहन झाक कथा-संग्रह 'प्रणम्य देवताÓ प्रथम प्रकाशनक अद्र्धशताब्दी व्यतीत भेलहुं पर नवीन अछि, चिर नवीन अछि। 'धर्म शास्त्राचार्य एवं ज्योतिषाचार्यÓ शीर्षक कथाक अंतर्गत धर्मशास्त्र जनित तथा ज्योतिष जनित आडम्बर पर व्यंग्य कएल गेल अछि। एहि संग्रहक कथा मे सामाजिक समस्याक अतिरिक्त पारिवारिक समस्या पर सेहो व्यंग्य कएल गेल अछि। वस्तुत: साझी आश्रमक जे दुर्दशा होइत छैक तकर एलबम भगीरथ झाक परिवार मे भटैत अछि। व्यंग्यकार अत्याधुनिक युग मे फैशनक बढ़ैत स्वरूप पर दृष्टिïपात करैत छथि तँ हुनक लेखनी अत्यधिक प्रखर भऽ जाइत छनि। 'नकली लेडीÓ कोना सहजहि चिन्हल जाइत छथि सेÓ प्रणम्य देवता कÓ अङरेजिया बाबूÓक पत्नी 'चमेली दाइÓ छथि।
हरिमोहन बाबूक व्यंग्यक अत्यंत सजीव चित्र हिनक 'खट्टïर ककाक तरंगÓ मे उपलब्ध होइत अछि। व्यंग्यक सूक्ष्मता एवं तीक्ष्णताक दृष्टिïएँ ई हिनक अत्यंन्त महत्वपूर्ण कृति थिकनि। एहि मे रूढि़-परम्परा, वेद-शास्त्र-पुरान, कर्मकाण्ड-धर्मशास्त्र, गीता-वेदांत, रामायण-महाभारत, ज्योतिष-आयुर्वेद, तंत्र-मंत्र, देवी-देवता, स्वर्ग-नरक, पुनर्जन्म-मोक्ष-पुण्य, साहित्य-इतिहास आदि मे निहित असंगत तर्कओ प्रमाणहीन अवधारणा सभ भरल अछि, तकर नैयायिक एवं व्यंग्यपूर्ण शैली मे, मिथिलाक पारम्परित शास्त्रार्थक परिपाटी मे खण्डन ओ आलोचना कएल गेल अछि। एहि मे वर्णित मर्मस्पर्शी व्यंग्य अंतस्थल मे पहुंचि सुरसुरी लगा दैत अछि। कथानायक खट्टïर ककाक विनोदपूर्ण वार्ता मे व्यंग्यकार हरिमोहन बाबू व्यक्ति-समाज, धर्म-दर्शन आदिक आलोचना करैत अंधविश्वास, धार्मिक पाखण्ड, ढोंग, रूढि़ आदिक प्रति व्यंग्यक माध्यमेँ भयानक विद्रोह करैत छथि।
कतेकोठाम तँ अनेक प्रकारेँ हरिमोहन बाबू अपन रचना मे स्पष्टï कयलनि अछि जे देशक अधोगति एहि दुआरे अछि जे देशवासीक दृष्टिïकोण आधुनिक नहि प्रत्युत आइयो प्राचीन अछि। खट्टïर कका व्यंग्य करैत कहैत छथि :
''विज्ञानक उन्नति करबा लेल तँ पृथ्वी पर और जाति अछिए। कल्पना-विलासक भार सेहो तँ ककरो पर रहबाक चाही। से मनमोदक बनयबाक भार हमरे लोकनि पर अछि।ÓÓ
लोकतंत्रक दुर्गुण पर अपन व्यंग्य बाण सँ पाठकक हृदयकेँ बेधैत खट्टïर कका कहैत छथि :
''हमरा ने लोक मे विश्वास अछि आ ने तंत्र मे। पहिने स्वामीक मत चलैत छलैक। आब बहुक मत चलैत छैक। जेम्हर बेसी हाथ उठल। माथक कोनो मोल नहि। 99 विद्वान सँ 100 मूर्खक मूल्य बेसी। एकटा सतीसँ दूटा कुलटाक महत्त्व अधिक। खुदरासँ थौकक भाव बेसी। ई लोकतंत्र भेल वा थोक तंत्र? बूझह तँ ई तंत्र दुइएटा मंत्र पर चलैत अछि-भोट आ नोट।ÓÓ
एहि वैज्ञानिक युग मे अपन पूर्वजक कीर्तिध्वजा पकडऩे बैसल आजुक मैथिल पर व्यंग्यक कठोर प्रहार करैत खट्टïर ककाक इ गप्प कतेक सटीक बेसैत अछि :
''हाथी चलि गेल, हथिसार चलि गेल, परन्तु हम हाथ मे सिक्कड़ नेने छी। की तँ हमहुं एक दिन हाथी बला छलहुं। हौ बाऊ! जहिया छलहुं तहिया छलहुं। आब की छी-से ने देखू। सूती खऽढ़तर, स्वप्न देखी नौ लाखक। रस्सी जरि गेल, अइठन नहि जरैत अछि। आन-आन देश हिमालयक चोटी पर चढि़ गेल हम खाधि मे पड़ल बजै छी- एक दिन हमरो पुरखा चढ़ल छलाह।ÓÓ
'चर्चरीÓ हरिमोहन झाक विविध रूपक रचनाक संग्रह थिक। एहि मे कथा-पिहानी, एकांकी-प्रहसन, गप्प-सप्प सभ किछु संगृहीत अछि, जाहि मे प्राचीनता एवं आधुनिकता पर समान रूपँे व्यंग्य कयल गेल अछि। परम्परावादी एवं अंधविश्वासी मैथिल संस्कृतिक प्रतीक थिकाह भोल बाबा, जे अपन वाक्ïचातुर्यसँ हास्य ओ व्यंग्यक धारा बहौलनि अछि। व्यंग्यकार कथानायक भोल बाबाक माध्यमेँ प्राचीनकेँ आदर्श मानि आधुनिकता पर व्यंग्यक प्रहार करैत कहैत छथि :
''हाथी केँ मोटर खयलक, घोड़ाकेँ साइकिल खयलक, रामलीलाकेँ सिनेमा खयलक, भोजके ँ पार्टी खयलक, भाँगकेँ चाह खयलक तथा संस्कृतकेँ अंग्रेजी खयलक।ÓÓ
हरिमोहन झा हास्य-व्यंग्यक माध्यमेँ नारी जागरणक शंखनाद कयलनि। 'चर्चरीÓक अनेक कथाक माध्यमेँ ओ मिथिलाक नारी मे दुर्गाक रूप प्रतिष्ठिïत करय चाहैत रहथि। नारी जागरणक फलस्वरूप ओहो सभ आब दहेजक विरोध मे नारा लगबैत छथि।
हरिमोहन बाबूग व्यंग्य प्रतिभाक वास्तविक प्रस्फुटन हुनक कविता सभ मे भेल अछि। 'ढाला झाÓ, 'बुचकुन बाबाÓ, 'निरसन मामाÓ, 'घुटर काकाÓ, 'चालीस आ चौहत्तरिÓ, 'गरीबिनिक बारहमासाÓ, 'आगिÓ, 'कन्याक नीलामि डाकÓ, 'पंडित विलापÓ, 'अङरेजियालड़कीक समदाउनÓ, 'टी पार्टीÓ, 'बूढ़ानाथÓ, 'पंडित आ मेमÓ आदि हिनक व्यंग्य कविता थिक जकरा माध्यमेँ कविहृदय हरिमोहन बाबू विभिन्न समस्या दिस समाजकेँ ध्यान आकृष्टï करबाक सफल प्रयास कएलनि अछि। पद्य-रचना मे सेहो ई हास्य-व्यंग्यक प्रवृत्तिक अवलम्बन कएलनि। प्रारम्भमे ओ धार्मिक आडम्बर ओ रूढि़वादिता पर प्रहार कयलनि, किन्तु बाद मे हुनक कविताक विषय वस्तु बदलैत गैल। 'आगिÓ मे समाजक पांजि-पाटि, सिद्धांत-पतड़ा, हरिसिंह देवी व्यवस्था ओ कर्मकाण्ड पर व्यंग्य भेल अछि। ढोंगी-पोंगा-पंथी पंडित लोकनि हरिमोहन झाक व्यंग्यक वाणक सभसँ बेसी शिकार घायल भेलाह।
'पंडित विलापÓ मे एहन पंडितक दु:स्थिति ओ 'बुचकुन बाबूÓ मे नारीक विकाससँ आहत पंडितलोकनिक आत्महत्या करबाक मन: स्थितिक व्यंग्यात्मक चित्रण भेटैत अछि। आधुनिक जीवनक प्रदर्शन प्रवृत्ति, पार्टीक बाहï्याडम्बर ओ अल्प-भोजनक व्यंग्यात्मक चित्र हिनक 'टी पार्टीÓ, कविता मे बेस मुखर भेल अछि। आधुनिक भइयो कऽ आधुनिकताक घोंकायल स्वरूपक भंडाफोड़ करैत हरिमोहन झा अल्प भोजन देखि नवका पार्टी पर व्यंग्यक प्रहार करैत कहैत छथि :
''दुइए एक फक्का मध्य साफ भेल दालमोट, सेबइ तथा बुनिया और किसमिश विलीन भेल।
एक रसगुल्लामे विलम्ब की लगैत कहु? समतोलाक बाद शेष रहल एक केरा टा।
एक मिनट लागल हैत, ताहीमे साफ भेल, चिनियाक प्लेट हमर निराकार भऽ गेल।
किन्तु उपर योद्धागण युद्ध चलबैत रहलाह, घंटा भरि लागल, किन्तु प्लेट नहि खाली भेल।ÓÓ
'कन्याक नीलामी डाकÓ मे अध:पतित कुलीन प्रथा एवं समाज पर कुठाराघात करैत कन्या विक्रय हेतु पिता पर व्यंग्य करैत हरिमोहन झा कहैत छथि :
''करब कथा पहिने जौं हम्मर सभटा कर्ज सधाबी, चारि सौ जे गनि दियऽ व्यवस्था झट सिद्धांत लिखाबी।ÓÓ
'अङरेजिया लड़कीक समदाउनÓ शीर्षक कविता मे पाश्चात्य सभ्यता ओ संस्कृतिक रंग मे रंगाएल कनियाँक व्यवहार पर व्यंग्यकार कहैत छथि :
''आँगनक बाहर घुमय नहि जयबैक भैंसुर जैताह पड़ाय।
देव पितर किनको नहि हंसबैन्ह सब जैताह तमसाय॥
ओहिठाम जा अण्डा नहि मङ बैक तकर ने छैक उपाय।
जौं मन हो कहबैन्ह चुपचापहि आनि देताह हमर जमाय॥ÓÓ
'बूढ़ा नाथÓ शीर्षक कविता मे व्यंग्यकार हरिमोहन झा मंदिर आ ओकर परिसरक होइत अनुचित प्रयोग, धर्मक नाम पर होइत अधर्म, ध्यान-तर्पण आदिक नाम पर होइत व्यभिचार, पोखरि-घाट पर होइत अश्लीलताक प्रदर्शन आदि पर व्यंग्यक प्रहार करैत लिखैत छथि :
''हे जीर्ण-शीर्ण पचकल पाथर/सरिपहुं छी पाथर अहां भेल
पथरायल तीनू आंखि आब तेँ/झाम गुड़ै छी चुप बैसल
किछु सक्क लगै अछि जौं नहि तँ/व्यर्थे गाड़ल छी एहिठाम
बहराउ, काज लोढ़ाक दियऽ/खट्टïर काका पिसताह भाङ।ÓÓ
सुधारक नाम पर समाजकेँ ठकनिहार महापुरुष लोकनि पर व्यंग्यक प्रहार करैत हरिमोहन झा 'सनातनी बाबा ओ कलयुगी सुधारकÓ शीर्षक सचित्र कविता लिखलनि जाहिमे तत्कालीन समाज मे व्याप्त रूढि़, अंधविश्वास, नारीक दुर्गति, विचार ओ व्यवहार मे अंतर, बाह्यïाडंबर आ सुधारवादी खोलमे नुकायल ढकोसला आ ढोंग पर व्यंग्यक कठोर प्रहार कयलनि अछि :
''बाहर बाजथिÓÓ तिलक प्रथाकेँ विषय सभ जानूÓ। घर मे बाजथि, 'दुइ हजार सौं कम नहि आनूÓ॥
बाहर बाजथि 'छुआछूत केँ शीघ्र हटाउ। घर मे बाजथि 'ई चमैनि थिक, दूर भागऊÓ॥
महगी, बेकारी, भ्रष्टïाचार, मूल्यहीनता आ समाजक विमुखता पर व्यंग्यक प्रहार करैत हरिमोहन झा कतोक कविताक रचना कयने छथि। महंगीक एकटा व्यंग्यात्मक चित्र हुनक 'नव नचारीÓ मे सेहो देखल जा सकैछ :
''केहन भेल अन्हेर ओ बाबा, केहन भेल अन्हेर। भात भेल दुर्लभ भारत मे, सपना धानक ढेर॥
मकई मखनाक कान कटै अछि, अल्हुआ खाथि कुबेर। मडुआ मिसरिक भाव बिकाइछ, जीरक भाव जनेर॥
सबसँ बुडि़बक अन्न खेसारी, सेहो रुपैये सेर॥ÓÓ
पटना नगरपालिकाक दुव्र्यवस्था पर व्यंग्य करैत हरिमोहन झा अपन आत्मकथा मे उल्लिखित 'पटना स्तोत्रÓ शीर्षक कविताक अंश मे कहैत छथि :
''हे धन्य नगर पटना महान/मच्छड़ करैत छथि यशोगान
सड़कक रोड़ा अछि शोभायमान/अलगल ओलक टोंटी समान
हम देखि रहल छी तेहन शान/जे देखि न सकल फाहियान।ÓÓ
उपर्युक्त विवेचन विश्लेषण सँ ई स्पष्टï होइत अछि जे अपन कृति सभ मे तीक्ष्ण व्यंग्य गर्भित उक्तिक कारणेँ हरिमोहन झा 'व्यंग्य-सम्राटÓक उपाधिसँ विभूषित कएल जाइत रहलाह। अपन 'आत्मकथाÓ मे ओ स्वयं लिखैत छथि 'प्रणम्य देवताÓ हमरा 'हास्य रसाचार्यÓक विशेषण देऔने छलाह, खट्टïर ककाÓ व्यंग्य-सम्राट,क उपाधि देयौलैन्हि।ÓÓ ओ पुन: लिखैत छथि-''हमर साहित्य-सर्जनाक एक और दिशा छल हास्य-व्यंग्यपूर्ण कविता।ÓÓ
एहि तरहेँ व्यंग्य-सम्राट हरिमोहन झाकेँ समग्रता मे देखला सँ एकटा स्पष्टï धारणा बनि जाइत अछि जे समाजक विसंगति आ विकृतिकेँ उपहास, कौचर्य, कुचेष्टïा, निन्दा, आलोचना ओ वर्णना द्वारा समर्पित करबाक प्रयास मे व्यंग्यक ततबा लेप चढ़ा दैत छलाह जे पाठक-स्रोतकेँ व्यंग्यक वाण आघात तँ करैत छलैक मुदा ओ 'इस्सÓ नहि कऽ सकैत छल। चोट तँ लगैत छलैक मुदाÓ ओहÓ नहि कऽ सकैत छल।
सिद्धांत आ व्यवहार मे भेद, सत्य आ मिथ्या मे भ्रम, रूढि़केँ धर्म मानव, दंभ, पाखण्ड, कृत्रिम आचरण, मूर्खतापूर्ण अहंकार, प्राचीनताक अंधभक्ति, अंधविश्वास इत्यादिक झोल जे तत्कालीन समाजकेँ विकृत कएने छल, तकरा अपन रचना मे व्यंग्य-वक्रोति आ हास्यक झाड़निसँ झाडि़ हरिमोहन बाबू समाजक आधार-विचारक स्वच्छता, निर्मल विवेक तथा सुसंस्कृतिकेँ प्रतिष्ठिïत करबाक आजीवन प्रयास करैत रहलाह।
अपन रचनाकेँ वास्तविक ओ उपयोगी बनयबाक हेतु हरिमोहन झा तर्क ओ वाक्ïपटुता, जाहि मे व्यंग्यक समावेश किछु विशेष स्तर धरि आकषर्णक सृष्टिï करबाक हेतु कएल गेल, ताहि आधार पर अपन लोकप्रियता अर्जित कयलनि। हुनक विचार एकांगी होयतहुं परिपक्व अछि, व्यंग्य-हास्यमंडित होयतहुं चहटगर अछि जाहि दिसि जनसामान्य बिनु कोनो प्रयासक स्वत: आकृष्टï भऽ जाइत अछि।

बुधवार, अगस्त 19

अपन विशाल बरामदा मे बैसल जाड़क रौद सेकति माता जी केर धियान एक-एक गमला के छूबति बाहर लॉन में लागल पेड़-पौधा पर अटकैत गेट पर अद्र्घवृत बनबैत बोगन बेलिया पर अवस्थित भऽ गेल छलन्हि ''माली आय-काल्हि किछु अनठबैत अछि, एक दू गोट पियर पात किलकारी मारैत फल सबहक बीच केहेन घिनौन लगैत छैक...माली के एक-दू झाड़ अवस्य लगैक चाही, सब काम चोर भऽ रहल अछि...माता जी अहाँक फोन, कियो रमनीकांत बाबूÓ सुरेस कहि जायत अछि, मुदा हुनक धियान फूल आ फूलक कियारी में ऐना ओझरायल छलैन्ह, जे ओ पता नहिं सुनलखिन्ह वा नहिं। सुरेश किछु कहि कऽ फोन राखि देलकन्हि।

फूल सँ हुनका नेने सँ बड़ प्रेम 'तैंÓ लोकवेद हुनका 'फूलदाईÓ कहऽ लगलन्हि। पिता केँ बड़का बंगला आ 'पुष्प प्रेम जेना हुनका विरासत मे भेट गेल छल। सासुरो के हवेली आ तामझामक कोनो कम नहिं। प्रवासी पति पर लक्ष्मी के बरदहस्त रहलैन्ह। आ हुनक सौख-मौज मे तिल बराबरि कमी नहि रहलन्हि। विगत के वैभव हुनक आँखि मे साकार भऽ उठलन्हि।

पोखरि.....माछ....मंदिर....। आब कोन धन्नासेठ सहरि मे राखि सकैत अछि। पहिलुका मौजे के परछोन नहिं अछि आजुक फार्म हाउस....मुदा केहेन गौरव सँ लोक एकर शान बघ रति अछि।

टॉमी...कू...कू...करैत हुनक पएर के नीचा आबि बैस रहलन्हि। अचानक हुनक धियान टामी आ चिकी पर गेलन्हि। पामेरियन चीकी, अलशेशियन टामी के कतेह दिक करैत छै...मुदा टामी अपन भलमनसाहत के परिचय दइत ओकरा क्षमा करि दैत छै। परस्पर वैर-गुण साहचर्यक कारणे विलुप्त भऽ गेल छै जेना।

टॉमी आय काल्हि किछु अस्वस्थ लागि रहल अछि...मौजीलाल के कहने रहथि मवेशी डाक्टर सँ देखबऽ लेल...कि कहलकै डाक्टर...किछु गप्प नहिं भऽ सकलै...डाक्टर ओतऽ सँ घुरति ओकर जेठका बेटा गेट पर ठाढ़ भेटलै, ओकर छोटका बेटा छत पर सँ खसि पड़ल छलऽ... आ ओ छुट्टी लऽ क तुरते विदा भऽ गेल छल। मौजेलाल...टामी...चिकी...के फाँदति...फेर हुनक धियान डालिया के बड़का फूल पर रमि गेलन्हि...हुनका अपन बगीचा ओतबे प्रिय लगैत छन्हि...जेना शाहजहाँ के अपन लालकिलाक दीवाने खास आ हुनक बस चलतन्हि तऽ ओहो.....एकर चारू कात लिखबा दैतथि... ''जौं धरती पर कत्तो स्वर्ग थिक...तऽ ओ एतऽ थीक...एतऽ थिक...एत्ते थीक मुदा एक कात मिस्टर सेठी क बंगला आ दोसर कात देशपांडे के पंचसितारा होटल...अपन भावना के मोनक कोनो कोन मे दफना कऽ ओ उदास भऽ जाइत छथि। आब ओ दिन कहाँ एखन सब पैसा वाला राजे थीक।

... माताजी कियो रमणीकांत बाबू...तीन दिन सँ फोन कऽ रहल छथि...कहति छथि जे बड़ जरूरी काज छैन्ह...मेम साहेब सँ बात करताह...अपने हरिद्वार गेल रही... फेर मंदिर... सत्संग...आय अपने पूजा...ÓÓ सुरेश अखन अपन गप्प खत्तमो नहिं केने छल...कि... गेट पर एक गोट कारी मर्सिडिज रूकलै... अत्याधुनिक सूट मे सुसञ्ञित पुरूष एक संभ्रांत वृद्घा संग गेट सँ होइत बरामदा मे एलाह।

ड्राइंग रूम मे सुरेश बैसबै छन्हि... रमणी कान्त बाबू आ हुनक माए....माताजी प्रणाम कएलन्हि! ''कतेक बेर फोन कयलहु मुदा अपनेक व्यस्तताक कारणे वार्तालाप नहिं भऽ सकल इम्हर अहि होटल मे हमर एकटा मीटिंग छल... तऽ सोचलहु जे एक पंथ दू काज भऽ जाइत बिन पूर्व अनुमति के उपस्थित भेलहु क्षमाप्रार्थी छी...ÓÓ रमणीकांत बाबू बड़ दुनियादार... बाजऽ मे निपुण व्यक्ति लगलाह।

''अयबाक विशेष प्रयोजन अपनेक पुत्रक प्रति... हमर कन्या...ÓÓ अपन कन्याक वर्णन मे सबटा विशेषण... उपमा के प्रयोग करैत ऐना... नख-शिख वर्णन मे लागल छलाह... जेना... कोनो चित्रकार अपन अमर कृति के बखानति ओकरा कला पारखीक समक्ष उपस्थित केने होय।

एक बागि ओ चुप भऽ गेला किंस्यात हुनका माताजी केर चुप्पी अखरऽ लगलन्हि... आब हुनक वृद्घ जननीकेर बारी छलन्हि ''हमर पौत्री मे लक्षमी आ सरस्वतीक अपूर्व संगम... व्यवस्थाक कोनो प्रश्रे नहिं जतेक चाही... जतह कहू हम विवाह लेल प्रस्तुत भऽ जायब... एक बेर.... देखि लैतिए...हमर पोती अंधेरिया मे पूर्णिमाक चान सन्ï थीक.... बूढ़ी देखैए में बूढ़... बकलेल सन्ï लागैत छलिह......मुदा बाजऽ मे......किंस्यात धनक घमंड होयतन्हि... नव धन तऽ नहिं छन्हि?ÓÓ

माता जी किछु सोचति वृद्घा के तकैत रहलीह सुरेस अहि बीच मे चाय-नाश्ता राखि गेल छल। अहाँक अपने कोन कम्मी थीक... मुदा तैयो... बेटी वला तऽ।

''बेस... अपनेक गाम भोज पड़ोल भेल?ÓÓ

बूढ़ी खुश भऽ गेली ''हँ ऽऽऽÓÓ मुदा रमण्ीकांत बाबू किछु क्षुब्ध सन लगैत बजलाह... आब गाम-ताम सँ केकरा मतलब छै... के रहैत अछि गाम पर... आब तऽ दिल्लीवासी भेलहु... एखने जर्मनी, हालैंड आ इंगलैंड केँ टूर लगाकऽ आबि रहल छी, कतऽ सँ कतऽ जा रहल अछि ई विश्व आ एकटा अपन देश... जेना धूप में सूतल घोंघा... थाइलैंड एहेन छोट देश... ओहो... इंडिया सँ हजार गुणा निक। कोनो डिपार्टमेंटल स्टोर मे जाऊ। कत्तबो देर घूमू... किछु खरिदारी नहियों करू तखनो ओ सब किछ नहिं कहत। विंडोशॅापिंग के इज्जत छै, ओकर कहना छै, जे आय लोक समान देखऽ आयल अछि... काल्हि पैसा हेतै तऽ खरीदारी करत... दोस्त के कहत्तै... एक प्रकार सँ ओहो कस्टमर भेल... आ एतऽ इंडिया मे... दू सँ तीन चीजक दाम पूछू तऽ दुकानदार कहत... भैया ये तेरे वश की चीज नहीं। टाइम खराब करता है...ÓÓ

''मुदा भारत मे रहबाक अपन सुख छै... हम तऽ किन्नो विदेश मे नहिं बसब...ÓÓ माताजी हुनक गप्प बीचे मे काटि कऽ बजलहि... ''एतऽ के संस्कार आ जाति प्रथा, जीवैत इतिहास छैक... तखन नै... सौ बरख पहिने कैरेबियन देश त्रिनिडाड गेल भारतीय मजदूरवंशज कनिए प्रयासक बाद एतऽ खोजि निकाललक अपन, जडि़... मूल बीज... वासुदेव पांडेय... ओहि पाश्चात्य देश में जनम आ परवरिश पाबिओ कऽ भारत मे अपन जडि़ ढूढ़ऽ लेल तड़पि उठलाह।ÓÓ माताजी के हृदयक आक्रोश शब्द मे परिलक्षित भऽ उठलन्हि भोज पड़ोल क रमणीकांत नाम हुनका विगत पैंतालिस परख पाछाँ... अतीत मे धकेल देलकन्हि... घटना बड़ पुरान... मुदा... बूढ़ पुरान कÓ स्मृति मे ओ अखनो जीवित प्राय: अछि।

ओ एक गोट दुर्गापूजा क तातिल छल जाहि मे ओ गाम गेल छलथि। मिडिल स्कूल मे छलीह... चौथा मे... आÓ छठि धरि रहबाक खुशी मे हुनक हम उम्र सोनिया संगी बनि गेलन्हि। गामक प्रथानुसार ओकर विवाहक लेल हरपुर वाली काकी कहिया सँ पेटकुनिया दऽ देने रहथि। पिता परदेश मे कत्तौ विवाह केने रहै... गाम सँ कनि फराक हुनक मँडई। दादी कहैथ... नितांत... गरीब छथि ई लोक... मुदा बड़ भलमानस। हरपुरवाली के नूआ मे चप्पी ततेक रहैन्ह जे ककरा फुर्सत के गिनत... मुदा बोली एहेन मधुर जेना मौध।

दुर्गे स्थान मे सोनिया हुनका कहने छलन्हि भोज पड़ोल के सुमिरन बाबू कत्तो कलकत्ता में भनसियाक काज करैत छन्हि, हिनकर पुत्र रमणीकांत सँ ओकर विवाह लागि रहल अछि।

ओकरा बाद ओ पुन: शहर आबि गामक सोनिया के बिसरि अध्ययन मे लागि गेल छलथि... तीन बरखक बाद... दादी एकादशीक यज्ञ कऽ रहल छलीह... सब कियो जूटलै...।

भोरे भोर नींद टूटल, दादी के आवाज सँ, राम। राम। ताहि लेल लोक कहैत छै जे बेटी कँ जनमें नहिं डराय, बेटीक करमे डराय... की भेलऽ दाय...?ÓÓ ओ हड़बड़ा कऽ उठल छलीह...

''सोनिया के माए दादी के पएर पकडि़ कोढि़ फाडि़ कऽ कनैत छलहि... ओ भोजपड़ोल वला... वरक बाप... पैसा कÓ लोभ मे बेटाक विवाह... कत्तौ अनतऽ चाहैत छल...आ। दू... सौ... टाका... अपना दिस सँ दऽ कÓ दादी सोनियाक कन्यादान करौने छलीह... दाय कहैत... मोज-पड़ोल वला कुटूम बड़ नंगट। चतुर्थीए मे घीना देलकै... सायकिल लऽ रूसल... कहुतऽ घर नै घरारी... आब ओकरा घड़ी चाही...ÓÓ सोनिया के बड़ दुख दैत छै... सासो ससूर तैहने छै... चिन्ता सँ सुखा कऽ गोइठा भऽ गेलऽ छौड़ी।

... किछु दिनक बाद दादी कहलीह... ''सोनिया मरि गेलऽ... साँप काटि लेलकै... बोन मे...।ÓÓ के देखऽ गेलऽ की भेलऽ? कियो कहे माहूर खूआ कऽ मारि देलकै।

भाग्य रमणीकांत बाबू के खूब संग देलकैन्हि... सरस्वती अपन दूनू हाथ सँ कृपा लुटबति हुनका उन्नति के रास्ता पÓ बढ़बति गेलीह... पाय-पाय के लेल तरसल... रमणीकांत बाबू पाय के ईश्वर मानि लेलाह... धन सँ घर भरि गेलन्हि... अतीत सँ ओ वत्र्तमान मे, रमणीकांत बाबूक आवाज सूनि आबि गेलीह।

''हमर जेठ दामाद सेहो डाक्टर छथि... बेटी दामाद दूनू के हम अमेरिका पठा देने छी... आ 'हिनको हम एतऽ थोड़े रह देबन्हि... अमेरिका मे कि शान छै... डाक्टर के ... तऽ अपने... किछु बजलीए नहिं...ÓÓ हम एहीं मौन के स्वीकृति बुझु की ओ हँसला...

''हमरा तऽ उच्च खानदान के सुशील कन्या चाही चारिटा वस्त्र मे...ÓÓ

...रमणीबाबू अपन माएक संग माथ झुकौने जा रहल छथि... आÓ बूझि पड़ल जे वर्षो पहिने सत्त वा फुसि जे साँप सोनिया के कटने हेतैक, आए हुनक चेहरा विषाक्त कऽ देलकैन्ह...। सोनिया के प्रति कएल गेल अत्याचारक जवाब माँगऽ लेल समय जेना अपन आँखि खोलि देलेकै।

—डा. कामिनी कामायनी

सोमवार, अगस्त 17

फु रसत

मकरा जाल बुनैत अछि फुरसत मे

ओ करैत अछि निढाल फुरसत मे

कथी लेल पूछैत छथि वो हमरा सँ

एहन-ओहन सवाल फुरसत मे

लोक नीक जकां देख लिअए हमरा

अपना कें घर सँ निकालि फुरसत मे

लूटि लिअए हमर परछाईं हमरा

नहि त रहि जायत कचोट फुरसत मे

जिनक ठोर पर मुस्की छैन्हि

पूछिओन हुनक हाल फुरसत मे

फेर ककरो सम्हारब नहि

पहिने अपना कें सम्हारी फुरसत मे

धारक कात मे बैसि कय अहां

एना नहिं पानि उछेहु फुरसत मे।

गुरुवार, अगस्त 13

अपराध आवश्यकता भऽ गिया है समाज का

अखबार पढि़ मोन ऊबिया गेल छल। खाली अपराधेक खबरि सँ भरल रहैत अछि आबक अखबार। राजधानी पटना हो वा जिला मुख्यालय वा पंचायत अथवा गाम-घरक समाचार विकासक नाम पर अपराधेटा के ग्राफ लगातार बढि़ रहल अछि। हत्या, अपहरण, लूट, बलात्कार वा, अन्य छोटा-पैघ घटना-दुर्घटना, समाचारक नाम पर एत्तबे पढ़बा मे अबैत अछि। मिथिलांचलक आवो-हवा सेहो कत्तेक बदलि गेल अछि? शान्तप्रिय मिथिलांचल कत्तेक असुरक्षित आ अशांत भऽ गेल अछि! घर सँ एक बेर निकललाक बाद फेरो सुरक्षित आ साबूत घुरि आयब, ताहु पर शंका रहय लागल अछि। ओना आब लोक घरो मे कत्तेक सुरक्षित रहि गेल अछि? ओना सच पुछु तऽ आब अखबार मथदुखीक बड़का कारण बनि रहल अछि। जौं मटरु कामति एखन रहितथि तँ हुनके गप्प सऽ एहि मथदुखी सँ पार पबितौं, सोचिते रही कि, ......'आऊ-आऊ बड्ड लम्बा ओरदा अछि अहाँके,Ó हर्षित मोने स्वागत कएलन्हि मटरु कामति के।
'कहू मटरु कामतिजी, की हाल-चाल ? आई भोरे-भोरे किम्हर सँÓ......'ग्यारह बाजि गेलै सरकार, भोर नहि छैक।Ó परिचित अंदाज मे कटाक्ष कएलाह मटरु कामति। समय दिस धियान जाइत स्वयमï् लजा गेलहुँ। अखबारी खबरि केँ सहारा लैत समाज मे बढ़ैत अपराध के विषय बनेलहुँ मुदा ओ निरपेक्ष भावे बजलाह, 'एहि मे चिन्ता बला तऽ कोनो बात नहि छैक, अपितु हमरा सभके तऽ प्रसन्न होयबाक चाही जे आब मिथिलो मे बीर रस के प्रधानता भेल जा रहल अछि। मिथिला के पहचान पौराणिक काल सँ आइधरि दोसरे कारण सँ रहल अछि, किन्तु आब ई क्षेत्र वीर भूमिक रूप मे सेहो तेजी सऽ अपन पहचान आ ख्याति अर्जित कऽ रहल अछि। अहाँ अनेरे फिरेशान भऽ रहल छी सरकार, ई तऽ परम हर्खक विषय अछि।Ó 'मुदा अपराध केर बीरता सँ कोन सम्बन्ध? हत्या, लूट, अपहरण, बलात्कार-की यैह थिक बीरताक परिभाषाï?Ó हम तर्क रखलयैन्हि। मटरु कामति तपाक सऽ बजलाह, 'मोसहरीक फट्टïा लऽ रणक्षेत्र जयबा सँ तऽ नीके स्थिति अछि ने। आब तऽ नेनो-भुटका असलाह आ बम-बारुद सँ लैस रहैत अछि। आ ई बीरता-धीरताक परिभाषाक गप्पे छोड़ू। ई परिभाषा शब्द बहुत सोभितगर आवरण मे रहैत अछि हरदम, खासकऽ सामाजिक राजनीतिक परिपेक्ष्य मे। 'शहीदÓ आ 'हलाकÓ दुनुक अर्थ, सन्दर्भ, प्रयोजन कमोवेश एक्के अछि, पर्याये तऽ थिक मुदा परिभाषा शब्द एक केँ महिमामंडित करैत अछि तऽ दोसर केँ? वस्तुत: दुनु हत्या तऽ थिक। कोनो व्यक्ति के जान जायत अछि आ समाजशास्त्री 'परिभाषाÓ सेँ जेना मृत्यु के फराक करबाक प्रयास करैत छथि। हिटलर आ स्तालीन समान रूप सेँ हजारों निर्दोषक हत्यारा छल परंच ''परिभाषा मे तऽ हिटलर खलनायक घोषित कएल गेल मुदा स्तालीन? यदि राम-रावण युद्ध मे रावणक विजय भेल रहितै वा कौरव-पाडंवक महाभारत मे पांडव पराजित होयतथि तऽ कि 'अधर्म पर धर्मक विजयÓ एहि रुपि मे परिभाषित होयतै जाहि अर्थ आ सन्दर्भ मे एखन मान्य आ प्रचलित अछि?ÓÓ
एखन हम तर्क-वितर्कक पक्ष मे नहि रही तैं समर्पण करैव कहलयन्हि, ''अहाँ बात कतअ लऽ गेलहुँ हम तऽ मिथिला मे बढ़ैत अपराध पर गप्प करैत छी। जौं यैह स्थिति रहत तऽ समाज कतअ जायत? नब पीढ़ी जेना अपराधक प्रभामंडल सँ आकर्षित भऽ रहल अछि ओ क्षेत्र-संस्कृति सब लेल खतरनाक अछि। भविष्य तऽ अन्धकारमय देखा रहल अछि।ÓÓ ''अहाँ तऽ बेकारे नकारात्मक सोच रखैत छी हमरा तऽ स्थिति विकासक लेल बहुत उपयुक्त बुझना जा रहल अछि। आ भविष्य तऽ बहुत उज्ज्वल देखबा मे आबि रहला अछि। अहाँ अपन चश्मा बदलु सरकार।ÓÓ ''मुदा.....ÓÓ ''कोनो मुदा-जुहा नहि, छुच्छें बजैत कण्ठ सुखा गेल अछि। की चीनी वा चाहक पती सधल अछि, दोकान सँ मंग बऽ पड़त?ÓÓ मटरु कामति चायक माँग अपन चिर-परिचित हास्य-व्यंगक अंदाज मे कएला।
चाहक लेल अँगना मे कहि विस्मय सँ पूछलयन्हि, ''ऑय यौ मटरु कामति, अहाँ तऽ हमेशा राजनीतिक सामाजिक बुराई के विरोध मे बिगुल फुकैत रहैत छी, मुदा मिथिला मे बढ़ैत अपराध पर अहाँ, चुप्पे रहलहुँ अछि, ऐना किएक?ÓÓ ''विरोधक तऽ बुराईक होयबाक चाही ने, अपराध मे कोन बुराई छ? अपराध, युद्ध, विध्वंश ई सभ त विकासक सोपान अछि, सूचक अछि विकासक। की विकासोक विरोध होयबाक चाही? जड़ समाज चाहैत छी की अपने लोकनि? अपराध विकसीत आ विकासशील समाजक उध्र्वोगामी सूचकांक अछि। दुनियाक सबसँ विकसीत देश मे सर्वाधिक अपराध होइत अछि। राष्टï्रीय राजधानी दिल्ली आ देशक व्यवसायिक राजधानी मुम्बई हो वा पूर्व राजधानी कोलकाता कत्तअ नहि होयत छैक अपराध? तैं कि ओ शहर विकसीत नहि अछि? एकर तुलना मे की छैक अपराधक संख्या मिथिला मे? घुमि कऽ देखि लिऔ कोन जगह बेसी विकसीत छै? झूठे अहाँ अपराध-अपराध करैत छी महाराजÓÓ बमकि के बजलाह मटरु कामति।
तावत चाय आबि गेल। चुस्की लैत हम कहलयन्हि, 'शान्तिप्रिय मिथिला सभ दिन सँ अपन विद्वता, अध्यात्म आ कर्मकांड लेल प्रसिद्ध रहल। याज्ञवाल्वय, जनक.....Ó बीचे मे ओ बजलाह 'अहाँ तऽ प्रागैतिहासिक कालक गप्पे नहि करु।Ó ''अच्छा, तऽ मंडन मिश्र, अयाची मिश्र, विद्यापतिÓÓ....''तऽ की कऽ लिये ई सभ आ बदला मे समाज की दिया ओहि भलमानुष सभ केँ? ककरो घर-घराड़ी डीहो का पता है किसीको? झूठे सबका नाम लेते फिरते हैं मुदा ककरो घर-घराइन, डीह-डाबर, हुनका सभक वंशबला लोको का पता है आ जौं पता है तऽ उसकोÓ सिर्फ पुरुखा के नामÓ पर समाज कितना आदर दे रहा है? भारत मे मुगलवंशका शासने था, कहाँ है उसका उत्तराधिकारी सभ? महाराणा प्रताप के बंश मे कौन बचा है, कहाँ है, की करता है किसको फुरसत है मथदुक्खी का? अरे, मिथिला मे तऽ सभ गप्पीए सब भरा है लेकिन गोनू झा का गाम-ठाम और हुनकर खरूहान के बारे मे अहीं कनि जानकारी दिअ ने? आदर्श आ उपदेश छाँटना बहुत आसान होता है सरकार, हम सभ आदर्श आ अतीत मे जीते हैं, ई जड़ समाज का सबसे बड़ा लक्षण है।Ó एक्के साँस मे बाजि गेलाह मटरु कामति। हम गौर कैल जे चाय पीलाक बाद आ हरदम जोश मे आबि जायत छथि। तथापि अपन तर्क रखैत कहलयन्हि, 'ओ सभ अपन कृत्तित्व सँ अमरत्व के प्राप्त कऽ लेलाह। धरोहरि बनि गेल छथि समाजक। क्षेत्रीय आ सांस्कृतिक पहचान आ गौरव बनि गेल छथि। मिथिला मां सरस्वती आ शक्तिक भूमि थिक। एहिठाम हजारो विभूति भेलाह अछि आ एखनो छथि ऐहन महान भूमि पर, माय मैथिलीक गृह-प्रदेश मे अपराध लेल कोन जगह? एहि सँ तऽ क्षेत्रक समस्त ऐतिहासिक, धार्मिक, सांस्कृतिक आ सामाजिक ढाँचा गड़बड़ा रहल अछि। पहचान आ अस्तित्वक संकट उत्पन्न भऽ गेल अछि।Ó तमाखू के चून लगाबैत आ कनि मुस्कियाइत मटरु कामति बजलाह, 'अहाँ भाषण नीक दऽ सकैत छी सरकार, मगर सिर्फ भाषण सँ राशनक जुगाड़ आजुक युग मे सहज नहि रहि गेल अछि। एहि लेल कर्म करए पड़ैत छैक। आ गीता मे कर्म पर भगवान श्री कृष्णक उदï्गार तऽ बिसरल नहिए होयबै। गीताक सार छैक जे समय परिवर्तनशील छैक। युग परिवर्तनक संग-संग समय- परिस्थिति, सामाजिक, सांस्कृतिक राजनीतिक प्रतिमान सेहो बदलैत अछि। हमहुँ सभ नव परिवर्तन, नवयुगक नव प्रतिमानेक अनुसार जीबाक अभ्यस्त भऽ जाय तऽ कोनो संकट नहि अछि। समस्त प्रतिमान समय-सापेक्ष होइत अछि। सीता मैया तऽ आदर्श पत्नि थी, सुख-दुख मे पतिक संग रहलीह, अग्नि परीक्षा सेहो दी मुदा पति ने फिर भी बनवास दे दिया। जौं हुनकर भाय वा नैहर मे कोनो 'हीरोÓ रहता तऽ सीधे पहुँच जाता राम के पास, कनपट्टïी पर रखितै पिस्टल आ गर्दनि पर छुरा तखन राम केँ बुझि पडि़तन्हि। मुदा हुनका तऽ ऐहन डरे नहि छलन्हि। आई कियो सोचै ने ऐहन गप्प? शक्ति स्थली मे शक्ति-पूजन, ओकर अभ्युदय केँ कोना खराब कहैत छिएैक अहोँ? घर मे एगो 'हीरोÓ बनाइए फिर देखियौ समाज मे कोना आपका मान बढि़ जाता है। समाज मे तूती बाजेगा, लोक डराएगा, धन-संपत्ति, खेत-पथार सभ सुरक्षित भऽ जाएगा। बेटा दू-चारि खून कर देगा तऽ ओकर एम पी एमएलए बनना तो तये है, तहन सोचिये कतेक रुतबा बढ़ेगा। मात्र सरस्वती का आराधना करने से ही बेरोजगारी बढि़ गिया है, मुँह आ हाथका फासला बढि़ गिया है। शक्ति उपासना से बेरोजगारी का संकटो तऽ दूर होता है, एहि दिशा मे ठंढ़ा मोन सँ निरपेक्ष भावे सोचिएगा कभी।Ó कहि खैनी ठोर तऽर राखि लेलाह मटरु कामति।
हम प्रतिवाद करैत कहलयन्हि, 'जौं ओ दु-चारि खून करत तऽ अपने कतेक सुरक्षित रहि जायत? पुलिस आ विरोधी खेमाक गोली सँ कतेक दिन बचल रहत? आओर जौं यैह संस्कृति समाज मे स्वीकार्य भऽ जायत तऽ समाजक की होयतैक, घर-घर विधवा बचतीह तहन कि समाजक अस्तित्व रहि सकत?Ó 'ओनाहु कतेक सुरक्षित अछि आई लोक हत्या आ अपहरणक सर्वाधिक शिकार वैह होइत अछि जे अपराध वा बन्दूक संस्कृति सँ दूर शान्तिपूर्ण जीवन जीबअ चाहैत अछि। कोनो अपराधीक, चोर-डाकू केँ घर मे चोरी-डकैतीक घटना सुनलियैक अछि? पाकेटमारक जेबी सबसँ बेसी सुरक्षित रहैत छैक। पुलिस आ प्रशासनो ओकरे सभक संग दैत छैक। ओकर वर्चस्व आ दबदबा चारुकात पसरल रहैत छैक।Ó खैनीक पीक फेकैत फेरो जोशा गेला मटरु कामति, 'देखते नहि हैं, अपराधी सभ बड़का भीआईपी बनि जाता है और पुलिस बला ओकरा सलामी ठोकते नहीं थकता है। ओकरा सभके स्वागत आ सुरक्षा मे पूरा महकमा बेहाल रहता है। ट्रांस्फर, पोस्टिंग आ प्रोमोशन लेल एहने लोक लाग लाइन लगता है। आइएएस, आइपीएस सब फेल है उसके आगे। चल-अचल सम्पत्ति का तो कमिए नहि रहता है। देश का कानून बनाता और बदलता रहता है। बिना पढ़े-लिखे सबटा महत्वपूर्ण निर्णय का भागीदार होता है। आब तऽ पढ़ल-लिखल फर्राटेदार अंग्रेजी बाजनेवाला सभ भी इस लाइन मे स्कोप आ कैरियर देखने लगा है। और एकटा बात कहिए सरकार,Ó 'नेता, व्यापारी, अधिकारी, शिक्षाविदï्, कलाकार, कलमकार, ठीकेदार के अपराधी नहि है? सभ अपन स्वार्थ आ लोलुपत्ता मे अंधा है। ककर पेट भरा है? चंचल लक्ष्मी को कैद करने के पीछा कियो ककरो लेल, देश-समाज लेल सोचता है? सब अमीर, बहुत अमीर सबसँ बेशी अमीर बनना चाहता है। अपने उदर-पूर्ति लेल लोक दोसर का गर्दनि काटने तैयार रहता है। फेर सरस्वतीयो का अराधना तो लक्ष्मीए प्राप्ति, उदर-पूर्तिए के लिए न किया जाता रहा है तो एहि शौर्ट-कौट लेल 'बाहु-पूजाÓ वा शक्ति प्रदर्शन मे की हर्जा है? छूच्छे सरस्वती पूजा से रोजगारक गारण्टी तऽ रहि नहि रहि गिया है लेकिन हथियार-पूजन से ककरो भूखे मरैत देखे हैं, बल्कि बेरोजगारी तऽ ओकरा लेल कवच कऽ काम करता है आ समाजशास्त्री लेल चिंतन, तर्क-वितर्क का। 'छ इंच छोटा करने वाला संस्थाÓ को तऽ सबटा पढ़ले-लिखले लोक का नेतृत्व है और ओ सभ इसको तार्किक बना देता है। पढ़-लिखकर, अफसर-बुद्विजीवी बनकर आदमी भलभनुष बन जाता है या कहिए कि उसका स्वांग करता है। परिणाम बिजली, पानी, सड़क से लेकर, शिक्षा जगत, छात्र का भविष्य सब कुछ चिन्तनीय हो गया है। अगर शक्ति का सहारा लिया जाय, सीधे बन्दूक-छुरा की भाषा मे बात किजीए जो सब ठीक भऽ सकता है। गाम के स्कूल-हास्पीटल मे मास्टर-डाक्टर दिखने लगेगा, बिजली कटौती वाला जब 'गर्दनि कटौतिÓ की स्थिति देखेगा तो विद्युत व्यवस्थो दुरुस्त हो जाएगा यानि मिथिला विकास की पटरी पर दौडऩे लगेगा। बुझे कि नहि बुझे सरकार! आश्चर्य है राजनीति का ठेकेदार इस आवश्यकता को बहुत पहले बुझि गिया था ऐहने 'कर्ण-अर्जुनÓ सभका सहारा लेता है चुनाव जीतने को पता नहि मूढ़ समाज कियों संशय मे है, इसको स्वीकारने मे हिचकिचाता है। आवश्यकता है जागरण का घर-घर मे जागृति का, आप लोक एहि जन-जागरण अभियान का हिस्सा बनिए और समाज आ क्षेत्र के विकास मे भागीदार बनिए। 'लगभग अंतिम निर्णय देलाह मटरू कामति। हम खिन्न मने कहलयन्हि,Ó 'अहाँक विचार सुनि बडï्ड दुख भेल जखन अहीं एहन लोक ऐहन विचार राखत....Ó 'तऽ की आप चाहते हैं कि हम जीवित नहीं रहें। अपराध के खिलाफ बोलकर कौन जान जोखिम मे लेता है? पुलिस आ प्रशासनों ओकरे पनाह देता है। हम बाल-बच्चावाला घुमन्तु जीव हूँ, बेटी का बियाहो करना है।
आज के युग का सीधा सिद्धान्त है अगर जीना है तो आँख-मुँह आ कान बन्द करके चुपचाप ल्हास जेकाँ जीविए, बेसी टाँय-टाँय करिएगा तो पता नहि कत्तअ पड़ल रहियेगा। पूरा समाजे नपुँसक बनि गिया है आ हमहुँ तऽ समाजे मे रहता हूँ।Ó ई कहि अचानक ठाढ़ भऽ गेलाह मटरू कामति, 'एखन चलै छी, फेर भेंट होयत।Ó पुन: अपन यायावरी डग उठबैत बिदा भेला मटरू कामति आ हमरा सामने अपराधक आँगा बेवश समाज, राजनीति, प्रशासन आ चुप्प रहवा लेल अभिशप्त आम आदमीक विवशताक सम्पूर्ण सच्चाई आ समाजक सर्मपणक दृश्य छोडि़ गेलाह। आखिर के बुझि सकत मटरू कामतिक विवशता केँ आ के सोचत एहि दिशा मे, सेहो कहिया धरि?

मंगलवार, अगस्त 11

गजल

मनोरथ छल बहुत दिन सँ अहाँ भेटि होइतहुँ।

सब कहइए अहाँ आब पैघ भऽ गेलहूँ॥

प्रेम केने रहि पहिनेहो जखन बुझल नहि छल।

एक बेर आब कÓ कऽ देखिलियौ सब बुझि जेबै॥

युवावस्था मे प्रेम कÓ कऽ देखलियौ।

सबटा बात पछिलुका पुरान भऽ जायत॥

जखन मुस्की नञि ऊरुज तकर बात किछु छल।

आब तÓ कारियो ठोरक लालीक बात किछु अछि॥

मÓन बहुत अऊनाइए अहाँके संग आबऽ लेल।

अहाँ छी वैह मुदा सब किछु बदलि गेल॥

एहिबेर हमर निहोरा मानि कऽ देखिलियौ।

सेहन्ता पूर भऽ जायत हमर मन कहइए॥

एकबेर अंत:पुर मे आबि कऽ देखि लियौ।

2

मारै मुस्की नञि एहन गुलबिया।

तोरा देखिते किदन हमरा भऽ जाइए॥

ऐना देखनै भोर, सांझ, दिन आ दुपहरिया।

तोरा देखितै किदन हमरा भऽ जाइए॥

कखनो तÓ दम धरै मन के कम करै।

एना जँ करबए तऽ भऽ जेबए रसिया॥

मारै ने .....

करइ छैं प्रेम नहि माखए तु कनखी।

करबए जँ प्रेम नहि कहि दे नै तु लटकी॥

मुदा-मुदा .....

सजि-धजि कऽ आ ने गुलबिया।

तोरा देखिते किदन हमरा भऽ जाइए॥

—सतीश चन्द्र झा

कतवा पैन में छी हम

हम सब कतवाक गरीब छी.....एकर अंदाजा गाम गेलाक बाद लागि सकैत अछि.....केहनो कमेनहार मात्र मास भरि गाम में रहि जाउ...त बुझि जेबै.....गेलाक एक सप्ताह तक त हम सब अपन कपड़ा धोवी सं धुआबैत छी....आ तकरा बाद यै कहैत छिए जे रह दिअउ.....दिल्लीए में आइरन करवा लेब........किएक त आई शहर सं बेसी महग गाम भ गेल अछि....कुनू नीक वस्तुक भेटव कठिन अछि.....कतवौ पैइ किएक ने अछि....इच्छित वस्तुक लिप्सा पूर्ण नै भ सकैत अछि......
.....जे कखनो काल एना बुझैत अछि जे....हम सब मात्र खैए के लेल जीबैत छी.......एक पूर्ण विवरण बरियाती में भेट सकैया.........जाहि में बरियाती के एक सांझ खुआवक चक्कर में कन्यागत सालों पाछू भ जैत छैथ.....कर्ज में डूबि जैत छथि.......इम्हर कुनू पहुन के कतवौक जरूरी किएक नै रहैन्ह....यदि हुनका कहि देल जै....जे छोड़ू आब आई कि जैब.....काल्हि बड़का भोरे निकलि जैब.....आय सांझ में हाट छी.....देखै छियै....जं किछु जोगार भ जै.....ओ बुझि जैत छथि.....आ यकीन मानू जे हुनकर मोन आगू-पाछू हुअ लगैत छन्हि....आ चलैत काल....चौक तक अबैत-अबैत त हुनकर प्रोग्राम एकदमे बदलि जैत छन्हि....आ ओ स्वयं इ बाजि पड़ैत छथि ...हे लेकिन हम निकलि जैतउं त नीक छल....अहि में भाषा एतवाक कमजोर रहैत अछि....जे अहां स्वतह बुझि सकैत छी....जे इ कहि रहल छैत जे....आब त रुकबे करब.....आ अहांक के आग्रह के परिणामस्वरुप अधमोनो मांछ किनैए पड़त........यैह हमर पहचान छी.........
- ओम प्रकाश झा

सोमवार, अगस्त 10

कि भऽ सकैत अछि पलायनक विकल्प?

मिथिला सँ देषक दोसर भाग मे पलायन दिनानुदिन बेसी भेल जा रहल अछि। संगहि इहो अपना जगह ध्रुव सत्य अछि जे एहि समास्याक समाधान एखनधरि नहि ताकल जा सकल अछि। आखिर कियैक? एहि असफलताक कारण कि अछि? एहि सँ पहिने कि एकर संभावित समाधान चर्चा कएल जाय ई जानल जरूरी बुझना जाइत अछि कि ओ कोन कारण अछि जाहि लअ कऽ मिथिला अपन पूर्ण जनषाक्ति के रहितो, षांत आ खुषहालीक वातावरण अछैते अप्पन एहि बदहाली पर नोर बहा रहल छथि। ई जननाय एहिओ दुआरे आवष्यक भऽ गेल जे पलायनक समस्या ओहन क्षेत्रक संगबहिना रहैत अछि जतय आतंकवाद, अराजकता आ अपराधक खूट्टा मजबूत रहैत छैक। कखनो काल ई ओहनो स्थिति मे देखल जा सकैत जतय भौगोलिक परिस्थित मनुक्खक लेल प्रतिकूल भऽ रहल होइन्हि। जेना कतओ-कतौ लोक सभ के सूखाड़, बाढ़ि, महामारी, अकाल, भूकंप समुही तूफान सन प्राकृतिक आपदा सँ जूझम पड़ैत छन्हि। जमीन किसानक समसँ महत्वपूर्ण आ मौलिक संपति होइत छेक, ताकिं रेगिस्तानी इलाका, उस्सर, पठारी वा पहाड़ी क्षेत्र क लोक भारी संखया मे अपन क्षेत्र सँ पलायन करैत छथि आ हिनका समय लेल पलायनक संथावना सब सँ बेसी बनल रहैत अछि। एकर आलावे सांप्रदायिक दंगा आओर लड़ाई सेहासे प्रवासक कारण बनैत अछि। लेकिन दुर्भागसवष एहि मे सँ कोनहुँ टा कारण मिथ्लिांचल मे नागि देखना जाइत अछि, परन्तु तइयो ई एहन यथार्थ अथ्छ जकरा कतियाओल नहिजा सकैत अछि।
1947 ई0 मे जखन भारत स्ताधीन भेल ओहि समय मिथिलाक आओर मोटा-मोटी पूरा बिहारक आर्थिक सामाजिक स्थिति देषक दोसर राज्य सँ विलग नहि छल। वस्तु स्थिति तँ ई अथ्द जे उपजाक खेत, षांतिपूर्ण मार्हाल आ खेती-बाड़ीक प्रति लोकक लगाव देखि ई कखनो ने बुझायल जे एहि क्षेत्रक विकासक संभावना आन क्षेत्र सँ कनिको कम अछि। दरिभंगा राजक छत्रछाया मे पलल पोसायल षोश्क सांमंती व्यवस्थाक निगानीक रूप मेद जमीन बैटवारा सरिपहुँ मुँह देखि मुँगबा पड़सव के याद कराबैत अछि। तइयो यदि सत्ता आओरे षासनक स्ताधीन प्रतिनिधि एहि क्षेत्रक विकासक लेल इमानदारी आ पूर्ण निश्ठाक संग काज करितथि तऽ कदापि आइ एहि स्थितिक दर्षन नहि होति। लेकिन ऐना न नहि भेलै। राजनीति में आ खास कय कऽ प्रातीय स्तरक राजनीति मे भश्टाचार, भाई भतीजावाय, चमचावाद, जेहन प्रतिगामी तत्वक आ षोश्ण, लूट खसोट ओ धोखाधड़ीक कादो मे ओझरायल हुनक अनुयायीक सेन्हमारी सतत् जारी रहला कालांतर मे इएह सेंन्हमारी जोरगर भऽ गेल आ सत्ता व नोकरषाहीक आपसी सौठ-गौठ एका व्यायक रूप दय देलकौ जँ कहियो कोनो विकासक योजना क गप्प उठालै, तऽ मिथ्ािला कें एहि सँ कात राखल गेला ताहिं ई कनिको आष्चर्मक गप्प नहि जे जहि हरित क्रांति सँ पंजाब-हरियाणा आओर दक्षिण भारतक राज्य सुब समृद्धिक पराकाश्ठा पर पहुँचि गेल ओहि हरित क्रांति सँ मिथिला केें कतिया देल गेल।
एहि मे कोनो दुमत नहि जे कहियो काल विकासक नाम पर सरकारी सहायता राषि आ अनुदान आवैत रहल लेकिन मंत्री आ सरकारी पदाािकारी- सऽ लअ कऽ ग्रामसेवक आ पंचायत प्रमुख धरिएकरा पचाबय वालाक पौति एतेक ने नम्हगर छन्हि जे ई राषि आ अनुदान गन्तव्य पहुचवा सँ पहिने सधि जाइत छै। एहिक्षेत्रक जे राक्षा-छथि, मुदा तकनीकी कौषले दृश्टियें पिछड़ल छथि, ओ ओतेक साधन सम्पन्न नहि छथि जे छोटो-मोटो नौकरी पयवाक लेल तथाकथित अपन भविश्यनिर्माता के मुँहमाँगा ‘नजराना’ दय पाबथि। जे खेती-बाड़ी मे लागल छथि हुनका समय पर सिंचाई आ उच्चा गुणबन्ता वाला खादबीजय प्राति लहि होइत छन्हि। ई सम मिलि कऽ एहि क्षेत्रक लोककें ऐना ने कंुठित कय देलकैन्ह कि एहि आरापित दुव्यवस्था सँ लड़बाक वा एकर कुनु ठोस का सार्थक विकल्प तकबाक सामथ्र्य गैवा चुकल छथि। आओर अपन गाम-धर सँ सेकड़ो मील कतओ अनगुहार जगह मे गुमनामीक यंत्रणापूर्ण जीवनप लेल बाध्य भऽ जाइत छथि। जनषक्तिक ई क्षति अपूरणीय अछि, जकर कारणें एहि क्षेत्रक उत्पादकता मे असाधारण हास भेल अहि, ओ जीवन स्तर मे गिरावट आयल अछि।
जदि मिथिला मे व्यवस्थित ढंग सँ माह पालन कएल जाए, एहि दृश्टि सँ एहिठाम उपलब्ध पोखरि, नदी समय उपयोग कएल जाए, उनत आ आमदनीक हिसाबे श्रेश्ठतर प्रजातिक माद्यक पालन षुरू कएल जाय संगहि आनूर्तिक उपसुक्त व्यवस्था विकसित कय लेल जाए तऽ स्ािानीय लोक कें आन ठाम जाम जी विकायार्जन के साधन नही ताकय पड़तैन्ह।
नकदी फसल:- कृश्कि क्ष्ेात्र मे नकदी फसल पैदावार आई काल्हिं किषेश् रूप सँ लायदायक सिऋ भऽ रहल अछि। एहिक लेल पैघ स्तर पर श्रमषक्तिक आवष्ययकता होइत अछि, जे एहि क्षेत्र मे सहजता सँ उपलब्ध भऽ जाइत सरकारी आ स्तयंसेवी संस्था व अमिकरण पहल द्वारा एकरा योजनाकह कएल जा सकैत अछि। आम, लीची, केला तम्बाकू, मिरचाई संगहि बांस, बबूल, षीषो, साबुआ आदि के आय आओ। रोजगारक एकय महत्वपूर्ण स्रोतक रूप में उपयोग रूप में उपयोग कएल जा सकैत अछि।
पषुपालन संगहि दुग्ध-उत्पादन:- पषुपालनक संगहि दुग्ध-उत्पादन रोजगारक एकय दोसर क्षेत्र अछि। मिथिला मे परती-परौत आओर सार्वजनिक उपयोगक जामीनक कोनो कमी नही अथ्द, एहि ठाम सँ माल-जालक लेल चाराक व्यवरूथा सहजहि भऽ सकैत अछि। जदि वैज्ञानिक तौर-तरीका कें अपनाओल जाय आ जरसी जकाँ अधिक दूध देवयवाली माल जाल क पालन-पोश्ण पर ध्यान देल जाय तऽ लोकक जीवन स्तर उठि सकैत छन्हि संगहि पालायनक संभावना में कमी आवि सकैत अछि।
कुटीर उद्योग:- कुटीर उद्योग कोनहुँ क्षेत्रक आर्थिक दषाकें तय करवा में महत्वपूर्ण भूमिका निभवैत अछि। एहि दृश्टि सँ हरेक घर के एकता छोट-माट कारखानाक रूप देल जा सकैत अछि, जतय सतू, पापड़, दालमो, अमाट, अचार, अदौड़ी दनौड़ी जेहन नित्य उपयोगक वस्तु-जातक उत्पादक कएल जा सकैत अछि। एहि सँ एकय आओर लाभ होयत जे एहि मे महिलाक श्रमषक्ति अपरिहार्य होयत। महिला मिथिलाक संपूर्ण श्रमषक्तिक ओहिअंषक प्रतीनिधित्व करैत छथि जिनका आमतौर पर चूल्हा चेकी मे ओझराय कऽ राखल जाइत छन्हि।
स्वरोजगार:- आईकाल्हिं सपरिवार प्रवासक प्रवृति दृश्टिगोचर होइत अछि। जँ महिला के हथकघा, कसलाई बुनाई कम्प्यूटर, केष सज्जा, वास्तुकला जकाँ विभिन प्रकार क शिस्य मे विषेष्ज्ञता आओ दक्षता दियेबाक लेल प्राषिक्षणक उचित व्यवस्था कएल जाय ऽ ओपरिवारक आर्थिक मेरूदंड सिद्ध भऽ सकैत छथि। ई महिला कल्याणक हरियें सेहो एकरा कएगर पहल सिद्ध होयत।
एहि समय आलाबे स्वरोजगारक आरो एहन उपय कारगर भ सकैत अछि जका माध्यमे प्रवासक दुखद होइत समयस्या पर आंकुष लगायल जाए। सरकारी आ गौर सरकारी उपाय तऽ आवष्यक अछिए संगहि स्ािानीय लोक मे व्यापक स्तर पर जाग्रति सेहो निहायत जरूरी अछि। मिथिलाक समग्र विकास मे एहिठामक लोकक सहभागिता सबसँ महत्वपूर्ण अछि, कियैक तऽ, जाधरि एहन नहि होयत, विकासक नाम पर लूटकाट आ बंदरबाट संगहि भ्रश्टाचारक साम्राज्य जस के तस रहत। एहि संदर्भ मे राजनैतिक मुख्यधारा मे लाबियोंआर दबाव समूहक औचित्य के सेहो बूझाल जा सकैत अछि, जे सकारात्मक विकासक दृश्टि सँ जनसाधारण आओ। जनप्रतिपिधिक मध्य संतुक काल कय सकैत अछि।


- सुभाष चन्द्र

शनिवार, अगस्त 8

किछु मोअन परल किछु बिसैर गेलौह


निरस जीवन निर्मल म®अन अछि,

तै‘ किछु छंद हम लि£ द¢ल©ं

कि कि लि£ु छ®रू कि सब,

किछु म®अन परल किछु बिसरि गेल©ंह


क¨न काज अछि कलम दवातकऽ, व्यर्थ कागतकऽ पन्न्ाा केर

परहब आ फ¢र बिसरि द¢ब, कवि कल्पना रचना केर ।।

भरल म®अन आ £ाली जेबी, स¢ह® नींचाँ फाटल अछि

जर-जर पेट घसल पाछु मे‘ऽ

सौसे चेफरी साटल अछि

पर लाख टका केर म¨अन हमर आइ

हम मैथिल पर लुटा देलौह

कि कि लिखु छोरू कि सब

किछु मोअन परल किछु बिसैर गेलौह


तंग हाल बेहाल गरिबकऽ

दुनियाँ अछि रंग बिरंगी

रोजी रोटी केर खोजय लेल

बनलौं हम फिरंगी

कखनौअ सोचि व्यर्थ जनम भेल

की करबैय दुनियाॅ मे‘

टुटल पंखा ड®ला रहल छी

सहजहि दुपहरिया मे‘

कनियाॅ कहलैन केहेन कमासुत

क®बरे घर में बुझा गेलौह

कि कि लिखु छोरू कि सब

किछु मोअन परल किछु बिसैर गेलौह


दिन रैत भरि करि परिश्रम

टप-टप घाम चुबय अछि

हारल-थाकल घर अबैत छि

सदहल न®अन रहैत अछि

घिया-पुता सब स्नेह सऽ दौगल

छाति सऽ चिपकैएऽ

हाय गरीबी फाटल जेबी

छुछ दुलार रहैएऽ

चिकन चुनमुन देह रहैत छल

हम काद® में लेटा गेल©ं

कि कि लिखु छोरू कि सब

किछु मोअन परल किछु बिसैर गेलौह


ल®क बजै छाथि गाम घर मे‘

छौड़ा एस करै छै

बिसैर गेल छैकऽ माय बाप केर

निशा खाऽ परल रहैत छै

दिल्ली के जे हाल-चाल छैक

एकटा दैईब जनैइत छथि

सपत खा कऽ हम कहैईत छी

व्यर्थ समाज क®सैइत छथि

देखि गामक ल®क के कखनौ

हम दोगही में नुका गेल©ं

कि कि लिखु छोरू कि सब

किछु मोअन परल किछु बिसैर गेलौह


नैंह बांॅचल अछि प्रेम स्नेह आ

बदलल ल®क समाज

निक बात ह® आ की अद्यला

ककरहु सऽ नै काज

तकरे भ¨गना भ®इग रहल छथि

जनिका बाबा केर बखारी

दिल्ली आ कलकत्ता जाकऽ

नैत करैय बेलदारी

दंग भेल छी देख समाज केर

लाज शर्म सऽ सुखा गेल©ं

कि कि लिखु छोरू कि सब

किछु मोअन परल किछु बिसैर गेलौह


शिक्षा के युग डेग-डेग पर

शिक्षित ककरा कहबैय

शिक्षित भऽ कऽ गुट बनाबथि

केकरा घर केर लुटबए

तिनके मान सम्मान ह¨इत छनि

हाय रे बदलैइत दुनियॅा

भु£ल पेट अहुरिया मारए

मारए दिन दुिख पेटकुनियाॅ

लिख सिलेट पर नाम गाम हम

अपनहि हाथ्® मेटा देल©ह

कि कि लिखु छोरू कि सब

किछु मोअन परल किछु बिसैर गेलौह


- संतोष मिश्रा

09650174462

शुक्रवार, अगस्त 7

केहन हो वियाह पश्चात वर-कनियाँक व्यवहार?

प्राय: वियाह सँ पूर्व वर-कनियाँक दर्जा पओनिहार युवक-युवतीक मन मे अपन वैवाहिक जीवनक प्रति विशेष कल्पना रहैत छैक। दूहू केँ लगैत छैक जे विवाहोपरांत जीवन साथी ओकर तमाम जरूरति केँ पूरा करत, ओकर ध्यान राखत आ दूहू केँ एक गोट सुखद जीवन जीवा लेल भेटल मुदा सदिखन वास्तविकता एहि सँ परे होइत अछि।

विवाहक पश्चात जखन वर-कनियाँक इच्छा मनोनुकूल पूरा नहि भऽ पबैत छैक, तऽ एक-दोसराक प्रति खीज, ईष्र्या आ गलत धारणा जन्म लऽ लैऽत अछि। परिणामस्वरूप वैवाहिक जीवन सुखमय होयबाक बजाय कष्टïकर भऽ जाइछ आ दाम्पत्य जीवनक आधार चरमराय लगैत अछि।

अतएव, आवश्यकता एहि बातक अछि जे वर-कनियाँ दूनू विवाह सँ पहिने एहि संबंधक बंधन केँ निर्वाह हेतु स्वस्थ मानसिकता बनाबथि। विवाहक बाद कोनो युवकक लेल अपन पत्नीक पति बनि जायब तऽ बहुत आसान अछि मुदा ओकर जरुरति, फरमाईश, पसंद आ चाहत केँ साकार कऽ पायब ततबे कठिन। ध्यान देबा योग्य अछि जे कोनो पतिक लेल पति पदक सार्थकता एहि बात पर बेसी निर्भर करैत अछि जे ओ अपन पत्नी केँ कतेक सम्मान आ महत्त्व दैऽत छथि।

वर-कनियाँक एक-दोसराक प्रति प्रेम-अनुरागक भाव राखब आ अपन जीवन साथीक गुणक तहेदिल सँ प्रशंसा करब दाम्पत्य जीवन मे मधुरता बनोने रखैत अछि। अक्सर पति-पत्नी अपन दोस्तक बजाय अपन जीवन संगीएक प्रति आक्रामक रुख रखैत छथि आ मित्रक समक्ष शिकवा-शिकायत करैत रहैत छथि, जे बिल्कुल गलत अछि।

वर-कनियाँ सदिखन ई चाहैत छथि जे हुनक जीवनसंगी बिना बतोने हुनकर जरुरति केँ बूझि जाथि। ई एक गोट एहन व्यावहारिक चाह अछि जे प्राय: पूरा नहिए भऽ पाबति अछि। फलस्वरूप शिकायत एवं गलतफहमी उपजब अवश्यंभावी अछि। भावनात्मक क्षोभ व्यक्त करबा सँ वर-कनियाँक बीच तनाव उत्पन्न होयबाक संग-संग घरक वातावरण अस्त-व्यस्त भऽ जाइत अछि।

जे वर-कनियाँ एक-दोसराक नीक संगी सेहो होइत छथि, ओ छोट-छोट गप्प केँ तूल देबाक बजाय ओकरा नजरि अंदाज कऽ देबहि श्रेयस्कर बुझैत छथि। ओहुना नीक दम्पत्ति ओएह कहाबैत छथि जे एक-दोसराक भावनाक सम्मान करथि। संकट मे एक-दोसराक संग दैऽथि आ जीवनसंगी केँ संतोष एवं सहाराक एहसास दियाबथि।

याद राखू, महिला मे प्रशंसा सुनबाक ललकि पुरुषक अपेक्षा बहुत बेसी होइत अछि। ओ अपन रूप-गुणक प्रशंसा सुनैत कखनो थकैत नहि छथि। ई हुनक चरित्रक सब सँ कमजोर बिन्दु अछि आ एकर फायदा अकसर पुरुष उठोबैत छथि। फेर इहो ध्यान रखबा योग्य अछि जे पति अकसर कारणवशहि शक करैत छथि। तेँ एकर गुंजाइश कम सँ कम होयबा लेल जरूरी अछि जे एक-दोसराक बीच स्पष्टïता बरकरार रहय।


—कल्पना 'प्रवीणÓ

चुप्पी

एक बेर हम गाम सं दिल्ली अबैत छलहुं............रास्ता में हमर जत सीट छल, ओतहि एकटा मुल्लाजी बैसल छलाह............ओ लगातार अखबार में मुड़ि गारने छलाह..........हम अपन स्वभावक अनुकुल अपना में मस्त रही............लेकिन समय वितावक खातिर इ इच्छा जरूर होइत छल जे जं किछु गप्प करितैथ त नीक लगितै..............किएक त ओहि ट्रेन में ओहि दिन संयोगवश भीड़ एकदमे कम छल...........मुगलसराय लग एक आदमी मुल्लाजी सं समय किछु अहि तरहे पुछलक...........ओ....ओ.... सा....हे.....ब.....क्या....टा...इ...म ....हु....आ....है...........ओ आदमी अपन तोतली भाषा में लगातार तीन चारि बेर मुल्ला जी सं समय पुछल...........लेकिन मुल्लाजी जवाब नै देलाह........अंत में ओ आदमी थाकि बैस गेल...........जहन ओ यात्रि उतरल त हम पुछलियैन्ह...........जे ऑ- साहब आपने उसे टाइम क्यों नहीं बताया..........त मुल्लाजी कहला...........आ....प.....भी.....खूब हैं..........सा....हि.....ब.............मु.......झे उ....स....से जू...ता....खा.....ना था क्या........हम मोने मन मुस्कुरा क पुनह अपन मैगजीनक पन्ना में हरैत सोच लगलहुं.......जे मुल्लाजी के दिमाग कतेक काज केलकैन्ह.............शायद तैं लोक कहैत छै........जे कतेको ठाम चुपी में कुशल होइत छै.............
- ओम प्रकाश

बुधवार, अगस्त 5

युगक बिहाडि़

... अग्निक ज्वाला प्रज्ज्वलित भऽ उठल रहैक। ... ठीक गदहबेरे मे ... लुकझुक करैत छलैक दिन आÓ संध्या ओकरा पछुअओने अबैत छलैक ...। किछुए समय आर बीतल हेतैक ताÓ रातिक आगमन भऽ गेल रहैक ... अन्हरिया राति रहैक ... घुप्प अन्हरिया ... जाड़क राति ... हार कँपाबऽ वला राति ... आÓ सेहो अमावसक ... हाथ-हाथ नहि सुझैत ...।
... सब अपन-अपन काज मे लागल छल। ... दिन भरि काज मे व्यस्त ... हाट-बाजार ... खेती पथारी ... पौनी पसारी ... नौकरी चाकरी ... मर-मोकदमा ... अस्पताल ओ थानाक चक्कर ... खैरातक खातिर अंचल-प्रखंडक दौड़ आÓ कि आस्तिक भक्त-वृंदक मंंदिरे-मंदिर भगवत्ï दर्शन-पूजन आदि ... भिन्न-भिन्न कार्य-व्यवसाय मे लागल ... एमहर-ओमहर जाइत-अबैत ... सर्वत्र चहल-पहल ... वातावरण मे शब्दक टोप-टहंकार जनता-जनार्दन श्रीमुख सँ निकलि चलैत-फिरैत लोको केँ आÓ कि जाड़ सँ कठुआइत घर मे दुबकलो केँ ध्यान-भंग करैत ...।
... 'भेनिटिलेटरÓ सँ धुआँ बाहर निकलि रहल छलैक। ... किएक ककरो ध्यान जइतैक ओहि दिशि? ... अनुमानो लगौने हैत तऽ यैह जे घर मे खेनाइ बनैत हेतैक ... आÓ भनसा-घरक धुआँ निकलैत हेतैक। ... ताहि दिन गैसक प्रचलन गाम मे तऽ नहिञे रहैक, जे ठामे-ठीम शहरो मे रहैक ... तेँ जारनिञे पर भानस होइक पक्को बला मकान मे...। कत्तउ-कत्तउ कुन्नी वला आÓ कि कोइला वला चूल्हा सँ सेहो गामो-घर मे लोक काज चलाबए ...।
... बगलक फरीक मे सऽ एक गोटे आने दिन जकाँ घरबैया सँ भेंटघाँट करऽ पहुँचला तऽ केबारी बंद देखलखिन आÓ धुआँ सँ बरंडा भरल पओलनि ... चिरचिराइन गंध से फराक ...। ... अकचका गेला ई व्यक्ति ... 'आखिर बात की छैक?Ó ... आन दिन रोहिणी भाई केबारी भिरओने हमर प्रतीक्षा करैत रहैत छला आÓ गप्प-सप्प भरि पोख होइत छलैक ... गाम-घरक गप्प ... खेत-खरिहानक गप्प ... मामिला-मोकदमाक गप्प ... इतिहास-पुराणक गप्प... राजनीति ओ युग-धर्मक गप्प ... आÓ ताही संगेँ चाह-पानी से भिन्ने ...। ... मुदा ... मुदा आइ ...?
... रोहिणी बाबू एकटा दस-बारह सालक छौंड़ा केँ रखने छला ... बड़ आज्ञाकारी रहनि ... वएह चाह-पान सँ लऽ कऽ खेनाइ जलखइ सब किछु बनबैत छलनि ... एकदम सऽ ट्रेंड छल ... खूब होशगर छल ...। ... पत्नीक परोक्ष भेलाक किछुए दिनक बाद एकरा रखने रहथि ... विश्वासपात्र सेहो अलबत्ते ... सब पर सदति ध्यान रखैत ... हरदम कोनो काज पड़ला पर प्रसन्न मुद्रा मे उपस्थित श्रीमान्ï ... नकारात्मक उत्तर देबाक आÓ कि मुँह धुआँकस सन करबाक जेना ई सर्वथा विरोधी रहल हो तहिना बुझाइक ...। ... इहो टुगरे छल ... नान्हि टा छल तखने माय-बाप दुनू संसार केँ तिलांजलि दऽ चुकल रहैक ... कहुना कऽ बहिन ओतऽ पोसाएल छल आÓ ओहिठाम सऽ रोहिणी बाबूक शरण मे आएल छल ... दुनू केँ एक दोसराक जरूरत छलैक से पूरा भेल रहैक ...।
... संदेह भेल रहनि रोहिणी भाईक भैयारी केँ ... पहिने तऽ ई जे बुढ़ापा छनि ... ठंढा बहुत छैक ... कतउ ठंढ़े तऽ ने मारि देने छनि ... अगियासी कऽ कऽ तकर उपचार करैत होथि ... आÓ कि घूर पजरबा कऽ मच्छर भगबैत होथि ...। ... लेकिन संदेह दूर भऽ गेल रहनि थोड़बे काल मे ... कारण केबाड़ कतबो पिटला पर जखन रोहिणी भाई केबाड़ नहि खोल लखिन तखन ई जोर सँ हाक लगओने छला—'पढ़ुआ कका ऽऽऽ ... पढ़ुआ कका ऽऽऽ ... कने दौडि़ कऽ आउ तऽ रोहिणी भाईक ओतऽऽ ...। ... पढ़ुआ कका दौड़ल रहथिन ... पाछाँ सऽ हुनकर बेटा-पोता आÓ अगल-बगलक लोक सभ सेहो। ... यावत ई लोकनि बरंडा पर पहुँचल रहथि तावत धरि आगिक धधरा बहुत तेज भऽ गेल रहैक आÓ सौंसे बरंडा धुएं-धुआं भऽ गल रहैक ...।
... कोनो उपाय नहि देखि केबाड़ी तोड़ल गेल ...। देखैत देरी सभक होश-हवाश उडि़ गेलैक ... 'ऐँ ई की? ऐना किएक? आखिर कारण की? ... एहेन सज्जन लोकक ई दुर्दशा किएक? ... एहन बुद्धियो किएक? ...Ó छौंड़ा के सेहो नहि देखैत छियैक ... ओहो कत्तऽ पतनुकाओन लेलक से नहि जानि ... कतउ ओकरे तऽ काज अछि ... मुदा, ओहो तऽ महा सज्जन अछि ... बेटो सँ बढि़ कऽ हिनकर सेवा कऽ रहल छनि ... तेँ ओकरा पर कोनो संदेहो करब पाप होएत ...।Ó ... एहिना भिन्न-भिन्न प्रकारक आएल गेल लोकक मुँह सँ 'कमेंटÓ निकलैत गेलैक।
... रोहिणी बाबूक स्थिति देखबा योग्य नहि छल ... अति दर्दनाक ... बीच पलंग पर बैसल ... तुराइ ओढऩे ... बिछाओन सऽ लऽ तुराइ धरि आगि पसरल ... आÓ अपने धू-धू कऽ जरैत ... 'ओह ...आह ...ओह ...आहÓक कराह ...। ... कराहबाक स्वर अनवरत ... बिना विरामक ... बिना विश्रामक ... कौमा ...फुलस्टॉप नहि ... छटपटाइत ... तड़पैत ... जेना-जेना देह झुलसत जाइत ... फंकुरियाएल जाइत ... सीझल जाइत ... जेना-जेना मृत्यु समीप अबैत जाइत ताही अनुपात-क्रम मे चीत्कार सेहो ... करुणाद्र्र स्वर ... असह्यï वेदनाक स्वर ... तीव्र ज्वालाक स्वर ... आÓ देखिते-देखैत पुन: पूर्णविराम सेहो भऽ गेलैक ... मोन कोनादन सभक भऽ गेल रहैक ... सभक हाथ-पैर हेरायल ... ककरो किछु ओहि क्षण मे फुराइक नहि ... सभक शक्ति जेना क्षीण भऽ गेल होइक ... सभक बुद्धि जेना एकाएक मन्द पडि़ गेल हो, तहिना बुझाइत रहलैक ...।
... भाई-भैयारी ... दर-दियाद आÓ आस-पड़ोस सँ दौड़ल बारहो वर्णक जमात आगि मिझएबाक अथक प्रयास करऽ लागल रहथि ... कहुना आगि पर नियंत्रण पाओल जाए ताहि लेल कोनो प्रकारक रास्ता बँचलैक नहि ... मुदा, आगिक लहरि देखि ... ओकर धधराक तेवर देखि ककरो ओकर समीप जएबाक साहसे नहि होइक ... जान केँ जोखिम मे देब रहैक ... एकक संगेँ कतेक जइतैक तकर ठेकान नहि ...।
... नवयुवक दल मे सऽ किछु गोटे साहस करैत आगाँ आगि सऽ लोहा लेबा लेल बढ़ल रहथि ... केओ बालू झोंकैत ... केओ बाल्टिये बाल्टी पानि ढारैत ... केओ रोहिणी बाबूक मकुआ लाठी सँ आगि लागल तुराइ केँ टारबाक प्रयास करैत ... परन्च इहो प्रयास बिफल रहलैक ... कारण देहक वस्त्रक संग लपेटल तुराइ आदि सभ किछु देहक अंग बनि सटि चुकल रहैक ... देहक अंग-अंग बरकि एकरा सभकेँ आत्मसात्ï कऽ नेने रहैक ... लगैक जेना अधिक जाड़ पडऩे तुराइ आÓ अग्नि दुनूक काज एक्के संग रोहिणी बाबू केँ पडि़ गेल छनि ... दोसर दिन लेल फेर किछु बचेबाक नहि रहबाक चाहियनि ... जे भोगि लेथि से भोगथु ... जतेक आगि तापि सकथु से तापथु ... जतेक गर्मी आनि सकथि से आनथु ... जतेक गरमा सकथि से गरमाथु ... नहि जानि ई अन्तज्र्वालाक प्रतिक्रिया छलन्हि आÓ कि बुढ़ापाजन्य मानसिकताक प्रतीक ...।
... देखिते-देखैत रोहिणी बाबूक शरीर भस्मीभूत भऽ गेल। ... डाक्टर-वैद्य सेहो नहि बजाओल जा सकल ... यावत धरि लोक दौड़-बढ़ा केलक तावत काण्ड समाप्त भऽ चुकल रहैक। ... आएल-गेल लोक एक-दोसरा दिशि विस्मयादिबोधक भाव लेने तकैत रहल ...। आगिक पसाही तेना कऽ लगलैक जे क्षणहिँ मे सुड्डïाह केने चलि गेलैक रोहिणी बाबू सन सम्भ्रान्त व्यक्ति केँ ...।
... आब गाम मे शेष रहि गेल छलैक रोहिणी बाबूक घर ... घर मे पड़ल पलंगक कात मे किरासन तेलक एकटा खाली डिब्बा ... खररल सलाइक दू-तीन टा काठी ... आÓ आश्रमक किछु वस्तुजात सभ ... छिडिय़ाएल यत्र-तत्र ... अस्त-व्यस्त भेल ... आÓ हिनकर आज्ञाकारी छौंड़ा, जे जाड़क कारणेँ कठुआएल साँझे राति ओढऩा-तोढऩा ओढि़ सुजनी पर मुँह झाँपि घसमोरने बगलक कोठली मे पड़ल छल आÓ आँखि लागि गेल छलैक ... एकरा कोनो सुधि-बुधि नहि ... घटनाक कोनो सूचना नहि ... कोनो प्रज्ञा नहि ...।
... जनी जाति सऽ लऽ पुरुष-पात सब कहैत रहैक जे रोहिणी बाबू बड़ भागमन्न छथि ... तीन टा मे दू बेटा डॉक्टर आ एकटा इंजीनियर ... एकटा बेटी सेहो हाथी पर चढि़ गौरि पूजने ... बैंक अधिकारी पतिक संग कोनो शहर मे सुखक संग रहैत ... अपनहु सरकारी नौकरी सँ रिटायर कऽ पेंशन पबैत ... कोनो कमी नहि ...। 'रिटायरमेंटÓक बाद एक धक्का जरूर लागल रहनि ... पत्नीक देहावसान ... कैंसर सँ ग्रसित भए ओ परलोक-गमन कऽ चुकल रहथिन ... तथापि मोन केँ मना परिस्थितिक संग 'एडजस्टÓ कऽ गामहि मे रहए लागल रहथि ... नवनिर्मित मकान मे ... आधुनिक डिजाइन वला मकान मे ... बहुत सओख-मनोरथक संग बनओने रहथि ... मुदा, भोग थोड़बो दिन भऽ नहि सकलनि ...।
... संस्कारो की होइतनि रोहिणी बाबूक? ... शरीरक अस्थि टा अवशेष रहैक जकरा भस्मीभूत भेल ढेर सँ निकालि औपचारिकता पूरा भेल रहैक ... अस्थि-संचय श्मशान मे चारिम दिन होइतैक तकर विधि-वाध संस्कार सँ पूर्वहि कऽ संस्कार सम्पन्न कएल गेल रहैक। ... बहुत दूर रहथिन बेटा लोकनि तेँ कोनो स्थिति मे दूरभाषो पर सम्पर्क केने अपन-अपन असमर्थता देखओने रहथिन अएबा सँ ... हारि-दारि कऽ दियादिये मे सऽ एक गोटाक हाथेँ मुखाग्नि पड़ल रहनि।
... छउर क्रिया सँ एक दिन पहिने दम-दम कऽ बेटा लोकनि पाहुन बनल पहुँचल रहथि। ... सविस्तर घटनाक जानकारी हाकिमक अंदाज मे लोक सभ सँ लेने रहथि। ... आखिर ताकोहरी शुरू भेल रहए। ... रोहिणी बाबूक 'प्रज्ज्वलित अग्नि-शिखाकÓ कुंजी ...। ... भेटि नहि रहल छलैक किछु ... सब अपस्याँत ... एइ घर ... ओइ घर ... ड्राइंग रूम ... डाइनिंग ... किचेन ... कुरता सभक जेबी ... हैंगर मे टांगल कोटक जेबी ... स्लैब सब पर ... रैक-तैक सब ठाम, जे कोनो साक्ष्य भेटि सकए ...। ... पलंग जाहि पर सूतल रहथि से तँ जरि कऽ खाख भऽ गेल रहैक। ... ओहि पर जँ भेटलैक तऽ मात्र स्वेटर आÓ कुरताक रेख टा जे डोरिया छलैक ... छाउरक ढेरी पर चेन्ह ओहिना झकझक करैक प्रकाश मे ...।
... अन्तत: सफलता भेटल रहैक ... इंजीनियरेक ब्रेन काज कएने रहैक ... एकटा पत्र रोहिणी बाबूक हाथक लिखल भगवानक फोटो लग राखल भेटल रहैक ... पत्र मर्मस्पर्शी ... अपन अंतर्वेदनाक कथा ओहि मे ई लिखने रहथि ... वेदना असह्यï भेला पर मानव-मन विचलित भऽ जाइत छैक तकर अभिव्यक्ति कारुणिक शब्द मे देने रहथि ...। पत्रक निम्न अंश पठनीय ... मननीय ... ओ ग्रहण योग्य ...
'हे समाजक भाई-बन्धु ... सगा-संबंधी आÓ भावी कर्णधार लोकनि!
...हमर अंतिम प्रणाम।
... आइ अहाँ सब सऽ हमर संबंध छुटि रहल अछि सदा-सर्वदाक लेल। ... हम स्वेच्छा सँ देह मे आगि लगा स्वाहा भऽ रहल छी। ... एहि हेतु ककरो दोषी ठहराएब उचित नहि ... ककरो डॉढ़-बान्ह करब आÓ कि फाँसी पर चढ़ाएब कथमपि उचित नहि ... जे किछु से अपन भाग्यक दोष ... कर्मक गति ... 'करम गति टारत नहि टरेÓ कहलो गेल छैक ... जीवन सँ ऊबि चुकल छी ... हमरा लेल संसार मे केओ नहि ... जकरा अप्पन बुझलियैक ओहिठामक ठोकर तेहन लागल, जे धक्का बर्दाश्त नहि भए सकल ... मोन अछता-पछता रहल छल ... आगाँ-पाछाँ कऽ रहल छल ... बेचैनी छल ... की करी की नहि करी ... ई अंतद्र्वन्द्व हृदय केँ तेना गछारने छल ... तेना कऽ झकझोडऩे छल जे संतुलन केँ बिगाडि़ कऽ राखि देलक ... सभटा पढ़ल पोथी-पतरा केँ ताख पर रखबा देलक आÓ हाथ धरा कऽ कृतकार्य दिशि प्रवृत्त कएलक ... हम नकारि नहि सकलियैक ...। परिस्थितिक दासत्त्व स्वीकार करऽ पड़ल ... एकरा भावी बूझी अथवा हमर अज्ञानता से हम कऽ रहल छी ... एहि हेतु दुनियाँक कोनो व्यक्ति दोषी नहि ... बेर-बेर हम से कहि रहल छी ... अंतर्मनक ई स्वर अछि ... दोषी हम स्वयं छी जे परिस्थिति सँ आकुल-व्याकुल भऽ गेलहुँ ... विषम परिस्थिति देखि हड़बड़ा गेल होइ वा मन:स्थितिक कारणेँ गड़बड़ा गेल होइ से कहबाक सामथ्र्य हमरा मे रहि नहि गेल अछि, किन्तु, एतबा अवस्से कहब, जे हमरा वास्ते ककरो दंड नहि भेटैक ... हमरा प्रति जे केओ किछु कएलक, संभव थीक से हमर पूर्वजन्मक पापहिक फल हो आÓ कि एही जन्मक करनीक प्रतिफल ... तेँ ककरो पर दोषारोपण करब हमर काबलियत नहि हैत ... जाइतो-जाइत फेर एहन पाप करबाक दुस्साहस हम नहि करए चाहैत छी। ...
... मन:तापक विषय मे कहबे की करू? ... कही तऽ कोना कही? ... हृदय मे चिरसंचित अभिलाषा लऽ कऽ इंजीनियर-पुत्रक ओतऽ गेल रही। ... अवकाश प्राप्त कएलाक थोड़बे दिनुक अभ्यंतर पत्नीक देहांत सँ मोन टुटि चुकल छल ... अपन शरीर सेहो नाना रोग सँ जर्जर भऽ चुकल छल ... तेँ मोन बहटारबा लेल माझिल पुत्रक ओतऽ पहुँचल रही। ... ओना तऽ तीनू भाई आवेश-पात करैत रहथि ... श्रद्धा-भाव रखैत रहथि, मुदा ताहू मे माझिल केँ हमरा प्रति सर्वाधिक स्नेह प्रेम ... आÓ भक्ति-भावक उद्ïगार। ... हमहूँ गद्ïगद्ï ... जे चाहैत रही से मोन जोगर पाबि गद्ïगद्ï कोना ने होइतहुँ?
... किन्तु, हाय! कर्म से लिखल किछु आओर रहए ... मासो नहि लागल छल हैत तखने सुख-सौरभक विशेष आकांक्षा करब व्यर्थ प्रतीत होमए लागल ...। अपन दुखरा ककरा सुनबितियैक? ... अपन व्यथा-कथाक पन्ना ककरा समक्ष उनटबितियैक? ... लोक हँसैत ... थपड़ी पारैत ... नाँ हँस्सी होइत ... आÓ तेँ संकोच आÓ प्रतिष्ठïाक सवाल सेहो ... जँ ककरो किछु कहितियैक तऽ बोली देबऽ वलाक कमी नहि रहैत ... आÓ जे नीक लोक तकर 'इम्प्रेशनÓ हमरा प्रति केहन होइतैक ... अथवा जँ बेटे-पुतहुक केओ प्रत्युत्तर मे शिकायत करैत तऽ हमहीं से कोना ओ कतेक बर्दाश्त कऽ सकितियैक, तेँ चुप्पे रहब ठीक बुझैत रहलहुँ ... दम घुटैत रहल ... प्राण अवग्रह मे पड़ल रहल ... दूध-माछ दुनू बाँतर भेल रहल ... दूधक माछी बनल रहलहुँ ... तीतल बिलारि जकाँ सुटकल एइ कोन सऽ ओइ कोन करैत रहलहुँ ... बेलक मारल बबूर तर जाइत रहलहुँ ... झिज्झिरकोना खेलाइत रहलहुँ आÓ कखनो मौन-व्रत लए मौनी बाबा बनल रहलहुँ ... 'सब सऽ भला चुप्प ...Ó आÓ से सधने रहलहुँ ... एहि साधना मे अपना के सफल पबैत रहलहुँ ... हँसइ-खेलाइ वला व्यक्ति जे सब दिन रहल तकरा पर तेहन अंकुश लागि गेल रहैक ... तेहन दबाव दावनक बनल रहैक जे अक्क-बक्क चलऽ नहि दैक ... एक ईंच अपना मौन ससरऽ नहि दैक ...।
... अपना जनैत नीक कुल-शील ताकि बेटाक आदर्श विवाह आजुक समय मे लाखक लाख केर त्याक कऽ कऽ केने रही ... पवित्र पुतहु पाबि कृतकृत्य भेल रही ... मुदा, से महकारीक फऽर साबित भेली ... ऊपर सँ देखबा मे जेहने लाल-टुहटुह डगडग करैत आÓ बीच मे खदखद पिलुआ ठीक तेहने ... तेहन हड़ाशंखिनी निकलली, जे हमर सोन सन बेटाक हृदय पर्यन्त केँ बदलि देलनि ...।
... की कही? ... बेटा पर्यन्त डाँट-डपट शुरू कऽ देने रहथि ... 'बाबू! अहाँ अपन खाउ-पीबू ... आÓ राम-नाम जपैत रहू! अनेरे की घिनना-घिनौअलि घर मे करैत रहइ छी ... किदन-कहाँदन लबरी-फुसियाही मे हरदम लागल ... एमहर सऽ ओमहर करैत ... चैन सऽ रहब तइ मे की लगइयै??? ... की पुतहुओ संगेँ धीयापूता जेकाँ मुँह लगबैत रहइ छी ... लाजो नईँ होइयै कनेको?? ... अपने विचारू तऽ ठीक सऽ ... पढ़ल-लिखल भऽ कऽ एना करइ छी से छजइयै?? ... तखन कथी झूठ्ठे के रामायण आ गीता-पाठ करैत रहैत छी ... सबटा देखाबटिये किने? ओहि सब मे यैह लिखल छइ, जे खूब झगड़ा-झाँटी करू ... ककरो चैन सऽ नहि रहऽ दियैक ...???Ó
... ओह! मर्माहत भऽ गेल रही ... जे पुत्र हमरा समक्ष ठीक सँ ठाढ़ो नहि होइ छला सेहो तेना कऽ पत्नीक डर सँ हुनक दास बनि चुकल रहथि, जे कहितो कोना दन लगइयै ... पुतहुक तऽ कप्पे की कहू? ... कतेक कहू? ... कोना कहू ...?? ... एक संतानक माय बनि चुकल रहथि ... अपने एकटा प्राइवेट स्कूल मे हजार-दू हजार पर 'मैडमÓ बनि गेल रहथि ... एक भिनसर जे डेरा सऽ निकलथि से साँझे ठेका कऽ वापस आबथि ... तावत धरि डेरा मे बच्चा किलोल करैत ... फकसियारी कटैत ... हमरे पर रोबदाबक संग छोडऩे ... कनेको ओकरा कनला पर ओकर कानि हमरे पर झारैत ... की रहता? ... कने बच्चो के लेल पार नइँ लगतनिÓ ... खाली डेढ़ सेर कऽ गिरइ लेल हेतनिं ... बैसलठाम नीक-निकुत खाली भेल तकनि ... खोआ-मलीदा ... नोनगर-चहटगर ... भरि दिन चाह-पर चाह ... खिल्लीक खिल्ली पान फरमाइश पर फरमाइश चलैत ...। हमर बच्चा भरि-भरि दिन भीजल गदेला पर पड़ल रहइयै सेहो कने हटाएल कि धोअल पार नहि लगइ छनि ... हमरे कपार पर बथाएल रहता सब दिन ... जाथु ने आरो बेटा-पुतहु लग ... बाढ़नि लऽ कऽ नहि झाँटि कऽ बिदा कऽ देनि तऽ फेर हमर नामेँ कुकूर पोसि लिहथि ... हम कहइ छी ... एक रेख ... दू रेख ... तीन रेख ...!!!Ó
... हमर प्रवास जीवनक दुखनामाक कथा एत्तहि समाप्त नहि होइयै ... पुतहु केँ एतबे सऽ संतोष नहि भेलनि। ... स्कूल जएबा सँ पूर्व खेनाइ-जलखइक खानापुरी कऽ कऽ हमर बेटा केँ विदा कऽ दैथि, तखन अपने अहगर कऽ भोजन कए लेथि आÓ हमरा कहि जाथि—'बरतन मे सब किछु राखल छनि, भूख लगनि तऽ परसि कऽ खा लिहथि आÓ जतेक अईंठ थाड़ी-बाटी छइ सेहो धो-धा कऽ राखि दिहऽथिन ... चाह पिलहा कप सब घरे-बाहर जइँ-तइँ पड़ल छइ, सेहो धो लिहथि ... घर मे झाड़ू पोंछा सेहो लगा दिहऽथिन ... बिछाओन-ओछाओन झाडि़ कऽ रखिहथि ... दूधक पैकेट डेयरी फर्म सँ आनब सेहो नहि छूटनि ... हँ, सँझुका जलखइ सेहो बना कऽ रखिहथि ... कोनो काज छुटनि नहि, से ध्यान रखिहथि ...। ... एक बात तऽ कहइ लै भिनसरे सऽ विचारने रही, से बिसरले जाइ छलहुँ ... फेर मोन पडि़तय कि नइँ ... हम हिदायत करइ छियनि जे अधे राति सऽ ऊठि कऽ जे घंटी टनटना कऽ सभक निन्द हराम करइ छथि, से हमरा बर्दाश्त नइँ अछि, तेँ से आइ सऽ ध्यान रखबाक छनि ...। ... आरो बात सुनि लैथु ... यदि हमर बच्चा पैखाना-पेशाब करए तऽ तकरा शौच करा कऽ ठीक सऽ रखिहथिन ... कनला पर टहला देथिन ... घुमा-फिरा देथिन ... मारथिन—पिटथिन नहि ... हमरा जँ से कनिओ पता लागत तऽ घर मे तुरकान मचा देबनि ... सातो पुरुखा के उद्धार कऽ कऽ राखि देबनि ... हमरा नइँ चिन्हइ गेल छथि ... हमहूँ कोनो आजीगुजी घरक नइँ छी ... कोनो दरिद्राहाक बेटी नहि ... नामी-गिरामी अफसर बापक बेटी छी, जिनकर इलाका मे तूती बजइ छइ। ... इंजीनियर बेटा लऽ कऽ तऽर-उपर होइ छथि, तऽ से भ्रम छनि ... हमरो बाप के दू इ टा बेटा इंजीनियर छनि आÓ सेहो कोनो 'डोनेशनÓ वला नइँ 'कम्पीटीशनÓ सऽ 'सलेक्शनÓ वला ...। ... तेँ चेता दइ छियनि पहिने, ठीक सऽ हाथ-पैर समेटि कऽ रहथु जँ एतऽ रहबाक छन्हि आÓ नइँ से तऽ अपन गामक रास्ता नापथु ... पेन्शन पर गुजर करथु आÓ कि दोसरे बेटा-बेटी लग जा कऽ दिन-दुनियाँ देखथु ... पेट पोसथु ... हम आजिज-आजिज भऽ गेल छी एतबे दिन मे ... बाप रे बाप!!Ó
... पुतहु केँ जेना मिरगी आबि गेल होनि ... आÓ कि कोनो भूत-प्रेत देह पर आबि गेल होनि जे ब्लडप्रेशर बिना कारण के बढ़ैत गेलनि आÓ अर्र-दर्र बजैत चलि गेली आÓ हम ध्यानस्थ भावेँ बिनु किछु टोकारा दैत हुनकर सभटा गप्प सुनैत रहलहुँ ... अपमानक घोंट पिबैत गेलहुँ ... कारण, कनेको कल्ला अलगएला पर एगारह हजार वोल्टक खतरा छल ...। ... जीवन मे एहि सऽ पहिने जे कहियो नहि सुनने रही से सब सुनबाक अवसर भेटल छल ... गारि-मारि लोक कहइ छइ ... गारि तऽ कतेक बेर पढ़ल गेल छल ... मारि टा बाँचल छल ... सेहो कोनो दिन लागि सकइ छल ... लगैत छल जेना तकरो समय नजदीक आएल जाइ छलइ ... कैक बेर मोन मे आबए जे धरतीये फाटि जाइत आÓ ओही मे सीता जकाँ समा जइतहुँ ... आÓ कि रेल मे कटि जाइ ... कहियो होअए जे विषपाने कऽ कऽ जीवन-लीला समाप्त कऽ ली ... मुदा, धीया-पूताक माया-मोह माथ मे घूमऽ लागए, फलत: एहन क्रिया करबा सऽ बचबाक दुस्साहस करैत रहलहुँ ... कतबो अपमान होअए ... क्रोध आबए ... दु:ख होमऽ लागए ... तऽ अपने-आप केँ रोकी—'रे मन हरबरो जुनिÓ ... आÓ मोन सेहो हमरा रोकि लियए ... विपत्तिक क्षण मे ... कतेक बेर एहन भेल ... परंच अपना पर नियंत्रण रखने रहलहुँ ...।
... आइ नहि जानि हमर अंतज्र्वाला कतेक तीव्र भऽ गेल अछि—जे बाहरिये अग्निक ज्वाला सँ शान्त भऽ सकत—'विषस्य विषमौषधम्ïÓ कहल गेल छैक ... आÓ तेँ अंतिम निर्णय एहि रूपक लऽ छी ... आत्महत्या करब कायरताक प्रतीक छैक से बुझितो ... मुदा, हमरा संग विकल्प नहि रहल ... 'एहि जीवन सौं मरणो भला, जहाँ न आपनु कोयÓ केँ चरितार्थ करैत स्वयं देह मे आगि लगा एहि संसार सँ विदा भऽ रहल छी। ... आब सब सुख सऽ रहइ जाथु ... काल टरि रहल छनि ... सर्वदाक लेल काल ... महाकाल ... आब नहि ककरो अकच्छ करबनि ... कहियो ककरो किछु नहि कहबनि ... कहियो नहि ...।Ó
... यद्यपि रोहिणी बाबूक करुणा-कवलित कएनिहार पत्र सम्पूर्ण उपस्थित जन-समुदाय केँ जीवनक नाना अनुभूति पर सोचबाक लेल बाध्य कऽ देलकैक '... परंच नहि जानि की सत्य ... की असत्य ...?? ... के दूधक धोअल आÓ के कालिख सँ पोतल!! ...।Ó


—डा. धीरेंद्र नाथ मिश्र