सोमवार, अगस्त 31
काज
शुक्रवार, अगस्त 28
मिथिलाक उद्धार करु सरकार
गुरुवार, अगस्त 27
नहि बनब पत्रकार!
मंगलवार, अगस्त 25
कविता
सोमवार, अगस्त 24
अभागल गाम रातू बिगहा
आजाद हिन्दुस्तान के एकटा अभागल गाम छै रातू बिगहा। जे बिहार के जहानाबाद जिले के घोषी प्रखंड मे छै। एहि गाम मे लोक के खेबाक लेल रोटी नहीं भेट रहल छै। जिन्दगी के लेल गरीबी संग लड़ि रहल एहि गामक लोक आब रोटी के अभाव में मरि रहल छै। एक दिस देश आजादी के जश्न मनेबाक लेल तैयारी मे लागल छल त दोसर दिस एहि गामक लोक अपन सम्बन्धी के जरेबाक लेल कटियारी ल जेबाक तैयारी में लागल छल।
एहि गाम में पछिला एक सप्ताह में तीन गोटे के जान जा चुकल छै। मुदा ककरो अकर चिंता नहि। दलित आ गरीबक एहि बस्ती मे लोकक लेल सरकार बीपीएल कार्ड त बनबा देलकै मुदा आई तक लोक के अन्न नहि भेट सकलई।
सरकार गरीबी मेटाबई के लेल तरह दृ तरह के योजना बना रहब छै मुदा जहानाबाद के एहि गाम मे गरीब मेटा रहल छै। शुरु मे जखन गामक लोक सब एकर शिकायत एहि सं जुड़ल अधिकारी से केलकैन त कियो देखबाक लेल नहि ऐलै मुदा आब जखन गप्प लोकक मृत्यु तक पहुंच गेलै त प्रखंडक बीडीओ साहेब एकर टोह लेबाक लेल गाम पहुंचला आ अन्न नहि देबइ बला पर सख्ती सं कार्रवाई करबाक आश्वासन द रहल छथिन। खैर कार्रवाई कते धरि हेतै ई त सब गोटे नीक जकां जानै छी।
ई 62 साल के आजाद हिन्दुस्तान के सच्चाई छै जेतय लोकक लेल रोटी आइयो एकटा प्रश्न बनल छै। ई गाम हमरा सब के अपन आजादी के ऐना देखा रहल अछि। गामक बूढ़ आंखि देशक नेता सब सं प्रश्न पूछि रहल छैन जे की यैह देखबाक लेले देश के आजाद कैल गेल छलै। की गांधीजी जे आजादी के सपना देखने छलाह ओकर यैह सत्यता छै......
- अंकुर कुमार झा
शनिवार, अगस्त 22
अनचिन्हार सन अपन
गुरुवार, अगस्त 20
पाठकक हृदयकेँ बेधैत हरिमोहन बाबूक मैथिली रचना
बुधवार, अगस्त 19
अपन विशाल बरामदा मे बैसल जाड़क रौद सेकति माता जी केर धियान एक-एक गमला के छूबति बाहर लॉन में लागल पेड़-पौधा पर अटकैत गेट पर अद्र्घवृत बनबैत बोगन बेलिया पर अवस्थित भऽ गेल छलन्हि ''माली आय-काल्हि किछु अनठबैत अछि, एक दू गोट पियर पात किलकारी मारैत फल सबहक बीच केहेन घिनौन लगैत छैक...माली के एक-दू झाड़ अवस्य लगैक चाही, सब काम चोर भऽ रहल अछि...माता जी अहाँक फोन, कियो रमनीकांत बाबूÓ सुरेस कहि जायत अछि, मुदा हुनक धियान फूल आ फूलक कियारी में ऐना ओझरायल छलैन्ह, जे ओ पता नहिं सुनलखिन्ह वा नहिं। सुरेश किछु कहि कऽ फोन राखि देलकन्हि।
फूल सँ हुनका नेने सँ बड़ प्रेम 'तैंÓ लोकवेद हुनका 'फूलदाईÓ कहऽ लगलन्हि। पिता केँ बड़का बंगला आ 'पुष्प प्रेम जेना हुनका विरासत मे भेट गेल छल। सासुरो के हवेली आ तामझामक कोनो कम नहिं। प्रवासी पति पर लक्ष्मी के बरदहस्त रहलैन्ह। आ हुनक सौख-मौज मे तिल बराबरि कमी नहि रहलन्हि। विगत के वैभव हुनक आँखि मे साकार भऽ उठलन्हि।
पोखरि.....माछ....मंदिर....। आब कोन धन्नासेठ सहरि मे राखि सकैत अछि। पहिलुका मौजे के परछोन नहिं अछि आजुक फार्म हाउस....मुदा केहेन गौरव सँ लोक एकर शान बघ रति अछि।
टॉमी...कू...कू...करैत हुनक पएर के नीचा आबि बैस रहलन्हि। अचानक हुनक धियान टामी आ चिकी पर गेलन्हि। पामेरियन चीकी, अलशेशियन टामी के कतेह दिक करैत छै...मुदा टामी अपन भलमनसाहत के परिचय दइत ओकरा क्षमा करि दैत छै। परस्पर वैर-गुण साहचर्यक कारणे विलुप्त भऽ गेल छै जेना।
टॉमी आय काल्हि किछु अस्वस्थ लागि रहल अछि...मौजीलाल के कहने रहथि मवेशी डाक्टर सँ देखबऽ लेल...कि कहलकै डाक्टर...किछु गप्प नहिं भऽ सकलै...डाक्टर ओतऽ सँ घुरति ओकर जेठका बेटा गेट पर ठाढ़ भेटलै, ओकर छोटका बेटा छत पर सँ खसि पड़ल छलऽ... आ ओ छुट्टी लऽ क तुरते विदा भऽ गेल छल। मौजेलाल...टामी...चिकी...के फाँदति...फेर हुनक धियान डालिया के बड़का फूल पर रमि गेलन्हि...हुनका अपन बगीचा ओतबे प्रिय लगैत छन्हि...जेना शाहजहाँ के अपन लालकिलाक दीवाने खास आ हुनक बस चलतन्हि तऽ ओहो.....एकर चारू कात लिखबा दैतथि... ''जौं धरती पर कत्तो स्वर्ग थिक...तऽ ओ एतऽ थीक...एतऽ थिक...एत्ते थीक मुदा एक कात मिस्टर सेठी क बंगला आ दोसर कात देशपांडे के पंचसितारा होटल...अपन भावना के मोनक कोनो कोन मे दफना कऽ ओ उदास भऽ जाइत छथि। आब ओ दिन कहाँ एखन सब पैसा वाला राजे थीक।
... माताजी कियो रमणीकांत बाबू...तीन दिन सँ फोन कऽ रहल छथि...कहति छथि जे बड़ जरूरी काज छैन्ह...मेम साहेब सँ बात करताह...अपने हरिद्वार गेल रही... फेर मंदिर... सत्संग...आय अपने पूजा...ÓÓ सुरेश अखन अपन गप्प खत्तमो नहिं केने छल...कि... गेट पर एक गोट कारी मर्सिडिज रूकलै... अत्याधुनिक सूट मे सुसञ्ञित पुरूष एक संभ्रांत वृद्घा संग गेट सँ होइत बरामदा मे एलाह।
ड्राइंग रूम मे सुरेश बैसबै छन्हि... रमणी कान्त बाबू आ हुनक माए....माताजी प्रणाम कएलन्हि! ''कतेक बेर फोन कयलहु मुदा अपनेक व्यस्तताक कारणे वार्तालाप नहिं भऽ सकल इम्हर अहि होटल मे हमर एकटा मीटिंग छल... तऽ सोचलहु जे एक पंथ दू काज भऽ जाइत बिन पूर्व अनुमति के उपस्थित भेलहु क्षमाप्रार्थी छी...ÓÓ रमणीकांत बाबू बड़ दुनियादार... बाजऽ मे निपुण व्यक्ति लगलाह।
''अयबाक विशेष प्रयोजन अपनेक पुत्रक प्रति... हमर कन्या...ÓÓ अपन कन्याक वर्णन मे सबटा विशेषण... उपमा के प्रयोग करैत ऐना... नख-शिख वर्णन मे लागल छलाह... जेना... कोनो चित्रकार अपन अमर कृति के बखानति ओकरा कला पारखीक समक्ष उपस्थित केने होय।
एक बागि ओ चुप भऽ गेला किंस्यात हुनका माताजी केर चुप्पी अखरऽ लगलन्हि... आब हुनक वृद्घ जननीकेर बारी छलन्हि ''हमर पौत्री मे लक्षमी आ सरस्वतीक अपूर्व संगम... व्यवस्थाक कोनो प्रश्रे नहिं जतेक चाही... जतह कहू हम विवाह लेल प्रस्तुत भऽ जायब... एक बेर.... देखि लैतिए...हमर पोती अंधेरिया मे पूर्णिमाक चान सन्ï थीक.... बूढ़ी देखैए में बूढ़... बकलेल सन्ï लागैत छलिह......मुदा बाजऽ मे......किंस्यात धनक घमंड होयतन्हि... नव धन तऽ नहिं छन्हि?ÓÓ
माता जी किछु सोचति वृद्घा के तकैत रहलीह सुरेस अहि बीच मे चाय-नाश्ता राखि गेल छल। अहाँक अपने कोन कम्मी थीक... मुदा तैयो... बेटी वला तऽ।
''बेस... अपनेक गाम भोज पड़ोल भेल?ÓÓ
बूढ़ी खुश भऽ गेली ''हँ ऽऽऽÓÓ मुदा रमण्ीकांत बाबू किछु क्षुब्ध सन लगैत बजलाह... आब गाम-ताम सँ केकरा मतलब छै... के रहैत अछि गाम पर... आब तऽ दिल्लीवासी भेलहु... एखने जर्मनी, हालैंड आ इंगलैंड केँ टूर लगाकऽ आबि रहल छी, कतऽ सँ कतऽ जा रहल अछि ई विश्व आ एकटा अपन देश... जेना धूप में सूतल घोंघा... थाइलैंड एहेन छोट देश... ओहो... इंडिया सँ हजार गुणा निक। कोनो डिपार्टमेंटल स्टोर मे जाऊ। कत्तबो देर घूमू... किछु खरिदारी नहियों करू तखनो ओ सब किछ नहिं कहत। विंडोशॅापिंग के इज्जत छै, ओकर कहना छै, जे आय लोक समान देखऽ आयल अछि... काल्हि पैसा हेतै तऽ खरीदारी करत... दोस्त के कहत्तै... एक प्रकार सँ ओहो कस्टमर भेल... आ एतऽ इंडिया मे... दू सँ तीन चीजक दाम पूछू तऽ दुकानदार कहत... भैया ये तेरे वश की चीज नहीं। टाइम खराब करता है...ÓÓ
''मुदा भारत मे रहबाक अपन सुख छै... हम तऽ किन्नो विदेश मे नहिं बसब...ÓÓ माताजी हुनक गप्प बीचे मे काटि कऽ बजलहि... ''एतऽ के संस्कार आ जाति प्रथा, जीवैत इतिहास छैक... तखन नै... सौ बरख पहिने कैरेबियन देश त्रिनिडाड गेल भारतीय मजदूरवंशज कनिए प्रयासक बाद एतऽ खोजि निकाललक अपन, जडि़... मूल बीज... वासुदेव पांडेय... ओहि पाश्चात्य देश में जनम आ परवरिश पाबिओ कऽ भारत मे अपन जडि़ ढूढ़ऽ लेल तड़पि उठलाह।ÓÓ माताजी के हृदयक आक्रोश शब्द मे परिलक्षित भऽ उठलन्हि भोज पड़ोल क रमणीकांत नाम हुनका विगत पैंतालिस परख पाछाँ... अतीत मे धकेल देलकन्हि... घटना बड़ पुरान... मुदा... बूढ़ पुरान कÓ स्मृति मे ओ अखनो जीवित प्राय: अछि।
ओ एक गोट दुर्गापूजा क तातिल छल जाहि मे ओ गाम गेल छलथि। मिडिल स्कूल मे छलीह... चौथा मे... आÓ छठि धरि रहबाक खुशी मे हुनक हम उम्र सोनिया संगी बनि गेलन्हि। गामक प्रथानुसार ओकर विवाहक लेल हरपुर वाली काकी कहिया सँ पेटकुनिया दऽ देने रहथि। पिता परदेश मे कत्तौ विवाह केने रहै... गाम सँ कनि फराक हुनक मँडई। दादी कहैथ... नितांत... गरीब छथि ई लोक... मुदा बड़ भलमानस। हरपुरवाली के नूआ मे चप्पी ततेक रहैन्ह जे ककरा फुर्सत के गिनत... मुदा बोली एहेन मधुर जेना मौध।
दुर्गे स्थान मे सोनिया हुनका कहने छलन्हि भोज पड़ोल के सुमिरन बाबू कत्तो कलकत्ता में भनसियाक काज करैत छन्हि, हिनकर पुत्र रमणीकांत सँ ओकर विवाह लागि रहल अछि।
ओकरा बाद ओ पुन: शहर आबि गामक सोनिया के बिसरि अध्ययन मे लागि गेल छलथि... तीन बरखक बाद... दादी एकादशीक यज्ञ कऽ रहल छलीह... सब कियो जूटलै...।
भोरे भोर नींद टूटल, दादी के आवाज सँ, राम। राम। ताहि लेल लोक कहैत छै जे बेटी कँ जनमें नहिं डराय, बेटीक करमे डराय... की भेलऽ दाय...?ÓÓ ओ हड़बड़ा कऽ उठल छलीह...
''सोनिया के माए दादी के पएर पकडि़ कोढि़ फाडि़ कऽ कनैत छलहि... ओ भोजपड़ोल वला... वरक बाप... पैसा कÓ लोभ मे बेटाक विवाह... कत्तौ अनतऽ चाहैत छल...आ। दू... सौ... टाका... अपना दिस सँ दऽ कÓ दादी सोनियाक कन्यादान करौने छलीह... दाय कहैत... मोज-पड़ोल वला कुटूम बड़ नंगट। चतुर्थीए मे घीना देलकै... सायकिल लऽ रूसल... कहुतऽ घर नै घरारी... आब ओकरा घड़ी चाही...ÓÓ सोनिया के बड़ दुख दैत छै... सासो ससूर तैहने छै... चिन्ता सँ सुखा कऽ गोइठा भऽ गेलऽ छौड़ी।
... किछु दिनक बाद दादी कहलीह... ''सोनिया मरि गेलऽ... साँप काटि लेलकै... बोन मे...।ÓÓ के देखऽ गेलऽ की भेलऽ? कियो कहे माहूर खूआ कऽ मारि देलकै।
भाग्य रमणीकांत बाबू के खूब संग देलकैन्हि... सरस्वती अपन दूनू हाथ सँ कृपा लुटबति हुनका उन्नति के रास्ता पÓ बढ़बति गेलीह... पाय-पाय के लेल तरसल... रमणीकांत बाबू पाय के ईश्वर मानि लेलाह... धन सँ घर भरि गेलन्हि... अतीत सँ ओ वत्र्तमान मे, रमणीकांत बाबूक आवाज सूनि आबि गेलीह।
''हमर जेठ दामाद सेहो डाक्टर छथि... बेटी दामाद दूनू के हम अमेरिका पठा देने छी... आ 'हिनको हम एतऽ थोड़े रह देबन्हि... अमेरिका मे कि शान छै... डाक्टर के ... तऽ अपने... किछु बजलीए नहिं...ÓÓ हम एहीं मौन के स्वीकृति बुझु की ओ हँसला...
''हमरा तऽ उच्च खानदान के सुशील कन्या चाही चारिटा वस्त्र मे...ÓÓ
...रमणीबाबू अपन माएक संग माथ झुकौने जा रहल छथि... आÓ बूझि पड़ल जे वर्षो पहिने सत्त वा फुसि जे साँप सोनिया के कटने हेतैक, आए हुनक चेहरा विषाक्त कऽ देलकैन्ह...। सोनिया के प्रति कएल गेल अत्याचारक जवाब माँगऽ लेल समय जेना अपन आँखि खोलि देलेकै।
—डा. कामिनी कामायनी
सोमवार, अगस्त 17
फु रसत
मकरा जाल बुनैत अछि फुरसत मे
ओ करैत अछि निढाल फुरसत मे
कथी लेल पूछैत छथि वो हमरा सँ
एहन-ओहन सवाल फुरसत मे
लोक नीक जकां देख लिअए हमरा
अपना कें घर सँ निकालि फुरसत मे
लूटि लिअए हमर परछाईं हमरा
नहि त रहि जायत कचोट फुरसत मे
जिनक ठोर पर मुस्की छैन्हि
पूछिओन हुनक हाल फुरसत मे
फेर ककरो सम्हारब नहि
पहिने अपना कें सम्हारी फुरसत मे
धारक कात मे बैसि कय अहां
एना नहिं पानि उछेहु फुरसत मे।
गुरुवार, अगस्त 13
अपराध आवश्यकता भऽ गिया है समाज का
मंगलवार, अगस्त 11
गजल
मनोरथ छल बहुत दिन सँ अहाँ भेटि होइतहुँ।
सब कहइए अहाँ आब पैघ भऽ गेलहूँ॥
प्रेम केने रहि पहिनेहो जखन बुझल नहि छल।
एक बेर आब कÓ कऽ देखिलियौ सब बुझि जेबै॥
युवावस्था मे प्रेम कÓ कऽ देखलियौ।
सबटा बात पछिलुका पुरान भऽ जायत॥
जखन मुस्की नञि ऊरुज तकर बात किछु छल।
आब तÓ कारियो ठोरक लालीक बात किछु अछि॥
मÓन बहुत अऊनाइए अहाँके संग आबऽ लेल।
अहाँ छी वैह मुदा सब किछु बदलि गेल॥
एहिबेर हमर निहोरा मानि कऽ देखिलियौ।
सेहन्ता पूर भऽ जायत हमर मन कहइए॥
एकबेर अंत:पुर मे आबि कऽ देखि लियौ।
2
मारै मुस्की नञि एहन गुलबिया।
तोरा देखिते किदन हमरा भऽ जाइए॥
ऐना देखनै भोर, सांझ, दिन आ दुपहरिया।
तोरा देखितै किदन हमरा भऽ जाइए॥
कखनो तÓ दम धरै मन के कम करै।
एना जँ करबए तऽ भऽ जेबए रसिया॥
मारै ने .....
करइ छैं प्रेम नहि माखए तु कनखी।
करबए जँ प्रेम नहि कहि दे नै तु लटकी॥
मुदा-मुदा .....
सजि-धजि कऽ आ ने गुलबिया।
तोरा देखिते किदन हमरा भऽ जाइए॥
—सतीश चन्द्र झा
कतवा पैन में छी हम
सोमवार, अगस्त 10
कि भऽ सकैत अछि पलायनक विकल्प?
1947 ई0 मे जखन भारत स्ताधीन भेल ओहि समय मिथिलाक आओर मोटा-मोटी पूरा बिहारक आर्थिक सामाजिक स्थिति देषक दोसर राज्य सँ विलग नहि छल। वस्तु स्थिति तँ ई अथ्द जे उपजाक खेत, षांतिपूर्ण मार्हाल आ खेती-बाड़ीक प्रति लोकक लगाव देखि ई कखनो ने बुझायल जे एहि क्षेत्रक विकासक संभावना आन क्षेत्र सँ कनिको कम अछि। दरिभंगा राजक छत्रछाया मे पलल पोसायल षोश्क सांमंती व्यवस्थाक निगानीक रूप मेद जमीन बैटवारा सरिपहुँ मुँह देखि मुँगबा पड़सव के याद कराबैत अछि। तइयो यदि सत्ता आओरे षासनक स्ताधीन प्रतिनिधि एहि क्षेत्रक विकासक लेल इमानदारी आ पूर्ण निश्ठाक संग काज करितथि तऽ कदापि आइ एहि स्थितिक दर्षन नहि होति। लेकिन ऐना न नहि भेलै। राजनीति में आ खास कय कऽ प्रातीय स्तरक राजनीति मे भश्टाचार, भाई भतीजावाय, चमचावाद, जेहन प्रतिगामी तत्वक आ षोश्ण, लूट खसोट ओ धोखाधड़ीक कादो मे ओझरायल हुनक अनुयायीक सेन्हमारी सतत् जारी रहला कालांतर मे इएह सेंन्हमारी जोरगर भऽ गेल आ सत्ता व नोकरषाहीक आपसी सौठ-गौठ एका व्यायक रूप दय देलकौ जँ कहियो कोनो विकासक योजना क गप्प उठालै, तऽ मिथ्ािला कें एहि सँ कात राखल गेला ताहिं ई कनिको आष्चर्मक गप्प नहि जे जहि हरित क्रांति सँ पंजाब-हरियाणा आओर दक्षिण भारतक राज्य सुब समृद्धिक पराकाश्ठा पर पहुँचि गेल ओहि हरित क्रांति सँ मिथिला केें कतिया देल गेल।
एहि मे कोनो दुमत नहि जे कहियो काल विकासक नाम पर सरकारी सहायता राषि आ अनुदान आवैत रहल लेकिन मंत्री आ सरकारी पदाािकारी- सऽ लअ कऽ ग्रामसेवक आ पंचायत प्रमुख धरिएकरा पचाबय वालाक पौति एतेक ने नम्हगर छन्हि जे ई राषि आ अनुदान गन्तव्य पहुचवा सँ पहिने सधि जाइत छै। एहिक्षेत्रक जे राक्षा-छथि, मुदा तकनीकी कौषले दृश्टियें पिछड़ल छथि, ओ ओतेक साधन सम्पन्न नहि छथि जे छोटो-मोटो नौकरी पयवाक लेल तथाकथित अपन भविश्यनिर्माता के मुँहमाँगा ‘नजराना’ दय पाबथि। जे खेती-बाड़ी मे लागल छथि हुनका समय पर सिंचाई आ उच्चा गुणबन्ता वाला खादबीजय प्राति लहि होइत छन्हि। ई सम मिलि कऽ एहि क्षेत्रक लोककें ऐना ने कंुठित कय देलकैन्ह कि एहि आरापित दुव्यवस्था सँ लड़बाक वा एकर कुनु ठोस का सार्थक विकल्प तकबाक सामथ्र्य गैवा चुकल छथि। आओर अपन गाम-धर सँ सेकड़ो मील कतओ अनगुहार जगह मे गुमनामीक यंत्रणापूर्ण जीवनप लेल बाध्य भऽ जाइत छथि। जनषक्तिक ई क्षति अपूरणीय अछि, जकर कारणें एहि क्षेत्रक उत्पादकता मे असाधारण हास भेल अहि, ओ जीवन स्तर मे गिरावट आयल अछि।
जदि मिथिला मे व्यवस्थित ढंग सँ माह पालन कएल जाए, एहि दृश्टि सँ एहिठाम उपलब्ध पोखरि, नदी समय उपयोग कएल जाए, उनत आ आमदनीक हिसाबे श्रेश्ठतर प्रजातिक माद्यक पालन षुरू कएल जाय संगहि आनूर्तिक उपसुक्त व्यवस्था विकसित कय लेल जाए तऽ स्ािानीय लोक कें आन ठाम जाम जी विकायार्जन के साधन नही ताकय पड़तैन्ह।
नकदी फसल:- कृश्कि क्ष्ेात्र मे नकदी फसल पैदावार आई काल्हिं किषेश् रूप सँ लायदायक सिऋ भऽ रहल अछि। एहिक लेल पैघ स्तर पर श्रमषक्तिक आवष्ययकता होइत अछि, जे एहि क्षेत्र मे सहजता सँ उपलब्ध भऽ जाइत सरकारी आ स्तयंसेवी संस्था व अमिकरण पहल द्वारा एकरा योजनाकह कएल जा सकैत अछि। आम, लीची, केला तम्बाकू, मिरचाई संगहि बांस, बबूल, षीषो, साबुआ आदि के आय आओ। रोजगारक एकय महत्वपूर्ण स्रोतक रूप में उपयोग रूप में उपयोग कएल जा सकैत अछि।
पषुपालन संगहि दुग्ध-उत्पादन:- पषुपालनक संगहि दुग्ध-उत्पादन रोजगारक एकय दोसर क्षेत्र अछि। मिथिला मे परती-परौत आओर सार्वजनिक उपयोगक जामीनक कोनो कमी नही अथ्द, एहि ठाम सँ माल-जालक लेल चाराक व्यवरूथा सहजहि भऽ सकैत अछि। जदि वैज्ञानिक तौर-तरीका कें अपनाओल जाय आ जरसी जकाँ अधिक दूध देवयवाली माल जाल क पालन-पोश्ण पर ध्यान देल जाय तऽ लोकक जीवन स्तर उठि सकैत छन्हि संगहि पालायनक संभावना में कमी आवि सकैत अछि।
कुटीर उद्योग:- कुटीर उद्योग कोनहुँ क्षेत्रक आर्थिक दषाकें तय करवा में महत्वपूर्ण भूमिका निभवैत अछि। एहि दृश्टि सँ हरेक घर के एकता छोट-माट कारखानाक रूप देल जा सकैत अछि, जतय सतू, पापड़, दालमो, अमाट, अचार, अदौड़ी दनौड़ी जेहन नित्य उपयोगक वस्तु-जातक उत्पादक कएल जा सकैत अछि। एहि सँ एकय आओर लाभ होयत जे एहि मे महिलाक श्रमषक्ति अपरिहार्य होयत। महिला मिथिलाक संपूर्ण श्रमषक्तिक ओहिअंषक प्रतीनिधित्व करैत छथि जिनका आमतौर पर चूल्हा चेकी मे ओझराय कऽ राखल जाइत छन्हि।
स्वरोजगार:- आईकाल्हिं सपरिवार प्रवासक प्रवृति दृश्टिगोचर होइत अछि। जँ महिला के हथकघा, कसलाई बुनाई कम्प्यूटर, केष सज्जा, वास्तुकला जकाँ विभिन प्रकार क शिस्य मे विषेष्ज्ञता आओ दक्षता दियेबाक लेल प्राषिक्षणक उचित व्यवस्था कएल जाय ऽ ओपरिवारक आर्थिक मेरूदंड सिद्ध भऽ सकैत छथि। ई महिला कल्याणक हरियें सेहो एकरा कएगर पहल सिद्ध होयत।
एहि समय आलाबे स्वरोजगारक आरो एहन उपय कारगर भ सकैत अछि जका माध्यमे प्रवासक दुखद होइत समयस्या पर आंकुष लगायल जाए। सरकारी आ गौर सरकारी उपाय तऽ आवष्यक अछिए संगहि स्ािानीय लोक मे व्यापक स्तर पर जाग्रति सेहो निहायत जरूरी अछि। मिथिलाक समग्र विकास मे एहिठामक लोकक सहभागिता सबसँ महत्वपूर्ण अछि, कियैक तऽ, जाधरि एहन नहि होयत, विकासक नाम पर लूटकाट आ बंदरबाट संगहि भ्रश्टाचारक साम्राज्य जस के तस रहत। एहि संदर्भ मे राजनैतिक मुख्यधारा मे लाबियोंआर दबाव समूहक औचित्य के सेहो बूझाल जा सकैत अछि, जे सकारात्मक विकासक दृश्टि सँ जनसाधारण आओ। जनप्रतिपिधिक मध्य संतुक काल कय सकैत अछि।
- सुभाष चन्द्र
शनिवार, अगस्त 8
किछु मोअन परल किछु बिसैर गेलौह
शुक्रवार, अगस्त 7
केहन हो वियाह पश्चात वर-कनियाँक व्यवहार?
चुप्पी
बुधवार, अगस्त 5
युगक बिहाडि़
... सब अपन-अपन काज मे लागल छल। ... दिन भरि काज मे व्यस्त ... हाट-बाजार ... खेती पथारी ... पौनी पसारी ... नौकरी चाकरी ... मर-मोकदमा ... अस्पताल ओ थानाक चक्कर ... खैरातक खातिर अंचल-प्रखंडक दौड़ आÓ कि आस्तिक भक्त-वृंदक मंंदिरे-मंदिर भगवत्ï दर्शन-पूजन आदि ... भिन्न-भिन्न कार्य-व्यवसाय मे लागल ... एमहर-ओमहर जाइत-अबैत ... सर्वत्र चहल-पहल ... वातावरण मे शब्दक टोप-टहंकार जनता-जनार्दन श्रीमुख सँ निकलि चलैत-फिरैत लोको केँ आÓ कि जाड़ सँ कठुआइत घर मे दुबकलो केँ ध्यान-भंग करैत ...।
... 'भेनिटिलेटरÓ सँ धुआँ बाहर निकलि रहल छलैक। ... किएक ककरो ध्यान जइतैक ओहि दिशि? ... अनुमानो लगौने हैत तऽ यैह जे घर मे खेनाइ बनैत हेतैक ... आÓ भनसा-घरक धुआँ निकलैत हेतैक। ... ताहि दिन गैसक प्रचलन गाम मे तऽ नहिञे रहैक, जे ठामे-ठीम शहरो मे रहैक ... तेँ जारनिञे पर भानस होइक पक्को बला मकान मे...। कत्तउ-कत्तउ कुन्नी वला आÓ कि कोइला वला चूल्हा सँ सेहो गामो-घर मे लोक काज चलाबए ...।
... बगलक फरीक मे सऽ एक गोटे आने दिन जकाँ घरबैया सँ भेंटघाँट करऽ पहुँचला तऽ केबारी बंद देखलखिन आÓ धुआँ सँ बरंडा भरल पओलनि ... चिरचिराइन गंध से फराक ...। ... अकचका गेला ई व्यक्ति ... 'आखिर बात की छैक?Ó ... आन दिन रोहिणी भाई केबारी भिरओने हमर प्रतीक्षा करैत रहैत छला आÓ गप्प-सप्प भरि पोख होइत छलैक ... गाम-घरक गप्प ... खेत-खरिहानक गप्प ... मामिला-मोकदमाक गप्प ... इतिहास-पुराणक गप्प... राजनीति ओ युग-धर्मक गप्प ... आÓ ताही संगेँ चाह-पानी से भिन्ने ...। ... मुदा ... मुदा आइ ...?
... रोहिणी बाबू एकटा दस-बारह सालक छौंड़ा केँ रखने छला ... बड़ आज्ञाकारी रहनि ... वएह चाह-पान सँ लऽ कऽ खेनाइ जलखइ सब किछु बनबैत छलनि ... एकदम सऽ ट्रेंड छल ... खूब होशगर छल ...। ... पत्नीक परोक्ष भेलाक किछुए दिनक बाद एकरा रखने रहथि ... विश्वासपात्र सेहो अलबत्ते ... सब पर सदति ध्यान रखैत ... हरदम कोनो काज पड़ला पर प्रसन्न मुद्रा मे उपस्थित श्रीमान्ï ... नकारात्मक उत्तर देबाक आÓ कि मुँह धुआँकस सन करबाक जेना ई सर्वथा विरोधी रहल हो तहिना बुझाइक ...। ... इहो टुगरे छल ... नान्हि टा छल तखने माय-बाप दुनू संसार केँ तिलांजलि दऽ चुकल रहैक ... कहुना कऽ बहिन ओतऽ पोसाएल छल आÓ ओहिठाम सऽ रोहिणी बाबूक शरण मे आएल छल ... दुनू केँ एक दोसराक जरूरत छलैक से पूरा भेल रहैक ...।
... संदेह भेल रहनि रोहिणी भाईक भैयारी केँ ... पहिने तऽ ई जे बुढ़ापा छनि ... ठंढा बहुत छैक ... कतउ ठंढ़े तऽ ने मारि देने छनि ... अगियासी कऽ कऽ तकर उपचार करैत होथि ... आÓ कि घूर पजरबा कऽ मच्छर भगबैत होथि ...। ... लेकिन संदेह दूर भऽ गेल रहनि थोड़बे काल मे ... कारण केबाड़ कतबो पिटला पर जखन रोहिणी भाई केबाड़ नहि खोल लखिन तखन ई जोर सँ हाक लगओने छला—'पढ़ुआ कका ऽऽऽ ... पढ़ुआ कका ऽऽऽ ... कने दौडि़ कऽ आउ तऽ रोहिणी भाईक ओतऽऽ ...। ... पढ़ुआ कका दौड़ल रहथिन ... पाछाँ सऽ हुनकर बेटा-पोता आÓ अगल-बगलक लोक सभ सेहो। ... यावत ई लोकनि बरंडा पर पहुँचल रहथि तावत धरि आगिक धधरा बहुत तेज भऽ गेल रहैक आÓ सौंसे बरंडा धुएं-धुआं भऽ गल रहैक ...।
... कोनो उपाय नहि देखि केबाड़ी तोड़ल गेल ...। देखैत देरी सभक होश-हवाश उडि़ गेलैक ... 'ऐँ ई की? ऐना किएक? आखिर कारण की? ... एहेन सज्जन लोकक ई दुर्दशा किएक? ... एहन बुद्धियो किएक? ...Ó छौंड़ा के सेहो नहि देखैत छियैक ... ओहो कत्तऽ पतनुकाओन लेलक से नहि जानि ... कतउ ओकरे तऽ काज अछि ... मुदा, ओहो तऽ महा सज्जन अछि ... बेटो सँ बढि़ कऽ हिनकर सेवा कऽ रहल छनि ... तेँ ओकरा पर कोनो संदेहो करब पाप होएत ...।Ó ... एहिना भिन्न-भिन्न प्रकारक आएल गेल लोकक मुँह सँ 'कमेंटÓ निकलैत गेलैक।
... रोहिणी बाबूक स्थिति देखबा योग्य नहि छल ... अति दर्दनाक ... बीच पलंग पर बैसल ... तुराइ ओढऩे ... बिछाओन सऽ लऽ तुराइ धरि आगि पसरल ... आÓ अपने धू-धू कऽ जरैत ... 'ओह ...आह ...ओह ...आहÓक कराह ...। ... कराहबाक स्वर अनवरत ... बिना विरामक ... बिना विश्रामक ... कौमा ...फुलस्टॉप नहि ... छटपटाइत ... तड़पैत ... जेना-जेना देह झुलसत जाइत ... फंकुरियाएल जाइत ... सीझल जाइत ... जेना-जेना मृत्यु समीप अबैत जाइत ताही अनुपात-क्रम मे चीत्कार सेहो ... करुणाद्र्र स्वर ... असह्यï वेदनाक स्वर ... तीव्र ज्वालाक स्वर ... आÓ देखिते-देखैत पुन: पूर्णविराम सेहो भऽ गेलैक ... मोन कोनादन सभक भऽ गेल रहैक ... सभक हाथ-पैर हेरायल ... ककरो किछु ओहि क्षण मे फुराइक नहि ... सभक शक्ति जेना क्षीण भऽ गेल होइक ... सभक बुद्धि जेना एकाएक मन्द पडि़ गेल हो, तहिना बुझाइत रहलैक ...।
... भाई-भैयारी ... दर-दियाद आÓ आस-पड़ोस सँ दौड़ल बारहो वर्णक जमात आगि मिझएबाक अथक प्रयास करऽ लागल रहथि ... कहुना आगि पर नियंत्रण पाओल जाए ताहि लेल कोनो प्रकारक रास्ता बँचलैक नहि ... मुदा, आगिक लहरि देखि ... ओकर धधराक तेवर देखि ककरो ओकर समीप जएबाक साहसे नहि होइक ... जान केँ जोखिम मे देब रहैक ... एकक संगेँ कतेक जइतैक तकर ठेकान नहि ...।
... नवयुवक दल मे सऽ किछु गोटे साहस करैत आगाँ आगि सऽ लोहा लेबा लेल बढ़ल रहथि ... केओ बालू झोंकैत ... केओ बाल्टिये बाल्टी पानि ढारैत ... केओ रोहिणी बाबूक मकुआ लाठी सँ आगि लागल तुराइ केँ टारबाक प्रयास करैत ... परन्च इहो प्रयास बिफल रहलैक ... कारण देहक वस्त्रक संग लपेटल तुराइ आदि सभ किछु देहक अंग बनि सटि चुकल रहैक ... देहक अंग-अंग बरकि एकरा सभकेँ आत्मसात्ï कऽ नेने रहैक ... लगैक जेना अधिक जाड़ पडऩे तुराइ आÓ अग्नि दुनूक काज एक्के संग रोहिणी बाबू केँ पडि़ गेल छनि ... दोसर दिन लेल फेर किछु बचेबाक नहि रहबाक चाहियनि ... जे भोगि लेथि से भोगथु ... जतेक आगि तापि सकथु से तापथु ... जतेक गर्मी आनि सकथि से आनथु ... जतेक गरमा सकथि से गरमाथु ... नहि जानि ई अन्तज्र्वालाक प्रतिक्रिया छलन्हि आÓ कि बुढ़ापाजन्य मानसिकताक प्रतीक ...।
... देखिते-देखैत रोहिणी बाबूक शरीर भस्मीभूत भऽ गेल। ... डाक्टर-वैद्य सेहो नहि बजाओल जा सकल ... यावत धरि लोक दौड़-बढ़ा केलक तावत काण्ड समाप्त भऽ चुकल रहैक। ... आएल-गेल लोक एक-दोसरा दिशि विस्मयादिबोधक भाव लेने तकैत रहल ...। आगिक पसाही तेना कऽ लगलैक जे क्षणहिँ मे सुड्डïाह केने चलि गेलैक रोहिणी बाबू सन सम्भ्रान्त व्यक्ति केँ ...।
... आब गाम मे शेष रहि गेल छलैक रोहिणी बाबूक घर ... घर मे पड़ल पलंगक कात मे किरासन तेलक एकटा खाली डिब्बा ... खररल सलाइक दू-तीन टा काठी ... आÓ आश्रमक किछु वस्तुजात सभ ... छिडिय़ाएल यत्र-तत्र ... अस्त-व्यस्त भेल ... आÓ हिनकर आज्ञाकारी छौंड़ा, जे जाड़क कारणेँ कठुआएल साँझे राति ओढऩा-तोढऩा ओढि़ सुजनी पर मुँह झाँपि घसमोरने बगलक कोठली मे पड़ल छल आÓ आँखि लागि गेल छलैक ... एकरा कोनो सुधि-बुधि नहि ... घटनाक कोनो सूचना नहि ... कोनो प्रज्ञा नहि ...।
... जनी जाति सऽ लऽ पुरुष-पात सब कहैत रहैक जे रोहिणी बाबू बड़ भागमन्न छथि ... तीन टा मे दू बेटा डॉक्टर आ एकटा इंजीनियर ... एकटा बेटी सेहो हाथी पर चढि़ गौरि पूजने ... बैंक अधिकारी पतिक संग कोनो शहर मे सुखक संग रहैत ... अपनहु सरकारी नौकरी सँ रिटायर कऽ पेंशन पबैत ... कोनो कमी नहि ...। 'रिटायरमेंटÓक बाद एक धक्का जरूर लागल रहनि ... पत्नीक देहावसान ... कैंसर सँ ग्रसित भए ओ परलोक-गमन कऽ चुकल रहथिन ... तथापि मोन केँ मना परिस्थितिक संग 'एडजस्टÓ कऽ गामहि मे रहए लागल रहथि ... नवनिर्मित मकान मे ... आधुनिक डिजाइन वला मकान मे ... बहुत सओख-मनोरथक संग बनओने रहथि ... मुदा, भोग थोड़बो दिन भऽ नहि सकलनि ...।
... संस्कारो की होइतनि रोहिणी बाबूक? ... शरीरक अस्थि टा अवशेष रहैक जकरा भस्मीभूत भेल ढेर सँ निकालि औपचारिकता पूरा भेल रहैक ... अस्थि-संचय श्मशान मे चारिम दिन होइतैक तकर विधि-वाध संस्कार सँ पूर्वहि कऽ संस्कार सम्पन्न कएल गेल रहैक। ... बहुत दूर रहथिन बेटा लोकनि तेँ कोनो स्थिति मे दूरभाषो पर सम्पर्क केने अपन-अपन असमर्थता देखओने रहथिन अएबा सँ ... हारि-दारि कऽ दियादिये मे सऽ एक गोटाक हाथेँ मुखाग्नि पड़ल रहनि।
... छउर क्रिया सँ एक दिन पहिने दम-दम कऽ बेटा लोकनि पाहुन बनल पहुँचल रहथि। ... सविस्तर घटनाक जानकारी हाकिमक अंदाज मे लोक सभ सँ लेने रहथि। ... आखिर ताकोहरी शुरू भेल रहए। ... रोहिणी बाबूक 'प्रज्ज्वलित अग्नि-शिखाकÓ कुंजी ...। ... भेटि नहि रहल छलैक किछु ... सब अपस्याँत ... एइ घर ... ओइ घर ... ड्राइंग रूम ... डाइनिंग ... किचेन ... कुरता सभक जेबी ... हैंगर मे टांगल कोटक जेबी ... स्लैब सब पर ... रैक-तैक सब ठाम, जे कोनो साक्ष्य भेटि सकए ...। ... पलंग जाहि पर सूतल रहथि से तँ जरि कऽ खाख भऽ गेल रहैक। ... ओहि पर जँ भेटलैक तऽ मात्र स्वेटर आÓ कुरताक रेख टा जे डोरिया छलैक ... छाउरक ढेरी पर चेन्ह ओहिना झकझक करैक प्रकाश मे ...।
... अन्तत: सफलता भेटल रहैक ... इंजीनियरेक ब्रेन काज कएने रहैक ... एकटा पत्र रोहिणी बाबूक हाथक लिखल भगवानक फोटो लग राखल भेटल रहैक ... पत्र मर्मस्पर्शी ... अपन अंतर्वेदनाक कथा ओहि मे ई लिखने रहथि ... वेदना असह्यï भेला पर मानव-मन विचलित भऽ जाइत छैक तकर अभिव्यक्ति कारुणिक शब्द मे देने रहथि ...। पत्रक निम्न अंश पठनीय ... मननीय ... ओ ग्रहण योग्य ...
'हे समाजक भाई-बन्धु ... सगा-संबंधी आÓ भावी कर्णधार लोकनि!
...हमर अंतिम प्रणाम।
... आइ अहाँ सब सऽ हमर संबंध छुटि रहल अछि सदा-सर्वदाक लेल। ... हम स्वेच्छा सँ देह मे आगि लगा स्वाहा भऽ रहल छी। ... एहि हेतु ककरो दोषी ठहराएब उचित नहि ... ककरो डॉढ़-बान्ह करब आÓ कि फाँसी पर चढ़ाएब कथमपि उचित नहि ... जे किछु से अपन भाग्यक दोष ... कर्मक गति ... 'करम गति टारत नहि टरेÓ कहलो गेल छैक ... जीवन सँ ऊबि चुकल छी ... हमरा लेल संसार मे केओ नहि ... जकरा अप्पन बुझलियैक ओहिठामक ठोकर तेहन लागल, जे धक्का बर्दाश्त नहि भए सकल ... मोन अछता-पछता रहल छल ... आगाँ-पाछाँ कऽ रहल छल ... बेचैनी छल ... की करी की नहि करी ... ई अंतद्र्वन्द्व हृदय केँ तेना गछारने छल ... तेना कऽ झकझोडऩे छल जे संतुलन केँ बिगाडि़ कऽ राखि देलक ... सभटा पढ़ल पोथी-पतरा केँ ताख पर रखबा देलक आÓ हाथ धरा कऽ कृतकार्य दिशि प्रवृत्त कएलक ... हम नकारि नहि सकलियैक ...। परिस्थितिक दासत्त्व स्वीकार करऽ पड़ल ... एकरा भावी बूझी अथवा हमर अज्ञानता से हम कऽ रहल छी ... एहि हेतु दुनियाँक कोनो व्यक्ति दोषी नहि ... बेर-बेर हम से कहि रहल छी ... अंतर्मनक ई स्वर अछि ... दोषी हम स्वयं छी जे परिस्थिति सँ आकुल-व्याकुल भऽ गेलहुँ ... विषम परिस्थिति देखि हड़बड़ा गेल होइ वा मन:स्थितिक कारणेँ गड़बड़ा गेल होइ से कहबाक सामथ्र्य हमरा मे रहि नहि गेल अछि, किन्तु, एतबा अवस्से कहब, जे हमरा वास्ते ककरो दंड नहि भेटैक ... हमरा प्रति जे केओ किछु कएलक, संभव थीक से हमर पूर्वजन्मक पापहिक फल हो आÓ कि एही जन्मक करनीक प्रतिफल ... तेँ ककरो पर दोषारोपण करब हमर काबलियत नहि हैत ... जाइतो-जाइत फेर एहन पाप करबाक दुस्साहस हम नहि करए चाहैत छी। ...
... मन:तापक विषय मे कहबे की करू? ... कही तऽ कोना कही? ... हृदय मे चिरसंचित अभिलाषा लऽ कऽ इंजीनियर-पुत्रक ओतऽ गेल रही। ... अवकाश प्राप्त कएलाक थोड़बे दिनुक अभ्यंतर पत्नीक देहांत सँ मोन टुटि चुकल छल ... अपन शरीर सेहो नाना रोग सँ जर्जर भऽ चुकल छल ... तेँ मोन बहटारबा लेल माझिल पुत्रक ओतऽ पहुँचल रही। ... ओना तऽ तीनू भाई आवेश-पात करैत रहथि ... श्रद्धा-भाव रखैत रहथि, मुदा ताहू मे माझिल केँ हमरा प्रति सर्वाधिक स्नेह प्रेम ... आÓ भक्ति-भावक उद्ïगार। ... हमहूँ गद्ïगद्ï ... जे चाहैत रही से मोन जोगर पाबि गद्ïगद्ï कोना ने होइतहुँ?
... किन्तु, हाय! कर्म से लिखल किछु आओर रहए ... मासो नहि लागल छल हैत तखने सुख-सौरभक विशेष आकांक्षा करब व्यर्थ प्रतीत होमए लागल ...। अपन दुखरा ककरा सुनबितियैक? ... अपन व्यथा-कथाक पन्ना ककरा समक्ष उनटबितियैक? ... लोक हँसैत ... थपड़ी पारैत ... नाँ हँस्सी होइत ... आÓ तेँ संकोच आÓ प्रतिष्ठïाक सवाल सेहो ... जँ ककरो किछु कहितियैक तऽ बोली देबऽ वलाक कमी नहि रहैत ... आÓ जे नीक लोक तकर 'इम्प्रेशनÓ हमरा प्रति केहन होइतैक ... अथवा जँ बेटे-पुतहुक केओ प्रत्युत्तर मे शिकायत करैत तऽ हमहीं से कोना ओ कतेक बर्दाश्त कऽ सकितियैक, तेँ चुप्पे रहब ठीक बुझैत रहलहुँ ... दम घुटैत रहल ... प्राण अवग्रह मे पड़ल रहल ... दूध-माछ दुनू बाँतर भेल रहल ... दूधक माछी बनल रहलहुँ ... तीतल बिलारि जकाँ सुटकल एइ कोन सऽ ओइ कोन करैत रहलहुँ ... बेलक मारल बबूर तर जाइत रहलहुँ ... झिज्झिरकोना खेलाइत रहलहुँ आÓ कखनो मौन-व्रत लए मौनी बाबा बनल रहलहुँ ... 'सब सऽ भला चुप्प ...Ó आÓ से सधने रहलहुँ ... एहि साधना मे अपना के सफल पबैत रहलहुँ ... हँसइ-खेलाइ वला व्यक्ति जे सब दिन रहल तकरा पर तेहन अंकुश लागि गेल रहैक ... तेहन दबाव दावनक बनल रहैक जे अक्क-बक्क चलऽ नहि दैक ... एक ईंच अपना मौन ससरऽ नहि दैक ...।
... अपना जनैत नीक कुल-शील ताकि बेटाक आदर्श विवाह आजुक समय मे लाखक लाख केर त्याक कऽ कऽ केने रही ... पवित्र पुतहु पाबि कृतकृत्य भेल रही ... मुदा, से महकारीक फऽर साबित भेली ... ऊपर सँ देखबा मे जेहने लाल-टुहटुह डगडग करैत आÓ बीच मे खदखद पिलुआ ठीक तेहने ... तेहन हड़ाशंखिनी निकलली, जे हमर सोन सन बेटाक हृदय पर्यन्त केँ बदलि देलनि ...।
... की कही? ... बेटा पर्यन्त डाँट-डपट शुरू कऽ देने रहथि ... 'बाबू! अहाँ अपन खाउ-पीबू ... आÓ राम-नाम जपैत रहू! अनेरे की घिनना-घिनौअलि घर मे करैत रहइ छी ... किदन-कहाँदन लबरी-फुसियाही मे हरदम लागल ... एमहर सऽ ओमहर करैत ... चैन सऽ रहब तइ मे की लगइयै??? ... की पुतहुओ संगेँ धीयापूता जेकाँ मुँह लगबैत रहइ छी ... लाजो नईँ होइयै कनेको?? ... अपने विचारू तऽ ठीक सऽ ... पढ़ल-लिखल भऽ कऽ एना करइ छी से छजइयै?? ... तखन कथी झूठ्ठे के रामायण आ गीता-पाठ करैत रहैत छी ... सबटा देखाबटिये किने? ओहि सब मे यैह लिखल छइ, जे खूब झगड़ा-झाँटी करू ... ककरो चैन सऽ नहि रहऽ दियैक ...???Ó
... ओह! मर्माहत भऽ गेल रही ... जे पुत्र हमरा समक्ष ठीक सँ ठाढ़ो नहि होइ छला सेहो तेना कऽ पत्नीक डर सँ हुनक दास बनि चुकल रहथि, जे कहितो कोना दन लगइयै ... पुतहुक तऽ कप्पे की कहू? ... कतेक कहू? ... कोना कहू ...?? ... एक संतानक माय बनि चुकल रहथि ... अपने एकटा प्राइवेट स्कूल मे हजार-दू हजार पर 'मैडमÓ बनि गेल रहथि ... एक भिनसर जे डेरा सऽ निकलथि से साँझे ठेका कऽ वापस आबथि ... तावत धरि डेरा मे बच्चा किलोल करैत ... फकसियारी कटैत ... हमरे पर रोबदाबक संग छोडऩे ... कनेको ओकरा कनला पर ओकर कानि हमरे पर झारैत ... की रहता? ... कने बच्चो के लेल पार नइँ लगतनिÓ ... खाली डेढ़ सेर कऽ गिरइ लेल हेतनिं ... बैसलठाम नीक-निकुत खाली भेल तकनि ... खोआ-मलीदा ... नोनगर-चहटगर ... भरि दिन चाह-पर चाह ... खिल्लीक खिल्ली पान फरमाइश पर फरमाइश चलैत ...। हमर बच्चा भरि-भरि दिन भीजल गदेला पर पड़ल रहइयै सेहो कने हटाएल कि धोअल पार नहि लगइ छनि ... हमरे कपार पर बथाएल रहता सब दिन ... जाथु ने आरो बेटा-पुतहु लग ... बाढ़नि लऽ कऽ नहि झाँटि कऽ बिदा कऽ देनि तऽ फेर हमर नामेँ कुकूर पोसि लिहथि ... हम कहइ छी ... एक रेख ... दू रेख ... तीन रेख ...!!!Ó
... हमर प्रवास जीवनक दुखनामाक कथा एत्तहि समाप्त नहि होइयै ... पुतहु केँ एतबे सऽ संतोष नहि भेलनि। ... स्कूल जएबा सँ पूर्व खेनाइ-जलखइक खानापुरी कऽ कऽ हमर बेटा केँ विदा कऽ दैथि, तखन अपने अहगर कऽ भोजन कए लेथि आÓ हमरा कहि जाथि—'बरतन मे सब किछु राखल छनि, भूख लगनि तऽ परसि कऽ खा लिहथि आÓ जतेक अईंठ थाड़ी-बाटी छइ सेहो धो-धा कऽ राखि दिहऽथिन ... चाह पिलहा कप सब घरे-बाहर जइँ-तइँ पड़ल छइ, सेहो धो लिहथि ... घर मे झाड़ू पोंछा सेहो लगा दिहऽथिन ... बिछाओन-ओछाओन झाडि़ कऽ रखिहथि ... दूधक पैकेट डेयरी फर्म सँ आनब सेहो नहि छूटनि ... हँ, सँझुका जलखइ सेहो बना कऽ रखिहथि ... कोनो काज छुटनि नहि, से ध्यान रखिहथि ...। ... एक बात तऽ कहइ लै भिनसरे सऽ विचारने रही, से बिसरले जाइ छलहुँ ... फेर मोन पडि़तय कि नइँ ... हम हिदायत करइ छियनि जे अधे राति सऽ ऊठि कऽ जे घंटी टनटना कऽ सभक निन्द हराम करइ छथि, से हमरा बर्दाश्त नइँ अछि, तेँ से आइ सऽ ध्यान रखबाक छनि ...। ... आरो बात सुनि लैथु ... यदि हमर बच्चा पैखाना-पेशाब करए तऽ तकरा शौच करा कऽ ठीक सऽ रखिहथिन ... कनला पर टहला देथिन ... घुमा-फिरा देथिन ... मारथिन—पिटथिन नहि ... हमरा जँ से कनिओ पता लागत तऽ घर मे तुरकान मचा देबनि ... सातो पुरुखा के उद्धार कऽ कऽ राखि देबनि ... हमरा नइँ चिन्हइ गेल छथि ... हमहूँ कोनो आजीगुजी घरक नइँ छी ... कोनो दरिद्राहाक बेटी नहि ... नामी-गिरामी अफसर बापक बेटी छी, जिनकर इलाका मे तूती बजइ छइ। ... इंजीनियर बेटा लऽ कऽ तऽर-उपर होइ छथि, तऽ से भ्रम छनि ... हमरो बाप के दू इ टा बेटा इंजीनियर छनि आÓ सेहो कोनो 'डोनेशनÓ वला नइँ 'कम्पीटीशनÓ सऽ 'सलेक्शनÓ वला ...। ... तेँ चेता दइ छियनि पहिने, ठीक सऽ हाथ-पैर समेटि कऽ रहथु जँ एतऽ रहबाक छन्हि आÓ नइँ से तऽ अपन गामक रास्ता नापथु ... पेन्शन पर गुजर करथु आÓ कि दोसरे बेटा-बेटी लग जा कऽ दिन-दुनियाँ देखथु ... पेट पोसथु ... हम आजिज-आजिज भऽ गेल छी एतबे दिन मे ... बाप रे बाप!!Ó
... पुतहु केँ जेना मिरगी आबि गेल होनि ... आÓ कि कोनो भूत-प्रेत देह पर आबि गेल होनि जे ब्लडप्रेशर बिना कारण के बढ़ैत गेलनि आÓ अर्र-दर्र बजैत चलि गेली आÓ हम ध्यानस्थ भावेँ बिनु किछु टोकारा दैत हुनकर सभटा गप्प सुनैत रहलहुँ ... अपमानक घोंट पिबैत गेलहुँ ... कारण, कनेको कल्ला अलगएला पर एगारह हजार वोल्टक खतरा छल ...। ... जीवन मे एहि सऽ पहिने जे कहियो नहि सुनने रही से सब सुनबाक अवसर भेटल छल ... गारि-मारि लोक कहइ छइ ... गारि तऽ कतेक बेर पढ़ल गेल छल ... मारि टा बाँचल छल ... सेहो कोनो दिन लागि सकइ छल ... लगैत छल जेना तकरो समय नजदीक आएल जाइ छलइ ... कैक बेर मोन मे आबए जे धरतीये फाटि जाइत आÓ ओही मे सीता जकाँ समा जइतहुँ ... आÓ कि रेल मे कटि जाइ ... कहियो होअए जे विषपाने कऽ कऽ जीवन-लीला समाप्त कऽ ली ... मुदा, धीया-पूताक माया-मोह माथ मे घूमऽ लागए, फलत: एहन क्रिया करबा सऽ बचबाक दुस्साहस करैत रहलहुँ ... कतबो अपमान होअए ... क्रोध आबए ... दु:ख होमऽ लागए ... तऽ अपने-आप केँ रोकी—'रे मन हरबरो जुनिÓ ... आÓ मोन सेहो हमरा रोकि लियए ... विपत्तिक क्षण मे ... कतेक बेर एहन भेल ... परंच अपना पर नियंत्रण रखने रहलहुँ ...।
... आइ नहि जानि हमर अंतज्र्वाला कतेक तीव्र भऽ गेल अछि—जे बाहरिये अग्निक ज्वाला सँ शान्त भऽ सकत—'विषस्य विषमौषधम्ïÓ कहल गेल छैक ... आÓ तेँ अंतिम निर्णय एहि रूपक लऽ छी ... आत्महत्या करब कायरताक प्रतीक छैक से बुझितो ... मुदा, हमरा संग विकल्प नहि रहल ... 'एहि जीवन सौं मरणो भला, जहाँ न आपनु कोयÓ केँ चरितार्थ करैत स्वयं देह मे आगि लगा एहि संसार सँ विदा भऽ रहल छी। ... आब सब सुख सऽ रहइ जाथु ... काल टरि रहल छनि ... सर्वदाक लेल काल ... महाकाल ... आब नहि ककरो अकच्छ करबनि ... कहियो ककरो किछु नहि कहबनि ... कहियो नहि ...।Ó
... यद्यपि रोहिणी बाबूक करुणा-कवलित कएनिहार पत्र सम्पूर्ण उपस्थित जन-समुदाय केँ जीवनक नाना अनुभूति पर सोचबाक लेल बाध्य कऽ देलकैक '... परंच नहि जानि की सत्य ... की असत्य ...?? ... के दूधक धोअल आÓ के कालिख सँ पोतल!! ...।Ó
—डा. धीरेंद्र नाथ मिश्र