हवाक झोंक जेकाँ आउ हमर जिनगी मे।
आउ निधोख अहाँ आउ हमर जिनगी मे।।
बन्न कोठली / बिलैया हमर कल्पना
ठेलि द्वार अहाँ आउ हमर जिनगी मे।
मन-संसार बुझू जेठक दुपहरिया
पहिल फुहार जेकाँ आउ हमर जिनगी मे।
बबूर-काँट भरल बाट, हम हेरायल
सिंगरहार जेकाँ आउ हमर जिनगी मे।
इनार भुतहा गिडय़ ई अन्हरिया
इजोत आँखिक दÓ आउ हमर जिनगी मे।
जबदियाह बनल जिनगी ठमकि कÓ रूकल
सुरक फाँक लÓ कÓ आउ हमर जिनगी मे।
चिड़ैक पाँखि लÓ कÓ आउ हमर जिनगी मे
इजोत आँखि लÓ कÓ आउ हमर जिनगी मे।
पहिल फुहार जेकाँ आउ हमर जिनगी मे।
ठेलि कÓ द्वार अहाँ आउ हमर जिनगी मे।
हवाक झोंक सन-सनाइत हमर जिनगी मे
आउ निधोख गुनगुनाइत हमर जिनगी मे।
आउ भरि पोख दनदनाइत हमर जिनगी मे।
- कुमार मनीष अरविन्द
सोमवार, फ़रवरी 14
शनिवार, फ़रवरी 12
चिन्हार-अनचिन्हार
ओ
नेने सँ परदेस बसनिहार
पितियौत भाइक सार के चिन्है छथि
ओ
मसिया ससुरक
पितियौत भाइ के चिन्है छथि
ओ ओइ दिन
आश्चर्य
पितियौता पितियौतक साढ़ूक भाइ के
सेहो खट् दÓ चीन्हि गेलाह
मुदा,
हमरा बेर मे
भटकि गेलाह
दुइए बरख भेल
हम कोन पापे पंजाब गेलहुँ
किछु पढ़ल रहितहुँ
तÓ दिल्ली जइतहुँ
पैंट
एकटा टी शर्ट
बस एतबे
बस एतबे मे
भटकै छथिन्ह बाबू
हमरा कहै छथि-
अहाँ के छी बाबू?
अहाँ जयकान्त?
न:
श्रीधर यौ
न:
हमरा लागल
बाबू एकदम्मे भटकि गेलाह।
हम कहलियनि
बाबू हम गुलेटन दास
अहीं टोल मे तÓ रहै छी
बहीर दासक बेटा
मोन नै अछिï?
भुतही गाछी मे हमही ने अहाँक सीसो पांगि दी
छोटका बउआ के कान्ह पर रोज इसकूल हमही ने लÓ जइयैनि
आÓ तेसरा दिन पर अहाँ के बंसीक माछ खोआबी
हमर बाप-पित्ती
अहीं सभक सेवा करैत जीवन गुजस्त कयलक
सभटा बिसरि गेलियै बाबू?
हँ, हँ, चिन्हलियौ
कह ने-
गुलटेनमा !
बहिराक बेटा !
- राजकुमार मिश्र
नेने सँ परदेस बसनिहार
पितियौत भाइक सार के चिन्है छथि
ओ
मसिया ससुरक
पितियौत भाइ के चिन्है छथि
ओ ओइ दिन
आश्चर्य
पितियौता पितियौतक साढ़ूक भाइ के
सेहो खट् दÓ चीन्हि गेलाह
मुदा,
हमरा बेर मे
भटकि गेलाह
दुइए बरख भेल
हम कोन पापे पंजाब गेलहुँ
किछु पढ़ल रहितहुँ
तÓ दिल्ली जइतहुँ
पैंट
एकटा टी शर्ट
बस एतबे
बस एतबे मे
भटकै छथिन्ह बाबू
हमरा कहै छथि-
अहाँ के छी बाबू?
अहाँ जयकान्त?
न:
श्रीधर यौ
न:
हमरा लागल
बाबू एकदम्मे भटकि गेलाह।
हम कहलियनि
बाबू हम गुलेटन दास
अहीं टोल मे तÓ रहै छी
बहीर दासक बेटा
मोन नै अछिï?
भुतही गाछी मे हमही ने अहाँक सीसो पांगि दी
छोटका बउआ के कान्ह पर रोज इसकूल हमही ने लÓ जइयैनि
आÓ तेसरा दिन पर अहाँ के बंसीक माछ खोआबी
हमर बाप-पित्ती
अहीं सभक सेवा करैत जीवन गुजस्त कयलक
सभटा बिसरि गेलियै बाबू?
हँ, हँ, चिन्हलियौ
कह ने-
गुलटेनमा !
बहिराक बेटा !
- राजकुमार मिश्र
गुरुवार, फ़रवरी 10
गजल
धरम-करम मे हेबनि मे विश्वास बढ़ल छै ठाकुर जी
हमर कहब जे आर बहुत किछु खास बढ़ल छै ठाकुर जी!
पँच-पँच कोटिक वाहन चढ़ल, कुबेर लोकनि अवतरलाहए
शहरक कात झोपड़पट्टी मे दास बढ़ल छै ठाकुर जी!
ओमहर देखू लक्ष-लक्ष भगवाधारी कमरथुआ केँ
एमहर रक्त गरम पीबक अभ्यास बढ़ल छै ठाकुर जी!
साँच भेल वनबासी राम, वहिष्कृत घट-घट जिनगी सँ
चीर हरन आ दुर्योधन संग रास बढ़ल छै ठाकुर जी!
आइ काल्हि ऋषि-मुनिक देशक मे, बाबा बहुत उखड़लाहए
कपरकोट कल्याणक स्वार्थक चास बढ़ल छै ठाकुर जी!
क्यो माला क्यो छाप-तिलक, क्यो निज चरणामृत बेचैए
लक्ष्मी-वाहन भीआइपी लै पास बढ़ल छै ठाकुर जी!
आस्था-क्षमा मूल धरमक-क ख ग सभ दिन रहलैए
त्याग-तप उपकार शून्य, उपहास बढ़ल छै ठाकुर जी!
- सियाराम झा 'सरसÓ
हमर कहब जे आर बहुत किछु खास बढ़ल छै ठाकुर जी!
पँच-पँच कोटिक वाहन चढ़ल, कुबेर लोकनि अवतरलाहए
शहरक कात झोपड़पट्टी मे दास बढ़ल छै ठाकुर जी!
ओमहर देखू लक्ष-लक्ष भगवाधारी कमरथुआ केँ
एमहर रक्त गरम पीबक अभ्यास बढ़ल छै ठाकुर जी!
साँच भेल वनबासी राम, वहिष्कृत घट-घट जिनगी सँ
चीर हरन आ दुर्योधन संग रास बढ़ल छै ठाकुर जी!
आइ काल्हि ऋषि-मुनिक देशक मे, बाबा बहुत उखड़लाहए
कपरकोट कल्याणक स्वार्थक चास बढ़ल छै ठाकुर जी!
क्यो माला क्यो छाप-तिलक, क्यो निज चरणामृत बेचैए
लक्ष्मी-वाहन भीआइपी लै पास बढ़ल छै ठाकुर जी!
आस्था-क्षमा मूल धरमक-क ख ग सभ दिन रहलैए
त्याग-तप उपकार शून्य, उपहास बढ़ल छै ठाकुर जी!
- सियाराम झा 'सरसÓ
बुधवार, फ़रवरी 9
हम मैथिल छी
केओ अहाँ कें दरभंगिया कहत,
केओ अहाँ कें बिहारी कहत,
केओ अहाँ कें बाजर पर टोकत,
केओ अहाँ कें पहिरन पर हँसत,
मुदा ! अहाँ अपन काज बुझबै,
अप्पन काज नीक सँ करबै,
तखन, अहाँक परिश्रम
आ अहाँक मेधा देखैत
सब अहाँ कें मानत
सब अहीं कें पूछत
आ अहाँ कहबै जे हम मैथिल छी।
की दिल्ली, की पंजाब
की मुंबई, की गुजरात
कोलकाता सँ आसाम
सैनिक रूपेँ देशक सिमान।
सब ठाम अहाँ विराजमान।
अप्पन काजक बलेँ छोड़ैत निशान।
हे! अहाँ कहियो परिश्रम केर बाट
नइँ छोड़ब।
सब ठामक परिवेश सँ अपना कें जोड़ैत
अहाँ कहबै जे हम मैथिल छी।
अहाँक संघर्ष,
अहाँक सफलता, अहा...अहा...
अहाँ सम्पन्न हैब,
प्रतिष्ठित हैब,
मुदा हे! अहाँ संघर्षक बाट
नइँ छोड़ब,
मोन पड़त अप्पन गाम
ताहु लेल सोचब,
अप्पन संस्कृति, अप्पन भाषा
नइँ बिसरब।
...आ जँ कहियो ईष्र्यावश कियो
हिंसा पर उतरि जाय
त पड़ायब नइँ।
अप्पन गामक माटि केर सप्पत
कहबै जे हम मैथिल छी।
- आत्मेश्वर झा
केओ अहाँ कें बिहारी कहत,
केओ अहाँ कें बाजर पर टोकत,
केओ अहाँ कें पहिरन पर हँसत,
मुदा ! अहाँ अपन काज बुझबै,
अप्पन काज नीक सँ करबै,
तखन, अहाँक परिश्रम
आ अहाँक मेधा देखैत
सब अहाँ कें मानत
सब अहीं कें पूछत
आ अहाँ कहबै जे हम मैथिल छी।
की दिल्ली, की पंजाब
की मुंबई, की गुजरात
कोलकाता सँ आसाम
सैनिक रूपेँ देशक सिमान।
सब ठाम अहाँ विराजमान।
अप्पन काजक बलेँ छोड़ैत निशान।
हे! अहाँ कहियो परिश्रम केर बाट
नइँ छोड़ब।
सब ठामक परिवेश सँ अपना कें जोड़ैत
अहाँ कहबै जे हम मैथिल छी।
अहाँक संघर्ष,
अहाँक सफलता, अहा...अहा...
अहाँ सम्पन्न हैब,
प्रतिष्ठित हैब,
मुदा हे! अहाँ संघर्षक बाट
नइँ छोड़ब,
मोन पड़त अप्पन गाम
ताहु लेल सोचब,
अप्पन संस्कृति, अप्पन भाषा
नइँ बिसरब।
...आ जँ कहियो ईष्र्यावश कियो
हिंसा पर उतरि जाय
त पड़ायब नइँ।
अप्पन गामक माटि केर सप्पत
कहबै जे हम मैथिल छी।
- आत्मेश्वर झा
रविवार, फ़रवरी 6
मिथिला क प्रभात झा
प्रभात झा यानी भारतीय जनता पार्टी क ओ जानल पहचानल नाम जे कार्यकर्त्ता स लयक पार्टी के वरिष्ठ पधाधिकारी के जुवान पर अछि .पार्टी के जमीनी नेता आ समाज के हर बर्ग मे अपन संवाद स्थापित करै वाला प्रभात झा क ' ताल्लुकात ,मिथिला स रहलैंह अछि लेकिन ओ आई मध्य प्रदेश के लोकप्रिय नेता के रूप मे जानल जायत छैथ .भारतीय जनता पार्टी मे ई शायद पहिल राजनितिक प्रयोग होयत जे पार्टी कोनो राज्य मे दोसर राज्यक व्यक्ति के पार्टी अध्यक्ष नियुक्त केने हो . मध्य प्रदेश बीजेपी के कमान प्रभात झा के देल गेल अछि यानी बीजेपी शासित देश के प्रमुख राज्य मध्यप्रदेश मे पार्टी सञ्चालन आउर पार्टी क ' आधार मजबूत करबाक जिम्मेदारी प्रभात झा के देल गेलैंह अछि .मधुबनी निवासी राज कुमार झा कहैत छथि "स्वर्गीय ललित नारायण मिश्रा के बाद मिथिला मे कोनो कद्दावर नेता क आभाव रहल अछि जिनकर पहचान राष्ट्रीय स्तर पर हो ,प्रभात झा अहि परम्परा मे एकटा नव उम्मीद जगोलैंह अछि "
स्वर्गीय परमेश्वर झा आ माता अमरावती क ' पुत्र प्रभात झा क ' जन्म ४जुन १९५७ मे दरभंगा के हरिहर पुर गाम मे भेल छलैन्ह लेकिन ओ अपन अध्यन अध्यापन मध्यप्रदेश मे पूरा केलैन्ह .राजनीती शास्त्र स एम् ए आउर क़ानून के डिग्री लेलक बाद श्री झा समाज सेवा के अपन ध्येय बनौलैंह आ राजनीती मे शुचिता आ समग्रता क आधार मजबूत करबा लेल निरंतर संघर्षशील रहलाह .बीजेपी मे शायद ई पहिल नेता छैथ जे अपन सम्पति क 'व्योरा हर साल प्रस्तुत करैत छैथ .
२००८ मे पार्टी हुनकर राजनितिक दक्षता देखि आमजन क समर्पित कार्यकर्त्ता प्रभात झा के संसद मे अपन भूमिका निभेवाक मौका देल्कैंह .श्री झा राज्य सभा आउर ओकर महत्वपूर्ण कमिटी क सदस्यक रूप मे हरदम संसद के गरिमा आ आम जन के सवाल के लयक प्रयत्नशील रहलाह .
बीजेपी के शीर्ष नेता क पदचिन्ह पर चलैत श्री झा अपन जीवन क मत्वपूर्ण हिस्सा समाज सेवा आउर पत्रकारिता मे लागोउलैंह.प्रभात झा बीजेपी के मुखपत्र कमल सन्देश क संपादक बनि पार्टी क निति आउर विचार के कार्यकर्ताक बीच पहुचाबैत रहलाह अछि .लेखक के रूप मे श्री झा जन गन मन आउर दीनदयाल उपाध्याय क जीवनी सहित कतेको महत्वपूर्ण पुस्तक लिखलैंह.संघ के समर्पित कार्यकर्त्ता प्रभात झा देश सेवा आ ईमानदारी के अपन पूजी मान्लैंह त राजनीती के साध्य .ओ राजनीती के साधन माने वाला के सामने एकटा मिसाल कायम केलैन्ह जे राजनीती मे आइओ ईमानदारी आउर निष्ठां के क़द्र छैक .आइओ समाजसेवा के मूल्य छैक .प्रभात झा स संपर्क अहि ई मेल स कयल जा सकैत अछि . prabhatjhabjp@gmail.com
के बुझत मिथिलाक दर्द
गौरीशंकर राजहंस, वरिष्ठ पत्रकार एवं पूर्व सांसद
मिथिलांचल के विषय मे लोक खूब सुनैत -सुनबैत अछि ,मुदा वास्तविक अनुभूति ओतहि जा क ' होयत छैक .कहियो मिथिला क ' भूमि अन्नक भंडार छल .सही अर्थ मे ओ सोना उगलैत छल ,आई सर्वत्र गरीबी पसरल छैक .यैह कारण जे मिथिलांचल सँ लाखोक संख्या मे लोक रोजी रोटी खोज मे दिल्ली ,मुंबई ,पंजाब आ दोसर शहर जा रहल अछि .पहिने लोक कलकत्ता जायत छल ,मुदा आई अहि दौर मे हरियाणा ,पंजाब ,दिल्ली मे मिथिलाक लोक संघर्ष क़' रहल अछि .मजदूरक टोली भोर होयते जखन काम काज पर जयबाक उपक्रम करैत छथि तं हुनक गप सुनी हमरा अपार आनंदक अनुभव होयत अछि .मिथिला सँ दूर होयतो ई वर्ग अपन भाषा नहि छोडलान्ही..सांच गप त ' ई अछि जे दुनिया में फ्रेंच भाषाक बाद मैथिली के नाम अबैत अछि .सबसँ मधुर भाषा के श्रेणी में .बंगला के नम्बर एकर बाद अबैत अछि ..चारि करोड़ मैथिल भाषी छी लेकिन मातृभाषा उपेक्षित भ ' रहल अछि .
मिथिलाक सबसँ पैघ समस्या अछि प्रलयंकारी बाढी..हर साल ई मीडिया के लेल रिकॉर्ड तोड़े वाला होइत छैक .लेकिन ई सम स्या सँ निजात आई तक नहि भेट सकल .हम अनेक वर्ष धरी संसद मे अहि समस्या के तरफ सदन आ सरकार के आकर्षित कयलहूँ .समाधान के लेल रास्ता बतेलहूँ जे जातक नेपाल क 'नदी कें बानहल नहि जायत ,सालो साल भरि रहल बालूक सफाई आ पनिक निकासी के समुचित व्यवस्था नहि होयत .ता धरी मिथिलांचल क गरीबी आ बाढी क तबाही सँ उबरनाय मुश्किल .नेपाल के अगर अहि समस्या क समाधान लेल राजी कयल जाय त अहि क्षेत्र मे हजारों मेगावाट बिजली उत्पन्न भ ' सकैत अछि .ओही बिजली सँ नेपाल आ मिथिलांचल के कायाकल्प भ ' सकैत अछि .अहि सँ भरपूर ओद्योगीकरण हेते आ दुनु देश मे खुशहाली लौटत.यदि से भ' जय त मिथिलांचल सँ पलायन अपने आप रुकी जायत .हमरा सोझा मे भूटान उदाहरण अछि .भूटानक नदी सँ बिजली क ' जतेक उत्पादन होयत छैक तकर तीन चौथाय भाग भारत मे निर्यात होयत छैक ..भारतक जाही राज्य मे भूटान क 'चूका प्रोजेक्ट 'सँ बिजली अबैत अछि ओही राज्य में बिजली क स्थिति देश के अन्य राज्य के तुलना मे कही बेहतर अछि .जं भूटान सँ एहन समझौता भ' सकैत अछि त नेपाल सँ किएक नहि भ' सकैत अछि .
हम देखलहु जे समस्त मिथिलांचल मे कोनो एहन अस्पताल नहि छैक जत' गरीब मरीज इलाज़ करबा सकैथ .लाचार मरीज के दिल्ली आने पडैत छैन्ह .दिल्ली मे एम्स के इलाज आ रहनाय सहनाय के दिक्कत के अंदाज लगा सकैत छी .की एहने अस्पताल मिथिलांचल मे नहि भ' सकैत अछि ? सबसँ दुखक बात ई जे मिथिलांचल मे 60 फिसद सँ ज्यादा घर मे कोनो शौचालय नहि छैक .अइयो अधिकाश स्त्रिगनसमाज के सांझ -भिनसर खाली सड़क के इंतजार करै पडे छैन्ह .राजनेता सभ मात्र अपन जेबी टा भडलैंह आ जातिक नामपर लोक के लड्बैत रहलाह .
मिथिलांचल मे समस्या अनंत अछि .लेकिन कोनो एहन समस्या नहि अछि जकर निदान नहि छैक .आबश्यकता छैक लोक सबके जागरूक हेबाक .अबश्यक छैक नौजवान के आगा अयबाक .अन्यथा मिथिला के दर्द के केयो नहि बुझी सकत
मिथिलांचल के विषय मे लोक खूब सुनैत -सुनबैत अछि ,मुदा वास्तविक अनुभूति ओतहि जा क ' होयत छैक .कहियो मिथिला क ' भूमि अन्नक भंडार छल .सही अर्थ मे ओ सोना उगलैत छल ,आई सर्वत्र गरीबी पसरल छैक .यैह कारण जे मिथिलांचल सँ लाखोक संख्या मे लोक रोजी रोटी खोज मे दिल्ली ,मुंबई ,पंजाब आ दोसर शहर जा रहल अछि .पहिने लोक कलकत्ता जायत छल ,मुदा आई अहि दौर मे हरियाणा ,पंजाब ,दिल्ली मे मिथिलाक लोक संघर्ष क़' रहल अछि .मजदूरक टोली भोर होयते जखन काम काज पर जयबाक उपक्रम करैत छथि तं हुनक गप सुनी हमरा अपार आनंदक अनुभव होयत अछि .मिथिला सँ दूर होयतो ई वर्ग अपन भाषा नहि छोडलान्ही..सांच गप त ' ई अछि जे दुनिया में फ्रेंच भाषाक बाद मैथिली के नाम अबैत अछि .सबसँ मधुर भाषा के श्रेणी में .बंगला के नम्बर एकर बाद अबैत अछि ..चारि करोड़ मैथिल भाषी छी लेकिन मातृभाषा उपेक्षित भ ' रहल अछि .
मिथिलाक सबसँ पैघ समस्या अछि प्रलयंकारी बाढी..हर साल ई मीडिया के लेल रिकॉर्ड तोड़े वाला होइत छैक .लेकिन ई सम स्या सँ निजात आई तक नहि भेट सकल .हम अनेक वर्ष धरी संसद मे अहि समस्या के तरफ सदन आ सरकार के आकर्षित कयलहूँ .समाधान के लेल रास्ता बतेलहूँ जे जातक नेपाल क 'नदी कें बानहल नहि जायत ,सालो साल भरि रहल बालूक सफाई आ पनिक निकासी के समुचित व्यवस्था नहि होयत .ता धरी मिथिलांचल क गरीबी आ बाढी क तबाही सँ उबरनाय मुश्किल .नेपाल के अगर अहि समस्या क समाधान लेल राजी कयल जाय त अहि क्षेत्र मे हजारों मेगावाट बिजली उत्पन्न भ ' सकैत अछि .ओही बिजली सँ नेपाल आ मिथिलांचल के कायाकल्प भ ' सकैत अछि .अहि सँ भरपूर ओद्योगीकरण हेते आ दुनु देश मे खुशहाली लौटत.यदि से भ' जय त मिथिलांचल सँ पलायन अपने आप रुकी जायत .हमरा सोझा मे भूटान उदाहरण अछि .भूटानक नदी सँ बिजली क ' जतेक उत्पादन होयत छैक तकर तीन चौथाय भाग भारत मे निर्यात होयत छैक ..भारतक जाही राज्य मे भूटान क 'चूका प्रोजेक्ट 'सँ बिजली अबैत अछि ओही राज्य में बिजली क स्थिति देश के अन्य राज्य के तुलना मे कही बेहतर अछि .जं भूटान सँ एहन समझौता भ' सकैत अछि त नेपाल सँ किएक नहि भ' सकैत अछि .
हम देखलहु जे समस्त मिथिलांचल मे कोनो एहन अस्पताल नहि छैक जत' गरीब मरीज इलाज़ करबा सकैथ .लाचार मरीज के दिल्ली आने पडैत छैन्ह .दिल्ली मे एम्स के इलाज आ रहनाय सहनाय के दिक्कत के अंदाज लगा सकैत छी .की एहने अस्पताल मिथिलांचल मे नहि भ' सकैत अछि ? सबसँ दुखक बात ई जे मिथिलांचल मे 60 फिसद सँ ज्यादा घर मे कोनो शौचालय नहि छैक .अइयो अधिकाश स्त्रिगनसमाज के सांझ -भिनसर खाली सड़क के इंतजार करै पडे छैन्ह .राजनेता सभ मात्र अपन जेबी टा भडलैंह आ जातिक नामपर लोक के लड्बैत रहलाह .
मिथिलांचल मे समस्या अनंत अछि .लेकिन कोनो एहन समस्या नहि अछि जकर निदान नहि छैक .आबश्यकता छैक लोक सबके जागरूक हेबाक .अबश्यक छैक नौजवान के आगा अयबाक .अन्यथा मिथिला के दर्द के केयो नहि बुझी सकत
शनिवार, फ़रवरी 5
मिथिलाक संगीत परंपरा
’सम’ एवं ’गीत’ दुनूक संयोग सँ संगीत शब्दक निर्माण भेल अछि । ’सम’ (सम्यक)क अर्थ नीक एवं सुंदर होइछ । वाद्य एवं नृत्य दुनूक मेल भेने गीत नीक आ सुंदर बनि जाइछ । गीत, वाद्य एवं नृत्य एहि तीनूक समन्वित स्वरूप केँ संगीत कहल गेल अछि । संगीत सँ आनंदक आविर्भाव होइछ । ज्ञान आ योगक सर्वश्रेष्ठ ज्ञानी याज्ञवल्क्यक कथन अछि -
वीणा वदन तत्वज्ञ: श्रुति जाति विशारद:।
तालज्ञश्चा प्रयासेन मोक्षमार्ग प्रयच्छति ।
- याज्ञवल्क्य स्मृति
(संगीत रूपी एकमात्र साधन सँ धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष चारू पुरुषार्थ भेटैत अछि ।)
संगीत जगतक इतिहास अति प्राचीन अछि । हजारो-हजार वर्षक एहि इतिहास मे हमरा लोकनि कें ओकर क्रमिक विकास दृष्टिगोचर होइछ । विदित अछि जे भारत मे सर्वप्रथम साम गायनक प्रचलन छल । वेद परंपरा मे संगीतक उत्पत्ति सामवेद सँ मानल गेल अछि । तें कहल गेल अछि जे ’साम्वेदादिदं गीतं सज्जग्राह पितामह:’।
एहिना एक परंपराक पश्चात दोसर परंपरा आरंभ भेल । दोसर परंपराक रूप मे गाथा गायन, राग गायन एवं थाट गायनक विकास भेल । युग परिवर्तनक संग संगीत जगत मे सेहो परिवर्तन होइत गेल अछि । ई परिवर्तन मात्र गायन मे नहि, अपितु रागक स्वरूप मे सेहो होइत रहल अछि । सर्वप्रथम श्रुति, श्रुति सँ स्वर, स्वर सँ ग्राम, ग्राम सँ मूर्च्छना, मूर्च्छना सँ जाति, जाति सँ राग, राग सँ थाटक उत्पत्ति भेल अछि ।
संगीत शास्त्रक अवतरण मे अनेक परंपराक उत्पत्ति भेल अछि, यथा - वेद परंपरा, आगम एवं पुराणक परंपरा तथा ऋषि प्रोक्त परंपरा । उपर्युक्त तीनू परंपरा मे अनेकानेक महर्षिक प्रादुर्भाव भेल अछि जे अपन दिव्यज्ञान सँ संगीत जगत केँ आलोकित करैत संगीत शास्त्रक रचना कयलनि । एहि धारा मे क्रमश: नन्दिकेश्वर, नारद, स्वाति, तुम्बरू, भरत, दत्तिल, कोहल, विशाखिल, कश्यप, याष्टिक, आंजनेय, हनुमन्मत, शार्दूल, मतंग, सुधाकलश, अभिनवगुप्त, महाराज भोज, नान्य देव, सोमेश्वर, जगदेक मल्ल, शारदातनय, सोमराज, जयदेव, शारंगदेव, पं. दामोदर, पं, अहोवल एवं पं. लोचन झा आदि मुख्य छथि ।
भारतीय संगीत जगत विश्वक अन्य कोनो देशक संगीत सँ प्राचीन अछि । प्राचीन भारत मे गायनक एक्के पद्धति छल । संगहि एक्के प्रकारक संगीत विद्यमान छल । मुसलमान शासकक आक्रमण भारत मे भेलाक बाद एहिठाम आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक समस्त क्षेत्र मे आघात भेल । एहिठामक गायन परंपरा पर प्रहार भेल । तेँ परंपरा छिन्न-विछिन्न भ’ गेल । उपर्युक्त आक्रमण महमूद गजनबी द्वारा दशम शती ई.क अंतिम दशक मे भेल । अलबरूनी ई स्वीकार कयने छथि जे "हिन्दू विद्या ओतय चलि गेल जत’ हुनका लोकनिक पहुँच नहि छ्ल ।"
महमूद गजनबीक कश्मीर पर आक्रमण १०१५ मे भेल । ओहि ठामक पंडित छल वा मूर्ख, गुणी छल वा गँवार सभ पर एकर व्यापक असरि पड़ल । एहि बात सँ पूर्ण भारतक राजा, विद्वान, कलाकार, धर्मनिष्ठ सभ जन मे भयावह स्थिति व्याप्त भ’ गेल । एहने विषम स्थिति मे पम्मार क्षत्रिय (कर्णाट देशीय) नान्यदेव मिथिला पर चढ़ाई क’ शासक बनि गेलाह । हिनक शासनकाल १०८९ मे स्थापित भेल । किछु दिन तँ निर्विघ्न बीतल, मुदा बाद मे बंग देशीय मुर्शिदाबाद जिलाक अंतर्गत कर्ण सुवर्ण राजा आदि शूर (विजसेन)क आज्ञानुसार हुनक पुत्र बल्लालसेन मिथिला पर आक्रमण कयल । नान्यदेव केँ परास्त क’ हुनका बंदी बनौलकनि ।
महाराजा नान्यदेव संगीत शास्त्रक मूर्धन्य विद्वान छ्लाह । हुनक प्रसिद्ध ग्रंथ ‘सरस्वती हृदयालंकार’ अछि, जकर दोसर नाम ’भरत भाष्य’ अछि । एहि ग्रंथ मे पूर्वर्ती विद्वानक यथा आपिशूल, पाणिनि, विशाखिल, कश्यप, मतंग, देवराज, शतातय तथा रत्नकोशक चर्चा अछि । महाराज नान्यदेव गांधार नगरक चर्चा करैत ओहि सँ उत्पन्न राग समूह केँ लौकिक व्यवहारक लेल उपयुक्त मानलनि ।
१४म शताब्दीक आरंभ सँ एहिठामक कला पुनर्जीवित भेल । कलाकार एवं शास्त्रकार पुन: अपन वृतिक प्रति जागरूक भेलाह । उत्तर भारत एवं दक्षिण भारतक बीच एक व्यवस्था पर सहमति बनल, जाहि सँ उत्तर भारत मे थाट आ दक्षिण भारत मे मेलक उत्थान भेल ।
भारतीय संगीतक परिप्रेक्ष्य मे जखन हम मिथिलाक संगीत परंपरा पर दृष्टिपात करैत छी तँ देखैत छी जे एकर अपन एक पृथक इतिहास अछि जाहि मे एकर प्राचीनता एवं परंपरा समटल अछि । संगीतक क्रमिक विकासक वास्तविक स्वरूप ’मिथिलाक संगीत परंपरा’ मे भेटैत अछि ।
मिथिलाक संगीत परंपरा हेतु वैदिक युग पर दृष्टि देबय पड़त । ओहि युग मे संगीतक संपूर्ण थाती पुरहितक हाथ मे छल । संगीतक प्रचार-प्रसार मे पुरहितक अहम भूमिका रहल । पुरहित आन जातिक नहि मात्र ब्राह्मण होइत छ्लाह । यज्ञादि अवसर पर ब्राह्मण लोकनि सामवेदक ऋचा के सछंद आ सस्वर गबैत छ्लाह । एहि युगक संगीत अधिकांशतया यज्ञक अंगतम रूप मे बनल रहय । यज्ञ पूजादि मे सामगान अनिवार्य छन । शतपथ-ब्राह्मण मे तँ एहन कहल गेल अछि जे बिना सामगानक यज्ञ पूर्णे नहि होइत छल । एहि तरहें सामगान ब्राह्मणक एक विशेष अंग छ्ल । समाजक अन्य वर्ग कें ज्ञानदान करब, वैदिक रीति-रेवाज कें समाज द्वारा ग्रहण करायब तथा पूजा-पाठ, यज्ञ-याप आदि मे सामगान करब हुनक प्रधान कार्य छ्ल । ब्राह्मण परिवार मे सामवेदक ज्ञाता प्राय: सभ होइत छलाह जाहि कारणें हुनक संगीतज्ञ हैब स्वाभाविके छल । प्राचीन परिपाटीक प्रभाव आइयो संपूर्ण मिथिला मे देखल जाइत अछि । जन्म सँ ल’ यज्ञोपवीत आदि प्रत्येक अवसर पर कोनो ने कोनो रूपें सामगान होइतहि अछि । वर्तमानक ई प्रचलित रेवाज वैदिके युगक देन थिक । तें मिथिलाक संगीत परंपराक यात्रा वैदिक युग सँ आरंभ मानल गेल अछि ।
सामगायनक परंपरा चलिते रहल कि एक टा दोसर धारा आरंभ भेल जे लोक वा लौकिक संगीत गायन परंपरा कहौलक । ओहि गान मे नियमक परिपालनक कोनो व्यवस्था नहि छल । जीवनक संपूर्ण गतिविधिक सजीव चित्रण ओहि गायन मे रहैत छल । जखन सामगान समाजक अन्य वर्गक हेतु दुरूह भ’ गेल, तँ वंचित जनमानस ओहि गानक नकल अपन-अपन घर मे आरंभ क’ देलक । एहि गान मे सामगानक नियम-बंधन कें सुविधानुसार तोड़ि-मरोड़ि देल गेल । ई लौकिक गान जातीय गान एवं ऋतु गानक रूप मे प्रकट भेल जाहि मे पारस्परिक रूढ़क जगह लोक जीवन लैत गेल ।
एहि तरहें देखबा मे अबैत अछि जे मिथिला मे कालक्रमे गानक दू स्रोत भ’ गेल । एक स्रोत मे सामगानक जे एक विशेष वर्गक अधीनस्थ रहल, दोसर ओ गान जे सर्वजन सुलभ-सरल भेल जाहि मे गानक स्वतंत्रता छल । स्वतंत्र गान मे लौकिक संगीत चलैत रहल एवं बंधन ओ नियमक आधार पर चलयवला सामगान मे जड़ता अबैत गेल ।
सामगायनक उपरांत गाथा गायनक परिपाटी आरंभ भेल । ऋग्वेदक अनेक मंत्र मे ’गाथा’ शब्दक उल्लेख अछि । ’गाथा’ शब्दक प्रयोग पद्य वा गीतक अर्थ मे प्राप्त होइत छल । गाथा गायन कर’ वला कें ’गाथिन’ कहल गेल अछि । ’ऐतरेय ब्राह्मण’ मे ऋक् एवं गाथा मे अंतर देखाओल गेल अछि । ऋक् दैवी अछि आ गाथा मानवी । ब्राह्मण ग्रंथ सँ ई प्रमाणित होइत अछि जे ऋक् यजु: आ साम सँ पृथक होइत छल, ओकर प्रयोग मंत्रक रूप मे नहि कयल जाइत छल । कोनो राजाक सुकीर्ति कें लक्षित क’ लोकगीतक रूप मे ओकर उपस्थापन कयल जाइत छल । जन-समूह द्वारा ओ गीत गाओल जैत छल आ गाथाक नामे ओ प्रचलित छल । मिथिला मे लौकिक संगीत एहिना जनजीवनक संग चलैत रहल ।
मिथिला मे लोरिक, सलहेस, दीना-भद्री, विहुला, नैका-बनिजारा आदि अनेक गीत अछि जे गाथा गीतक नामे जानल गेल । संभवत: सामगायनक दुरूहताक कारणे लोक ओहि सँ विमुख होइत गेल आ गाथा गायनक प्रति आकर्षित होइत गेल ।
एहि बीच छंद गायनक एकटा नवीन परंपरा आरंभ भ’ गेल । एहि परंपराक परिपोषक विद्वत्जन भेलाह । गाथा गायन उन्मुक्त एवं स्वच्छंद रूपें गाओल जाइत छल । कोनो तरहक प्रतिबंध एहि गायन मे नहि रहैत छल । एक व्यक्ति अनुकरण क’ अगिला पीढ़ी कें अनुकरण हेतु प्रेरित करैत छलाह एवं गाथा गायनक मौखिक शिक्षा दैत छलाह । ई परिपाटी सैकड़ो वर्ष धरि चलैत रहल आ औखन चलि रहल अछि । भारतीय भाषा मे सभ सँ प्राचीन छंद सभ वेद मे उपलब्ध अछि । वेदेक छंद सँ मैथिलीक छंद सभ विकसित भेल हो से संभव अछि । वेद मे गायत्री, उष्णिक, अनुष्टुप, बृहती, पंक्तिक, त्रिष्टुप एवं जगती जे क्रमश: ८, १०, ११ वा १२ वर्णक चरण सभ सँ बनल । वैदिक कालीन परंपराक बाद जे कवि वा विद्वान भेलाह ओ अपन विवेकानुसार आकस्मिक लयक आ तालक वर्ण-विन्यास करैत रहलाह । कालक्रमे ई रचना सामान्य छंद सँ बेसी चमत्कारी आ कर्णप्रिय होमय लागल । काव्य मे छंदक विशेष स्थान छल । कालांतर मे वैह छंद तालक स्वरूप मे आबि गेल यथा - छओ मात्राक ताल-दादरा, खेमटा । सात मात्राक ताल - तिब्रा, रूपक एवं पश्तो । आठ मात्राक ताल - कहरबा एवं धुमाली, दस मात्राक ताल - झप्ताल एवं सूलताल । बारह मात्राक ताल - एकताल, चौताल । चौदह मात्राक ताल - दिपचंदी (चाँचर), झूमरा, धमार, गजझंपा आ आड़ा चौताल । सोलह मात्राक ताल - त्रिताल, यत एवं तिलवाड़ा अछि ।
साधारणतया मैथिली लोकगीत वर्णावृतक अपेक्षा मात्रिक छंद मे लिखल गेल । मात्रिक छंद मे मात्रा गनल जाइत छल आ तद्नुकूल ताल मे गाओल जाइत छल ।
छंद गायनक उपरांत गाथा गायनक परिपाटी आरंभ भेल । प्रबंध रचना संस्कृत मे होमय लागल । प्रसिद्ध भक्तकवि जयदेव रचित ’गीत गोविंद’ एकर उदाहरण अछि । प्रबंध गायन मे संस्कृत पद कें राग मे बान्हि उपस्थापन कयल जाइत छल । मिथिला मे ई गायन पद्धति कैएक सय वर्ष धरि रहल । ओहि गीत मे अनेक चरण होइत छल, जेना- उद्ग्राह, मेलापक, ध्रुव, अंतरा एवं आभोग । ई प्राय: सामगानक प्रस्ताव, उद्गीत, प्रतिहार, निधान, उपद्रव आदिक प्रतिरूप रहल हो से संभव । प्रबंध गीतक समस्त भेदक विषय मे उल्लेख करब उचित नहि, कारण एकर विशाल विवरण अछि । संक्षेप मे ई कहल जा सकैछ जे मिथिला मे एहि गीत गायनक परंपरा कें शास्त्रीय संगीत गायनक द्वारा जियाक’ रखलनि स्व. माँगन, स्व. रामचन्द्र झा, स्व. बालगोविन्द झा, स्व. रामचतुर मल्लिक आ स्व. दरबारी दास नटुआ ।
प्रबन्ध गीतक तीन भेद मानल गेल अछि - क्रमश: सूड, आलि एवं विप्रकीर्ण । सूडक दू भेद अछि _ शुद्ध सूड एवं सालग सूड ।
शुद्ध सूडक भेद - एहि मे आठ भेद अछि - एला, करण, ढेंकी, वर्तनी, झोवड़, लंब, परास, एकताली ।
सालग सूडक भेद - एहि मे सात भेद मानल गेल अछि जाहि मे ध्रुव, मंठ्य, प्रतिमंठ्य, निस्सारूक अड्ड, रास, एकताली । ध्रुव सँ ध्रुवा, ध्रुवा सँ ध्रुपद आधुनिक रूप अछि ।
मिथिलाक संगीत परंपरा मे राजा नान्यदेवक बाद राजा हरिसिंहदेवक नाम अबैछ । ओ संगीतक पूर्ण ज्ञाता आ परिपोषक छलाह । हुनका विषय मे कहल गेल अछि -
हरोवा हरिसिंहो वा गीत विद्या विशारदौ
हरि(हर) सिंहे गते स्वर्गगीत विद् केवलं हर:
राजा हरिसिंह देव (१२९५ ई.) संगीत शास्त्रक महान विद्वान छ्लाह । कवि शेखराचार्य ज्योतिरीश्वर ठाकुर जे वर्णरत्नाकर ग्रंथक रचना कयलनि, हुनके दरबारक एक पंडित छलाह । ग्रंथ सात कल्लोल मे लिखल गेल अछि । हिनक अन्य दू ग्रंथ क्रमश: धूर्त समागम एवं पश्चायक अछि जे नाट्य प्रहसन अछि । मैथिली साहित्यक प्रथम गद्य ग्रंथ वर्णरत्नाकरक षष्ट कल्लोल मे गायन, वादन एवं नृत्यक पूर्ण विवरण अछि । सर्वप्रथम राग विन्यास एवं विभिन्न लोक गीतक चर्चा सेहो एहि ग्रंथ मे भेल अछि । संगीत जगतक हेतु मिथिलांचलक ई ग्रंथ अनुपम भेंट अछि ।
हरिसिंह देवक बाद राजा शिवसिंहक १४०२ ई. मे जन्म भेल । हिनके बालसखा महाकवि विद्यापति ठाकुर छलाह । महाकवि स्वयं राजा एवं राज्यक सर्वश्रेष्ठ एवं शुभचिंतक छलाह । महाकवि विद्यापति एक महान संगीत साधक एवं गायक छलाह । जयदेवक परिपाटीक अनुरूप रचना क’ ओहि पर राग करब हिनक एक महान कार्य कहल गेल अछि । जयदेवक रचना तँ संस्कृत मे अछि, मुदा महाकवि विद्यापति मैथिली गीताक रचना क’ ओहि पर रागोल्लेख क’ एक टा नव परंपराक जन्म देलनि, जे कवि हर्षनाथ झाक समय धरि रहल । महाकवि विद्यापति रचित गीत राजप्रासाद मे सुधीजनक बीच राग-रागिनी मे कत्थक कलाकार एवं मैथिली गायक द्वारा प्रदर्शित कयल जाइत छल । राजा शिवसिंहक शासन काल मे भारतक पश्चिमी क्षेत्र सँ कत्थक नर्तक लोकनि मिथिला आबि अपन कला प्रतिभा सँ राजा कें प्रसन्न क’ राजाश्रित भेलाह । कत्थक परंपरा मे सर्वप्रथम सुमतिक नाम अबैछ । सुमतिक बाद उदय, जयत आदिक नाम अबैछ जे महाकविक रचनाक आधार पर रंगमंच पर नृत्य प्रदर्शित क’ राजा एवं संपूर्ण सभासद कें मंत्रमुग्ध करैत छ्लाह । जयत गौड़ प्रचलित गान कें छंद एवं ताल मे निबद्ध क’ महारज शिवसिंहक समक्ष प्रस्तुत करैत छलाह । कत्थक परंपरा मे क्रमश: कृष्ण मल्लिक, हरिहर मल्लिक, खंग्राम, घनश्याम, कल्लीराम, लक्ष्मीराम, राघवराम तथा टीकारामक नाम अबैछ । गायनक संग-संग नृत्य सेहो होइत छल । कृष्ण एवं राधाक प्रणय लीलाक प्रसंग गीत एवं नृत्य मे रहैत छल । अन्य प्रकारक गायन सेहो होइत छल जे जीवनक विभिन्न अंग सँ जूड़ल छल । एहि मे सोहर, समदाउन, बटगमनी, लगनी, नचारी, महेशवाणी गीत आदि छल । लोक धुनक ई गीत पूर्ण आकर्षक छल । मिथिलाक संगीत परंपराक परिप्रेक्ष्य मे एक उदाहरण अछि जे महाकवि विद्यापति रचित पुस्तक पुरुष परीक्षाक गीतबद्ध कथा मे उल्लिखित अछि । शीर्षक मे मिथिलाक कलाकार ’कलानिधि’ नामक गवैयाक उल्लेख अछि । गायक तिरहुत राज्य सँ गोरखपुर राजधानी मे राजा उदय सिंहक दरबार मे आयोजित संगीत प्रतियोगिता मे भाग ल’ समस्त राज्याश्रित गायक कें परास्त कयलनि ।
महाकवि विद्यापतिक समय धरि राग गायनक परंपरा आरंभ भ’ गेल छल । मध्ययुगक सभ सँ उत्कृष्ट संगीत ग्रंथ पं. लोचन झा रचित राग तरंगिणी अछि । एहि ग्रंथ मे तीन भाषाक समावेश अछि - संस्कृत, ब्रजभाषा एवं मैथिली । कवि लोचन संगीत शास्त्रक एक कुशल ज्ञाता एवं कलाकार छलाह । ई ’हनुमन्मत’ कें आधार मानि रागक विश्लेषण कयने छथि । ओ प्रसंगवश कहैत छथि _
भैरव: कौशिकश्चैव हिन्दोलो दीपकस्था ।
श्री रागो मेघरागश्च षड़ेते हनुमन्मता:॥
ग्रन्थ मे पाँच तरंग अछि । प्रथम तरंग मे पुरुष राग कथन आ द्वितीय मे राग-रागिणी कथन अछि । संपूर्ण ग्रंथ मे संगीतक पूर्ण विवरण अछि । तत्कालीन मिथिलाक प्रचलित देशी राग, देशी ताल तथा लय (सुर) पर ओ पूर्ण प्रकाश देलनि अछि । भारतीय संगीत ग्रंथक सूची मे ई ग्रंथ महानतम अछि ।
ईस्ट इंडिया कंपनीक बाद भारत मे फिरंगी शासन भेल । भारतक कलाकार एक बेर फेर जान-माल एवं जाति-धर्मक सुरक्षा हेतु ओहि स्थान मे जाय लगलाह जे स्थान सुरक्षित छल । बहुत रास कलाकार मिथिला मे अयलाह वा नेपाल मे जा बसलाह । वर्तमान मे मिथिला मे एहन चारि संगीत घराना अछि जे अपन दू सय सँ अढ़ाइ सय वर्षक इतिहास रखने अछि । ओहि मे क्रमश: अमता, मधुबनी, पनिचोभ एवं पंचगछिया घराना अछि ।
सभ घरानाक वर्णन कयल जाय तँ एक पृथक पुस्तक बनि सकैछ ।
अमता घराना -
एहि घरानाक स्थापना महाराज माधव सिंह द्वारा १७७५ ई. मे दरभंगा सँ बीस मीलक दूरी पर बहेड़ी थानान्तर्गत अमता गाम मे भेल । संगीत जगत मे एहि गामक वैह स्थान अछि जे मध्यप्रदेश मे ग्वालियरक । एहि घरानाक आदिपुरुष मे राधाकृष्णन एवं कर्तारामक नाम अबैछ । ध्रुपद गायन (गौड़वाणी) शैलीक ई भारतीय स्तरक कलाकार छलाह । हिनक संतान मे क्रमश: स्व. क्षितिजपाल मल्लिक, स्व. राजितराम शर्मा मल्लिक, स्व. पद्मश्री रामचतुर मल्लिक, स्व. नरसिंह मल्लिक, स्व. यदुवीर मल्लिक, स्व. महावीर मल्लिक, स्व. पद्मश्री सियाराम तिवारी, पं. विदुर मल्लिक, पं. अभयनारायण मल्लिक, रामकुमार मल्लिक, प्रेमकुमार मल्लिक आदिक नाम अबैछ । ई लोकनि चारू पट यथा ध्रुपद, खयाल, टप्पा, ठुमरी तँ गबितहि छलाह, महाकवि विद्यापति रचित गीत एवं लोकगीत सेहो गबैत छलाह ।
मधुबनी घराना -
ई घराना मधुबनीक राँटी-मंगरौनीक परिवार द्वारा बसाओल गेल । खयाल एवं ध्रुपद दुनू शैली मे गायन उपस्थापन करब हिनका परिवारक मुख्य गुण छल । स्व. मनसा मिश्र, स्व. डीही मिश्र, स्व. खरवान मिश्र, स्व. गुरे मिश्र, स्व. शिवलाल मिश्र, स्व. सित्तू मिश्र, स्व. हीरा मिश्र, स्व. झिंगुर मिश्र, स्व. भगत मिश्र, स्व. परमेश्वरी मिश्र, स्व. कमलेश्वरी मिश्र, स्व. आद्या मिश्र, स्व. रामजी मिश्र, लक्ष्मण मिश्र, ललन मिश्र आदिक नाम अबैछ ।
पनिचोभ घराना -
मिथिलान्तर्गत पनिचोभ घरानाक इतिहास सेहो पुरान अछि । एहि घरानाक प्रसिद्ध कलाकार मे स्व. रामचन्द्र झा, पं. दिनेश्वर झा, राजकुमार झा, मंगनू झा, दुर्गादत्त झा, जटाधर झा, रमाकान्त झा, नचारी चौधरी, ब्रजमोहन चौधरी आदिक नाम उल्लेखनीय अछि ।
पंचगछिया घराना -
राय बहादुर बाबू लक्ष्मी नारायण सिंह एहि घरानाक संरक्षक एवं पोषक छलाह । एहि घरानाक मुख्य गायन शैली ख्याल एवं ठुमरीक संग पखावज वादन छल । एहि घरानाक दू विख्यात कलाकार भेलाह जाहि मे प्रथम मांगन एवं द्वितीय रघू झा छलाह । मांगन सँ शिक्षा ग्रहण कय हुनक शिष्य क्रमश: निम्नलिखित कलाकार छथि - बटुकजी झा, तिरो झा, शिवन झा, बाल गोविन्द झा, युगेश्वर झा, माधव झा, रामजी झा, धर्मदेव सिंह, राधो झा, पुनो पोद्दार, सुन्दर पोद्दार, गणेशकान्त ठाकुर, उपेन्द्र यादव, दुर्गादत्त झा, सत्य नारायण झा, परशुराम झा, बलराम झा आदि ।
उपर्युक्त घर-घराना शिष्य तैयार क’ मिथिलाक संगीत परंपराक प्रचार-प्रसार संप्रति देश-विदेश मे क’ रहल छथि । थाट गायन परंपराक जनक स्व. विष्णुनारायण भातखंडेजी छथि । अध्ययन, चिंतन क’ ओ समस्त राग कें दश थाटक अंतर्गत राखि एक नवीन परंपरा कें जन्म देलनि अछि । मिथिलान्तर्गत शास्त्रीय संगीतक ज्ञान प्राप्त कयनिहार व्यक्ति कें राग एवं थाट पद्धतिक अनुसारे शिक्षा ग्रहण करय पड़ैत छनि ।
वैदिक युग सँ वर्तमान समय धरि संगीतक परंपरा मे उतार-चढ़ाव होइत रहल, तथापि एहिठामक संगीत अपन प्रवाह कें बनौने रखलक । साम गायन, गाथा गायन, छंद गायन, प्रबंध गायन, राग गायन एवं थाट गायनक क्रमबद्ध परंपरा चलैत रहल, परंतु एहिठामक शास्त्रीय गायन वा लोकगायनक सेहो अपन परंपरा सँ चलैत रहल । मिथिलाक संगीतक क्रमबद्ध विकास पर ध्यान दी तँ औखन राग परंपरा विद्यमान भेटत । मात्र ओकर स्वरूप मे युगानुरूप परिवर्तन परिलक्षित हैत । जहिना व्यक्ति एवं समाजक रहन-सहन, खान-पान, आचार-विचार, रीति-नीति मे क्रमिक विकास भेल, तहिना प्राचीनता एवं नवीनता दुनू धारा एखनो क्रमश: शास्त्रीय धारा एवं लोक धाराक रूप मे सतत प्रवाहित अछि
वीणा वदन तत्वज्ञ: श्रुति जाति विशारद:।
तालज्ञश्चा प्रयासेन मोक्षमार्ग प्रयच्छति ।
- याज्ञवल्क्य स्मृति
(संगीत रूपी एकमात्र साधन सँ धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष चारू पुरुषार्थ भेटैत अछि ।)
संगीत जगतक इतिहास अति प्राचीन अछि । हजारो-हजार वर्षक एहि इतिहास मे हमरा लोकनि कें ओकर क्रमिक विकास दृष्टिगोचर होइछ । विदित अछि जे भारत मे सर्वप्रथम साम गायनक प्रचलन छल । वेद परंपरा मे संगीतक उत्पत्ति सामवेद सँ मानल गेल अछि । तें कहल गेल अछि जे ’साम्वेदादिदं गीतं सज्जग्राह पितामह:’।
एहिना एक परंपराक पश्चात दोसर परंपरा आरंभ भेल । दोसर परंपराक रूप मे गाथा गायन, राग गायन एवं थाट गायनक विकास भेल । युग परिवर्तनक संग संगीत जगत मे सेहो परिवर्तन होइत गेल अछि । ई परिवर्तन मात्र गायन मे नहि, अपितु रागक स्वरूप मे सेहो होइत रहल अछि । सर्वप्रथम श्रुति, श्रुति सँ स्वर, स्वर सँ ग्राम, ग्राम सँ मूर्च्छना, मूर्च्छना सँ जाति, जाति सँ राग, राग सँ थाटक उत्पत्ति भेल अछि ।
संगीत शास्त्रक अवतरण मे अनेक परंपराक उत्पत्ति भेल अछि, यथा - वेद परंपरा, आगम एवं पुराणक परंपरा तथा ऋषि प्रोक्त परंपरा । उपर्युक्त तीनू परंपरा मे अनेकानेक महर्षिक प्रादुर्भाव भेल अछि जे अपन दिव्यज्ञान सँ संगीत जगत केँ आलोकित करैत संगीत शास्त्रक रचना कयलनि । एहि धारा मे क्रमश: नन्दिकेश्वर, नारद, स्वाति, तुम्बरू, भरत, दत्तिल, कोहल, विशाखिल, कश्यप, याष्टिक, आंजनेय, हनुमन्मत, शार्दूल, मतंग, सुधाकलश, अभिनवगुप्त, महाराज भोज, नान्य देव, सोमेश्वर, जगदेक मल्ल, शारदातनय, सोमराज, जयदेव, शारंगदेव, पं. दामोदर, पं, अहोवल एवं पं. लोचन झा आदि मुख्य छथि ।
भारतीय संगीत जगत विश्वक अन्य कोनो देशक संगीत सँ प्राचीन अछि । प्राचीन भारत मे गायनक एक्के पद्धति छल । संगहि एक्के प्रकारक संगीत विद्यमान छल । मुसलमान शासकक आक्रमण भारत मे भेलाक बाद एहिठाम आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक समस्त क्षेत्र मे आघात भेल । एहिठामक गायन परंपरा पर प्रहार भेल । तेँ परंपरा छिन्न-विछिन्न भ’ गेल । उपर्युक्त आक्रमण महमूद गजनबी द्वारा दशम शती ई.क अंतिम दशक मे भेल । अलबरूनी ई स्वीकार कयने छथि जे "हिन्दू विद्या ओतय चलि गेल जत’ हुनका लोकनिक पहुँच नहि छ्ल ।"
महमूद गजनबीक कश्मीर पर आक्रमण १०१५ मे भेल । ओहि ठामक पंडित छल वा मूर्ख, गुणी छल वा गँवार सभ पर एकर व्यापक असरि पड़ल । एहि बात सँ पूर्ण भारतक राजा, विद्वान, कलाकार, धर्मनिष्ठ सभ जन मे भयावह स्थिति व्याप्त भ’ गेल । एहने विषम स्थिति मे पम्मार क्षत्रिय (कर्णाट देशीय) नान्यदेव मिथिला पर चढ़ाई क’ शासक बनि गेलाह । हिनक शासनकाल १०८९ मे स्थापित भेल । किछु दिन तँ निर्विघ्न बीतल, मुदा बाद मे बंग देशीय मुर्शिदाबाद जिलाक अंतर्गत कर्ण सुवर्ण राजा आदि शूर (विजसेन)क आज्ञानुसार हुनक पुत्र बल्लालसेन मिथिला पर आक्रमण कयल । नान्यदेव केँ परास्त क’ हुनका बंदी बनौलकनि ।
महाराजा नान्यदेव संगीत शास्त्रक मूर्धन्य विद्वान छ्लाह । हुनक प्रसिद्ध ग्रंथ ‘सरस्वती हृदयालंकार’ अछि, जकर दोसर नाम ’भरत भाष्य’ अछि । एहि ग्रंथ मे पूर्वर्ती विद्वानक यथा आपिशूल, पाणिनि, विशाखिल, कश्यप, मतंग, देवराज, शतातय तथा रत्नकोशक चर्चा अछि । महाराज नान्यदेव गांधार नगरक चर्चा करैत ओहि सँ उत्पन्न राग समूह केँ लौकिक व्यवहारक लेल उपयुक्त मानलनि ।
१४म शताब्दीक आरंभ सँ एहिठामक कला पुनर्जीवित भेल । कलाकार एवं शास्त्रकार पुन: अपन वृतिक प्रति जागरूक भेलाह । उत्तर भारत एवं दक्षिण भारतक बीच एक व्यवस्था पर सहमति बनल, जाहि सँ उत्तर भारत मे थाट आ दक्षिण भारत मे मेलक उत्थान भेल ।
भारतीय संगीतक परिप्रेक्ष्य मे जखन हम मिथिलाक संगीत परंपरा पर दृष्टिपात करैत छी तँ देखैत छी जे एकर अपन एक पृथक इतिहास अछि जाहि मे एकर प्राचीनता एवं परंपरा समटल अछि । संगीतक क्रमिक विकासक वास्तविक स्वरूप ’मिथिलाक संगीत परंपरा’ मे भेटैत अछि ।
मिथिलाक संगीत परंपरा हेतु वैदिक युग पर दृष्टि देबय पड़त । ओहि युग मे संगीतक संपूर्ण थाती पुरहितक हाथ मे छल । संगीतक प्रचार-प्रसार मे पुरहितक अहम भूमिका रहल । पुरहित आन जातिक नहि मात्र ब्राह्मण होइत छ्लाह । यज्ञादि अवसर पर ब्राह्मण लोकनि सामवेदक ऋचा के सछंद आ सस्वर गबैत छ्लाह । एहि युगक संगीत अधिकांशतया यज्ञक अंगतम रूप मे बनल रहय । यज्ञ पूजादि मे सामगान अनिवार्य छन । शतपथ-ब्राह्मण मे तँ एहन कहल गेल अछि जे बिना सामगानक यज्ञ पूर्णे नहि होइत छल । एहि तरहें सामगान ब्राह्मणक एक विशेष अंग छ्ल । समाजक अन्य वर्ग कें ज्ञानदान करब, वैदिक रीति-रेवाज कें समाज द्वारा ग्रहण करायब तथा पूजा-पाठ, यज्ञ-याप आदि मे सामगान करब हुनक प्रधान कार्य छ्ल । ब्राह्मण परिवार मे सामवेदक ज्ञाता प्राय: सभ होइत छलाह जाहि कारणें हुनक संगीतज्ञ हैब स्वाभाविके छल । प्राचीन परिपाटीक प्रभाव आइयो संपूर्ण मिथिला मे देखल जाइत अछि । जन्म सँ ल’ यज्ञोपवीत आदि प्रत्येक अवसर पर कोनो ने कोनो रूपें सामगान होइतहि अछि । वर्तमानक ई प्रचलित रेवाज वैदिके युगक देन थिक । तें मिथिलाक संगीत परंपराक यात्रा वैदिक युग सँ आरंभ मानल गेल अछि ।
सामगायनक परंपरा चलिते रहल कि एक टा दोसर धारा आरंभ भेल जे लोक वा लौकिक संगीत गायन परंपरा कहौलक । ओहि गान मे नियमक परिपालनक कोनो व्यवस्था नहि छल । जीवनक संपूर्ण गतिविधिक सजीव चित्रण ओहि गायन मे रहैत छल । जखन सामगान समाजक अन्य वर्गक हेतु दुरूह भ’ गेल, तँ वंचित जनमानस ओहि गानक नकल अपन-अपन घर मे आरंभ क’ देलक । एहि गान मे सामगानक नियम-बंधन कें सुविधानुसार तोड़ि-मरोड़ि देल गेल । ई लौकिक गान जातीय गान एवं ऋतु गानक रूप मे प्रकट भेल जाहि मे पारस्परिक रूढ़क जगह लोक जीवन लैत गेल ।
एहि तरहें देखबा मे अबैत अछि जे मिथिला मे कालक्रमे गानक दू स्रोत भ’ गेल । एक स्रोत मे सामगानक जे एक विशेष वर्गक अधीनस्थ रहल, दोसर ओ गान जे सर्वजन सुलभ-सरल भेल जाहि मे गानक स्वतंत्रता छल । स्वतंत्र गान मे लौकिक संगीत चलैत रहल एवं बंधन ओ नियमक आधार पर चलयवला सामगान मे जड़ता अबैत गेल ।
सामगायनक उपरांत गाथा गायनक परिपाटी आरंभ भेल । ऋग्वेदक अनेक मंत्र मे ’गाथा’ शब्दक उल्लेख अछि । ’गाथा’ शब्दक प्रयोग पद्य वा गीतक अर्थ मे प्राप्त होइत छल । गाथा गायन कर’ वला कें ’गाथिन’ कहल गेल अछि । ’ऐतरेय ब्राह्मण’ मे ऋक् एवं गाथा मे अंतर देखाओल गेल अछि । ऋक् दैवी अछि आ गाथा मानवी । ब्राह्मण ग्रंथ सँ ई प्रमाणित होइत अछि जे ऋक् यजु: आ साम सँ पृथक होइत छल, ओकर प्रयोग मंत्रक रूप मे नहि कयल जाइत छल । कोनो राजाक सुकीर्ति कें लक्षित क’ लोकगीतक रूप मे ओकर उपस्थापन कयल जाइत छल । जन-समूह द्वारा ओ गीत गाओल जैत छल आ गाथाक नामे ओ प्रचलित छल । मिथिला मे लौकिक संगीत एहिना जनजीवनक संग चलैत रहल ।
मिथिला मे लोरिक, सलहेस, दीना-भद्री, विहुला, नैका-बनिजारा आदि अनेक गीत अछि जे गाथा गीतक नामे जानल गेल । संभवत: सामगायनक दुरूहताक कारणे लोक ओहि सँ विमुख होइत गेल आ गाथा गायनक प्रति आकर्षित होइत गेल ।
एहि बीच छंद गायनक एकटा नवीन परंपरा आरंभ भ’ गेल । एहि परंपराक परिपोषक विद्वत्जन भेलाह । गाथा गायन उन्मुक्त एवं स्वच्छंद रूपें गाओल जाइत छल । कोनो तरहक प्रतिबंध एहि गायन मे नहि रहैत छल । एक व्यक्ति अनुकरण क’ अगिला पीढ़ी कें अनुकरण हेतु प्रेरित करैत छलाह एवं गाथा गायनक मौखिक शिक्षा दैत छलाह । ई परिपाटी सैकड़ो वर्ष धरि चलैत रहल आ औखन चलि रहल अछि । भारतीय भाषा मे सभ सँ प्राचीन छंद सभ वेद मे उपलब्ध अछि । वेदेक छंद सँ मैथिलीक छंद सभ विकसित भेल हो से संभव अछि । वेद मे गायत्री, उष्णिक, अनुष्टुप, बृहती, पंक्तिक, त्रिष्टुप एवं जगती जे क्रमश: ८, १०, ११ वा १२ वर्णक चरण सभ सँ बनल । वैदिक कालीन परंपराक बाद जे कवि वा विद्वान भेलाह ओ अपन विवेकानुसार आकस्मिक लयक आ तालक वर्ण-विन्यास करैत रहलाह । कालक्रमे ई रचना सामान्य छंद सँ बेसी चमत्कारी आ कर्णप्रिय होमय लागल । काव्य मे छंदक विशेष स्थान छल । कालांतर मे वैह छंद तालक स्वरूप मे आबि गेल यथा - छओ मात्राक ताल-दादरा, खेमटा । सात मात्राक ताल - तिब्रा, रूपक एवं पश्तो । आठ मात्राक ताल - कहरबा एवं धुमाली, दस मात्राक ताल - झप्ताल एवं सूलताल । बारह मात्राक ताल - एकताल, चौताल । चौदह मात्राक ताल - दिपचंदी (चाँचर), झूमरा, धमार, गजझंपा आ आड़ा चौताल । सोलह मात्राक ताल - त्रिताल, यत एवं तिलवाड़ा अछि ।
साधारणतया मैथिली लोकगीत वर्णावृतक अपेक्षा मात्रिक छंद मे लिखल गेल । मात्रिक छंद मे मात्रा गनल जाइत छल आ तद्नुकूल ताल मे गाओल जाइत छल ।
छंद गायनक उपरांत गाथा गायनक परिपाटी आरंभ भेल । प्रबंध रचना संस्कृत मे होमय लागल । प्रसिद्ध भक्तकवि जयदेव रचित ’गीत गोविंद’ एकर उदाहरण अछि । प्रबंध गायन मे संस्कृत पद कें राग मे बान्हि उपस्थापन कयल जाइत छल । मिथिला मे ई गायन पद्धति कैएक सय वर्ष धरि रहल । ओहि गीत मे अनेक चरण होइत छल, जेना- उद्ग्राह, मेलापक, ध्रुव, अंतरा एवं आभोग । ई प्राय: सामगानक प्रस्ताव, उद्गीत, प्रतिहार, निधान, उपद्रव आदिक प्रतिरूप रहल हो से संभव । प्रबंध गीतक समस्त भेदक विषय मे उल्लेख करब उचित नहि, कारण एकर विशाल विवरण अछि । संक्षेप मे ई कहल जा सकैछ जे मिथिला मे एहि गीत गायनक परंपरा कें शास्त्रीय संगीत गायनक द्वारा जियाक’ रखलनि स्व. माँगन, स्व. रामचन्द्र झा, स्व. बालगोविन्द झा, स्व. रामचतुर मल्लिक आ स्व. दरबारी दास नटुआ ।
प्रबन्ध गीतक तीन भेद मानल गेल अछि - क्रमश: सूड, आलि एवं विप्रकीर्ण । सूडक दू भेद अछि _ शुद्ध सूड एवं सालग सूड ।
शुद्ध सूडक भेद - एहि मे आठ भेद अछि - एला, करण, ढेंकी, वर्तनी, झोवड़, लंब, परास, एकताली ।
सालग सूडक भेद - एहि मे सात भेद मानल गेल अछि जाहि मे ध्रुव, मंठ्य, प्रतिमंठ्य, निस्सारूक अड्ड, रास, एकताली । ध्रुव सँ ध्रुवा, ध्रुवा सँ ध्रुपद आधुनिक रूप अछि ।
मिथिलाक संगीत परंपरा मे राजा नान्यदेवक बाद राजा हरिसिंहदेवक नाम अबैछ । ओ संगीतक पूर्ण ज्ञाता आ परिपोषक छलाह । हुनका विषय मे कहल गेल अछि -
हरोवा हरिसिंहो वा गीत विद्या विशारदौ
हरि(हर) सिंहे गते स्वर्गगीत विद् केवलं हर:
राजा हरिसिंह देव (१२९५ ई.) संगीत शास्त्रक महान विद्वान छ्लाह । कवि शेखराचार्य ज्योतिरीश्वर ठाकुर जे वर्णरत्नाकर ग्रंथक रचना कयलनि, हुनके दरबारक एक पंडित छलाह । ग्रंथ सात कल्लोल मे लिखल गेल अछि । हिनक अन्य दू ग्रंथ क्रमश: धूर्त समागम एवं पश्चायक अछि जे नाट्य प्रहसन अछि । मैथिली साहित्यक प्रथम गद्य ग्रंथ वर्णरत्नाकरक षष्ट कल्लोल मे गायन, वादन एवं नृत्यक पूर्ण विवरण अछि । सर्वप्रथम राग विन्यास एवं विभिन्न लोक गीतक चर्चा सेहो एहि ग्रंथ मे भेल अछि । संगीत जगतक हेतु मिथिलांचलक ई ग्रंथ अनुपम भेंट अछि ।
हरिसिंह देवक बाद राजा शिवसिंहक १४०२ ई. मे जन्म भेल । हिनके बालसखा महाकवि विद्यापति ठाकुर छलाह । महाकवि स्वयं राजा एवं राज्यक सर्वश्रेष्ठ एवं शुभचिंतक छलाह । महाकवि विद्यापति एक महान संगीत साधक एवं गायक छलाह । जयदेवक परिपाटीक अनुरूप रचना क’ ओहि पर राग करब हिनक एक महान कार्य कहल गेल अछि । जयदेवक रचना तँ संस्कृत मे अछि, मुदा महाकवि विद्यापति मैथिली गीताक रचना क’ ओहि पर रागोल्लेख क’ एक टा नव परंपराक जन्म देलनि, जे कवि हर्षनाथ झाक समय धरि रहल । महाकवि विद्यापति रचित गीत राजप्रासाद मे सुधीजनक बीच राग-रागिनी मे कत्थक कलाकार एवं मैथिली गायक द्वारा प्रदर्शित कयल जाइत छल । राजा शिवसिंहक शासन काल मे भारतक पश्चिमी क्षेत्र सँ कत्थक नर्तक लोकनि मिथिला आबि अपन कला प्रतिभा सँ राजा कें प्रसन्न क’ राजाश्रित भेलाह । कत्थक परंपरा मे सर्वप्रथम सुमतिक नाम अबैछ । सुमतिक बाद उदय, जयत आदिक नाम अबैछ जे महाकविक रचनाक आधार पर रंगमंच पर नृत्य प्रदर्शित क’ राजा एवं संपूर्ण सभासद कें मंत्रमुग्ध करैत छ्लाह । जयत गौड़ प्रचलित गान कें छंद एवं ताल मे निबद्ध क’ महारज शिवसिंहक समक्ष प्रस्तुत करैत छलाह । कत्थक परंपरा मे क्रमश: कृष्ण मल्लिक, हरिहर मल्लिक, खंग्राम, घनश्याम, कल्लीराम, लक्ष्मीराम, राघवराम तथा टीकारामक नाम अबैछ । गायनक संग-संग नृत्य सेहो होइत छल । कृष्ण एवं राधाक प्रणय लीलाक प्रसंग गीत एवं नृत्य मे रहैत छल । अन्य प्रकारक गायन सेहो होइत छल जे जीवनक विभिन्न अंग सँ जूड़ल छल । एहि मे सोहर, समदाउन, बटगमनी, लगनी, नचारी, महेशवाणी गीत आदि छल । लोक धुनक ई गीत पूर्ण आकर्षक छल । मिथिलाक संगीत परंपराक परिप्रेक्ष्य मे एक उदाहरण अछि जे महाकवि विद्यापति रचित पुस्तक पुरुष परीक्षाक गीतबद्ध कथा मे उल्लिखित अछि । शीर्षक मे मिथिलाक कलाकार ’कलानिधि’ नामक गवैयाक उल्लेख अछि । गायक तिरहुत राज्य सँ गोरखपुर राजधानी मे राजा उदय सिंहक दरबार मे आयोजित संगीत प्रतियोगिता मे भाग ल’ समस्त राज्याश्रित गायक कें परास्त कयलनि ।
महाकवि विद्यापतिक समय धरि राग गायनक परंपरा आरंभ भ’ गेल छल । मध्ययुगक सभ सँ उत्कृष्ट संगीत ग्रंथ पं. लोचन झा रचित राग तरंगिणी अछि । एहि ग्रंथ मे तीन भाषाक समावेश अछि - संस्कृत, ब्रजभाषा एवं मैथिली । कवि लोचन संगीत शास्त्रक एक कुशल ज्ञाता एवं कलाकार छलाह । ई ’हनुमन्मत’ कें आधार मानि रागक विश्लेषण कयने छथि । ओ प्रसंगवश कहैत छथि _
भैरव: कौशिकश्चैव हिन्दोलो दीपकस्था ।
श्री रागो मेघरागश्च षड़ेते हनुमन्मता:॥
ग्रन्थ मे पाँच तरंग अछि । प्रथम तरंग मे पुरुष राग कथन आ द्वितीय मे राग-रागिणी कथन अछि । संपूर्ण ग्रंथ मे संगीतक पूर्ण विवरण अछि । तत्कालीन मिथिलाक प्रचलित देशी राग, देशी ताल तथा लय (सुर) पर ओ पूर्ण प्रकाश देलनि अछि । भारतीय संगीत ग्रंथक सूची मे ई ग्रंथ महानतम अछि ।
ईस्ट इंडिया कंपनीक बाद भारत मे फिरंगी शासन भेल । भारतक कलाकार एक बेर फेर जान-माल एवं जाति-धर्मक सुरक्षा हेतु ओहि स्थान मे जाय लगलाह जे स्थान सुरक्षित छल । बहुत रास कलाकार मिथिला मे अयलाह वा नेपाल मे जा बसलाह । वर्तमान मे मिथिला मे एहन चारि संगीत घराना अछि जे अपन दू सय सँ अढ़ाइ सय वर्षक इतिहास रखने अछि । ओहि मे क्रमश: अमता, मधुबनी, पनिचोभ एवं पंचगछिया घराना अछि ।
सभ घरानाक वर्णन कयल जाय तँ एक पृथक पुस्तक बनि सकैछ ।
अमता घराना -
एहि घरानाक स्थापना महाराज माधव सिंह द्वारा १७७५ ई. मे दरभंगा सँ बीस मीलक दूरी पर बहेड़ी थानान्तर्गत अमता गाम मे भेल । संगीत जगत मे एहि गामक वैह स्थान अछि जे मध्यप्रदेश मे ग्वालियरक । एहि घरानाक आदिपुरुष मे राधाकृष्णन एवं कर्तारामक नाम अबैछ । ध्रुपद गायन (गौड़वाणी) शैलीक ई भारतीय स्तरक कलाकार छलाह । हिनक संतान मे क्रमश: स्व. क्षितिजपाल मल्लिक, स्व. राजितराम शर्मा मल्लिक, स्व. पद्मश्री रामचतुर मल्लिक, स्व. नरसिंह मल्लिक, स्व. यदुवीर मल्लिक, स्व. महावीर मल्लिक, स्व. पद्मश्री सियाराम तिवारी, पं. विदुर मल्लिक, पं. अभयनारायण मल्लिक, रामकुमार मल्लिक, प्रेमकुमार मल्लिक आदिक नाम अबैछ । ई लोकनि चारू पट यथा ध्रुपद, खयाल, टप्पा, ठुमरी तँ गबितहि छलाह, महाकवि विद्यापति रचित गीत एवं लोकगीत सेहो गबैत छलाह ।
मधुबनी घराना -
ई घराना मधुबनीक राँटी-मंगरौनीक परिवार द्वारा बसाओल गेल । खयाल एवं ध्रुपद दुनू शैली मे गायन उपस्थापन करब हिनका परिवारक मुख्य गुण छल । स्व. मनसा मिश्र, स्व. डीही मिश्र, स्व. खरवान मिश्र, स्व. गुरे मिश्र, स्व. शिवलाल मिश्र, स्व. सित्तू मिश्र, स्व. हीरा मिश्र, स्व. झिंगुर मिश्र, स्व. भगत मिश्र, स्व. परमेश्वरी मिश्र, स्व. कमलेश्वरी मिश्र, स्व. आद्या मिश्र, स्व. रामजी मिश्र, लक्ष्मण मिश्र, ललन मिश्र आदिक नाम अबैछ ।
पनिचोभ घराना -
मिथिलान्तर्गत पनिचोभ घरानाक इतिहास सेहो पुरान अछि । एहि घरानाक प्रसिद्ध कलाकार मे स्व. रामचन्द्र झा, पं. दिनेश्वर झा, राजकुमार झा, मंगनू झा, दुर्गादत्त झा, जटाधर झा, रमाकान्त झा, नचारी चौधरी, ब्रजमोहन चौधरी आदिक नाम उल्लेखनीय अछि ।
पंचगछिया घराना -
राय बहादुर बाबू लक्ष्मी नारायण सिंह एहि घरानाक संरक्षक एवं पोषक छलाह । एहि घरानाक मुख्य गायन शैली ख्याल एवं ठुमरीक संग पखावज वादन छल । एहि घरानाक दू विख्यात कलाकार भेलाह जाहि मे प्रथम मांगन एवं द्वितीय रघू झा छलाह । मांगन सँ शिक्षा ग्रहण कय हुनक शिष्य क्रमश: निम्नलिखित कलाकार छथि - बटुकजी झा, तिरो झा, शिवन झा, बाल गोविन्द झा, युगेश्वर झा, माधव झा, रामजी झा, धर्मदेव सिंह, राधो झा, पुनो पोद्दार, सुन्दर पोद्दार, गणेशकान्त ठाकुर, उपेन्द्र यादव, दुर्गादत्त झा, सत्य नारायण झा, परशुराम झा, बलराम झा आदि ।
उपर्युक्त घर-घराना शिष्य तैयार क’ मिथिलाक संगीत परंपराक प्रचार-प्रसार संप्रति देश-विदेश मे क’ रहल छथि । थाट गायन परंपराक जनक स्व. विष्णुनारायण भातखंडेजी छथि । अध्ययन, चिंतन क’ ओ समस्त राग कें दश थाटक अंतर्गत राखि एक नवीन परंपरा कें जन्म देलनि अछि । मिथिलान्तर्गत शास्त्रीय संगीतक ज्ञान प्राप्त कयनिहार व्यक्ति कें राग एवं थाट पद्धतिक अनुसारे शिक्षा ग्रहण करय पड़ैत छनि ।
वैदिक युग सँ वर्तमान समय धरि संगीतक परंपरा मे उतार-चढ़ाव होइत रहल, तथापि एहिठामक संगीत अपन प्रवाह कें बनौने रखलक । साम गायन, गाथा गायन, छंद गायन, प्रबंध गायन, राग गायन एवं थाट गायनक क्रमबद्ध परंपरा चलैत रहल, परंतु एहिठामक शास्त्रीय गायन वा लोकगायनक सेहो अपन परंपरा सँ चलैत रहल । मिथिलाक संगीतक क्रमबद्ध विकास पर ध्यान दी तँ औखन राग परंपरा विद्यमान भेटत । मात्र ओकर स्वरूप मे युगानुरूप परिवर्तन परिलक्षित हैत । जहिना व्यक्ति एवं समाजक रहन-सहन, खान-पान, आचार-विचार, रीति-नीति मे क्रमिक विकास भेल, तहिना प्राचीनता एवं नवीनता दुनू धारा एखनो क्रमश: शास्त्रीय धारा एवं लोक धाराक रूप मे सतत प्रवाहित अछि
मिथिला आ महाराज कामेश्वर सिंहक नामोनिशान नहि मिटा देताह
लगैत अछि जे राज दरभंगाक ट्रस्टी जखन धरि मिथिला आ महाराज कामेश्वर सिंहक नामोनिशान नहि मिटा देताह, ताबत धरि चैन स नहि बैसताह। 1962 मे महाराजक विवादास्पद मौत क बाद हुनक संपत्ति कए जेना बेचल गेल ओ सबहक सामने अछि। इ लोकनि महाराजक डीह (रामबाग)तक बेच देलथि। ट्रस्टी क नजरि आब दू सौ साल तक मिथिलाक राजधानी रहल भौरा गढ़ी पर अछि। 16म शताब्दी मे खंडवाला राजवंशक संस्थापक महेश ठाुकरक पुत्र महाराजा शुभंकर ठाकुर भौरा गढ़ी कए अपन नूतन राजधानी बनेने छलाह। एहि ठाम स लगभग दू सौ साल तक मिथिला पर राज कैल गेल। 18म शताब्दी मे जा कर मिथिलाक राजधानी दरभंगा बनाउल गेल। एतिहासिक महत्व आ सौ साल स पूरान महल हेबाक बावजूद भौरा गढ़ीक संरक्षणक कोनो प्रयास सरकारक दिस स एखन धरि नहि भ सकल अछि। दोसर दिस एक-एक करि दरभंगा राजक सब किछु बेच देनिहार ट्रस्टीक नजरि आब भौरा गढ़ी जमीन पर टिकल अछि आ ओ एकरा बेचबा लेल आफन तोडऩे छथि। मिथिला राजक सबस पूरान एहि निशानी कए बचेबा स बचेबा लेल लोक सामने आबि रहल अछि। मिथिलाक इतिहास पर शोध करनिहार तेजकर झा क कहब अछि जे मिथिला मे धार्मिक महत्वक अनेक पूरान पीठ अछि, मुदा राजनीतिक महत्वक पूरान डीह कम अछि। एकर पाछु झा क कहब अछि जे मिथिलाक भौगोलिक कारक जिम्मेदार अछि। बाढ़ आ भूकंपक कारण स पूरान डीह पर बनल महल नहि बचल आ जे बचल से संरक्षणक अभाव मे नष्ट भ गेल। झाक कहब अछि जे भौरा डीह समस्त मैथिलक धरोहर छी आ एकरा बेचब या नष्ट करब मिथिलाक इतिहास कए खत्म करबाक समान अछि। ओ एकर तुलना बख्तियार क नालंदा विश्वविद्यालय कए नष्ट करबा स केलथि। दोसर दिस मधुबनी निवासी संजय कुमार आ श्वेता सिन्हा सन किछु आओर लोक केंद्र आ राज्य सरकार कए भौरा गढ़ी क जमीन बेचबा पर प्रतिबंध लगेबा लेल अनुरोध पत्र लिखलथि अछि। संगहि भारतीय पुरातत्व विभाग कए सेहो पत्र लिख इ मांग कैल गेल अछि जे एहि डीहक संरक्षण लेल कार्रवाई कैल जाए।
महाराज कामेश्वर सिंहक निधनक बाद दरभंगा राजक संपत्ति कए देख-रेखक जिम्मा एकटा ट्रस्ट कए सौंपल गेल। पटना हाइकोर्ट क सेवानिवृत मुख्य न्यायधीश एहि ट्रस्टक पहिल मुख्य ट्रस्टी छलाह। हुनक संग दू टा आओर ट्रस्टी छलाह। जेना-जेना हिनकर सबहक निधन भेल, दू टा मिल कए तेसर ट्रस्टीक चयन करैत गेलाह। जाहि स परिवारवाद कए बढ़ाबा भेटल। गिरिंद्र मोहन मिश्रक पुत्र मदनमोहन मिश्र ट्रस्टी बनि गेलाह। फेर महाराजक एकटा संबंधी पिछला दरबजा स ट्रस्टी बनि गेलाह। मुदा मदनमोहन मिश्रक निधनक बाद सबस छोट राजकुमार शुभेश्वर सिंहक ज्येष्ठ पुत्र राजेश्वर सिंह कए ट्रस्टी बना देल गेल। इ पहिल ट्रस्टी भेला जे महाराजक संतान छलाह। द्वारिका नाथ झाक निधनक बाद सबटा नियम कए शिथिल करि शुभेश्वर सिंहक दोसर पुत्र कपिलेश्व सिंह कए सेहो ट्रस्टी बना देल गेल। इ पहिल मौका छल जखन दूटा सहोदर भाई तीन सदस्यीय ट्रस्टीक सदस्य अछि। तेसर ट्रस्ट्री छोटी महारानीक क संबंधी उदयनाथ मिश्र छथि, जे महारानीक स्वार्थ देखबाक अलावा कोनो काज करबा मे कोनो रूचि नहि रखैत छथि।कुल मिला कए ट्रस्ट शुभेश्वर सिंहक परिवारक हाथ मे चल गेल अछि आ महारानीक हिस्सेदारी ट्रस्ट मे कम भ गेल अछि। राजपरिवारक एहि खानदानी झगड़ा मे मिथिलाक धरोहर पिछला पचास साल स एक-एक करि बिका रहल अछि। जे बचल अछि ओकरो बेचबाक प्रयास भ रहल अछि। अंतर एतबा अछि पहिने महाराजक परिचित, फेर संबंधी आ आब महाराजक संतान एहि काज मे लागल अछि
मिथिलाक प्रसिद्ध गाम बनगाँव
प्रसिद्ध गाम (बनगाँव) जिला - सहरसा के चर्चा करे चाहे छी ! जै गाम में बाबा लक्ष्मीनाथ गोसाई (बाबाजी) केँ विभुतिपाद के रश्मि विकसित भेल छलैन ! आयो ओय गाम काँ बाबाजीक गाम कहल जैत अछि ! बनगाँव में बाबा अपन विराट कुटिया में आयो विराजमान छलाह ! मिथिलाक इ प्रसिद्ध गाम - बनगाँव, सहरसा जिला (मुख्यालय) सँ ८ की.मी पश्चिम में स्थित अछि ! बाबा लक्ष्मीनाथ गोसाई (बाबाजीक) महिमासँ सिचल एय गाम में दिन दूना, रैत चौगुना प्रगति भोs रहल अछि ! इ गाम एक सँ बढ़ीकेँ एक आईआईटी, आईएएस, आईपीएस, अधिकारी मिथिलाकेँ प्रदान केना छले ! दार्शनिक स्थल में जते एय गाम के "बाबाजी कुटी" प्रसिद्ध अछि, ओते गाम में विराजमान एक सँ बैढ़केँ एक विराट मंदिर सभ गामवासी के श्रद्धा काँ अपन-आप में पिरोना छैन ! बनगाँव गाममें बाबाजी कुटी पर बाबा लक्ष्मीनाथक विराट मंदिर के संग अनेको विशाल मंदिर मौजूद अछि ! जेना की ठकुरवाड़ी, श्री कृष्ण मंदिर, महादेव - पार्वती मंदिर, हनुमान मंदिर .......बाबाजी कुटीसँ कनि पुरव गेला पर माँ बिष्हरा मंदिर, बिष्हरा मंदिरसँ उत्तर दिसा में गेला पर माँ भगवती आर माँ काली के विराट मंदिर छैन ! ओय सँ आगा पुरव दिसा में (चौक) पर माँ सरस्वती विराजमान छली ! अई प्रकारे यदि देखल जायतँ पुरे बनगाँव गाम एक धर्म-स्थल के समान अछि ! हम सभ मिथिलावासी बाबा लक्ष्मीनाथ गोसाई (बाबाजीसँ) निक जेका परिचित छी ! औजस्कल (पहलवानी) युग में परिब्राजक बाबा लक्ष्मीनाथ बनगाँव गाममें पधारने रहथिन ! हुनकर गठित स्वास्थ्य देखकेँ की युवक की बुजुर्ग सभ हर्ष पूर्वक हुनकर बनगाँव गाम में स्वागत केलखिन ! स्वागत एय हेतु नै केना रहथिन की ओ (बाबा) महान साधू या योगी रहथिन स्वागत के पछा सभ ग्रामीण काँ अथाह विश्वास रहैन की यदि हुनका निक जेका खिलेल - पिलेल जेतैन तँ एक दिन ओ निक पहलवान बनता ! बाबा बहुत जल्दी सभ गामवासी के संग हिल - मिल गेलैथ ! बाबा चिक्कादरबर (कब्बडी), खोरी, चिक्का छुर-छुर देहाती खेलक निक खेलाड़ी मानल जैत रहैथ ! ओय समय बनगाँव गाम में दूध - दहीकेँ बाहुल्य छल ! एक धनी-मनी सज्जन हुनका दूध पिबई के लेल एक निक गो (गाय) द् देलखिन ! ओ सज्जन छलाह स्वर्गीय श्री कारी खाँ ! बाबा के लेल सभ गामवासी ठाकुरवाड़ी के प्रांगन में एक पर्ण कुटी बनेलैथ जे आयो आस्था आर धर्म स्थल के तौर पर प्रख्यात अछि ! बाबा ओनातँ परसरमा के रहिवासी रहैथ मुदा बेसी काल ओ बनगाँववे में रहैत रहैथ ! कारण बनगाँव के लोक बहुत सीधा - साधा आर महात्मा सभ में श्रद्धा राखे वला रहथिन ! बनगाँववे में हुनका "विभुतिपाद" के रश्मि विकसित भेलैन ! बनगाँववे में लगभग १८१९ ईo सँ बाबा ब्रजभाषा आर मैथिली में कविता लिखब सुरु केना छलाह जे आयो हमरा सभ के बिच गीतावलीकेँ रूप में मौजूद अछि ! बाबा द्वारा लिखल दोहा, चौपाई आर गीत अपने गीतावली में देख सकैत छलो ! बाबा योगी के अद्दभुत अवतार रहथिन ! आयो बनगाँव गाम में बाबा के कुतियाँ में रोगी आर बन्ध्याओ के ताँता देखल जे सकैत अछि ! लोग हुनकर मंदिर सँ प्राप्त नीर सँ लाभ उठबैत छैथ ! बाबा यथासाध्य सबहक दुःख दूर करै छथिन ! हम सब बनगाँव वासी के ह्रदय में बाबा आयो बसल छैथ ! संगे ओई पवित्र बाबा के भूमि में जन्म लकेँ हम सब ग्रामवासी अपना आपकेँ गर्वान्वित महसूस करैत छलो ! प्रेम सँ कहू जाय बाबा लक्ष्मीनाथ, जाय बाबाजी..
गोनू झाक सपना
गोनू झा काली मायक बड्ड पैघ भक्त छलाह । ओना तँ संपूर्ण मिथिलांचल मे शक्तिपूजाक प्रधानता छैक, तथापि गोनू नित्य माताक पूजा करैत छलाह आ माताक प्रसादात् ओ स्वस्थ आ प्रसन्नचित्त रहैत छलाह । हुनक बुद्धिमत्ताक लोहा नहि केवल गामे भरि मे वरन् मिथिला राजदरबार सहित अन्यत्रो मानल जाईत छल । एकबेर स्वयं माता काली हुनक बुद्धिमत्ताक परीक्षा लेबाक निश्चय केलीह ।
माता काली स्वप्न मे गोनूक समक्ष प्रकट भेलीह आ अपन रूप अति भयंकर बना लेलनि । हुनका मात्र दूटा हाथ छलनि आ हजार गोट मूँह । गोनू उठलाह आ माता कें साष्टांग प्रणाम केलनि । किन्तु तत्क्षण किछु सोचि कें हुनका हँसी लागि गेलनि । हुनक शांत मुद्रा आ पुन: हँसीक आवाज सुनि माता काली कें कने अचरज भेलनि । ओ पुछि देलथिन्ह जे की अहाँ कें हमरा सँ डर नहि भेल? संगहि माता इहो प्रश्न केलनि जे अहाँ के हँसी किएक लागल? उत्तर मे गोनू बजलाह जे बाघ करबो भयंकर रहय, ओकरा देखि कें ओकर बच्चा नहि डेराईत अछि । आ हमहूँ तँ अहाँक पुत्र थिकहुँ तें अहाँ सँ डर लागबाक कोनो प्रश्ने नहि अछि । पुन: हँसीक विषय मे उत्तर देबा सँ पूर्व गोनू माता सँ क्षमा याचना कयलनि । माता हुनका क्षमा दान देलनि । तखन गोनू कहलाह जे हमरा एहि बातक आशंका बेर-बेर भऽ रहल अछि जे हमरा एकटा नाक अछि आ दूटा हाथ आ तखन जुकाम भऽ गेला पर नाक पोछैत-पोछैत परेशान भऽ जाइत छी आ अहाँ केँ १००० नासिका मे मात्र दूटा हाथ अछि, तँ जुकाम भऽ गेला पर अहाँ दूटा हाथ सँ १००० नासिका कोना पोछैत होयब ।
गोनूक ई उत्तर सूनि माता कें बड्ड हँसी लगलनि आ ओ बजलीह – गोनू अहाँ कें बुद्धिमत्ता आ वाकपटुता मे कियो नहि हरा सकत ई हमर आशीर्वाद अछि । ई कहि माता काली अदृश्य भऽ गेलीह
माता काली स्वप्न मे गोनूक समक्ष प्रकट भेलीह आ अपन रूप अति भयंकर बना लेलनि । हुनका मात्र दूटा हाथ छलनि आ हजार गोट मूँह । गोनू उठलाह आ माता कें साष्टांग प्रणाम केलनि । किन्तु तत्क्षण किछु सोचि कें हुनका हँसी लागि गेलनि । हुनक शांत मुद्रा आ पुन: हँसीक आवाज सुनि माता काली कें कने अचरज भेलनि । ओ पुछि देलथिन्ह जे की अहाँ कें हमरा सँ डर नहि भेल? संगहि माता इहो प्रश्न केलनि जे अहाँ के हँसी किएक लागल? उत्तर मे गोनू बजलाह जे बाघ करबो भयंकर रहय, ओकरा देखि कें ओकर बच्चा नहि डेराईत अछि । आ हमहूँ तँ अहाँक पुत्र थिकहुँ तें अहाँ सँ डर लागबाक कोनो प्रश्ने नहि अछि । पुन: हँसीक विषय मे उत्तर देबा सँ पूर्व गोनू माता सँ क्षमा याचना कयलनि । माता हुनका क्षमा दान देलनि । तखन गोनू कहलाह जे हमरा एहि बातक आशंका बेर-बेर भऽ रहल अछि जे हमरा एकटा नाक अछि आ दूटा हाथ आ तखन जुकाम भऽ गेला पर नाक पोछैत-पोछैत परेशान भऽ जाइत छी आ अहाँ केँ १००० नासिका मे मात्र दूटा हाथ अछि, तँ जुकाम भऽ गेला पर अहाँ दूटा हाथ सँ १००० नासिका कोना पोछैत होयब ।
गोनूक ई उत्तर सूनि माता कें बड्ड हँसी लगलनि आ ओ बजलीह – गोनू अहाँ कें बुद्धिमत्ता आ वाकपटुता मे कियो नहि हरा सकत ई हमर आशीर्वाद अछि । ई कहि माता काली अदृश्य भऽ गेलीह
गोनू झा के स्वर्ग बजाहट
गोनू झा एकटा राजाक दरबारी रहथि । ओ बहुत चतुर छलथि आओर राजाक राज-काज मे मदद करैत छलथि आओर हुनकर खूब मनोरंजन करैत छलथि ।
राजा हुनका बहु मानैत छलथिन्ह संगहि आओर लोक सेहो खूब मानैत छलैन्ह । हुनक उन्नति देखि कऽ सभ दरबारी डाह करैत छल आओर हुनका मिटा देबाक उपाय सोचैत छल । ओहि मे एकटा हजमो छल । ओकरा अपना ज्ञानक घमण्ड रहै । ओ गोनू झा के मिटेबाक बीड़ा उठेलक ।
गामक बाहर राजा के पिताक समाधि छल, राजा प्रतिदिन अपना पिताक समाधि पर फूल चढ़ावय जाय छलथि । पिता पर हुनकर अटूट श्रद्धा छल, हजमा जकर फायदा उठाबय चाहैत छल आओर एकटा चाल चलल ।
एक दिन राजा जखन पिताक समाधि पर फूल चढ़ाबेय गेला तखन ओहि पर एकटा पुर्जा राखल भेटलैन्ह । पुर्जा मे लिखल रहैय-बउआ अहाँ हमर बहुत भक्त छी हम अहाँ सँ अत्यन्त प्रसन्न छी । स्वर्ग मे हमरा पूजा-पाठ करबा मे बहुत दिक्कत होयत अछि ताहि लेल अहाँ शीघ्र गोनू झा के हमरा लग पठा दियऽ । गाम के पूरब मे जे श्मशानक मे ईंटक ढेरि अछि ओहि पर हुनका बैसा हुनका उपर दस पाँज पुआर राखि ओहि मे आगि लगा देबई तऽ ओ सीधे हमरा लग पहुँचि जैता । हम किछु दिनक बाद हुनका वापस भेज देब ।
शुभाशीर्वाद
अहाँक स्वर्गीय पिता
पुर्जा पढ़िकय राजा चकरेला, एहन आश्चर्यक बात तऽ ओ कतहु देखने नहि छलथि । ओ मोने-मोने बहुत तर्क वितर्क करय लगला । गोनू झाक शत्रु के ई चाल अछि या पिता जीक आज्ञा निश्चय नई कय सकला । ओहि दिन दरबार मे आबि राजा पुर्जा के हाल सबके सुनेलनि, सभ दरबारी खुश भऽ गेल । कियो कहय लागल-गोनू झा बहुत भाग्यवान छथि ताहि लेल स्वर्ग मे महाराजा याद कैलथिन्ह । क्यो बाजय – गोनू झा कतेक बड़का पुण्यात्मा छथि जे जीवैत स्वर्ग जैता । कियो डाह करैत बाजल- हमरा सभक सौभाग्य कहाँ ! नहिं तऽ सहर्ष जैबाक लेल तैयार भऽ जैतहुँ ।
एहि पर हजमा बाजल महाराज जिनक आदेश एलन्हि हुनके जैबाक चाही नई तऽ महाराज के मोन मे दुःख हेतैन्ह । साधारण लोक सँ काज नई हेतइ तें तऽ गोनू झा के बुलाहट भेलैन्ह । इमहर राजा बड़ सोच मे पड़ि गेला, कतऊ दुष्ट सभ मिलकय गोनू झा के मारबाक षड्यन्त्र तऽ नहि रचलक अछि या ठीके पिताजी ई पुर्जा भेजने छथि । ओना अक्षर पिताजीक लिखावट सँ मिलैत अछि । अन्त मे किंकर्तव्यबिमूढ़ भऽ ओ गोनू झा सँ विचार- विमर्श कयला ।
गोनू झा एखन तक सब चुपचाप सुनि रहल छलथि । दरबारिक षडयन्त्रक अनुभव हुनका भऽ गेल छलैन्ह आ ओ एहि सँ बचबाक लेल सोचि रहल छला । हुनक कुशाग्र बुद्धि किछुये काल मे समाधान ढूंढि निकाललक । ओ कहलथिन्ह – महाराज हम स्वर्ग जैबाक लेल तैयार छी परन्च तीन शर्त अछि ।
१. हमरा तीन मास के समय देल जाय ।
२. जखन तक हम स्वर्ग सँ नहि घूमि कय आबी हमरा परिवार के सभ मास दस हजार टाका पारिश्रमिक के रूप मे देल जाय ।
३. एहि समय हमरा पचास हजार टाका देल जाय, जाहि सँ घरक सभ इन्तजाम कय कऽ जाय ।
राजा चकित भय कहलखिन-की अहाँ स्वर्ग जायब? की अहाँ एहि बात के सत्य मानैत छी ?
मोनू झा कहलखिन – महाराज हम सचमुच स्वर्ग जायब । अहाँ चिन्ता जुनि करी । उदास भाव सँ राजा गोनू झाक शर्त मानि लेलथिन । सभ दरबारी के आनन्द आओर आश्चर्य के भाव रहै । हजमा अपना जीत पर हँसि रहल छल । तीन मासक बाद राज्यक सभ लोक गांव के पुवारी कातक श्मशान पर पहुँचल जे आई गोनू झा स्वर्ग जैता । सब प्रजा दुःखी छल, राजा सेहो ओतय पहुँच कानि रहल छला । परन्च गोनू झा के मुख कनिको मलीन नई भेल छल ओ हँसिते माँटिक ढेरि पर बैस गेला आओर पुआर सँ हुनका झाँपि देल गेल एवं आगि लगा देल गेल । ई देखि राजा आओर सभ दरबारी कानि रहल छलथि ओतहि हजमा प्रसन्न भऽ रहल छल । एहि घटनाक छः मास बीति गेल छल, गोनू झा एखन तक लौट कय घर नहि आयल छलथि । ई सोचि राजा बहुत दुःखी रहैत छलाह आओर गोनू झा बिना दरबारो मे मन नई लगैत छलैन्ह ।
एक दिन राजा दरबार मे गोनू झाक चर्च करैत रहथि तऽ ओतबहि मे एक दरबारी सूचना देलक जे गोनू झा आबि रहल छथि । लोक आश्चर्य सँ चकित रहथि जे एहि खबर के झूठ मानी वा सत्य । ओतबहि मे गोनू झा अबेत देखाय लगलाह । गोनू झा पहिने सँ बेसी मोटा गेल छलथि । किछु लोक हुनका भूत बूझि भागि रहल छल, लेकिन राजा स्तम्भित छलथि ।
गोनू झा आबि राजा के प्रणाम केलखिन आओर एकटा पुर्जा राजा के दय देलखिन । किछु कालक बाद राजा कहलखिन- गोनू झा ! की अहाँ सचमुच जीवित छी?
गोनू झा हँसिकय कहलखिन- महाराज एखन तक तऽ जीवित छी । ई देखि हजमाक प्राण सुखि गेल आओर ओ डरे पसीना सँ तर-बतर भऽ रहल छल ।
गोनू झा कहलखिन- महाराज ! हम स्वर्ग सँ आबि रहल छी । अहाँक पिता ओतय बहुत खुश छथि । परंतु हुनका हजामत कराबय मे तकलीफ छैन्ह, केश-दाढ़ी सभ बढ़ि गेल छैन्ह, ताहि लेल ओ हजाम के भेजय वास्ते ई पुर्जा भेजने छथि । एहि पुर्जा मे एयह बात लीखि पठेने छथि ।
गोनू झाक बात सुनतहि हजमा भागय लागल । लेकिन सिपाही ओकरा धऽ पकड़लक । आब तऽ हजमाक दशा बिगड़ि गेल, सब दरबारी आश्चर्य सँ अवाक् छल । राजा कहलखिन- ओहि बेर जखन गोनू झा जाय छलथि तऽ तू बढ़ि- चढ़ि कय बाजेत छलें तऽ एखन डर किये होयत छउ ?
हजमा देखलक जे आब पोल खोलय पड़त, नहि तऽ मारल जायब । तें ओ थरथराईत बाजल-सरकार हमरा क्षमा करू । गोनू झा के स्वर्ग बजाबऽ वला पत्र हम लिखने छलहु ! स्वर्ग सँ कोनो पत्र नहि आयल छल ।
गोनू झा कोनो जादू – टोना जनेत छथि तें आगि सँ बचि गेला, परंच हम तऽ जरि कय मरि जायब । आब तँ राजा आश्चर्य एवं क्रोध सँ लाल भय गेला आओर गोनू झा के पुछलखिन की बात अछि सच-सच कहू ।
गोनू झा कहलखिन- महाराज ओहि पत्र के देखिते हम बूझि गेल छलहुँ जे हमरा संगे कियो चक्रचालि खेल रहल अछि । तें अपना बचय के उपाय सोचि स्वर्ग गेनाई स्वीकार केने छलहुँ ।
तीन मासक समय लय कऽ हम ओहि माँटिक ढेरी सँ अपना घर तक सुरंग बना लेने छलहुँ आओर जखन हमरा पुआर सँ झाँपि देलक तऽ हम सुरंगक रस्ते अपना घर पहूँच गेलहुँ ।
ओमहर सब बुझलक जे आब गोनू झा जरि कय मरि गेला आओर हमर दुश्मन सभ खुशी मनाबय लागल छल । एमहर हमरा गुप्त रूप सँ पता लागल जे ई सब पूरा हजमाक षडयंत्र छल ।
ओना इ सब बिना प्रमाण के कहितउँ तऽ अहां लोकनि के फूसि लागैत तें प्रमाणक संग अहाँ सब के बतेलहुँ । राजा आओर सब दरबारी गोनू झा के बुद्धि पर दंग छलाह । ओतहि हजमा के कठोर दण्ड भेटल । संगहि गोनू झा के काफी इनाम भेटलैन्ह ....
राजा हुनका बहु मानैत छलथिन्ह संगहि आओर लोक सेहो खूब मानैत छलैन्ह । हुनक उन्नति देखि कऽ सभ दरबारी डाह करैत छल आओर हुनका मिटा देबाक उपाय सोचैत छल । ओहि मे एकटा हजमो छल । ओकरा अपना ज्ञानक घमण्ड रहै । ओ गोनू झा के मिटेबाक बीड़ा उठेलक ।
गामक बाहर राजा के पिताक समाधि छल, राजा प्रतिदिन अपना पिताक समाधि पर फूल चढ़ावय जाय छलथि । पिता पर हुनकर अटूट श्रद्धा छल, हजमा जकर फायदा उठाबय चाहैत छल आओर एकटा चाल चलल ।
एक दिन राजा जखन पिताक समाधि पर फूल चढ़ाबेय गेला तखन ओहि पर एकटा पुर्जा राखल भेटलैन्ह । पुर्जा मे लिखल रहैय-बउआ अहाँ हमर बहुत भक्त छी हम अहाँ सँ अत्यन्त प्रसन्न छी । स्वर्ग मे हमरा पूजा-पाठ करबा मे बहुत दिक्कत होयत अछि ताहि लेल अहाँ शीघ्र गोनू झा के हमरा लग पठा दियऽ । गाम के पूरब मे जे श्मशानक मे ईंटक ढेरि अछि ओहि पर हुनका बैसा हुनका उपर दस पाँज पुआर राखि ओहि मे आगि लगा देबई तऽ ओ सीधे हमरा लग पहुँचि जैता । हम किछु दिनक बाद हुनका वापस भेज देब ।
शुभाशीर्वाद
अहाँक स्वर्गीय पिता
पुर्जा पढ़िकय राजा चकरेला, एहन आश्चर्यक बात तऽ ओ कतहु देखने नहि छलथि । ओ मोने-मोने बहुत तर्क वितर्क करय लगला । गोनू झाक शत्रु के ई चाल अछि या पिता जीक आज्ञा निश्चय नई कय सकला । ओहि दिन दरबार मे आबि राजा पुर्जा के हाल सबके सुनेलनि, सभ दरबारी खुश भऽ गेल । कियो कहय लागल-गोनू झा बहुत भाग्यवान छथि ताहि लेल स्वर्ग मे महाराजा याद कैलथिन्ह । क्यो बाजय – गोनू झा कतेक बड़का पुण्यात्मा छथि जे जीवैत स्वर्ग जैता । कियो डाह करैत बाजल- हमरा सभक सौभाग्य कहाँ ! नहिं तऽ सहर्ष जैबाक लेल तैयार भऽ जैतहुँ ।
एहि पर हजमा बाजल महाराज जिनक आदेश एलन्हि हुनके जैबाक चाही नई तऽ महाराज के मोन मे दुःख हेतैन्ह । साधारण लोक सँ काज नई हेतइ तें तऽ गोनू झा के बुलाहट भेलैन्ह । इमहर राजा बड़ सोच मे पड़ि गेला, कतऊ दुष्ट सभ मिलकय गोनू झा के मारबाक षड्यन्त्र तऽ नहि रचलक अछि या ठीके पिताजी ई पुर्जा भेजने छथि । ओना अक्षर पिताजीक लिखावट सँ मिलैत अछि । अन्त मे किंकर्तव्यबिमूढ़ भऽ ओ गोनू झा सँ विचार- विमर्श कयला ।
गोनू झा एखन तक सब चुपचाप सुनि रहल छलथि । दरबारिक षडयन्त्रक अनुभव हुनका भऽ गेल छलैन्ह आ ओ एहि सँ बचबाक लेल सोचि रहल छला । हुनक कुशाग्र बुद्धि किछुये काल मे समाधान ढूंढि निकाललक । ओ कहलथिन्ह – महाराज हम स्वर्ग जैबाक लेल तैयार छी परन्च तीन शर्त अछि ।
१. हमरा तीन मास के समय देल जाय ।
२. जखन तक हम स्वर्ग सँ नहि घूमि कय आबी हमरा परिवार के सभ मास दस हजार टाका पारिश्रमिक के रूप मे देल जाय ।
३. एहि समय हमरा पचास हजार टाका देल जाय, जाहि सँ घरक सभ इन्तजाम कय कऽ जाय ।
राजा चकित भय कहलखिन-की अहाँ स्वर्ग जायब? की अहाँ एहि बात के सत्य मानैत छी ?
मोनू झा कहलखिन – महाराज हम सचमुच स्वर्ग जायब । अहाँ चिन्ता जुनि करी । उदास भाव सँ राजा गोनू झाक शर्त मानि लेलथिन । सभ दरबारी के आनन्द आओर आश्चर्य के भाव रहै । हजमा अपना जीत पर हँसि रहल छल । तीन मासक बाद राज्यक सभ लोक गांव के पुवारी कातक श्मशान पर पहुँचल जे आई गोनू झा स्वर्ग जैता । सब प्रजा दुःखी छल, राजा सेहो ओतय पहुँच कानि रहल छला । परन्च गोनू झा के मुख कनिको मलीन नई भेल छल ओ हँसिते माँटिक ढेरि पर बैस गेला आओर पुआर सँ हुनका झाँपि देल गेल एवं आगि लगा देल गेल । ई देखि राजा आओर सभ दरबारी कानि रहल छलथि ओतहि हजमा प्रसन्न भऽ रहल छल । एहि घटनाक छः मास बीति गेल छल, गोनू झा एखन तक लौट कय घर नहि आयल छलथि । ई सोचि राजा बहुत दुःखी रहैत छलाह आओर गोनू झा बिना दरबारो मे मन नई लगैत छलैन्ह ।
एक दिन राजा दरबार मे गोनू झाक चर्च करैत रहथि तऽ ओतबहि मे एक दरबारी सूचना देलक जे गोनू झा आबि रहल छथि । लोक आश्चर्य सँ चकित रहथि जे एहि खबर के झूठ मानी वा सत्य । ओतबहि मे गोनू झा अबेत देखाय लगलाह । गोनू झा पहिने सँ बेसी मोटा गेल छलथि । किछु लोक हुनका भूत बूझि भागि रहल छल, लेकिन राजा स्तम्भित छलथि ।
गोनू झा आबि राजा के प्रणाम केलखिन आओर एकटा पुर्जा राजा के दय देलखिन । किछु कालक बाद राजा कहलखिन- गोनू झा ! की अहाँ सचमुच जीवित छी?
गोनू झा हँसिकय कहलखिन- महाराज एखन तक तऽ जीवित छी । ई देखि हजमाक प्राण सुखि गेल आओर ओ डरे पसीना सँ तर-बतर भऽ रहल छल ।
गोनू झा कहलखिन- महाराज ! हम स्वर्ग सँ आबि रहल छी । अहाँक पिता ओतय बहुत खुश छथि । परंतु हुनका हजामत कराबय मे तकलीफ छैन्ह, केश-दाढ़ी सभ बढ़ि गेल छैन्ह, ताहि लेल ओ हजाम के भेजय वास्ते ई पुर्जा भेजने छथि । एहि पुर्जा मे एयह बात लीखि पठेने छथि ।
गोनू झाक बात सुनतहि हजमा भागय लागल । लेकिन सिपाही ओकरा धऽ पकड़लक । आब तऽ हजमाक दशा बिगड़ि गेल, सब दरबारी आश्चर्य सँ अवाक् छल । राजा कहलखिन- ओहि बेर जखन गोनू झा जाय छलथि तऽ तू बढ़ि- चढ़ि कय बाजेत छलें तऽ एखन डर किये होयत छउ ?
हजमा देखलक जे आब पोल खोलय पड़त, नहि तऽ मारल जायब । तें ओ थरथराईत बाजल-सरकार हमरा क्षमा करू । गोनू झा के स्वर्ग बजाबऽ वला पत्र हम लिखने छलहु ! स्वर्ग सँ कोनो पत्र नहि आयल छल ।
गोनू झा कोनो जादू – टोना जनेत छथि तें आगि सँ बचि गेला, परंच हम तऽ जरि कय मरि जायब । आब तँ राजा आश्चर्य एवं क्रोध सँ लाल भय गेला आओर गोनू झा के पुछलखिन की बात अछि सच-सच कहू ।
गोनू झा कहलखिन- महाराज ओहि पत्र के देखिते हम बूझि गेल छलहुँ जे हमरा संगे कियो चक्रचालि खेल रहल अछि । तें अपना बचय के उपाय सोचि स्वर्ग गेनाई स्वीकार केने छलहुँ ।
तीन मासक समय लय कऽ हम ओहि माँटिक ढेरी सँ अपना घर तक सुरंग बना लेने छलहुँ आओर जखन हमरा पुआर सँ झाँपि देलक तऽ हम सुरंगक रस्ते अपना घर पहूँच गेलहुँ ।
ओमहर सब बुझलक जे आब गोनू झा जरि कय मरि गेला आओर हमर दुश्मन सभ खुशी मनाबय लागल छल । एमहर हमरा गुप्त रूप सँ पता लागल जे ई सब पूरा हजमाक षडयंत्र छल ।
ओना इ सब बिना प्रमाण के कहितउँ तऽ अहां लोकनि के फूसि लागैत तें प्रमाणक संग अहाँ सब के बतेलहुँ । राजा आओर सब दरबारी गोनू झा के बुद्धि पर दंग छलाह । ओतहि हजमा के कठोर दण्ड भेटल । संगहि गोनू झा के काफी इनाम भेटलैन्ह ....
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