गुरुवार, दिसंबर 24

मिथिलांचल सँ पलायन

कोनो समाजक पहिल आ प्रमुख इकाई होइत अछि 'जनÓ। निर्माण आ विनाश दुनु मे जनक प्रमुख भागीदारी रहैत छैक। परंच मिथिलांचलक आबादी लगभग पांच करोड़ रहितो आइ मिथिला जनविहीन लागैत अछि। एतय जनसँ मतलब मात्र दैनिक बोनि पर खटनिहार श्रमिक नहि, अपितु समस्त ओहन जन सँ संबंधित अछि जे कार्यरत छथि, कुनु ने कुनु तरहक काज अबस्से करैत छथि।
जतय एक दिश्ï मिथिलाक बढ़तै जनसंख्या विस्मयकारी होइछ ओतहि दोसर दिश्ï लोकक पलायन मिथिलाक विकास केँ अवरुद्ध कयने जा रहल अछि। जनसंख्या वृद्धि सँ उपजल अनेकानेक विसंगतिक कएने लोक गाम-घर छोडि़ अन्यत्र पलायन कय रहल अछि। गाम-घरक कुनु वर्ग-जातिक लोक एहि पलायन सँ नञि बाँचल अछि।
देखल जाय तै पलायन पहिनहुँ होइत छल। प्राचीन काल मे मिथिला सँ लोक सब पलायन कय अन्यत्र सेहो बसि गेलाह। प्राकृतिक, दैवी आ स्थानीय कारण मुद्दा बनैत छल। पर्यटन आ उच्च ज्ञान प्राप्त करबाक इच्छा, सँ लोक घर सँ बाहर सेहो जाइत छलाह। आखिर लोक अपन माटि-पानि आओर गाम-घर सँ पलायन कियैक-करैत छथि, एहि संदर्भ मे किछु ऐतिहासिक कारक पर ध्यान देल आवश्यक बुझना जाइत अछि। अंग्रेजक शासन जाधरि रहल भारतक आर्थिक स्थिति चरमरायल रहल। कोनहु क्षेत्र ऐहन नहि छल जकर शोषण नहि कएल गेलै। अंग्रेजी शासनक नीति एहि तरहेँ बनल छल जे सभकिओ गरीबीक मारि झेलबा लेल बाध्य रहथु। जेना जेना समय बीतैत गेल, सामान्य मनुक्खक लेल दू जूनक रोटी जुटेनाय मुश्किल होइत गेल। ब्रिटिश शासक द्वारा अंधाधुन आर्थिक शोषण, स्वदेशी उद्योग-धंधाक नाश, ब्रिटेन मे भारतीय संपदाक स्वच्छंद प्रवाह, कृषि प्रणालीक पिछड़ापन आओर जमींदार, रजवाड़ा, महाजन तथा राज्यक अधिकारी द्वारा आम निरीह जनता/किसानक शोषण शनै-शनै अकल्पनीय दैन्य आ विवशताक खाधि मे धकलैत गेल।
एकर कारण जे पलायन प्रक्रिया शुरू भेल ओ राज्य संगे जुड़ैत गेल। ब्रिटिश शासनक शुरुआती चरण मे यानी प्लासी के लड़ाई आ 1765 ई। मे दीवानी लेल अनुदान भेटलाक बाद ईस्ट इंडिया कम्पनी जे शोषण आ मनमानीक रस्ता अख्तियार कयलक ओकर सब सँ पहिल शिकार बिहार, बंगाल आ उड़ीसाक संयुक्त प्रांत बनल। अंग्रेज ऐहन ने लूट-खसोट शुरू कएलक जाहि सँ एहि संयुक्त प्रांतक कोन-कोन मे भूख, अकाल व महामारीक साम्राज्य बनि गेल आ लक्ष्मी पड़ाय लगलीह।
एहि संदर्भ मे दरभंगाक देशी रियासतक संबंध मे दू आखर कहब समीचीन होयत। किछु दिन पहिने एहि पलायनक संबंध मे भेल शोधक अनुसारे कहल जा सकैत अछि जे मिथिला सँ भेल पालयनक मुख्य कारण दरभंगा महाराज द्वारा मिथिलांचल जनताक निर्बाध निरंकुश शोषण आ उत्पीडऩ छल। दरभंगा महाराजक एकछत्र वर्चस्वक कारणे मिथिलांचलक आर्थिक, राजनैतिक आओर सामाजिक दशा चिंतनीय बनल रहय। ओहि समय किसानक मनमाना दमन कएल जाइत छलै, ओकरा पर तरह-तरहकेँ कर, मालगुजारी आदि असहनीय बोझ सहबा लेल बेबस कएल जाइत छलै। शिक्षाक आवश्यकताकेँ सभ तरहेँ नजरअंदाज कएल गेलै, स्वास्थ्य आ अन्यान्य सामाजिक कल्याण सँ संबंधित क्षेत्र मे पिछड़ापन आ शैथिल्यपूर्ण निष्क्रियताक घटाक्षेप छायल रहलै। प्रेस, जनसंचार माध्यम आओर नागरिक अधिकारक स्वतंत्रता केँ सत्ता द्वारा हनन कयल गेलै। सरकारी राजस्वक एकटा पैघ हिस्सा राजकुमार, कुलीन दरबारी आ हुनक चमचा-बेलचा केँ ऐशो आराम आ ठाटबाट मे दुइर होइत छलै। एतबै नञि, जँ कहियो ब्रिटिश शासनक कोनो प्रतिनिधि दरभंगा अबैत छलैह तऽ राजरघरानाक प्रतिनिधि ओकरा अपन माय-बापो सँ पैघ मानि बेशकीमती जनेश दैत छलाह। एहि तरहेँ जाहि धनक उपयोग रियासतक प्रगति मे होबाक चाही ओ धन राजघरानाक ठाट बाट आ हुनक चमचागिरी मे व्यर्थ चलि जाइत छल।
मुदा आजुक परिप्रेक्ष्य बदलल अछि। बढ़ैत जनसंख्याक घनत्वक अनुपात मे जमीनक रकवा छोट भऽ रहल अछि। उद्योगकहीनता प्राकृतिक प्रकोप, बाढि़ आ रौदी, उच्च व व्यावसायिक शिक्षाक अभाव, सरकारी उदासीनता तँ कारण अछिए, संगहि उपलब्ध रोजगारक अवसर मे सेहो कमी भेल जा रहल अछि। समुचित रोजगारक अभाव मे लोक केँ अंतत: आजीविका के तलाश मे घर छोडि़ बाहर जाय पड़ैत छैक।
मिथिलांचल मे आजीविकाक मुख्य साधन रहल अछि कृषि। एकरा हम एना कहि सकैत छी जे मिथिलाक जीवन कृषि के इर्द-गिर्द छल। अन्नक उपज सँ लय कऽ पशु-धन, लकड़ी, फल-फुलवारी सब कृषि आधारित छल। जतय कृषक केँ उपज सँ आमदनि छलनि, ओतहि भूमिहीन या कम खेत वला लोक कृषक मजदूर रूप मे आजीविका पबैत छल। कृषि विज्ञानक व्यवस्था आब पूर्ण रूपेण अलाभकारी भऽ गेल अछि। कृषि आ कृषि आधारित मजदूर दूनूक लेल जिनगी भार भेल जा रहल अछि। एहन परिस्थिति मे हुनका सभक सामने पलायने एकमात्र रस्ता शेष छैन्हि।
ओना ई पड़तालक विषय थीक जे पलायन आर पलायन सँ उपलब्धि प्राप्त करय मे ओ कतेक सक्षम भऽ सकलाह, हलांकि सरकार पलायन सँ चिंतित अछि मुदा ओकरा रोकय लेल कोनहुं थितगर उपाय करय सँ कतराऽ रहल अछि। विडम्बना तँ एहि गप्पक अछि जे एखनधरि सरकारी स्तर पर पलायनक कोनो स्पष्टï आँकड़ा तक उपलब्ध नहि भऽ सकल अछि। जखन कि पलायन गति जोर पकडऩे जा रहल अछि। यदि समय अक्षितै पलायन केँ नहि रोकल गेल तँ संभव अछि जे किछु दिन बाद राज्य, खास मिथिलांचलक गामक गाम खाली भेटत। मात्र नेना, भुटका, महिला आ कि बूढ़ भेटता।
कल्पना मात्र सिहरा दैत अछि। जतय एक दिस मिथिला अपन समृद्ध सांस्कृतिक धरोहरि, सामाजिक परंपरा आ मजबूत ग्रामीण जीवनक लेल चिन्हल जाइत छल ओतय के गांव मे आब पाहुन अभ्यागतक सत्कार करय लेल दलान पर किओ नहि भेटैत अछि। 'अतिथि देवो भवÓ औचित्यहीन भऽ रहल अछि, घरबइया बिना।
ई तँ पलायनक एक रुख थिक। पलायनक दोसर रुख उपरोक्त सँ बेसी भयावह अछि। गाम-घर सँ रोजी-रोटी आ नील भविष्य क तलाश मे निकलल हताश लोग की नव-जगह ठाम पर जा किछु प्राप्त कय पबैत छथि कि नहि? घर सँ जतेक सुखद सपना लय कऽ चलैत छथि ओहि मे सँ एक्कोटा पूर होइत छैन्हि कि नहि? आ सबसँ अहम्ï चीज थिक हुनक ओतय केँ जीवन स्तर।
अपनहि राज्य आ देश मे अप्रवासी केर जीवन जीवाक लेल बाध्य ई लोकनि घर सँ दूर दुर्गतिक जीवन जीबैत छथि। मिथिला सँ पलायित लोक ओना तँ भारतक सब पैघ छोट शहर मे भेटि जयताह मुदा हिनक पहिल आ अंतिम पड़ाव दिल्ली होइत अछि। कारण, जँ दोसर शहर आ नगर मे समुचित रोजगारक व्यवस्था नञि भेल तँ दिल्ली मे छोट सन रोजगार तऽ कतओ भेटबे करत।
पढ़ल-लिखल, हुनरमंद सँ लय कऽ मूर्ख, बेलूरि सब कोटिक पलायित लोक दिल्ली मे भेटि जयताह। जिनगीक गाड़ी घीचैत-तीरैत। दिन भरि डाँड़ तोडि़ मेहनति आ राति मे गाम-घरक याद। यैह हिनक सभक दिनचर्या अछि। दुर्गा पूजा, दिवाली, होली सब छुटि गेलै, बिसरा गेलै चास-बास आ कलम-बारी, सभ दिनक पेटक आगि शांत करबाक उपाय मे। बिसरि कय आबि गेल छथि गामक ओ दलान जतय ताशक चौकड़ी जमैत छुटि, कीर्तन गबैत छलाह, शायद एतय अतिमानव बनाबक चेष्टïा मे अपनो केँ बिसरि गेलाह। बाँचल एकमात्र इच्छाक संग जीबि रहल छथि, शायद एहि महानगरी मे हमरो भाग्य खुजि जायत। भेड़-बकरी जकाँ जीवन जीवाक लेल अभिशप्त छोट-छोट झोपड़पट्टïी मे निर्वाह करैत शायद अपन जन्म लेबाक वा पूर्वजन्मक फल भोगि रहल छथि। परदेश मे हजार-पन्द्रह सौ रुपयाक नौकरी लेल बारह सँ चौदह घंटा खट्टïा पड़ैत छैन्हि संगे मानसिक शोषण सेहो बरदास्त करय पड़ैत छैन्हि। मुदा प्राप्ति नगण्ये सन होइत छैन्हि। महंग शहर-महंग वस्तु जात। फेर साल दू साल मे एक बेर गाम आयब।
पलायन सँ क्षति केवल गाम-घर समाज आ क्षेत्रे टा के नञि होइत अछि, पलायन सँ सभसँ बेसी कष्टï उठबैत छथि ओहि वर्ग विशेषक नारी, जिनक पुरुष मजदूरी लेल घर सँ जाइत छथि। अल्प आय मे अपना परिवार केँ छोडि़ असुरक्षा भावना मे पत्नी आ बच्चा केँ धकेल स्वयं सेहो चिंतित रहैत छथि। अलग-अलग लोकक हिसाबे मजबूरीक परिभाषा भिन्न भय सकैत छैक मुदा ओहि सँ उपजल असुरक्षा, सामाजिक हानि तथा अन्यान्य कारण सभक एक्कहि रहैत छैक। बच्चाक भविष्य, अपन वर्तमान आ अतीतक बीच तादात्म्य मिलाबैत, अपन जिनगीक अवसाद मिटेबाक प्रयास मे प्राय: सभ नारी तत्पर रहैत छथि।
पलायन एक समस्या थिक। एहि बात सँ इनकार नहि कयल जा सकैत अछि, परन्च सरकार एहि सत्य केँ नुकाबय चाहैत अछि। गामक गाम वीरान पड़ल जा रहल अछि। महानगर, जतय पलायित व्यक्तिक ठौर पबैत छथि, ओतहुक स्थानीय निकाय अप्रवासीक समस्या सँ ग्रसित भऽ क्षुब्ध अछि। राज्य सरकार एहि समस्या पर चुप अछि। एतेक गंभीर समस्या केँ राजनीतिक स्तर पर हल्लुक अथवा कोनो खास नञि बुझनाय, सरकारक हृदयहीनता केँ प्रदर्शित करैत अछि।
अपन उपलब्धि गनेवाक कारणे सरकार यदि छोट-मोट नियोजन करितो अछि तँ ओहो ऊँटक मुंह मे जीरक फोरन बुझना जाइत अछि। राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता मे जबड़ल व्यवस्था राज्यक एतेक गंभीर विषय पर कोनहुँ राजनीतिक व्यक्तित्व आ कि दल गंभीरता सँ ध्यान नञि दैत अछि। ध्यान दैत अछि मात्र चुनावक बेर मे। फेर बिसरि जाइत अछि। स्थानीय नेता, विधायक, सांसद मात्र अपना क्षेत्र मे ओहने विकासक कार्य मे रुचि राखैत छथि, जतय सँ हुनका अवैध रूपेँ हिस्सा (रुपया) प्राप्त होइत छैन्हि। समय रहितै यदि पलायनक एहि स्थिति पर नियंत्रण करबाक समुचित उपाय नहि कएल जायत तँ, ई स्थिति विस्फोटक भऽ वर्तमान व्यवस्थाक लेल विकट समस्या ठाढ़ कय देत। एहि मे कनिको सन्द्रह नहि।

सोमवार, दिसंबर 21

कलाक चौंसठि संख्याक रहस्य आ कलाक मूलाधार

कलाक चौंसठि संख्याक रहस्यक दिसि दृष्टिï देला पर ई कहल जा सकैत अछि जे ऋग्वेदक मंत्र अष्टïक अध्याय एवं वर्ग मे व्यवस्थित अछि। आठ अष्टïक, चौंसठि अध्याय, दू हजार चौबीस वर्ग तथा दस हजार पांच सौ नवासी मंत्र अछि। सायणक अनुसार मंत्रक संख्या दस हजारि चार सै नवासीए अछि। पांचाल एही हेतुए ऋग्वेदक चतु:षष्ठिï संज्ञा देलनि। एहि तरहेँ चौंसठि संख्या केँ पवित्र स्वीकार केल गेल अछि। कामशास्त्र केँ ऋग्वेदक सदृश धार्मिक प्रतिष्ठïा एवं पवित्रता देवाक हेतुएँ वार्भव्य पांचाल चौंसठि उपविभाग मे विभक्त कैलनि अछि। ऋग्वेदक दसम मंडलक समानहि एकरहु दस मुख्य भाग थीक। यैह कारण अछि जे एकरा चतु:षष्ठिïक नाम सँ सेहो अभिहित कैल जाइत अछि।
कलाक वर्गीकरण वात्स्यायन सँ पूर्वहि भऽ चुकल छल। पांचाल चतु:षष्ठि कलाक निर्देश कैने छलाह। जैन-गं्रथ चौंसठिकला केँ चौंसठि 'महिलागुणÓ रूप मे सेहो प्रस्तुत करैत अछि। एहि क्रम दसम एगाहरम शताब्दी मे विरचित 'कालिकापुराणÓ मे ब्रह्मïा एवं संध्याक प्रेम प्रसंग मे चौंसठिकलाक उल्लेख भेटैत अछि। एहि तरहेँ विभिन्न पुराण साहित्य आदि मे चौंसठि कलाक उल्लेख प्राप्त होइत अछि। मुदा एहि चौंसठियो कलाक नव-नव विश्लेषण क्रमश: बाद मे एक-एक कला केँ लऽ ओकर विभिन्न अंगोपांगक विस्तृत वर्णन कैल गेल और ई विभिन्न प्रस्थानक रूप मे एक पृथक स्थान प्राप्त करय लागल। विभिन्न कलाक प्रयोजन सेहो चतुर्वर्गक प्राप्ति सैह सूचित कैल गेल अछि। साधनक दृष्टिïएँ विभिन्न कलाक मौलिक आधारक प्रश्न अछि ई स्पष्टï अछि जे पौराणिक देव स्वरूपक विश्लेषणक संगहि संग कलाक सभ भेदक सांगोपांग विश्लेषण उपलब्ध भऽ सकल अछि। वेद मे कला शब्दक मात्र प्रयोग भऽ गेला सँ कलाक मूलाधार वेद नहि कहल जा सकैत अछि। किएक तँ मूर्ति निर्माण आदि वस्तु बहुदेववादक आधारहि पर विकसित मानवाक हएत। संवादसूक्त केँ नाटक मूलाधार एवं सामवेदक गान केँ संगीतक मूलाधार मानवा मे हमरा कोनो तरहक आपत्ति नहि अछि आ ने एही मतवैभिन्य अछि जे वाद्यक कतिपय रूप वेदकाल मे उपलब्ध छल। किन्तु ई एकांत सत्य थीक जे वास्तुकला, संगीतकला, मूर्तिकला, चित्रकला आदि जे विकसित रूप उपलब्ध होइत अछि एवं विषम संबंध अधिकारी एवं प्रयोजनक संग विभिन्न कलाक शाास्त्र सभक पुराणहिक देन थीक। भगवानक विभिन्न अवतार एवं लीलासभकेँ मूलाधार बना कऽ मूर्तिकला अपन चरम उत्कर्ष पर प्रतिष्ठिïत भऽ गेल। ओहि देवता सभक तथा पौराणिक राजलोकनिक नगर, देवालय, चैत्य आदिक विभिन्न वर्णनक अनुसार वास्तुकला अपन विकसित स्वरूप मे अवस्थित भेल। पौराणिक मूर्ति एवं वास्तु निर्माणक साक्ष्य आइ पर्यन्त भारतीय देवालय एवं खंडहरक रूप मे हमरा लोकनिक समक्ष उपस्थित अछि। चित्रकला सँ निश्चये पुराणक देन थीक। जहाँधरि संगीतक प्रश्न अछि ओकर विकास पुराण मे वर्णित सरस्वती, नारद, शिव, पार्वती, गंधर्व, अप्सरा सभ एवं विभिन्न राजसभाक संगीताचार्य लोकनिक आधारहि पर मानवाक इएत। पुराण सभ मे कोनो कलाक वर्णन मे लेखनी केँ संकुचित नहि राखल गेल अछि। एतबए नञि प्रत्येक कलाक एक एहन आचार्य एवं अधिष्ठïात्री देवताक स्वरूप उपलब्ध होइत अछि जकर साधना सँ ओहि कला मे परम प्रौढ़ता प्राप्तिक सूचना भेटैत अछि। समय-समय पर मय एवं विश्वकर्मा द्वारा कतेको अलौकिक नगर-निर्माणक सूचना पुराण मे देखि, ओकर अपूर्व वर्णन केँ पढि़ चिर विस्तृत, मंत्रमुग्ध कल्पना जगत मे विचरण करैत अकस्मात ई कहवाक हेतु बाध्य होमय पड़ैत अछि जो ओहि निर्माणक दृष्टिï सँ हमर स्थापत्यकला सर्वथा अपूर्ण अछि। शिवक ताण्डव, पार्वतीक लास्य, गंधर्व एवं अप्सरा सभक संगीतलहरी, सरस्वती एवं नारदक तंत्रीक झंकार अद्यपर्यंत पौराणिक शब्दक द्वारा हृत्तंत्री केँ किछु क्षणक लेल झंकृत करवा मे समर्थ होइत अछि। अत: बिन्दु इच्छोक ई स्वीकार करवाक लेल बाध्य होमय पड़ैत अछि जे विभिन्न कलाक मूलाधार पुराणहि अछि।

शनिवार, दिसंबर 19

तहसीलदारक दाढ़ी 'बाह-बाहÓ मे गेल

एकटा राजा छलाह। हुनका एकटा तहसीलदार छलनि। जो रैयतसँ जमीनक मालगुजारी वसूल करैत छल। ओ बड़ निष्ठïुर स्वभावक लोक। हुनकर नामे सुनि कऽ लोकक पेटक पानि डोलय लगैत छलैक। ओ जाहि गाम मे पहुंचि जाइत छलाह ओहि गामक लोक तबाह भऽ जाइत छल। लोक सब एहि बातक नालिश राजाक ओहिठाम केलक लेकिन किछु सुनावाइ नहि भेलैक। संयोग सँ ओ तहसीलदार एकबेर गोनू झाक गाम मे पहुंचल मालगुजारी वसूलक हेतु। ओ गामक लोकके तंग करब शुरू केलनि। ककरो खेत कटा लेथिन, त ककरो बेगार मे पकरि लेथिन तऽ ककरो पिटबाइये देथिन। कारण हुनका संग मे सिपाहियो रहैत छल।
अन्ततोगत्वा गामवला सब आपस मे विचार कऽ कऽ गोनू झासँ कहलकनि जे अपने तऽ बड़ चतुर व्यक्ति छी कोनो एहन उपाय करू जे तहसीलदार एहि गामसँ भागि जाय। गोनू झा उत्तर देलथिन अपने लोकनि चिंता नहि करू काल्हि भेनसरे हुनका हम अवश्य भगा देबनि।
भेनसर भेलैक गोनू झा तहसीलदारक ओहिठाम पहुंचलाह। गामक बहुतो लोक हुनका संग पहुंचल। ओहि समय मे तहसीलदार साहेब दत्तमनि कऽ रहल छलाह। हुनकर छाती तक लटकैत दाढ़ी झुलि रहल छल। गामवला सब हुनका नमस्कार कऽ कऽ बैसैत गेलाह। तहसीलदार साहेब कुरूर आचमनि कÓ अंगपोछासँ दाढ़ी आ मुंह पोछलनि। ओही मे हुनकर दाढ़ीक एक गोट केश टूटि पृथ्वी पर खसि परल। झट दÓ गोनू झा ओहि केश के उठा कÓ अपना धोतीक एकटा खूट फारि ओहि मे लपेटि लेलनि आ तीन चारि बेर ओकरा माथ मे ठेका प्रणाम केलनि आ ओकरा अपना धोतीक खूट मे बान्हि लेलनि।
ई देखि संगक लोक सब पुछलकनि—एहि केशकेँ लऽ कÓ की करब गोनू बाबू?
गोनू बाबू उत्तर देलखिन—अहां लोकनि इहो बात नहि जनैत छियैक जे एहि समय मे जाहि भाग्यवानकेँ तहसीलदार साहेबक दाढ़ीक एक गोट केश भेटि जेतैक ओ सोझे बैकुण्ठ चलि जायत। फेर कि छल? सब तहसीलदार साहेबक खुशामद करय लागल। तहसीलदार साहब फुलि कÓ कुप्पा भÓ गेलाह। लेकिन एतेक गोटे केँ दाढ़ीक केश कोना दÓ सकितथिन। ओ दाढ़ीक केश देवक लेल तैयार नहि भेलखिन तहन गोनू झा कहलथिन जे ई ओना नहि देथुन। एक-एकटा कÓ सब गोट लÓ लैत जाउ।
आब कि छल। तहसीलदार साहेेब छाूड़ू-छोड़ू करैत रहलाह आ लोक एब उठि-उठि एकक बाद दोसर, दोसर के बाद तेसर एवं क्रमे एकक बाद एक देखैत-देखैत हुनकर आधा दाढ़ी साफ भऽ गेलनि। दाढ़ी सँ खून बहय लगलनि। ओ लोकके बहुत डँटथिन लेकिन ओहि पर कियो कोनो ध्यान नहि दैत दाढ़ी उखारैत हल्ला करैत छल जे 'बाह-बाह केहन सुंदर दाढ़ी अछि?Ó
ई खबर समस्त गाम मे पसरि गेलैक। सौसे गामक लोक दाढ़ीक केश लेबय चलि देलक। तहसीलदार साहेब जखन समस्त गामक लोककेँ जबैत देखलखिन तÓ ओ जी-जान लÓ कÓ भगलाह। जिनका सबकेँ दाढ़ीक केश नहि भेटलनि ओ लोकनि खुशामद करैत पाछू-पाछू दौड़लाह। लेकिन तहसीलदार साहब जान लÓ कÓ परेलाह। ओ भागैत जाथि लोक हुनका खेहारने जाय अंततोतत्व ओ भागिये गेलाह।
ओहि दिनसँ पुन: ओ ओहि गाम मे मालगुजारी वसूलक हेतु नहि गेलाह।

गुरुवार, दिसंबर 17

नख सँ शिख धरिक सौन्दर्य

कजरारी आँखि, सुग्गा जकाँ नाक, कबूतर सन गला, अनारक बीज सन गँथल दाँत, गुलाबक पंखुड़ी जकां लाल-लाल ठोर, नागिन सन लहराइत केश, सरिसौंक गाछ जकाँ लचकैत डॉड़ ...... नहि जानि सुंदरता केँ कतेक तरहेँ बताओल जाइत रहल अछि। कताक कवि तऽ नारीक सौन्दर्यक विषय मे कतेको रचना कय देलाह। एहि नख सँ शिख धरिक सुंदरता मे कोन अंग के की अहमियत होइत छैक ......
पैर : साधारण तौर पर पयर कें उपेक्षित अंग मानल जाइत अछि। लेकिन शिख सँ नख। (पैरक नह) धरिक सुंदरता केँ पूर्ण मानल जाइत अछि। नवकनियाँ पयर मे पायल पहिर एक-घर सँ दोसर घर दिश्ï डेग उसाहैत छथि तऽ सभ सहजेँ पायलक रुन-झुन आवाजकेँ अकानÓ लगैत छथि। पयर मे पायलक अलावा बिछिया, मैचिंगल नेल पॉलिश सुंदरता के बढ़ाबैत अछि संगहि जँ पैर के लालरंगा सँ रंगि देल जायतऽ कि कहत ...... ! अजुका समय मे खनखनाइत चानीक पायलक जगह सोनाक पानि चढ़ाओल पायल, कुंदर आ मोती आदिक झांझरि लय रहल अछि।
डाँर : जिनक डाँर पातर-छितर रहैत छैन्हि हुनक कोन कथा...! नख सँ शिख धरिक सुंदरता मे डाँरक अपन अहमियत होइत छैक। आइयो जखन तथाकथित आधुनिक महिला पारंपरिक परिधान यथा साड़ी, लहंगा चोली आदि पहरैत छथि तऽ करधनी (डरकश) अवश्ये पहिरय छथि। एहि सँ पतरकी डाँरक सुंदरता बढि़ जाइत छै आओर ओहि पर बलाबाबैत-अल्हड़ जकाँ हुनक चालि सभ केँ आहत करथ मे समर्थ होइत अछि।
नितम्ब : डाँर पावर-छितर आ सुडौर हुअए, संगहि नितम्ब भारी-भरकम बेडौल हुअए तऽ सुंदरता धरलै रहि जाइछ। तैं नितम्बक उचित रख-रखाव जरूरी अछि। बेसी चर्बी वाला आ गरिष्ठï भोजन, शारीरिक श्रमक कमी आओर आलस्यपूर्ण दिनचर्या डाँर आ नितम्ब केँ भारी बनाबैत अछि। ताहिं खान-पान आ जीवनशैली के सुधारबा आवश्यक।
पीठ : हालांकि पीठ पाछे दिश्ï रहैछ, तइयो ओकर साफ-सफाईक ध्यान राखल जाय। पीठ केँ हमेशा सीधा रखबाक चाही, झुकि कऽ बैसला आ चलला सँ देह टेड़ भऽ जाइत छै। बिना बाँहिक आ पैघ गर खुजल गलाक ब्लाउज पहिरल जाय तऽ पीठ के सुंदर हैब अत्यावश्यक।
बाँहि आओर हाथ : हाथ मे काँच या मेटलक खूबसूरत चूड़ी अथवा लाहक लहठी तऽ बाँहि केँ बावजूद सऽ सजेबाक परम्परा चलि आबि रहल अछि। बाँहि हाथ के सुंदर रखबाक लेल एकर सफाई जरूरी अछि। केहुनी के उपेक्षित नञि छोड़बाक चाही, नहि तऽ काल्हिं कलाईब सुंदरता हेतु कलाइबंद (ब्राशलेट) पहिरल जाइत अछि। संगहि रंग-बिरंगी चूड़ी, मैटल, काँच, हाथ संकर, अंगूठी आदिक संगे रंगबिरंगी नेल पॉलिश उपलब्ध अछि जकर समय आ परिधानक हिसाबे उपयोग मे आनल जा सकैछ। कोहुनी सँ नीचाँ हाथधरि मेंहदी लगाओल जाइत अछि।
उरोज : एहि सौंदर्य यात्रा मे भरल-पुरल उरोजक भूमिका केँ नकारल नहि जा सकैछ। ई मात्र नारी होबाक एहसास नहि थिक वरन्ï दामपत्य जीवन आओर ममत्व केँ आत्मसात करबाक हेतु थिक। उरोजक आकर्षण आ उभारक लेल खान-पान आओर समुचित देखभालक आवश्यकता होइछ, जाहि सँ नारी उन्नत उरोजक स्वामिनी बनल रहथि।
गरदनि : पातर-सोटल गरदनि नारीक सुंदरता मे चारि-चान लगा दैत छैन्हि। सुंदर ग्रीवाक लेल समय-समय पर फेशियल करेनाय लाभदायक होइत अछि। जखन गर्दन सुन्न रहैत तऽ आभा नहि प्रकट करैत अछि, ताहिं गरदनि मे कंठहार, रानीहार, मंगलसूत्र, चेन, नेकलेस या हार, हँसिया, नेकलेस पाबैत अछि, मुदा गरदनि हुअए तऽ लंबा चेन आ रानीहार सुंदरता मे बढ़ोतरी करैत अछि।
चेहरा : गुलाबी गाल, रसीली ठोर, मोतीक समान धवल दंतपंक्ति, कजरारी आँखि, सुन्दर नाक व कान, ई सब मिलि कय चेहरा कहाबैत अछि। चेहरा नीक रहैय तऽ अनयासे ककरो प्रथमे दृष्टिïये अपना दिश्ï आकर्षित करबा मे समर्थ होइछ।
ठोर : पहिने गुलाबी ठोर सुंदरताक पर्याय मानल जाइत छल लेकिन बदिलैत समयक संग लोकक मानसिकता बदलि रहल छैन्हि आओर एहि ठोर के लाल, मैरुन, मोव, पिंक, ब्राउन, कॉफी आ चॉकलेट शेड्स मे रंगल जा रहल अछि। एतबै नञि नबका फैशनक आलम ई ललनाक ठोर नीला, पीयब, हरियक यानि सतरंगी रंग मे रंगि रहल छथि। एहि सभक बीच जरूरत एहि गप्पक जे ठोर आ त्वचा सँ मेल करैत शेड्स के चुनल जाए जकरा लगा कय अधर बिना खुजने अपन-आकर्षण जाल मे सामने वला के कैद कय सकैय।
नाक : अपन सभक सभ्यता संस्कृति मे नाकक नथ (छक) केँ सौभाग्य ओ सुहागक प्रतीक मानल जाइत अछि। कुनु शुभकाज मे जँ स्त्री नथ नञि पहिनैय तऽ हुनक चेहरा श्रीहीन बुझना जाइत छैन्हि। जहिया सँ भूमंडलीकरण समय आओल तहिया सँ तथाकथित पश्चिमी सभ्यता सेहो श्री केँ एहि प्रतीक नथ केँ अपन शृंगार प्रसाधन मे अपनौलक।
आँखि : सुंदरीक नयनाक कटार पता नञि कतेक के घायल कय दैत अछि ...? ओना तऽ आँखिक खूबसूरती अपन बशक नहि ई तऽ प्रकृति प्रदत्त अछि तइयो थोड़ैक देखभाल आ शृंगार कय कऽ आँखि केँ आकर्षक बनाओल जा सकैछ, ई तऽ अपन हाथ। पहिलुका जमाना मे काजर एकमात्र जानल-परखल सौंदर्य प्रसाधन छल। लेकिन एखुनका समय मे आँखि केँ आकर्षक बनेबाक लेल बाजार मे विभिन्न शेड्स के आई लाइनर, आइ ब्रो पेंसिल आओर आई शैडो उपलब्ध अछि।
कान : जँ चेहराक सम्पूर्ण सुंदरता केँ ताकल जाय तऽ आँखि नाक अधरक अलावा कानक अहमियत कम नहि अछि। जँ कान नहि रहितै तऽ कतय लटकैते लम्बा-लम्बा झुमका, झूलैत बाली आ कतय सजितैय रंग-बिरंगी टॉप्सँ? किंचित्ï एहि दुआरे कानक ऊपरी भाग के श्रवण शक्ति सऽ कोना सरोकार नहि।
कपार : सुहागक प्रतीक बिंदी (टिकली) आब पारम्परिकता सँ ऊपर उठि कय फैशन वल्र्डक एकटा अहम हिस्सा बनि चुकल अछि। जमाना बीत चुकल अछि जखन सबदिन एक्के रंग आ डिजाइनक बिंदी लगाओल जाइत छल। आब तऽ बाजार मे सुहागिन, कुमारि आ फैशनपरस्त महिला सभक लेल अलग-अलग रंग आ डिजाइनक बिंदी भेटैछ, जे ओ अपन रुचि आ पसिन्नक हिसाबे कीनि सकैथ। ध्यान राखल जाय जे अपन कपार, रंग, केशक स्टाइल आ उम्रक हिसाबे टिकली कीनल जाय।
केश : माथक केश महिलाक लेल अत्यन्त महत्वपूर्ण अछि। केश केँ कई प्रकारें जूड़ा बना कय ओकरा कलात्मक जूड़ापिन, फूलक गजरा, मोती जरल किलप्स सँ सजा कय मलिका-ए-हुस्न बनल जा सकैत अछि।
—रानी झा

बुधवार, दिसंबर 16

सत्येंद्रक लघुकथा

केंद्र
ओकर पत्नी आ ओकर मायमे एकदम्मे नहि पटै छलै। ओ थाकल-हारल जखन कार्य सँ वापस आबय तँ पत्नी घरक दरबज्जे परसँ मायक प्रति विषवमन करय लागै। मायो एकान्त पाबि एक ढाकी उपराग पत्नीक मादे सुना जाइ। ओकर मौन तीत भ जाय। आइयो ओहिना भेलै। ओ चुपचपा सुनि लेलक दुनूक गप्प। ताबब बेटा आबि गैले, ''पापा, एकटा प्रश्नक उत्तर कहू तँ, कि एक केंद्रसँ अनेक वृत्त घीचल जा सकै छै?ÓÓ
''हँÓÓ ओ संक्षेप मे उत्तर देलक।
''मुदा पापा, जते बेर वृत्त घीचल जेतै, तते बेर प्रकालक नोक ओकर केंद्र पर पड़लासँ ओकर गड़ैतो हेतै।ÓÓ
बेटाक गप्प सुनि ओ ओकर मुँहे तकैत रहि गेल।
दोसर गलती
एकटा साइकिल कारसँ सटि गेलै। कारकेँ किछु नहि भेलै। साइकिल थूड़ा गेल छलै। साइकिलक ई पहिल गलती छल जे ओ अपन औकादि नहि बुझलक।
थुड़ायल-कुचायल साइकिल न्यायक लेल जाय लागल। ई ओकरासँ दोसर गलती भ गेल छलै।

मंगलवार, दिसंबर 15

देह उघाड़ू विज्ञापनक पसरैत जाल

जाहि अंतर्वस्व केँ महिला सभ शारीरिक सुंदरता, सुघड़ता केँ कायम रखबाक लेल उपयोग मे आनैत छथि; ओकरा पश्चिमी सभ्यता केँ पक्षधर बाजारू संस्कृतिक कारणे लाज-धाक के धकियाबैत फैशनक रूप मे परोसि रहल छथि। कि एकरा अपन सभक सभ्यता पर करगर चोट मानल जाय? कि किछु आर!
जाहि अंतर्वस्त्रक नामकेँ सार्वजनिक रूपेँ बजबा मे हमरा सभकेँ असोकरज बुझना जाइत अछि, जकरा घरक महिला कुनु दोसर कपड़ा के तर मे दऽ रौद मे सुखाबैत छथि, ओहि वस्त्रक ऐना प्रचार अखरैत अछि। अप्पन समाज मे एखनधरि 'ब्राÓ शब्दक सार्वजनिक रूपें प्रयोग केनाय अभद्रताक पर्याय मानल जाइत अछि। ओतहि एकरा उत्तरीय भारतीय परिधानक रूप मे मान्यता देव कचोटैत अछि कि फैशनक अर्थ कपड़ाक संख्या आ अकार मे कमी आनब रहि गेल अछि? डिजाइनर आ व्यवसायी द्वारा अपन हितक वास्ते हमर सभक सभ्यता केँ निरन्तर नांङ्गïट करब कत्तय धरि उचित अछि? अफसोस होइत अछि भारतीय नारीक परिधान पर आखिर कहिया रूकत ई पश्चिमी सभ्यताक अनुकरण। अनुसरण मात्र उघारूपन केँ, आर कथूक नहि? जखन कि हमर अतीत समृद्घ अछि, विकसित अछि। मात्र शारीरिक उघारूपन अपनेलाह सँ कि भेटत?
पश्चिमी देश जकाँ उघारूपनक रोग एखनहुँ एहिठाम सभकेँ नहि लगलैक अछि। एहिठाम नारीकेँ देवी मानल जाइत छैक। सरस्वती आ दुर्गा मानैत छैक। सेक्सक आनन्द ई कदापि नहि लगाओल जाय कि भारतीय संस्कृति उघारूपनक खालिस विरोधी अछि। एक सीमा धरि हमहूँ सभ उघारूपन मे विश्वास करैत छी, सीमा तोड़ी कऽ नहि। बिनु उघारने तऽ संभोग सम्भवे नहि छैक। एहिठामक सभ पत्नीक संग ओ सभ करैत छथि जे योनि संतुष्टिï लेल आवश्यक छैक। नहि तँ सन्तान कोना होयत? सृष्टिï कोना चलत? बिनु बेटाक जे मरैत अछि तकरा तँ हिन्दू धर्मक अनुसार स्वर्गों मे कल्याण नहि होइत छैक।
प्रेम कोना करी, संभोग कोना करी, ताहि संबंध मे शिक्षा लेल हमरा देशक कामशास्त्र विश्वविख्यात अछि। काम लक्षणक विस्तृत विवरण दैत आचार्य वात्सायन लिखैत छथि :-
''श्रोत्तत्वकचक्षुर्जिका ध्राणानामात्म संयुक्तेन मनसा।
धिष्टिïतानां स्वेषु विषयेतानुकूल्यत: प्रवृत्ति: काम:॥ÓÓ
अर्थात्ï - कान, त्वचा, आँखि, जिह्वïा, नाक एहि पाँचो इन्द्रिय केर इच्छानुसार शब्द, स्पर्श, रूप, रस आ गन्ध केर प्रवृत्तिये काम थिक अथवा एहि इन्द्रिय केर प्रवृत्ति सँ जे आत्मानन्द होइछ तकरे 'कामÓ कहल जाइछ।
निष्कर्ष ई जे ज्ञान मे जाहि विषयक संस्कार होइछ से वासना बनि ज्ञान मे विद्यमान रहैत अछि आ जखन उक्त विषय के पयबाक इच्छा उत्पन्न होइत अछि तऽ ओहि इच्छा के काम कहल जाइत अछि। चूँकि ई इच्छा ज्ञानक विषय अर्थात्ï वासना सँ जनमैत अछि तेँ ओहि विषय-वासनाके सेहो काम कहल जाइत अछि। काम केर कारणेँ एक प्राणी दोसर प्राणी सँ आकृष्टï भऽ संभोग करैत अछि तेँ सृष्टिï सृजन होइछ। काम के गाम-घरक बोली मे 'सहवासक इच्छाÓ कहल जाइत अछि।
काम सृष्टिïक अस्तित्व अछि। काम सृष्टिïक आदि तत्त्व अछि। सृष्टिïक विकासक आदि कारण भेला सँ एकर अनादि सेहो कहल जाइत अछि। एकरा उपेक्षित मानब समस्त मानव मात्रक लेल अपराध थिक। काम प्राणिमात्र केर जन्मगत स्वाभाविक प्रवृत्ति थिक। काम केर शमन शारीरिक आ मानसिक दृष्टिïयेँ हानिप्रद अछि। 'कामÓ स्त्री-पुरूष दुहुक लेल समान अछि।
दुनू मे समानरूपेँ भूख, प्यास आ तृप्ति छैक। काम इच्छाक शान्तिपूर्ण समाधान प्राणीमात्रक लेल आवश्यक एवम्ï हितकर अछि। जहिया भूख आ काम खतम भऽ जायत तहिया सृष्टिï स्वत: समाप्त भऽ जायत। तेँ प्राणिमात्रक लेल काम आ भूख दुनू अनिवार्य अछि। इएह कारण अछि जे काम प्राणीमात्रक लेल ईश्वरीय प्रवृत्ति थिक। एकर अनिवार्यता आ महत्ता के किओ नकारि नञि सकैत अछि।
डॉ। फ्रायड केर विचार छन्हि जे—''संसारक पैघ-पैघ योद्घा, राजनेता, दार्शनिक आ वैज्ञानिक भेल छथि सभहक जीवन काम-वासना सँ पूर्ण पाओल गेल अछि। दुनियाक विकास हिजड़ा सँ नहिं अपितु ओहि 'मर्दÓ सँ भेल अछि जे काम उपासक छलाह। धर्म-दर्शन आ समाजक समस्त ललितकला केर पाछाँ मनुष्य मे सेक्सक भावना निहित रहैछ।ÓÓ
जतेक संभोगक आसनक चर्चा हमरा सभक कामशास्त्र मे अछि तकर बराबरी तँ पश्चिमी देश आइयो नहि कऽ सकल। लेकिन हम सभ ई काज पश्चिमी देशक लोक जकाँ सार्वजनिक स्थान मे नहि, शयनकक्ष मे करैत छी, सूतय वला घर मे। केवाड़ बन्न कऽ करैत छी। परदा राखि कऽ करैत छी। आन केओ देखि नहि लिअय तकर-ध्यान रखैत छी।
हमर पूर्वज पश्चिमी देश सभ सँ बेसी उघारूपन मे विश्वास करैत छलाह। प्रमाण तँ खजुराहो मन्दिर अछि जतय भित्तिचित्र आ प्रतिमाक रूप मे हजारों-हजार स्त्री पुरुषक संभोग मे व्यस्त, नग्न नृत्य मे मस्त, आलिंगनबद्घ होइत चुम्बनक्रिया मे संलग्र चित्र देखाओल गेल अछि। एहेन अनेको मन्दिर अछि जतय पश्चिमी सभ्यताक पक्षधर केँ अपन सेक्सक ज्ञानक श्रेष्ठताक घैलि फुटि जेतैन्ह। होश निफ्ता भऽ जेतैन्ह।