गुरुवार, अगस्त 27

नहि बनब पत्रकार!

जहिया सँ ज्ञान भेल तहियो सँ सेहन्ता छल जे पढि़ लिखि पत्रकार बनी। सेहन्ता के सेहन्तें जकाँ सेबने रही। कि जानैत रही जे पैघ भेला पर (वयस मे) नहि बनि सकब? कियैक नञि, एकर घ्ज्ञुति आइयो धरि नहि भेल, तहन गप्पे कि। मुदा किओ सेहन्ता के सेहो नैनपन के एहिना आसानी सँ छोडि़ दिअ, आसान नहि होइत छैक। तहन तऽ हमहूँ मनुक्खे रही, सेहो साधारण कि कहू, अति साधारण, हमर कोन औकाति।
ऐहन गप्प नहि रहअ जे हमरा जुआरि नहि उठाल रहय। उठल रहय, पूरवा-पछवा हमरो लागल रहय। लेकिन सम्हारबाक कोशिश कयेन रही। एहि मे कतय धरि समर्थ भेल रही, एकर अवगति नहि भेल कहियो। घर में जहन कहियैय जे पत्रकार बनब क पत्रकारिता मे अपन कैरियर बनायब। एहि क्षेत्र के जीविकोपार्जनक साधन बनायब, सभक आँखि-भौं तलि जाइन्ह। पता नहि शिक्षित भेलाक बादो समभ मनोदश एहन कियैक। सभ बुझाबै लागैथि 'देखैत नहि छियैन्ह मनोहर कक्का के पत्रकार रहथि, पत्रकारिता मे बड़Ó नाम रहैन्ह लेकिन आइ कोन हश्र छन्हि? कि कौचल छन्हि? बोटा दुखित पड़लैन्ह, सब चास-बास बिका गेलैन्ह। भरिपरोपट्टïा मे तऽ सभ चिन्हैत रहैन्ह, लेकिन तऽ सँ आई-काल्हिं की होत्त छैक। आई जौं आन कतओ ठाम नौकरी कय कऽ दू पाय अर्जन कयने रहितथि तऽ बेटो बाँचि जैतेन्ह आसंगे चास-बास आ कलम-बाग।
लेकिन एकटा हम रहि जे पत्रकार बनबाक धुन सबार रहय, हरदम अपना केँ पत्रकार सन देखेबा लेल तत्पर रहैत छलहुँ। खादीक पायजामा, खादीक कुत्र्ता, पयर मे कोल्हापुरी चप्पल, कुत्र्ताक उपरका जब मे दू-तीन गोट लाल-कारी कलम। दाढ़ी खुटिआयल, केश उधियाइत। शायद हमरा जनिबै इएह पत्रकार बगेबालि होइत छल। बिनाकाज के अनेरो अफस्यॉत होयब, हमर दिनचर्या छल।
ई सुनब मे सहजेँ मोटि जाइत छल जे जकर नाम मे 'कारÓ प्रत्यय लागल रहय, हुनक चरित्रक संबंध मे सही आकलन करबा मे साक्षात्ï ब्रह्मïा के सेहो सोचय पड़तैन्ह, यथा-चित्रकार, पत्रकार, साहित्यकार, फिल्मकार, संगीतकार आदि। जे गोटे एहन पूर्वाग्रह सँ ग्रसित होथि, ओ कोनो अप्पन स्वजन के एहि खाधि मे खसबाक अनुमति दय पओताह विश्वास करब मोसकिल लगभग इएह मनोदशा हमर घरक संग सेहो बगल के पत्रकार बन्धु सबसँ मेल-जोल रखने रही। ओ सभ जे किस्सा-पिहानी सुनबैथि, सुनबा मे बड़ रसगर ओ चहटगर लगैत छल।
आई मौन पड़ैत अछि एगो संगीक गप्प। संगी पत्रकार छल, एकबेर ओ कलकत्ता गेल, कोनो कार्यक्रमक फीचर तैयार करबा लेल वा रिर्पोटिंगक लेल। कहलक —'कि कहियों दोस, एहि लाइ मे सभ किछु भेटैत छैक।ओ जमाना बीति गेलै, जहन पत्रकार लग पाय-कौड़ी नहि रहैत छलैक। हमरा देख, सभ किछु भेटैत अछि। रूपया-पाय, छौड़ी-भौगी सभ। सोनगाछी सेहो गेल रही, पुलिसिया भय सँ त्रस्त छल ओहिठामक रंडी। पुलिसक बारे मे किछु सही-गलत नहि लिखि दिअए, ताहिं हमरो आगाँ परोसि रहल छल एकटा रंडी, जकरा संगे उघारि-पुघारि जे मौन छुअए से कय सकैत छलौं। ओ अन्हार घर मे मासु प्रेमी गाहक संग पड़ल छल नंग-धडंग। आब तौहि कहÓ एहि क्षेत्र मे कि नहि छैक। जाहि हिसाब सँ जमाना बदलि रहल छैक, ओहि हिसाब सँ तऽ बदल है तड़तैह, नहि तऽ जायब तीन नम्बर मे। नाम-ठिकाना केँ कोन कथा, धरक लोक के लाशो नहि भेटतैक।Ó
सांझ मे जहन घर घुरि आयल रहि तऽ इएह सब गप्प दिमाग मे घुरिआइत छल। देखियो आई-काल्हिं सभ किछु भेटैत छैक, एहि क्षेत्र मे। जरूरति छै मात्र अपना केँ समयक संग ढ़ालबाक। एहि मे कोन खराबी। सब तऽ बदलैत अछि। परिवर्तन तऽ संसारक शाश्वत्ï नियम छैक। परिवत्र्तित होयबा मे हर्ज नहि।
हमहूँ घर सँ बहरेलौं अपन झोरा-झपटा लय कऽ, यायावरी डेग के उसाहैत। निश्चर करैत कि जे हेतै से देखल जेतै, आई किनको इंटरव्यू अवश्ये लैब। दिमाग मे सबसँ पहिल नाम आयल—टिग्गा साहेब केँ। आदिवासी छलाह, सरकारी महकमा मे नामी-गिरामी अधिकारी संगे सामाजिक कार्यकत्र्ता सेहो हुनका मानल जा सकैत अछि। हुनक घर बहुँचलौ, घंटी बजेलौं। अपने तऽ नहि निकललाह, निकलल खिन्ह हुनक श्रीमति जी। कोनो हर्ज नहि, प्रणाम-पाती भेलाक बाद उद्देश्य जानि अन्दर बैसेलि, सोफा पर। सामने स्वयं बैसलि। मिसेज टिग्गाक बेडॉलक सीमा धरि नमरल सम्पुष्टï वक्ष हमरा किछु बेसीए आकर्षित करय कमल तेना फलायल रहैत छल जे भौंरा केँ सहजहि आमंत्रित करैत छल। टिग्गा सेहो एहि सँ मिज्ञ रहय आ अनकर, पिपासु नजरि सँ बचयबा लेल झाँपि-तोपि कऽ रखबाक प्रयास मे रहैत छल। टिग्गा कमरा गोलकीपर लगैत रहय जे दुनू हाथें फुटबॉल पकडऩे होअय। ठीके एक हाथें सम्हारब ककरो बूता सँ बाहर छलै....। जेना बच्चा दुनू हाथें पकडि़ दूध पीवैत छल, तहिनाकिछु काल बच्चाक स्थिति मे अपना केँ राखि हम कल्पना करय लगलहुँ। सगरो देह मे एक तरहक सनसनी भरय लागल छल। रक्त संग एकटा उत्तेजना देह मे घुमडय़ घुरिआम लागल छल.....जेना बहरयबाक बाट तकैत होअय।......जे पति साप जकाँ कुंडली मारि पत्नीक पहरा करैत अछि तकरा घीचब आसान होइत छैक, ई गप्प सुनने रही। मुदा हमरा मे ओ हियाब कहाँ....। हम सशंकित रहैत छलहुँ आ सचेष्टï छलहुँ जे एहि तरहक कोनो भाव देखार नहि भऽ जाय आ टिग्गा साहेब अबितै हमरा पकडि़ नञि लैथि। पत्नीक विषय मे टिग्गा साहेब जरूरति सं बेसीये 'रीजिडÓ छलाह। ओ हमरा समटा माफ कय सकैत छलाह, किंतु एहि विषय पर 'कम्प्रोमाइजÓ नहि कऽ सकैत छलाह।....
एतबै मे हमर निन्न टुटि गेल। तहन ज्ञात भेल जे हम तऽ सपनाइत रही। सपने मे टिग्गा साहेब ओतय इंटरव्यूक लेल गेल रही। हमरा लागल जे कन काल लेल हम धूरी सँ छिटकय लागल रही... मुदा फेर वापिस आबि गेल रही। यौनाकर्षण मे आकर्षित भऽ रहल छलौं लेकिन.......। हमरा एहि प्रकरण केँ एतेक सहजता सँ नहि लेबाक चाहैत छल। खुशी भेल जे हम स्खलित होयबा सँ बाँचि गेल रही। संभवत: घरक संस्कार हमरा बचौने रहल। आब हम निर्णय कय लेलौं जे ठेला-घींचैत-तीरैत जीवन बिता लेब, मुदा पत्रकार नहि बनब।

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