सोमवार, दिसंबर 5

द्वादश ज्योतिर्लिंग कथा

(१) श्री सोमनाथ- गुजरात प्रान्तक काठियावाड़ मे समुद्रक तट पर अवस्थित एहि ज्योतिर्लिंगक कथा शिव पुराण मे एहि तरहे सँ वर्णित अछि :-

दक्ष प्रजापति केर ‘कन्या छलनि । हुनका सभक विवाह चन्द्रमाक संग कयने छलथिन्ह । परन्तु चन्द्रमा मात्र रोहिणीक अलावा किनको सँ अनुराग व सम्मान नहि करथिन्ह । एहि सँ क्रोधित भऽ प्रजापति दक्ष चन्द्रमा कें क्षय होयबाक शाप दए देलथिन्ह । एहि सँ चन्द्रमाक कान्ति तत्काल क्षीण भऽ गेलनि । ओ अपन श्राप सँ विमुक्‍ति हेबाक लेल ऋषि आओर देवता के संग कए ब्रह्मा जीक ओहिठाम गेला । ब्रह्माजी शाप विमोचन के लेल प्रभास क्षेत्र मे जाए कऽ भगवान शिवक आराधना करबा लेल कहलथिन्ह । ओ कठिन तपस्या करैत १० करोड़ मृत्युंजय मंत्रक सेहो जाप कएलनि । एहि पर भगवान शिव प्रसन्‍न भऽ अमर रहबाक वरदान दए शाप सँ मुक्‍ति होयबाक विषय मे कहलथिन :- जे अहाँ कृष्ण पक्ष मे एक-एक अंश क्षीण होइत जाएत और शुक्ल पक्ष मे ओहि तरहें एक-एक अंश बढ़ैत पुर्णिमा कऽ पूर्ण रूप प्राप्त होएत । आओर प्रजापति दक्षक वचनक रक्षा सेहो भए जेतनि । शाप सँ मुक्‍ति भेलाक पश्‍चात्‌ चन्द्रमा आओर सब देवता लोकनि भगवान शिव के माता पार्वती कें साथ सभ प्राणीक उद्धारार्थ एतय रहबाक प्रार्थना कएलनि । भगवान शिव प्रार्थना कें स्वीकार कऽ ज्योतिर्लिंग के रूप में माँ पार्वती के साथ ओहि दिन सँ एतय रहय लगलाह ।

(२) श्री मल्लिकार्जुन :- आंध्रप्रदेश मे कृष्णा नदीक तटपर श्री शैलपर्वत स्थित ज्योतिर्लिंगक कथा पुराण मे एहि तरहक अछि ।

भगवान शिवक दुनू पुत्र श्री गणेश आओर श्री कार्तिकेय मे सँ किनक विवाह सर्वप्रथम करायल जाय, एहि तरहक समस्याक समाधान हेतु शिवजी दुनू बालक कें पृथ्वीक परिक्रमाक आदेश दए कहलथिन्ह जे पहिने परिक्रमा कय आबि जायब तिनक विवाह सर्वप्रथम कराओल जाएत । श्री कार्तिकेय एहि बात कें सुनिते मयूर पर सवार भय पृथ्वीक परिक्रमा के लेल विदा भऽ गेलाह । श्री गणेश जी सोचय लगलाह जे हुनका मयूर सवारी छनि आ यथा शीघ्र परिक्रमा कय लेताह परन्तु हमरा मूसक सवारी अछि हमरा सँ पृथ्वी परिक्रमा असंभव अछि तथापि बुद्धि विवेकक सहारा लय अपन माता पिताक शरीर मे अखण्ड ब्रह्माण्ड कें समाहित देखि ओ हुनकहि प्रदक्षिणा कऽ हाथ जोड़ि माता पिताक सन्मुख ठाढ़ भय गेलाह । माता-पिता हुनक बुद्धि विवेक देखि हुनक वियाह सिद्धि आओर बुद्धि के साथ करबा देलनि । ओहि मे क्षेम तथा लाभ नामक दु पुत्र भेलनि । जखन कार्तिकेय पृथ्वीक परिक्रमा कऽ भगवान शंकर तथा पार्वतीक पास अयलाह तावत धरि श्री गणेश जीक विवाह भऽ गेल रहनि तथा दू पुत्रक प्राप्ति सेहो भऽ गेल छलनि । ई सभ बात देखि कार्तिकेय क्रोधित भय क्रौंच नामक पर्वत पर चलि गेलाह । माता पार्वती रुष्ट पुत्र के वापस लाबय लेल ओहि स्थान पर पहुँचलथि । पाछाँ सँ भगवान शिव ज्योतिर्लिंग के रूप मे प्रकट भऽ गेलाह, ताहि दिन सँ मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के नाम सँ प्रख्यात भेलाह । एहि लिंगक पूजा अर्चना सर्वप्रथम मल्लिका पुष्प सँ कएल गेल छल ताहि हेतु मल्लिकार्जुन नाम सँ प्रसिद्ध छथि ।

(३) महाकालेश्‍वर :- मध्यप्रदेशक उज्जैन नगर मे अवस्थित एहि ज्योतिर्लिंगक कथा पुराण मे एहि प्रकार सँ अछि :-

प्राचीन काल मे उज्जयिनी मे राजा चन्द्रसेन राज्य करैत छलाह । ओ परम शिव भक्‍त छलाह । राजाक शिव भक्‍ति सँ प्रभावित भऽ कऽ एक पाँच वर्षक ग्वालाक लड़का शिव भक्‍ति मे निमग्न भऽ गेल । भक्‍ति मे मगन ओ बालक खेनाई के सेहो बिसरि गेल छल । एहि पर कुपित भऽ माय ओहि शिव लिंग रूपी पत्थर के फेकि देलकनि । बालक भगवान शिव के नाम बजैत बेहोश भऽ खसि परल । किछु समय बाद होश एलाक बाद ओ सामने बहुत सुन्दर आओर बहुत विशाल सुवर्ण रत्‍न सँ जटित मन्दिर देखलनि । मन्दिर के भीतर प्रकाश पूर्ण, भास्वर तेजस्वी ज्योतिर्लिंग स्थापित छल । ताहि दिन सँ एहि ज्योतिर्लिंगक पूजा शुरू भेल । उज्जयिनी नाम सँ विख्यात ई नगर भारतक परम पवित्र सप्तपुरी मे एक अछि ।

(४) ॥श्री ओंकारेश्‍वर, श्री अमलेश्‍वर ॥

मध्यप्रदेशक पवित्र नर्मदा नदीक तटपर अवस्थित एहि ज्योतिर्लिंगक कथा पुराण मे एहि तरहक अछि :-

प्राचीन समय मे महाराज मांधाता एकटा पर्वत पर बैसि तपस्या सँ भगवान शिव के प्रसन्‍न केने छलाह, एहि सँ इ पर्वत मांधाताक नाम सँ विख्यात भेल । भगवान शिव ज्योतिर्लिंगक रूप मे एहि स्थान पर प्रकट भेलाह ताहि हेतु सम्पूर्ण मांधाता पहाड़ कें शिव के रूप मानल जाइत अछि । एहि ओंकारेश्‍वर ज्योतिर्लिंग कें दू रूप छनि, एहि के वर्णन निम्नलिखित अछि :- विंध्य पर्वत भगवान शिवक आराधना कयलनि । ओ प्रकट भऽ मनोवांछित वरदान देलथिन्ह । एहि अवसर पर आयल मुनि लोकनिक आग्रह पर अपन ओंकारेश्‍वर नामक लिंग के दू भाग मे कऽ देलनि । एक के नाम ओंकारेश्‍वर तथा दोसर के नाम अमलेश्‍वर भेलनि । दुनू लिंगक स्थान आओर मन्दिर अलग-अलग रहलौ पर दुनूक सत्ता-स्वरूप एक अछि ।

(५) श्री केदारनाथ :- उत्तराखण्ड प्रदेशक केदार नामक पर्वत पर अवस्थित एहि ज्योतिर्लिंगक कथा पुराण मे वर्णित एहि प्रकार सँ अछि :-

हिमालयक केदार नामक अत्यन्त शोभाशाली शिखर पर महा तपस्वी श्रीनर आओर नारायण भगवान शिव कें प्रसन्‍नता हेतु कठिन तपस्या कयलनि । तपस्या सँ खुश भऽ भगवान शिव प्रकट भऽ वर मांगय लेल कहलथिन्ह । श्रीनर आओर नारायण शिव सँ याचना कएलनि जे अपन भक्‍तक कल्याण के लेल सभ दिन एहि ठाम अपन स्वरूप कें स्थापित करबाक कृपा कयल जाय । मुनिक प्रार्थना सुनि भगवान शिव ज्योतिर्लिंगक रूप मे एहि स्थान पर रहब स्वीकार कयलनि । केदार नामक हिमालय शिखर पर अवस्थित होयबाक कारणे इ ज्योतिर्लिंग केदारेश्‍वर ज्योतिर्लिंग के नाम सँ प्रसिद्ध अछि ।

(६) श्री भीमेश्‍वर :- असम प्रदेशक गोहाटी के नजदीक ब्रह्मपुत्र पहाड़ पर अवस्थित एहि ज्योतिर्लिंगक कथा पुराण मे निम्न लिखित अछि :-

प्राचीन समय मे भीम नामक एक महाप्रतापी राक्षस छल । ओ कठिन तपस्या कऽ ब्रह्माजी सँ त्रिलोक विजयी हेबाक वरदान प्राप्त कयलनि । त्रिलोक विजयी भीम कामरूपक परम शिव भक्‍त राजा सुदक्षिण पर आक्रमण कऽ हुनका बन्दी बना कारावास दऽ देलनि । राजा ओहि समय मे पार्थिव शिवलिंगक पूजा करैत छलाह । हुनका एहि तरहें पूजा करैत देखि क्रोधित भऽ भीम अपन तलवार सँ ओहि पार्थिव शिवलिंग पर प्रहार कऽ देलनि । तत्काल भगवान शिव प्रकट भऽ हुँकार मात्र सँ ओहि राक्षस केँ भस्म कऽ देलनि आओर सुदक्षिण व ऋषि मुनि सभ कें प्रार्थना स्वीकार कऽ भगवान शिव सभ दिन के लेल ज्योतिर्लिंग के रूप मे वास करए लगलाह । हुनक ओ ज्योतिर्लिंग भीमेश्‍वर नाम सँ विख्यात भेल ।

(७) श्री विश्‍वेश्‍वर :- उत्तर प्रदेशक प्रसिद्ध काशी मे स्थित एहि ज्योतिर्लिंगक कथा एहि प्रकारक अछि-

भगवान शंकर पार्वती विवाह कऽ कैलाश पर्वत पर निवास करैत छलीह । परन्तु पिताक घर विवाहित जीवन बितेनाई बढ़ियाँ नहि बुझना गेलनि । एक दिन ओ भगवान शिव सँ कहलथिन कि आब अपना घर पर चलू । एहि ठाम रहनाइ हमरा बढ़िया नहि बुझना जाइत अछि । सब लड़की विवाह भेलाक बाद अपना पतिक घर जाइत अछि । परन्तु हमरा पिताक घर रहय पड़ैत अछि । भगवान शिव माता पार्वती कें साथ लऽ अपन पवित्र नगर काशी आबि गेलाह । ओतय ओ विश्‍वेश्‍वर ज्योतिर्लिंगके रूप मे स्थापित भऽ गेलाह । मत्स्यपुराण मे एहि नगरीक महत्व कहल गेल अछी जे ध्यान आओर ज्ञान रहित तथा दुःख सँ पीड़ित मनुष्य के लेल काशियेटा परमगतिक स्थान अछि । श्री विशेश्‍वर के आनन्द वन मे दशाश्‍वमेघ, लोलार्क, विन्दुमाधव, केशव आओर मणिकर्णिका ई पाँच प्रधान तीर्थ स्थली अछि, ताहि हेतु एहि स्थान केँ अविमुक्त क्षेत्र कहल जाइत अछि ।

(८) श्री त्र्यम्बकेश्‍वर :- महाराष्ट्र प्रान्तक नासिक लग अवस्थित एहि ज्योतिर्लिंगक कथा पुराण मे एहि तरहक अछि :-

ब्राह्मण सभ श्री गणेश जी कें संग मीलि महर्षि गौतम जी पर छल सँ गोहत्याक दोष लगेलनि । महर्षि जी कें चारू दिस सँ बहिष्कृत कऽ देल गेलनि । ई देखि ओ भगवान शिव के कठोर तपस्या सँ प्रसन्‍न कऽ गोहत्याक पाप सँ मुक्‍ति होयबाक रास्ता जानय चाहलनि । भगवान शिव प्रकट भऽ कहलथिन्ह :- हे गौतम अहाँ सदैव सर्वथा निष्पाप छी । अहाँक ऊपर गोहत्याक पाप छलपूर्वक लगाओल गेल अछि । छलपूर्वक एहि तरहें करय वला ब्राह्मण अहाँक आश्रम मे छथि । हुनका सभ के हम दण्ड देबय चाहैत छी । गौतम जी उत्तर देलथि = हे प्रभू! एहि ब्राह्मण सभक निमित्तें अपने हमरा दर्शन देल ताहि हेतु एहि सँ हमर परम हित समझि कऽ हुनका लोकनि कें क्षमा कयल जाय । ऋषि-मुनि, देवता गण ओतय एकत्र भऽ गौतम जीक बात के अनुमोदन कयलनि तथा भगवान शिव कें सब दिन के लेल ओहिठाम निवास करय लेल प्रार्थना कयलन्हि । भगवान शिव हुनका लोकनिक प्रार्थना सुनि श्री त्र्यम्बकेश्‍वर ज्योतिर्लिंगक नाम सँ स्थित भऽ गेलाह । गौतम द्वारा आनल गेल गंगा एहि ठाम गोदावरी नाम सँ प्रवाहित होमय लागल ।

(९) श्री वैद्‌यनाथ :- झारखण्ड राज्य के संथाल परगना मे अवस्थित एहि ज्योतिर्लिंगक कथा एहि प्रकार सँ अछि :-

राक्षस राजा रावण कठोर तपस्या कऽ भगवान शिव कें शिवलिंग रूप मे लंका मे अवस्थित होयबाक वरदान मंगलनि । भगवान शिव जी वरदान दैत कहलखिन जे अहाँ शिवलिंग लऽ जा सकैत छी, परन्तु एहि लिंग के रास्ता मे कतहु पृथ्वी पर राखब तऽ ओ अचल भऽ जायत आ अहाँ पुनः उठाकय नहि लऽ जा सकैत छी । रावण शिवलिंग उठा कऽ लंका विदा भेला कि किछु दूर गेलाक बाद हुनका लघुशंका करबाक इच्छा भेलनि । ओ शिवलिंग के एक बालक के हाथ मे दऽ लघुशंका के लेल गेलाह । रावण के अबय मे देरी देखि बालक ओहि लिंग के पृथ्वी पर राखि देलनि । ओ लघुशंका सँ निवृत्त भऽ शिवलिंग के उठावय के लेल बहुत प्रयत्‍न कयलनि परन्तु शिवलिंग नहि उठि सकलनि । अन्त मे हारि कय ओ एहि पवित्र शिवलिंग पर अंगुठाक निशान बना कऽ वापस लंका चलि गेलाह । बहुत दिनक बाद ओहि जंगल मे वैदू नामक गोप गाय चरबैत ओहि स्थान पर शिवलिंग देखि साफ सुथरा स्थान कऽ प्रथम पूजा कयलनि आ तें ओ ज्योतिर्लिंग वैद्यनाथ नाम सँ प्रख्यात छथि ।

(१०) श्री नागेश्‍वर :- गुजरातक द्वारिकापुरीक समीप अवस्थित एहि ज्योतिर्लिंगक कथा एहि तरह सँ वर्णित अछि :-

प्राचीन समय मे सुप्रिय नामक एक बड़ धर्मात्मा आओर सदाचारी वैश्य़ छलाह । भगवान शिवक भक्‍त होयबाक कारणें दुष्ट राक्षस दारूक सुप्रिय आओर हुनक सहयोगी सभ कें कारावास मे राखि यातना देबय लगलाह । शिवक आराधना मे तल्लीन सुप्रिय कें मृत्यु दण्डक आदेश भेल । भगवान शिव प्रकट भऽ दर्शन दऽ हुनका अपन पासुपत अस्त्र प्रदान कयलनि, जाहि सँ सुप्रिय दारूक एवं हुनक सहयोगी सब कें वध कयलनि । भगवान शिव ज्योतिर्लिंग के रूप मे प्रकट भेल छलाह आ सुप्रियक आग्रह पर ओहि स्थान पर श्री नागेश्‍वर नाथ नाम सँ प्रख्यात भेलाह ।

(११) श्री सेतुबन्ध रामेश्‍वर :- तमिलनाडुक हिन्दमहासागर तट पर अवस्थित एहि ज्योतिर्लिंगक कथा निम्न प्रकारक अछि :-

जखन भगवान श्री रामचन्द्रजी लंका पर चढ़ाई करबा लेल जा रहल छलाह ताहि समय ओ एहि समुद्रक तट पर बालू सँ शिवलिंग बनाकऽ हुनक पूजन कएने छलाह, पूजा सँ प्रसन्‍न भऽ भगवान शिव रावण पर विजय प्राप्त करबाक वरदान देने छलथिन्ह । श्री राम के अनुरोध पर भगवान शिव लोक कल्याणार्थ ज्योतिर्लिंग कें रूप मे ओहि स्थान पर निवास करबाक प्रार्थना स्वीकार कऽ लेलनि । ताहि दिन सँ ई ज्योतिर्लिंग एहि स्थान पर रामेश्वरक नाम सँ विराजमान छथि ।

(१२) श्री घुश्मेश्‍वर :- महाराष्ट्रक वेरूल गाँवक पास अवस्थित एहि ज्योतिर्लिंगक कथा पुराण मे निम्न प्रकार सँ अछि-

प्राचीन समय मे देवगिरि पर्वत के समीप सुधर्मा नामक एक अत्यन्त तेजस्वी तपोनिष्ट ब्राह्मण रहैत छलाह । हुनक पत्‍नीक नाम सुदेहा छलनि । सन्तान नहि होमय के कारण सुदेहा सुधर्माक विवाह अपन छोट बहीन घुश्मा सँ करा देलथिन । शिव भक्‍त घुश्मा एक पुत्र के जन्म देलनि । किछु वर्षक बाद सुदेहा कें घुश्मा सँ ईर्ष्या होबय लगलनि । ओ घुश्माक जवान पुत्र के मारि कें पोखरि मे फेकि देलनि । एहि बात पर घर मे कोहराम मचि गेल । लेकिन घुश्मा प्रतिदिन जेना शिवक पूजा-अर्चना मे लीन रहथि । एहि सँ प्रसन्‍न भगवान शिव मारि देल गेल पुत्र के पुनः जीवन दान दऽ इच्छित वरदान माँगय के लेल कहलथिन्ह । घुश्मा कहलथिन्ह - ज्येष्ठ बहीन सुदेहा के माफ कऽ देल जाए आओर लोकक कल्याणक लेल अपने सदा सर्वदा के लेल एहि स्थान पर निवास कयल जाय । भगवान शिव हुनक दुनू बात के मानि ज्योतिर्लिंग के रूप मे प्रकट भऽ ओहि स्थान पर निवास करय लगलाह । सती शिवभक्‍त घुश्माक आराध्य देव होयबाक कारण ओ एहि स्थान पर घुश्मेश्‍वर महादेव के नाम सँ विख्यात भेलाह ।

कोई टिप्पणी नहीं: