गुरुवार, जून 7
अत्याधुनिक मैथिली महिलाक मानसिकता आ दबाव
हम जहन पढ़ैत रहि तक मिथिलाक नाम अबितै राजा जनक सँ लय क गार्गी, याज्ञवल्कय, भारती, मण्डन मिश्र, वाचस्पति मिश्र सन मैथिल मनीषी के नाम सुनैत रही। किछु बरख पहिने धरि सुनैत रही जे मिथिला वर्णन, मिथिला दर्शन, मिथिला के आचार-विचार दोसर के प्रति सदभावना, मधुर वचन - ई सब त मिथिलाक देन अछि। दोसर ठाम ई कतओ नहि भेटि सकत। मुदा, आई सबटा आधुनिकता के नाम पर निपत्ता भेल जा रहल अछि। आधुनिकता बाजार के प्रश्रय देलक आ बाजार एक-दोसर केँ टाँग घींचबाक। एहि घींचातानी मे कहन हमसभ खसय लगलहुँ, कोनो ठेकान नञि। जहन-जहन ठोकर लगैत अछि त मौन परैत अछि, जे हम महान छलौं।
महानता केवल कहबी मे। करनी मे आब देखा कहाँ रहल अछि? दादा लग हाथी रहैन्ह, हम सिक्कै डि़ केँ संदूक मे धय देने छी। ई सोच सब केँ छन्हि। पहिने मिथिला सँ लोक कमाई करबा लेल कलकत्ता-असम जाइत रहलाह। ओकर दिल्ली बाद दिल्ली-मुंबई आ पंजाब। आब त कोनो ठेकान नञि। जकरा जतय ठेकान भेटि जाइत छन्हि, ओतहि बोरिया-बिस्तर ल य कय। ई सबटा देन अछि आधुनिकता केँ। विकासक नाम पर ई नीक अछि।
मुदा, जहन अपन परिवार, परंपरा पर तुषारापात होइत अछि त लोक बिलबिला जाइत अछि। नहि आगू सुझैत छैक आ ने पाछूं। जाबैत धरि होश अबैत छैक, बहुत विलंब भ गेल रहै छै।
किछु एहने सन स्थिति सँ गुजरि रहल अछि मिथिला। अपन स्वर्णिम अतीत आ परंपरा केँ बले नीक भविष्यक सपना तँ संजोय रहल अछि, मुदा घरक धरैन हिली रहल छैक। घर-परिवारक धरैन त धरनी यानी महिला होइत छथि। पुरूष त खांभ होइत अछि। कोनहु कारणवश खांभ त बदलल जा सकैत अछि, मुदा धरैन केँ बदलब सहज नहि। आधुनिकता केँ नाम पर जहिया सँ बाजार आ पश्चिमी देखाउँस गाम-घर मे हुलि गेल अछि, बहुत रास समस्या उभरि रहल अछि।
देखल जाए त संसारक प्रत्येक देश मे पुरुष समाजक अपेक्षा महिला समाज सदिखन पांछा रहल अछि । यद्यपि प्रगतिक गति मे तेजी अनबाक हेतु आइ-काल्हि विदेश मे नारीक प्रयोजनीयता सिद्ध आ प्रमाणित भऽ गेल अछि। संगहि वैज्ञानिकता, कलाकारिता, साहित्य-सृष्टि, आर्थिक प्राप्ति तथा देश नेतृत्वक संग ढेर रास काज मे सब नारी अपन कर्तव्य पथ पर निर्बाध गति स आगा बढि़ रहल छथि। कतेको पथ पर आरुढ़ भऽ नारी अपन सहज प्रतिभाक प्रदर्शन मे उन्मुख भऽ रहलीह अछि, तइयो ई मानऽ पड़त जे प्रगतिक एहू क्रांतिकारी युग मे पुरुषक समकक्षता सँ ओ पाछुए छथि आओर अपन लक्ष्य धरि पहुँचबा मे एखन हुनका पर्याप्त समयक अपेक्षा छन्हि ।
घर महिला सँ होइत अछि। ताहिं महिला केँ स्वभाव-पात, हुनक विचार केहन छैन्ह, एकर असरि ओतुका समाज पर परैत छैक। जदि महिला ठानि लैथि त मिथिला अपन संस्कृति के पहिने जकां अक्षुण्ण राखि सकैत अछि। अछिंजल सन। एहि वास्ते हमरा सब केँ अपन संस्कृति पर कोनो तरहक आँच नहि आबय देबय पड़त। एकरा लेल शुरूआत घर सँ करय पड़त। किएक त पश्चिमी सभ्यताक आँखि मुन्नि कय ओकर पाछाँ भगबाक सोचक कारणें हम सभ अपन धुरी सँ छिटकि रहल छी। एकर शुरूआत घर सँ करय पड़त। कियैक त लोक आब अप्पन घर मे मैथिली बाजब खराप मानैत छथि। दिल्ली-मुंबई केँ त गप्पे छोड़ू, दरभंगा-मधुबनी जे मिथिलाक गढ अछि, ओतहु माय अपन नेना-भुटका सँ एखुनका हिंग्लिश मे गप्प करब शान बुझैत छथि। हम घर-घर मे देखैत छी जे अपन संस्कृति के बिसरि विदेशी भाषा केँ सभकिओ अपना रहल छथि। माय-बाबू जी कहब त दूर, आब मॉम-डैड कहल जायत अछि। एक-दोसर केँ प्रणाम केनाय त दूर, अपना सँ पैघ कें पैर छूब त सामने वालाँ केँ अपन अपमानद स्वाभिमान पर चोट बुझा रहल छैन्ह। एक-दोसर के नमस्कार-पाँती त दूर आब हेल्लो, हाय... बाजल जा रहल अछि। एखनहु बेसी महिला नहि त ठीक तरहे अंग्रेजी सीखलीह आ नहि मैथिली कें प्रति अनुराग बाँचल छन्हि।
नतीजा, नञि हिंदी आ ने अंगे्रजी। मैथिली केँ त ओ सब निकृष्टï बुझय लागलीह।
एकर अर्थ ई नहि लगाओल जाय कि हम विकास केँ पक्षधर नञि छी। हम आई दिल्ली-मुंबई आबि गेलौं त दोसर के अएबाक अधिकार नञि छन्हि। सबकें विकासक आरि पर डेग उसाहबाक अधिकार छन्हि। सामथ्र्य छन्हि। मुदा, कोनहुँ क्षेत्र मे अधकचरा ज्ञान घातक होइत छैक। मानलो आई-काल्हिं लोक सभ अंग्रेजी दिस बेसी भागि रहल छथि। चूंकि हमहुं एकटा महिला छी। मिथिला सँ सरोकार अछि। ताहिं मिथिला केँ सेहो अनुभव अछि आ महिलाक सोचक सेहो। ताहिं कहैत छी जे पुरूषक अपेक्षा हमरा सभ मे देखाउँसक प्रवृत्ति कनी बेसी होइत अछि। दोसरक देखी करब जेना कर्तव्य होई हमर सभक। मानलौं जे अमेरिका-लंदन सब जाय लागल। तकर माने कि हम अपन संस्कृति कें छोडि़ दी?
बहुत रास सवाल मन मे घुमरैत रहैत अछि। जतय सीता जन्मली मैट सँ, ओहि माटि पर आई आय देखैत छीक घर - घर मे दहेजक कारन कतेक पुतोहु के घर स बहार कएल जा रहल अछि। बेटीक वियाहक उमर बितैत जा रहल अछि। कोनो निदान नजरि नञि आबि रहल अछि। आई-काल्हिक माय अपन बेटी केँ आधुनिकता केँ अँन्हरिया मे बेतहाशा दौड़बाक आजादी त दय रहल छथि। मुदा... संगे ई नहि बताबैत छथि जे ओकर लक्ष्मण रेखा की छैक? एकबेर लक्ष्मण रेखाक लाँघब जगत जननी जानकी आ मानव समाज केँ कतेक महग पड़लै, ई कहबाक आवश्यकता नहि। सब किओ जनैत छी।
कहल जाइत अछि जे साहित्य ओखुनका समाजक प्रतिबिंब होइत अछि। ताहिं जदि कोनो समय विशेषक चित्रण आ ओकर प्रासंगिकता पर गप्प हुअए त तखनुका साहित्य पर नजरि दौड़ा सकैत छी। आधुनिक मैथिली कथा मे नारी समाज मध्य सांस्कृतिक चेतना कें जागृत करबाक प्रयास कतेको कथा लेखिका कयलनि अछि । एहि दिशा मे मात्र मिथिलांचलक नहि, प्रत्युत समस्त भारतीय समाज मे एहन प्रवृत्ति दृष्टिगत होइत अछि । कथा आजुक सर्वाधिक विकसित एवं लोकप्रिय विधा थिक । कथाक आन्तरिक संरचना, ओकर मूल स्वर सत्य के पकड़बाक यत्न कयलक अछि । सत्यक अनेक पक्ष भऽ सकैछ । सत्य - जकरा कथा कहैछ - जकरा कथाकार उजागार करैछ - सत्य जकरा आलोचक पकड़बाक यत्न करैछ ।
चलो रे डोली उठाओ कहार..गीत आब केवल ब्याह दिन बैंड पर बजैत अछि। आधुनिक युग मे मिथिला मे आएल सांस्कृतिक पतनक कारण आब कोनो दुहारि स डोली नहि उठैत अछि। धनीक स धनीक आ गरीब स गरीब लोक अपन बेटी-पुतहु कए मोटर स ल कए रिक्शा तक पर विदा करैत अछि। नवतुरिया त आब सिनेमा मे छोडि़ डोली कतहू नहि देखैत अछि। मिथिलाक एक-दू टा गाम छोडि़ कए कतहू डोली अथाज़्त खरखरिया देखबा मे नहि अछि। जाहि गाम मे अछि ओहि ठाम सेहो ओ जजज़्र अवस्था मे अछि। दरअसल आब विवाह मे चलि रहल रस्म ओ रिवाज मे भारी बदलाव आबि रहल अछि। एकर पाछु बिहार स पलायन सेहो महत्वपूणज़् कारण मानल जा रहल अछि। जाहि प्रदेश स लोक बिवाह करबा लेल बिहार अबैत अछि ओकर संस्कृति एहि ठामक संस्कृति मे मिला दैत अछि। गाम हुए या शहर अपन संस्कृति कए त्यागि शान बढ़ेबा लेल नव-नव तरीके अपना रहल मिथिला समाज अपन जडि़ स कटल जा रहल अछि। गप मात्र डोली क नहि अछि आन रिवाज सेहो खत्म भ रहल अछि। आदिकाल स चलल आबि रहल रिवाज कए मानि हम सब दुनिया मे अपन अलग स्थान बनेने छी। एहि पर आइ सेहो शोध जारी अछि जे आखिर मिथिला मे विवाह क सफलता क राज की अछि। मुदा इ हाल रहल त जल्दहि हम सब ओहि भीड़ मे शामिल भ जाएब, जतय राति मे विवाह आ भोर मे तलाक भ जाइत अछि। हम लग्न के छोडि़ लगन मे विवाह करै लगलहुं, जखन कि मिथिलाक देखा-देखी अमिताभ बेटाक विवाह लग्न देखी कए केलथि।
पहिने जतय ब्याह क बाद कनिया आ वर कए ल जेबा लेल दुहारि पर चारि टा कहार लाठी लकए ठार रहैत छल, आइ खटारा गाड़ी मे ड्राइवर बैसल नजरि अबैत अछि। कहबा लेल इ हमर आधुनिक सोच आ आथिज़्क उत्थान कए देखा रहल अछि, मुदा असल मे इ हमर पिछड़ापन आ दिमागी तौर पर अंगाली कए देखा रहल अछि। राजस्थान मे जेकर दुहारि पर करोड़ टकाक गाड़ी लागल अछि ओ जखन विवाह लेल जाइत अछि त लाख टका खचज़् करि घोडि़ मंगबैत अछि, दू डेग लेल लाख टका खचज़् करैत अछि, मुदा करोड़ टकाक गाड़ी घोडि़क स्थान नहि ल पेलक, मुदा मिथिला मे हजार टका कहार कए नहि द खटारा गाड़ी पर चढ़बा स औकात बढि़ जाइत अछि।
ई गप स्वीकार करए मे हमरा कोनो संकोच नहि जे हमर भाषा हिंदी क भाषाई साम्राज्यवाद क शिकार भेल अछि। ई संकट मैथिले टा संग नहि, बल्कि हिंदी क्षेत्र क तमाम भाषा जेना अवधी, भोजपुरी, ब्रज, राजस्थानी सबहक संगे छै। देखल जाए त भोजपुरी कनी नीक अवस्था मे अछि कारण जे एकरा बाजार सेहो सहयता कए रहल छैक। मुदा जेना-जेना शहरीकरण बढि़ रहल अछि देश मे छोट-छोट भाषा आ बोली क स्पेश खत्म भ रहल अछि। देश क एकात्मक स्वरुप क विकास क लेल हिंदी आ अंग्रेजी अनिवायज़् बनल जा रहल अछि। जिनकर जन्म पटना या दिल्ली मे भेलन्हि ओ हिंदी मे गप करैत छथि। हालांकि ओ अपन मां-बाबूजी स मैथिली बाजि लैत छथि, मुदा अन्य मैथिल भाषी स ओ हिंदी मे संवाद करैत छथि। एकर पाछू कोन मानसिकता अछि, कोन कारक एकरा प्रभावित कए रहल अछि, ताहि पर विवेचना आवश्यक।
दोसर गप हीन मानसिकता क सेहो। हम सब अपन संस्कृति कए जेना बिसरि गेलहुं अछि। हमरा सब ज्ञान क मतलब अंग्रेजी क जानकारी मानि लेने छी, आ संस्कारित होई क मतलब हिंदी क नीक ज्ञान यानी खड़ी हिंदी क दिल्ली या टीवी क टोन मे बाजै क ज्ञान मानि लेने छी। हमरा अपन प्राचीन परंपरा क ज्ञान स या त वंचित कएल जा रहल अछि या हम सब खुद अनभिज्ञ भेल जा रहल छी या कएकटा आथिज़्क वजह हमरा सबस अमूल्य समय छीन रहल अछि जे हम सब अपन भाषा या संस्कृति क बारे मे सोची।
प्राचीन काल सँ आईधरि अनेक मैथिल नारी रत्न छथि। मुदा संसार मे उच्चतम आदर्शक स्थापना कयने आओर अपन सुकृत्य सँ नारी जातिक नाम उज्ज्वल कयलनि। ओ चाहे सीता होथि किवां गार्गाी, मैत्रेयी, अरूंधती, सतरूपा आओर भारती। सब मैथिलनारी आंरभहि सँ पृथ्वीक समान क्षमाशील, समुद्र जकां गहीर, चन्द्रमा जकां शीतल, रवि सन तेजस्वी आ पहाड़ जकां मानसिक रूप सँ उन्नत रहल छथि।
वास्तव मे स्त्री आओर पुरूष केँ जीवनरूपी गाड़ी केँ दू गोट पहिया कहल जाइत अछि, जाहिक बले जीवनक गाड़ी चलैत अछि। कखनो एकटा कमजोर पड़ल त दोसर पर बेसी भार पड़ैत छैक। सत्ते कहि त स्त्री-पुरूष जीवनक गाड़ी मे जोतायल दू गोट पहिया छथि, जे परस्पर एक-दोसर केँ पूरक छथि। एक के अभाव मे दोसर के व्यक्तित्व अपूर्ण अछि। स्त्री पत्नी के रूप मे पुरुषक परामर्शदात्री आ शुभेच्छु होइत छथि त माँ के रूप मे हुनक गुरू।
वैदिक पुरातन काल मे नारी केँ समाज मे अत्यधिक श्रेष्ठ आओर उच्च स्थान प्राप्त छल। हुनक अभाव मे पुरुष अपन धार्मिक काज आ अनुष्ठान आदि कें पूर्ण नहि कय सकैत छलाह। तखन तँ भगवान श्रीराम केँ स्वर्णमयी जनकसुता सीता बना कय अश्वमेघ यज्ञ करय पड़लैन्ह।
मिथिलाक संस्कृति मे नारी त्याग, विश्वास आओर श्रद्घाक प्रतीक रहलीह। तेँ मैथिल संस्कृति ओ सभ्यताक मूल कारण नारीतवक उच्च स्थान तथा महान आदर्श रहल अछि। मिथिला मे महिला लोकनिक सृजनात्मक प्रतिभाक अभिव्यक्ति लोक साहित्य आओर लोक कलाक रूप मे भेल अछि।
स्वतंत्रता प्राप्तिक बादो जखन समाज केँ चिंतक लोकनि स्त्रीक विकासक दिशा खोजय छलाह तँ कतेकाक विचारक कें सामाजिक विषमताक अनुभव भेलन्हि। ओ देखलनि जे स्त्री आओर पुरुष के बीच बड गहीर विषमता अछि। कतेको कारण सँ स्त्री के पिछड़ल वर्ग मे मानि लेल गेल। देशक स्वतंत्रता प्राप्तिक उपरांत समाजिक कुरीति सभ कें नष्टï होमय लागल। एहने योजनाक अंतर्गत पर्दा प्रथाक बहिष्कार स्त्री शिक्षाक प्रचार आदि महिलाक उत्थान हेतु प्रयास होमय लागल। इ तथ्य त सर्वमान्य भ गेल जे जहिना गाड़ीक दू टा पहिया सँ सुचारू रूपे गाड़ी चलाओल जा सकैत अछि तहिना राष्टï्रक वा समाजक गाड़ी स्त्री आ पुरुषक दुनूक पूर्ण क्षमता सँ सुचारू रू पे चलि सकैत अछि। राष्टï्रक आह्वïान भेल जे महिला लोकनि अपन शक्ति के चिन्हैथ आ विकास करथु। एहि तरहेँ स्त्री शिक्षाक प्रचार-प्रसार लागल।
सामाजिक स्तरपर बेटा-बेटी कें बरोबरि मानबाक समझदारी विकसित करबाक प्रयास तँ सदिखन भ रहल अछि। निश्चित रूप सँ स्त्रीक जीवन मे परिवर्तन आयल अछि। शिक्षा आओर रोजगाकरक प्रतिशत मे बढोत्तरि देखल जा रहल अछि। ओ अवसर पाबि कय जी-तोड़ मेहनत कय रहल छथि। किछु क्षेत्र मे तँ पुरुषो सँ आगू बढि़कय अपन क्षमता के उजागर करैत अपन पहचान बनौने छथि। जल, थल, नभ तीनू ठाम हुनका लेल खोलि देल गेल अछि। आओर ओ सभ जगह अपन दृढ़ताक संग डेग उसाहि रहल छथि। मुदा दोसर दिस हुनक पर कतेको रास ज्यादती, छेड़छाड़, घरेलू हिंसा, आफिस मे भेदभाव आदि भ रहल अछि।
चूंकि, हमर विषय वस्तु अछि मैथिल महिलाक मानसिक अवस्था आ दवाब तेँ आजुक समय मे आधुनिक स्त्री के मानसिक उहापोह पर गप्प करब आवश्यक। एखुनका समय मे महिला लोकनि के मानसिक उहापोह बड बढि गेल छन्हि। आखिर ई मानसिक उहापोह किएक भ रहल अछि, एहि पर विवेचन करी त बड समय लागत। ओतेक समय आई नहि अछि। मुदा किछु बजने बिना चुप्प रही जायब, त मन घुमरय लागत। हमरा जनितबै एहि उहापोह एकटा कारण जतय महिला-पुरुषक बराबरिक दर्जा नहि भेटब अछि तो दोसर दिस आधुनिकता के चपेट मे आयब सेहो थिक। हमर सभक संस्कृति मे स्त्री-पुरुष के एक-दोसर के पूरक मानि कय स्त्रीक लेल विशेष सामाजिक व्यवस्था कयल गेल अछि, किएक तँ प्रकृतिए स्त्री कें विशेष बनौने छैक। हुनक शारीरिक रचना, मानसिक बनावट आ संवदेना पुरुष सँ फराक अछि। विशेष अछि। एहि विशेषताक बलपर ओ बच्चा के जनैत छथि, बच्चाक पालन-पोषण करैत छथि। परिवार आ समाज कें संवेदना के आधार पर जोरैत छथि।
आजुक बदलल परिस्थितियो मे हुनक अपन विभिन्न भूमिका मे अहि सभ दायित्व के निभायब पड़ैत छन्हि किएक तें ओ तंँ हुनका करय के छन्हि आओर अहि प्रकृति प्रदत्त विशेषताक कारणे समाज आओर मानव मात्रक लेल नीक होइत छैक। मुदा बराबरीक अहि दौड़ मे जहन स्वयं स्त्रीक अपन विशेषता कें बिसरैत जाइत छथि, त दिक्कत आयब स्वभाविक। इ कतेओ न कतओ आधुनिकता के असरि अछि। अपन माटि अपन हवा के बिना कुनु गाछ बाहर सँ आनि कय लगा देलजाए तँ फल देनाई त दूर ओ गाछ कनिये दिन मे नाश भ जाइत अछि। जाहि समाज मे जीवन मूल्य किंवा समाज मूल्य होयत ओहि मे सुख-शांति आओत। परिवार आ समाज अहि उदेश्य सँ बनल अछि। पुरातल कालो मे निरक्षर माता सेहो अपन बच्चा मे मानव मूल्यक मंत्र देबा मे सफल रहैत छलीह ते तँ एतेक वर्ष सँ हमर संस्कृति कायम अछि। जे सर्व विश्व हिताय संस्कृति रहल अछि। सबहक हित मे प्रयास करेत रहनाई। ओहि लेल जीवनक के यज्ञ कहल गेल अछि। मिथिला मे महिलाक जीवन पल-पल यज्ञ मे आहुतिके समान रहल अछि। बल्कि स्वयं हुनक जीवन यज्ञ रहल छन्हि। मुदा समाजक जीवन मूल्य आई आधुनिकताक नाम पर अपन इतिहास के तिलांजलि द रहल अछि। जे आई अत्याधुनिक महिलाक मानसिकता मे बहुत परिवर्तन देखल जा रहल अछि। ओ किंकर्तव्यविमूढ़ छथि। ओ दोसर के लेल जिनाई आ सीमित साधनों मे संतुष्टï रहनाई (अपन बच्चा मे) जीवन मूल्यक स्थापना कयनाई इ सभ बात करय ते चाहैत छथि मुदा आजुक गलाकट प्रतिस्पर्धाक युग मे जेना सभ किछु बिला जाइत अछि। बाजारवाद माने गलाकाट प्रतिस्पर्धा। ई प्रतिस्पर्धा आजुक लोक कें शॉट-कर्ट दिस उन्मुख करय अछि। शॉटकर्ट कतेक खतरनाक होइत अछि, मानसिक स्तर पर। चारित्रिक स्तर पर, कहबाक जरूरति नहि। एखुनका किछु महिलाक चारित्रिक पतन के जाहि तरहें हम सब खबरि सुनैत छी, ओकर पाछां इएह मानसिकता त काज करैत अछि। एहि तरहक मानसिकता असरि अछि जे आजुक महिलाक मानसिक रूप सं दू पाटक बीच ओझरा जाइत छथि। जहन कि जाहि परंपरा हमर समाज आ परिवार सँ जोडय़ क भाव जगाबैत अछि ओकरा हम मात्र पुरान बुझिकय त्यागि देनलाई समाज सम्मत नहि अछि। आजुक नारी के अप्पन जीवन जीबय के ललक मे बियाह-दान सेहो बोझ बुझना जा रहल अछि। ओना त एहि तरहक सोच राखय वालाक संख्या एखन कम अछि, मुदा एकर संख्या ठमकल रहत, कहब बड मोसकिल। कारण लोक कें देखाऊंस करब पुरान आदति छन्हि। विशेष कय महिला मे ई गुण बेसी होइत अछि। लिव इन रिलेशनशिप तरह कंस्पेट एहि सोचक त परिचायक थिक। एहि पर विशेष ध्यान देबाक जरूरति अछि। एखुनका बेटी सभहक सोच मे करियर पहिने आ बादे मे दोसर वस्तु। करियर पहिने होबाक चाही, हम एकर विरोधी नहि छी, मुदा परिवार के अनदेखी नहि कयल जा सकैत अछि। दूनू मे सामंजस्य त मिथिलाक महिला कतेको दशक सँ राखैत अयलीह। तहन एहन विसंगति किएैक?
हम जदि इतिहासक ओहि कालखण्ड मे जाइत छी, जहन पढ़ाई-लिखाई ओतेक प्रचलन मे नहि छल, ओहो समाज अपन युवा पीढ़ी के सही जानकारी देबाक लेल किछु रास्ता खोजि लेने छल। जेना लोकगीत, परंपरा आ पाबनि तिहार के माध्यम सँ जीवन जीबय के जानकारी अपन अगिला पीढ़ी के दयदेल जाइत छल। गीतक माध्यम सँ वियाहक उपरांत सासुर मे संबंध निबाहबाक आओर नैहर आ सासुर क बीच सामंजस्य रखबाक शिक्षा इत्यादि सभ शिक्षा आसान तरीका घर-रबैटी मे भरि देल जाइत छल।
आई हमर सामाजिक परिस्थिति बदलल अछि। आधुनिकताक नाम पर नञि त हम इम्हर के रहलौं आ नहि ओम्हर के। जेना सूपक भांटा भ चुकल छी। एखुनका समय मे बेसी महिला नहि त ठीक तरहें अंग्रेजीये सीखलहि आ नहि मैथिलीएक प्रति अनुराग बाँचल छन्हि। नतीजा नञि हिन्दी नहि अंग्रेजी। मैथिली कें तैं निम्न बुझैये लगलीह।
- कुमकुम झा
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1 टिप्पणी:
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