सोमवार, अक्तूबर 5

गुदरी मे लाल : बाबा यात्री


मिथिलाक पावन माटि तंत्र, दर्शन ओ शिक्षाक लेल सनातन कालहि सँ प्रसिद्ध रहल अछि। ई सिद्धपीठ ओ तपोभूमिक रूप मे सेहो विख्यात अछि। एकर शैक्षणिक भूमि सततï् उर्वरा रहल अछि। विद्यापति, अयाची, वाचस्पति ओ मंडन-भारतीक एहि धरती पर वर्तमान युगक एक गोट महान विभूतिक जन्म भेल, जिनक नाम छल-ठक्कन मिश्र। ई आगू चलि ठक्कन सँ वैद्यनाथ मिश्र, वैदेह, आ फेर 'पतन-अभ्युदय बंधुर पंथा, युग-युग धावित यात्री। तुमि चिर सारथि तव रथ चक्रे, मुखरित पथ दिन रात्रि।Ó धावित यात्री आगू चलि बौद्ध साहित्य दर्शनक संपर्क मे नागार्जुन आ युवा साहित्यकारक बीच बाबा नागार्जुन भेलाह।

बाबाक चर्चा करैत एकटा अक्खड़, घुमक्कड़, बेबाक, बात-बात पर हँसय बला चेहरा ओ अनुकूल अथवा प्रतिकूल परिस्थिति सँ अप्रभावित व्यक्तित्व, मानस-पटल पर प्रकट भऽ जाइत अछि। ई निर्विवाद सत्य जे विशुद्ध निर्गुनियाँ सदृश सांसारिक माया-मोह सँ दूर, अपना मे मस्त रहयबला, स्वछन्द विचरण कएनिहार आओर कोनो परिवेश मे अपन स्वतंत्र विचार निडरताक संग व्यक्त कएनिहार बाबा यात्री एहि गप्प केँ मिथक साबित कएलन्हि अछि जे भारतवर्ष मे व्यक्ति मृत्यु पश्चाते अमरत्व केँ प्राप्त करैत अछि। ओ तऽ अपन जीवन कालहि मे अमरत्व केँ प्राप्त करैत जनकविक रूप मे विख्यात भऽ गेल छलाह।

बाबाक मूल नाम वैद्यनाथ मिश्र छलन्हि। हिनक जन्म ज्येष्ठï पूर्णिमा तदनुसार जून, 1911 ई। मे अपन मात्रिक सतलखा (जिला मधुबनी) मे भेल छल। हिनक पिताक नाम पंडित गोकुल मिश्र आ पैतृक गाम तरौनी (दरभंगा) छल। प्रारंभिक शिक्षा अपन पैतृक गाम स्थित विद्यालय सँ प्राप्त कएला उपरांत 14 वर्षक आयु मे गनौली संस्कृत पाठशाला सँ प्रथमा एवं मध्यमाक परीक्षा उत्तीर्ण कएलन्हि। एतय ई लिखब अप्रासंगिक नहि होयत जे संस्कृत शिक्षा दिस अग्रसर होयबाक मुख्य कारण निर्धनताक पर्याय रहल। तदुपरांत महारानी (दरभंगा) द्वारा प्रदत्त छात्रवृत्तिक आधार पर उच्च शिक्षाक प्राप्ति हेतु काशी गेलाह आ ओतऽ सँ साहित्याचार्यक उपाधि अर्जित कएलन्हि। फेर एक साल धरि कलकता मे रहि 'काव्यतीर्थÓ क उपाधि पओलन्हि। ध्यान देवा योग्य अछि जे अपन स्वाध्यायक बल पर ओ नहि केवल मात्रृभाषाक साहित्य संसार केँ पल्लवित ओ पुष्पित कएलन्हि वरïनï् एकर अतिरिक्त पालि, अद्र्धमागधी, अपभ्रंश, सिंहली, तिब्बती, गुजराती, बंगला ओ पंजाबी साहित्य पर सेहो समान अधिकार बनोलन्हि। राष्ट्रभाषा हिन्दी तऽ जेना हिनका मे रचि-बसि गेल छल।

18 वर्षक अवस्था मे बाबाक वियाह ग्राम हरिपुर, बख्शी टोल निवासी कृष्णकांत झाक पुत्री अपराजिता देवी सँ भेलन्हि। विवाहोपरांत सन् 1932 ई। मे ओ उत्तरप्रदेशक सहारनपुर मे शिक्षक पद पर नियुक्त भेलाह। परन्तु, अपन घुमक्कड़ प्रवृत्तिक कारणे किछु दिनक बाद पद-त्यागी देलन्हि। 1934 सँ 1936 ई. क बीच ओ भारतक विभिन्न भागक भ्रमण करैत रहलाह। जाहि क्रम मे ओ अनेक महान विभूति ओ संस्थाक संपर्क मे अओलाह। 1936 ई. मे ओ सिंहलद्वीप (लंका) गेलाह जतय बौद्ध धर्मक अध्ययनक क्रम मे 1937 ई. मे ब्राह्मïणत्व केँ त्यागि बौद्धधर्मक दीक्षा ग्रहण कऽ बौद्ध भिक्षु भऽ गेलाह आ बौद्ध परंपरा मे 'नागार्जुनÓ नाम धारण कएलन्हि।

दुब्बर-पातर शरीर.....कोटरा मे धंसल-धंसल आँखि.....खूखायल लकड़ी सन हाथ-पएर.....अत्यंत साधारण वेश-भूषा.....। बाबाक रहन-सहन एतेक सादगी भरल छल जे ई प्रतीत होयब कठिनाह जे ओ अंतर्राष्टï्रीय व्यक्तित्व छथि। जेहने भीतर, ओहने बाहर सेहो। हुनक व्यक्तित्वक सबसँ आकर्षक तत्व छल हुनक स्पष्टïवादिता। इएह कारण अछि जे हुनक व्यक्तित्व अलग-अलग कर्मक्षेत्र मे अलग-अलग ऐतिहासिक व्यक्तित्वक स्मरण करोबैत अछि। भगवान बुद्ध अपन युगक पीडि़त मानवताक हितक रक्षार्थ संघर्ष कएलन्हि। वैद्यनाथ मिश्र सेहो बौद्ध धर्मक अनुयायी बनि भगवान बुद्धक आदर्श वचन 'बहुजन हिताय बहुजन सुखायÓ केँ अपन रचनाक माध्यम सँ जन-जन धरि पहुँचेवाक बीड़ा उठौलन्हि। ओ जतय अपन मातृभाषा मैथिली मे विद्यापति एवं चंदा झाक क्रम केँ आगू बढ़ोवैत मैथिली कविताक आधुनिकीकरण कएलन्हि, ओतहि हिन्दी मे सेहो भारतेन्दु, प्रेमचन्द्र, ओ निरालाक परम्परा केँ आधुनिक काल मे आगू बढ़ेबाक सफल प्रयास कएलन्हि। पाब्लो, नेरुदा, लोरका आ मायकोवस्की मे हुनका अंतर्राष्टï्रीय भ्रातृत्व प्राप्त भेलन्हि।

एहि मे कनिको संदेह नहि जो बाबा यात्री पूर्ण साहित्यकार छलाह। ओ माक्र्सवादी होइतहु 'सर्वे भवंतु सुखिन:Ó केर प्रवल समर्थक छलाह। हुनक साहित्यिक व्यक्तित्व बहुमुखी छल। ओ साहित्यक तमाम विधा-कविता, कहानी, उपन्यास आदि केँ सम्पुष्टिïत ओ संबद्र्धित कएलन्हि। हुनक कविता मे एक दिश संस्कृत काव्यक आनंद प्राप्त होइत अछि, तऽ दोसर दिस आम जीवनक दयनीय स्थितिक दृश्य दृष्टिïगोचर होइत अछि। ओ आम जिनगीक जे चित्रण अपन रचना सभ मे कएलन्हि अछि, वास्तव मे हुनका द्वारा बीताओल यथार्थ छल। इएह एकटा सुच्चा साहित्यकारक परिभाषा सेहो थीक।

एकटा बानगी देखल जाऊ। एहि मे ओ मिथिलाक दयनीय स्थितिक चित्रण एहि रुपेँ कएने छथि—

''तानसेन कतेक रविवर्मा कते

घास छीलथि, बागमतिक कछेड़ मे

कालिदास कतेक विद्यापति कते

छथि हेड़ायल महिसबारक हेर मेÓÓ

देखल जाय तऽ बाबा अपन सभ रचना मे समाजवादी पात्रक सशक्त चित्रण कएलन्हि अछि। हुनका ई स्पष्टï ज्ञात छलन्हि जे अधिकांश पाठक अतिसामान्य जनहि होइत छथि। तेँ जावत धरि सामान्य जनक हित लेल चिन्तनशील नहि भेल जायत, ता धरि हुनका लेल साहित्यक रचना कोना कएल जा सकैत अछि? हुनक उपन्यासक आंचलिक परिवेश नहि केवल सटीक आओर सराहनीय अछि बल्कि नव पीढ़ीक कथाकार ओ उपन्यासकारक लेल प्रेरक एवं अनुकरणीय सेहो।

5 नवम्बर, 1998 ई। केँ बाबा पंचतत्व मे विलीन भऽ गेलाह। लेकिन बहुत कमहि पाठक केँ ज्ञात हेतन्हि जे अपन शब्दरुपी वाण सँ विद्रोहक बिगुल फूकनिहार एवं सामाजिक कुरीति केँ कलम क माध्यम सँ जूझनिहार बाबाक अंतक कारण 'कुपोषणÓ अर्थात उचित भोजनक अभाव रहल होयत। जी हाँ, ओ 'हाइपोप्रोटिनिमिया-एनोमियाÓ रोग सँ ग्रसित छलाह, जकर मूल कारण मात्र कुपोषण अछि।

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