शनिवार, जनवरी 9

श्रोतिय योग आ जयवारक वियाह पद्धति मे अंतर किएक?

वियाह एकटा, एहन संस्था छइ जे समाजक नैसर्गिक आवश्यकता अछि। मैथिल ब्राह्मïण अपना मे श्रोती, योग आ जयवारक नाम पर अलग-अलग पद्धति विकसित केने छथि। जाहि सँ मैथिल ब्राह्मïण अपन उपजाति के द्वन्द्व मे फंसल छथि। श्रोतिय ब्राह्मïण पच्चीस हजार जनसंख्या मे अधिकार माला लÓ घूमैत रहति छथि। हुनका पछवारि परक योग वर नहि चाहियइन। बहुत रास एहनो घटना भेटत जे श्रोती योग (भलमानुस) के झगड़ा मे एकटा सुंदर कनिया अपंग-अपाहिजक संग इच्छाक विरुद्ध लागी जाइये कारण जे कम जनसंख्या हेवाक कारणे तथा मिथिला मे प्रचलित पंजी व्यवस्था के परिणामस्वरूप अधिकार माला मे कनिया के मुताबिक सुयोग्य वर नहि छल आ कनिया के योग्यतानुसार पछवारि पार जाएल नहि जा सकैत अछि। कारण जे जाति टूटि जेतान्हि। आनो सोझे विवाह पद्धति के अंतर के लÓ बात करी तÓ मूल संरचना एकहि छैक खाली फराक बूझना जाइ छइ। ताहि मे सामाजिक कारण सेहो जिम्मेवार होइत रहल। जेना बरियाती वियाहक वेदो के सामने अहोरात बैसबाक प्रचलन। ई प्रचलन श्रोतिय ब्राह्मïण मे अखनो प्रचलित छैक। मूलत: बरियाती गवाह होइत छई। सामाजिक गवाह किएक त कोर्ट कचहरी के व्यवस्था नहि रहै। सरकारी पंजीकरण सेहो नहि। हाल मे फ्रांस के किछु दार्शनिक के धारणा बनलनि अछि जे वियाह संस्थाक निर्माण यौन अराजकताक कारणे पसरल बीमारी सँ भेल। संभवत: एहने किछु समझ के परिणाम सँ विवाह संस्कार के उत्पत्ति भेल। तैं गवाह के सेहो निर्माण कैल गेल की अमूक स्त्री अमूक पुरुष सँ जुड़ल छथि आ अमूक पुरुष अमूक स्त्री सँ। अत: दुनू गाम वर आ कनिया के दिस सँ बरियाती-सरियाती के अनौपचारिक गवाह होइत रहल ताकि सामाजिक अराजकता के बढ़ावा नहि भेटइ।
श्रोतिय ब्राह्मïण मे कम जनसंख्या हेबाक परिणाम रहल या परम्परा के प्रति जुड़ाव से नहि स्पष्टï अछि मुदा बरियाती अखनो वेदी पर बैसेत छथि। एम्हर पछवारि पार मे किछु ऐहन घटनाक्रम होइत रहलइ जाहि सँ बरियाती के वेदी पर बैसेवाक प्रथा खतम भ गेल। निसंदेह अहि तर्क सँ दुनू गोटे फराक भÓ गेला। छवारि पार मे सेहो किछु विधि मे अंतर देखबा मे अबैत अछि जाहि सँ योग (भलमानुस) आ जयवार के पद्धति मे भिन्नता भÓ गेल। बरियाती के अनउने खेनाइ पात पर नोन द कÓ खुवेबाक प्रथा श्रोती आ योग दुनू मे छन्हि आ एक सांझक भोजन के इंतजाम मुदा जयवार मे तीन सांझ बरियातीक भोजन नोनगर तीमन-तरकारी आ दोसर-तेसर सांझ माछ मउस सेहो केर प्रथा छनि। बरियातीक स्वागते सँ फर्क शुरू भÓ जाइ छइ। श्रोती आ जयवार दुनू मे हथघड़ी के प्रथा छनि मुदा जयवार लोकनि हथपकड़ा कहै छथिन्ह मुदा पढ़ल-लिखल जयवार परिवार मे हथघड़ी कहल जाइत छइ।
भलमानुस लोकनि बरियाती के रस्ता देखेबाक वास्ते गाम के सिमान पर कनिया पक्षक लोक के ठाढ़ केने रहइ छथिन्ह। तखराबाद श्रोती मे कुमरम के खोज छइ आ वरक केश कटेबाक प्रथा। एक बात आउर जे वर अपन हाथ मे दोपटा लपेटने मुँह झपने रहइ छथि। परिछन सँ ल कÓ चतुर्थी तक। ई प्रथा आब मात्र श्रोती मे छनि। दोसर इ जे श्रोती ब्राह्मïण मे कनिया वेदी या कोनो विध काल मे आँखि मुनने रहै छथिन्ह मुदा मुँह उधार रहै छन्हि। पछवारि पार मे विधकरी अपन आँचर सँ कनिया के मुँह झपने रहैत छथि। वियाह सँ चतुर्थी धरि कनिया आ वरके एक घंटा कोहबर मे सुतबाक विध छइ ताहि मे विधकरी संगे सुतल रहै छथिन्ह। शेषकाल वर विश्रामक घर मे रहै छथि आ कनिया कोहबर मे। ओना विधकरी के कनिया वरक बीच मे सूूतबाक प्रथा किछुए वर्ष पहिने भलमानुस आ जयवार मे खतम भेलनि। मुंहबज्जीक परम्परा श्रोतिये टा निर्वाह कÓ रहल छथि।
ओना कने-मने वेदी पर सेहो अंतर मे जेना श्रोतिय लोकनि अपन सब किछु जेवर के देबाक रहइ छनि से वेदिये पर राखि दइ छथिन्ह जे किछु छथिन्ह कारण वेदी तर सँ दुरागमन क रेवाज सेहो पसरि गेलइ अछि। लेकिन वेदी तर सँ दुरागमन नहि भेला पर घसकट्टïी तथा वेदी उखाड़बा काल मे रूसल जमाय के मनेबाक वास्ते एक एकटा चीज वेदी पर सँ अलग राखि देल जाइ छन्हि।
चतुर्थीक सौजन मे कोनो अंतर पैदा नहि भेल अछि। तखन श्रोती मे ज कोनो वर के विदाइ होइ छन्हि त कनियाँ हुनका संगे कनैत गामक सिमान तक जाइ छनि या घरक लग पासक पोखरिक घाट तक। फेर कनिया वापस। आब ओना अधिसंख्य श्रोतिय ब्राह्मïण परिवार मे वेदिये तर सँ दुरागमन हुउÓ लागल अछि।
किछु-किछु दुरागमन सँ भडफ़ोड़ीक दौरान विध मे सेहो अंतर भÓ गेल अछि। जेना भडफ़ोड़ोक भोज मे कनिया चीनी परसै छथि आ पछवारि पार मे एकहि हाथे माछ बनैनाइ, कटनाइ आदि।
सवाल छइ जे इ सब अंतर भेल परन्तु एकर किछु कारणो हेबाक चाही जाहि द्वारे ई अंतर विकसित भेल। एकर मूल मे ई कारण रहल जखन पंजी व्यवस्था के निर्माण भेलाइ आ श्रोती योग के वर्गीकरण भेलइ। त किछु-किछु विध के फराक करऽ अपना-अपना के फराक साबित करÓ लगला। दोसर जे अपन-अपन विशिष्टïता के कारण एक दोसर के ओत जान-आन सेहो बंद भÓ गेल परिणाम भेल जे किछु विध बदली गेल।

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