छल जेठ मास भिनसरक समय
नहि भेल छल सूर्यक उदय
हम आँखि मीडि़कें उठल रही,
अपन बाड़ी दिस-बढ़ल रही।
अंगनकाक अग्निकोण मे बाड़ी हमर
हम भिनसरे उठि गेलहुं ओम्हर।
हम ऊपर देखलहुं एक तरेगन,
स्थित अदि एकसरे मध्य-गगन।
ई अछिये ? सभ तरेगन भागि गेल,
तखन एकरा कथीक जिद्द लागि गेल।
की एकरा नहि छैक सूर्यक डर?
जे एखन धरि अछि ई आकाश पर।
ओ बड़ी काल धरि रहल,
सूर्य उगबा धरि रहल।
जखन सूर्य उगि गेलैक
एकरो इजोत मलीन भेलैक ।
जहिना एकसर तरेगन आकाश पर,
के कहि सकत टिकत कखन धरि।
तहिना एक-दू गोटाक प्रयास सं,
नहि भ सकत मिथिलाक कल्याण,
चाहे ओ त्यागी दौ किएक ने प्राण।
यदि कल्याण चाहैत छी मिथिलाक,
अछि आवश्यक सभक एकताक।
- हेमचंद्र झा
रविवार, जुलाई 5
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