हुनका विदा होइते हमर घर द्वार छिनायल,
छोटे सनक संसार छल भकरार छिनायल।
हँसिते कटै छल बाट दूरक घाट सहज छल,
हुनका बिना जीवन सफर आधार छिनायल।
फूलय हमर उद्यानमे जे फूल अछि निर्गन्ध,
रस-रूप रचना, सभ ओकर आकार छिनायल।
दिन राति बिडऱो बीच हम औनाई छी सरिपहुँ,
मधु स्वप्नकेर मधुवातकेर आगार छिनायल।
भास पर चालित हमर छल डेग तँ निस्सन,
से कण्ठ, स्वर लहरी, हृदयकेर तार छिनायल।
केहनो कठिन संघर्ष हो अड़ले रही मुदा,
हुनके अभावमे हमर रसधार छिनायल।
नोट : ई रचना धरोहरि के अंतर्गत प्रकाशित कएल जा रहल अछि, जकर रचनाकार छथि साहित्य अकादेमी द्वारा पुरस्कृत स्व. सुधांशु शेखर चौधरी।
गुरुवार, जुलाई 16
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