शनिवार, जुलाई 18

ज्ञान-त्रयोदश

धारण करै जगत के, जनके, तकरे धर्म कहल जाइ छै।
जनहित धर्म, अधर्म अहित जन, धर्म पाप बूझल जाइ छै।।

नें राजा-राज, नें जाति-पात, नें धनिक-गरीबक वर्ग विभेद।
तकरे आदिम साम्यवाद, सतयुग के स्वर्णिम नाम कहै छै।।

धनुर्यज्ञ मे धनुर्भंग जे केलैन, तिनके राम कहै छै।
लंकागढ़ पर चढि़ जे गर्जल, तिनके सब हनुमान कहै छै।।

कुरूक्षेत्र के रणस्थली मे ज्ञान-मंत्र देलक से गीता।
'फाटू धरती पर जाइÓ कहि रानी पद त्यागल से सीता।।

सीता वनवासक अपराधे वान्हल चारू भाइ राम के।
वीर शिरोमणि तै दुनू बालक के, लव-कुश नाम कहै छै।

जाति-पातिके , उँच नीच के माध्यम पथ समेटि जे चलला।
'धम्मं, बुद्घं, संघं शरणं गच्छामिÓ के बुद्घ कहै छै।।

नें राजा नें राज रहल, से कहने माता-पिता जहले मे।
गर्भ, जन्म जहले मे जिनकर, तिनके सब श्रीकृष्ण कहै छै।।

सूई भरे उँट निकलतै तैयो धनिक ने स्वग-द्वारि मे।
कहइत-कहइत सूली चढ़ला, तिनके ईश-मसीह कहै छै।।

एक्को पाइ सूदि जे लेतै, से नैं मुसलमान भ सक ते।
कहने मक्का भले छोड़लनि, रसूल मुहम्मद लोक कहै छै।।

धीपस बालु कर्बला मे, जे बीर बहत्तरि नैं झुकला।
तैं 'चालीस शहीदÓ सभक अगुआ के हुसैन इमाम कहै छै।।

मजहब,जाति, अछूत-छूत, पूजा-नमाज के कात हटा।
सब मानव के एक बुझय जे, तकरे संत कबीर कहै छै।।

जे कमैत से खैत, जे करत काज से करत राज।
'दुनिया कें मजदूर एक होÓ उदघोषक के माक्र्स कहै छै।।

अस्त्र-शस्त्र कें त्यागि पकड़लनि, सत्य, अहिंसा के हथियार।
स्वातंत्र्य समर कें सेनापति, गाँधी के अमर शहीद कहै छै।।


- भोगेन्द्र झा

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