आई काल्हि हमरा लोकनि जाहि समय सँ गुजरि रहल छी आ जाहि वातावरण मे अपन जीवन बिता रहल छी, तकरा पूर्णरूपेण आधुनिक ओ वैज्ञानिक कहल जा सकैत अछि। मुदा आधुनिकताक दौड़ मे एतेक आगू बढि गेलाक बादो आजुक तरक्की पसंद समाज मे स्त्री-पुरूषक आपसी मतभेद, मनमुटाव, वैचारिक असमानता, कलुषतापूर्ण व्यवहार आदि पहिने जकां अछि। वास्तविकता त ई थिक जे सैंय-बहुक प्रेम अर्थात दांपत्य जीवन मे सदिखन समरसता कायम नहि रहि पबैत अछि। चूंकि सैंय-बहु दुनूक दू तरहक मानसिकता होइत अछि, तैं कखनो काल आपस मे टकराव-तकरार स्वाभाविक थिक ।
चूंकि पत्नी पूर्णतया पति पर निर्भर रहैत छथि तैं प्राय: हरेक तरहक समझौता हुनकेटा करय पड़ैत छैन्हि। जेना संततिक संदर्भ मे देखल जाय, त स्पष्टï भ जायत। बच्चा के नौ मास धरि गर्भ मे रखबाक जिम्मेदारी पत्नीक। ओना ई प्राकृतिक आ दैवीय जिम्मेदारी थिक। पालन-पोषणक दौरान राति-राति भरि चिलका कें जागि कय सम्हारब पत्नीक कर्तव्य आ आओर जखन अगिला संतान नहि चाहि त सेहो दायित्व पत्नीये कें?
गर्भधारण करब वा प्रारंभिक पालन-पोषणक जिम्मेदारी नारी कें छैन्हि त ओ हुनक प्रकृति प्रदत्त शारीरिक संरचनाक कारणें। लेकिन गर्भधारण मे त पति-पत्नी दुनूक भागीदारी रहैत छन्हि। बिना एक-दोसरक परस्पर सहयोग वा इच्छाक बिना ई कथमपि सहज नहि, तखन संतति निग्रहक निर्णय मे दुनूक भागीदारी कियैक नहि? परिवार नियोजनक जिम्मेदारी नारीये पर कियैक थोपल जाइत अछि? एहि काज मे त पुरूष सहायक भ सकैत छथि। लेकिन ई होइत कहां छै? बहुत कम जगह ई देखल जा सकैत अछि जे पुरूष हलसि कय अप्पन एहि जिम्मेदारी के निभाबै छथि। दरअसल, गर्भनिरोधक अदौं सं महिलाक दायित्व बुझल जाइत अछि। पुरूष जतय एहि तथ्य कें गंभीरता सं नञि लैति छथि ओतय घरक बूढ़ दाय-माय, डॉक्टर, हित अपेक्षित सभ गोटे महिला सँ एहि काज मे पहल करबा क अपेक्षा रखैत छथि। नतीजा होइत अछि जे नारी एकरा परंपरा मानि वहन करबाक लेल प्रस्तुत होइत छथि। जँ देखल जाय त वैज्ञानिक अनुसंधान सेहो काफी हद धरि महिलाक लेल गर्भनिरोधक विकल्प बढ़ेबाक दिस अग्रसर भ रहल अछि। नसबंदी जकां पुरातन तरीका सं लय क गर्भाशय मे राखय वाला गर्भनिरोधक आ प्रात भेने खाय वाला गर्भनिरोधक गोली, सभ उपायक स्मरण कराबैत अछि जे गर्भवती होबा सं बचबाक जिम्मेदारी नारीये केँ छैन्हि।
कियैक पुरूषक जिम्मेदारी कोनहुं टा नहि? सरिपहुं जँ वास्तविकता कें ताकल जाय त पुरूष लग एहि गर्भनिरोधक बेसी विकल्पने नहि छन्हि। पहिल कांडोम आ दोसर नसबंदी। कांडोम एकटा सस्ता आ सरल साधन अछि, किंतु बेसी पुरूष एकर इस्तेमाल केनाय पसंद नहि करय छथि। जखन कि नसबंदीक संबंध मे सेहो कम दुविधा आ भ्रांति नहि पोसने छथि। जेना कि नसबंदी करोला सं पुरूषत्व मे ह्रास होइत अछि, शारीरिक दुर्बलता कें सामना करय पड़ैत छैक। मुदा डॉक्टरक मुताबिक ई सब कथू नहि होइत छैक। दोसर दिस नजरि देल जाय त महिलाक लेल लूप, डायफ्रेम या गर्भनिरोधक गोली कें लंबा समय धरि सेवन कएला सं हुनका कएह तरहक परेशानी कें सामना करय पड़ैत छन्हि।
मुदा आबय वाला समय मे ओ दिन दूर नहि, जखन पुरूष सेहो परिवार नियोजन मे अपन सहयोग दय सकताह। एहि जिम्मेदारीक विकल्पक रूप मे एकटा गर्भनिरोधक गोलीक आविष्कार कएल गेल। अनुसंधान एखनो जारी छै, भारत जल्दीये एहि काज मे सफलता पाबि लेत। ई हार्मोन आधारित तरीका होतए। एक ओट आओर तरीका अछि आर।आई.एस.यू.जी. (रिवर्सिबल इनहिबिशन ऑफ स्पर्म अंडर गाईडेंस) जकर प्रक्रिया आसान छै। ई दवाई इजेंक्शनक माध्यम सँ शरीर मे प्रविष्टï कराओल जायत, जाहि सं वीर्य मे मौजूद शुक्राणु निष्क्रिय भ जायत। ई दवाई नहि त वीर्यक बहाव के रोकत आ नहि एकर प्रभाव कोनो रूपे कामशक्ति पर पड़त। एहि समूचा प्रक्रिया मे कुल मिलाक दस मिनटक समय लागत। कोनहुं प्रशिक्षित चिकित्सक सं एहि काज के अंजाम धरि पहुंचा सकैत छी। ई दवाई एक घंटाक बाद अपन असरि देखेनाय शुरू कय दैत छै। अलग-अलग मामिला मे एकर असर 6 सं 15 साल धरि रहि सकैत अछि। संगहि संग एहि मे इहो खूबी छैक जे साल्वेंटक माध्यम सँ एहि दवाई के बाहर निकालि एकर प्रभाव के खत्म कएल जा सकैत अछि।
संतति निग्रह माने गर्भनिरोधकक पति-पत्नी दुनूक जिम्मेदाराी छन्हि। दुनू मे जिनका सहज बुझना जाइन्ह, संगहि जिनका गर्भनिरोधक के कोनो कुप्रभाव नहि पउ़ैत होइन्हि, एहि जिम्मेदारीक निर्वहन करबाक चाही। ई मानसिकता कि गर्भनिरोधन मात्र नारीयेक जिम्मेदारी छन्हि, आजुक मानसिकता आ वैज्ञानिक युग मे संकुचित दृष्टिकोणक परिचायक थिक।
- सुभाष चंद्र
सोमवार, जुलाई 6
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