सोमवार, जुलाई 27

गोनू झा आ कंजूस राजकुमार

एकटा बड़ कंजूस राजकुमार छलथि कोनो अवसर पर ओ ककरो एको पाई नहि दैत छलाह। संयोगवश राजाक मृत्यु भऽ गेलन्हि आ ओ राजकुमार राजा बनि गेलाह। एहि अवसर पर दूर-दूर सँ गुणी-गवैया आयल, भाँट सब पहुँचल, लेकिन राजकुमार ककरो किछु देमए नहि चाहैत छलाह। जे राजाक मृत्यु पर शोक व्यक्त करैत छलाह हुनका सबके ई कहि टारि दैत छलाह, जे 'वाह हमरा राजगद्दी भेटल अछि आ ई शोक व्यक्त करैत छथि हिनका एखने भगाऊ एहिठाम सँ।Ó
जे सब राजकुमारक राजा भेला पर खुशी व्यक्त करैत खुशीक गीत गबैत छल, ओकरा सब के राजकुमार कहैत छलथिन्ह, 'देखू तऽ, हमर पिता परलोकी भऽ गेलाह अछि आ ई खुशी मनबैत छथि। हिनका एखने भगाऊ एहि ठाम सऽ।Ó एहि तरहेँ लोक ने कानि सकैत छलाह आ ने हँसि सकैत छलाह। सबकेँ खाली हाथ वापस होमय पड़न्हि।
हारि-थाकि आ नव राजा सँ निराश भऽ सब गोनू झा लऽग पहुँचलाह आ हुनका सबटा वृतान्त सुनबैत कहलथिन्ह जे हमरा लोकनिक नव राजा बहुत कंजूस छथि। हमरा सबकेँ अदौ काल सँ राजाक ओहिठाम सँ बक्सीस भेटैत अबैत रहल अछि। राजा बनबाक खुशी मे लाखो रुपैया लुटाओल जाइल छल। लेकिन ई राजा तऽ हमरा लोकनि केँ एकको पाई नहि देलाह। आब अहीं हमरा लोकनि केँ मदति करु।Ó सब बात सुनि गोनू झा किछु सोचि कहलथिन्ह, 'अच्छा अहाँ सब हमरा संग चलू मुदा अहाँ सब किछु बाजब नहि खाली हम जे करब सैह अहूँ सब करब।Ó सभक हामी भरलाक बाद गोनू झा बीस-पच्चीस आदमीक संग दरबार पहुँचलाह। राजा सिंहासन पर बैसल छलाह। दरबार लागल छलैक। गोनू झा राजाकेँ प्रणाम कऽ मुँह बौने ठाढ़ भऽ गेलाह, किछु बजलाह नहि। हुनक संगी सब सेहो हुनक अनुकरण करथिन्ह। सबकेँ एना मुँह बौने देखि राजा असमंजस मे पडि़ गेलाह। राजा गोनू झा के बजा पूछलथिन्ह, 'गोनू झा अहाँ सब ऐना किएक ठाढ़ छी। की चाहैत छी? गोनू झा बिना किछु बजने इशारा सँ कहलथिन्ह जे हमरा लोकनि दान हेतु आयल छी। आब राजा पुन: पुरने राग पकड़लाह, 'की अपने लोकनि खुशी मनबैत छी। गोनू झा किछु नहि बाजि मुँह बौने ठाढ़ रहलाह। राजा पुन: पूछलथिन्ह, की अहाँ सब शोक मनबऽ अएलौं अछि। पुन: सब यथावत्ï ठाढ़े रहलाह, बिना किछु बजने। राजा के एकर कोनो माने नहि लगलन्हि तऽ ओ दरबारी सब सँ एकर मानेँ पूछलथिन्ह। मुदा गोनू झाक खेला के बूझि सकैत छल? अकच्छ भऽ राजा पूछलथिन्ह, अहाँ सब बजैत किएक नहि छी? खुशी मनबय आयल छी वा शोक? गोनू झा मुँह बौने कहलथिन्ह, जे अपने जे बुझयैक।Ó राजा के किछु नहि सूझनि, ओ सब किछो नहि बजैत छलाह, मात्र मुँह बौने चुपचाप ठाढ़ छलाह। आब राजा के सब मामिला बुझना मे आबि गेलन्हि आ पूर्वक बर्ताव पर ओ स्वयं लजा गेलाह। अपन गलती स्वीकार कऽ ओ सबकेँ दान दऽ बिना कएलथिन्ह। दान पाबि सब खुश भऽ गेलाह आ गोनू झा केँ आभार व्यक्त करैत अपन-अपन घर गेलाह।




अपने लोकनि किवदन्ति बनि चुकल गोनू झाक कतेको कथा सँ परिचित छी। गामे-गाम हुनक कथा आइयो धरि अति लोकप्रिय अछि। मुदा दुर्भाग्यक बात अछि जे आजुक शहरी नेना-भुटका श्री गोनू झाक नाम सँ अपरिचित अछि। एहि लेल आजुक 'आधुनिकÓ अभिभावक सेहो कम दोषी नहि छथि। कॉमिक्स के रंग-बिरंगी हिन्दी आ अंगरेजिया पत्र-पत्रिका सहित टेलीविजन सेहो अपन प्रचार-प्रसार सँ एकरा बहुत हद तक प्रभावित कएलक। अकबर-बीरबल आ तेनालीरामक कथा केँ तऽ प्रायोजित आ नियोजित रूप सँ परोसल गेल, मुदा गोनू झाक उपेक्षा सर्वत्र भेल। दुर्भाग्यजनक रहल जे मैथिलवासी सेहो एहि दिशा मे उदासीन बनल रहला। एहि जड़ता के तोड़ैत आजुक नेना-भुटका के श्री गोनू झाक कथा सँ परिचित करएबाक बीड़ा उठौलक अछि—'मैथिली टाइम्सÓ। एहि कड़ी मे प्रस्तुत अछि गोनू झा केर एक आओर कथा। —संपादक

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