अखबार पढि़ मोन ऊबिया गेल छल। खाली अपराधेक खबरि सँ भरल रहैत अछि आबक अखबार। राजधानी पटना हो वा जिला मुख्यालय वा पंचायत अथवा गाम-घरक समाचार विकासक नाम पर अपराधेटा के ग्राफ लगातार बढि़ रहल अछि। हत्या, अपहरण, लूट, बलात्कार वा, अन्य छोटा-पैघ घटना-दुर्घटना, समाचारक नाम पर एत्तबे पढ़बा मे अबैत अछि। मिथिलांचलक आवो-हवा सेहो कत्तेक बदलि गेल अछि? शान्तप्रिय मिथिलांचल कत्तेक असुरक्षित आ अशांत भऽ गेल अछि! घर सँ एक बेर निकललाक बाद फेरो सुरक्षित आ साबूत घुरि आयब, ताहु पर शंका रहय लागल अछि। ओना आब लोक घरो मे कत्तेक सुरक्षित रहि गेल अछि? ओना सच पुछु तऽ आब अखबार मथदुखीक बड़का कारण बनि रहल अछि। जौं मटरु कामति एखन रहितथि तँ हुनके गप्प सऽ एहि मथदुखी सँ पार पबितौं, सोचिते रही कि, ......'आऊ-आऊ बड्ड लम्बा ओरदा अछि अहाँके,Ó हर्षित मोने स्वागत कएलन्हि मटरु कामति के।
'कहू मटरु कामतिजी, की हाल-चाल ? आई भोरे-भोरे किम्हर सँÓ......'ग्यारह बाजि गेलै सरकार, भोर नहि छैक।Ó परिचित अंदाज मे कटाक्ष कएलाह मटरु कामति। समय दिस धियान जाइत स्वयमï् लजा गेलहुँ। अखबारी खबरि केँ सहारा लैत समाज मे बढ़ैत अपराध के विषय बनेलहुँ मुदा ओ निरपेक्ष भावे बजलाह, 'एहि मे चिन्ता बला तऽ कोनो बात नहि छैक, अपितु हमरा सभके तऽ प्रसन्न होयबाक चाही जे आब मिथिलो मे बीर रस के प्रधानता भेल जा रहल अछि। मिथिला के पहचान पौराणिक काल सँ आइधरि दोसरे कारण सँ रहल अछि, किन्तु आब ई क्षेत्र वीर भूमिक रूप मे सेहो तेजी सऽ अपन पहचान आ ख्याति अर्जित कऽ रहल अछि। अहाँ अनेरे फिरेशान भऽ रहल छी सरकार, ई तऽ परम हर्खक विषय अछि।Ó 'मुदा अपराध केर बीरता सँ कोन सम्बन्ध? हत्या, लूट, अपहरण, बलात्कार-की यैह थिक बीरताक परिभाषाï?Ó हम तर्क रखलयैन्हि। मटरु कामति तपाक सऽ बजलाह, 'मोसहरीक फट्टïा लऽ रणक्षेत्र जयबा सँ तऽ नीके स्थिति अछि ने। आब तऽ नेनो-भुटका असलाह आ बम-बारुद सँ लैस रहैत अछि। आ ई बीरता-धीरताक परिभाषाक गप्पे छोड़ू। ई परिभाषा शब्द बहुत सोभितगर आवरण मे रहैत अछि हरदम, खासकऽ सामाजिक राजनीतिक परिपेक्ष्य मे। 'शहीदÓ आ 'हलाकÓ दुनुक अर्थ, सन्दर्भ, प्रयोजन कमोवेश एक्के अछि, पर्याये तऽ थिक मुदा परिभाषा शब्द एक केँ महिमामंडित करैत अछि तऽ दोसर केँ? वस्तुत: दुनु हत्या तऽ थिक। कोनो व्यक्ति के जान जायत अछि आ समाजशास्त्री 'परिभाषाÓ सेँ जेना मृत्यु के फराक करबाक प्रयास करैत छथि। हिटलर आ स्तालीन समान रूप सेँ हजारों निर्दोषक हत्यारा छल परंच ''परिभाषा मे तऽ हिटलर खलनायक घोषित कएल गेल मुदा स्तालीन? यदि राम-रावण युद्ध मे रावणक विजय भेल रहितै वा कौरव-पाडंवक महाभारत मे पांडव पराजित होयतथि तऽ कि 'अधर्म पर धर्मक विजयÓ एहि रुपि मे परिभाषित होयतै जाहि अर्थ आ सन्दर्भ मे एखन मान्य आ प्रचलित अछि?ÓÓ
एखन हम तर्क-वितर्कक पक्ष मे नहि रही तैं समर्पण करैव कहलयन्हि, ''अहाँ बात कतअ लऽ गेलहुँ हम तऽ मिथिला मे बढ़ैत अपराध पर गप्प करैत छी। जौं यैह स्थिति रहत तऽ समाज कतअ जायत? नब पीढ़ी जेना अपराधक प्रभामंडल सँ आकर्षित भऽ रहल अछि ओ क्षेत्र-संस्कृति सब लेल खतरनाक अछि। भविष्य तऽ अन्धकारमय देखा रहल अछि।ÓÓ ''अहाँ तऽ बेकारे नकारात्मक सोच रखैत छी हमरा तऽ स्थिति विकासक लेल बहुत उपयुक्त बुझना जा रहल अछि। आ भविष्य तऽ बहुत उज्ज्वल देखबा मे आबि रहला अछि। अहाँ अपन चश्मा बदलु सरकार।ÓÓ ''मुदा.....ÓÓ ''कोनो मुदा-जुहा नहि, छुच्छें बजैत कण्ठ सुखा गेल अछि। की चीनी वा चाहक पती सधल अछि, दोकान सँ मंग बऽ पड़त?ÓÓ मटरु कामति चायक माँग अपन चिर-परिचित हास्य-व्यंगक अंदाज मे कएला।
चाहक लेल अँगना मे कहि विस्मय सँ पूछलयन्हि, ''ऑय यौ मटरु कामति, अहाँ तऽ हमेशा राजनीतिक सामाजिक बुराई के विरोध मे बिगुल फुकैत रहैत छी, मुदा मिथिला मे बढ़ैत अपराध पर अहाँ, चुप्पे रहलहुँ अछि, ऐना किएक?ÓÓ ''विरोधक तऽ बुराईक होयबाक चाही ने, अपराध मे कोन बुराई छ? अपराध, युद्ध, विध्वंश ई सभ त विकासक सोपान अछि, सूचक अछि विकासक। की विकासोक विरोध होयबाक चाही? जड़ समाज चाहैत छी की अपने लोकनि? अपराध विकसीत आ विकासशील समाजक उध्र्वोगामी सूचकांक अछि। दुनियाक सबसँ विकसीत देश मे सर्वाधिक अपराध होइत अछि। राष्टï्रीय राजधानी दिल्ली आ देशक व्यवसायिक राजधानी मुम्बई हो वा पूर्व राजधानी कोलकाता कत्तअ नहि होयत छैक अपराध? तैं कि ओ शहर विकसीत नहि अछि? एकर तुलना मे की छैक अपराधक संख्या मिथिला मे? घुमि कऽ देखि लिऔ कोन जगह बेसी विकसीत छै? झूठे अहाँ अपराध-अपराध करैत छी महाराजÓÓ बमकि के बजलाह मटरु कामति।
तावत चाय आबि गेल। चुस्की लैत हम कहलयन्हि, 'शान्तिप्रिय मिथिला सभ दिन सँ अपन विद्वता, अध्यात्म आ कर्मकांड लेल प्रसिद्ध रहल। याज्ञवाल्वय, जनक.....Ó बीचे मे ओ बजलाह 'अहाँ तऽ प्रागैतिहासिक कालक गप्पे नहि करु।Ó ''अच्छा, तऽ मंडन मिश्र, अयाची मिश्र, विद्यापतिÓÓ....''तऽ की कऽ लिये ई सभ आ बदला मे समाज की दिया ओहि भलमानुष सभ केँ? ककरो घर-घराड़ी डीहो का पता है किसीको? झूठे सबका नाम लेते फिरते हैं मुदा ककरो घर-घराइन, डीह-डाबर, हुनका सभक वंशबला लोको का पता है आ जौं पता है तऽ उसकोÓ सिर्फ पुरुखा के नामÓ पर समाज कितना आदर दे रहा है? भारत मे मुगलवंशका शासने था, कहाँ है उसका उत्तराधिकारी सभ? महाराणा प्रताप के बंश मे कौन बचा है, कहाँ है, की करता है किसको फुरसत है मथदुक्खी का? अरे, मिथिला मे तऽ सभ गप्पीए सब भरा है लेकिन गोनू झा का गाम-ठाम और हुनकर खरूहान के बारे मे अहीं कनि जानकारी दिअ ने? आदर्श आ उपदेश छाँटना बहुत आसान होता है सरकार, हम सभ आदर्श आ अतीत मे जीते हैं, ई जड़ समाज का सबसे बड़ा लक्षण है।Ó एक्के साँस मे बाजि गेलाह मटरु कामति। हम गौर कैल जे चाय पीलाक बाद आ हरदम जोश मे आबि जायत छथि। तथापि अपन तर्क रखैत कहलयन्हि, 'ओ सभ अपन कृत्तित्व सँ अमरत्व के प्राप्त कऽ लेलाह। धरोहरि बनि गेल छथि समाजक। क्षेत्रीय आ सांस्कृतिक पहचान आ गौरव बनि गेल छथि। मिथिला मां सरस्वती आ शक्तिक भूमि थिक। एहिठाम हजारो विभूति भेलाह अछि आ एखनो छथि ऐहन महान भूमि पर, माय मैथिलीक गृह-प्रदेश मे अपराध लेल कोन जगह? एहि सँ तऽ क्षेत्रक समस्त ऐतिहासिक, धार्मिक, सांस्कृतिक आ सामाजिक ढाँचा गड़बड़ा रहल अछि। पहचान आ अस्तित्वक संकट उत्पन्न भऽ गेल अछि।Ó तमाखू के चून लगाबैत आ कनि मुस्कियाइत मटरु कामति बजलाह, 'अहाँ भाषण नीक दऽ सकैत छी सरकार, मगर सिर्फ भाषण सँ राशनक जुगाड़ आजुक युग मे सहज नहि रहि गेल अछि। एहि लेल कर्म करए पड़ैत छैक। आ गीता मे कर्म पर भगवान श्री कृष्णक उदï्गार तऽ बिसरल नहिए होयबै। गीताक सार छैक जे समय परिवर्तनशील छैक। युग परिवर्तनक संग-संग समय- परिस्थिति, सामाजिक, सांस्कृतिक राजनीतिक प्रतिमान सेहो बदलैत अछि। हमहुँ सभ नव परिवर्तन, नवयुगक नव प्रतिमानेक अनुसार जीबाक अभ्यस्त भऽ जाय तऽ कोनो संकट नहि अछि। समस्त प्रतिमान समय-सापेक्ष होइत अछि। सीता मैया तऽ आदर्श पत्नि थी, सुख-दुख मे पतिक संग रहलीह, अग्नि परीक्षा सेहो दी मुदा पति ने फिर भी बनवास दे दिया। जौं हुनकर भाय वा नैहर मे कोनो 'हीरोÓ रहता तऽ सीधे पहुँच जाता राम के पास, कनपट्टïी पर रखितै पिस्टल आ गर्दनि पर छुरा तखन राम केँ बुझि पडि़तन्हि। मुदा हुनका तऽ ऐहन डरे नहि छलन्हि। आई कियो सोचै ने ऐहन गप्प? शक्ति स्थली मे शक्ति-पूजन, ओकर अभ्युदय केँ कोना खराब कहैत छिएैक अहोँ? घर मे एगो 'हीरोÓ बनाइए फिर देखियौ समाज मे कोना आपका मान बढि़ जाता है। समाज मे तूती बाजेगा, लोक डराएगा, धन-संपत्ति, खेत-पथार सभ सुरक्षित भऽ जाएगा। बेटा दू-चारि खून कर देगा तऽ ओकर एम पी एमएलए बनना तो तये है, तहन सोचिये कतेक रुतबा बढ़ेगा। मात्र सरस्वती का आराधना करने से ही बेरोजगारी बढि़ गिया है, मुँह आ हाथका फासला बढि़ गिया है। शक्ति उपासना से बेरोजगारी का संकटो तऽ दूर होता है, एहि दिशा मे ठंढ़ा मोन सँ निरपेक्ष भावे सोचिएगा कभी।Ó कहि खैनी ठोर तऽर राखि लेलाह मटरु कामति।
हम प्रतिवाद करैत कहलयन्हि, 'जौं ओ दु-चारि खून करत तऽ अपने कतेक सुरक्षित रहि जायत? पुलिस आ विरोधी खेमाक गोली सँ कतेक दिन बचल रहत? आओर जौं यैह संस्कृति समाज मे स्वीकार्य भऽ जायत तऽ समाजक की होयतैक, घर-घर विधवा बचतीह तहन कि समाजक अस्तित्व रहि सकत?Ó 'ओनाहु कतेक सुरक्षित अछि आई लोक हत्या आ अपहरणक सर्वाधिक शिकार वैह होइत अछि जे अपराध वा बन्दूक संस्कृति सँ दूर शान्तिपूर्ण जीवन जीबअ चाहैत अछि। कोनो अपराधीक, चोर-डाकू केँ घर मे चोरी-डकैतीक घटना सुनलियैक अछि? पाकेटमारक जेबी सबसँ बेसी सुरक्षित रहैत छैक। पुलिस आ प्रशासनो ओकरे सभक संग दैत छैक। ओकर वर्चस्व आ दबदबा चारुकात पसरल रहैत छैक।Ó खैनीक पीक फेकैत फेरो जोशा गेला मटरु कामति, 'देखते नहि हैं, अपराधी सभ बड़का भीआईपी बनि जाता है और पुलिस बला ओकरा सलामी ठोकते नहीं थकता है। ओकरा सभके स्वागत आ सुरक्षा मे पूरा महकमा बेहाल रहता है। ट्रांस्फर, पोस्टिंग आ प्रोमोशन लेल एहने लोक लाग लाइन लगता है। आइएएस, आइपीएस सब फेल है उसके आगे। चल-अचल सम्पत्ति का तो कमिए नहि रहता है। देश का कानून बनाता और बदलता रहता है। बिना पढ़े-लिखे सबटा महत्वपूर्ण निर्णय का भागीदार होता है। आब तऽ पढ़ल-लिखल फर्राटेदार अंग्रेजी बाजनेवाला सभ भी इस लाइन मे स्कोप आ कैरियर देखने लगा है। और एकटा बात कहिए सरकार,Ó 'नेता, व्यापारी, अधिकारी, शिक्षाविदï्, कलाकार, कलमकार, ठीकेदार के अपराधी नहि है? सभ अपन स्वार्थ आ लोलुपत्ता मे अंधा है। ककर पेट भरा है? चंचल लक्ष्मी को कैद करने के पीछा कियो ककरो लेल, देश-समाज लेल सोचता है? सब अमीर, बहुत अमीर सबसँ बेशी अमीर बनना चाहता है। अपने उदर-पूर्ति लेल लोक दोसर का गर्दनि काटने तैयार रहता है। फेर सरस्वतीयो का अराधना तो लक्ष्मीए प्राप्ति, उदर-पूर्तिए के लिए न किया जाता रहा है तो एहि शौर्ट-कौट लेल 'बाहु-पूजाÓ वा शक्ति प्रदर्शन मे की हर्जा है? छूच्छे सरस्वती पूजा से रोजगारक गारण्टी तऽ रहि नहि रहि गिया है लेकिन हथियार-पूजन से ककरो भूखे मरैत देखे हैं, बल्कि बेरोजगारी तऽ ओकरा लेल कवच कऽ काम करता है आ समाजशास्त्री लेल चिंतन, तर्क-वितर्क का। 'छ इंच छोटा करने वाला संस्थाÓ को तऽ सबटा पढ़ले-लिखले लोक का नेतृत्व है और ओ सभ इसको तार्किक बना देता है। पढ़-लिखकर, अफसर-बुद्विजीवी बनकर आदमी भलभनुष बन जाता है या कहिए कि उसका स्वांग करता है। परिणाम बिजली, पानी, सड़क से लेकर, शिक्षा जगत, छात्र का भविष्य सब कुछ चिन्तनीय हो गया है। अगर शक्ति का सहारा लिया जाय, सीधे बन्दूक-छुरा की भाषा मे बात किजीए जो सब ठीक भऽ सकता है। गाम के स्कूल-हास्पीटल मे मास्टर-डाक्टर दिखने लगेगा, बिजली कटौती वाला जब 'गर्दनि कटौतिÓ की स्थिति देखेगा तो विद्युत व्यवस्थो दुरुस्त हो जाएगा यानि मिथिला विकास की पटरी पर दौडऩे लगेगा। बुझे कि नहि बुझे सरकार! आश्चर्य है राजनीति का ठेकेदार इस आवश्यकता को बहुत पहले बुझि गिया था ऐहने 'कर्ण-अर्जुनÓ सभका सहारा लेता है चुनाव जीतने को पता नहि मूढ़ समाज कियों संशय मे है, इसको स्वीकारने मे हिचकिचाता है। आवश्यकता है जागरण का घर-घर मे जागृति का, आप लोक एहि जन-जागरण अभियान का हिस्सा बनिए और समाज आ क्षेत्र के विकास मे भागीदार बनिए। 'लगभग अंतिम निर्णय देलाह मटरू कामति। हम खिन्न मने कहलयन्हि,Ó 'अहाँक विचार सुनि बडï्ड दुख भेल जखन अहीं एहन लोक ऐहन विचार राखत....Ó 'तऽ की आप चाहते हैं कि हम जीवित नहीं रहें। अपराध के खिलाफ बोलकर कौन जान जोखिम मे लेता है? पुलिस आ प्रशासनों ओकरे पनाह देता है। हम बाल-बच्चावाला घुमन्तु जीव हूँ, बेटी का बियाहो करना है।
आज के युग का सीधा सिद्धान्त है अगर जीना है तो आँख-मुँह आ कान बन्द करके चुपचाप ल्हास जेकाँ जीविए, बेसी टाँय-टाँय करिएगा तो पता नहि कत्तअ पड़ल रहियेगा। पूरा समाजे नपुँसक बनि गिया है आ हमहुँ तऽ समाजे मे रहता हूँ।Ó ई कहि अचानक ठाढ़ भऽ गेलाह मटरू कामति, 'एखन चलै छी, फेर भेंट होयत।Ó पुन: अपन यायावरी डग उठबैत बिदा भेला मटरू कामति आ हमरा सामने अपराधक आँगा बेवश समाज, राजनीति, प्रशासन आ चुप्प रहवा लेल अभिशप्त आम आदमीक विवशताक सम्पूर्ण सच्चाई आ समाजक सर्मपणक दृश्य छोडि़ गेलाह। आखिर के बुझि सकत मटरू कामतिक विवशता केँ आ के सोचत एहि दिशा मे, सेहो कहिया धरि?
1 टिप्पणी:
जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई.
( Treasurer-S. T. )
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