अहाँ मैथिल? अछि क्षेत्र, भाषा, संस्कृति आ विरासत केर ह्रïासक चिंता? तहन किऐक धएने छी हाथ पर हाथ? चलु करी मिथिलाक उद्धार। बहुत आसान छैक सरकार, अहाँ होऊ तँ तैयार। जाति, उम्र, शिक्षा नहि ककरो दरकार। अहीं याचक, अहीं मुखतार। दोसरक पूंजी, अहांक पगार। आमद केर स्रोत हजार। सामाजिक प्रतिष्ठïा बोनस भजार। चंदाक हथकंडा पर चलत व्यापार।
बुझि तँ गेल होइबै अपनेहियों, हम की कहए चाहैत छी। भरि देश मे बहुत-बहुत रास काज लेल शतकोटि संख्या मे लोग अपन प्रत्यक्ष भागीदारी कÓ रहल छथि, बिना सरकारी मुलाजिम बनने। मिथिला मे तें ई प्रथा खास प्रचलित भÓ गेल अछि। सच पुछु तँ एहि मामला मे अंतर्राष्टï्रीय स्तर पर मिथिलाक खिलाफ बड़का साजिश भेल अछि। हम शपथपूर्वक कहबाक लेल तैयार छी जे दुनियाके कोनो देश मे कोनो एक क्षेत्रक नाम पर एतेक संस्था नहि छैक जतेक मिथिला मे अछि। क्षेत्र, भाषा, संस्कृति, कला, साहित्य कें के पूछए सामाजिक आ राजनीतिक स्तर पर जतेक संस्था, भरि देश मे हम आवासी वा प्रवासी मिथिलावासी कागत पर बना रखने छी, ओतेक संस्था तँ कतहु नहि अछि। संचार क्षेत्र मे एतेक विकासक बादो मिथिलाक एहि उपलब्धि पर विश्व समुदाय हमरा लोकनि के पुरस्कृत वा सम्मानित करबाक मामला पर गांधीजीक बानर जेंका मुंह, कान आ आंखि बंद कएने अछि। एतेÓ तक जे एहि क्षेत्र मे हमरा लोकनिक नाम 'गिनिज बुक आफ वल्र्ड रेकार्डÓ तक मे शामिल नहि कएने अछि। की ई भारत खासकऽ मिथिलाक विरुद्ध अंतर्राष्टï्रीय षड्ïयंत्र नहि अछि? भूमंडलीकरणक दौर मे विकासक लेल कटिबद्ध एतेक संस्था बला क्षेत्रक उपेक्षा कोना जायज मानल जा सकैत अछि? तैँ हे मिथिलाक कर्णधार लोकनि, आऊ हम सब मिलि गोटेक हजार संस्था एहि नाम पर बना क्षेत्रक उद्धार आ अंतर्राष्टï्रीय साजिशक पर्दाफाश करैत नव जागृतिक बिगुल बजाबी आ संस्था जगतक इतिहास मे अपन क्षेत्रक नाम रोशन करी। ओना परोक्षक बात छैक, हम (व्यक्तिगत स्तर पर) अंतर्राष्टï्रीय मंचक भलमानसहतक एहि अर्थ मे ऋणी सेहो छी जे विश्व जगत कान, आंखि आ मुंह संग अपन नाक (गांधीजी केर बानरक विकसित मॉडल) सेहो बंद कएने अछि, नहि तऽओ अपनो सबहक संस्थाक विषैण गंध सेहो सूँघि सकैत छल जाहि सँ अपन आपसी दुर-छियाक संस्कार आ संस्कृति भारी अप्रकृतिक कारण बनि सकैत छल।
एहि सँ हतोत्साहित वा निराश होयबाक आवश्यकता नहि अछि। आखिर एतेक छोट अपकृतिक संभावना सँ डरेबाक लेल तँ हमरा लोकनि 'शत्रुघ्न सिन्हा फैन्स क्लबÓ सँ लऽ 'मैथिल अल्पसंख्यकÓ धरि महान आ समर्पित उद्देश्यवला संगठन तँ नहि बनौने छी ने यौ? 'अखिल भारतीयÓ आ 'अंतर्राष्टï्रीयÓ स्तर पर संगठन/संस्था हम की ओहिना बना लेने छी। देशक प्रत्येक कोन मे जतए दसो गोट मैथिल पहुंचि गेल होथि ओहि ठाम मिथिला आ मैथिलीक उद्धारक उद्देश्य सँ एगो संस्थाक आविर्भाव भऽ जाइत अछि। ई दीगर बात अछि जे एहि सबहक बावजूद मैथिली नहि तऽ अष्टïम सूची मे स्थान पाबि सकलीह आ नहिए मैथिलीक मूल लिपि 'मिथिलाक्षरÓ प्रचलन मे आबि सकल अछि। मिथिलाक संस्कृति अलोपित होमए लागल अछि। पंजाबक लस्सी आ 'मकई दी रोटी, सरसों दा सागÓ आ बंगालक 'माछा भातÓ आ दक्षिण भारतीय व्यंजन भरि देश मे भाषा सँ इतर सेहो अपन अलग पहचान बना लेने अछि आ लोकप्रिय भऽ रहल अछि। की बंगाली लोकनि हमरा सभ सँ बेसी माछ-भात खाइत छथि? मुदा ई हुनक पहचान सँ जुडि़ गेल छन्हि। हमर तिलकोर, दही-चूड़ा, मखान आ कि आनो कोनो व्यंजन क्षेत्रीय पहचानक अंग बनि सकल अछि? जहां तक भाषायी प्रतिबद्धताक प्रश्न अछि मिथिला-मैथिली सँ जुड़ल संस्था/संगठनक पदाधिकारियो लोकनि कतेक मैथिली बजैत छथि से सर्वविदित अछि। तेँ गाम-गाम चौक-चौराहा आ घर तक मे मैथिली उपेक्षित होमय लगली हँ। प्रवासी लोकनि के बात तऽ छोडि़ दिअऽ मिथिला मे रहनिहार प्रबुद्ध आ सम्मानित लोकनि सेहो अपना के कथित तौर पर 'आधुनिकÓ साबित करैत घरो मे दोसर भाषा बाजब शानक बात बुझैत छथि। प्रबुद्ध प्रवासी लोकनि अपना बच्चा के हिन्दी, अंग्रेजी आ स्थानीय क्षेत्रीय भाषा (पंजाबी, बंगला, मराठी आदि) के ज्ञान तऽ आवश्यक रूपें दैत छथिन। मुदा मैथिली ''बच्चा के पैघ भेला पर स्वेच्छाÓÓ पर छोडि़ देल जाइत अछि, कारण यदि बच्चा घर मे मैथिली बाजत तऽ ई ओकर 'विशुद्ध हिन्दी उच्चारणÓ मे बाधक भऽ जयतैक। मिथिला मैथिली के समस्त चिंता मात्र 'मंचीयÓ आ 'दोसराकÓ लेल रहि गेल अछि। इएह कारण अछि जे एहि मादे जतेक संस्था/संगठन बनैत रहैत अछि ओतबे जल्दी ओ अस्तित्वहीन सेहो भऽ जाइत अछि। मैथिली ओहिना पड़ल रहि जाइत छथि-उपेक्षित। एहि तमाम संस्था लग उपलब्धि के नाम पर एकाध सांस्कृतिक कार्यक्रम टा (ज्यादातर विद्यापति पर्व) रहैत छन्हि। ईमानदारी सँ कहल जाय तऽ ओकरो मुख्य उद्देश्य चंदाक जरिए कमाई रहैत अछि। ओहि चंदा सँ भेल आमदक खर्च आ बंटवारा के नाम पर थूक्कम-फज्झति, धूर-छिया आ गुटबाजी जन्म लैत अछि। एहि सँ कार्यक्रम तऽ प्रभावित होइते अछि आम मैथिलक मोन मे विरक्तता सेहो आबैत अछि जाहि सँ भविष्य मे नहि सिर्फ एहि तरहक कार्यक्रम बंद होयबाक स्थिति मे आबि जाइछ अपितु संस्था सेहो बंद भऽ जाइत अछि। कतेको ठाम तऽ आयोजके लोकनि दारु पीऽ मंचे पर अशोभनीय व्यवहार करए लागैत छथि। विद्यापति पर्वक सबसँ पैघ विडम्बना अछि जे एहि ठाम 'विद्यापतिकÓ रचना छोडि़ सब तरहक 'झमकौआÓ गीत सुनबा मे अबैत अछि। शालीनता, मर्यादा आ मंचीय गरिमा लुप्त भऽ गेल अछि। महिला कलाकार सेहो गीतक स्तरीयता आ सुर साधना सँ बेसी शारीरिक लोच, दैहिक प्रदर्शन, भड़कौआ गीत श्रोता केँ उत्तेजना सँ 'फड़कावैÓ बला अदा केर समावेश कला मे कए रहल छथि। एहि 'अदाÓ पर आई श्रोता आओर आयोजक दुनू फिदा छथि। आ ई कारोबार खूब चलि रहल अछि।
तैँ कहै छी बाबू-भैैया। खूब संभावना छै एहि 'फील्डÓ मे। पैसा, नाम आ प्रतिष्ठïा सब भेटत। अहाँ अकर्मण्य होय वा लुच्चा-लफंगा, जुआरी-शराबी, होय वा गिरहकट, समाज-सेवा मे एहि 'शार्ट-कटÓ केर माध्यम सँ अपन सामाजिक छवि बदलि सकैत छी?
पैघ लोक सँ सम्पर्क कऽ सकैत छी, राजनीतिक, आथिक, महत्वाकांक्षा केर पूर्ति कऽ सकैत छी, बस मिथिला-मैथिलीक चिंतन सँ जुडि़ जाऊ। उपलब्धि के नाम पर असफलता तँ सोचबे नहि करु। बहुत पैघ-पैघ विभूति भेलाह अछि मिथिला मे, की कऽ लेलाह क्षेत्र आ भाषा लेल। मुख्यमंत्री सँ केंद्रीय मंत्री धरि कोनो मैथिल नेता किछु कऽ सकलाह अछि? तथापि की हुनक सामाजिक प्रतिष्ठïा पर कहियो कोनो आंच आएल अछि? तहन अहां व्यर्थे ने डराइत छी। शुद्ध व्यापारी बनए चाही तऽ मिथिला-पेंटिंग के उद्धार सँ अपनाकेँ जोडि़ लिअ। एहि मे कलाकारक शोषण आ मुनाफा सँ पैसा तऽ कमा सकैत छी लेकिन समाज-सेवा के मुख्य धारा सँ कटल रहब, ईखतरा अछि। अगर संस्था/संगठन बना लेब तऽ बीसो आंगुर घी मे बुझू। बिसरि जाइ आई हम अपना पारम्परिक पावनि तिहार तक सँ कटि रहल अछि। छोड़ू ई सब जमीनी चिंता। ई सामाजिक विकास आ मिथिलाक उद्धारक मार्ग अबरोधक अछि। मैथिलीक उद्धारक बनबा लेल दलाली सेहो सीख लिअ। तऽ उठू, आबू सरकार, सब मिलि करी मिथिलाक उद्धार।
1 टिप्पणी:
bipinji ahank lekh badd nik lagal,lekin antarrastriya star par lagayel gel aarop anchuchit bujhna jaichh.yadi ham sab akhnahu sudhari jay ta........mithila me kranti-revolution kehiyo nahi bhel.kranti ke sambhavna chhaik,pratiksha karu.
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