शुक्रवार, जुलाई 31

जरूरी अछि संतान संग सामंजस्य

मानव जीवनक मूलभूत इकाई सनातन संस्था परिवार अछि। प्राचीन सेँ लऽ कऽ वर्तमान युग धरि परिवारक संरचना मुल्य, परंपरा, विश्वास, मान्यता एवं सम्बंध में शनै: शनै: नव-नव परिवर्तन होइत रहल अछि तथा पारिवारिक ढांचा मे प्रतिपल परिवर्तन उपस्थित भऽ रहल अछि। एहि कड़ी मे पारिवारिक जीवन के महत्वपूर्ण सदस्य, अभिभावक एवं संतान के सम्बंध में व्यापक परिवर्तन भेल अछि।
बहुत तीव्र गति सँ विकसित होइत अपन समाज, पश्चिमीकरण, स्वअस्तित्व, व्यक्तिगत भावना, प्रतिस्पर्धात्मक दृष्टिïकोण मिली कय अभिभावक एवं संतान के सम्बधक परिभाषा बदलि कय राखि देने अछि। वैज्ञानिक अनुसंधान सँ इ प्रमाणित भेय अछि जे बच्चाक मानसिक नैतिक तथा शारीरिक शिक्षण के वास्तविक स्थान स्कूल, कॉलेज नहिं बल्कि मायक निर्मल छाहरि एवं घरक वातावरण अछि। आजुक समय में प्राय: माता-पिता के इ शिकायत होइत छन्हि जेे ओ अपन संतान सँ सन्तुष्टï नहिं छथि। हुनकर संतान हुनका सँ झूठ बजैत छथिन्ह, आज्ञाक पालन नहि करैत छथिन्ह एवं पैघक आदर नहि करैत छथिन्ह इत्यादि दौसर दिस संतान के सेहो माता-पिता सँ कम शिकायत किंवा विरोध नहि छन्हि। अहि खींच तान पर जौं विचार कयल जाय त इ सभ कठिनाई के दूर कयल जा सकेत अछि। सर्वप्रथम बच्चा में सुधारक लेल प्राय: दू प्रकार उपाय कयल जाइत अछि-नकारात्मक एवं रचनात्मक। नकारात्मक ढंग़ ओ भेल जाहि मे बच्चा के भय धमकी एवं मारि-पीट द्वारा अप्रिय व्यवहार के रोकय के लेल बाध्य कयल जाइत अछि। रचनात्मक ढ़ंग ओ अछि जाहि मे बच्चा के ओकर प्रिय कार्य दिस आकृष्टï कयल जाइत अछि। बच्चा जे करय ताहि लेल ओकरा उत्साहित कयल जाय। दोसर अपन संतान के व्यक्तित्वक आदर करबाक चाही। बात-बात पर दोष निकालबा सँ ओकर व्यक्तित्व पर बहुत खराब प्रभाव पड़ैत छैक। माता अथवा पिता सँ भय के कारण बच्चा झूठ बजनाई एवं कोनो तरहक बात नुकौबा लेल मजबूर भऽ जाइत छैक। एतहि सँ ओ अपन माता-पिता सँ दूर होमय लगैत अछि।
कोनो अभिभावक केँ अपन संतान के आस-पास के वातावरण एवं ओकर संगी-साथी के सँ उदासीन नहि अपितु ओहि वातावरण पर निगरानी रखबाक चाही। हमरा सभ के एक कठिनाई इ अछि जे हम अपन बच्चाक संगी-साथी सँ सीधा सम्पर्क अथवा परिचय कयनाई जरूरी नहि बुझैत छी। जखन कखनो बच्चा अपन दोस्त के घर आनय तख निजि रूप सँ ओहि बच्चा में अभिरूचि ली जाहि सँ ओहि बच्चाक आदति एवं आचार-विचारक अध्ययनक अवसर भेटत एवं एहि सँ अहाँ स्वयं अनुमान लगा सकैत छी जे कोनो विशेष बच्चाक संग-अहाँक बच्चा के मेल-जोल नीक परिणाम नहि देत। तखन अहाँ अपन बच्चा के इ सलाह दऽ सकेत छी जे ओ फलां बच्चा के अमुक-अमुक आदति ग्रहण नहि करय। माता-पिता के इ स्वभाविक इच्छा होइत छन्हि कि हुनकर संतान आज्ञाकारी होइन। प्राय:इ बुझल जाइत अछि कि बच्चा पर रोब-दाब रखला सँ बच्चा के आज्ञाकारी बनाओल जा सकैत अछि परन्तु वस्तुत: स्थिति इ नहि होइत अछि। आज्ञापालन मन सँ हेबाक चाही कोनो भय एवं मजबूरी सँ नहि। इ नियम हरदम ध्यान में रखबाक चाही कि बच्चा के जतेक कम आज्ञा देल जाय बच्चा ततेक अधिक आज्ञाकारी हैत। जे कोनो माता-पिता अपन संतान सँ अपन इच्छाक आदर कराबय चाहैत छथि हुनका स्वयं अपन संतानोक-इच्छा-आकांक्षाक-आदर-करय पड़तैन्ह। वर्तमान समय में अभिभावकक भूमिका माता-पिताक संग-संग, मित्र, शिक्षक एवं सलाहकार के सेहो भऽ गेल अछि तथा आजुक समय मे हुनका अपन संतान क भावनात्मक सम्बल बनबाक प्रयत्न करय पड़तैन्ह। आवश्यक अछि हुनक बीच शुष्क सम्बध के प्रेम, स्नेह एवं संवेदन शीलताक संग-संग जागरूक सहयोग सँ नकारात्मक के सकारात्मक स्वरूप में बदलल जाय।


- -कुमकुम झा

बिहारी बाजे तो - बोका, बकलेल, बुद्धि-हारी

मटरू कामति जखन रंग में आबि जाथि तखन के करा की कहता से की ओ अपनहुँ जानैत छथि? स्पश्टवकता कें बकटेंट कहल जाइत छेक आ से त छथिए मटरू कामति। ओहि दिन हाट पर स फिरल अबैत रही त दुर्गा स्ािान लग देखैत छी जे बड़का मजलिस लागल अछि आ मटरू कामति मुख वक्ता जकाँ उच्च स्वर मे अपन वक्तृत्व कला सँ सबकें सम्मोहित करने छथि। आवाज स तऽ दूरे सँ चीन्ह गेल रहियन्हि। संखद अनुभूति ( जे मटरू कामति के देखिते हमरा अछि) स हमहूँ ओहि मजलिस मे षामिल भऽ गेलहुँ। मटरू कामति के पीठ छलैन्ह हमरा दिषि आ ओ धारा प्रवाह द रहल छलाह अहाँ सब झूठे का घमरथन कर रहे है तखन से। अरे की कऽ लेगा नीतीष कुमार? की खत्म भऽ गिया है बिहार मे लूट, अपहरण, बलात्कार आ कि हत्या? ओकर अपने पार्टी का नेता लोकनि तऽ सब से बेसी बाँहि फड़काता रहता है। ओकरा पर त कोनो लगामे नही है दोसरे के मुँह में जाबि लगाने चला हैं। एक गोटा प्रतिवादकयलथिन्ह तऽ की कानून-व्यवस्था नहि सुधारल छेक? अपराधक ग्राफ नींचा नहि भेल अछि आ चारूकात जे फस्ट किलास रोड बनि रहल अछि से विकास कार्य नहि छैक त की छेक? चीन्नी मिल फेरो स षुरू भऽ रहल अछि ओ सब की अहाँ के नही देखइत अछि? मटरू कामति भड़कि गेलाह चारूकातक बनैत रोड त अहीं के दिखाई देता होगा, हमरा तऽ एखनो ग्रामीण क्षेत्र मे ओहने रोड दिखाई देता है। अहीं के गाम आने मे की कम दिक्कत है। कतेक सुधरि गिया है रोड? आ जे चमचमाता रोड का बिकास काज आपको दिखाई देता है से पूरा देष मे भऽ रहा है। ओ तऽ बाजपेयी सरकार का सड़क जोड़ो कार्यक्रम का हिस्सा है। नीतीष कुमा का तो बहादुरी होता कि ओ महानगर आ देष जोड़ो के तर्ज पर कम से कम प्रत्येक ग्राम के जिला मुख्यालय से पक्की रोड से जोड़ने का कार्यक्रम चलाते। नेषनल हाई वे से इधर सुदुर ग्रामीण क्षेत्र मे तो रोड सब का एखनियों कोई माय-बाप नहि है। अहाँ अपने ग्राम का हाल देखिमे न, दोसर ठाम का तो बाते छोड़िये दिजीए। हम त ग्राम घुसैत छी, हमारा तऽ भरि मिथिलांचल कऽ ग्रामीण सड़क आ परिवहन का हाल बुझा है तखन ई जरूर है कि नेषनल हाईवे से कतेको जगह का हाल सुधरि रहा है ओ षाबाषी पा रहे हैं नीतीष भैया। फेर जेना किछु यादि अएलन्हि। बात कड़ी जेड़ित बजलाह अहाँ जे चीनी मिलक बात करै छी त ओकरा कीदन तऽ कहते है, हँ, कन्हा कुकुर माड़े तिरपीत, तकर पैर हैं कैगो नोएडा-गुड़गाँव सनक षहर बसाया जा रहा है बिहार मे। की बाहर का लोक सब नौकरी। रोजगार के लिए बिहार आना षुरू कर दिया है। बाहरी का तो छोड़िये कि बिहारिए का पलायन बन्द भऽ गिया है। कतेक उच्चस्तरीय षिक्षण-संस्थान खुला आकि विकसीत हुआ है जहाँ बाहर से लोक पढ़ आते अरे कमाइ आयेगा कियो, अपने बच्चा सब पढ़ने को वास्ते बाहर जा रहा है। सर्दी-खाँसी-जुखाम वक का ईलाज कराने लोग एखनियों बाहरे पड़ाता है। ईलाज तक इतजाम नहि है और बिहार के विकास की बात करते है। पढ़ने-सुनने मे तो बहुत नीक लगै छै इै सब मुदा जमीनो पर मे असरि दिखना चाहिए।
हम देखल जे मटरू कामति भाई नीतीष कुमार पर आमलि पीने छथि। हुनका लालू यादव आ नीतीषक षासन मे अन्तर नहि देखा रहल छनि। तैं पाछु स वोकरा देलयनि औ मटरू कामति ज, आई नीतिष कुमार पर एतेक प्रसन्न कियैक छियेक? हमर आवाज सुनि ओ मुड़ि क पाछा तकलाह आ कहलाह अरे सरकार अहाँ? अहीं सें भेंट करवा लेल आएल रही। गाम पर पता चलल जे अहाँ हाट पर गेल छी त ओम्हरे जाठत रही कि ई सब घेरि कऽ ....। खैर छोड़ू, चलू आब हमहूँ भाभट समटी। ई कहैत अपना बात के ओतहि छोड़ैत ओ हमरा संग बिदा भऽ गेलाह। रस्ता मे हाल-चालक उपरान्त पूछलयन्हि जे नीतीष सरकार सँ एतेक खिन्न कोन कारण छी त ओ ममा ‘क’ हँसि देलाह कहलाह - तमसायल कियेक रहबै, सरकार? लालू आ नीतीष सरकार के अन्तर तऽ सर्वत्र देखर छेक, आ तखन पटरी सँ उतरल व्यवस्था के दुरूस्त करबाक थोड़ेक समय तऽ लगबे करतैक? तखन करितियैक की कोनो मैथिल के चाह-पानि आ मधुर लेल पूछबैक नहि आ खालीए पेट ओकरासऽ भरि दुनियाक फूसियाही गप्प करबैक तऽ ओ एहने गप्प ने करत? फेर जेना उपराग दैत कहलाह अहूँ गामक संस्कार बहुत बदलि गेल अछि सरकार। लोक तऽ जेना अतिथ्य सत्कारे बिसरि गेल अछि। मटरू कामतिक गप्पक पहिल हिस्सा सुनि जे हँसी लागल स1 ताहि पर हुनक आक्षेप विराम लगा देलक कहलयन्हि एहन कोनो बात नही छैक मटरू कामति चैक चैराहाक अप्पन संस्कार आ सीमा होइत छेक राति मे अहाँ एहिठाम विश्राम करू, हमरा लोकनि एखनो अतिथि देव भवः संस्कारक अनुगामी छी। मटरू कामिति ठहाका लगबैत कँहलाह नीमीष सरकार हो वा कोनो सरकार, की ग्रामीण क्षेत्र मे परिवहन क एहन कोनो व्यवस्था का सकल अछि जे कोनो ग्रामीण के कोनो भइजीयों काजे दुपहर के बाद ग्राम पड़ैक तऽ ओकरा कोनो सवारी गाड़ी भेटि सकै? राति मे तऽ हम रूकवे करब, मुदा हाटो पर अहाँ माछ कहाँ किन्लहुँ अछि? आतिथ्य सत्कार मिथिला ते बिनु माछक होई तऽ एकरा बदलल संस्कारे में कहबैक। फेर एक आक्षेप आ उपराग?
चाहक चुस्की जेना मटरू कामति क क्लात्र चेहरा आ षिथिल मूड पर सजीवनीक असरि षुरू का देने छल। हम पूछलयन्हि एक बात कहू मटरू कामति, बिहारक प्रतिमाह लोहा तऽ तकरीबन पूरा देष मानैत अछि तथापि बिहारीक छति एतेक खराब किएक बनल अछि भकर देष मे? बिहारी षब्दक व्यवहार बहुत बेजा अर्थ आ संदर्भ मे होइत अछि, हम पूछलयन्हि एक बात कहू मटरू कामति, बिहारक प्रतिमाह लोहा तऽ तकरीबन पूरा देष मानैत अछि तथापि बिहारीक छति एतेक खराब किएक बनल अछि भकर देष मे? बिहारी षब्दक व्यवहार बहुत बेजा अर्थ आ संदर्भ मे होइत अछि, तकर कारण की। चाहक अंतिम चुस्की लैत मटरू कामति बजलाह-तकर कारण बिहारी और की। से कोना? कनि फरिच्छा के कहू ने। हम आग्रह कयलन्हि। बात तऽ षीषा जकाँ साफ अछि, मटरू कामति बजलाह, बिहारक षाब्दिक अर्थ पर कहियो ध्यान देलियैक अछि-बसँ बक्टेंट, ह सँ हरमादी आ र स रगरियल। तैं बिहारी कें एहि गुण सँ परिपूर्णे देखबै आ मैह कारण दैक जे बिहारी आई गारि आ अपमान सूचक षब्द बनि गेल अछि। एके सांस में कहि गेलाह मटरू कामति। बक्टेंट, हरमादी आ रगरियल बिहारि क तऽ एगो सर्वथा नवीने अर्थ निकालन्हि अछि मटरू कामति। अद्भूत बिहारी क आ खासकऽ मैथिल मानसिकता के देखैत विलक्षण विषेश्ण तथापि विरोध करैत कहलयन्हि आँय यौ, मटरू कामति, जाहि बिहारक यषोगाण स तमाम ऐतिहासिक आ धार्मिक ग्रंथ भरल अछि। जाहि भूमि पर अनेको धर्मगुरू, दार्षनिक, वैज्ञानिक आगात्मिक राजनीतिक ना एक स बढ़ि एक उद्मत विद्वान भेलाह, जाहि भूमिक उर्वसा आ मानसिक विलक्षणताक लोहा एखनों पूरा देष मानि रहल अछि, तकरा बादे अहा1क ई विचार अछि? कोनो भी प्रतियोगी परीक्षा में सबस नीक परिणाम बिहारीक प्रतिभा दैत अछि, कोनो भी सरकरि आ गैर-सरकारी संस्था मे बिहारी उच्च पद आसीन अछिए तकर बादो अहाँक ई उपमा आ अलकरण हमरा नीक नही लागल। मटरू कामति खैनी चूनबैत चूनबैत अचानक तैष मे आबि गेलाह-उचित बात ककरा नीक लगता है जे अहाँक लगेगा। अहाँ केा तो नीक लागेगा जखन कियो कहेगा कि बिहारी सबको गर्दनियाँ देकर भगाओ हियाँ से आ कि जब कियो कहेगा कि बिहारियों के आने से हमर षहर गन्द भऽ गिया है, कोनो नी बिहारी अपन मुँह उठाके सीधे हमरे केा गन्दा करने आबि जाता है, ओकरा सब पर लगाम लगाना होगा। अरे बिहारी मे कोनो आनि-अपग्रानि थोड़े होता हौ? दोसरक सामने सिटिर-पिटिर करेगा आ अपनामे कतनो कंुकुर-कटाऊझ स फुर्सते नही रहेगा। सबटा पुरूश्, वीरता, स्वाभिमान, पौंतराबाजी, राजनीति-कूटनीति, छल प्रपच अपने मे करता रहेगा। दोसरक चाकरी, खुषामद आ तलवा सहलाने मे माहिर इस बिरादरी का कभी अपनों के तसकी पर पंसन्न होते देखे है? अरे ओतऽ टांगे खीचने का जुति भिड़ाता रहता है खाली। आत्म विमुग्धता आ पर निंदा सस पलखति कखन होता है? चैक चैराहा पर दोसरक पाई के चाह-पान पर देष-दुनिया के सब विश्य कचराही छाँटता फिरेगा किन्तु कखनो..... खैर छोड़ियेख् कोन बेकार का विश्य उठ कर बैस गिये, माथा टनकऽ लागा। ई कहैत मटरू कामति खैनी मुँह मे लऽ लेलाह।
हम देखल जे एखन मटरू कामति तरंग मे छथि। जे बजता कटूवितए। ओना ओ अनुचित वऽ किछु बाजि नही रहल छलाह। सच्च बात त ठीके कटकटा क लगैत दैक लोक के। तथापि हुनक मूड षांत करवाक गरज स प्रस्ताव राखलयन्हि एखन भोजन मे तऽ किछु विलम्ब होइत, कियैक ने एक बेर फेर एक एक कप चाह........ मटरू कामति बीच्चे मे बजलाह ताहि मे पूछबाक कोन प्रयोजन। मटरू कामति संग लोकक मँुह सँ आई जाही तरहक गप्प सुनबा मे भेटल ओ अप्रव्याषित छल। जाहि विश्य पर गप्प करऽ चाहैत छलों से हुनक भावावेष देखि फेर षुरू हिम्मत होइत छल। तईयों चाहक संग एम्हर ओम्हर के कतेको बात करैत हम मटरू कामति कें फेरो पटरी पर आनबाक प्रयासक तहत कहलयनि, ओ, मटरू कमति, एगो फिलीम देखने रही ताहि में त विचित्रे हिन्दीक प्रयोग देखलयैक। जेना ‘अपुन बोले तो, पता नही फिलीम बला सब केहन हिन्दीक प्रयोग षुरू कयलक अछि। ताहि पर ओ सब कहत जे बिहारी कें षुद्व हिन्दी बाजहि ने अबैत दैक। खैनी के ठोर तार दैत मटरू कामति बिहारी बाजे तो-बोका, बक्लेल बुद्वि-हारी कहि फेर चुप्प भऽ गेलाह।
आब हमरा नही रहल गेल। खौंजाकऽ निकलल रही कि? जखन सँ भेटलाह अछि लगातार बमक गोले छोड़ि रहल छी। की बात छैद्य जखन अहाँ सन मिथिला प्रेमी आ बिहारी होयबा पर गार्व करनिहार आदमी एहन एहन बात करत तऽ बाहरी लोक किएक ने हमरा सबके तऽ की हम जे किछु बजैत छी से अहाँ मने बड्ड प्रसन्न भऽ कऽ बाजि रहल टीद्य अपन अनुभव सऽ आहट भऽ क हमरा एना बाजय पड़ि रहल अथ्छ, मटरू कामति अचनाक बचाव के मुद्रा मे आबि गेल छलाह। बिहारी कें दुनियाक कोनो कोन मे की एकजुट कयल वा देखल जा सकैत अछि ताहु आर बेसी असंभव बात मानल जाय। कहबाक लेल फलाना महानगर मे एतेक लाख बिहरी वा मैथिल रहैत छथि तऽ फलाॅ नगर मे एतेक लाख। दर्जनो संस्था-संगठन नाच-गान क एगो कार्यक्रम साल मे करता, ने करता संस्था टूट- विखंडन के षिकार भऽ जायता अपना मे सब महा पुरूशर्थी बनल रहता। लेकिन बाहरी खासकऽ स्थानीय नागरीक क सामने बिलाय भऽ जयता। जौं कियो एक गोटे हिम्मत कऽ कोनो स्ािानीय कें उछंडताक जवाब ओकरे भाशा में गारि वा मारि स देत तऽ सबसे पहिने अपने समाज ओकर खिदांस करत, समर्थन के बाते छोड़ू, स्ािानीय लोकक डर स अपने आदमी से मुँह फेर लेगा, जेना ओकरा बिहारी का मैथिल समाज से मतलबे नहि है। तै देखते हैं लाखो-लाख बिहारी जिस महानगरों में रहता है ओतऽ एगो पार्शदो अपना बलबूता पर अपने समाज का जीतवा पता है। एक बोतल षराब पर बोट बेचनेवाला बिहारी के स्वाथिमान का रक्षा क्या घंटा कर पाएगा। धीरे-धीरे मटरू कामति फेरो आवेषित होबय लगलाह। दोसरक चाकरी आ अपनअपन लोक का टांग खींचबा मे आत्म विमुग्घिन एहन प्रजाति ब्रहमाण्ड मे कतहु नहि भेटेगा। जे समर्थ है आर्थिक वा प्रषासनिक अधिकार से ओ तो मात्र अपन स्वार्थेटा लेल मैथिल वा बिहारी पहचान खोलता है। ओना ओ बिहारी षब्दे से नाता तोड़ि लेता है। बीचबीचैवा अपन स्वार्थ आ महत्वाकांक्षा के तहन संस्था-संगठन का कारोबार करेगा अपना मे ककुर कटाउझ करेगा आवष्कतानुसार माह भंग का टाटक करेगा आ अगिला स्वार्थ जागने तक स्व निर्बासन मे चला जाएगा। बाँकी बचेगा आर्थिक रूप निम्न वर्गीय समुदाय जे रिक्सा-रेहड़ी चाह-पानक इंतजाम मे लगा रहता है और ओकरे सबको लोग बिहारी का प्रतिनिधि वा हैसियत-औकात के रूप मे देखता है आ बिहारी को हेय दृस्टि से देखसता है। अपना मे बिहारी भाशा, क्षे? आ जाति के नाम भले ही कपर फोड़ी करता रहे बाहरी के नजरि मे तऽ सब सबके होता है नऽ दिल्ली, मुम्बई, कोलकता कत्तौ बिहारी को मनुक्खक लेखा मे गिनती होता है। आसाम, कष्मीर, पंजाब मे बिहारी मारा जाता है। लोक बुझता है ई सबसे निरापद, निस्सहाय जीव है छकरो एकरा जतेक छकैर सकते हो तै तौ कहता हुँ बिहारी बाजे तो बोका बकलेल, बुद्धि-हारी, बक्टटे बूडिबक आ जतेक भी उपमा आप दे सकते है दे दिजीए गदहा जकाँ ई समाज सब कलुक आ कु-विषेश्णका भार बिना प्रतिरोघ का स्वीकार करता रहेगा। जौं ऐना नही हासेता बेवकूफ बिहारी भैया को महाराश्ट्र से भगाने की बात करनेवाले केा मँुहतोडद्य जबाब देता, कलकता आ दिल्ली का गंदगी कहनेवाले का मुँह नोच लेता किन्तु मुँह से पहलमानी करनेवाले को कभी अखाड़ा पर उतरते देखे हैं, जे बिहारी उतरेगा। नहि तो अपने संख्या-बल और सामूहिक हैयित के बल पर सभी महानगर मे ई समुदाय महा-षक्ति रहता लेकिन असल मे कीद्य कत्तौ गिनत्तीयो होता है सकरा सबके। तैं कहता हुँ जखन बिहारी का र्दद कचोटने लगे तो रामवाण की तरह याद करि लीजिएगा !

गुरुवार, जुलाई 30

दम तोड़ैत मधुबनीक लहठी उद्योग

बिहार विभाजनक बाद रोजगारक नऽव अवसर आ आय के श्रोत मे बढ़ोतरी लेल प्रयास अपेक्षित छल। मिथिलांचल ओना तऽ उद्योगक क्षेत्र मे बहुत अग्रणी आ विकसित कहियो नहि रहल किन्तु, जे उद्योग छोट-छीन स्तर पर चलैत रहय तकर हाल सेहो बदहाल कहल जाय। कएक टा पारम्परिक लघु उद्योग छल मिथिलांचल मे, ताहि मे मधुवनीक लहठी उद्योगक सेहो बेस नाम छल। मात्र मधुबनी टा मे करीब तीन साढ़े तीन सौ परिवार छल जकर रोजी रोटी छलैअ लहठी उद्योग। आइ मुश्किल सऽ 35वा 40 टा परिवार कहुना एहि उद्योग सऽ जुड़ल अछि बाकी बचल परिवार या तऽ आन रोजगार सऽ जुडि़ गेल वा पलायन कऽ गेल अछि। तकर मुख्य कारण सरकारी उपेक्षा आ आधुनिकता केर चकाचौंध। शिल्पकारक आर्थिक संरक्षण क अभाव कही वा कच्चा मालक आसमान छूवैत दाम कही। कुल मिला कऽ एहेन कतेको कारण सऽ शिल्पकार एहि रोजगार सऽ विमुख भऽ गेल।
जहां धरि मधुबनी जिला मे लाह उद्योगक उद्ïभवक प्रश्न छैक तऽ क्षेत्रीय मिथक तथा अन्य श्रोत सऽ प्राप्त जानकारीक अनुसार 1757 ई। के करीब वैश्यक एक उपजाति, जकरा स्थानीय बोल चालक भाषा मे लहेरिया कहल जाइत अछि, केर प्रवेश मधुबनी मे भेल। एहि जाति द्वारा लहठी उद्योग प्रारम्भ कएल गेल।
ऐतिहासिक विवरणक अनुसार अंग्रेज द्वारा बंगाल सूबा पर राजनीतिक आधिपत्य कायम केलाक बाद राजमहल, मुर्शिदाबाद, विष्णुपुर आदिक वस्त्र शिल्पकार पर अत्याचार बढ़ल। पलायन के क्रम मे इ जाति बंगाल के छोडि़ नदी सऽ अच्छादित पुरना दरभंगा जिला मे नाव द्वारा प्रवेश कएलक। मधुबनीक लहेरिया जाति के संबंध ओही पलायन सऽ जुड़ल अछि। संभवत: तत्कालीन वणिक जाति द्वारा एहि लहेरिया जाति के ओहि समय संरक्षण नहि प्रदान कएल गेल। परिणामस्वरूप इ जाति शहर के अंतिम छोर पर जा कऽ अपन उद्योग कहुना प्रारम्भ करबा मे सक्षम भेल। बाद मे सांस्कृतिक आत्मसातक क्रम मे लाह उद्योग सऽ जुड़ल लोक चूड़ी बजार आ भौआरा आदि मोहल्ला मे सेहो बसैत गेल किन्तु अद्यावधि प्राचीन आश्रय स्थल लहेरिया गंज के नाम सऽ जानल जाइत अछि। इ अलग बात छैक जे आइ ओहि ठाम मुश्किल सऽ 25 वा 30 परिवार शेष रहि गेल अछि। बाद मे जखन व्यवसाय मे वृद्धि भेलैक तऽ आबादी के बढ़ोतरी के देखैत इ जाति राज नगर, भगवतीपुर, जय नगर, नरार, बेनी पट्टïी, झंझारपुर, मधेपुर, भदुली, देवधा आदि स्थान पर बसैत गेल। जहां धरि मधुबनी क्षेत्र मे लाह निर्माणक तकनीक केर प्रश्न छैक तऽ प्रारंभ मे एकर निर्माण माटि आ लाहक चपड़ा के मिला कऽ कएल जाइत छल लेकिन 20वीं शताब्दी के तेसर दशक मे वा तकर बाद माटि एवं लाहक चपड़ा मे रोगन एवं रंग सेहो मिलाओल जाए लागल। 1950 के बाद एहि मे पाउडर के प्रयोग सेहो होमय लागल किन्तु वर्तमान मे एहि मे मीना आ स्टीकर के प्रयोग बेसी भऽ रहल अछि। मिथिलांचलक लहठी उद्योगक विशेषता रहल छैक जे एहि मे पूरा काज हाथ टा सऽ कएल जाइत अछि जाहि मे 80 प्रतिशत महिलाक भागीदारी रहैत छन्हि। दु:खद बात इ जे विगत दू तीन वर्ष सऽ एहि उद्योग मे भारी उथल-पुथल भेल तकर मौलिक कारण इ रहल जे पीढ़ी दर पीढ़ी सऽ काज करैत शिल्पकार दोसर धंधा दिस आकर्षित भेल गेल तकर पाछू के कारण इहो छैक जे कच्चा मालक स्थानीय स्तर पर अकाल भऽ गेलै। लहठी मे प्रयुक्त कच्चा माल बाहर सऽ आनय पड़ैत छैक जकर दर सेहो उच्चतम रहैत छैक। विदित हो कि लहठी मे कच्चा मालक प्रयोग लाहक चपड़ा, स्टीकर, रंजन, मीना आ चमकीला तारक रूप मे कएल जाइत अछि। उक्त सामानक मूल्य मे 20-25 वर्षक अंदर अप्रत्याशित वृद्धि भेलैक। परिणाम इ भेलैक जे ताही अनुपात मे लाह सऽ बनल चूड़ी आदि महग सेहो होइत गेलैक आ स्थानीय ग्राहक एहि सऽ विमुख होइत गेल।
विगत 15-20 वर्ष सऽ लहठी उद्योग सऽ जुड़ल महिला सुशीला देवी कहैत छथि लाहक चपड़ा पहिने 40-45 रुपैया प्रति किलो भेटैत छल आइ तकर मूल्य 160 सऽ लऽ कऽ 200 रु प्रति किलो भऽ गेल छैक। ठीक तहिना 50 ग्राम स्टीकर के मूल्य 9-10 रुपैया छलैक जे आब 40-45 रुपए भऽ गेलैक। एक पुडिय़ा मीना सेहो 9-10 रुपैया मे भेटि जाइत छल मुदा तकर मूल्य सेहो बढि़ गेलै। वस्तुत: कच्चा मालक आसमान छूवैत दर एहि उद्योग के बंद करवा लेल विवश कऽ देलक स्थानीय शिल्पकार के।
कारण जतेक रहल हो मुदा एक बात सत्य जे एहि लचरैत उद्योग सऽ एक दिस जतय मिथिलांचल के राजस्वक घाटा भए रहल छैक ओत्तहि कएक टा शिल्पी परिवार भुखमरी के कगार पर ठाढ़ अछि। आब पुन: शेष बिहारक लघु उद्योग मे जान फुकवाक प्रयास भए रहल अछि तखन देखी जे ओहि पारम्परिक लहठी उद्योग पर सरकारक कुंभकरणी नींद कहिया टूटैत अछि?

बुधवार, जुलाई 29

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कविता / देव बचाबू

आई जिम्हरे दृष्टिï उठै,
तिम्हरे कानैत सूरत देखल।
जिम्हेर ई कर्णपटल घूमै,
हाहाकारक स्वर गूंजल।
ई की सुनैत छी आजुक हम,
पर्यावरणक ई करूण कथा।
ई गाछ पात सब सुना रहल,
मानव केर अन्यायक गाथा।
जेहिना ई कटैथ जीवन जंतु,
तहिना हलाल केलनि हमरा।
सब डाढि़ पात कहने घूरथि,
हे दैब बचाबू आई हमरा।
आजुक कृतघ्न ई मानवजन,
उतरल अछि करय विनाश हमर।
जकरा लेल जीवन अपन देल,
सएह आयल छीनय प्राण हमर।
जीवन भरि देलहुँ प्राणवायु,
तहि पर अदभुत देल फलक दान।
आयुर्वेदो त देल हमर,
आब आई लेताह ई हमर प्राण।।


- कंचन

सोमवार, जुलाई 27

गोनू झा आ कंजूस राजकुमार

एकटा बड़ कंजूस राजकुमार छलथि कोनो अवसर पर ओ ककरो एको पाई नहि दैत छलाह। संयोगवश राजाक मृत्यु भऽ गेलन्हि आ ओ राजकुमार राजा बनि गेलाह। एहि अवसर पर दूर-दूर सँ गुणी-गवैया आयल, भाँट सब पहुँचल, लेकिन राजकुमार ककरो किछु देमए नहि चाहैत छलाह। जे राजाक मृत्यु पर शोक व्यक्त करैत छलाह हुनका सबके ई कहि टारि दैत छलाह, जे 'वाह हमरा राजगद्दी भेटल अछि आ ई शोक व्यक्त करैत छथि हिनका एखने भगाऊ एहिठाम सँ।Ó
जे सब राजकुमारक राजा भेला पर खुशी व्यक्त करैत खुशीक गीत गबैत छल, ओकरा सब के राजकुमार कहैत छलथिन्ह, 'देखू तऽ, हमर पिता परलोकी भऽ गेलाह अछि आ ई खुशी मनबैत छथि। हिनका एखने भगाऊ एहि ठाम सऽ।Ó एहि तरहेँ लोक ने कानि सकैत छलाह आ ने हँसि सकैत छलाह। सबकेँ खाली हाथ वापस होमय पड़न्हि।
हारि-थाकि आ नव राजा सँ निराश भऽ सब गोनू झा लऽग पहुँचलाह आ हुनका सबटा वृतान्त सुनबैत कहलथिन्ह जे हमरा लोकनिक नव राजा बहुत कंजूस छथि। हमरा सबकेँ अदौ काल सँ राजाक ओहिठाम सँ बक्सीस भेटैत अबैत रहल अछि। राजा बनबाक खुशी मे लाखो रुपैया लुटाओल जाइल छल। लेकिन ई राजा तऽ हमरा लोकनि केँ एकको पाई नहि देलाह। आब अहीं हमरा लोकनि केँ मदति करु।Ó सब बात सुनि गोनू झा किछु सोचि कहलथिन्ह, 'अच्छा अहाँ सब हमरा संग चलू मुदा अहाँ सब किछु बाजब नहि खाली हम जे करब सैह अहूँ सब करब।Ó सभक हामी भरलाक बाद गोनू झा बीस-पच्चीस आदमीक संग दरबार पहुँचलाह। राजा सिंहासन पर बैसल छलाह। दरबार लागल छलैक। गोनू झा राजाकेँ प्रणाम कऽ मुँह बौने ठाढ़ भऽ गेलाह, किछु बजलाह नहि। हुनक संगी सब सेहो हुनक अनुकरण करथिन्ह। सबकेँ एना मुँह बौने देखि राजा असमंजस मे पडि़ गेलाह। राजा गोनू झा के बजा पूछलथिन्ह, 'गोनू झा अहाँ सब ऐना किएक ठाढ़ छी। की चाहैत छी? गोनू झा बिना किछु बजने इशारा सँ कहलथिन्ह जे हमरा लोकनि दान हेतु आयल छी। आब राजा पुन: पुरने राग पकड़लाह, 'की अपने लोकनि खुशी मनबैत छी। गोनू झा किछु नहि बाजि मुँह बौने ठाढ़ रहलाह। राजा पुन: पूछलथिन्ह, की अहाँ सब शोक मनबऽ अएलौं अछि। पुन: सब यथावत्ï ठाढ़े रहलाह, बिना किछु बजने। राजा के एकर कोनो माने नहि लगलन्हि तऽ ओ दरबारी सब सँ एकर मानेँ पूछलथिन्ह। मुदा गोनू झाक खेला के बूझि सकैत छल? अकच्छ भऽ राजा पूछलथिन्ह, अहाँ सब बजैत किएक नहि छी? खुशी मनबय आयल छी वा शोक? गोनू झा मुँह बौने कहलथिन्ह, जे अपने जे बुझयैक।Ó राजा के किछु नहि सूझनि, ओ सब किछो नहि बजैत छलाह, मात्र मुँह बौने चुपचाप ठाढ़ छलाह। आब राजा के सब मामिला बुझना मे आबि गेलन्हि आ पूर्वक बर्ताव पर ओ स्वयं लजा गेलाह। अपन गलती स्वीकार कऽ ओ सबकेँ दान दऽ बिना कएलथिन्ह। दान पाबि सब खुश भऽ गेलाह आ गोनू झा केँ आभार व्यक्त करैत अपन-अपन घर गेलाह।




अपने लोकनि किवदन्ति बनि चुकल गोनू झाक कतेको कथा सँ परिचित छी। गामे-गाम हुनक कथा आइयो धरि अति लोकप्रिय अछि। मुदा दुर्भाग्यक बात अछि जे आजुक शहरी नेना-भुटका श्री गोनू झाक नाम सँ अपरिचित अछि। एहि लेल आजुक 'आधुनिकÓ अभिभावक सेहो कम दोषी नहि छथि। कॉमिक्स के रंग-बिरंगी हिन्दी आ अंगरेजिया पत्र-पत्रिका सहित टेलीविजन सेहो अपन प्रचार-प्रसार सँ एकरा बहुत हद तक प्रभावित कएलक। अकबर-बीरबल आ तेनालीरामक कथा केँ तऽ प्रायोजित आ नियोजित रूप सँ परोसल गेल, मुदा गोनू झाक उपेक्षा सर्वत्र भेल। दुर्भाग्यजनक रहल जे मैथिलवासी सेहो एहि दिशा मे उदासीन बनल रहला। एहि जड़ता के तोड़ैत आजुक नेना-भुटका के श्री गोनू झाक कथा सँ परिचित करएबाक बीड़ा उठौलक अछि—'मैथिली टाइम्सÓ। एहि कड़ी मे प्रस्तुत अछि गोनू झा केर एक आओर कथा। —संपादक

शुक्रवार, जुलाई 24

उत्तम प्रयास, उपयोगी पोथी

मार्कण्डेय पुराणांतर्गत ख्रोष्टï ऋषि 6 शिष्यक जिज्ञासा पूर्ति मे उपदेश देने छथि से षटसम्वाद कहबैत अछि आओर एहि मे भगवती दुर्गाक स्वरूप एवं गुण के निरूपण कएल गेल अछि। सात देवीक वर्णन भेला सऽ ई दुर्गा सप्तशती कहबैत अछि। भारत वर्ष मे आ विश्व क हिन्दू समुदाय मे ई सर्व मान्य आ सबसँ अधिक पठित पुस्तक अछि। एहि मे गीताक सम्मान भिन्ने तरहेँ मोह आ मात्सर्य सँ छुटकारा पेबाक विधि सेहो अछि। सरल भाषा मे उच्चतम आध्यात्मिक उत्कर्षक सोपान ई सेहो थिक। सात सौ मन्त्र कए काव्य रूपक के रूप मे कथानक प्रस्तुत कएल गेल अछि। स्यात एहू हेतु एकरा सप्तशती कहल जायत अछि। मंत्रक अनुवाद नहि हो ताहि हेतु सुलभ एवं सुगम बनाकऽ पौराणिक कथा रूप मे निर्देशित अछि।
ई ऐहन कठिन छै जे पुराण एवं मेरुतंत्र मे लिखल अछि जे ई पूर्णरूप सँ महामाया टा जनैत छथि, शंकरजी आधा, विष्णु तिहाई, ब्रह्मïा चतुर्थांश, वशिष्ठï सौवां भाग आओर स्वयं पुराण लेखक व्यासजी सहस्रांश बुझैत छथि। अर्थ भेल जे मार्कण्डेय ऋषिक उक्ति व्यासजी यथाविधि रखने छथि। ई तऽ बुझैक बात भेल ताहि हेतु समीक्षक एवं अनुवादकक ज्ञान पर तऽ सोचले जा सकैत अछि। कथानक केँ संस्कृत भाषा कय मैथिली मे पं। पीताम्बर झाक पुस्तक पर किछु कहय चाहैत छी। कवि भावानुवाद केने छथि। कथानक के ई अक्षरश: अनुवाद नहि अछि आने तकर दावा कएने छथि। दुर्गा सप्तशती के तीन भाग मे बाँटल जा सकैत अछि। एकटा मे ऋषि, देव आ देवी वचन इंगित कएल गेल। दोसर मे घटना के वर्णन अछि जाहि मे प्रमुख रूप सौं युद्धक वर्णन अछि। तेसर भाग स्तुति अछि जे घट मे समुद्र अछि। ताहि हेतु शब्दक प्रकृति आ अर्थक सीमा तोडि़ लक्षणा, व्यंजनाक आश्रय लइत ऐतिहासिकताक बल पर अध्यात्म तत्वक अगाध अंतस्थल मे पहुँचि जाइत अछि।
प्रस्तुत पुस्तक मे जड़ शब्द अनुवाद अछि सेहो स्त्रोतानुसार नहि तैं रचयिता भावानुवाद कहलन्हि। महिषासुर अस्त्र-शस्त्र सँ सुसज्जित दल-बल सँ देवी पर आक्रमणक वर्णन अछि :
फेकए किओ पाश देवि पर, किओ शक्तिक प्रहार।
किओ तीक्ष्ण तलवार चला, करए देवी पर वार॥
भाषा मे ओज रहितहुँ तरुवारि बदला मे उर्दू तलवार खटकैत अछि। महिषासुर युद्ध देखू :
करए विदीर्ण सिंग सँ गण के, कुपित महिषासुर अतिक्रूर
...थर-थर काँपथि धरा-डर सँ, सुनि ओकर कठोर दहाड़॥
चित्रण सजीव, मूल सँ अधिक सरल आ बोधगम्य अछि। फेर रक्तबीज आ देवीक युद्ध देखू :
आहत दनुजक रक्तधरा पर, ..., दैव्य पुरुष हजार॥
ई सजीव वर्णन पढ़लाक बाद मूल सप्तशतीक संस्कृत वर्णन अधिक स्पष्टï भऽ जायत अछि।
नवम्ï अध्याय मे शुम्भ एवं देवीक युद्ध :
शुंभ देवी पर, देवि शुंभ पर, छोड़थि कत शर अजस्त्र।
.......... विपुल चक्रक प्रहार॥

स्तुति अध्याय एक मे (71-87) मंत्र (श्लोक), चारि मे 1 सँ 28 या सम्पूर्ण, 5 मे (8-84 तक) एवं 11 मे 1 सँ 36 या 39 तक अछि। यैह सप्तशती मे परम आध्यात्मिक रहस्य सँ पूर्ण अछि। कोनो मे छन्द बदलि गेय भेल जे विनत भक्तक भाव देवी तक पहुँचेबाक सोपान अछि। बिना छन्द बदलि, बिना गेय बनाओल अनुवाद मूलकय भोथ बनौने अछि। एहिकेँ पढ़ला सँ विनत माधुर्यक अभाव बुझाइत अछि। लिखलाक भास ने वशिष्ठï (राधेश्याम)क आ ने आल्हाक छन्दक पूर्ण कय अनुकरण केने अछि। कतऽ-कतऽ हिन्दी कतहुँ-कतहुँ कएल गेल अछि जखनकि मैथिलीक प्रतिरूप देला सँ छन्द नहि टूटितैक। कतहुँ-कतहुँ छन्द दोषपूर्ण आ त्रुटि पूर्ण सेहो अछि।
अंत मे, प्रस्तुत अनुवाद गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित संस्करण के अछि। शाक्त साहित्य केँ सप्तशती पर अति अर्वाचीन विवेचन मे बहुत विद्वानक मत छैन्ह जे शप्तशती के सर्वशुद्ध पाठ की छैक कहल नहि जाय किन्तु प्राप्त संस्करण मे मिथिला देशीय पाठ सबसँ कम त्रुटिबला या उपलब्ध सर्वशुद्ध अछि। मिथिला पाठ मे प्रत्येक अध्याय मे ध्यान (विभिन्न तांत्रिक या आगम ग्रंथ सँ आनल गेल नहि अछि)। एहि मे तीनू चरितक ध्यान प्रारम्भ मे अंत मे होइत छैक। प्रथम अध्याय सँ अप्रतित तेरहम अध्याय तक करबाक चाही। मैथिली मे मिथिला पद्धतिक, निर्वाह हेबाक चाही।



पोथी : मैथिली दुर्गा सप्तशती
रचयिता : पीताम्बर झा
दाम : 20 रुपैया
प्रकाशन : जानकी प्रेस, जनकपुर।

गुरुवार, जुलाई 23

जमीने हेरा गिया है

बहुत दिन भऽ गेल मटरु कामति सँ भेट नहि भेल छल। आई हुनका सँ गप्प करबाक बहुत इच्छा भऽ रहल छल। हुनके ध्यान कऽ रहल छलाँ कि एकाएक मटरु कामति धमकि पड़लाह। हर्षित मोने कहलयन्हि, मटरु भाई, बहुत दिनक जीयब अहाँ, एखन हम अहीँक ...... मटरु कामति बीच मे बजला, 'बहुत दिन जीब तऽ रहब कत्तअ सरकार? आब तऽ जमीनो गायब भऽ रहल अछि। अपना जगह सँ, पता नहि केना एम्हर सँ ओम्हर घुसकि जाइत अछि जमीन? जमीने तकबा मे जिंदगी खेप जायत तावत्ï रहब कत्तअ? तैं बहुत दिन जीबाक श्राप नहि दिअ।
जमीन गायब भऽ जायब आ ऐम्हर सँ ओम्हर घुसकबाक गप्प नहि बुझि हम मटरु कामति दिस ध्यान सँ ताकल। चेहरा मलिन, बढ़ल दाढ़ी, मईल कुर्ता आ किछु दुबरायल मटरु कामति बहुत उदास या दु:खी बुझना गेलाह। हुनक मनोदशाक अंदाज कऽ हम गंभीर होइत पूछलयन्हि, बहुत उदास आ क्लांत बुझा रहल छी मटरु कामति, की कोनो खास बात? जमीनक मादे की कहैत रही? पूरा बात सविस्तार कहू ने? मटरु कामति कुर्सी पर बैसैत पहिने तऽ एक लोटा जल पीबाक लेल माँगलाह, फेर कहए लगलाह, ई सुनैत रही जे जनसंख्या बढ़ला सँ जमीन लोकक लेल कम पडय़ लागल अछि, मुदा जमीन घुसकऽ लागल वा गायब होमय लागल अछि ई पहिल बेर देखल-सुनल। अमीन सभ जे ने करय।Ó
हम जिज्ञासु बनि हुनक बात पूर्ण मनोयोग सँ सुनए लगलहुँ। तावत्ï जल आबि गेल। एक्के बेर मे पूरा लोटाक जल पीलाक बाद ओ पुन: शुरू भऽ गेलाह, 'ओना तऽ कतेको जमीनी विवाद मे पंचयती कएने रही, दूनू पक्ष के मान्य आ शांतिपूर्ण विवादक निपटारा करबाक जश सेहो भेटल छल मुदा एहि बेर जे अनुभव भेल ओ तऽ कल्पनो मे नहि छल।ÓÓ हम बिना कोनो जिज्ञासाक व्यवधान उत्पन्न कएने चुपचाप हुनक व्यथा सुनैत रही। ओ अपन बात आगाँ बढ़ोलाह, 'ओना तऽ हम एहि बातक विरोधी शुरू सँ रही जे लोक अपन जमीन-खेत बढ़ेबाक वास्ते बान्ह वा आडि़-धूर काटि रहल छथि। एहि लेल आनो मामिला मे बहुत रास दुश्मन पोसि लेने रही मुदा अपने एकर फाँस मे आबि जायब ई नहि सोचने रही। फेर स्वयं घटनाक्रम पर अबैत ओ बजलाह, 'गाम मे हमरा बगल मे कारी कामतिक घर छैक। बुझू जे ओकर बाड़ी आ हमर बाड़ी एक-दोसर सँ सटले अछि। पिछुला किछु साल सँ जखन ओ अपन बाड़ी तामय, दू कोदारी हमरा बाड़ी दिस सेहो चला दियअ। ई काज ततबा चालाकी आ मंद गतिए करए जे बहुतो दिन तक हमरा लोकनि केँ ओकर कपट आ धृष्टïताक पतो नहि चलल। बहुतो दिन बाद जखन हमर आँगनसँ तरकारी तोडय़ बाड़ी गेली तऽ हुनक ध्यान एहि दिस गेलनि। ओ चुपचाप आबि हमरा कहली मुदा हम कोनो ध्यान नहि देलियै। धीरे-धीरे ओ हमरा बाड़ी सँ साग-सब्जी सेहो तोडय़ लागल। एहि पर ओकर घरबारी आ हमरा आँगनबारी मे उकटा-पैंची, गारि-गलौज सेहो होमय लागल। मुदा हम हरदम अपने कनियाँ के बुझा-सुझा चुप करा दैत रहियैन्ह। असल मे कारी के घराड़ी डेढ़ क_ïा मे छैक जखनकि अहाँ सबहक आशीर्वाद सँ हमर घराड़ी साढ़े-तीन कट्ठा मे अछि, जाहि मे पछुलका करीब एक क_ïाक बाड़ी के हम तीमन-तरकारी वास्ते साग-सब्जीक हेतु उपयोग करैत रही। कारीयो करीब दस-बारह धूर बाड़ी लेल छोडऩे रहय। एक दिन हम तरकारी लेेलबाड़ी गेलौं, तऽ कारीक बेटा हमरा रोकि देलक जे ओकर हिस्सा मे छैक। हमरा बड़ अजगुत लागल। अपने सँ हम कोबी रोपने रही। ओकरा डाँटि जखन हम ध्यान सँ बाड़ी देखल तऽ आश्चर्य मे पडि़ गेलौं, अपन बाड़ी ओकर बाड़ी सँ कनि छोटे बुझना गेल। हम ताज्जुब मे पडि़ गेलौ। हम एहि पर सोचैत रही कि कारी अपन बेटा संग आएल आ हमरा हाथ सँ कोबीक छत्ता छीन गारि देमय लागल। उकटा-पैंची, धक्का-मुक्की सँ कपरफोड़ीक स्थिति आबि गेल। खैर, लोकक हस्तक्षेप सँ तत्काल मामिला शांत भेल आ तय भेल जे घराड़ीक नापी भऽ जाय। अमीनक नाम पर हम कहल जे कारी जकरा मंजूर करए सैह हमरो मंजूर होयत, कारण हम तऽ आश्वस्त छलौंहे।
कारी कामति एगो अमीन ताकि आएल। ओ अमीन नेंगड़ा नगेंद्र यादव छल, एक नंबरक बेईमान आ पेंचिल। भरि इलाका मे बदनाम। खैर, जखन ओ आबिए गेलै आ हम जुबान दऽ चुकल रहियै तैं चुप रही गेलौं। नापी शुरू भेल तऽ हम घर आबि गेलौं, कारण पूरा विश्वास छल जे अमीन किछो करए कारीक डेढ़ क_ïा के दू क_ïा तऽ नहिए बना देतै। मुदा ई की? ओ नेंगड़ा तऽ पूरा टोल आ कि गामेक नक्सा बदलि देलकै।Ó ई कहि ओ कनि काल लेल चुप भेलाह। हम बड़ीकाल धरि चुपचाप सुनैत रही मुदा उत्कण्ठा आब बलवती भऽ गेल। उत्सुकता सँ पूछलन्हि, 'से की मटरु कामति, अहाँ दुनू गोटेक नापी मे गामक नक्सा केना बदलि गेल?Ó तावत ध्यान आएल जे एते काल धरि हम चाहक लेल सेहो नहि कहलियैक अछि, आँगन मे चाह लेल कहि हम पुन: उत्सुकतापूर्वक मटरु कामति दिस ताकल मटरु कामति बजलाह, 'आ की कहू, ओ अमीन तऽ सबहक टीक एक-दोसरा सँ बान्हि देलकै। हमरा बाड़ी आ अँगना तक कारी कामति के हिस्सा मे पडि़ गेल। हमर दलान बाड़ी बनि गेल आ सरकारी पक्की रास्ता आ ओहि कातक मास्टर साहेबक घर मे बाकी जमीन ठेल देलक। कारी यादवक वर्तमान घराड़ी घुरन बाबूक हिस्सा मे पडि़ गेलन्हि आ घुरन बाबूक ...... कत्ते धरि कहूँ ओ तऽ सबके विस्थापित आ पुन: स्थापित करबाक भाँज लगा देलकै। आब तऽ चारु कात सँ हड़बिड़ो मचि गेल। हम अमीन के कहलयै, जे बलू अहाँ नापी कएलौं हँ कि जमीनक अदला-बदली।Ó ई सुनिते नगेंद्र यादव भड़कि उठल, 'तऽ की हम बेमानी कीया है, जकर जत्तअ हिस्सा है, जमीन है, घराड़ी है से स्पष्टï कीया है। कड़ी पकड़बा काल घर मे जा कऽ बैसि गिया आ आब ओकालत झाड़ता है। अगर हमरा पर विश्वास नहीं था तो हमको बुलाये काहे। हमरा फीस दो हम चलते हैं, अपने से नाप लेना और सुनि लो, कोनो मर्दक बेटा हमर नापी को गलत नही साबित कर सकता है।Ó ई कहि ओ अपन ताम-झाम समटअ लागल। यहि नापीक बाद मास्टर साहेब आ घुरन बाबू सभ अपन-अपन अमीन मँगौलाह। मास्टर साहेबक अमीन हमर घराड़ी कारी कामति के घर के दफानैत आँगा बढ़ा देलक तऽ घुरन बाबूक अमीन कारीक घराड़ी दफानबाक ब्यौत लगा देलकै। आब तऽ बुझू पूरा गामे एकर लपेट मे आबि गेलै। लाठी-भाला सभ निकैल गेलै। अपन हिस्सा छोड़बा लेल कियो तैयार नहि मुदा दोसरक जमीन हड़पबा लेल सब तैयार।ÓÓ तावत चाह आबि गेल। चाहक चुस्की लैत हम पूछलयन्हि, ऐना किया भेलैक। गामक सीमा-चौहद्दी तऽ होयबै करतैक ने, खाता-खेसरा सँ तऽ सभ स्पष्टï भऽ जयतैक।Ó ओ कहलाह, 'ओ सभटा अमीन सभक धुरफंदी छलैक, सभक देखा-देखी हमहुँ एगो अमीन बजाओल। अबितैं ओ बाजल, 'ककरा-ककरा मे अहाँ के जमीन निकालि दें से पहिने कहि दीजिएÓ फेर कनि मुस्कियाइत अर्थपूर्ण अंदाज मे ओ कहलक, 'कनि हमरो ध्यान रखिएगा, तऽ हम चारु कात अहाँ के जमीन निकालि दूँगा। ओ मूर्ख अमीन सभ की नापेगा हमरा सामने, ओ सब तऽ हमरा सामने बच्चा है, हमर कड़ी पकड़ैत-पकड़ैत ओ सभ अमानत सीखा है। ककरो मे हिम्मत है कि हमर नापी को टस से मस कर दे।Ó ई सुनितै अवाक भऽ गेल रही। हमहुँ अमीनक एहि लीला पर अचंभित रही तथापि पुन: हम सवाल ठाँढ़ कएलयन्हि, मुदा कोनो सीमा, चौहद्दी, खाता-खेसरा ...... Ó बात खत्म भेला सँ पहिनेहि मटरु कामति खौंझा के कहला, 'की रहतै सीमा-तीमा। पहिने टोलक ईनार चिह्निïत रहै, मुदा घर ही चापाकल के प्रचलन मे ओ मसोमत जेंका भऽ गेल छल। फेर बुटाय बाबू जखन पक्का घर बनबऽ लगला तऽ पहिने तऽ ईनार भड़बा लेला फेर ओहि पर अपन भनसा घर ठांढ़ कऽ देला। चूँकि ईनारक प्रयोग नहि होय तैं कियो खास विरोध-प्रतिरोध नहि केलकै। आब के जा कऽ हुनका भनसा घर तोडि़ ईनार ताकबा लेल कहतैन।Ó ई कहि मटरु कामति चाह खत्म कऽ खैनी चुनाबऽ लगला। एहन समस्या सँ प्राय: प्रत्येक गाम प्रभावित अछि तैं कनि काल धरि हमहूँ चुप रहलहुँ फेर पूछलयन्हि, 'तऽ अंतत: की भेल नापीक परिणाम, मामिला कोना सलटल?Ó खैनी मुँह मे दैते मटरु कामति जोश मे आबि गेलाह, 'कपरफोड़ी करितौं पूरा गाँव सँ एहि सँ नीक छल अमीन-वमीन बिसरि अपने कलेज पाथर बना कारी सँ समझौता क लीऽ।Ó मुदा सरकार, एकर बाद तऽ बुझिए जे अतिक्रमण आ अमीनक लीला देखबा हेतु हमहुँ फाँड़ बन्हि लिए। तकर बाद तऽ आम लोक केँ के कहए सरकारीओ जमीनक जे-जे लीला-देखा से की कहेँ आओर कत्तअ तक कहेँ। लोकतऽ जमीने गायब कर दीया है, जत्तअ जमीन है ओत्तए नक्सा नहि जत्तअ नक्सा है ओ जमीने अलोपित भऽ गिया है।Ó फेरो हमर उत्कण्ठा जागल, पूछलन्हि, से की मटरु कामति, कनि फरिछा के कहुँ ने?Ó आ की कहू, सिर्फ दू चारिटा उदाहरण देते हैं,
मधुबनी शहर के बीचोबीच दूटा केनाल है। दुनू केनाल को कुछ लोगो ने देफाइन लिया, कत्तेको बेर जाँच-पड़ताल हुआ मुदा सबटा बेकार भऽ गिआ, मौनिसपिलेटी सँ जगह का नक्से गायब भऽ जाता है असलिए काल मे। सरकारी अमीन प्राइवेट पार्टी सँ पैसा लऽ कऽ चुप भऽ जाता है। बड़का-बड़का मकान बनि गिया, बाढि़-बरसात मे लोकक बाड़ी-झाड़ी लोकक आँगन-दुवारि भर जाता है, पानी निकलने का नाला तक गायब भऽ गिया मुदा सरकारी नक्से हेरा गिया है। के की कऽ सकता है, मौनिसपिलेटी बला साहेब कहते हैं, 'तुमको बड चैँक है, नक्सा लऽ आओ खोजि के तखन देखो हम केना चुप रहता हूँ?Ó
आब अहीं कहिए जे नक्सा सरकारी ऑफिस मे नही है उसे कीया कबाड़ी के दोकान मे ताका जाएगा? मधुबनी शहरक रास्ता घटता जाता है और सड़क पर दोकान बढ़ता जाता है। मुदा सरकार, दरभंगा मे तो जमीन गायब भऽ गिया है। ललित बाबू विश्वविद्यालय का कतेको एकड़ जमीन कत्तअ हेरा गिया है, ककरो पते नही है, दरभंगा नगरपालिका अपन हेराया जमीने कऽ ताकबाक लटर-पटर मे पड़े बिना अलगे से जमीन खरीदने का विचार कर लिया। जौं सरकार ओहो जमीन हेरा गिया तऽ कतेक जमीने खरीदता रहेगा। हम तऽ जखन एहन-एहन जमीनी लीला देखा तऽ सोचा भने हम दस धूर कारी को दे दिया नहि तऽ अमीन सब तऽ हमर बाप-दादा का गामे हेरा देबाक चक्रचालि चला था। हमरा चुप देखि ओ पुन: बजलाह, पुर्णियाँ, मे अवैध लोक वैध जमीन कब्जा लिया, सरहसा नर्क बनि गिया, समस्तीपुर-मुजफ्फरपुर मे जमीन हड़पो आंदोलन तऽ तेना चला है कि ललला झंडा बला का लाल आंदोलनो ओकर सामने कारी पडि़ गिया। लाल झंडा बला सब राजक जमीन तक पड़ धावा बोलना चाहा था दरभंगा मे। हमरा तऽ लगता है कि दू-चारिटा सरकारी अमीन अगर प्राइवेट रूप सँ बहाल कऽ लिया जाय तऽ पूरा शहर के जमीन पर कब्जा कीया जा सकता है। सरकारी जमीन हेराता रहेगा प्राइवेट प्रापर्टी बढ़ता रहेगा। है न ई लाभक सौदा?ÓÓ ओ हमरे सँ पूछि बैसलाह। हम चुप रही झंझारपुर स्टेशन लऽगका अतिक्रमण हाले मे देखने रही, बहुत रास दृश्य आँखिक आँगा नाचि उठल।
हमरा चुप देखि मटरु कामति व्यंग्य कएला, 'अहाँ तँ सुनिए कऽ चुप भऽ गिये तखन सोचिए जकरा जमीन ताकवा के पीड़ा उठाना है ओ की करेगा? तैं ओ हाथ-पैर बान्हि आँखि बंद ककऽ चुप भऽ गिया है। फेर एही चुप्पी सँ तऽ अर्थक प्राप्तियो भऽ जाता है, मामिला उठेला सँ बड़का-बड़का आ पाई बला लोक सँ अराडि़ के ठानेगा? मिथिला का भलमानस आम लोक चुप रहकर अपन भलमानसी का परिचय दे रहा है। कियो किछो करे भलमानसी नहि छूटना चाहिए। मटरु कामति अचानक राष्टï्रीय आ अंतर्राष्टï्रीय चिंता सँ अपना के जोड़ैत बजलाह, 'सरकार, हम सोचैत छी जे राष्टï्रपति भवन या प्रधानमंत्री आवास कहियो जमीनी विवाद मे आबि जाय आ एत्तुका अमीन नपाई मे जाय तऽ की होगा? प्रधानमंत्री को तो सात रेसकोर्स सँ सात कोस दूर जाय कोनो रेस का कोर्से ने 'ज्वाइनÓ करना पड़ेगा।Ó हुनक एहि तर्क पर किछु हँसी सेहो आएल मुदा जामय हम किछु बाजी मटरु कामति पुन: गप्पकेँ नव मोड़ दैत बजलाह,
'पाकिस्तानक संग तऽ भारत झूठे का सीमा-विवाद का ढ़ोंग अलापता है, अरे मैं तो कहता हूँ एत्तअ सँ चारिटा अमीन भेज दो जमीन नापने, मियाँ शरीफ शराफत बिसरि जाएगा आ कड़ी पकड़ते-पकड़ते जनरल मुशर्रफ, जेनरल आदमी जेकाँ अपसियाँत भऽ जाएगा। सोचेगा कराँची बचावेँ की इस्लामाबाद? सबटा सीमा विवाद एक्के बेर मे खत्म बुझिए। आओर पाकिस्तानक हाल देखि चीन पहिनेहि सीमा बला सब झंझट सँ भाग जाएगा और कहेगा हमको मिथिला के अमीन से बचाओ, चाहे आधा चीनीए किएक नहि फाँक लो। लेकिन हमर बात के बुझता है? बिना मतलब का विवाद-विवाद करता रहता है अप्पन सरकार।ÓÓ
ई कहि एकाएक ठाढ़ भऽ गेला मटरु कामति। कहलनि, 'एखन चलैए छी फेर भेंट होयत।Ó ई कहि अपन यायावरी डेग बढ़ौने चलि गेलाह मटरु कामति आ हमरा ओहि ठाम छोडि़ गेलाह जत्तअ अपनो जमीन असुरक्षित बुझना जाय लागल। जमीन ने हेराई अछि आ ने गायब होइत छै, ओ तऽ स्थान परिवर्तित सेहो नहि कऽ सकैत अछि तथापि अनादिकाल सँ सबसँ पैघ झगड़ा आ अराडि़क जडि़ बनल अछि। समरसता, बंधुत्व, संबंध सब खत्म भऽ जाइत छैक एकर पाँछा आ एक दिन आदमी सेहो खत्म भऽ जायत अछि मुदा नहि जाइत छै जमीन ककरो संगे। एहि ठाम रहि जायत अछि। शायद अगिला पीढ़ीक लोककेँ संबंधक परीक्षा लेमए। तऽ की मटरु कामतिक व्यथा हुनक व्यक्तिगत छन्हि? के सोचत एहि मे नुकायल वेदना केँ आ सेहो कहिया धरि?

बुधवार, जुलाई 22

मधुश्रावणी

मिथिला गौरवमयी संस्कृतिक इतिहास अपन इतिहास अपन आॅचर मे अनेको लोक पर्व के समेटने अनुपम लोक गाथाक सनेष दैत रहल अछि। एहि लोक पर्वक कड़ी मे श्रावण मास मे नव बिबाहित द्वारा मनाओल जाय बला पावनि अछि - ‘मधुश्रावणी’। ‘मधुश्रावाणी’ मुख्यतया मिथिलांचलक ब्राह्मण ओ कर्ण-कायस्थ परिवारक नव विवाहित स्त्री द्वारा अपन सुहागक रक्षा हेतु मनाओल जाइत अछि। ओना आब आनो वर्गक स्त्री लोकनि कँ एहि पावनि मे रूचि बढ़लनि अछि।
‘मधुश्रावणी’ श्रावण मासक कृश्ण पक्ष चतुर्थी कँ प्रारंभ होइत अछि आ षुक्ल पक्ष तृतीया कऽ समाप्त होइत अछि। मोटा-मोटीश्एक पक्ष धरि चलय वाला ई पावनिक मनोहारी वातावरणक परिचायक थिक। एहि पावनिक आकार्शक ओ व्यवहार अनुपम अछि। ई पावनि नवविवाहिता अपन नैहर मे मनबैत छैथि, लेकिन पावनिक अवधिक कपड़ा-लत्ता, भोजन ओ पूजा सामग्रीक प्रयोग सासुरेक कएल जाइत अछि। एहि हेतु नवविवाहिताक सासुर सँ भारक रूप मे सब वस्तु-जात हुनक नैहर पठाओल जाइत छन्हि। एहि अवसर पर मिथिला मे भार ओ भरियाक दृष्य मनोहारी लगैत अछि।
ओना तऽ ई पावनि विधिवत श्रावण कृश्ण पंचमी सँ प्रारंभ होइत परन्तु एकर विध चतुर्थीएँ सँ प्रारंभ भऽ जाइत। एहि दिन सँ नवविवाहिता लोकनि अरबा-अरबानि खाईत छथि। साँझ मे सजि-धजिकऽ सखी-बहिनपाक संग विभिन्न फूलबाड़ी सँ फल, फूल पात, जकरा ‘जूही-जाही’ कहल जाइत अछि, लोढ़ि कए अपन डाली मे सजा कऽ गीत गबैत अपन घर अबैत छथि। ई क्रम पूजा समाप्तिक एक दिन पहिने धरि चलैत अछि। पंचमी दिन सँ सासुर सँ पठाओल साड़ी-लहठी, गहना आदि पहिर व्रती पूजाक तैयारी करैत छथि। एहि पावनि मे मुख्य रूप सँ गौड़ (गौरी) एवं नागक पूजा होइत अछि।
एहि पूजाक लेल सबसँ पहिने एकटा कोबर बनाओल जाइत अछि अथवा घर मे विवाह मे कोबर रहैत ओतय पूजाक हेतु कलष पर अहिवातक वाती प्रज्वलित कएल जाइछ। सासुर सँ पठाओल हरिदिक गौड़ आ एकगोट नैहरक सुपारी, लग मे मैनाक पात पर धानक लावा राखि ओहि पर दूध चढ़ाओल जाइत अछि। बिसहारा जो गौड़ीक अतिरिक्त उज्जर फूलसँ चन्द्रमाक पमजा सेहो कएल जाइत अछि, मुदा गौरीक पूजा सिन्दुर ओ रंगक फूल सँ होइछ।
‘मधुश्रावणीक’ अरिपन मुख्यरूपें मैनाक दूटा पात पर लिखल जाइत अछि। जतय व्रती बैसिकऽ पूजा करैत छथि आ एहिक दूनू कात जमीन पर सेहो अरिपन बनाओल जाइत अछि। जमीन परहक अरिपन के उपर मैनाक पात राखल जाइत अछि। बायाँ कातक पात पर सिन्दूर आ काजर सँ एक आंगुरक सहारा लय एक सौ एक सर्पिणीक चित्र बनाओल जाइत अछि, जे ‘एक सौ एकन्त बहिन’ कहाबैत छथि। एहि मे ‘कुसुमावती’ नामक नागिनक पूजाक प्रधानता अछि। दायाँ कातक पात पिठार सँ एक सौ एक सर्पक चित्र सेहो एक्के आुगंर सँ बनाओल जाइत अछि, जकरा ‘एक सौ एकन्त भाई’ कहल जाइत अछि, एहि मे ‘वौरस’ नामक नागक पूजा मुख्यरूपें होइत अछि। एहि पावनि मे मैना पातक उपयोग एहि दुआरे कएल जाइत अछि, जे पुराण सब मे कहल गेल अछि कि हिनक पालन पोश्ण एहि मैनाक पातक बीच होइत छन्हि। संगहि मैना पातक रासायनिक गुणक कारणें एकता वषीकरण षक्तिक स्रोत सेहो मानल जाइत अछि। ताहिं मिथिला मे कईक मौका पर मैना पातक व्यवहार होइत अछि आ सुहागिन काजर आ सिंदूर धारण करैत छथि।
पूजाक अवधि मे षिव-पार्वतीक विभिन्न कथा सेहो कहल जाइत अछि। जाहि मे पुमुख अछि - ‘विहुला मनसा’, ‘मंगला गौड़ी’, ‘विश्हारा’, ‘पृथ्वी जन्म’, ‘सीता पतिव्रता’, ‘उमा पार्वती’, ‘गंगा-गौड़ी जन्म’, ‘कामदहन’, ‘लीली जन्म’, ‘बाल बसंत’ आओर ‘राजा श्री करक क कथा एहि तरहे सबदिन मोर मे पूजा होइछ, कथा होइत आओर साँझ कए जूही-जाही लोढ़वा मिथिला मे जतेक पर्वत संग लोक गीतक प्रमुख स्थान अछि तंे एहि पावनिक अवसर बिसहारा आ गौरी गीतक प्रचलन अछि।
श्रावण षुक्ला पक्ष तृतीया ताहि दिन मधुश्रावणी होइत अछि ओहि दिन वर पुनः नवविवाहिता के सिन्दूरदान करैत छथि, जकरा तेसर सिन्दूरदान कहल जाइत अछि। (एहिसं पहिने वियाहक राति पहिल बेर आ चार दिनक बाद चतुर्थीक मोर मे दोसर बेर सिन्दूरदान होइत छेक) तें ई तेसर सिन्दूरदानक पर्व मिथिलांचल नारी संस्कृतिक परिचालक थिक। संगहि सासुर सँ पठाओल गेल दीपक टेमी सँ विधकरी व्रती के दागैत छथि। टेमी सँ दागलाक बाद फोंका मेनाई गुमा माल जाइत अछि। पतिक दीर्घजीवनक मंगलकामना करवाक सब सँ विषिश्ट पर्व मधुश्रावणी मैथिल ललनाक समपिण एवं सहिश्णुता क कामना तथा निश्ठा एवं संस्कृतिक परपराक प्रति प्रेमक प्रतीक थिक।

मंगलवार, जुलाई 21

मनोरंजन बहाने समाज किम्हर?

अजुका समय मे जकरा हम सब आधुनिक कहैत छियैह, सभ गोटे केँ भागम-भागी लागल रहैथ छन्हि। सभ किओ अपना केँ तथाकथित आधुनिक कहाबय लेल बेहाल रहैत छथि। बेसी सँ बेसी अर्थ कोना संचय कय सकी? इएह भागम-भागी के मूल मे रहैछ आ एहिक लेल अफस्याँत रहैत अछि। एहन समय मे फुर्सत के क्षण अबितै लोक अपन रुचि आ औकातिक हिसाबे मनोरंजनक साधन ताकि लैत अछि। किओ सिनेमाघर दिश रुख करैत छथि तऽ किओ सैर-सपाटा लेल जाइत छथि। किओ एकांत मे कतओ बैसि कर्णप्रिय मधुर संगीत सुनब पसिन्न करैत अछि तऽ किओ पोथी पढ़ब, ओहिठाम किछु गोटे अप्पन लोकक संग समय बितायब। सभक अलग-अलग विचार होइत छन्हि, अलग-अलग मनोरंजनक साधन।
केबुल संस्कृति एहन ने पइठ बना लेलक, जे सभ किओ एकरे दिश्ï मुंह बौने ठाढ़ रहैत अछि। खास कय कऽ घरेलू महिला आ नेना-भुटकाक सबसँ प्रिय मनोरंजनक साधन भऽ गेल अछि टेलीविजन ताहू मे केबुल संस्कृति। आई-काल्हि एतेक ने निजी टी।वी. चैनल भऽ गेल छै, जे कोनो ने कोनो चैनलक कार्यक्रम लोक के पसिन्न होइते टा छन्हि। किनको धारावाहिक तऽ किनको सिनेमा, किओ खेल-कूद देखैत छथि तऽ किओ पॉप-संगीत, कहबाक तात्पर्य ई जे सभहक पसिन्नक साज-समान एहि निजी चैनल पर रहैत छन्हि। ई भिन्न कथा जे एहि मनोरंजनक पाछाँ हमर समाज किम्हर जा रहल अछि, चिन्तन नञि भऽ रहल छै। निर्माता सिनेमा, धारावाहिक बनाऽ आ प्रसारण करबा अप्पन धनक उगाही करैत छथि तऽ लोक अपन मनोरंजन। सामाजिक मूल्यक बरू ह्रïास होऊ, एकर चिन्ता ककरा छैक, के तकैत अछि सामाजिक शिष्टïाचार आ सरोकार? ओ समय बीति गेल जखन लोक राष्टï्रीय प्रसारण मे समाचार देखैत आ सुनैत छल, नीक-नीक ज्ञानवद्र्धक धारावाहिक कार्यक्रम देखैत छल। अजुका बाजारवादी संस्कृतिक कारणेँ एकर बुझु जे भुस्सथरि बैसि गेलै।
आइ ई विमर्शक विषय अछि जे जाहि धारावाहिक किंवा सिनेमा केँ हमर महिला समाज आ-नवतुर देखि रहल अछि ओहि सँ ओकर मानस पटल पर केहन चित्र अंकित हएत। 'वसुधैव कुटुम्बकम्ïÓ केँ तऽ हम सब पहिने सँ बिसरल जा रहल छी, जकर परिणाम अछि संयुक्त परिवार टूटि-टूटि कऽ एकाकी व्यक्तिगत परिवार बनि रहल अछि। किछु दिन पहिने अप्पन लोक सँ तात्पर्य होइत छल-माय-बाप, भाई-बहिन, कनियाँ, धिया-पुता दर-दियाद आ निकट सम्बन्धी सँ परञ्च बदलैत समयक संग 'अप्पनÓ सँ अभिप्राय होइत अछि—स्वयं, कनियाँ आ धिया-पुता। एखन निजी चैनल पर किछु एहन-धारावाहिक देखाओल जा रहल अछि जाहि मे अपन समाजक नैतिकताक कतओ दरसि नञि छैक। ई धारावाहिक सभ घरेलू महिलाक बीच काफी लोकप्रिय भऽ गेल अछि। ओ जरूरी सँ जरूरी काज त्यागि देतीह मुदा धारावाहिक केँ, किन्नौ नञि! एहि धारावाहिक सभक माध्यमे कि परोसल जा रहल अछि, पत्नी के पति पर शंका, पति वा पत्नीक विवाहेतर संबंध, रखैल कोना राखी, खूनक संबंधक कोनो लिहाज नहि, अपन स्वार्थ सिद्धिक गप्प हुअए तऽ किनको धुतकारि दी चाहे ओ पति, बेटा, माय, बाप, पत्नी अथवा किओ आन हो, धन कोनो रूपेँ प्राप्त हुअए लेकिन हुअए एहि मे कोनो हर्ज नहि। किछु दिनक बाद पति नहि अनुकूल हुअए तऽ बदलि लिअ, पत्नी प्रतिकूल हुअए तऽ पत्नी। एकटा सँ मोन नहि तृप्त हुअए तऽ दोसरो करबा मे धरिदोख नहि। अप्पन कोनहुटा इच्छा के दमित नहि करी चाहे ओ अर्थ वा कामवासनाक कियैक नञि हुअए। एहि मे कोनो संबंध वा उमरि के देखब जरूरी नहि। कि केबुल संस्कृति मनोरंजनक माध्यमे समाज मे इएह संदेश दय रहल अछि?
महिला सभक बीच लोकप्रिय किछु धारावाहिक क चर्चा कय सकैत छी—'कुसुमÓ, 'क्योंकि सास भी कभी बहू थीÓ, 'कसौटी जिंदगी कीÓ इत्यादि। 'कुसुमÓ मे मुख्य किरदार कुसुम अछि, जकर पहिल वियाह अभय सँ होइत छै, लेकिन अभय प्रतिकूल बुझना गेला पर कुसुम सिद्धार्थ सँ वियाह कयलक। ओतय अभय दोसरा सँ। सिद्धार्थक माय आ सत्तमाय देवांशी आ रीमा दुनू मिलि कय जमीन-जायदाद लेल एहन ने चकर-चालि चलल कि ओ अपन बेटा सिद्धार्थ आ पुतोहु कुसुम के घर सँ निकालि देलक। 'कसौटी जिंदगी कीÓ मे प्रेरणा राहुल बजाजक द्वितीय ब्याहता अछि। एकर संतान कूकी आ विशाखा अछि। विशाखा के अपन सतमाय प्रेरणाक एकाकी जीवन देखल नहि जाय छै, ताहिं ओ मायक दोसर बियाह अनुराग सँ कराबैत अछि। कि हमर समाज एकरा स्वीकारत जे एक बेटी अप्पन मायक दोसर वियाह कराओत? एहि पर सोचनाहार किओ नहि?
'कहानी घर-घर कीÓ मे केंद्रीय किरदार तुलसी आ मिहिर अछि। हिनक घर-संसार सही रूपेँ चलैत छल, परञ्च मिहिरक विवाहेतर संबंध मदिरा सँ रहैछ। जहिया एहि गप्पक जानकारी तुलसी के भेलैक, घर मे केहन हरबिडऱो उठल हएत, सहजेँ अनुमान्य अछि। कि ई धारावाहिक इएह सनेश दैत अछि जे विवाहेतर संबंध राखी, नुकाय कऽ राखी, जहिया जगजियार हेतैक, देखल जेतै? कि एकरा देखला सँ एहि संभावना के नकारि सकैत छी जे आबए वाला नवतुर रखैल कोना राखी, एकर तरी-भिठी सिखि रहल छथि? एहने आर कतोक कार्यक्रम अछि जे समाजक मध्य अपन नहि जानि कोन सनेश परोसि रहल अछि आ हमर आधुनिक कहाबय वला समाज ओकरा बिनु जचने-परखने आत्मसात कय रहल अछि। एहि संदर्भ मे मौन पड़ैत अछि, वल्र्डकपक दौरान भारत-न्यूजीलैंडक मैच। हरेक घर मे सभ किओ संगे-बैसि एहि मैच के देखि रहल छलाह, माय-बाप, भाय-बहिन, बेटा-बेटी सभ किओ जे जहाँ छल सभ अपन-अपन टेलीविजन सेट पर मैच देखि रहल छल। ओहि मैचक दौरान 'एक्स्ट्रा इंनिंग्सÓ जे सैट मैक्स चैनल पर प्रसारित कार्यक्रम छल, मे मंदिरा बेदीक कपड़ा ककरा नहि आकर्षित कयलक। कहबाक लेल पहिरने छलीह साड़ी-ब्लाउज, मुदा ब्लाउज एतेक खुलल जे वक्षक अधिकांश हिस्सा ओहिना देखाइत छल, साड़ी एतेक पातर आ पारदर्शी जे 'ओहिÓ मे बाधक नहि छल।
यदि मंदिरा बेदी विदेशी रहितथि, तऽ नाङटो रहितथि तऽ कोनो बात नहि। लेकिन एकटा भारतीय महिला भऽ एना! अनसोहत्तगर लगैछ। समाज पर एकर कि असरि हएत? नञि जानि मनोरंजनक बहाने समाज किम्हर जा रहल अछि? कि जतबा हम सामाजिक मूल्य के बिसरि जाइ आओर जतबा नाङट रही ओतबा आधुनिक आ एडवांस कहायब?

रविवार, जुलाई 19

सिनेहक पियासल

हम एक सिनेहक पियासल छी,
अपनेक दृष्टिï कृपा क हुअए।
एहि आसक संग निरासल छी,
हम एक सिनेहक पियासल छी।
ई आसमान केर नील रंग,
छू-छू कय करय पुरवा वसंत।
संग नीर रहल नहि एक रंग,
हम एहेन उमंग आसल छी।
हम एक सिनेहक पियासल छी।।
जे आसो पर त जीवतैथ जन,
हिनकर किछु अस्तित्वो रहितनि।
देखू विनाश के अएल घड़ी,
चाही जँ बचे अस्तित्व अपन।
त फेर अवतरित होय जगत मे,
भरू स्वच्छ विचार अपन।

- कंचन

शनिवार, जुलाई 18

ज्ञान-त्रयोदश

धारण करै जगत के, जनके, तकरे धर्म कहल जाइ छै।
जनहित धर्म, अधर्म अहित जन, धर्म पाप बूझल जाइ छै।।

नें राजा-राज, नें जाति-पात, नें धनिक-गरीबक वर्ग विभेद।
तकरे आदिम साम्यवाद, सतयुग के स्वर्णिम नाम कहै छै।।

धनुर्यज्ञ मे धनुर्भंग जे केलैन, तिनके राम कहै छै।
लंकागढ़ पर चढि़ जे गर्जल, तिनके सब हनुमान कहै छै।।

कुरूक्षेत्र के रणस्थली मे ज्ञान-मंत्र देलक से गीता।
'फाटू धरती पर जाइÓ कहि रानी पद त्यागल से सीता।।

सीता वनवासक अपराधे वान्हल चारू भाइ राम के।
वीर शिरोमणि तै दुनू बालक के, लव-कुश नाम कहै छै।

जाति-पातिके , उँच नीच के माध्यम पथ समेटि जे चलला।
'धम्मं, बुद्घं, संघं शरणं गच्छामिÓ के बुद्घ कहै छै।।

नें राजा नें राज रहल, से कहने माता-पिता जहले मे।
गर्भ, जन्म जहले मे जिनकर, तिनके सब श्रीकृष्ण कहै छै।।

सूई भरे उँट निकलतै तैयो धनिक ने स्वग-द्वारि मे।
कहइत-कहइत सूली चढ़ला, तिनके ईश-मसीह कहै छै।।

एक्को पाइ सूदि जे लेतै, से नैं मुसलमान भ सक ते।
कहने मक्का भले छोड़लनि, रसूल मुहम्मद लोक कहै छै।।

धीपस बालु कर्बला मे, जे बीर बहत्तरि नैं झुकला।
तैं 'चालीस शहीदÓ सभक अगुआ के हुसैन इमाम कहै छै।।

मजहब,जाति, अछूत-छूत, पूजा-नमाज के कात हटा।
सब मानव के एक बुझय जे, तकरे संत कबीर कहै छै।।

जे कमैत से खैत, जे करत काज से करत राज।
'दुनिया कें मजदूर एक होÓ उदघोषक के माक्र्स कहै छै।।

अस्त्र-शस्त्र कें त्यागि पकड़लनि, सत्य, अहिंसा के हथियार।
स्वातंत्र्य समर कें सेनापति, गाँधी के अमर शहीद कहै छै।।


- भोगेन्द्र झा

शुक्रवार, जुलाई 17

मैथिलि फकरा

१. धनक आंगन पुआरे चिन्हल
२. नाच नहि आबय आंगन टेढ़
३. बारीक पटुआ तीत
४. माय करै कुटान-पीसान, बेटा कें नाम दुर्गादत्त
५. अध्जल गगरी छलकत जाए
६. सावन जनमल गीदर, भादव आयल बािढ, कहलक कहियो ने देखल
७. माय कहै मोर पूत सपूता, बहिन कहै मोर भैया जोरू बुझैय खसम क सबसं पैघ रूपैया
८. बाप बड़ा न भैया, सब सं पैघ रूपैया
९. माय ताकय अतरी, कनिया ताकय पोटरी
१०. जकर बड़की जिलाही तकर छोटकी भारे लागल खाय
११. सैंया सं छुटटी नहि, दिओर मांगे चुम्मा
१२. अघायल बक के पोठी तीत
१३. अपना लेल लल्ल, गोइठा बीचय चल
१४. अपन घरैता मछरी खेता, हमरा के कुरबुर कैता
१५. मांगि चांगि खाय, हुलासन काया
१६. अपन लेल मंगनू, दुआरे दरबेस
१७. खेनरा ओढि कय घी पीयब
१८. खिसियाल बिलाय ध्ुरकुर नोचय
१९. मोर मन मोर मन नहि पतिया, सौतिनक टांग दूनू झूलैत जाए
२०. पाथर परहक दूभि
२१. सभ धन बाइस पसैरी
२२. तीलक तार बनायब
२३. पहार ढहाब
२४. कोढिया उठता त पहाड़ उनटेताह
२५. ढाकक तीन पात
२६. भुसकौल विद्यार्थी के गत्ता मोट
२७. माय मरइहैं ध्यिा लेल, ध्यिा मरिहहै ब्याहता सांय लेल
२८. सब सखी झुमैर खेलै, लूल्ही कहैय हमहूं
२९. घर पफूटैय त गंवार लूटैय
३०. लडडू लरैय त झिल्ली झरैय
३१. तीन तिरहुतिया तेरह पाक, ककरो चुड़ा दही ककरो भात
३२. टिटही टेकल पहाड़
३३. ब्रहम सं बेसी छागर उताहूल
३४. चालनि दूसलैन सूप के जिनका सहस्त्र छेद
३५. अंध गांव मे कन्हा राजा
३६. ओझा लेखे गाम बताह, गामक लेखे ओझा बताह
३७. कन्हा कुकुर मारे तिरपित
३८. नर न झर पेटपफूला दिओर
३९. ककरो बोर-बोरे नून , ककरो रोटियो पर आपफत
४०. घर आंगन भौजी के छलछल करै ननदो
४१. बिना बजौने कोबर अयलौं, कनिया कहलक कतय अयलौं
४२. चोर चोर मौसओत भाइ
४३. झरकल मुंह झपने पाबी
४४. चोरक मुंह चान सन
४५. सूपक बैंगन
४६. धेबी के कुकुर न घर के न घाट कें
४७. बियाह सं विध् भारी
४८. अग्रसोचि सदा सूखी
४९. बात करी जानि क पानि पीबि छानि क
५०. चिलका कानैय त कानैय अपने नहि कानी
५१. सौ दवा एक संजम
५२. पेट बिगेराय मुरही घर बिगारेय बुरही
५३. जिदगर कनियां के भैंसुर लोकनिया
५४. ओझा खसला स्वर्ग सं, रूसला गामक लोक सं
५५. हाथी चलल बाजार, कुकुर भुकैय हजार
५६. अपन पैर काटि क परक यात्रा
५७. भूखलै मोन परैय कोबराक खीर
५८. अयसैन पाठ न पढलै पुत्ता अपने सिर बिसानी
५९. सूती खरतर पर सपना देखि नौ लाख कें
६०. पानि मे मछरी नौ-नौ कुटी बखरा
६१. सब दिन खैयहैं, पबनि ललैयहैं
६२. मुइने गुण कि परैने गुण
६३. कहबै नय त बुझतै कोना
६४. माघक कनियां बाघ
६५. पूत कपूत त का ध्न संचय, पूत सपूत त का ध्न संचय
६६. सोनरा के सेवने कान दूनू सोन, बनिया के सेवने छजल भरि नून
६७. ओल सनहक बोल
६८. अपन मुंह मियां मिठटू
६९. तरेगन तोड़ब
७०. तरेगन गिनब
७१. देसी मुर्गी बिदेसी चालि
७२. किरपीनी के दूना खर्च
७३. खीरा खा क पेनी तीत
७४. पहिरने ओढने कनियां-वर, निपने-पोतने आंगन घर
७५. सांझ प्राती भोर बसंत, तखनै बुझलौं गितगाइनक अंत
७६. बहिरा नाचे अपने ताले
७७. सस्ता गहूम, घर घर पूजा
७८. कनियां बरक झगड़ा, पंच भेल लबरा
७९. मियां बीबी राजी त कि करत काजी
८०. जायत नेपाल मुदा कपार जैत संगे
८१. हर बहय से खर खाय, बकरी खाय अचार
८२. बहैय बरद , हकमैय कुक्कुर
८३. सैंयक राज अखण्डराज, बेटाक राज मुंह तक्की, भायक राज दौड़-ध्ूप, जमायक राज अध्मदसा
८४. सड़ल गाय ब्राहमण के दान
८५. आमदनी अठन्नी खर्चा रूपैया
८६. अनकर ध्न पाबी त अस्सी मौन उनटाबी
८७. कि करै छी गप्प, दिओ लप्पे लप
८८. सैंय मान नै मान, कनियां खोपफ बान्ह
८९. भोज नै भात, हर हर गीत
९०. धरफारी वियाह कनपटियैं सिन्दूर
91. तेल जरै तेली कें, पफाटै मसालची कें
92. बाबा के बखारी ध्यिा के उपसा
93. सरलौ भुन्ना त रहू के दुन्ना
94. खस्सी के जान जाय, खबैया के स्वादे नहि
95. राजा दुःखी प्रजा दुःखी, जोगी के दुःख दूना
96. हंसि हंसि बाजैय नारी, तीनू कुल बिगाड़ी
97. कतबो रार पागि पहिनता , रारक रारे रहता
98. जे नै देताह राम , से के दैत आन
99. सैंय स पफुरसत नहि, दिओर मांगे चुम्मा

नोट: पहिल खेप मे केवल फकरा दय रहल छी, सौ मे एक कम। एहि कमी के जल्दीये पूरा कएल जाएत आओर समय-समय पर एकर प्रासंगिकता के सेहो फरिछाओल जाएत।

गुरुवार, जुलाई 16

हृदयकेर तार छिनायल

हुनका विदा होइते हमर घर द्वार छिनायल,
छोटे सनक संसार छल भकरार छिनायल।

हँसिते कटै छल बाट दूरक घाट सहज छल,
हुनका बिना जीवन सफर आधार छिनायल।

फूलय हमर उद्यानमे जे फूल अछि निर्गन्ध,
रस-रूप रचना, सभ ओकर आकार छिनायल।

दिन राति बिडऱो बीच हम औनाई छी सरिपहुँ,
मधु स्वप्नकेर मधुवातकेर आगार छिनायल।

भास पर चालित हमर छल डेग तँ निस्सन,
से कण्ठ, स्वर लहरी, हृदयकेर तार छिनायल।

केहनो कठिन संघर्ष हो अड़ले रही मुदा,
हुनके अभावमे हमर रसधार छिनायल।


नोट : ई रचना धरोहरि के अंतर्गत प्रकाशित कएल जा रहल अछि, जकर रचनाकार छथि साहित्य अकादेमी द्वारा पुरस्कृत स्व. सुधांशु शेखर चौधरी।

मंगलवार, जुलाई 14

लघुकथा / मनुक्खक माँउस

दू गोट व्यक्तिक मध्य शुरू भेल झगड़ा दू गुटक बीच झगड़ा आ मारि मे बदलि गेल। गप्पक तनातनी बढ़ैत-बढ़ैत लाठी, फरसा आ बन्दूक धरि पहुँचि गेल छल। उपर एकटा झमटगर गाछ पर बैसल दू टा कौटा ई दृश्य देखि रहल छल। बड़का कौआ अपना बच्चाक आँखि अपन पाँखि सँ मूनि देलकै आ कहलकै, 'ई मनुक्खक लड़ाई छै। एहिना लड़ैत-लड़ैत मरि जेतै। ई सभ नहि सीखि। हँ, जखन क्यौ एकटा मरि जेतै तँ दुनू गोटे भरि पेट माँउस खायब।

- सत्येंद्र कुमार झा

लघुकथा / मनुक्खक माँउस

दू गोट व्यक्तिक मध्य शुरू भेल झगड़ा दू गुटक बीच झगड़ा आ मारि मे बदलि गेल। गप्पक तनातनी बढ़ैत-बढ़ैत लाठी, फरसा आ बन्दूक धरि पहुँचि गेल छल। उपर एकटा झमटगर गाछ पर बैसल दू टा कौटा ई दृश्य देखि रहल छल। बड़का कौआ अपना बच्चाक आँखि अपन पाँखि सँ मूनि देलकै आ कहलकै, 'ई मनुक्खक लड़ाई छै। एहिना लड़ैत-लड़ैत मरि जेतै। ई सभ नहि सीखि। हँ, जखन क्यौ एकटा मरि जेतै तँ दुनू गोटे भरि पेट माँउस खायब।Ó

- सत्येंद्र कुमार झा

रविवार, जुलाई 12

कविता / आब नहि मजबूर

सूरजक ढलान पर
भोर सँ खटैत मजदूर
आब नहि अछि मजबूर
भ गेल छै आशाक संचार
भड़ैत अछि कल्पनाक उड़ान
फिफ्टी-फिफ्टी बाँटि देबैक।
आधाक मालिक हम
आ आधामे ओ सभ
देहक खून तँ सुखायल अछि हमरे।
तेँ आधामे आलू-दालि
पियाजु मिरचाइ
आ आधामे रघुआक संग
रधियाक दोकान मे
एक कटिया चिखनाक संग
राति भरि रहत बनल मतंग।।

- चंद्रमोहन झा 'पड़वा

शुक्रवार, जुलाई 10

लघुकथा / तालमेल

पुरूष नाम-यशक पाछाँ अपस्याँत, घरवाली घरक आर्थिक संकटक निवारण हेतु अर्थक पाछाँ अपस्याँत। पुरूष नव-नव रचनाक सर्जक, मुदा लिखबा लेल कागतोक घोर अभाव। पत्नी अर्थक उपार्जन हेतु सड़क पर सँ रद्दी कागत आ पुरान अखबार चुनि क आनथि आ पुरूष ओहिपर अपन रचना लिखथि। फेर ओकरा रद्दीवालाक ओहिठाम जा पत्नी बेचि आनथि। घरमे किछु पाई आबय लागल। दुनू ओहि पाइ्रमे अपन योगदान मानि संतुष्टï होथि।

- सत्येंद्र कुमार झा

बुधवार, जुलाई 8

कविता / खादी

उज्जर, खुरदुर कागज
कहबैत अछि 'बलौटिन पेपर
सोखि जाइत अछि सभटा रोशनाइ
एकरा मचोरला पर नहि निकलैत अछि
एको कुल रोशनाइ
नहि होइत अछि आंगुर कारी।

उज्जर, खुरदुर कपड़ा
कहबैत अछि खादी
सोखि जाइत अछि सभटा विकास आ रिलिफ
एकरा मचोरला पर नहि निकलैत अछि
एको गोटा केर 'आहÓ
भ जाइत अछि आंगुर घवाह।

'बलौटिन पेपरÓ कागज भइयो क
आम कागज नहि अछि
खादी कपड़ा भइयो क
आम कपड़ा नहि अछि
'बलौटिन पेपरÓ रोशनाई सोखला पर
भ जाइत अछि कारी
खादी विकास आ रिलिफ सोखला पर
भ जाइत अछि
उज्जर सं आर उज्जर धपधप।


- पूर्णेंदु चौधरी

सोमवार, जुलाई 6

संतति निग्रहक जिम्मेवारी नारिए पर किएक

आई काल्हि हमरा लोकनि जाहि समय सँ गुजरि रहल छी आ जाहि वातावरण मे अपन जीवन बिता रहल छी, तकरा पूर्णरूपेण आधुनिक ओ वैज्ञानिक कहल जा सकैत अछि। मुदा आधुनिकताक दौड़ मे एतेक आगू बढि गेलाक बादो आजुक तरक्की पसंद समाज मे स्त्री-पुरूषक आपसी मतभेद, मनमुटाव, वैचारिक असमानता, कलुषतापूर्ण व्यवहार आदि पहिने जकां अछि। वास्तविकता त ई थिक जे सैंय-बहुक प्रेम अर्थात दांपत्य जीवन मे सदिखन समरसता कायम नहि रहि पबैत अछि। चूंकि सैंय-बहु दुनूक दू तरहक मानसिकता होइत अछि, तैं कखनो काल आपस मे टकराव-तकरार स्वाभाविक थिक ।
चूंकि पत्नी पूर्णतया पति पर निर्भर रहैत छथि तैं प्राय: हरेक तरहक समझौता हुनकेटा करय पड़ैत छैन्हि। जेना संततिक संदर्भ मे देखल जाय, त स्पष्टï भ जायत। बच्चा के नौ मास धरि गर्भ मे रखबाक जिम्मेदारी पत्नीक। ओना ई प्राकृतिक आ दैवीय जिम्मेदारी थिक। पालन-पोषणक दौरान राति-राति भरि चिलका कें जागि कय सम्हारब पत्नीक कर्तव्य आ आओर जखन अगिला संतान नहि चाहि त सेहो दायित्व पत्नीये कें?
गर्भधारण करब वा प्रारंभिक पालन-पोषणक जिम्मेदारी नारी कें छैन्हि त ओ हुनक प्रकृति प्रदत्त शारीरिक संरचनाक कारणें। लेकिन गर्भधारण मे त पति-पत्नी दुनूक भागीदारी रहैत छन्हि। बिना एक-दोसरक परस्पर सहयोग वा इच्छाक बिना ई कथमपि सहज नहि, तखन संतति निग्रहक निर्णय मे दुनूक भागीदारी कियैक नहि? परिवार नियोजनक जिम्मेदारी नारीये पर कियैक थोपल जाइत अछि? एहि काज मे त पुरूष सहायक भ सकैत छथि। लेकिन ई होइत कहां छै? बहुत कम जगह ई देखल जा सकैत अछि जे पुरूष हलसि कय अप्पन एहि जिम्मेदारी के निभाबै छथि। दरअसल, गर्भनिरोधक अदौं सं महिलाक दायित्व बुझल जाइत अछि। पुरूष जतय एहि तथ्य कें गंभीरता सं नञि लैति छथि ओतय घरक बूढ़ दाय-माय, डॉक्टर, हित अपेक्षित सभ गोटे महिला सँ एहि काज मे पहल करबा क अपेक्षा रखैत छथि। नतीजा होइत अछि जे नारी एकरा परंपरा मानि वहन करबाक लेल प्रस्तुत होइत छथि। जँ देखल जाय त वैज्ञानिक अनुसंधान सेहो काफी हद धरि महिलाक लेल गर्भनिरोधक विकल्प बढ़ेबाक दिस अग्रसर भ रहल अछि। नसबंदी जकां पुरातन तरीका सं लय क गर्भाशय मे राखय वाला गर्भनिरोधक आ प्रात भेने खाय वाला गर्भनिरोधक गोली, सभ उपायक स्मरण कराबैत अछि जे गर्भवती होबा सं बचबाक जिम्मेदारी नारीये केँ छैन्हि।
कियैक पुरूषक जिम्मेदारी कोनहुं टा नहि? सरिपहुं जँ वास्तविकता कें ताकल जाय त पुरूष लग एहि गर्भनिरोधक बेसी विकल्पने नहि छन्हि। पहिल कांडोम आ दोसर नसबंदी। कांडोम एकटा सस्ता आ सरल साधन अछि, किंतु बेसी पुरूष एकर इस्तेमाल केनाय पसंद नहि करय छथि। जखन कि नसबंदीक संबंध मे सेहो कम दुविधा आ भ्रांति नहि पोसने छथि। जेना कि नसबंदी करोला सं पुरूषत्व मे ह्रास होइत अछि, शारीरिक दुर्बलता कें सामना करय पड़ैत छैक। मुदा डॉक्टरक मुताबिक ई सब कथू नहि होइत छैक। दोसर दिस नजरि देल जाय त महिलाक लेल लूप, डायफ्रेम या गर्भनिरोधक गोली कें लंबा समय धरि सेवन कएला सं हुनका कएह तरहक परेशानी कें सामना करय पड़ैत छन्हि।
मुदा आबय वाला समय मे ओ दिन दूर नहि, जखन पुरूष सेहो परिवार नियोजन मे अपन सहयोग दय सकताह। एहि जिम्मेदारीक विकल्पक रूप मे एकटा गर्भनिरोधक गोलीक आविष्कार कएल गेल। अनुसंधान एखनो जारी छै, भारत जल्दीये एहि काज मे सफलता पाबि लेत। ई हार्मोन आधारित तरीका होतए। एक ओट आओर तरीका अछि आर।आई.एस.यू.जी. (रिवर्सिबल इनहिबिशन ऑफ स्पर्म अंडर गाईडेंस) जकर प्रक्रिया आसान छै। ई दवाई इजेंक्शनक माध्यम सँ शरीर मे प्रविष्टï कराओल जायत, जाहि सं वीर्य मे मौजूद शुक्राणु निष्क्रिय भ जायत। ई दवाई नहि त वीर्यक बहाव के रोकत आ नहि एकर प्रभाव कोनो रूपे कामशक्ति पर पड़त। एहि समूचा प्रक्रिया मे कुल मिलाक दस मिनटक समय लागत। कोनहुं प्रशिक्षित चिकित्सक सं एहि काज के अंजाम धरि पहुंचा सकैत छी। ई दवाई एक घंटाक बाद अपन असरि देखेनाय शुरू कय दैत छै। अलग-अलग मामिला मे एकर असर 6 सं 15 साल धरि रहि सकैत अछि। संगहि संग एहि मे इहो खूबी छैक जे साल्वेंटक माध्यम सँ एहि दवाई के बाहर निकालि एकर प्रभाव के खत्म कएल जा सकैत अछि।
संतति निग्रह माने गर्भनिरोधकक पति-पत्नी दुनूक जिम्मेदाराी छन्हि। दुनू मे जिनका सहज बुझना जाइन्ह, संगहि जिनका गर्भनिरोधक के कोनो कुप्रभाव नहि पउ़ैत होइन्हि, एहि जिम्मेदारीक निर्वहन करबाक चाही। ई मानसिकता कि गर्भनिरोधन मात्र नारीयेक जिम्मेदारी छन्हि, आजुक मानसिकता आ वैज्ञानिक युग मे संकुचित दृष्टिकोणक परिचायक थिक।

- सुभाष चंद्र

रविवार, जुलाई 5

एकसर तरेगन

छल जेठ मास भिनसरक समय
नहि भेल छल सूर्यक उदय
हम आँखि मीडि़कें उठल रही,
अपन बाड़ी दिस-बढ़ल रही।
अंगनकाक अग्निकोण मे बाड़ी हमर
हम भिनसरे उठि गेलहुं ओम्हर।
हम ऊपर देखलहुं एक तरेगन,
स्थित अदि एकसरे मध्य-गगन।
ई अछिये ? सभ तरेगन भागि गेल,
तखन एकरा कथीक जिद्द लागि गेल।
की एकरा नहि छैक सूर्यक डर?
जे एखन धरि अछि ई आकाश पर।
ओ बड़ी काल धरि रहल,
सूर्य उगबा धरि रहल।
जखन सूर्य उगि गेलैक
एकरो इजोत मलीन भेलैक ।
जहिना एकसर तरेगन आकाश पर,
के कहि सकत टिकत कखन धरि।
तहिना एक-दू गोटाक प्रयास सं,
नहि भ सकत मिथिलाक कल्याण,
चाहे ओ त्यागी दौ किएक ने प्राण।
यदि कल्याण चाहैत छी मिथिलाक,
अछि आवश्यक सभक एकताक।

- हेमचंद्र झा

शनिवार, जुलाई 4

समाजक संकट

शरद अमावसकेर संध्यामे
सुदुक जैर अछि निर्बल कीट।
कहाँ जरै छै अधसर गहुमन
जे समाज केर संकट थीक।।

आन्हर आर बहीर जतय नृप
के देखतै आ सनतै बात।
आतंकक आदिके सुधिजन
कोन सान्हि धय भेल निपात।।

रहितै नहि अन्हार ककरो घर
नैंत नृपक जँ रहितै ठीक।
कहाँ जरै छै अधसर गहुमन
जे समाजकेर संकट थीक।।

जलचर, थलचर, व्योम, उभयचर
सभचर ताकि रहल आलोक।
अस्त-व्यस्त अछि उदय-अस्तधरि
भगजोगनीक भेल आलोप।।

चान, सुरूज त्यागल इजोत निज
ततबा आइ बनल तम ढीठ।
कहाँ जरै छै अधसर गहुमन
जे समाजकेर संकट थीक।।

लुत्तीभरि इजोत सए अग-जग
रहलै काटि अहुरिया आइ।
कानि रहलि चुलहा लग बैसल
सिदा बिना बहुरिया दाय।।

दूध बिना कामिनी कुच सूखल
मिझा रहल कत कुलकेर दीप।
कहाँ जरै छै अधसर गहुमन
जे समाजकेर संकट थीक।।

सूत सनक पातर आ तन्नुक
्रजतय आई लोकक संबंध।
चिन्तामे डूबल प्रवीणजन
कोना लोक स्वार्थें मे अंध।।

किछु कन्नारोहित अगबे
किछु घर गाबि रहल अछि गीत।
कहाँ जरै छै अधसर गहुमन
जे समाजकेर संकट थीक।।

- फूलचंद्र झा 'प्रवीणÓ

अथाह ई सागर

नहि बूझि रहल छी किए हम जीवि रहल छी,
जे फाटि चुकल केथरी किए सीवि रहल छी।

छल मनमे भेल, छूबि लेब सोझ अछि, चान,
हाथे बढय़बाक ताओमे हम लीवि रहल छी।

मरूभूमि बीच देहरि आ भॉंय-भॉंय-भाँय,
खाली गिलास सेप अपन पीबि रहल छी।

नहि सूझि रहल बाट आ अथाह ई सागर,
नहि होयत कयल पार पाल झीकि रहल छी।

छल संगी जे एक सेहो छोडि़ पड़ायल,
लसि कोन एहन व्यर्थ देहर नीरि रहल छी।

नहि बूझि रहल छी किए जीवि रहल छी,
जे फाटि चुकल केथरी किए सीवि रहल छी।

(ई रचना धरोहरि के अंतर्गत प्रकाशित कएल जा रहल अछि, जकर रचनाकार प्रसिद्घ गीतकार-नाटककार सुधांशु शेखर चौधरी छथि।)