मंगलवार, जून 2

धन्य हे कपार

धन्य हे कपार.....
ककरा भाग्य मे कि लिखल छै के कहत सरकार
बांध सं भ गेल खत्ता उंच,
मालिक सं रैय्यत मजबूत
पंडित सभक बाल बच्चा पोथी पतरा छोड़ी,
ध लेलक पंजाब-मुंबईक बाट
धन्य हे कपार....
खुआएवै छलाह जे जेबार,
तिनका घर में परि रहल उपवास
धन्य हे कपार.......
गामक बुरक भदोही के दफेदार
बाहरक पैसा सं दुखनमा भ गेल मालदार
जोन बनिहार क त बात नहीं पुछू
लाल बाबू फेर रहल छैथ हर पर हाथ
धन्य हे कपार....

- कैलाशपति मिश्र
०९९५८८८०१३३

2 टिप्‍पणियां:

श्यामल सुमन ने कहा…

बदलि रहल अछि समय के संग मे धुनलहुँ कियै कपार।
लिखल कपारक किछु नहि होइछ सब मिल करू सुधार।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.

kailashpati mishra ने कहा…

thaks a lot for comment in my poem i just wrote changing in society
im among the fellow who wants hollistic change in our socirty