पुरूष नाम-यशक पाछाँ अपस्याँत, घरवाली घरक आर्थिक संकटक निवारण हेतु अर्थक पाछाँ अपस्याँत। पुरूष नव-नव रचनाक सर्जक, मुदा लिखबा लेल कागतोक घोर अभाव। पत्नी अर्थक उपार्जन हेतु सड़क पर सँ रद्दी कागत आ पुरान अखबार चुनि क आनथि आ पुरूष ओहिपर अपन रचना लिखथि। फेर ओकरा रद्दीवालाक ओहिठाम जा पत्नी बेचि आनथि। घरमे किछु पाई आबय लागल। दुनू ओहि पाइ्रमे अपन योगदान मानि संतुष्टï होथि।
- सत्येंद्र कुमार झा
शुक्रवार, जुलाई 10
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1 टिप्पणी:
भाशा समझ बही आयी
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