रविवार, जुलाई 19

सिनेहक पियासल

हम एक सिनेहक पियासल छी,
अपनेक दृष्टिï कृपा क हुअए।
एहि आसक संग निरासल छी,
हम एक सिनेहक पियासल छी।
ई आसमान केर नील रंग,
छू-छू कय करय पुरवा वसंत।
संग नीर रहल नहि एक रंग,
हम एहेन उमंग आसल छी।
हम एक सिनेहक पियासल छी।।
जे आसो पर त जीवतैथ जन,
हिनकर किछु अस्तित्वो रहितनि।
देखू विनाश के अएल घड़ी,
चाही जँ बचे अस्तित्व अपन।
त फेर अवतरित होय जगत मे,
भरू स्वच्छ विचार अपन।

- कंचन

1 टिप्पणी:

श्यामल सुमन ने कहा…

सुन्दर भावक रचना लागल बचाऽ कें राखू प्यास।
दुनियाँ सुन्दर लागय तखने जखन स्नेह विश्वास।।

सादर
श्यामल सुमन
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www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com