मानव जीवनक मूलभूत इकाई सनातन संस्था परिवार अछि। प्राचीन सेँ लऽ कऽ वर्तमान युग धरि परिवारक संरचना मुल्य, परंपरा, विश्वास, मान्यता एवं सम्बंध में शनै: शनै: नव-नव परिवर्तन होइत रहल अछि तथा पारिवारिक ढांचा मे प्रतिपल परिवर्तन उपस्थित भऽ रहल अछि। एहि कड़ी मे पारिवारिक जीवन के महत्वपूर्ण सदस्य, अभिभावक एवं संतान के सम्बंध में व्यापक परिवर्तन भेल अछि।
बहुत तीव्र गति सँ विकसित होइत अपन समाज, पश्चिमीकरण, स्वअस्तित्व, व्यक्तिगत भावना, प्रतिस्पर्धात्मक दृष्टिïकोण मिली कय अभिभावक एवं संतान के सम्बधक परिभाषा बदलि कय राखि देने अछि। वैज्ञानिक अनुसंधान सँ इ प्रमाणित भेय अछि जे बच्चाक मानसिक नैतिक तथा शारीरिक शिक्षण के वास्तविक स्थान स्कूल, कॉलेज नहिं बल्कि मायक निर्मल छाहरि एवं घरक वातावरण अछि। आजुक समय में प्राय: माता-पिता के इ शिकायत होइत छन्हि जेे ओ अपन संतान सँ सन्तुष्टï नहिं छथि। हुनकर संतान हुनका सँ झूठ बजैत छथिन्ह, आज्ञाक पालन नहि करैत छथिन्ह एवं पैघक आदर नहि करैत छथिन्ह इत्यादि दौसर दिस संतान के सेहो माता-पिता सँ कम शिकायत किंवा विरोध नहि छन्हि। अहि खींच तान पर जौं विचार कयल जाय त इ सभ कठिनाई के दूर कयल जा सकेत अछि। सर्वप्रथम बच्चा में सुधारक लेल प्राय: दू प्रकार उपाय कयल जाइत अछि-नकारात्मक एवं रचनात्मक। नकारात्मक ढंग़ ओ भेल जाहि मे बच्चा के भय धमकी एवं मारि-पीट द्वारा अप्रिय व्यवहार के रोकय के लेल बाध्य कयल जाइत अछि। रचनात्मक ढ़ंग ओ अछि जाहि मे बच्चा के ओकर प्रिय कार्य दिस आकृष्टï कयल जाइत अछि। बच्चा जे करय ताहि लेल ओकरा उत्साहित कयल जाय। दोसर अपन संतान के व्यक्तित्वक आदर करबाक चाही। बात-बात पर दोष निकालबा सँ ओकर व्यक्तित्व पर बहुत खराब प्रभाव पड़ैत छैक। माता अथवा पिता सँ भय के कारण बच्चा झूठ बजनाई एवं कोनो तरहक बात नुकौबा लेल मजबूर भऽ जाइत छैक। एतहि सँ ओ अपन माता-पिता सँ दूर होमय लगैत अछि।
कोनो अभिभावक केँ अपन संतान के आस-पास के वातावरण एवं ओकर संगी-साथी के सँ उदासीन नहि अपितु ओहि वातावरण पर निगरानी रखबाक चाही। हमरा सभ के एक कठिनाई इ अछि जे हम अपन बच्चाक संगी-साथी सँ सीधा सम्पर्क अथवा परिचय कयनाई जरूरी नहि बुझैत छी। जखन कखनो बच्चा अपन दोस्त के घर आनय तख निजि रूप सँ ओहि बच्चा में अभिरूचि ली जाहि सँ ओहि बच्चाक आदति एवं आचार-विचारक अध्ययनक अवसर भेटत एवं एहि सँ अहाँ स्वयं अनुमान लगा सकैत छी जे कोनो विशेष बच्चाक संग-अहाँक बच्चा के मेल-जोल नीक परिणाम नहि देत। तखन अहाँ अपन बच्चा के इ सलाह दऽ सकेत छी जे ओ फलां बच्चा के अमुक-अमुक आदति ग्रहण नहि करय। माता-पिता के इ स्वभाविक इच्छा होइत छन्हि कि हुनकर संतान आज्ञाकारी होइन। प्राय:इ बुझल जाइत अछि कि बच्चा पर रोब-दाब रखला सँ बच्चा के आज्ञाकारी बनाओल जा सकैत अछि परन्तु वस्तुत: स्थिति इ नहि होइत अछि। आज्ञापालन मन सँ हेबाक चाही कोनो भय एवं मजबूरी सँ नहि। इ नियम हरदम ध्यान में रखबाक चाही कि बच्चा के जतेक कम आज्ञा देल जाय बच्चा ततेक अधिक आज्ञाकारी हैत। जे कोनो माता-पिता अपन संतान सँ अपन इच्छाक आदर कराबय चाहैत छथि हुनका स्वयं अपन संतानोक-इच्छा-आकांक्षाक-आदर-करय पड़तैन्ह। वर्तमान समय में अभिभावकक भूमिका माता-पिताक संग-संग, मित्र, शिक्षक एवं सलाहकार के सेहो भऽ गेल अछि तथा आजुक समय मे हुनका अपन संतान क भावनात्मक सम्बल बनबाक प्रयत्न करय पड़तैन्ह। आवश्यक अछि हुनक बीच शुष्क सम्बध के प्रेम, स्नेह एवं संवेदन शीलताक संग-संग जागरूक सहयोग सँ नकारात्मक के सकारात्मक स्वरूप में बदलल जाय।
- -कुमकुम झा
शुक्रवार, जुलाई 31
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2 टिप्पणियां:
bahoot badhiya
Badd nik aich
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