मंगलवार, फ़रवरी 17

"बनेने सुनेने कनियाँ नहिं तऽ धनियाँ"

"बनने सुनेने कनियाँ नहिं तऽ धनियाँ" कहबाक तात्पर्य जे कोनो विषय वस्तु वा व्यक्ति के जतेक सजा कऽ राखु ततेक ओ सुन्दर लगैत अछि, संगहि ओकर उपयोगिता सेहो बनल रहैत छैक। केहनो सुन्दर, समृद्ध आ सामर्थ्यवान विषय - वस्तु के निरंतरता रखवाक लेल ओकर धार के माजैत रहऽ पडैत छैक। जहिना कोनो बेकारो सऽ बेकार चीज के श्रृंगार सऽ सुन्दर बनावल जा सकैत अछि। एतय श्रृंगार सऽ तात्पर्य वृहत संदर्भ में अछि। हम भाषा के सोंदर्य आ समृद्ध के सन्दर्भ में बात क रहल छी। फकरा, मुहाबरा, कहाबत, उपमा, कहवी आदि भाषा के
श्रृंगार होइत अछि। एही सभक समावेश सऽ भाषा ने सुन्दर बनैत अछि अपितु ओ समृद्ध सेहो बनैत अछि। मुदा वर्तमान समय मे मैथिली भाषा के ई श्रृंगार तऽ लगभग समाप्ते भेल जा रहल अछि। कहवा में कोनो अतिश्योक्ति नहिं जे "ने आब देवी ने कराह"। व्यवसायिक आ रोजगारपरक शिक्षा के एहि युग मे कोनो युवा के झुकाव अपन भाषा दिस नहि रहि गेल छन्हि आ ने एहि के संबाहक बनवाक लेल पहिलका पीढी के कोनो विशेष लगाव रहि गेल छन्हि। अपने घर मे उपेक्षा के शिकार मैथिली भाषा अपन मौलिक सोंदर्य सऽ बंचित भऽ रहल अछि। मौलिकता के अभाब आ दोसर भाषा के अनावश्यक समावेश सऽ मैथिली भाषा के स्वरूप विक्रृत भऽ रहल अछि। ओ दिन दूर नहिं जे उपेक्षा के दंश भोगि रहल मैथिली भाषा सऽ फकरा पुर्ण रुपे विलुप्त भऽ जायत। हम सब भाषा के अलंकार फकरा बचेवाक लेल किछु प्रयास कऽ रहल छी। यथासंभव एतऽ फकरा संकलित करब, एहि प्रयास में पाठक सभक सहयोग अपेक्षित अछि। लिंक के माध्यम सऽ मैथिली कहवी पठा सकैत छी।
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