गामक परिदृ’य मे
क्षण प्रतिक्षण
घोसिया रहल अछि ‘ाहरीपन,
इंटा के घर मे लागल अछि
नव नव अंग्रेजीया सिस्टम,
समाजिक सौहार्दता स दूर
अछि अपना आप मे सब मग्न,
‘ाराब आ गाजा के संग
भ रहल अछि युवा मे नैतिक पतन,
मां बाप के छोडि
बेटी भागि रहल अछि प्रेमी के संग,
अपन सभ्यता आ संस्कृति के
हासिया पर राखि
सब बनि रहल अछि माॅडर्न
मुदा कहां पता जे
पुरा कपडा पहिरियो क
देखा रहल अछि नग्न,
गामक ई बदलैत स्वरूप देखि
सोचि रहल छी जे
पता नहि हम जीत रहल छी
वा हारि रहल छी ।।
अंकुर कुमार झा
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