शनिवार, फ़रवरी 28

कथा / एना कते दिन

- सतीश चन्द्र झा

स्वच्छ आ निर्मल आँखिमे जेना नोर झिलमिलाए लागैत छैक अथवा ओसक बुन्न फूल पर चमकय लगैत छै, तहिना ओकर ठोरो पर मुस्की नुका नहि सकैत छलैक। कखनहु कोनो बात हो कोनो प्रसंग हो ओकर मुस्की सुहागिनक लाल-लाल सिन्दूर सँभरल सीथ जकाँ हरदम चमकैत रहैत छलैक। सैकड़ो युवतीक छटाक तुलना मे ओकर आकर्सक व्यक्तित्वक मुस्कीक कोनहु विकल्प नहि छलैक। किओ देखै वा नहि, हमर आँखि ई सुखक लेल सदैव उत्सुक रहैत छल।
कक्षामे ओ हमरे पाँजरवाला बेंच पर बेसैत छल, दिन मे कतेक बेर ओकर आ हमर आमना-सामना होइत छल। जहन देखू प्रसन्न, जखन गप्प करू वैह चंचलता सँ परिपूर्ण। अपन छटा केँ आव’यकता सँ बेसी आकर्सक बनेबामे प्रयत्नरत। अनुभा हमरा लेल प्रेरणा छल। ओकर मुस्की हमरा एतेक प्रभावित केने छल जे हम एक दिन पूछिए देने छलियैक -
अनुभा ! एतेक मनमोहक मुस्की अहाँकेँ कतय सँ भेटल ?
ओ हमरा दिस ताकि गंभीर भ गेल छल आ पुनः एकटा वैह आकर्सक छटा वाला मुस्की द देने छल। बुझु जे ओ हमर उतर द देने छल।
मुदा ओहि सं हमरा संतोस कतय ? हम त ओकर चान एहन मुखमंडल सँ सुनय चाहैत छलहुं। हमर बड जिद पर ओ कनेकालक लेल गुम्म भ गेल फेर कहलक - ई त हमर स्वभाविक गुण अछि, ई नैसर्गिक अछि। कोना कहु जे कतय सँ भेटल।
बातो सत्य छलैक। किओ कोना कहि सकैत अछि जे हँसब बाजब, कानव कखन ककरा कतय सँ भेटलै, हमहु केहन बात करय लागल छलहुँ।
हमरा ओहिना स्मरण अदि जे परीक्षाक व्यस्त दिन छल, ओहि समय कखन साँझ होइत छल, कखन खेबाक बेर होइत छल, किछु पतो नहि रहैत छल। किताबक पन्ना आँखिमे नचैत रहैत छल। नील रोसनाई सँ लिखल नोटक वाक्य ओहिना दिमाग पर आच्छादित रहैत छल। एहने व्यस्तता सँ भरल दिनमे एक दिन एकाएक भेट भेल छल अनुभा सँ। कने ध्यान द देखतहुँ त उदास भ गेल छलहुं - जगरना सन आँखि, ठोर पर पपड़ी जमल आ ओ मनमोहक मुस्की नहि जानि कतय हरा गेल छलैक। पूरा हालत अस्त-व्यस्त। ओकर एहन हालत देखि नहि जानि मन मे केहन-केहन गप्प आबि रहल छल। करेक धड़कन अपन दैनिक गति सँ तेज भ गेल छल। हम घबरायले भावे पुछलियैक - कि भेल अनुभा ?
ओ चुप्प छल। ओकरा चुप्प देखि हमरा रहल नहि भेल। ओकर दुनू कान्ह कें डोलबैत पुछलियै - आखिर बात की अछि अनुभा ? किएक ने बाजैत छी? कहुने जे कि भेल ?
ओ मुस्कीक व्यर्थ प्रयास करेत् कहलक - संजू! हमर परीक्षा खराब भ गेल अछि, हम ठीक सँ लिखि नहि सकलहुँ अछि। एहि साल पासो होएब असंभव बुझायत अछि आ ओकर आँखि सँ नोर खसि पड़ल छलैक।सान्त्वना दैत हम कहलियै - केहन गप्प करैत छी अनुभा, ई कोनो एहन बात त नहि जाहि लेल अपन जीवने बदलि देल जाए। आदमी अपन स्वभाविक स्वभाव बिसरि खंडहर बनि जाए। अहाँ बताहि त नहि भ गेलहुँ अछि अनुभा ? देखु त अपन हाल कि सँ कि कय लेलहुं अछि। देखु अनुभा, मेहनति करब हमर कर्तव्य थीक; सफलता-असफलता ई त हमर हाथमे नहि अछि, तहन एतेक चिन्तित हैब व्यर्थ थीक। ई त सर्वविदित छैकने जे महाभारक युद्ध मे श्रीकृ’ण जनैत छलथिन्ह जे अभिमन्यु जे युवावस्थाकेँ प्राप्त केने छल, चक्रव्यूह मे मारल जायत, यद्यपि ओ बचा सकैत छलथिन्ह मुदा ई कहि जे होबाक छैक से भइए क रहैत छैक आ अभिमन्यु अपन कर्तव्यकेँ खूब नीक जकाँ निमाहलक। हुनक आगां त हम अहाँ ....।
अनुभा बाजल, नहि संजू! अहाँ नहि जनैत छी, एहि साल पास होयब हमरा लेल बड आव’यक अछि, बेर-बेर असफलता सँ हमर स्थिति केहन भ गेल अछि से अहाँ जनैत छी ?
हम उदास भ कहलियै - कि करबै अनुभा ! जे होबाक रहैत छैक ओ त भइएक रहैत छैक।
प्रयास करितौ ओ मनमोहक मुस्की अनुभाक मुख पर नहि आबि सकल छलै आ ओ विदा भ गेल छल। किछु दिनक बाद ओ आयल छल। वैह हालति, ओहिना खिन्न, वैह उदासीक रूप। हम पुछलियै - अहाँक भूत एखनधरि नहि उतरल अछि कि ?
ओ मन्हुआयले मोन सँ कहलक - उतरि जायत। जे होबाक छल से त भ गेल, आब कथिक लेल कानब आ कथीक भूत। ई किताब अनालहुं अछि से ल लिअय।
हम आ’चर्य भ पुछलियैक - कि आहाँ आगू नहि पढब ? पढाई-लिखाई त भाग्यक खेल अछि, किछु दिनक बाद हमर विवाह भ रहल अछि , फेर केहन पढ़ब-लिखब - ओकर उत्तर छल। मुदा ? मुदा कि संजू ? जँ किछु कहबाक हो त कहि दिअय, नहि जानि फेर भेट हैत कि नहि ? हम त अपन मनक गप्प कहबा लेल छलहुँ कि बीचहि मे.... जे अहाँके किछु कहबाक हो त कहि दिअ... लेकिन हमहु किछु कहि नहि सकल छलियैक। हमरा लागल जेना ओ विव’ा छली आ विदा भ गेल छली मुदा एक तूफान सन बिहाड़ि छोड़ि गेल छली जाहि सँ हमर अन्तःकरण आंदोलित भ गेल छल, जे आइयो ’ाांत नहि भ सकल छल आ केतको प्र’न हमर मन मे अउनाइत रहल हम किछु क नहि सकलहुँ।
आब हमहुँ बैंकक नौकरी करय लागल छलहुँ। एहि साल गृहस्थी जीवन मे प्रवे’ा केने छलहुं। आफिस जयबाकाल पत्नी कहने रहथि - हे सुनै छी, आई कने जल्दी चलि आयब; आई साँझ मे अस्पताल जयबाक अछि। से किएक ? कि अस्पतालक .....
धूर जाउ, अहाँके त हरदम हँसीए मजाक बुझाइत अछि; हमर गामक जे फुचाई बाबू छथिन ने, तिनके बेटी अनुभा अस्पताल मे भर्ती छैक, कने जिज्ञासा क लेनाई जरूरी ने छैक - हँ-हँ अव’य, इएह सब त समाज मे, परिवार मे नाम रहि जाइत छैक, मुदा अनुभाक नाम नाम सुनितहि हमर मन डेरा गेल छल, मनमे एक अजीब सन भयक संचार होमय लागल छल, मुदा मन कें सम्हारैत आफिस विदा भ गेलहँु।
साँझ मे अस्पतालक वास्ते विदा भेलहुं, मुदा रिक्सा पर मन घबरा रहल छल आ रहि-रहि क एक्के बातक डर भ रहल छल जे वैह अनुभाक त नहि अछि। एहि बात सँ भरि देह पसेनाक बुन्न छोड़ि देने छल। जेबी सं रूमाल बहार क हम पोछय लागल छलहुं। जाड़ो मे पसेना छुटि गेल, कि अस्पतालक डर होइत अछि ? नहि... नहि एहन बात नहि छैक; आॅफिस सँ अएलाक बाद तुरंते विदा भ गेलहुं अछि ताहि कारण मन कने थाकल बुझाइत अछि - हम पत्नीक बातकेँ अनठियबैत कहने रहियैन्ह। अस्पताल पहुंचलहुं त ओहिठाम हड़बिरड़ो उठल छल, डाक्टर, नर्स आ कम्पाउण्डर सब किओ इम्हर सँ ओम्हर दौड़-बरहा क रहल छल। आॅपरे’ान घरक एक कोनमे बैसल ’ाोक संतप्त परिवार दिस हमर पत्नी चलि गेलीह आ गप्प गेलाक बाद ओहो उदास भ गेल छलीह। एहि सबटा घटनाक हम मूकदर्’ाक बनल रहलहुँ जेना एही वास्ते हम आयल रही।
ओहिठाम कातमे बैसल एकटा अति ’ाोक संतप्त युवक दिस हम बढि गेल छलहुं, हुनकहि सँ ज्ञात भेल जे हुनकहि पत्नीक आॅपरे’ान भ रहल छन्हि; संगहि इहो कहलनि जे जहिया सँ हुनक विवाह भेलनि अछि तहिया सँ पत्नी अस्वस्थे रहैत छथिन आ ताहिमे दोसर बेर माँ बनि रहल छथि। डाक्टर लोकनिक कहब छन्हि जे बच्चा त बाँचि जायत मुदा .....
नहि... नहि... एहन बात नहि बाजू सभक रक्षा भगवान करैत छथिन्ह, ऐना जँ अहिं करब त फेर .....एहि बीच कन्नरोहट उठि गेल छलै, ओहो युवक ओम्हरे दौड़ गेल छलाह मुदा पत्नी सदाक लेल संग छोड़ि गेल छलथिन्ह। हमरो आँखि सँ नोर टघरय लागल छल आ धीरे-धीरे ओम्हरे डेग बढ़ा देने छलियैक। अनुभा.... ! एकाएक ओकर ’ाव देखि हमर बढल डेग रूकि गेल छल। हमरा जकर अनुमान भेल छल ओ साक्षात सामने छल, वैह अनुभा जे कहियो हमर प्रेरणा छल। हम त कल्पना मे नहि सोचने रहि जे अनुभा सँ फेर भेट हैत ; मुदा विडंबना देखु जे भेटो भेवा कयल त लहासक रूप मे। ओकरा संग बीतल युवावस्थाक दिन हमिरा स्मरण आबय लागल छल, देह थरथराय लागल छल, कहुना क अपनाकेँ सम्हारैत कहुना कय डेग आगू बढेने छलहुं। डाक्टर लोकनि सं ज्ञात भेल जे एकर मुख्य कारण जल्दीए दोसर बेर माँ बनब अछि कारण एक बच्चाक बाद ’ाारीरिक रूपेँ त ओ ततेक ने कमजोर भ गेल रहथि जे दोसर बेरक हेतु ओ एखन तीन-चारि साल धरि माँ नहि बनि सकैत छलीह। मुदा से नहि भ सकल छलन्हि.....। बादमे हमरो दुखो भ रहल छल जे ओहि युवक कें हम बहुत बातो कहि देने रहियैन्ह जे पढि-लिखि गेलाक बादो अहांलोकनि भावुकताक प्रवाह मे ऐना ने बहि जाइत छी जे भवि’यक कोनो चिन्ते नहिं। जँ आइ उचित परिवार नियोजनक कार्यप्रणाली पालन केने रहितहु त आई एहन परिस्थिति नहि अबैत, हमर बात पर ओ कानय लागल छलाह आ हमरो आँखि सँ नोर खसि पड़ल छल।

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