मंगलवार, फ़रवरी 3

कि कहू

समय के संग बदलैत
गामक परिदृ’य मे
क्षण प्रतिक्षण
घोसिया रहल अछि ‘ाहरीपन,
इंटा के घर मे लागल अछि
नव नव अंग्रेजीया सिस्टम,
समाजिक सौहार्दता स दूर
अछि अपना आप मे सब मग्न,
‘ाराब आ गाजा के संग
भ रहल अछि युवा मे नैतिक पतन,
मां बाप के छोडि
बेटी भागि रहल अछि प्रेमी के संग,
अपन सभ्यता आ संस्कृति के
हासिया पर राखि
सब बनि रहल अछि माॅडर्न
मुदा कहां पता जे
पुरा कपडा पहिरियो क
देखा रहल अछि नग्न,
गामक ई बदलैत स्वरूप देखि
सोचि रहल छी जे
पता नहि हम जीत रहल छी
वा हारि रहल छी ।।

अंकुर कुमार झा

1 टिप्पणी:

Vinay ने कहा…

आप सादर आमंत्रित हैं, आनन्द बक्षी की गीत जीवनी का दूसरा भाग पढ़ें और अपनी राय दें!
दूसरा भाग | पहला भाग